बिहार भारत में तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है। राज्य की 10 करोड़ 40 लाख की आबादी का लगभग आधा (46 प्रतिशत) यानि 4 करोड़ 70 लाख बच्चे हैं, और यह भारत के किसी भी राज्य में बच्चों का उच्चतम अनुपात है। बिहार के बच्चों की जनसंख्या भारत की आबादी का 11 प्रतिशत है। बिहार में लगभग 88.7 प्रतिशत लोग गाँवों में रहते हैं जिसमें 33.74 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। बिहार में बच्चे कई अभावों का सामना करते हैं जिनके मुख्य कारण हैं - व्यापक रूप से फैली गरीबी, गहरी पैठ वाली सामाजिक-सांस्कृतिक, जातीय और लैंगिक असमानता खराब संस्थागत ढांचे, बुनियादी सेवाओं की कमी और बराबर होने वाली प्राकृतिक आपदाओं । समावेशी विकास तथा प्रति व्यक्ति आय के मामले में यह राज्य भारत में सबसे निचले पायदान पर है।
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बच्चे बचपन और उनका विकास: समकालीन वास्तविकता बिहार के विशेष संदर्भ में - Children, Childhood and Their Development : The Contemporary realities of special focus on Bihar
बच्चे बचपन और उनका विकास: समकालीन वास्तविकता बिहार के विशेष संदर्भ में
# निम्नलिखित पहलुओं के संदर्भ में वास्तविकताओं पर चर्चा की जा सकती है-
• बिहार का सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टिकोण
• राज्य की अविकसित स्थिति
• शैक्षिक स्थिति
• आर्थिक स्थिति
• रीति रिवाज
• परिवार संरचना
• वैल्यू सिस्टम
बिहार में हर आठ मिनट में एक नवजात की मौत हो जाती है और हर पांच मिनट में एक शिशु की मौत हो जाती है।
हर साल लगभग 28 लाख बच्चे बिहार में जन्म लेते हैं, लेकिन इनमें से लगभग 75,000 बच्चों की मौत पहले महीने के दौरान ही हो जाती है। पिछले कुछ वर्षों में बिहार में शिशु मृत्यु दर में कमी आई है; क्योंकि टीकाकरण कवरेज और संस्थागत प्रसव में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है टीकाकरण 1998 में 11 प्रतिशत से 2018 में 69 प्रतिशत) बढ़ाई है और संस्थागत प्रसव (2005-2006 में 19.9 प्रतिशत -से 2015-2016 में 63.8 प्रतिशत हुआ है। (सोर्स: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण NFHS 3 and 4)
कुपोषण एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है | पाँच वर्ष से कम आयु का हर दूसरा बच्चा (48.3 प्रतिशत) नाटेपन (उम्र के हिसाब से कम लंबाई) से ग्रसित है और 20.8 प्रतिशत) बच्चे कुपोषित हैं (एनएफएचएस -4)। जन्म के पहले घंटे के भीतर केवल 34.9 प्रतिशत बच्चे स्तनपान करते हैं और 6 से 23 महीने के 7.3 प्रतिशत बच्चों को ही पूरक खाद्य पदार्थ मिलते हैं(एनएफएचएस -4) ।
15 से 19 वर्ष की आयु की हर दूसरी लड़की और प्रजनन आयु की एक तिहाई महिलाएँ अल्पपोषित हैं।
शादी की कानूनी उम्र (18 साल )से पहले करीब 30 लाख लड़कियों की शादी कर दी जाती है और 370,000 लड़कियां किशोरावस्था के दौरान गर्भवती हो जाती हैं(एनएफएचएस-4) । इसे संबोधित करने के लिए, लड़कियों के सशक्तीकरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए, राज्य ने एक व्यापक महिला सशक्तीकरण नीति को अपनाया और बाल विवाह और दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए राज्यव्यापी अभियान चलाया।
6 से 14 वर्ष की आयु के लगभग दस लाख बच्चे बाल श्रमिक हैं; ये बच्चे कम उम्र में शादी, तस्करी और शोषण के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। (Census 2001)
चुनौतियों के बावजूद, बिहार में हाल के वर्षों में विकास में प्रगति हुई है। अधिकांश लड़के और लड़कियाँ प्राथमिक विद्यालयों में नामांकित है, हालांकि नियमित उपस्थिति, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और माध्यमिक स्कूलों तक पहुँच चिंता का विषय बना हुआ है।
बेहतर प्रशासन से बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा पर अधिक जोर, सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों के बेहतर प्रबंधन और अपराध और भ्रष्टाचार में कमी आई है।
2015 से राज्य सरकार एक मिशन मोड में 2020 तक विकास संकेतकों को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। राज्य ने समावेशी विकास और सुशासन के एजेंडे के लिए ‘विकसित बिहार के लिए सात निश्चय’ के अंतर्गत सात नीतिगत संकल्पों को अपनाया है। इन संकल्पों में हर घर के लिए एक शौचालय सुनिश्चित करना और 2020 तक सभी ग्रामीण घरों में सुरक्षित पेयजल पहुंचाना शामिल हैं।
बचपन बचाओ आंदोलन’ (Bachpan Bachao Andolan-BBA) में बिहार
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने बाल कल्याण केंद्रों से जुड़ी एक याचिका के संदर्भ में दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है। कोविड-19 के प्रकोप को देखते हुए ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ (Bachpan Bachao Andolan-BBA) द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया है कि बाल गवाहों के बयानों को न्यायालय में बुलाने के बजाय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बाल कल्याण केंद्रों पर ही दर्ज कराना चाहिये।
प्रमुख बिंदु
बचपन बचाओ आंदोलन:
यह बाल अधिकारों के संघर्ष करने वाला देश का सबसे लंबा आंदोलन है।
नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा ने इसकी शुरुआत वर्ष 1980 में की गई थी।
मिशन: बच्चों को बाल सुलभ समाज प्रदान करने के लिये रोकथाम, प्रत्यक्ष हस्तक्षेप, सामूहिक प्रयास और कानूनी कार्रवाई के माध्यम से बच्चों को दासता से मुक्त कराना, उन्हें पुन:स्थापित करना, शिक्षित करना।
कार्य: एक गैर-सरकारी संगठन (Non Government Organisation-NGO) है जो मुख्यतः बंधुआ मज़दूरी, बाल श्रम, मानव व्यापार की समाप्ति के साथ- साथ सभी बच्चों के लिये शिक्षा के समान अधिकार की मांग करता है।
यह ‘विश्व बाल श्रम निषेध दिवस’ (World Day Against Child Labour) यानी 12 जून के दिन ‘बाल पंचायत’ का आयोजन करता है।
नोबल पुरस्कार विजेता (Nobel Prize Winner): वर्ष 2014 में कैलाश सत्यार्थी एवं मलाला युसुफजई को बाल शिक्षा के क्षेत्र में उनके अतुलनीय योगदान के लिये संयुक्त रूप से शांति के नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
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Very nice and useful
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