C-4:Language Across The Curriculum
भाषा एक विषय और एक माध्यम के रूप में
परिचय:
सभी प्राणियों में केवल मानव ही ऐसा प्राणी है जो भाषा जानता है। भाषा के कारण ही मानव का जीवन अन्य प्राणियों से अधिक शुभ माना जाता है। भाषा मानव को दिया गया प्रकृति का वरदान है अथवा ईश्वर की ही वह प्रदत्त शक्ति है जिसका मानव उपभोग करता है।
बॉम हम्बोलर ने लिखा है कि " भाषा के कारण ही मनुष्य,मनुष्य है, पर भाषा के अविष्कार के लिए उसका पहले से ही मनुष्य होना आवश्यक है। प्राचीन विचारक भाषा को ईश्वरीय कृति मानते थे। इसी कारण संस्कृत को देव वाणी की संज्ञा प्रदान की गई है। पतंजलि ने ईश्वर को ही भाषा का आदि गुरु माना है। मानव सभ्यता तथा संस्कृति के विकास में भाषा का महत्वपूर्ण योगदान है। आशा को सभ्यता की कहानी भी कहा जा सकता है। जिस साधन से हम अपने भावों तथा विचारों को दूसरों तक पहुंचा सकते हैं, वही भाषा है।
भाषा एक विषय के रूप में
( language as a subject )
भाषा को एक विषय में रखने का मुख्य उद्देश्य छात्रों को भाषा का व्याकरण की जानकारी से परिचित कराना है। आज यह एक दुर्भाग्य ही है कि हमारा देश की राष्ट्रभाषा, मात्री भाषा और प्रांतीय भाषा हिंदी होने के बाद भी हिंदी के छात्र और शुद्ध प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें ना उनके मूल स्वरूप की जानकारी है और ना ही उनके साहित्य का ज्ञान है। हिंदी को एक विषय में पाठ्यक्रम में शामिल किया जाता है तो इसका उद्देश्य छात्रों को उसके साहित्य तथा मूल स्वरूप से परिचित कराना है।
भाषा को एक विषय के रूप में प्राचीन काल से महत्वपूर्ण माना गया है। भाषा ज्ञान अतीत में भी कराया जाता था। भाषा के शुद्ध स्वरूप को समझने के लिए उसे एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। भाषा को रचना,श्रवन तथा लेखन कौशल के लिए भी महत्वपूर्ण माना गया है। भाषा ज्ञान अतीत में भी कराया जाता था। भाषा के साहित्य स्वरूप, भाषा के रचनाकारों का परिचय, आदि का ज्ञान भाषा के ज्ञान के आधार पर होता है।
अतः भाषा के साहित्य स्वरूप को समझने के लिए एक विषय के रूप में भाषा का शिक्षण आवश्यक माना गया है। भाषा चाहे कोई भी हो उसके आत्मसात करने के लिए उसके अंतर्मन साहित्य में झांकना पड़ता है तभी उसमें दक्षता प्राप्त होती है।
भाषा की समृद्धता उसकी लिपि,शैली,समृद्ध वैज्ञानिक शब्दावली, शुद्ध वर्तनी,उच्चारण की शुद्धता, स्वभाविकता आदि में निहित होती है। भाषा कौशल के विकास के लिए भाषा के साहित्य की समझ उसके व्याकरण की समझ आवश्यक है। अतः इसके लिए भाषा का ज्ञान एक विषय के रूप में होना आवश्यक है इसी कारण भाषा को अतीत काल से ही विषय के रूप में मान्यता प्राप्त है और आज भी इसे एक विषय के रूप में मान्यता प्राप्त है।
भाषा एक माध्यम के रूप में
( Language as a Mediam )
भाषा को एक माध्यम के रूप में स्वीकार करने के लिए कई संघर्ष तथा आंदोलन हो रहे हैं। प्राचीन काल से संस्कृत भाषा ही शिक्षण की भाषा थी। स्वतंत्रता के पश्चात संविधान निर्माण के साथ ही हिंदी भाषा को एक माध्यम के रूप में स्वीकार किया गया। हिंदी को राष्ट्रभाषा स्वीकार करके पूर्व भाषाई विवादों को समाप्त करने का प्रयास किया गया। अपनी भाषा को महत्व प्रदान करने के लिए उसे माध्यम के रूप में स्वीकार करने पर बल दिया गया है।
स्वतंत्रता से पूर्व वुड के घोषणा पत्र में देसी तथा अंग्रेजी भाषा के उपयोग पर विचार करते हुए शिक्षा के माध्यम के संबंध में कहा गया था कि -" अंग्रेजी भाषा को वहां पढ़ाया जाएगा जहां उसकी मांग हो परंतु अंग्रेजी का शिक्षण उस जिले की देसी भाषा के अध्ययन के साथ संयुक्त किया जाएगा। लॉर्ड मैकाले ने शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी भाषा को प्रसाद दिए जाने पर बल दिया था तब से भारत में माध्यम के लिए कौन सी भाषा अपनाई जाए इस पर विवाद चल रहा है। स्वतंत्रता के बाद भी इस विवाद का कहीं अंत नहीं हुआ। उत्तर भाषा शब्द भाषा होने के कारण संपूर्ण देश के माध्यम के रूप में हिंदी को देखना चाहते हैं परंतु दक्षिण क्षेत्र में हिंदी इतनी प्रसिद्ध नहीं है पूरे माध्यम के रूप में अंग्रेजी को तो महत्व देते हैं परंतु हिंदी को नहीं।
भाषा के माध्यम के प्रश्नों के समाधान के लिए ही शिक्षा में त्रिभाषा सूत्र लाया गया है। भारत के भाषण समस्या को हल करने के लिए कहा जाता है कि त्रिभाषा सूत्र सर्वोत्तम साधन है। नाम है भी आकर्षक। 'त्रिभाषा सूत्र' कहने में भी अच्छा लगता है और सुनने में भी। साधारण जनता पर तो इस शब्द क्लिस्टता का भी प्रभाव डाल सकते हैं और यदि किसी संस्कृत के पंडित से पाला पड़ जाए तो उसे भी आप यह कह कर आश्चर्य में डाल सकते हैं कि इसका उद्गम पाणिनी की 'अष्टध्यायी' के किसी क्षेपक अंश से तो नहीं है किंतु इस सूत्र को आज के भारत की सर्वाधिक ज्वलंत समस्या का आदर समाधान मानने से पहले इस पर तनिक विचार कर लिया जाए।
Epam Siwan
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें