B.Ed. EPC-4 understanding the self pdf Notes in hindi ( स्वयं की समझ ) common questions - answers for all university
Q.8 . आत्म - पहचान तथा आत्म - सम्मान के विकास पर प्रकाश डालें । ( Throw light on the development of Self Identity and Self - Esteem . )
उत्तर -
आत्म के लिए सत्यम, शिवम तथा सुंदरम का अर्थ जानना ही पर्याप्त नहीं है अभी तू जरूरी है कि मानव में इनके प्रति जागरूकता पैदा की जाए जिससे कि मानव को आत्मज्ञान हो। वह अपने जीवन के मूल्यों का विकास कर सकता है। प्रत्येक व्यक्ति का इनके लिए अर्थ एवं महत्व अलग अलग होता है।
इसलिए समस्त मानव जाति में इस ब्रह्मांड सार्वभौमिक तथा जीवन एवं मृत्यु के प्रति एक जैसा सिद्धांत विकसित नहीं किया जा सकता। जीवन का अंतिम तथा चरम अर्थ क्या है? इसका उत्तर पूर्ण रूप से नहीं दिया जा सकता।
इसके कुछ सिद्धांत है -
- व्यक्ति की अंतिम इच्छा शक्ति पर ही सत्यम शिवम सुंदरम का मूल्य निर्भर करता है।
- सभी प्रकार का ज्ञान तथा असत्य व्यक्तिगत का विषयगत होता है।
- सत्यम, शिवम, सुंदरम कोई अंतिम उत्तर नहीं है।
- अपनी पसंद के आधार पर अपने अस्तित्व के आधारभूत यथार्थ के द्वारा व्यक्ति स्व का निर्माण करता है।
- प्रत्येक व्यक्ति के लिए सत्य शिव तथा सुंदरम का अर्थ हुआ मूल्य अलग-अलग होता है।
- जब तक व्यक्ति इनके अर्थ व मूल्य से अपने को संबंधित नहीं कर लेता तब तक उसका जीवन निरर्थक है।
- व्यक्ति के अस्तित्व का निर्माण उसकी आत्मा पहचान तथा आत्म सम्मान के द्वारा होता है।
- मनुष्य अपना स्वयं निर्माता है।
आत्मा का प्रमुख आधार शिक्षा है,क्योंकि शिक्षा ही व्यक्ति को समाज में ठीक ढंग से रहने के योग्य बनाती है तथा उसके आत्म सम्मान में वृद्धि करती है।
- शिक्षा का व्यक्ति नीत होना आवश्यक है।
- शिक्षा मानव के उत्थान का प्रमुख साधन है किंतु या शिक्षा के सामाजिक स्वरूप पर आधारित है।
- शिक्षक बालक को यह मौका देता है कि वह स्वयं अपने को जाने तथा अपने अस्तित्व की पहचान करें।
- शिक्षण विधियां व्यक्तिनिष्ट होनी चाहिए।
- बालक शिक्षा के द्वारा इसी योग्य बने कि वे स्वयं सत्यम, शिवम तथा सुंदरम को पहचाने।
- पाठ्यक्रम में नीतिशास्त्र व धर्म को भी मान्यता मिले।
- विद्यालय की व्यवस्था इस प्रकार की हो जो छात्रों को इतनी पर्याप्त स्वतंत्रता प्रदान करें कि वह अपनी पसंद का विकास कर सके,अपने जीवन को समझ सके तथा अपने जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर सकें।
विद्यार्थियों के आत्मसम्मान को सुधारने में शिक्षक का स्थान:-
आत्म पहचाने आत्म सम्मान को जानने का प्रमुख साधन शिक्षा है। बालकों के लिए और उच्च शिक्षा को प्रदान करने वाला शिक्षक है। यदि शिक्षक नहीं होगा तो बालक यथोचित रुप से ना तो शिक्षा के महत्व को जान सकेगा और ना ही ठीक प्रकार से समझ सकेगा। शिक्षा ही वह साधन है जो बालक को सुबह की पहचान करवाती है तथा उसका विकास करती है परंतु बिना शिक्षक शिक्षा को प्राप्त नहीं किया जा सकता।
शिक्षक का स्थान _
- शिक्षक छात्रों को इतनी स्वतंत्र प्रदान करता है कि वह अपनी व्यक्तिनिष्ठ पसंद का विकास करता है।
- अध्यापक इस प्रकार के शैक्षिक परिस्थिति उत्पन्न करता है जिससे विद्यार्थी अपने से संपर्क कर सकता है और अपनी प्रति चेतन होकर आत्मसाक्षात्कार भी कर सकता है।
- शिक्षक छात्र के प्रति व्यक्तिनिष्ठ उद्देश्यों का समर्थन करता है।
- शिक्षक छात्र को सवा की पहचान करवाता है तथा अपने गुणों को विकसित करने में सहायता प्रदान करता है।
- शिक्षक शिक्षण विधियों द्वारा छात्र के जीवन विकास में सहायता करता है।
- समाज के अंतः क्रियाओं का ज्ञान शिक्षक ही छात्रों को कराता है।
- छात्रों को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बतलाता है।
- सद व असद का ज्ञान देता है।
- शारीरिक, मानसिक व भावात्मक विकास करता है।
- एक शिक्षक को विद्यार्थी के जीवन से अज्ञान हटाकर उसे ज्ञान की प्राप्ति कर आनी चाहिए जिससे वह सत्य और मिथ्या, विद्या व अविद्या में भेद कर सके तथा अपने अंदर निहित अनंत ज्ञान व शक्ति को पहचान सके।
एक अध्यापक को केवल शास्त्रों का ज्ञाता ही नहीं होना चाहिए अपितु उसे सैनिक गुणों से परिपूर्ण होना चाहिए। उसे मानसिक रूप से शांत,जितेंद्रीय, अहंकार शून्य तथा परोपकारी होना चाहिए। उसे धर्म का ज्ञान होना चाहिए तथा उसके निर्वाहन के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
अतः उसे ब्रह्म ज्ञानी, धर्म ज्ञाता, ज्ञान का स्रोत,विनम्र, अहंकार शून्य, ईर्ष्याहीन, करुणामय, धैर्यवान, संयमी तथा नैतिक गुणों से युक्त होना चाहिए तथा लोग रहित होकर शिक्षा प्रदान करनी चाहिए तभी वह छात्रों को सुबह से परिचित करा सकता है।
Q.9 . आत्म विश्वास से क्या आशय है ? आत्म विश्वास के विकास के उपाय का वर्णन करें ।( What do you mean by self confidence ? Describe the measures for development of Self Confidence . )
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