B.Ed. EPC-4 understanding the self pdf Notes in hindi ( स्वयं की समझ ) common questions - answers for all university


B.Ed. EPC-4  understanding the self pdf Notes in hindi

UNIT - 1 : स्वयं की समझ ( Understanding Self )









Q.1 . आत्म सजगता का वर्णन कीजिए । ( Discuss the Self Awareness . )

आत्म जागरूक(Self Aware) होने का मतलब आपके व्यक्तित्व का तेज अहसास है, जिसमें आपकी शक्तियां, कमजोरियां, आपके विचार और विश्वास, आपकी भावनाएं और आपकी प्रेरणा शामिल है। यदि आप स्वयं से अवगत हों तो अन्य लोगों को समझना और यह पता लगाना आसान है कि वे आपको बदले में कैसा महसूस करते हैं।
आत्म जागरूकता क्यों जरूरी है Why Self Awareness Is Important?

आत्म-जागरुक बनना जीवन के निर्माण में एक प्रारंभिक कदम है। इससे आपको यह पता लगाने में मदद मिलती है कि आपका जुनून(Passion) और भावनाएं(Feelings) क्या हैं, और आपका व्यक्तित्व(Personality) आपके जीवन में आपकी मदद कैसे कर सकता है। जब आप आत्म जागरूक(Self Aware) होते हैं, तो आप देख सकते हैं कि आपके विचार और भावनाएं आपको कहां ले जा रही हैं। एक बार जब आप अपने विचारों, शब्दों, भावनाओं और व्यवहार से अवगत हो जाते हैं, तो आप अपने भविष्य की दिशा में बदलाव करने में सक्षम हो जाते हैं।








आत्म जागरूक होने के फायदे Benefits Of Being Self-Aware?
जब आप आत्म-जागरूकता विकसित(Develop Self Awareness) करते हैं, तो आपके व्यक्तिगत विचारों और व्याख्याओं में बदलाव आना शुरू हो जाता है। मानसिक स्थिति में यह परिवर्तन आपकी भावनाओं को भी बदल देता है और आपकी भावनात्मक बुद्धि को बढ़ाता है, जो समग्र सफलता प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण कारक है।
अलग-अलग क्षेत्रों में आत्म-जागरूकता कैसे महत्वपूर्ण हो सकती है?
 नेतृत्व “LEADERSHIP”

आत्म जागरूकता क्या है?” का उत्तर देने में सक्षम होने के बिना आप एक प्रभावी नेता नहीं बन सकते।

यह मजबूत चरित्र रखने के लिए आवश्यक आधार प्रदान करता है, उद्धेश्य, विश्वास, प्रमाणिकता और खुलेपन के साथ नेतृत्व करने की क्षमता पैदा करता है। यह नेताओं को उनके प्रबंधन कौशल में होने वाले किसी भी अंतर की पहचान करने का मौका भी देता है, और उन क्षेत्रों को बताता है जिनमें वे प्रभावी हैं और जहां उन्हें अतिरिक्त कार्य की आवश्यकता हो सकती है।


इन चीजों को जानना नेताओं(Leaders) को समझदार निर्णय लेने में मदद करता है। आत्म-जागरुक होना या सीखना एक साधारण प्रक्रिया नहीं है, लेकिन ऐसा करने से किसी के नेतृत्व कौशल में सुधार हो सकता है और अधिक सहायक व्यावसायिक संस्कृति का कारण बन सकता है।


सामाजिक कार्य “Social Work”

एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में, आत्म-जागरूकता रखना विशिष्ट स्थितियों में सामना करने की तैयारी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। एक प्रभावी सामाजिक कार्यकर्ता बनने की अधिकांश प्रक्रिया आत्म-जागरूक होने से बनी है।

 शिक्षा “Education”
आत्म जागरुकता का अर्थ क्या है और शिक्षा में यह महत्वपूर्ण क्यों है?
आत्म-जागरूकता शिक्षा में एक बड़ी भूमिका निभाता है क्योंकि इससे छात्रों को सीखने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।
जब शिक्षक छात्रों के साथ काम करते हैं, उन्हें खुद को प्रतिबिंबित करने, निगरानी करने और मूल्यांकन करने के लिए सिखाते हैं, तो छात्र अधिक आत्मनिर्भर और उत्पादक बनते हैं। यह छात्रों को अपने भावनात्मक और सामाजिक जीवन में आत्म-प्रतिबिंबित करने और Grow करने के लिए भी Tool प्रदान करता है।


आत्म जागरूक कैसे बनें

“How To Develop And Increase Self-Awareness In HIndi”

1. अपने आप को निष्पक्ष रूप से देखें Look At Yourself Objectively

वास्तविक रूप में खुद को देखने का एक बहुत ही कठिन प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन यदि आप सही प्रयास करते हैं, तो अपने असली आत्म को जानना बेहद पुरस्कृत हो सकता है। जब आप अपने आप को निष्पक्ष रूप से देखने में सक्षम होते हैं, तो आप सीख सकते हैं कि कैसे स्वयं को स्वीकार करें और भविष्य में खुद को सुधारने के तरीके खोजें।
v  अपनी धारणाओं(Perceptions) को लिखकर अपनी वर्तमान समझ को पहचानने का प्रयास करें। यह चीजें हो सकती है जो आपको लगता है कि आप ऐसा करने में अच्छे हैं, या आपको सुधारने की आवश्यकता है।
v  उन चीजों के बारे में सोचें जिनके बारे में आप गर्व करते हैं, या आपके जीवन भर में वास्तव में मिली किसी भी उपलब्धि के बारे में सोचें।
v  अपने बचपन के बारे में सोचें आपको कौन सी चीजों से खुशी मिलती थी। क्या बदल गया है और क्या शेष बचा हैपरिवर्तन के कारण क्या है?
v  दूसरों को आपके बारे में ईमानदार होने के लिए प्रोत्साहित करें कि वे आपके बारे में कैसा महसूस करते हैं, और फिर वे जो कहते हैं उन्हें आप दिल से लो।
अंत में, आप अपने और अपने जीवन पर एक नए परिप्रेक्ष्य(Perspective) के साथ बाहर आएंगे।

2. अपने लक्ष्य, योजनाएं, और प्राथमिकताओं को लिखें Write Down Your Goals, Plans
एक Blank Paper या Worksheet में अपने लक्ष्यों की योजना बनाएं ताकि वे Step-By-Step प्रक्रिया में विचारों के रूप में सामने आयें। अपने बड़े Goals को Mini Goals में तोड़े, जिससे यह कम भारी लगता है, और फिर इसे आगे बढ़ाएं। 
3. ध्यान और अन्य दिमागी आदतों का अभ्यास करें Practice Meditation And Other Mental Habits
ध्यान(Meditation) आपके दिमागी जागरूकता में सुधार का अभ्यास है। ध्यान के अधिकांश प्रकार सांस पर ध्यान केंद्रित करते हैं। ध्यान और अन्य दिमागीपन आदतों का अभ्यास करने से आपको बड़ी स्पष्टता और आत्म-जागरूकता मिलती है।
ध्यान के सबसे लगातार रूपों में से एक आप अभ्यास कर सकते हैं जो आपको चिकित्सकीय शांति की भावना देता हैजैसे कि एक दौड़ के लिए जानाव्यायाम करना और मंदिर या चर्च जाना। 

4. भरोसेमंद दोस्तों से आपको बताने के लिए कहें  “Ask Trusted Friends To Describe You”

हम कैसे जान सकते हैं कि अन्य लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैंहमें अपने साथियों और सलाहकारों की प्रतिक्रिया सुनना हैकि वे हमारे बारे में क्या सोचते हैं। और उन्हें एक ईमानदार दर्पण(Mirror) की भूमिका निभाने को कहना है। आप यह भी सुनिश्चित करें कि आपके मित्र जानते हैं कि वे आपकी मदद करने के लिए ऐसा कर रहे हैंआपको चोट पहुंचाने के लिए नहीं। इसके अलावाआप अपने दोस्तों को प्रश्न पूछने के लिए भी कह सकते हैं।
भरोसेमंद दोस्तों से आपको बताने के लिए कहें। अपने दोस्तों को सुरक्षित महसूस करने देंजबकि वे आपको एक अनौपचारिक लेकिन ईमानदार दृश्य दे रहे हैं।
  

आत्म-जागरूकता क्या है? What Is Self-Awareness?

