प्रस्तावना-
शैक्षिक प्रक्रिया का एक का अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व पाठ्यक्रम है। चाहे किसी भी रूप में शिक्षण दिया जाए,अच्छा बुरा जो भी हो इसके लिए पाठ्यक्रम की अत्यंत आवश्यकता है। बिना इसके हम यह कदापि नहीं समझ सकते कि क्या शिक्षण हो रहा है कितना शिक्षण हो गया है शिक्षण सफल हुआ या असफल?
क्रो एवं क्रो कहते हैं --, " हम सीखने वाले पर जब तक कि यह न जाने कि वह क्या सीख रहा है? विचार नहीं कर सकते। "
पाठ्यक्रम सीखने वाले की क्रियाओं के प्रत्येक पद पर महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस पोस्ट में हमारा भी पाठ्यक्रम के अर्थ महत्व निर्धारण एवं नव निर्माण पर विशेष रूप से बोल देना है।
पाठ्यक्रम क्या है?
पाठ्यक्रम क्या है? इस संबंध में विभिन्न मतों का प्रतिपादन किया गया है। कुछ समय पहले इस प्रश्न के उत्तर के संबंध में बहुत मतभेद था किंतु अब कुछ निश्चित मत वक्त किए जाने लगे हैं।
पाठ्यक्रम से हम यह समझते हैं कि किन विषयों, क्रियाओं इत्यादि की शिक्षा बालकों को दी जाए। यदि हम चाहते हैं कि हमारे बालक गणित, भाषा,नागरिक शास्त्र इत्यादि पढ़े तो यह सब विषय बालक के पाठ्यक्रम का निर्माण करने वाले समझते जाते हैं किंतु यह एक बात ध्यान देने वाली है कि बालक इन विषयों के अतिरिक्त और भी बहुत सी बातें विद्यालय में सीख जाता है, जिनको सीखने के लिए कोई योजना नहीं बनाई गई है। बालक नकल करना, विद्यालय से भागना, लड़ना - झगड़ना, मारपीट करना जैसी बातें भी सीख जाता है। और भी बहुत सी बातें बच्चे सीखते हैं जैसे बड़ों का आदर करना अध्यापक का कहना मानना,मित्रों के साथ सद्भावना इत्यादि।
वास्तव में पाठ्यक्रम में केवल वह सभी विद्यालय के अनुभव निश्चित धारणा बनाने में असमर्थ होंगे। वास्तव में पाठ्यक्रम में केवल वह सभी विद्यालय के अनुभव में आते हैं जिनके द्वारा विद्यार्थी उन सब उद्देश्यों को प्राप्त कर सके जो उनके शिक्षक चाहते हैं कि वह प्राप्त करें। विद्यालयों के अनुभव की व्याख्या करने में दो बातें ध्यान में रखनी चाहिए -
- क्योंकि सीखना अनुभव द्वारा होता है, इसलिए सीखने के लिए विद्यालय बालकों को अनुभव प्रदान करते हैं।
- बहुत से अनुभव जो बालक विद्यालय के बाहर प्राप्त करते हैं और जिनके द्वारा वह सीखते हैं वह विद्यालय में प्राप्त किए गए अनुभवों से संबंधित होते हैं या उनसे प्रभावित होते हैं। इसलिए पाठ्यक्रम के संबंध में शिक्षकों का ऐसी योजना बनानी चाहिए जो बालकों को 300 डिग्री पर सीखने का अनुभव प्रदान करें।
क्रो एवं क्रो के अनुसार-- पाठ्यक्रम में सीखने वाले के समस्त अनुभव जो विद्यालय हाउस के बाहर के होते हैं और जो एक प्रोग्राम मे सम्मिलित होते हैं जिन का निर्धारण उनके मानसिक, शारीरिक, संज्ञानात्मक, संवेगात्मक, सामाजिक, आध्यात्मिक तथा नैतिक विकास करने में सहायता देने के लिए सम्मिलित होता है। "
स्पीयर्स महोदय के अनुसार --" पाठ्यक्रम जैसा कि शिक्षकों के निर्देश में क्रियान्वित होता है, विद्यालय के संपूर्ण जीवन को सम्मिलित करता है। "
पाठ्यक्रम तथा निर्धारित पाठन - विषय
CURRICULUM AND COARSE OF STUDY
अक्सर पाठ्यक्रम तथा निर्धारित पाठ्य विषय का प्रयोग एक - दूसरे का स्थान पर होता रहता है किंतु यह ठीक नहीं है। पाठ्यक्रम तो एक विषय क्षेत्र में सीखने वाले के समस्त अनुभव और क्रियाओं को सम्मिलित करता है, जबकि निर्धारण पाठन विषय मुख्यता क्रियाओं विषयों इत्यादि को सम्मिलित करता है जो कक्षा कार्य के लिए होती है। पाठ्यक्रम तथा निर्धारण पाठन विषय के अंतर को हम निम्न प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं--
- पाठ्यक्रम मुख्य पठन के क्षेत्र में तू संगठित विषयों का समूह विषयों का क्षेत्र का निर्धारण करता है जो किसी परीक्षा का प्रमाण पत्र के लिए चुने जाते हैं।
- पाठ्यक्रम एक संपूर्ण योजना विशिष्ट पाठ्यवस्तु या पाठन सामग्री की होती है जो विद्यालय द्वारा विद्यार्थी का किसी व्यवसाय क्षेत्र में प्रवेश पाने के लिए या कोई सर्टिफिकेट प्राप्त करने के लिए निर्मित होता है।
- निर्धारण पाटन विषय में पाटन संबंधी उद्देश्य शिक्षा द्वारा प्राप्त होने वाले प्रयोजन एवं उन वस्तुओं की प्रकृति तथा क्षेत्र जिन का अध्ययन करना होता है सम्मिलित होते हैं। इनके अतिरिक्त उपयुक्त शैक्षणिक सहायक वस्तुएं, पाठ्यपुस्तक के पाठक विधियां,ज्ञान उपार्जन की माप इत्यादि का भी वर्णन होता है।
पाठ्यक्रम का विकास करना कोई साधारण कार्य नहीं है। इसके लिए योग्य, कुशल एवं अनुभवी व्यक्तियों की आवश्यकता है जो पाठ्यक्रम निर्माण संबंधी सिद्धांतों के ज्ञाता हो और जो यह जाने कि वर्तमान पाठ्यक्रम में क्या दोष है तथा उनको दूर करनके पाठ्यक्रम को कैसे अच्छे ढंग से संगठित किया जा सकता है?
