प्रश्न . सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन की प्रवृत्तियों का जन आंदोलन के रूप में परीक्षण कीजिए । ( Examine the activities of Civil Disobedience Movement and Quit India Movement as mass mobilisation . )
उत्तर - सविनय अवज्ञा आन्दोलन और भारत छोड़ो आंदोलन दोनों का ही हमारे राष्ट्रीय आंदोलन में विशेष महत्त्व है । इन आंदोलनों में व्यापक भगीदारी कर जनता ने भारत की स्वतंत्रता को सुनिश्चित कर दी । लाहौर अधिवेश , 1929 में कांग्रेस कार्यकारी समिति ने सविनय अज्ञा आन्दोलन ( 1929 ) का आरम्भ करने का निर्णय ले लिया था और फरवरी 1930 में कार्यकारी समिति ने गाँधीजी को जन - आंदोलन प्रारंभ करने का अधिकार दे दिया ।
गाँधीजी ने 12 मार्च , 1930 को दांडी - यात्रा की शुरुआत की । शुरू में केवल 78 लोगों के लेकर साबरमती आश्रम , अहमदाबाद से यह यात्रा चली । अन्य कांग्रेसी नेता इस यात्रा में परिणाम के प्रति आशंकित थे , परंतु गाँधीजी को अपने - आप पर पूर्ण विश्वास था । करीब 240 मील का सफर तय करती हुई यह जन यात्रा दांडी पहुंची तो गाँधीजी के स्वागत हुआ के लिए हजारों की भीड़ वहाँ एकत्र थी । सबने मिलकर नमक कानून तोड़ा । सरकार के दमन चक्र की शुरुआत कर दी । सरकारी दमन का सबसे वीभत्स रूप धरासाना नमक कारखाना के निकट आन्दोलनकारियों पर चला जिसका नेतृत्व सरोजिनी नायडु और गांधीजी के पुत्र मणिलाल कर रहे थे । धरासाना में नमक कानून तोड़ने के दौरान पुलिस दमन को सबसे बेहतर चित्रण एक अमेरिकी पत्रकार मिलर ने किया है । मिलर का कथन है कि मैंने अनेकों दंगे , विद्रोह , गृहयुद्ध तथा फसाद देखे हैं परन्तु धरासाना जैसा दिल दहलाने वाला दृश्य कभी कहीं नहीं देखा । "
इस प्रकार का निर्भीक सत्याग्रह का प्रदर्शन जो धरासाना नामक कारखाने में उसका दूसरा उदाहरण मानव इतिहास में बहुत कम ही मिलता है । महिलाओं तथा विद्यार्थियों ने विशेषकर तथा विदेशी वस्त्र बहिष्कार में बढ़ - चढ़ कर हिस्सा लिया । व्यापारियों तथा व्यापारिक संस्थानों ने बहिष्कार में अग्रणी भूमिका निभाई । शराब का बहिष्कार सफल रहा , क्योंकि सरकार की कर संग्रहण क्षमता में काफी कमी आ गयी थी ।
बिहार में किसानों ने चौकीदारी कर देने से मना कर दिया । यह कर उन चौकीदारों को वेतन के रूप में मिलता था , जो गाँवों में सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस द्वारा नियुक्त किए जाते थे । ये लोग एक प्रकार से गुप्तचरों की तरह कार्य करते थे । मुंगेर , सारन तथा भागलपुर जिलों में जिन किसानों ने यह कर नहीं चुकाया तो सरकार ने बदले की भावना से प्रेरित होकर उन्हें तंग किया तथा कईयों की जमीन - जायदात से बेदखली की गई । कांग्रेस के प्रमुख नेताओं डॉ . राजेन्द्र प्रसाद तथा अब्दुल बारी ने बिहपुर ( भागलपुर ) में आन्दोलन चलाया । सूरत जिले के बारदोली में किसानों ने ' कर न अदायगी ' आन्दोलन चलाया । महाराष्ट्र , कर्नाटक तथा मध्य क्षेत्र को वनवासियों ने वन - कानूनों का उल्लंघन कर इस आंदोलन में अपना योगदान दिया सरकार द्वारा बनाए गए वन कानूनों ने इन वनवासियों का जीवन अति कष्टमय बना दिया था ।
