विषय - वस्तु का विश्लेषण ( Analysis of Contents ):-
- शिक्षकों को कक्षा में जाने से पूर्व पाठ की तैयारी करनी पड़ती है , उसे पहले से ही यह निश्चित करना होता है कि अगले दिन पढ़ायी जाने वाली पाठ की इकाई में कौन - कौन से तत्त्वों का ज्ञान बालकों को कराना है और क्यों ? उसमें आयी हुई वैचारिक सामग्री कौन - सी है , जिसकी जानकारी छात्रों को कराना आवश्यक है ।
- उसे यह भी पहले से ही निश्चित करना होता है कि इकाई में निहित भाषायी और वैचारिक ज्ञान किस तकनीक से दिया जाय कि छात्र उसे सहज ही आत्मसात् कर सकें । यह चिन्तन ही पाट्य - वस्तु विश्लेषण का आधार है । उसका स्वरूप भी इसी आधार को लिए हुए होता है । पाठ्य - वस्तु विश्लेषण को पाठ विश्लेषण या विषय - वस्तु विश्लेषण भी कहा जाता है । पाठ्य - वस्तु विश्लेषण को और अधिक समझने के लिए यह आवश्यक है कि हम उसके स्वरूप एवं उसके अवयवों पर
- भी दृष्टिपात करें । शिक्षण हेतु निर्धारित पाठ के शिक्षण से पूर्व शिक्षक को यह देखना चाहिये कि उस पाठ में से शिक्षण हेतु क्या चुना गया ? और क्यों ? ' क्या ' की जानकारी के लिए शिक्षक प्रस्तुत पाठ इकाई में निहित भाषा तत्त्वों को उजागर करने के लिए उसमें आये शब्दों , शब्द समूहों , वाक्यांशों , कहावत , मुहावरों आदि का चयन करता है । यह चयनित सामग्री शिक्षण सामग्री कहलाती है ।
- इसे शिक्षण सामग्री के नाम से भी अभिहित किया जाता है , क्योंकि शिक्षण में इनको ही उभारा जाता है तथा इनका ही शिक्षण विशेष रूप से किया जाता है । शिक्षण सामग्री के रूप में भाषायी तत्त्वों के अतिरिक्त उस इकाई में निहित भावों , विचारों , मार्मिक स्थलों , अन्तर्कथाओं आदि से सम्बन्धित स्थलों , पंक्तियों या शब्दावलियों को भी चयनित किया जाता है । शिक्षण सामग्री के चयन के समय यह बात भी ध्यान में रखी जाती है कि उसका चयन क्यों किया जा रहा है ? उस सामग्री के द्वारा छात्रों को क्या दिया जा सकेगा ? क्या वह उसके त्रुटिपूर्ण उच्चारण को शुद्ध करेगी या उसके त्रुटिपूर्ण वर्तनी लेखन को सुधारेगी ।
- वह सामग्री अर्थबोध कराने के लिए चुनी गयी है या प्रतीकार्य स्पष्ट करने के लिए उसका चयन हुआ है । उसे आशय स्पष्ट करने के लिए शिक्षण सामग्री बनाया गया है या भाव बोध कराने के लिए चयनित किया गया है । उससे कोई विचार स्पष्ट हो सकेगा या कोई अन्तर्कथा सामने आ सकेगी । इस प्रकार का चिन्तन और उल्लेख शिक्षण बिन्दु कहलाता है । शिक्षण सामग्री के चयन के समय देखना आवश्यक होता है कि उसका शिक्षण बिन्दु क्या बनेगा ? अर्थात् उसका चयन क्यों किया गया है ? शिक्षण सामग्री चुनते समय यह भी निश्चित कर लिया जाता है कि वह सामग्री भाषा तत्त्वों का ज्ञान करायेगी या वैचारिक - धरातल को विस्तार देगी ।
- लेखन , उच्चारण , अर्थबोध , कहावत , मुहावरे आदि भाषायी सामग्री कहलाती है , जबकि भावों और विचारों की जानकारी , मार्मिक स्थलों का स्पष्टीकरण , अन्तर्कथाओं आदि वैचारिक सामग्री के रूप में मानी जाती हैं । शिक्षक को यह भी देखना पड़ता है कि उसने जिस शिक्षण सामग्री का चयन जिस शिक्षण बिन्दु को दृष्टिगत रखकर किया है उसे स्पष्ट करने या छात्र तक सम्प्रेषित करने में किस तकनीक को अपनाया जाय ।
- तकनीक के निर्धारण के साथ - साथ इस बात का भी स्मरण रखना पड़ता है कि छात्रों तक पहुंचाया गया ज्ञान और अधिक प्रभावी एवं स्थिर कैसे बनाया जा सकता है ? एतदर्थ अधिगम सामग्री का प्रस्तुतीकरण भी किया जाता है । इसलिए पाठ्य - वस्तु विश्लेषण के पाँच अवयव हुए - शिक्षण सामग्री , शिक्षण बिन्दु , पक्ष , तकनीक एवं अधिगम सामग्री । किसी भी पाठ का विश्लेषण इन्हीं पाँच स्तम्भों में किया जाता है ।
विषय - वस्तु विश्लेषण के सिद्धान्त ( Principles of Contents Matter Analysis ):-
विषय - वस्तु का निर्माण करते समय सामान्यतया शिक्षक , शिक्षार्थी से सम्बन्धित मनोवैज्ञानिक , दार्शनिक , सामाजिक एवं राष्ट्रीय दृष्टिकोण को ध्यान में रखना आवश्यक है । इन्हीं बिन्दुओं से सम्बन्धित कतिपय सिद्धान्तों का विवरण इस प्रकार से है -
- पर्यावरण केन्द्रीयता का सिद्धान्त ( Principle of environment centredness )
- समाज केन्द्रीयता का सिद्धान्त ( Principle of society centredness )
- उद्देश्य एवं लक्ष्य केन्द्रीयता का सिद्धान्त ( Principle of aims and objectives centredness )
- उपयोगिता का सिद्धान्त ( Principle of utility )
- क्रियाशीलता का सिद्धान्त ( Principle of activity )
- लचीलेपन का सिद्धान्त ( Principle of flexibility )
- अध्यापक से परामर्श का सिद्धान्त ( Principle of consideration with the teacher )
- बाल - केन्द्रीयता का सिद्धान्त ( Principle of child centredness )
- प्रस्तावना
- उद्देश्य
- विज्ञान शिक्षण के लक्ष्य
- विज्ञान शिक्षण - अधिगम के प्राप्य उद्देश्य
- अधिगम उद्देश्यों का विकास
- एंडरसन एवं क्रेथवॉल का वर्गीकरण
- उद्देश्य कैसे लिखें ?