आत्म-जागरूकता क्यों जरूरी है? Why Is Self-Awareness Important?
आत्म-जागरूक होने के फायदे Benefits Of Being Self-Aware?
आत्म जाकगरूकता कैसे विकसित करें और बढ़ाएं How To Develop And Increase Self-Awareness In HIndi
   

Q.2 . . ' स्व ' की अवधारणा का विवेचन करें । --- ( Discuss the conception of ' Self . )

Ans . जहाँ एक ओर आलोचकों की दृष्टि में व्यक्तित्व की गुण विचारधारा , मनोविश्लेषक विचारधारा तथा सामाजिक - मनोवैज्ञानिक विचारधारा एक परम्परागत विचारधारा है , वहीं दूसरी ओर ' स्व ' विचारधारा है जो व्यक्तित्व संरचना के विभिन्न भागों में ' अर्थपूर्ण सम्पूर्णता ' में एकीकृत करती है । यद्यपि इस विचारधारा के विकास में कई विद्वानों , जैसे मैस्लो , हर्जबर्ग , लेविन आदि ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है किन्तु कार्ल सी , रोजर्स ( Carl C. Rogers ) का नाम इस विचारधारा के साथ विशेष रूप से जुड़ा हुआ है ।

रोजर्स ( Karl Rogers ) ' स्व ' अथवा ' स्व अवधारणा ' को निम्न प्रकार से परिभाषित करते हैं — ' स्व ' अथवा ' स्व ' अवधारणा एक संगठित , सुसंगत वैचारिक संरूपण है जो ' मैं ' और ' मुझे ' के लक्षणों के अवबोध एवं ' मैं ' और ' मुझे ' के दूसरों के एवं जीवन के अन्य पहलुओं के साथ सम्बन्धों के अवबोध तथा इन अवबोधों के साथ जुड़े मूल्यों से निर्मित होता है । " ( " Self or self - concept is an organized , consistent conceptual , gestalt composed of perceptions of the characteristics of the ' l ' or ' me ' and the perceptions of the relationship of ' T ' or ' me ' to others and to various aspects of life , to gether with the values attached to these perceptions . " )

ई . इर्कसन ( E. Erkson ) के अनुसार , ' स्व - अवधारणा ' के निम्न चार घटक हैं :

1. स्व - छवि ( Self - image ) - स्व - छवि एक ऐसा मार्ग है जिसमें व्यक्ति स्वयं को देखता है । प्रकृति के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के अपन बारे में कुछ विचार होते हैं कि आखिर वह कौन एवं क्या है ? ये विचार ही उस व्यक्ति की ' स्व - छवि ' अथवा ' पहचान '

2. ' आदर्श - स्व ' ( Ideal Self ) आदर्श - स्व यह बताता है कि व्यक्ति कैसा बनना चाहता है । ' स्व - छवि ' और ' आदर्श - स्व ' में मूलभूत अन्तर यह है कि जहाँ एक ' स्व - छवि ' व्यक्ति की वास्तविकता को इंगित करती है , वहीं दूसरी ओर ' आदर्श - स्व ' व्यक्ति के आदर्श को इंगित करता है अथवा व्यक्ति कैसा बनना चाहता है । ' स्व - छवि ' की तुलना में ' आदर्श - स्व ' अधिक महत्वपूर्ण है । यह व्यक्ति को एक विशेष प्रकार से व्यवहार करने के लिए अभिप्रेरित करता है । व्यक्ति उन्हीं उत्तेजनों का चयन करेगा जोकि उसके ' आदर्श - स्व ' में निखार लाने में सहयोग प्रदान करते हैं ।

3. दर्पण - स्व ( Looking glass - self ) - ' दर्पण - स -स्व ' व्यक्ति विशेष का अवबोध न है कि दूसरे लोग उसके गुणों एवं विशेषताओं का किस प्रकार से अवर्बोधन करते हैं । दूसरे शब्दों में ' दर्पण - स्व ' से आशय एक ऐसे तरीके से है जिसमें व्यक्ति यह सोचता है कि  तथा लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं न कि उस तरीके से जिसमें लोग उसे वास्तव में देखने हैं । यदि देखा जाय तो ' दर्पण - स्व ' व्यक्ति के ' स्व ' की परछाई है जिसका अन्य लोग अवबोधन करते हैं ।