पाठ्यक्रम में वृद्धि एवं विकास से प्रथम यह जानना आवश्यक है कि कौन सा ज्ञान बालकों के लिए सबसे मूल्यवान है और कौन सा व्यर्थ है? विद्यालयों का यह एक मुख्य उत्तर दायित्व है कि वह नवीन पीढ़ी को जो कुछ भी जाति ने सीखा है और ज्ञान प्राप्त किया है, उसे संक्रमित करें। इस प्रकार विज्ञान,विकसित भाषा,कला,साहित्य इत्यादि के द्वारा नवीन पीढ़ी के विकास की ओर अग्रसर होता है। किंतु कठिनाइयां है कि वर्तमान काल में दिन प्रतिदिन उन्नति हो रही है। ज्ञान विकसित हो रहा है। नए नए विषयों का वह विकास हो रहा है। यदि इन सब को विद्यालय में स्थान दिया जाए तो विद्यालय का पाठ्यक्रम जो इतना विस्तृत अभी है और भी विस्तृत हो जाएगा और बालकों को विभिन्न विषयों के सीखने में अत्यंत कठिनाई होगी। अतः प्रत्येक प्रकार का ज्ञान ज्ञान में वृद्धि के समरूप इत्यादि पाठ्यक्रम में सम्मिलित नहीं किया जा सकते हैं इसलिए यह आवश्यक है कि पाठ्यक्रम में वही नए दिसाया प्रकरण सम्मिलित किया जाए जो बालकों के लिए सबसे अधिक मूल्यवान है। किंतु सबसे अधिक कठिनाई इस बात का निर्धारण करने में है कि कौन सा ज्ञान मूल्यवान है और कौन सा व्यर्थ?
पाठ्यक्रम की वृद्धि और विकास में एक अन्य कठिनाई यह है कि प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से विभिन्नता लिए होता है। यदि हम इस सिद्धांत को माने की प्रत्येक व्यक्ति का अपना स्थान और मूल्य समाज में होता है और प्रत्येक व्यक्ति समाज के लिए उपयोगी हो सकता है तो विभिन्न बालकों के लिए किस प्रकार से पाठ्यक्रम निर्माण होना चाहिए या एक जटिल समस्या हमारे सम्मुख खड़ी होती है।
पाठ्यक्रम में वृद्धि और विकास करने में यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि पाठ्यक्रम में यदि नवीन विषयों इत्यादि का समावेश कर लेती करते चले जाएंगे तो यह अधिक जटिल हो जाएगा और विद्यार्थी इसे बहुत भारी पाएंगे तथा इस पर यह योग्यता प्राप्त करने में असमर्थ रहेंगे। इस कारण पाठ्यक्रम में वृद्धि और विकास से यह ना समझना चाहिए कि नवीन विषयों या प्रकरणों का समावेश करना ही विकास करना है, अन्य अर्थों में इसे लेना चाहिए। यह अन्य अर्थ जो वर्तमान शिक्षाविदों द्वारा समझे जाते हैं यह है कि बालक को शिक्षा इस प्रकार दी जाए कि वह सीख ले कि कैसे सीखा जाता है एवं उसमें सीखने के प्रति रुचि जागृत हो जाए। केवल महत्वपूर्ण विषय उसे पढ़ाया जाए और पाठ्यक्रम को हल्का बनाया जाए। मुख्य उद्देश्य यही रहे कि बालक विषयों का केवल और अरोचक ज्ञान ही प्राप्त ना करें बल्कि वह कार्य करने की विधियां सीखे, उसमें चिंतन करने की आदतें विकसित हो और उसमें सामान्य अभिरुचि हो एवं मूल्यों का विकास हो। यह सामान्य सीखना विशिष्ट परिस्थितियों में स्थानांतरण हो जाए। ऐसा पाठ्यक्रम का निर्धारण करके शिक्षा देना ही आवश्यक है।
Epamsiwan
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