- शिक्षणशास्त्रीय उपागम में परिवर्तन
- शिक्षण - अधिगम के स्वरूप पर प्रभाव
- नियोजन पर प्रभाव
- विधियों एवं युक्तियों पर प्रभाव
- आंकलन पर प्रभाव
- सारांश
- इकाई के अंत में अभ्यास
- बोध प्रश्नों के उत्तर
विज्ञान विषय वस्तु का विश्लेषण -
इकाई एक में हमने विज्ञान के अर्थ और प्रकृति को समझा । इस इकाई में लक्ष्यों एवं प्राप्य उद्देश्य को विस्तारपूर्वक समझाया जाएगा , जिससे विज्ञान शिक्षण में इनकी भूमिका का आपको बोध हो सकें । एक विज्ञान शिक्षक होने के नाते आपको पता ही होगा कि विज्ञान को माध्यमिक स्तर के पाठ्यक्रम में सम्मिलित क्यों किया गया है , तथा ये प्रारंभिक स्तर से भिन्न कैसे हैं ? यह इकाईएंडरसन एवं क्रेथवॉल द्वारा दिए गए वर्गीकरण के आधार पर प्राप्त उद्देश्य के निर्माण में आपकी सहायता करेगी । यह इकाई अध्यापन उपागमों के परिवर्तन ( अर्थात् व्यवहारवाद से रचनावाद ) का विवेचन करेंगी । हम यह भी जानेंगे कि किस प्रकार से रचनावादी उपागम ने विज्ञान शिक्षण - अधिगम की प्रकृति , नियोजन , विधियों , युक्तियों व मूल्यांकन जैसे पक्षों को प्रभावित किया है ।
- इस इकाई के अध्ययन के पश्चात् आपः विज्ञान शिक्षण - अधिगम के लक्ष्य एवं प्राप्य उद्देश्य समझ सकेंगे
- प्राथमिक व माध्यमिक स्तर पर होने वाले विज्ञान शिक्षण की तुलना कर सकेंगे
- विज्ञान में अधिगम उद्देश्यों की रचना कर सकेंगे ।
- व्यवहारवाद से रचनावादी उपागम में शिक्षणशास्त्रीय परिवर्तन को समझ सकेंगे
- रचनावाद शिक्षणशास्त्र के विज्ञान - शिक्षण - अधिगम , नियोजन , विधियों , युक्तियों , आंकलन , आदि पर प्रभाव का विश्लेषण कर सकेंगे ।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा , ( NCF - 2005 ) ने पाठ्यक्रम विकास के लिए पाँच निर्देशक सिद्धान्त प्रस्तावित किए हैं .
1 ) ज्ञान को विद्यालय से बाहर के जीवन से जोड़ना ;
ii ) यह सुनिश्चित करना कि अधिगम रटत्त प्रणाली से शुरु हो
iii ) पाठ्यक्रम को समृद्ध बनाना जिससे यह पाठ्यपुस्तकों से बाहर निकल पाए
iv ) परीक्षा को अधिक लचीला बनाना तथा इसे कक्षाकक्ष गतिविधियों से जोड़ना ; तथा
v ) एक ऐसी अधिभावी पहचान का विकास जिसमें लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था के अंतर्गत राष्ट्रीय चिन्ताएँ समाहित हों ।
विद्यालय स्तर पर संपूर्ण शिक्षण - अधिगम प्रक्रिया इन्हीं पाँच सिद्धान्तों के इर्द - गिर्द घूमती है । राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा ,( NCF - 2005 ) ने बल दिया कि " विज्ञान शिक्षण में इस तरह बदलाव करना चाहिए जिससे कि प्रत्येक शिक्षार्थी अपने दैनिक अनुभवों को जाँचने और विश्लेषण करने में सक्षम हो सके । प्रत्येक विषय में पर्यावरण से सम्बन्धित विभिन्न सरोकारों पर बल दिया जाना चाहिए और इसके लिए बाह्य परियोजना कार्य तथा विभिन्न क्रियाकलाप कराए जाएँ । इन परियोजना कार्यों से प्राप्त जानकारी व आँकड़ें में भारतीय पर्यावरण के बारे में बेहतर जानकारी प्रदान कर सकती हैं । यह एक मूल्यवान शैक्षणिक स्रोत बन सकते हैं । अगर इन परियोजना कार्यों को अच्छे से नियोजित किया जाए तो ये