प्रश्न. दैनिक जीवन में गणित की आवश्यकता एवं महत्व का वर्णन करें।
उत्तर -
दैनिक जीवन में गणित शिक्षण की आवश्यकता महत्त्व ( IMPORTANCE AND NEED OF MATHEMATICS TEACHING IN DAILY LIFE )
हमारे चारों ओर का जीवन तथा हमारे दिन प्रतिदिन का व्यवहार पूर्ण रूप से गणित से भरा हुआ है। प्रत्येक बात को समझाने के लिए हमें थोड़ी बहुत गणित की आवश्यकता पड़ती है। दैनिक जीवन में हमें घर बाहर, बाजार, क्रय विक्रय, आय व्यय आदि सभी गणित के ज्ञान की आवश्यकता होती है। गणित के बिना हमारा जीवन गूंगे, बहरे तथा अंधे संसार के समान हो जाएगा।
गणित के ज्ञान से रहित व्यक्ति न तो परिवार को सुचारू रूप से चला सकता है और न ही समाज में कुछ कर सकता है। यदि छात्रों को आरंभ से ही प्रारंभिक गणित का ज्ञान नहीं कराया जाता तो वे अपने जीवन में अनुभवों को समझने समझाने में असमर्थ रहे होते।
गणित का सम्बन्ध हमारे जीवन से बहुत घनिष्ठ है । आजकल को सभ्यता का आधार गणित ही है । गणित को व्यापार का प्राण और विज्ञान का जन्मदाता समझा जाता है । इन्जीनियरिंग का पूरा कार्य गणित पर ही आधारित रहता है । मातृ - भाषा के अतिरिक्त ऐसा कोई भी विषय नहीं है जो दैनिक जीवन से इतना अधिक सम्बन्धित हो । आधुनिक सभ्यता एप्लाइड गणित के आधार पर ही खड़ी हुई है । गणित एक उपकरण है . जिसका प्रयोग विज्ञान करता है । मनुष्य जिस वातावरण में रहता है , उसमें रुचि लेने की क्षमता प्रदान करने के लिए तथा उन प्रयत्नों का मूल्यांकन करने के लिए जो दूसरे लोग प्रयोग करते हैं , गणित का कुछ ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक हो जाता है । एक विशेषज्ञ को अपने क्षेत्र में गणित का सरलतापूर्वक प्रयोग करने के लिए उसका पर्याप्त ज्ञान अवश्य प्राप्त करना चाहिए ।
ऐसे व्यवसायों की संख्या जिनमें गणित के ज्ञान की आवश्यकता होती है , बहुत अधिक है तथा निरन्तर बढ़ती ही जा रही है । गणित का प्रकृति से भी गहरा सम्बन्ध है । प्राकृतिक क्रियाओं में विविधता में परिवर्तन मुख्य है । चलन - कलन में परिवर्तन का ही अध्ययन किया जाता है , अत : इसे प्रकृति का गणित कहा जा सकता है । प्राकृतिक विज्ञान जैसे - ज्योतिर्विज्ञान तथा भौतिक विज्ञान अधिकांशत : गणित के समान ही है । ऐसा माना जाता है कि बल और क्रियाओं के बीच में गणितीय सम्बन्ध रहता है । इन सम्बन्धों की खोज तथा नियमीकरण से ही किसी विषय का निश्चित ज्ञान हो पाता है । गणित के ज्ञान के बिना प्रकृति का अध्ययन नहीं हो सकता । माध्यमिक विद्यालयों के विद्यार्थी चाहे पूर्ण रूप से इस तथ्य की अनुभूति न कर सकें , परन्तु वह प्रकृति में गणितीय रचना की झलक अवश्य देख सकते हैं । गणित में विद्यार्थी को इस बात की आवश्यकता होती है कि वह स्थिति को ठीक रूप से देखें । प्रायः अनेक अनावश्यक विचरणों में से तथ्यों की खोज करनी पड़ती है । एक विद्यार्थी को स्पष्ट और शीघ्रता से यह जानना होता है कि क्या दिया है और क्या ज्ञात करना है । गणित में प्रयुक्त होने वाली प्रक्रिया अनुमानात्मक है । अन्ततः हमारे सभी विचार इसी प्रकार के हैं । यदि हम किसी व्यवसाय अथवा व्यापार को चुनते हैं तो हमें एक निश्चित मार्ग अपनाना पड़ता है । यदि हम अपने धन को एक विशेष ढंग से खर्च करते हैं , किसी राजनैतिक दल को वोट देते हैं , किसी समिति का कार्य सम्भालते हैं , अपने पड़ोसी का जान - बूझकर अपमान करते हैं ...... तब ....... जब कभी भी हमें कार्य करने के