B.Ed. Epc-4 Swayam ki samajh आत्म को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना करें । (seem Discuss the factor Influencing Self . )



Q. आत्म को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना करें ।
(seem Discuss the factor Influencing Self )



 ऐसा देखा गया है कि एक बार जब आत्मा का निर्माण व विकास हो जाता है, तब वह कुछ विशिष्ट व्यवहार प्रतिमान अपना लेता है और कुछ ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती है, जो उसे किसी प्रकार के परिवर्तन से प्रभावित ना होने के लिए क्रियाशील कर देती है। व्यक्ति अपने चारों और जो अंतर व्यक्ति को पर्यावरण निर्मित करता है, वह अच्छा ही होता है। व्यक्ति पर वातावरण से उत्पन्न परिस्थितियां परिवर्तन के लिए उस पर दबाव डालती है परंतु व्यक्ति आत्म की स्थिरता बनाए रखने का प्रयास करता है। उसे आत्म के द्वारा मदद मिलती है,जैसे -

  1.  व्यक्ति की स्वयं के बारे में अवधारणा
  2.  व्यक्ति का अधिगम व्यवहार प्रतिमान
  3.  दूसरे व्यक्तियों के प्रत्यक्षीकरण के बारे में उसके व्यक्तिगत तरीके।

 व्यक्ति के आत्म के इस पहलू के संबंध में दूसरे व्यक्तियों के व्याख्या और अनुभव क्या है तथा इस संबंध में व्यक्ति के क्या विचार हैं।

 आत्मा और व्यवहार की स्थिरता बनाए रखने के लिए व्यक्ति इन तीनों में ही समरूपता बनाए रखता है -

   आत्म को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं-

1. अशुद्ध  प्रत्यक्षीकरण

( Misperception ):-


 जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों की प्रत्याशायों के अनुसार व्यवहार नहीं करता है, तब उन परिस्थितियों में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों का अशुद्ध प्रत्यक्षीकरण करता है। वाया जानना चाहता है कि दूसरे व्यक्ति उसे किस रूप में देख रहे हैं। प्रयोगात्मक अध्ययनों से अशुद्ध प्रत्यक्षीकरण की पुष्टि हो चुकी है।


( 2 ) चयनात्मक अन्तःक्रिया ( Selective Interaction ) -

अपने आत्म को जानने के लिए व्यक्ति अपने चारों ओर के वातावरण में चयनात्मक अन्त : क्रिया करता है । वह उन व्यक्तियों के साथ ही अन्त : क्रिया करता है , जो उसको अत्यन्त उच्च बुद्धि वाला समझते हैं । उन्हीं व्यक्तियों से वह सम्पर्क रखना चाहता है । प्रत्येक व्यक्ति से वह अपना सम्बन्ध नहीं रखता है ।

( 3 ) अन्य व्यक्तियों का चयनित मूल्यांकन

(Selective Evaluation of other Persons ) -

अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि एक व्यक्ति उसको पसन्द नहीं करता है , जो उसका ऋणात्मक मूल्यांकन करता है तब वह भी उस व्यक्ति के साथ इसके विपरीत व्यवहार करना आरम्भ कर देता है । वह केवल उन्हीं व्यक्तियों के साथ अनुकूल व्यवहार करता है , जो उसके समान विचार रखते

( 4 ) चयनात्मक आरम्भ मूल्यांकन

( Selective Evaluation of Self ) —

व्यक्ति अपने आत्म के विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन करता है । वह आत्म के महत्वपूर्ण तथा कुछ कम महत्त्वपूर्ण दोनों ही पहलुओं को चुनता है परन्तु वह आत्म के उन्हीं पहलुओं को चुनता है , जो उसके आत्म की स्थिरता बनाये रखते हैं ।

( 5 ) अनुक्रिया उत्पत्ति ( Response Evocation ) -

कभी - कभी व्यक्ति जान - बूझकर या अनजाने में तथा चेतन या अचेतन स्तर पर ऐसा व्यवहार करता है कि इस व्यवहार से दूसरे व्यक्ति अपना व्यवहार इस शक्ति के अनुरूप बना लें । एक व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों के साथ इस प्रकार का व्यवहार करता है कि दूसरे व्यक्ति इस व्यक्ति के व्यवहार को वांछित समझते हैं । उदाहरण के लिए एक व्यक्ति अपने व्यवहार , भाषा तथा पहनावे आदि से दूसरों के सामने ऐसा प्रदर्शित करता है कि वह कोई डॉन है परन्तु वास्तविक रूप में वह अच्छे विचारों वाला तथा चरित्रवान व्यक्ति है । इस प्रकार से वह दूसरे व्यक्तियों में अपने प्रति समरूपी अनुक्रियाएँ उत्पन्न कर सकता है ।

( 6 ) भावात्मक समरूपता

( Affective Congruency ) -

 भावात्मक समरूपता का अर्थ है कि व्यक्ति अपने आत्म के सम्बन्ध में जिस प्रकार के विचार रखता है , ठीक उसी प्रकार के विचार उस व्यक्ति के लिए दूसरे व्यक्ति में भी है । व्यक्ति जिस रूप में अपने आत्म को देखता है उसी के अनुरूप व्यवहार करना आरम्भ कर देता हैं।

जैसे - जैसे व्यक्ति की आयु बढ़ती है उसके आत्म में भी परिवर्तन होना आरम्भ हो जाता है । एक व्यक्ति को समाज में रहते हुए विभिन्न प्रकार की भूमिकाएं निभानी होती है । पहले वह शिशु , फिर बालक , किशोर , युवा , वयस्क तथा बुजुर्ग आदि अनेक भूमिकाएँ देखता है तथा इन अवस्थाओं के साथ वह पुत्र, पिता, पति तथा संरक्षण आदि की अलग-अलग भूमिकाओं को निभाता है। जैसे-जैसे उसकी आयु बढ़ती है, वह नई भूमिकाओं को निभाता है तथा विशिष्ट परिस्थितियों के कारण उसके आत्म में भी परिवर्तन आ जाता है। आत्मा विकास तथा परिवर्तन को वह विभिन्न व्यवहार में भी प्रभावित करते हैं, जो वह समय-समय पर अपने जीवन में अपना आता है।










Epam Siwan......




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