Bihar ke sandarbh Me Bachpan epam siwan | Analysis of childhood and its developmental perspective with reference to the state of Bihar | बिहार राज्य के संदर्भ में बचपन और उसके विकासात्मक परिप्रेक्ष्य का विश्लेषण


 Q 2. बिहार राज्य के संदर्भ में बचपन और उसके विकासात्मक परिप्रेक्ष्य का विश्लेषण करें।


उत्तर -

 बचपन एक आनंददाई अवस्था के रूप में, विभिन्न आर्थिक परिस्थितियों में बचपन, वयस्क  संस्कृति, भारतीय संदर्भ में बहू- बचपन 

 जो निकाला कर बादलों की गोद से

 थी अभी एक बूंद कुछ आगे बढ़ी

 सोचने फिर फिर यही जीने लगी

 क्यों घर छोड़कर मैं यूं खड़ी दैव |

  मेरे भाग्य में है क्या बता ?

 मैं नाचूंगी या मिलूंगी धूल में

 जालौर चुंगी जी रंगा रे पर किसी

 छुपा लूंगी या कमल के फूल में ||


 मां की कोख से निकालकर नन्हा शिशु इस संसार में आता है, वैसे ही वह सबके ध्यान का केंद्र बिंदु बन जाता है। एक बालक स्वयं में एक बड़ी जिम्मेदारी है जिसका निर्वाह माता-पिता को करना होता है। हाल ही में जन्मा शिशु कितना नाजुक, कितना कोमल और कितना सुंदर होता है।

" बाल्यावस्था जीवन का स्वर्णिम काल होता है " क्योंकि " न किसी की फिकर ना किसी की चिंता "। ना रोजी रोटी कमाने का टेंशन और ना ही ; आपसे किसी की किसी भी तरह की कोई अपेक्षा । अपितु सब बालक की देख-भाल में ही लगे रहते हैं | जब भूख लगे तब रोक कर दिखा दिया, मां ने तुरंत दूध पिला दिया | जहां पेट भरा, तृप्ति मिली वहीं आंख मूंद कर सो गया | कितना निष्कपट और मासूम होता है, हर बालक | इसी को तो बचपन कहते हैं|

 एक प्यार से हंसते - खेलते, मुस्कुराते बच्चों को देखकर इंसान अपनी सारी थकान भूल जाता है | हाल ही में एक पिता बने देखती के यह रिचार्ज थे " मैं शाम को जैसे ही थका हारा घर पहुंचता हूं | मेरी बिटिया की प्यारी सी, स्वीट सी स्माइल देखकर मैं सब कुछ भूल जाता हूं | सारी टेंशन, सारी थकान उसके साथ खेल कर, बातें कर मिट जाती है | अगली सुबह में काम पर फिर निकल जाता हूं घर लौटने पर मिलने वाली उस स्वीट मुस्कुराहट की चाह में |"

 लेकिन यह सभी सत्य है कि बालक स्वयं के साथ उल्लास, उत्साह, उमंग, प्रसंता आदि तो आता ही है साथ ही अपने से जुड़े हर व्यक्ति के मन में एक जिम्मेदारी का अहसास भी जगाता है | अपने भारत देश के संदर्भ में यदि हम बात करें तो हमारा देश तो वैसे भी रिश्ते नातों के संदर्भ का देश है जहां हर नाता पूरी ईमानदारी से निभाया जाता है तो बच्चे तो हमारी सभ्यता में ईश्वरीय स्वरूप माने जाते हैं | बच्चों में हम ईश्वर के अंश का दर्शन करते हैं| कहते हैं, एक बालक कभी झूठ नहीं बोलता | 


 न्यू मैन के अनुसार, " 5 वर्ष की अवस्था शरीर तथा मस्तिष्क के लिए बड़ी ग्रहणशील  होती है | "


 एडलर के अनुसार, " बालक के जन्म के कुछ माह बाद ही या निश्चित किया जा सकता है कि जेल में उसका क्या स्थान है। "


 क्रो एवं क्रो के अनुसार, " बीसवीं शताब्दी को बालक की शताब्दी कहा जाता है | "

 गुडएनफ के अनुसार, " व्यक्ति का जितना भी मानसिक विकास होता है, उसका आधा 3 वर्ष की आयु तक हो जाता है। "


हमारे भारत ( बिहार ) में माता-पिता मानो अपना पूरा जीवन ही बच्चों के लिए जीते हैं | बच्चों को इस संसार में लाना और फिर उनको केंद्र में रखकर अपना संपूर्ण जीवन जीना कई बार ऐसा भी होता है कि जो लक्ष्य उद्देश्य माता-पिता अपने जीवन में प्राप्त नहीं कर पाए हैं | उनकी पूर्ति का साधन बालक बन जाता है | 

विषय इस बात की समझ विकसित करने से संबंधित है कि किस प्रकार की धारणा या वास्तविकताएं हमारे देश के अन्य राज्यों की तुलना में बिहार में बचपन अलग है। 

निम्नलिखित पहलुओं के संदर्भ में वास्तविकताओं पर चर्चा की जा सकती है-

 • बिहार का सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टिकोण

 • राज्य की अविकसित स्थिति

 • शैक्षिक स्थिति

 • आर्थिक स्थिति

 • रीति रिवाज

 • परिवार संरचना

 • वैल्यू सिस्टम


बिहार में बच्चे



बिहार में लगभग हर दूसरा व्यक्ति बच्चा है। प्रत्येक बच्चे लड़की और लड़का को जीवित रहने, फलने फूलने और पूरी क्षमता हासिल करने का अधिकार है।



बिहार में हर आठ मिनट में एक नवजात की मौत हो जाती है और हर पांच मिनट में एक शिशु की मौत हो जाती है।

हर साल लगभग 28 लाख बच्चे बिहार में जन्म लेते हैं, लेकिन इनमें से लगभग 75,000 बच्चों की मौत पहले महीने के दौरान ही हो जाती है। पिछले कुछ वर्षों में बिहार में शिशु मृत्यु दर में कमी आई है; क्योंकि टीकाकरण कवरेज और संस्थागत प्रसव में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है टीकाकरण 1998 में 11 प्रतिशत से 2018 में 69 प्रतिशत) बढ़ाई है और संस्थागत प्रसव (2005-2006 में 19.9 प्रतिशत -से 2015-2016 में 63.8 प्रतिशत हुआ है। (सोर्स: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण NFHS 3 and 4)  

 कुपोषण एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है | पाँच वर्ष से कम आयु का हर दूसरा बच्चा (48.3 प्रतिशत) नाटेपन (उम्र के हिसाब से कम लंबाई) से ग्रसित है और 20.8 प्रतिशत) बच्चे कुपोषित हैं (एनएफएचएस -4)। जन्म के पहले घंटे के भीतर केवल 34.9 प्रतिशत बच्चे स्तनपान करते हैं और 6 से 23 महीने के 7.3 प्रतिशत बच्चों को ही पूरक खाद्य पदार्थ मिलते हैं(एनएफएचएस -4) । 
15 से 19 वर्ष की आयु की हर दूसरी लड़की और प्रजनन आयु की एक तिहाई महिलाएँ अल्पपोषित हैं।

शादी की कानूनी उम्र (18 साल )से पहले करीब 30 लाख लड़कियों की शादी कर दी जाती है और 370,000 लड़कियां किशोरावस्था के दौरान गर्भवती हो जाती हैं(एनएफएचएस-4) । इसे संबोधित करने के लिए, लड़कियों के सशक्तीकरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए, राज्य ने एक व्यापक महिला सशक्तीकरण नीति को अपनाया और बाल विवाह और दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए राज्यव्यापी अभियान चलाया।

6 से 14 वर्ष की आयु के लगभग दस लाख बच्चे बाल श्रमिक हैं; ये बच्चे कम उम्र में शादी, तस्करी और शोषण के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। (Census 2001)

चुनौतियों के बावजूद, बिहार में हाल के वर्षों में विकास में प्रगति हुई है। अधिकांश लड़के और लड़कियाँ प्राथमिक विद्यालयों में नामांकित है, हालांकि नियमित उपस्थिति, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और माध्यमिक स्कूलों तक पहुँच चिंता का विषय बना हुआ है।

बेहतर प्रशासन से बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा पर अधिक जोर, सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों के बेहतर प्रबंधन और अपराध और भ्रष्टाचार में कमी आई है।

2015 से राज्य सरकार एक मिशन मोड में 2020 तक विकास संकेतकों को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। राज्य ने समावेशी विकास और सुशासन के एजेंडे के लिए ‘विकसित बिहार के लिए सात निश्चय’ के अंतर्गत सात नीतिगत संकल्पों को अपनाया है। इन संकल्पों में हर घर के लिए एक शौचालय सुनिश्चित करना और 2020 तक सभी ग्रामीण घरों में सुरक्षित पेयजल पहुंचाना शामिल हैं।

बचपन बचाओ आंदोलन’ (Bachpan Bachao Andolan-BBA) में बिहार 

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने बाल कल्याण केंद्रों से जुड़ी एक याचिका के संदर्भ में दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है। कोविड-19 के प्रकोप को देखते हुए ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ (Bachpan Bachao Andolan-BBA) द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया है कि बाल गवाहों के बयानों को न्यायालय में बुलाने के बजाय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बाल कल्याण केंद्रों पर ही दर्ज कराना चाहिये। 

प्रमुख बिंदु
बचपन बचाओ आंदोलन: 
यह बाल अधिकारों के संघर्ष करने वाला देश का सबसे लंबा आंदोलन है।
नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा ने इसकी शुरुआत वर्ष 1980 में की गई थी।
मिशन: बच्चों को बाल सुलभ समाज प्रदान करने के लिये रोकथाम, प्रत्यक्ष हस्तक्षेप, सामूहिक प्रयास और कानूनी कार्रवाई के माध्यम से बच्चों को दासता से मुक्त कराना, उन्हें पुन:स्थापित करना, शिक्षित करना। 
कार्य: एक गैर-सरकारी संगठन (Non Government Organisation-NGO) है जो मुख्यतः बंधुआ मज़दूरी, बाल श्रम, मानव व्यापार की समाप्ति के साथ- साथ सभी बच्चों के लिये शिक्षा के समान अधिकार की मांग करता है।
यह ‘विश्व बाल श्रम निषेध दिवस’ (World Day Against Child Labour) यानी 12 जून के दिन ‘बाल पंचायत’ का आयोजन करता है।
नोबल पुरस्कार विजेता (Nobel Prize Winner): वर्ष 2014 में कैलाश सत्यार्थी एवं मलाला युसुफजई को बाल शिक्षा के क्षेत्र में उनके अतुलनीय योगदान के लिये संयुक्त रूप से शांति के नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।




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