4. वास्तविक - स्व ( Real - self ) – ' वास्तविक - स्व ' एक वास्तविकता है कि आखिर व्यक्ति है क्या । ' स्व - अवधारणा ' के प्रथम तीन पहलू ( जिनका वर्णन किया जा चुका है । तो व्यक्ति के स्वयं के बारे में अवबोधन है । वे वास्तव में स्व के समान अथवा उससे भिन्न हो सकते हैं ।

कार्ल रोजर्स ( Karl Rogers ) ने निम्न दो प्रकार की ' स्व - अवधारणाओं ' का उल्लेख किया है।

( क ) व्यक्तिगत ' स्व ' ( Personal Self ) - रोजर्स कहता है कि ' मैं '

( 1 ) व्यक्तिगत स्व की अवधारणा है । स्व वह है जो एक व्यक्ति अपने होने में विश्वास करता है स्वयं होने का प्रयास करता है । यह एक व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं जैसे अवबोधन , सीखना एवं अभिप्रेरणा आदि से निर्मित होता है जो कि संयुक्त रूप से एक अद्वितीय सम्पूर्णता में रूपान्तरित हो जाती है ।

( ख ) सामाजिक ' स्व ' ( Social Self ) - मुझे या मेरा ( Me ) सामाजिक ' स्व ' को दर्शाता है और उसका प्रतिनिधित्व करता है । ' मुझे ' या ' मेरा ' वह ढंग है जिससे एक व्यक्ति दूसरों के प्रति प्रकट होता है या दूसरों से जुड़ता है अथवा वह ढंग है जिसमें वह व्यक्ति सोचता है कि वह दूसरों के साथ कैसे प्रकट हो रहा । एक व्यक्ति जो भूमिका समाज में निभाता है , वह उसके आन्तरिक ' स्व ' का परावर्तन है । यह एक ' दर्पण छवि ' ( Mirror Image ) है । मेरे उस विश्वास की कि लोग मुझसे क्या चाहते हैं । स्पष्ट है कि ' मुझे ' या मेरा उस भूमिका प्रत्याशाओं से जुड़ा है जो मेरे ' स्व ' के बारे में दूसरे रखते हैं ।

 संगठनात्मक व्यवहार का विश्लेषण करने में ' स्व ' अवधारणा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । एक व्यक्ति ऐसी स्थिति का अवबोधन करता है जोकि उसकी ' स्व - अवधारणा ' पर निर्भर करती है । इसका मानव के व्यवहार पर सीधा प्रभाव पड़ता है । इसका आशय हुआ कि विभिन्न स्व - अवधारणा वाले व्यक्तियों के लिए विभिन्न प्रकार के प्रबन्धकीय व्यवहारों की आवश्यकता होती है मनोविज्ञान के इतिहास में कार्ल रोजर्स'अमेरिका के एक अत्यन्त आशावादी मनोचिकित्सक के रूप में चित्रित किए गए हैं !

रोजर्स ने व्यक्ति उसके व्यक्तित्व को सही रूप में जानने के उद्देश्य से एक विशिष्ट दृष्टिकोण को अपनाया और एक अभूतपूर्व उपागम का अनुसरण किया ।

रोजर्स के चिन्तन पर गोल्डस्टीन ( Goldstein ) और अब्राहम मैस्लो ( Abraham Maslow ) के दार्शनिक विचारों का सीधा प्रभाव पड़ा है । उनका व्यक्तित्व सिद्धान्त एक दृष्टि से समग्रवादी : ( Organismic ) , अस्तित्ववादी ( exitential ) , फेनॉमेनालॉजिकल ( Phenomenological ) तथा मानवतावादी ( humanistic ) कहा जाता है ।

 मैस्लो ने आत्मसिद्धि ( self actualization ) को व्यक्ति की सबसे महत्वपूर्ण प्रेरकवृत्ति माना है और आत्मसिद्ध व्यक्तियों की व्यक्तिगत विशेषताओं का गहन अध्ययन किया है । रोजर्स ने मैस्लो की इस अवधारणा को आत्मसात कर आत्मसिद्धि को व्यक्ति के जीवन का एक मात्र लक्ष्य माना । आल्पोर्ट , गोल्डस्टीन , युंग और हेनरी मरे की ही भांति रोजर्स ने भी व्यक्ति का उसकी समग्रत ( totality ) में अध्ययन करना उचित बताया है और कहा है कि व्यक्ति के किसी व्यवहार को पृथक् कर उसके वास्तविक अर्थ तक नहीं पहुँचा जा सकता ।

इसे ही मनोविज्ञान में समग्रतावादी ( organismic ) दृष्टिकोण कहा गया कार्ल रोजर्स ने व्यक्तित्व मनोविज्ञान के क्षेत्र में एक मानवतावादी विचारक के रूप में भी अपनी पहचान बनाई है । इस संदर्भ में उनका दृष्टिकोण अत्यन्त उदारवादी रहा है ।

मानव व्यक्तित्व के संदर्भ में रोजर्स ने एक और फ्रायड की निराशावादी मान्यताओं को पूर्णत : अस्वीकार कर दिया है और रोजर्स ने अपने मानवतावादी मनोविज्ञान में स्वस्थ और रचनात्मक विकास की संभावनाओं से परिपूर्ण मानव की संकल्पना प्रस्तुत की है । एक मनोचिकित्सक के रूप में कार्ल रोजर्स से सम्पूर्ण व्यक्तित्व को दो संघटकों प्राणी ( organism ) और स्व ( self ) के रूप में विच्छेदित कर प्रत्येक की व्याख्या प्रस्तुत की है । प्राणी और स्व ही व्यक्ति के समस्त अनुभवों के केन्द्र बिन्दु माने गए हैं और व्यक्ति को इन्हीं अनुभवों का संज्ञान उसके स्वस्थ और सुखी जीवन के लिए आवश्यक होता है इसीलिए रोजस का सिद्धान्त व्यक्ति केन्द्रित सिद्धान्त ( person centred theory ) भी कहा जाता है ।

वस्तुतः प्राणी और स्व के सम्प्रत्ययों को इन्द्रियानुभविक अन्वेषण ( empirical investigation ) का विषय बनाने का श्रेय केवल रोजर्स को ही है । वैसे प्रकारान्तर से रोजर्स के लिए प्राणी , स्व तथा व्यक्ति ( person ) में कोई स्पष्ट भेद नहीं है । रोजर्स का सिद्धान्त फेनॉमेनालॉजिकल ( phenomenological ) इसलिए कहा जाता है क्योंकि रोजर्स के अनुसार , व्यक्ति अपने भीतर निहत संभावनाओं ( potwntialities ) का प्रत्यक्ष अनुभव करता है और उसी के अनुरूप व्यवहार करता है । इसी प्रकार चूँकि व्यक्ति का व्यवहार उसकी क्षमताओं के संज्ञान या प्रत्यक्षीकरण पर निर्भर होता है इसलिए रोजर्स का सिद्धान्त संज्ञानात्मक सिद्धान्तों ( cognitive theories ) के समूह में वर्गीकृत किया जा सकता है ।


Q.3 . आत्म - प्रत्यय से आप क्या समझते हैं ? इसको प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना करें । ( What do you understand by Self Concept ? Discuss its influencing factors . )

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Q.4 .Click For Answer . आत्म प्रत्यय के विकास पर प्रकाश डालें ।

Q. 5 . ( Throw light the development of Self Concept . ) आत्म सम्मान से आप क्या समझते हैं ? आत्म सम्मान के विकास एवं घटक की विवेचना करें । ( What do you understand by Self - Esteem ? Dicuss the development and component of Self - Esteem . )

Q.6 . आत्म - सम्मान को विकसित करने की विधियों का वर्णन करें । --.. ( Describe the methods for Self - Esteem Development . )

Q.7 . आत्म को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना करें । -seem ( Discuss the factor Influencing Self . )

Q.8 . आत्म - पहचान तथा आत्म - सम्मान के विकास पर प्रकाश डालें । ( ( Throw light on the development of Self Identity and Self - Esteem . )


9.आत्म विश्वास से क्या आशय है ? आत्म विश्वास के विकास के उपाय का वर्णन करें

Q.9 . ( What do you mean by self confidence ? Describe the measures for development of Self Confidence . ) . )

Q. 10. आत्म - अभिव्यक्ति से आप क्या समझते हैं ? विवेचना कीजिए । ( What do you understand by Self Expression ? Discuss . )

आत्म-अभिव्यक्ति एक आन्तरिक कारक, एक निजी दृष्टिकोण और विचारों की स्व-जागरूकता है, जो कि विभिन्न बाहरी रूपों में अभिव्यक्त होती है; जैसे—लेखन, अभिनय, पेंटिंग, डांसिंग, फिल्म निर्माण, गायन आदि । हम सभी क्रियात्मक हैं और हम सभी को अभिव्यक्त होने की आवश्यकता है। आत्म अभिव्यक्ति और कला इस प्रक्रिया को शुरू करने का अवसर है। आत्म अभिव्यक्ति को प्रकट करने की एक विशाल श्रृंखला है जो कि साहित्यिक एवं दृश्यकारी कलाओं को कक्षा-कक्ष में पढ़ने एवं अध्ययन करने के दौरान उपलब्ध होती है। इसके अतिरिक्त ये विभिन्न स्थानीय घटनाओं, शो, प्रदर्शनियों में भी उपलब्ध है। यदि हम वृहत् दृष्टिकोण से देखें आत्म अभिव्यक्ति खुद को विभिन्न रूपों में प्रकट करने की प्रक्रिया मात्र है, जो विभिन्न कलाओं में प्रदर्शित होती है। शिक्षा इसको एक रूप देने का साधन मात्र है। आत्म अभिव्यक्ति शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास में निहित होती है।

आत्म-अभिव्यक्ति निम्नलिखित प्रकार से आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है—
(1) यह शारीरिक कार्य और श्रम के महत्त्व के प्रति समझ व सम्मान की भावना विकसित करती है, क्योंकि 21वीं सदी के मशीनी एवं यांत्रिकी युग में भी हाथ के काम का दस्तकारी और शारीरिक श्रम का बहुत महत्त्व है। मनुष्य की दिनचर्या से जुड़े ऐसे बहुत से कार्य हैं जहाँ मशीनी काम की संभावना पर अनेक सवाल उभरते हैं और हाथ के काम की उपयोगिता का महत्त्व स्पष्ट हो जाता है।
(2) आत्म अभिव्यक्ति आस-पास के परिवेश के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता उत्पन्न करने के साथ-साथ पर्यावरण के अंतःसम्बन्ध के प्रति समझ विकसित करती है।
(3) दृश्य एवं प्रदर्शन कला के माध्यम से आत्म अभिव्यक्ति और रचनात्मकता के गुण को पोषित किया जा सकता है। इससे विद्यार्थियों में सौन्दर्यानुभूति की भावना व कला विकसित होती है।
(4) यह आवश्यक जीवन कौशलों को विकसित करती है। यह विभिन्न जीवन कौशलों से जुड़ी ऐसी योग्यताएँ पैदा करती है जो विद्यार्थी को दैनिक जीवन की माँगों और चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निबटने के काबिल बनाती है। जिसमें से कुछ मूलभूत जीवन कौशल इस प्रकार हैं— समस्या निवारण, निर्णय लेने, सोच, समालोचना, पुरानुभूति, प्रभावी सम्प्रेषण, विचारोत्पादक चिन्तन, तनाव में विचलित न होना, अंतरवैयक्तिक सम्बन्ध आदि ।

(5) यह कार्य करने के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा करती है जो विद्यार्थियों को उद्देश्य परक मानव गतिविधियों से जोड़े रखती है।


Q.11 . आत्म - अभिव्यक्ति को प्रभावित करनेक वाले तत्वों की विवेचना ( Discuss the factors affecting Self Expression . )

 Q. 12. आत्म विश्वास के विकास में शिक्षक एवं विद्यालय की भूमिका का वर्णन करें । ( ( Describe the role of Teacher and School in Self Confidence Building . ) .

Q. 13. व्यक्तित्व निर्माण में परिवार स्कूल एवं समाज की भूमिका का वर्णन करें । ( ( Describe the role of Family School and Society in Personality development . )

Q.14 . एक शिक्षक की पेशेवर पहचान पर प्रकाश डालें । ( Throw light on professional identity of a teacher . )

Q.15 . ' स्व ' पर सामाजिक परिवेश के प्रभाव का विवेचन करें । ( Discuss the influence of social milienu on ' self . )

 Q.16 . तनाव क्या है ? इसकी नकारात्मक प्रतिक्रियाओं का विवेचन करें । ( What is Stress ? Discuss its negative reactions . )

Q.17 . " नकारात्मक अनुभव तनाव उत्पन्न करते हैं " इस कथन की व्याख्या करें । ( " Negative experiences generate stress . " Explain . )


 UNIT - 2 : स्वयं की प्रगति में योग तथा उनकी भूमिका ( Yoga and its Role in Self - Well - Being )


Q. 18. योग क्या है ? इसके उद्देश्यों , लक्ष्यों एवं महत्त्व का वर्णन करें । ( What is Yoga ? Describe its aims , objects and importance . )

Q.19 . दबाव ( तनाव ) से मुक्ति और योग की भूमिका पर एक टिप्पणी लिखें । ( Write a note on Stress Relief and Role of Yoga . )


Q.20 . ध्यान क्या है ? इसकी आवश्यकता और महत्व पर प्रकाश डालें । ( What is Meditation ? Throw light on its need and importance . )

Q.21 . योग के तत्त्वों का वर्णन करें । ( Describe the elements of Yoga . )

Q.22 . योग के प्रकार का वर्णन करें । ( Describe the types of Yoga system . )

Q.23 , अष्टांग योग का वर्णन करें । ( Describe Astang Yoga . )

Q.24 . समाजिक पहचान के सिद्धान्त की विवेचना करें । ( Discuss the theories of Social Identity Development . )

Q.25 . संस्कृति का मूल्य के स्रोत के रूप में विवेचना कीजिए । ( ( Discuss the Culture as the Source of Value . )

Q.26 . भारतीय संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन करें । ( Describe the characteristics of Indian Culture . )

Q.27 . संस्कृति का शिक्षा से परस्पर संबंध एवं प्रभाव का वर्णन करें । ( Describe the Interaction and Influence of Culture with Education . )

Q.28 . संस्कृति के प्रति शिक्षा के कार्य की विवचेना करें । ( Discuss the functions of education towards culture . )

Q.29 . संघर्ष या द्वन्द्व क्या है ? इसके सुलझाने के कौशलों या उपायों पर प्रकाश डालें । ( What is conflict or uproar ? Throw light on skills or measures for resolution . )

Q.30 . अन्तर्द्वन्द्व को सुलझाने वाली रणनीतियों का वर्णन करें । ( Descibe the strategies for conflict resolution . )

Q.31 . संघर्ष - समाधान की वैकल्पिक रणनीतियों पर रक्षा युक्तियों का वर्णन करें । ( Describe the alternative strategies or safety measures for conflict resolution . )


UNIT - 3 : जंचनेवाला एक दयालु शिक्षक ( Becoming a Humane Teacher )

Q.32 . प्रगति से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें । ( What do you understand by Progress ? Describe its Characteristics . )

Q.33 . सामाजिक प्रगति की सहायक परिस्थितियों का वर्णन करें । ( ( Describe the Conditions Conductive for Social Progress . )

Q.34 . स्वयं के विचारों का समाज पर प्रभाव का वर्णन करें । ( Describe the Impact of Self Ideas on Society . )

Q.35 . सृजनात्मकता से क्या तात्पर्य है ? इसके तत्वों का वर्णन करें । ( What do you mean by creativity ? Discuss its elements . )

Q.36 . सृजनात्मक की प्रकृति एवं विकास की अवस्थाओं का वर्णन करें । ( Describe the nature and stages of development of creativity . )

Q.37 . सृजनात्मकता के सिद्धान्त की विवेचना करें । ( Discuss the theoriese of creavity . )

Q.38 . सृजनात्मकता के विकास पर प्रकाश डालें । ( Throw light on the development of creativity . )

Q.39 . तद्नुभूति पर एक टिप्पणी लिखें । ( Write a note on Empthy . )

Q.40 , सम्प्रेषण क्या है ? इसके कौशल का विवेचन करें । ( ( What is communication ? Discuss its skills . )

Q.41 . सम्प्रेषण की प्रक्रिया तथा उद्देश्यों का वर्णन करें । ( ( Discuss the process of communication and objectives . )

Q.42 . आत्मानुशासन का वर्णन कीजिए ।  ( Discuss the Self - Discipline . )


Epam

Siwan










16 टिप्‍पणियां:

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  2. I need the answer of 16 to 22 .
    Please provide me answer ...I really need for practical

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