विभिन्न तरीकों में से एक का निश्चय करना पड़ता है तो अनुमानात्मक वृत्ति हमारे सामने रह जाती है । इस महत्वपूर्ण आदत का सामान्य प्रशिक्षण एवं अभ्यास कराने के लिए , गणित शिक्षा एक शक्तिशाली शस्त्र बन सकता है । इसमें तथ्यात्मक सूचनाएँ कम से कम होती हैं तथा ध्यान को आवश्यक तथा पर्याप्त शब्दों की खोज में तथा निष्कर्ष निकालने पर ही केन्द्रित कर दिया जाता है । ऐसे शब्दों के द्वारा , जिनकी संक्षिप्त ढंग से परिभाषा की गयी हो एवं चिह्नों के प्रयोग से , किसी भी तर्क का सार बड़ी स्पष्टता से प्रकट हो जाता है ।
गणित शिक्षण के द्वारा मुख्य रूप से निम्न मूल्यों अथवा लाभों की प्राप्ति हो सकती
1. प्रयोगात्मक मूल्य ( Utilitarian Value ) , 2. सामाजिक मूल्य ( Social Value ) ,
3. नैतिक मूल्य ( Moral Value ) ,
4. कलात्मक या सौन्दर्यात्मक मूल्य ( Aesthetic Value ) ,
5. बौद्धिक मूल्य ( Intellectual Value ) ,
6. अनुशासन सम्बन्धी मूल्य ( Disciplinary Value ) ,
7. सांस्कृतिक मूल्य ( Cultural Value ) ,
8. अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य ( International Value ) ।
1. प्रयोगात्मक मूल्य : दैनिक जीवन सम्बन्धी लाभ - जहाँ तक गणित के दैनिक जीवन में उपयोग का प्रश्न है , शायद ही कोई ऐसा विषय हो जो इसकी बराबरी कर सके । हमारे जीवन का कोई भी अंश इसके प्रयोग से अछूता नहीं है । हम सब के जीवन का प्रत्येक क्षण और सम्बन्धित क्रियाएँ माप - तौल और गणना पर आधारित हैं , जिनमें पग - पग पर गणित की सहायता लेनी पड़ती है । सुबह सोकर उठने के बाद से ही नित्य - प्रति के काम शुरू होने के साथ - साथ गणित के उपयोग की आवश्यकता भी शुरू हो जाती है । कब उठना है , कब दफ्तर अथवा फैक्टरी में काम पर जाना है , किस - किस समय कौन - कौन सा कार्य करना है , सारी व्यवस्था गणित पर ही आधारित है । बच्चे स्कूल जा रहे हैं , समय पर तैयार करना , घर - गृहस्थी की आवश्यक वस्तुओं का लेखा - जोखा रखना , आय और व्यय का सन्तुलन बनाए रखना — ये सब कार्य कोई भी गृहिणी बिना गणित के कैसे कर सकती है ? हमारे समस्त कार्यों की व्यवस्था माप - तौल और गणना पर ही आधारित है । चाहे कोई व्यक्ति समाज की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हो या उपेक्षित , उच्च वर्ग एवं जाति से सम्बन्ध रखता हो अथवा निम्न वर्ग से सभी को गणित की आवश्यकता पड़ती है । गणित का उपयोग केवल इंजीनियर , व्यापारी , उद्योगपति , दुकानदार और बैंक , जीवन बीमा निगम तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं से सम्बन्धित व्यक्ति ही करते हों यह बात नहीं ; छोटे - से - छोटे मजदूर , रेलवे स्टेशन पर बोझ ढोने वाला कुली , सब्जी की ठेली लगाने वाला , चारपाई ठीक करने वाला बढ़ई , चप्पलें ठीक करने वाला मोची , बिना पढ़े - लिखे तो अपनी रोटी कमा सकते हैं , पर बिना गिने , तौले या मापे उनका कार्य बिल्कुल नहीं चल सकता । संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति जो कमाता है और खर्च करता है , उसे गणित की किसी - न किसी प्रकार की आवश्यकता होती है और संसार में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो , जो न कमाता हो और न खर्च करता हो । इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि गणित के बिना हमारी सारी भौतिक सभ्यता जो इतनी सदियों के सतत् प्रयास का फल है , अचानक ही चकनाचूर होकर बिखर जाएगी और फिर इसी बची - खुची सभ्यता में हमारा स्तर वही होगा जो करोड़ों वर्ष पूर्व जंगली अवस्था में विचरण करने वाले , आदिमानव का था ।
2. सामाजिक मूल्य - समाज रूपी ढाँचे को समुचित व्यवस्था और उन्नति में गणित का बहुत बड़ा हाथ है । व्यक्तियों के परस्पर मेल से ही समाज का निर्माण होता है । समाज में सामूहिक हितों की रक्षा और शान्ति तथा व्यवस्था बनाने के लिए विभिन्न नियमों तथा परिपाटियों की आवश्यकता होती है , जिन्हें मूर्त रूप देने में गणित के क्रियात्मक सहयोग को आवश्यकता पड़ती है । सामाजिक जीवन ( जो एक - दूसरे के पारस्परिक सहयोग पर निर्भर करता है ) जीने के लिए गणित की अत्यधिक आवश्यकता है । संसार का सारा व्यापार ( तिजारत ) और लेन - देन गणित पर ही निर्भर है । यातायात के साधन तथा समाज के विभिन्न अंगों को निकट लाने में सहायक विभिन्न आविष्कारों , सामाजिक कठिनाइयों , आवश्यकताओं , विपत्तियों , अकाल , बाढ़ और भूचाल , आदि में सहायता देने में गणित का बहुत बड़ा हाथ है ।
गणित का इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब - जब समाज और राष्ट्र में गणित को उसका उचित स्थान प्राप्त हुआ है , वह उन्नति की ओर अग्रसर हुआ है । इसलिए नेपोलियन ने इस विषय की सामाजिक महत्ता को समझते हुए ठीक ही कहा था कि " गणित की उन्नति तथा वृद्धि देश की सम्पन्नता से सम्बन्धित है । " संसार में जो भी उन्नति दिखलाई दे रही है , उसका आधार गणित ही है । बड़े - बड़े कारखानों को चलाने वाले रॉकेट और चन्द्रमा तथा मंगल तक पहुँचाने की योजनाओं के पीछे गणित के ठोस सिद्धान्त ही काम कर रहे हैं । हमारा सामाजिक ढाँचा जो आज इतना वैज्ञानिक और सुव्यवस्थित नजर आता है , उसका श्रेय गणित को ही है ।
3. नैतिक मूल्य ...- गणित के अध्ययन से चरित्र निर्माण और नैतिक उत्थान में भी सहायता मिलती है । एक अच्छे चरित्रवान व्यक्ति में जितने गुण होने चाहिए , उनमें से अधिकांश गुणों का अंकुर गणित पढ़ने से केवल फूटता ही नहीं है , बल्कि पल्लवित होकर अपनी सुगन्धि भी फैलाने लगता है । सच्चाई , ईमानदारी , विचारों की पवित्रता एवं स्वच्छता , न्यायप्रियता , यथार्थता , समय की पाबन्दी , कर्तव्यनिष्ठा , धैर्यशीलता , आत्म - नियन्त्रण , आत्म सम्मान , आत्मविश्वास , सहनशीलता , दूसरे के विचारों का आदर करना , भला - बुरा सोचने की सामर्थ्य , विचारों और भावों की संक्षिप्तता और सरलता , सुव्यवस्था एवं नियमों पर आरूढ़ रहने की शक्ति , आदि सभी गुण जो एक अच्छे चरित्र के निर्णायक हैं , गणित के अध्ययन से अनायास ही विद्यार्थियों के मन में घर कर लेते हैं , क्योंकि गणित की समस्याओं को हल करने के लिए नैतिकता की आवश्यकता होती है । गणित सदैव सत्य को सत्य ही कहता है , उत्तर ठीक या गलत में होता है , कुछ ठीक अथवा कुछ गलत नहीं । गणित में व्यक्तिगत भावनाओं तथा दृष्टिकोण के कारण उत्तर की यथार्थता में कोई अन्तर नहीं आता । गणित ही एक ऐसा विषय है , जो सही अर्थों में अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण रखने का अभ्यास कराता है । गणित का प्रशिक्षण लेने वाले का स्वभाव ही कुछ ऐसा बन जाता है कि उसमें से ईर्ष्या , घृणा , इत्यादि निकल जाते हैं । यह उनको दिन को दिन , रात को रात कहने की शक्ति प्रदान करता है । प्रसिद्ध दार्शनिक डटन ने गणित के नैतिक मूल्य को समझकर ठीक ही कहा है कि , " गणित तर्कसम्मत विचार , यथार्थ कथन तथा सत्य बोलने की शक्ति प्रदान करता है । व्यर्थ गप्पें , आडम्बर , धोखा , छल - कपट सब कुछ उस झूठे मन के चिह्न हैं , जिसे गणित का प्रशिक्षण नहीं मिला । "
4. कलात्मक या सौन्दर्यात्मक मूल्य – जिन्हें गणित पढ़ाने का सुअवसर प्राप्त नहीं हुआ है , उन्होंने गणित के बारे में कुछ गलत अवधारणाएँ बना रखी हैं कि गणित एक रसहीन और रूखा विषय है । परन्तु गणित के प्रेमियों के लिए गणित सुन्दर है , गीत है , कला है तथा आनन्द प्राप्ति का एक सफल साधन है । गणित में सफलता पाने के बाद आनन्द का ठिकाना ही नहीं । यही कारण है कि पाइथोगोरस ने अपनी प्रसिद्ध साध्य की खोज के उपलक्ष्य में 100 बैलों की बलि चढ़ाई थी । गणित में समस्याओं को हल करने में अत्यन्त आनन्द का अनुभव होता है । विशेषकर जब समस्या का उत्तर पुस्तक में दिए गए उत्तर से मिल जाता है , उस समय प्रत्येक विद्यार्थी सन्तुष्टि , आत्म - विश्वास और स्वामित्व की चमक से प्रफुल्लित हो उठता है ।
5. बौद्धिक मूल्य - गणित का अध्ययन हमें अपनी सभी मानसिक शक्तियों को पूर्ण विकसित करने का अवसर देता है । कल्पना - शक्ति , स्मरण - शक्ति , निरीक्षण - शक्ति , अन्वेषण शक्ति , एकाग्रता , मौलिकता , चिन्तनशीलता और नपी - तुली तर्कसंगत तथा नियमित विचार शक्ति , आदि सभी मानसिक शक्तियाँ गणित के प्रशिक्षण द्वारा ही विरासत में मिलती हैं तथा मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक सुव्यवस्थित एवं सुनियोजित व्यायाम है । हब्श ने ठीक ही कहा है कि , " गणित मस्तिष्क को तीक्ष्ण एवं तीन बनाने में वही काम करता है , जो किसी औजार को तीक्ष्ण करने में काम आने वाला पत्थर । इसके अध्ययन से स्पष्ट , तर्कसम्मत एवं क्रमबद्ध रूप में भली - भाँति सोचने की शक्ति आती है । " किसी के लिए ज्ञान का उपार्जन तभी उपयोगी हो सकता है , जबकि वह उसका उचित उपयोग जानता हो और ज्ञान का उचित उपयोग विकसित मानसिक शक्तियों पर आधारित है । प्रो . शुल्ट्जे के अनुसार , " गणित की शिक्षा मुख्य रूप से मानसिक शक्तियों को विकसित करने के लिए दी जाती है । गणित के तथ्यों का ज्ञान देना इसके बाद ही आता है । " सभी मानसिक शक्तियों का समुचित विकास गणित के अध्ययन से सुचारु रूप से हो जाता है , क्योंकि गणित की प्रत्येक समस्या उस क्रम में से गुजरती है जो कि एक रचनात्मक विचार प्रक्रिया के लिए आवश्यक है । पहले समस्या का निरीक्षण किया जाता है कि समस्या किस प्रकार की है तथा किस प्रकार का हल चाहिए । इसके बाद समस्या को हल करने में सहायता देने वाले सभी तथ्यों को एकत्रित किया जाता है । इन तथ्यों के आधार पर तर्क और विवेक शक्ति के सहारे किसी निर्णय पर पहुँचने का प्रयास किया जाता है । अन्त में पुनः एक बार निर्णय के औचित्य को परखा जाता है ।
6. अनुशासन सम्बन्धी मूल्य - गणित का प्रशिक्षण मानसिक शक्तियों का विकास एवं उन्हें नियन्त्रित ही नहीं करता , बल्कि साथ - ही - साथ सम्पूर्ण व्यक्तित्व को चिन्तनशीलता , गम्भीरता एवं विवेक भी प्रदान करता है । यही कारण है कि गणित के द्वारा प्रशिक्षित मस्तिष्क अनुशासनबद्ध जीवन विताने में अधिक समर्थ हो सकता है । गणित के अध्ययन से रचनात्मक अनुशासन बनाए रखने में बहुत सहायता मिलती है । गणित का प्रत्येक विद्यार्थी कोई भी निर्णय लेने से पूर्व अपने विवेक एवं तर्कशक्ति का समुचित उपयोग करके भलाई - बुराई , हानि - लाभ के बारे में अच्छी तरह सोच लेता है । गणित विषय ही ऐसा है जिसमें एकाग्रता , कठिन परिश्रम , समयानुकूल सुव्यवस्थित , स्वच्छ एवं सही - सही कार्य करने की आदत , कक्षा में अध्ययन के प्रति रुचि लेने की आवश्यकता , आदि कई ऐसी परिस्थितियाँ हैं जिनके द्वारा गणित का विद्यार्थी संयम और विवेकपूर्ण जीवन बिताने का अभ्यस्त हो जाता है । यही कारण है कि जिसे गणित का प्रशिक्षण नहीं मिला , उस मस्तिष्क से गणित के द्वारा प्रशिक्षित मस्तिष्क समाज के लिए अधिक उपयोगी एवं अनुशासनप्रिय सिद्ध होता है ।
7. सांस्कृतिक मूल्य - किसी देश या समाज की संस्कृति का ज्ञान हमें उस देश के निवासियों के रहन - सहन , रीति - रिवाज , खान - पान , सोचने - विचारने के ढंग , कलात्मक एवं वैज्ञानिक उन्नति तथा सामाजिक , आर्थिक , राजनैतिक , आदि विभिन्न दृष्टिकोणों से होता है । गणित का इतिहास विभिन्न देशों में पनपने वाली सभ्यता और संस्कृति का चित्र प्रस्तुत करता है । ऐसा कोई भारतीय ही होगा , जो गणित में प्राचीन भारत के दशमलव , शून्य और बीजगणित के ज्ञान सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण योगदान को पढ़कर अपनी संस्कृति की महानता से गौरवान्वित न हो । गणित की पुस्तकों तथा अध्ययन से हमें यह चिरसंचित सांस्कृतिक धरोहर प्राप्त हो जाती है । फिर हम अपने पूर्वजों के ज्ञान , अनुभव तथा खोजों से लाभ उठाकर आवश्यकता नुसार उनमें संशोधन एवं परिवर्तन करते रहते हैं । इस तरह हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर की वृद्धि करते रहते हैं । इन दिन - प्रतिदिन की खोजों और परिवर्तनों का स्पष्ट ज्ञान जो हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित करते रहते हैं तथा हमारे ढाँचे में क्रान्तिकारी परिवर्तन कर देते हैं , हमें केवल गणित के आधारभूत नियमों के अध्ययन से ही हो सकता है ।
8. अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य - गणित अपने देश को गौरवमयी पृष्ठभूमि से परिचित कराकर राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाने में भी पीछे नहीं है । इसके अध्ययन से हमें पता चलता है कि आज का मानव जो अपनी भौतिक उन्ननि का दम भरता है , कभी इतना असभ्य था कि उसे एक से अधिक गिनना भी नहीं आता था । इस क्षेत्र में जो कुछ भी उन्नति हुई है , वह किसी एक वर्ग , जाति , राष्ट्र और धर्मानुयायियों का कार्य नहीं , यह संसार के सभी बुद्धिमान व्यक्तियों के , चाहे वे किसी जाति , धर्म और राष्ट्र से सम्बन्धित क्यों न हों , ज्ञान और परिश्रम का फल है । कोई देश चाहे वह कितना ही उन्नत क्यों न हो , अकेला ही इस क्षेत्र में पूर्ण उन्नति नहीं कर सकता जब तक कि वह संसार के अन्य देशों में होने वाली दिन - प्रतिदिन की खोजों से परिचित न हो । एक राष्ट्र द्वारा की गई खोज का अन्य राष्ट्रों में चल रही खोजों पर तत्काल ही असर होता है । इसी कारण यह आवश्यक हो जाता है कि दुनियाभर में गणितज्ञ और वैज्ञानिक परस्पर मिलकर कार्य करें । राष्ट्रों में परस्पर स्नातकों , शोधकर्ताओं तथा गणितज्ञों का आदान प्रदान , रचनाओं , लेखों , पुस्तकों तथा शोध सम्बन्धी सामग्री का विनिमय , सभी इस बात का प्रमाण है कि गणित का अध्ययन विभिन्न राष्ट्रों में पारस्परिक सहयोग की भावना में वृद्धि करता है । चाँद और मंगल के सपनों को साकार बनाने के लिए रूस और अमेरिका के गणितज्ञों तथा वैज्ञानिकों के सम्मिलित प्रयास गणित के अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं ।
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