ज्ञानोर्जन का बहुत अच्छा स्रोत हो सकते है और ज्ञानार्जन के विकास की ओर ले जा सकते है । इसका अर्थ है कि विज्ञान शिक्षण , शिक्षार्थी के अनुभवों के चारों ओर संगठित होना चाहिए । इसके लिए उन्हें पूर्ण अवसर दिए जाने चाहिए जिससे वे आसपास के विज्ञान की खोज कर सकें । ये संकेत हैं कि कक्षा व प्रयोगशाला आधारित विज्ञान अध्यापन में परिवर्तन आ गया है । विज्ञान शिक्षण - अधिगम में संघटन आवश्यक है तथा वैज्ञानिक ज्ञान को खाँचों में जैसे भौतिकी , रसायन , जैविकी , पर्यावरणीय विज्ञान में माध्यमिक स्तर पर विभाजित न किया जाए । राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा , ( NCF - 2005 ) तथा पोजिशन पेपर : नेशनल फोकस ग्रुप ऑन टीचिंग ऑफ साईन्स ( 2006 ) ने विज्ञान पाठ्यक्रम की वैधता हेतु छः कसौटियाँ प्रस्तावित की हैं : जो हैं : संज्ञानात्मक , विषयवस्तु , प्रक्रिया , ऐतिहासिक , पर्यावरणीय तथा नैतिक । इनके आधार पर विज्ञान शिक्षण हेतु सामान्य लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं :
विज्ञान शिक्षण को शिक्षार्थियों को निम्नलिखित रूप से योग्य बनाना चाहिए : -
- विज्ञान के तथ्य व सिद्धान्तों , उसके अनुप्रयोग , संज्ञानात्मक विकास के अनुरूप चरणों से अवगत होना
- कौशलों को अर्जित करना तथा विधियों व प्रक्रियाओं को समझना जो वैज्ञानिक ज्ञान को विकास एवं वैधता की ओर ले जाएँ
- विज्ञान का एक ऐतिहासिक व विकासात्मक दृष्टिकोण बनाना जिससे उनमें |
- विज्ञान की एक सामाजिक प्रक्रिया के रूप में समझ उत्पन्न हो ; पर्यावरण से सम्बन्ध ( प्राकृतिक पर्यावरण , शिल्पकृति व लोग )
- क्षेत्रीय व विश्वव्यापी , विज्ञान के अंतरापृष्ठीय मुद्दों , तकनीकी एवं समाज की प्रशंसा
- आवश्यक सैद्धान्तिक ज्ञान एवं दुनिया में जाने के लिए प्रायोगिक तकनीकी कौशलों का अर्जन
- प्राकृतिक जिज्ञासा , सुरूचिपूर्ण समझ ,
- विज्ञान की सृजनात्मता एवं तकनीक का पोषण
- ईमानदारी , सत्यनिष्ठता , सहयोग , जीवन के प्रति चिंता तथा पर्यावरण की संरक्षण के मूल्यों का आत्मसात करना
- वैज्ञानिक मनोवृत्ति - वस्तुनिष्ठता , आलोचनात्मक चिंतन तथा भय व पूर्वाग्रह से मुक्ति विकसित करना ।
विद्यालय स्तर पर विज्ञान शिक्षण - अधिगम की प्रकृति को समझने के लिए आप इन उद्देश्यों को विश्लेषण करेंगे तो पाएँगे : ये उद्देश्य सुझाव देते हैं कि विभिन्न स्तरों पर विज्ञान का पाठ्यक्रम का शिक्षार्थियों के संज्ञानात्मक स्तर को ध्यान में रखकर किया जाए । आप पियाजे द्वारा दिए गए संज्ञानात्मक विकास की स्तरों को ध्यान में रखकर ऐसा कर सकते हैं । वैज्ञानिक ज्ञान व समाज के बीच सम्बन्ध पर बल दिया गया है अर्थात वैज्ञानिक ज्ञान समाज का एक हिस्सा होना चाहिए तथा शिक्षार्थियों द्वारा ही प्रमाणित एवं सत्यापित हो । यह वैज्ञानिक प्रक्रिया कौशलों के विकास पर ध्यान केन्द्रित करता है तथा साथ ही प्राकृतिक जिज्ञासा व सुरूचिपूर्ण सोच को बढ़ावा देता है । वैज्ञानिक अभिवृत्ति के साथ - साथ सार्वभौमिक मूल्यों के विकास पर भी केन्द्रित है ।
Epam
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