आसाम के विद्यार्थियों ने कनिंघम सर्कुलर का विरोध किया जिससे उनसे अच्छे व्यवहार की गारंटी देने की जोर - जबर्दस्ती की जाती थी । सूरत में विद्यार्थियों ने जीवित झंडे को बनाने के लिए कपड़ों को तीन रंगों में जोड़कर पहना , जिससे कि उसे आसानी से जब्त न किया जा सके और पुलिस उसे छीन भी नहीं सके ।
उत्तर प्रदेश में किसानों ने जमींदारों के विरुद्ध ' कर ना अदायगी ' आंदोलन चलाया , जिसे बाद में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी समर्थन दिया उत्तर प्रदेश की कांग्रेस कार्यसमिति ने इसका अनुमोदन भी किया । यह आंदोलन आगरा तथा रायबरेली जिलों में अति सफल रहा ।
भारत छोड़ो आन्दोलन - अगस्त , 1942 में प्रसिद्ध जन आंदोलन भारत छोड़ो आन्दोलन मुम्बई से शुरू होकर पूरे भारत में फैल गया । इस प्रकार , 1942 के मध्य तक भारत में अराजकता की स्थिति थी । गाँधीजी जो हमेशा संयम में रहते थे , धीरे - धीरे उनका धर्म भी जवाब दे रहा था तथा उनके रुख में कठोरपन आ गया था । उन्होंने एक अवसर पर कहा - ' इस प्रकार अनुशासित अराजकता से बेहतर तो मैं पूरी अराजकता का खतरा मोल लेने को भी तैयार हूँ । '
कांग्रेस नेताओं ने जुलाई - मध्य में वर्धा में बैठक की तथा 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो प्रस्ताव पास किया गया , जिसका अनुमोदन अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के बंबई अधिवेशन में किया गया । नेताओं ने आह्वान में कहा कि जनांदोलन शुरू किया जाएगा तथा जहाँ तक हो सके यह पूर्ण - अहिंसक हो तथा इसका दायरा विस्तृत हो ।
गाँधीजी ने अपने भाषण में ' करो या मरो ' के नारे को अपना मूलमंत्र बनाया तथा कहा कि आज ये सभी भारतीय अपने आप को आजाद नागरिक समझें । अब जेल भरना ही काफी नहीं होगा परन्तु नेहरू , भूलाभाई देसाई तथा राजगोपालाचारी जैसे नेताओं ने भारत छोड़ो प्रस्ताव का विरोध किया । परंतु नेहरू जो हमेशा बाद में गाँधीजी का साथ देते थे।
भारत छोड़ो प्रस्ताव का समर्थन किये थे इस आंदोलन के प्रमुख तत्व निम्नलिखित थे -
1. ब्रिटिश शासन का अन्त हो तथा ब्रिटिश सरकार को हर हाल में भारत छोड़ना पड़ेगा ।
2 . भारत फासीवाद तथा साम्राज्यवाद से अपनी रक्षा स्वयं ही कर सकने में सक्षम है ।
3. ब्रिटिश के जाने के पश्चात् भारत अपनी अस्थाई सरकार स्वयं ही बनाएगा ।
इस आधिकारिक घोषणा के अलावा गाँधीजी ने गवालिया टैंक मैदान में लोगों को अपनी तरफ से यह कहा -
1. किसानों से - अगर जमींदार सरकार का साथ दे तो उन्हें लगान मत दो ।
2. विद्यार्थियों से - बलिदान के लिए तैयार रहें , आत्मविश्वासी बनें तथा पढ़ाई छोडें ।
3. सैनिकों से - अपने ही लोगों पर गोली न चलाए ।
4. सरकारी कर्मचारियों से त्यागपत्र न देकर सरकार में बने रहकर इससे असहयोग करे ।
5. राजाओं से - आम जनों का समर्थन करे तथा लोगों की रक्षा की स्वीकारे ।
सरकार ने भी त्वरित कारवाई करते हुए 9 अगस्त , 1942 को गाँधीजी समेत सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर बन्दी बना लिया । अचानक हुई कार्रवाई से लोगों में असंतोष भड़क उठा तथा उन्होंने प्रतिक्रिया व्यक्त की ।
बंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में लाखों लोगों ने प्रदर्शन किया तथा पुलिस के साथ झड़प हुई । अनेक शहरों में बहुत बड़े पैमाने पर गड़बड़ी फैली तथा हड़तालें हुई । ये प्रमुख शहर थे - बंबई , कलकत्ता , दिल्ली , लखनऊ , कानपुर , नागपुर , अहमदाबाद , पटना तथा जमशेदपुर । पटना सचिवालय पर झंडा फहराने के प्रयास में 7 छात्र पुलिस की गोलीबारी में उस वक्त मारे गए जब वह ब्रिटिश झंडा उतार कर तिरंगा फहरा रहे थे । जमशेदपुर का टाटा स्टील कारखाना 13 दिनों तक बंद रहा , मजदूरों ने घोषणा की " वह तब तक काम पर वापस नहीं जाएँगे जब तक कि राष्ट्रीय सरकार की स्थापना नहीं हो जाती । " अहमदाबाद की कपड़ा मिलें साढ़े तीन महीने तक बन्द रही तथा इसे भारत का स्टालिनग्राद कहा गया ।
अगस्त के मध्य तक आन्दोलन उग्र तथा हिंसक हो गया । पूर्वी उत्तर प्रदेश , बिहार प्रभावित रहे , छात्रों तथा किसानों ने अनेक स्थानों पर तोड़ - फोड़ की । रेलवे लाइन , पुल तथा संचार माध्यमों को ध्वस्त किया गया । रेलवे तथा तार - संचार को काट दिया गया । पुलिस , स्टेशन रेलवे स्टेशन , न्यायालयों इत्यादि लोगों के आक्रोश का निशाना बने । कई स्थानों पर सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराया गया । छात्रों ने स्कूलों तथा कॉलेजों में हड़ताल की । अनेक पत्रिकाओं का संपादन किया गया तथा उन्हें भूमिगत तरीकों से लोगों में बाँटा गया । लड़कियों ने इसमें विशेष भूमिका निभाई ।
सितम्बर के अन्त तक , आन्दोलन राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों के हाथ में आ गया । उन्होंने पुलिस स्टेशन तथ सेना के केन्द्रों पर अनेक हमले किए और एक प्रकार से इसे गुरिल्ला या छापामार युद्ध की तरह से चलाया । समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने आजाद दस्ता नामक संगठन बनाया जिसने नेपाल के जंगलों में अनेकों युवकों को छापामार युद्ध संचालन में प्रशिक्षित किया जो बाद में जेलों पर हमले भी करने लगे । क्रांतिकारी संगठन अनेक स्थानों पर समानान्तर सरकार कायम करने में भी सफल रहे । यह प्रमुख स्थान थे - मिदनापुर में तामलुक , महाराष्ट्र में सत्तारा , तालचर ( उड़ीसा ) बिहार में चंपारण तथा उत्तर प्रदेश में बलिया ।
सरकार ने हमेशा की तरह क्रांतिकारियों को हजारों की संख्या में गिरफ्तार किया तथा दबाव की रणनीति बनायी । 1943 के अंत तक लगभग 92,000 से अधिक लोग गिरफ्तार कर लिए गए थे । पुलिस द्वारा महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार भी किया गया । इतना ही नहीं आंदोलन को कुचलने के लिए उन्नत किस्मों के हथियारों , जैसे - मशीनगन तथा हवाई - जहाजों का प्रयोग किया गया । यह हथियार बिहार में पटना तथा भागलपुर , बंगाल में नादिया तथा तामलुक तथा उड़ीसा में तालचर में प्रयोग किए गए ।
इस प्रकार , 1942 के जनांदोलन ने भारतीय समाज के हर वर्ग को प्रभावित किया । सन् 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन कांग्रेस के सभी पहले आंदोलनों से ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध अत्यधिक हिंसक रहा और लोगों की ब्रिटिश सरकार विरोधी भावना सबसे अधिक इसी आंदोलन में रही । इसके कारण ही ब्रिटिश वायसराय तथा गवर्नर जनरल लिनलिथगो को कहना पड़ा था - मैं 1857 के बाद पहली बार भारत में इतना बड़ा जनविद्रोह ब्रिटिश प्रशासन के विरुद्ध महसूस कर सकता हूँ । '
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें