प्रश्न. मापन और मूल्यांकन की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए मापन और मूल्यांकन में अंतर स्पष्ट करें।
मापन की अवधारणा
मापन एक ऐसी प्रक्रिया हैं। जिसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की परिणाम और मात्रा का संकलन का संकलन किया जाता हैं।
शैक्षिक मापन में विभिन्न प्रकार के सक्षो का संकलन किया जाता हैं। मापन किसी वस्तु या उपलब्धि का संख्यात्मक मैन होता हैं। इसके अंतर्गत परिणाम या मात्रा का बोध होता हैं। यह एक परिमाणीकरण की प्रक्रिया हैं।
उदाहरण – श्याम का वजन 40 किलो ग्राम हैं।
ललिता की बुद्धिलब्धि 140 हैं।
उपयुक्त उदाहरण में एक संख्या का बोध हो रहा हैं। जिसके अंतर्गत यह पता चल रहा हैं। कि श्याम का वजन 40 किलो ग्राम हैं। जिसमे एक माप का बोध प्रतीत हो रहा हैं।
मापन की परिभाषाएं निम्नलिखित है।
मापन की परिभाषाएं निम्नलिखित है।
कॉलिंगर के अनुसार मापन की परिभाषा
“मापन नियमानुसार वास्तव में घटनाओं की संख्या प्रदान करना है।”
काम्पबेल के अनुसार मापन की परिभाषा
” नियमो के अनुसार वस्तुओं या घटनाओं को अंको या संख्याओ में व्यक्त करना मापन हैं”
स्टीवेंस के अनुसार मापन की परिभाषा
” किन्ही निश्चित स्वीकृत नियमो के अनुसार पदार्थो को नाक या संख्या प्रदान करने की प्रक्रिया मापन हैं।”
रास के अनुसार
“मापन एक पारिमाणीकरण की प्रक्रिया हैं।”
मापन के तत्व या मापन के अंग
मापन के तत्व मापन के अंग निम्नलिखित हैं।
वह वस्तु प्राणी अथवा क्रिया जिसकी किसी विशेषता का मापन होना है।
विशेषता को मापने के उपकरण अथवा विधियां ।
वह व्यक्ति जो मापन करता है अर्थात मापन कर्ता।
मापन की विशेषताएं
मापन की परिभाषाओं की व्याख्या करने से यह पता चलता है। कि उसमें निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं।
मानसिक मापन
भौतिक मापन
मानसिक मापन किसे कहते हैं ?
मानसिक मापन के आधार पर विभिन्न प्रकार के मानसिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
जैसे – बुद्धि लब्धि ,रुचि, योग्यता ,क्षमता व्यक्तित्व परीक्षण।
भौतिक मापन किसे कहते है ?
भौतिक मापन के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के भौतिक गुणों का अध्यन्न किया जाता हैं।
जैसे – लम्बाई , दूरी, उचाई आदि।
मापन के प्रकार(Types of measurement)
मापन के निम्नलिखित तीन प्रकार होते हैं।
निरपेक्ष मापन(Absolute measurement)
सामान्यीकृत मापन(Normative measurement)
इप्सेप्टिव मापन( Ipsative measurement)
निरपेक्ष मापन(Absolute measurement) –
निरपेक्ष मापन के अंतर्गत वह मापन होता हैं। जिसमें परम शून्य की स्थिति संभव होती है। इसका पैमाना शून्य से शुरू होता है। शून्य से अधिक होने पर पैमाना का मापन धनात्मक होता है।शून्य से कम होने पर पैमाना ऋणआत्मक होता है।इसके अंतर्गत जैसे तापमान को नापा जाता है।
सामान्यीकृत मापन(Normative measurement)-
सामानयीकृत मापन वह मापन होता है। जिसमें प्राप्तांक एक दूसरे से प्रभावित नहीं होते हैं।वह स्वतंत्र रूप से प्राप्त होते हैं। इसकी दूसरी पहचान यह हैं कि इसमें परम शून्य की संभावना नहीं होती है।
इप्सेप्टिव मापन (Ipsative measurement) –
मापन की अनेक उपकरण एवं विधियां हैं इनमें एक उपकरण अथवा विधि ऐसी होती है। जिसमें व्यक्ति अथवा छात्र को बाध्य चयन करना होता है।इस विधि द्वारा मापन करने को कैटल ने इप्सेप्टिव मापन कहा है।
शैक्षिक मापन के स्तर(Levels or scales of measurement)
शैक्षिक मापन के स्तर निम्नलिखित हैं।
शाब्दिक अथवा नामित स्तर ।
क्रमिक स्तर ।
अंतराल स्तर ।
अनुपात स्तर।
कई कारणों से मापन का पाठ्यचर्या में एक विशिष्ट स्थान होता है। मानव जीवन की रोजमर्रा की महत्वपूर्ण गतिविधि होने के कारण घर व अन्य जगहों पर अलग-अलग परिस्थितियों में बच्चों का मापन से स्वाभाविक तौर पर सामना होता है। इसके अलावा मापन संख्याओं और ज्यामिति दोनों से जुड़ा हुआ है। इसमें स्थितीय आयाम भी शामिल हैं और गिनती भी। मापन में हम किसी एक गुणधर्म को किसी दूसरे गुणधर्म में मापते हैं। यही नहीं मापन में हम एक सतत मात्रा (non-discrete quantity) को असतत संख्याओं (discrete numbers) में व्यक्त करते हैं। चूँकि दी गई किसी लम्बाई या वजन को मापने के बहुत सारे तरीके होते हैं तो कौन-सा माप इस्तेमाल करना है यह मापन के आपके उद्देश्य पर निर्भर करता है। बच्चों को यह समझने की जरूरत है कि कुछ परिस्थितियों में हमें एकदम सटीक मापन की जरूरत होती है और कुछ में केवल सन्निकट माप की। मापन की अवधारणाओं की मजबूत बुनियाद विशेषतौर पर दशमलव संख्याओं की बेहतर समझ में बदलती है।
मापन के शिक्षण का केन्द्र मापन की गतिविधियों का अभ्यास करवाने के बजाए मापन की सही अवधारणा को विकसित करने पर ज्यादा होना चाहिए। जैसे-जैसे विषय पर चर्चा आगे बढ़ती जाएगी बच्चे यह समझना शुरू कर देंगे कि किन परिस्थितियों में मापन का इस्तेमाल किया जा सकता है और किस स्थिति में कौन-सा माप इस्तेमाल करना उपयुक्त होगा। यह भी बेहद जरूरी है कि यथासम्भव आप ऐसी गतिविधियाँ करवाएँ जिनमें कोई कार्य अर्न्तनिहित हो और कार्य भी ऐसा हो जो न केवल दिलचस्प हो बल्कि बच्चों के लिए चुनौतीपूर्ण भी हो और वे उसे उत्साह से करें।
इस लेख में केवल लम्बाई, वजन और क्षमता के मापन पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। मापन में और भी कई माप शामिल होते हैं: जैसे समय की माप, तापमान, गति इत्यादि।
मापन की गतिविधियों के लिए अक्सर जिन साधनों की जरूरत होती है वे सीमित संख्या में हो सकते हैं। इसके साथ ही इन गतिविधियों में बच्चों के मिल-जुलकर काम करने (जैसे किसी रस्सी को कसकर पकड़ना या दो चीजों को साथ लाना) की खासी जरूरत होती है। बेहतर होगा चार-चार बच्चों के समूह बनाए जाएँ और हर समूह को एक कार्य सौंपा जाए।
मापन की अवधारणाओं को समझने के लिए छोटे बच्चों को अनुभव और समय दोनों की जरूरत होती है। मात्रा की जानकारी और इससे जुड़ी भाषा की समझ दोनों साथ-साथ आती हैं। छोटा, बड़ा, ज्यादा और कम जैसे शब्द बच्चे काफी कम उम्र में ही सीख लेते हैं। हालाँकि मात्रा या संख्या के संरक्षण के सिद्धान्त को समझने में उन्हें समय लग सकता है। यह बच्चे की आनुभाविक समझ और परिपक्वता पर निर्भर करता है जो धीरे-धीरे विकसित होती है और हर बच्चे में अलग-अलग हो सकती है। इसके साथ ही वजन या आयतन को लेकर उनके मन में कुछ गलत धारणाएँ भी हो सकती हैं। उदाहरण के लिए उनका मानना हो सकता है कि दो चीजों में से, बड़ी दिखने वाली चीज का वजन ज्यादा होता है। या वे सोच सकते हैं कि एक लम्बे बरतन में छोटे बरतन से ज्यादा सामग्री आती है। हालाँकि शिक्षक सार्थक गतिविधियाँ करवाकर और साथ ही साथ अपने अवलोकनों व विचारों को स्पष्ट रूप से समझने में उनका मार्गदर्शन कर विकास की गति को बढ़ा सकते हैं। बातचीत के जरिए शिक्षक बच्चों की कुछ गलतफहमियों को दूर कर सकते हैं और सही समझ बनाने में उनकी मदद कर सकते हैं। मापन के सिद्धान्तों को समझने के लिए सबसे पहले संरक्षण के सिद्धान्त को समझना जरूरी है।
अवधि :
(दिन )
गतिविधि चरण:
छोटे (3 से 5 साल के) बच्चों के लिए प्राथमिक गतिविधियाँ
लम्बाई के गुणधर्म को समझना
सामग्री : नलियाँ, इस्तेमाल किए हुए स्कैच पेन, आइसक्रीम की डण्डियाँ या टूथपिक्स, अलग-अलग लम्बाई की रंगीन कागज की पट्टियाँ या लकड़ी की छडि़याँ, अलग-अलग लम्बाई की रंगीन रस्सियाँ या जूते के फीते, पेंसिलें, मोती और पिरोने के लिए डोर।
सामग्री का चयन ध्यानपूर्वक करना चाहिए ताकि बच्चे केवल एक गुणधर्म पर ही ध्यान केन्द्रित कर सकें। बड़ी द्विविमीय और त्रिविमीय आकृतियों से उनका परिचय बाद में कराया जा सकता है क्योंकि इनमें एक-से ज्यादा माप (लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई) होती हैं।
लम्बा, छोटा, ऊँचा, सबसे लम्बा, सबसे छोटा, मोटा, पतला, चौड़ा, सँकरा, दूरी से सम्बन्धित (पास, दूर) भाषा से बच्चों का परिचय कराएँ।
एक ही किस्म की दो चीजों की तुलना करना
छोटा और बड़ा पहचानने के लिए बच्चों से खड़ी हुई किन्हीं भी दो चीजों जैसे दो पेड़ों या जमीन पर खड़े दो बच्चों की तुलना करने को कहें। चूँकि दोनों चीजें एक ही समतल पर खड़ी हैं इसलिए गड़बड़ी की कोई गुंजाइश ही नहीं है। अब उन्हें दो छडि़याँ या कागज की दो पट्टियाँ देकर उनमें से छोटी व बड़ी छड़ी/पट्टी पहचानने को कहें। पट्टियों को नापने का एक फायदा यह है कि इन्हें एक के ऊपर एक रखा जा सकता है। पट्टियों की तुलना करने के लिए बच्चों को उन्हें एक-दूसरे के समीप लाना होगा। इस समय शिक्षक को यह जरूर जाँचना चाहिए कि बच्चे ने पट्टियों को इस तरह रखा हो कि उनके निचले सिरे का शुरुआती बिन्दु एक हो। यदि ऐसा न हो तो शिक्षक को यह समझने में बच्चे की मदद करनी होगी कि लम्बाई की तुलना करने के लिए चीजों के शुरुआती बिन्दुओं को एक सीध में रखना जरूरी है।
अलग-अलग किस्म की दो चीजों की तुलना करना
उन्हें एक पैन और एक स्केल, चॉक और डस्टर, एक पेंसिल और कैंची की लम्बाई की तुलना करने को कहें।
क्रियाकलाप-1: हर बच्चे को एक नली दें और उनसे कहें कि नली के बराबर लम्बाई की कोई एक चीज लेकर आएँ। वे कोई पेंसिल, किताब, पत्ती या फिर झाड़ू की कोई सींक ला सकते हैं। ऐसी चीज को खोजने में वे कई सारी चीजों के साथ नली की तुलना करेंगे और इस तरह वे चीजों की तुलना करने का अभ्यास अर्जित करेंगे।
दो से ज्यादा चीजों की तुलना करना
बच्चों को अलग-अलग लम्बाई वाली चीजों (पेंसिलें, चॉक, कागज की पट्टियाँ, डण्डियाँ इत्यादि) का एक समूह दें। वे इन चीजों को इनकी लम्बाई के हिसाब से एक क्रम में जमा सकते हैं। बच्चे मोतियों की माला बना सकते हैं और इन्हें इनकी लम्बाई के हिसाब से क्रम में टाँग सकते हैं। ध्यान दें कि मोतियों की माला बनाने से बच्चों को संख्याओं की तुलना करने का अवसर भी मिलता है। नीले मोतियों की माला लाल मोतियों की माला से दो दाने बड़ी है।
क्रियाकलाप- 2 : बच्चों से कहें कि 4-4 बच्चों के समूह बना लें और हर समूह में बच्चे अपनी-अपनी ऊँचाई के हिसाब से खड़े हों।
क्रियाकलाप- 3 : छाँटने की गतिविधि : सामग्री : चार अलग-अलग लम्बाई की रंगीन नलियाँ या क्रेयान्स जैसा कि चित्र 1 में दिखाया गया है। हर माप की कई सारी सामग्री हो। बच्चों से बराबर लम्बाई की नलियों या क्रेयान्स का समूह बनाने को कहें।
अलग-अलग सन्दर्भों में ‘चौड़ा’ व ‘सँकरा’ शब्द से परिचय कराना
दरवाजे को खोलें व बन्द करें और अन्तराल (चौड़ा और सँकरा) की ओर इशारा करें या कागज की चौड़ी/सँकरी पट्टियों के जरिए परिचय कराएँ। छोटे बच्चों को शारीरिक गतिविधियों में ज्यादा मजा आता है और वे इन शब्दों के मतलब को अपनी आँखें खोलकर (‘चौड़ी खोलकर’) बन्दकर (‘कसके बन्द कर’) और अपनी उँगलियों को फैलाकर आदि गतिविधियों के जरिए दर्शा सकते हैं।
बच्चों को लम्बाई के अन्य रूप जैसे चौड़ाई व मोटाई को जाँचने के अवसर दें। एक बार फिर यह सुनिश्चित करें कि वे चीजों को एक सीध में रखें। उन्हें दो नोटबुकों की चौड़ाई, दो पेंसिल बॉक्सों की चौड़ाई आदि की तुलना करने को कहें। उन्हें उचित शब्दों का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करें। जैसे अँग्रेजी की नोटबुक गणित की नोटबुक से चौड़ी है या उसका पेंसिल बॉक्स मेरे पेंसिल बॉक्स से सँकरा है आदि। उन्हें एक पेंसिल बॉक्स और चॉक के एक डिब्बे की, एक डस्टर और एक मापक (Ruler) की चौड़ाई की तुलना करने को कहें।
इसी तरह एक मोटी और एक पतली किताब, एक मोटी और एक पतली लकीर की ओर इशारा करके मोटा और पतला जैसे शब्दों से उनका परिचय कराएँ। वे अपने हाथ की अलग-अलग उँगलियों को देख सकते हैं और उन्हें इन शब्दों में व्यक्त कर सकते हैं।
क्रियाकलाप- 4 : बच्चों के हर समूह से चार-चार डण्डियाँ इकट्ठी करने को कहें और उन्हें मोटा, पतला, उससे मोटा, उससे पतला, उसके बराबर मोटा, उन दोनों के बीच का आदि शब्दों का इस्तेमाल कर डण्डियों के बारे में बताने को कहें। उन्हें डण्डियों को उनकी मोटाई के हिसाब से क्रम में जमाने को कहें।
एक से ज्यादा गुणों के आधार पर चीजों की तुलना करना
द्विविमीय आकृतियों व द्विविमीय चीजों की स्थिति में अलग-अलग गुणों की तुलना की जा सकती है।
जैसे पाठ्यपुस्तक नोटबुक से ज्यादा लम्बी और चौड़ी है। दरवाजा खिड़की से लम्बा है लेकिन खिड़की दरवाजे से चौड़ी है। बैंच मेज से चौड़ी है लेकिन मेज बैंच से लम्बी है इत्यादि।
शिक्षक बच्चों के सामने सवाल भी रख सकते हैं : क्या कोई ऐसा बॉक्स है जिसमें यह डस्टर रखा जा सकता है? बच्चों को कक्षा में मौजूद विभिन्न बॉक्सों के साथ प्रयोग करने दें और कोई डिब्बा डस्टर रखने के उपयुक्त क्यों है या क्यों नहीं है इसका कारण बताने को कहें। क्या यह चॉक के डिब्बे में आ पाएगा? नहीं, चॉक का डिब्बा इतना लम्बा नहीं है। क्या डस्टर पेंसिल बॉक्स में आ पाएगा? हाँ, आ सकता है क्योंकि पेंसिल बॉक्स डस्टर से ज्यादा लम्बा और ज्यादा चौड़ा है। इसी तरह के कई अन्य सवाल भी पूछे जा सकते हैं। क्या यह किताब इस बस्ते में आ पाएगी? क्या यह नक्शा इस जगह में आ पाएगा?
वस्तु की क्षमता/आयतन के गुण को समझना
सामग्री : बड़ा-सा एक टब या उपयुक्त आकार का एक सैंडपिट (रेत से भरा बड़ा-सा बरतन जिसमें बच्चे खेल सकते हों), अलग-अलग माप के कप, लम्बे सँकरे बरतन, छोटे चौड़े बरतन, कबाड़ हुई पारदर्शी प्लास्टिक की बोतलें, पारदर्शी प्लास्टिक के कटोरे, अलग-अलग माप के गत्ते के डिब्बे, रेत, मोती, घन और डिब्बे, ईंटें या लकड़ी के गुटके, बालटी, मग, नली, छन्नी और पानी।
क्षमता से सम्बन्धित सिद्धान्तों को समझने के लिए बच्चों को ऐसी गतिविधियों का अनुभव चाहिए जिनमें भरना, उड़ेलना, जमाना, बाँधना, खाली करना शामिल हो। छोटे बच्चों के साथ आयतन या क्षमता शब्दों का इस्तेमाल न करें। इन शब्दों का इस्तेमाल करने के बजाए हमें उनसे इस तरह से सवाल पूछने होंगे : क्या इस बरतन में उस बरतन से ज्यादा सामग्री आती है?
बच्चों को हल्की गीली रेत को बरतनों में भरने और फिर बरतनों को उलटकर रेत के साँचे बनाने में बहुत मजा आता है। सम्भवत: यह आकृति और क्षमता से सम्बन्धित सिद्धान्तों को प्रदर्शित करने का सबसे बेहतर अवसर होता है। एक बार जब बच्चे अलग-अलग चीजों से जमीन पर कई सारे रेत के साँचे बना लें तो एक दिलचस्प सवाल पूछा जा सकता है : हर साँचे को बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए बरतन को पहचानो।
दूसरी बात, साँचे कई दिलचस्प आकृतियों में हो सकते हैं निर्भर करता है कि उन्हें बनाने के लिए किस बरतन का इस्तेमाल किया गया है जैसे बेलन, शंकु, सिरकटे शंकु, घन, घनाभ आदि। बच्चे इन आकृतियों का अपने तरीके से वर्णन कर सकते हैं। तीसरी बात, बड़े साँचे को खोजने पर चर्चा भी की जा सकती है।
बच्चों से एक बरतन में रेत भरकर और फिर उसी रेत को किसी दूसरे बरतन में उड़ेलकर दोनों बरतनों की क्षमताओं की तुलना करने को कहें। उन्हें अलग-अलग बरतनों का इस्तेमाल करके इस गतिविधि को दोहराने को कहें। बच्चे से बातचीत शुरू करें और जाँचें कि वह यह समझ पा रहा है या नहीं कि यदि रेत दूसरे बरतन को पूरी तरह नहीं भर पाती तो इसका मतलब है कि दूसरे बरतन की क्षमता ज्यादा है। और यदि दूसरा बरतन लबालब भर जाता है तो इसका मतलब है पहले बरतन की क्षमता ज्यादा है।
छोटे बच्चों का ऐसा सोचना कि एक लम्बे बरतन की क्षमता एक छोटे बरतन की क्षमता से ज्यादा होती है काफी आम बात है। केवल भरने और फिर जाँचने के अनुभवों से ही वे यह समझना शुरू करते हैं कि ऐसा हमेशा सच हो यह जरूरी नहीं। पारदर्शी बरतनों का उपयोग करने से बच्चों को अलग-अलग बरतनों की क्षमताओं को देखने में आसानी होती है। बच्चों को बराबर लम्बाई के प्लास्टिक के दो बरतन दें जिनमें से एक का आधार सँकरा हो और दूसरे का चौड़ा। उन्हें दोनों बरतनों में एक-एक कप पानी डालने को कहें। फिर पूछें : एक बरतन में पानी की ऊँचाई दूसरे बरतन में पानी की ऊँचाई से ज्यादा क्यों है?
उन्हें समझाएँ कि एक बरतन के आधार की माप दूसरे बरतन के आधार की माप से ज्यादा है। गलतफहमियों को दूर करने के लिए ऐसे कुछ अन्य प्रयोग ढूँढ निकालें।
वजन के गुण को समझना
सामग्री : बड़ा टब, समान माप के कुछ कप या मग, गत्ते के छोटे-छोटे डिब्बे, रेत, पानी, मोती, इस्तेमाल किए हुए पैन, पत्तियाँ, चॉक के टुकड़े, अलग-अलग वजन की कई चीजें।
बच्चों को एक हाथ में एक चीज और दूसरे हाथ में दूसरी चीज लेकर दोनों के वजनों की तुलना करने को कहें।
बच्चों से कहें कि वे एक कप को अलग-अलग चीजें जैसे रेत, चॉक के टुकड़े, पत्थर आदि से भरें और फिर उनसे पूछें: सबसे भारी चीज कौन-सी है? कौन-सी चीज सबसे हल्की है?
लम्बाई और वजन या आयतन और वजन को लेकर बच्चों की कुछ गलत धारणाएँ हो सकती हैं। वजन के सम्बन्ध में किसी भी तरह की गलतफहमी से बचाने और उसे दूर करने के लिए आप उन्हें साथ ही साथ विपरीत उदाहरण भी देते चलें जैसे कि नीचे दिए गए हैं।
बड़ी चीज का वजन हमेशा ज्यादा नहीं होता।
बच्चों को एक बड़ा-सा गुब्बारा और टेनिस की एक गेंद दें। उनसे कहें कि दोनों चीजों के वजनों की तुलना करें और देखें कि आकार में बड़ा होने के बावजूद गुब्बारे का वजन कम है। उन्हें दो अन्य चीजें भी दें जिनमें बड़ी चीज का वजन ज्यादा हो जैसे कि एक मोटी किताब और एक पतली किताब।
ज्यादा मात्रा की चीज का वजन हमेशा ज्यादा नहीं होता।
एक बड़े-से पैकेट में रुई या बुरादा भरें। एक छोटे पैकेट में रेत भरें ताकि रेत वाले पैकेट का वजन बुरादे वाले पैकेट के वजन से ज्यादा हो। बच्चों से कहें कि दोनों पैकेट उठाएँ और पता करें कि किसका वजन ज्यादा है। समान लम्बाई की चीजों का वजन अलग-अलग हो सकता है। बच्चों को समान लम्बाई की कई चीजें दें जैसे कि कागज की एक पट्टी और लकड़ी या धातु की कोई छड़। उनसे कहें कि दोनों हाथों में एक-एक चीज पकड़ें और उनके वजन की तुलना करें। समान लम्बाई वाली अन्य कई चीजों के जोड़ों के साथ भी यही गतिविधि करें।
यदि एक तरह की चीजें ज्यादा संख्या में हों और एक दूसरी तरह की चीजें कम संख्या में हो तो यह जरूरी नहीं कि हमेशा ज्यादा संख्या वाली चीजों का वजन कम संख्या वाली चीजों से ज्यादा हो।
बच्चों को पाँच गुब्बारे या टेबल टेनिस (पिंग-पॉग) की गेंदें और एक किक्रेट की गेंद दें। उनसे कहें कि दोनों के वजन की तुलना करें और देखें। उन्हें यह समझने दें कि जरूरी नहीं कि ज्यादा संख्या मतलब ज्यादा वजन हो।
कक्षा के एक छोर से दूसरे छोर तक एक रस्सी बाँधे जिसमें एक डलिया लटक रही हो। रस्सी को कसकर बाँधे। बच्चों से कहें कि वे डलिया में अलग-अलग चीजें डालें और सबसे भारी और सबसे हल्की चीज का पता लगाएँ।
कई कारणों से मापन का पाठ्यचर्या में एक विशिष्ट स्थान होता है। मानव जीवन की रोजमर्रा की महत्वपूर्ण गतिविधि होने के कारण घर व अन्य जगहों पर अलग-अलग परिस्थितियों में बच्चों का मापन से स्वाभाविक तौर पर सामना होता है। इसके अलावा मापन संख्याओं और ज्यामिति दोनों से जुड़ा हुआ है। इसमें स्थितीय आयाम भी शामिल हैं और गिनती भी। मापन में हम किसी एक गुणधर्म को किसी दूसरे गुणधर्म में मापते हैं। यही नहीं मापन में हम एक सतत मात्रा (non-discrete quantity) को असतत संख्याओं (discrete numbers) में व्यक्त करते हैं। चूँकि दी गई किसी लम्बाई या वजन को मापने के बहुत सारे तरीके होते हैं तो कौन-सा माप इस्तेमाल करना है यह मापन के आपके उद्देश्य पर निर्भर करता है। बच्चों को यह समझने की जरूरत है कि कुछ परिस्थितियों में हमें एकदम सटीक मापन की जरूरत होती है और कुछ में केवल सन्निकट माप की। मापन की अवधारणाओं की मजबूत बुनियाद विशेषतौर पर दशमलव संख्याओं की बेहतर समझ में बदलती है।
मापन के शिक्षण का केन्द्र मापन की गतिविधियों का अभ्यास करवाने के बजाए मापन की सही अवधारणा को विकसित करने पर ज्यादा होना चाहिए। जैसे-जैसे विषय पर चर्चा आगे बढ़ती जाएगी बच्चे यह समझना शुरू कर देंगे कि किन परिस्थितियों में मापन का इस्तेमाल किया जा सकता है और किस स्थिति में कौन-सा माप इस्तेमाल करना उपयुक्त होगा। यह भी बेहद जरूरी है कि यथासम्भव आप ऐसी गतिविधियाँ करवाएँ जिनमें कोई कार्य अर्न्तनिहित हो और कार्य भी ऐसा हो जो न केवल दिलचस्प हो बल्कि बच्चों के लिए चुनौतीपूर्ण भी हो और वे उसे उत्साह से करें।
इस लेख में केवल लम्बाई, वजन और क्षमता के मापन पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। मापन में और भी कई माप शामिल होते हैं: जैसे समय की माप, तापमान, गति इत्यादि।
मापन की गतिविधियों के लिए अक्सर जिन साधनों की जरूरत होती है वे सीमित संख्या में हो सकते हैं। इसके साथ ही इन गतिविधियों में बच्चों के मिल-जुलकर काम करने (जैसे किसी रस्सी को कसकर पकड़ना या दो चीजों को साथ लाना) की खासी जरूरत होती है। बेहतर होगा चार-चार बच्चों के समूह बनाए जाएँ और हर समूह को एक कार्य सौंपा जाए।
मापन की अवधारणाओं को समझने के लिए छोटे बच्चों को अनुभव और समय दोनों की जरूरत होती है। मात्रा की जानकारी और इससे जुड़ी भाषा की समझ दोनों साथ-साथ आती हैं। छोटा, बड़ा, ज्यादा और कम जैसे शब्द बच्चे काफी कम उम्र में ही सीख लेते हैं। हालाँकि मात्रा या संख्या के संरक्षण के सिद्धान्त को समझने में उन्हें समय लग सकता है। यह बच्चे की आनुभाविक समझ और परिपक्वता पर निर्भर करता है जो धीरे-धीरे विकसित होती है और हर बच्चे में अलग-अलग हो सकती है। इसके साथ ही वजन या आयतन को लेकर उनके मन में कुछ गलत धारणाएँ भी हो सकती हैं। उदाहरण के लिए उनका मानना हो सकता है कि दो चीजों में से, बड़ी दिखने वाली चीज का वजन ज्यादा होता है। या वे सोच सकते हैं कि एक लम्बे बरतन में छोटे बरतन से ज्यादा सामग्री आती है। हालाँकि शिक्षक सार्थक गतिविधियाँ करवाकर और साथ ही साथ अपने अवलोकनों व विचारों को स्पष्ट रूप से समझने में उनका मार्गदर्शन कर विकास की गति को बढ़ा सकते हैं। बातचीत के जरिए शिक्षक बच्चों की कुछ गलतफहमियों को दूर कर सकते हैं और सही समझ बनाने में उनकी मदद कर सकते हैं। मापन के सिद्धान्तों को समझने के लिए सबसे पहले संरक्षण के सिद्धान्त को समझना जरूरी है।
अवधि :
(दिन )
गतिविधि चरण:
छोटे (3 से 5 साल के) बच्चों के लिए प्राथमिक गतिविधियाँ
लम्बाई के गुणधर्म को समझना
सामग्री : नलियाँ, इस्तेमाल किए हुए स्कैच पेन, आइसक्रीम की डण्डियाँ या टूथपिक्स, अलग-अलग लम्बाई की रंगीन कागज की पट्टियाँ या लकड़ी की छडि़याँ, अलग-अलग लम्बाई की रंगीन रस्सियाँ या जूते के फीते, पेंसिलें, मोती और पिरोने के लिए डोर।
सामग्री का चयन ध्यानपूर्वक करना चाहिए ताकि बच्चे केवल एक गुणधर्म पर ही ध्यान केन्द्रित कर सकें। बड़ी द्विविमीय और त्रिविमीय आकृतियों से उनका परिचय बाद में कराया जा सकता है क्योंकि इनमें एक-से ज्यादा माप (लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई) होती हैं।
लम्बा, छोटा, ऊँचा, सबसे लम्बा, सबसे छोटा, मोटा, पतला, चौड़ा, सँकरा, दूरी से सम्बन्धित (पास, दूर) भाषा से बच्चों का परिचय कराएँ।
एक ही किस्म की दो चीजों की तुलना करना
छोटा और बड़ा पहचानने के लिए बच्चों से खड़ी हुई किन्हीं भी दो चीजों जैसे दो पेड़ों या जमीन पर खड़े दो बच्चों की तुलना करने को कहें। चूँकि दोनों चीजें एक ही समतल पर खड़ी हैं इसलिए गड़बड़ी की कोई गुंजाइश ही नहीं है। अब उन्हें दो छडि़याँ या कागज की दो पट्टियाँ देकर उनमें से छोटी व बड़ी छड़ी/पट्टी पहचानने को कहें। पट्टियों को नापने का एक फायदा यह है कि इन्हें एक के ऊपर एक रखा जा सकता है। पट्टियों की तुलना करने के लिए बच्चों को उन्हें एक-दूसरे के समीप लाना होगा। इस समय शिक्षक को यह जरूर जाँचना चाहिए कि बच्चे ने पट्टियों को इस तरह रखा हो कि उनके निचले सिरे का शुरुआती बिन्दु एक हो। यदि ऐसा न हो तो शिक्षक को यह समझने में बच्चे की मदद करनी होगी कि लम्बाई की तुलना करने के लिए चीजों के शुरुआती बिन्दुओं को एक सीध में रखना जरूरी है।
अलग-अलग किस्म की दो चीजों की तुलना करना
उन्हें एक पैन और एक स्केल, चॉक और डस्टर, एक पेंसिल और कैंची की लम्बाई की तुलना करने को कहें।
क्रियाकलाप-1: हर बच्चे को एक नली दें और उनसे कहें कि नली के बराबर लम्बाई की कोई एक चीज लेकर आएँ। वे कोई पेंसिल, किताब, पत्ती या फिर झाड़ू की कोई सींक ला सकते हैं। ऐसी चीज को खोजने में वे कई सारी चीजों के साथ नली की तुलना करेंगे और इस तरह वे चीजों की तुलना करने का अभ्यास अर्जित करेंगे।
दो से ज्यादा चीजों की तुलना करना
बच्चों को अलग-अलग लम्बाई वाली चीजों (पेंसिलें, चॉक, कागज की पट्टियाँ, डण्डियाँ इत्यादि) का एक समूह दें। वे इन चीजों को इनकी लम्बाई के हिसाब से एक क्रम में जमा सकते हैं। बच्चे मोतियों की माला बना सकते हैं और इन्हें इनकी लम्बाई के हिसाब से क्रम में टाँग सकते हैं। ध्यान दें कि मोतियों की माला बनाने से बच्चों को संख्याओं की तुलना करने का अवसर भी मिलता है। नीले मोतियों की माला लाल मोतियों की माला से दो दाने बड़ी है।
क्रियाकलाप- 2 : बच्चों से कहें कि 4-4 बच्चों के समूह बना लें और हर समूह में बच्चे अपनी-अपनी ऊँचाई के हिसाब से खड़े हों।
क्रियाकलाप- 3 : छाँटने की गतिविधि : सामग्री : चार अलग-अलग लम्बाई की रंगीन नलियाँ या क्रेयान्स जैसा कि चित्र 1 में दिखाया गया है। हर माप की कई सारी सामग्री हो। बच्चों से बराबर लम्बाई की नलियों या क्रेयान्स का समूह बनाने को कहें।
अलग-अलग सन्दर्भों में ‘चौड़ा’ व ‘सँकरा’ शब्द से परिचय कराना
दरवाजे को खोलें व बन्द करें और अन्तराल (चौड़ा और सँकरा) की ओर इशारा करें या कागज की चौड़ी/सँकरी पट्टियों के जरिए परिचय कराएँ। छोटे बच्चों को शारीरिक गतिविधियों में ज्यादा मजा आता है और वे इन शब्दों के मतलब को अपनी आँखें खोलकर (‘चौड़ी खोलकर’) बन्दकर (‘कसके बन्द कर’) और अपनी उँगलियों को फैलाकर आदि गतिविधियों के जरिए दर्शा सकते हैं।
बच्चों को लम्बाई के अन्य रूप जैसे चौड़ाई व मोटाई को जाँचने के अवसर दें। एक बार फिर यह सुनिश्चित करें कि वे चीजों को एक सीध में रखें। उन्हें दो नोटबुकों की चौड़ाई, दो पेंसिल बॉक्सों की चौड़ाई आदि की तुलना करने को कहें। उन्हें उचित शब्दों का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करें। जैसे अँग्रेजी की नोटबुक गणित की नोटबुक से चौड़ी है या उसका पेंसिल बॉक्स मेरे पेंसिल बॉक्स से सँकरा है आदि। उन्हें एक पेंसिल बॉक्स और चॉक के एक डिब्बे की, एक डस्टर और एक मापक (Ruler) की चौड़ाई की तुलना करने को कहें।
इसी तरह एक मोटी और एक पतली किताब, एक मोटी और एक पतली लकीर की ओर इशारा करके मोटा और पतला जैसे शब्दों से उनका परिचय कराएँ। वे अपने हाथ की अलग-अलग उँगलियों को देख सकते हैं और उन्हें इन शब्दों में व्यक्त कर सकते हैं।
क्रियाकलाप- 4 : बच्चों के हर समूह से चार-चार डण्डियाँ इकट्ठी करने को कहें और उन्हें मोटा, पतला, उससे मोटा, उससे पतला, उसके बराबर मोटा, उन दोनों के बीच का आदि शब्दों का इस्तेमाल कर डण्डियों के बारे में बताने को कहें। उन्हें डण्डियों को उनकी मोटाई के हिसाब से क्रम में जमाने को कहें।
एक से ज्यादा गुणों के आधार पर चीजों की तुलना करना
द्विविमीय आकृतियों व द्विविमीय चीजों की स्थिति में अलग-अलग गुणों की तुलना की जा सकती है।
जैसे पाठ्यपुस्तक नोटबुक से ज्यादा लम्बी और चौड़ी है। दरवाजा खिड़की से लम्बा है लेकिन खिड़की दरवाजे से चौड़ी है। बैंच मेज से चौड़ी है लेकिन मेज बैंच से लम्बी है इत्यादि।
शिक्षक बच्चों के सामने सवाल भी रख सकते हैं : क्या कोई ऐसा बॉक्स है जिसमें यह डस्टर रखा जा सकता है? बच्चों को कक्षा में मौजूद विभिन्न बॉक्सों के साथ प्रयोग करने दें और कोई डिब्बा डस्टर रखने के उपयुक्त क्यों है या क्यों नहीं है इसका कारण बताने को कहें। क्या यह चॉक के डिब्बे में आ पाएगा? नहीं, चॉक का डिब्बा इतना लम्बा नहीं है। क्या डस्टर पेंसिल बॉक्स में आ पाएगा? हाँ, आ सकता है क्योंकि पेंसिल बॉक्स डस्टर से ज्यादा लम्बा और ज्यादा चौड़ा है। इसी तरह के कई अन्य सवाल भी पूछे जा सकते हैं। क्या यह किताब इस बस्ते में आ पाएगी? क्या यह नक्शा इस जगह में आ पाएगा?
वस्तु की क्षमता/आयतन के गुण को समझना
सामग्री : बड़ा-सा एक टब या उपयुक्त आकार का एक सैंडपिट (रेत से भरा बड़ा-सा बरतन जिसमें बच्चे खेल सकते हों), अलग-अलग माप के कप, लम्बे सँकरे बरतन, छोटे चौड़े बरतन, कबाड़ हुई पारदर्शी प्लास्टिक की बोतलें, पारदर्शी प्लास्टिक के कटोरे, अलग-अलग माप के गत्ते के डिब्बे, रेत, मोती, घन और डिब्बे, ईंटें या लकड़ी के गुटके, बालटी, मग, नली, छन्नी और पानी।
क्षमता से सम्बन्धित सिद्धान्तों को समझने के लिए बच्चों को ऐसी गतिविधियों का अनुभव चाहिए जिनमें भरना, उड़ेलना, जमाना, बाँधना, खाली करना शामिल हो। छोटे बच्चों के साथ आयतन या क्षमता शब्दों का इस्तेमाल न करें। इन शब्दों का इस्तेमाल करने के बजाए हमें उनसे इस तरह से सवाल पूछने होंगे : क्या इस बरतन में उस बरतन से ज्यादा सामग्री आती है?
बच्चों को हल्की गीली रेत को बरतनों में भरने और फिर बरतनों को उलटकर रेत के साँचे बनाने में बहुत मजा आता है। सम्भवत: यह आकृति और क्षमता से सम्बन्धित सिद्धान्तों को प्रदर्शित करने का सबसे बेहतर अवसर होता है। एक बार जब बच्चे अलग-अलग चीजों से जमीन पर कई सारे रेत के साँचे बना लें तो एक दिलचस्प सवाल पूछा जा सकता है : हर साँचे को बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए बरतन को पहचानो।
दूसरी बात, साँचे कई दिलचस्प आकृतियों में हो सकते हैं निर्भर करता है कि उन्हें बनाने के लिए किस बरतन का इस्तेमाल किया गया है जैसे बेलन, शंकु, सिरकटे शंकु, घन, घनाभ आदि। बच्चे इन आकृतियों का अपने तरीके से वर्णन कर सकते हैं। तीसरी बात, बड़े साँचे को खोजने पर चर्चा भी की जा सकती है।
बच्चों से एक बरतन में रेत भरकर और फिर उसी रेत को किसी दूसरे बरतन में उड़ेलकर दोनों बरतनों की क्षमताओं की तुलना करने को कहें। उन्हें अलग-अलग बरतनों का इस्तेमाल करके इस गतिविधि को दोहराने को कहें। बच्चे से बातचीत शुरू करें और जाँचें कि वह यह समझ पा रहा है या नहीं कि यदि रेत दूसरे बरतन को पूरी तरह नहीं भर पाती तो इसका मतलब है कि दूसरे बरतन की क्षमता ज्यादा है। और यदि दूसरा बरतन लबालब भर जाता है तो इसका मतलब है पहले बरतन की क्षमता ज्यादा है।
छोटे बच्चों का ऐसा सोचना कि एक लम्बे बरतन की क्षमता एक छोटे बरतन की क्षमता से ज्यादा होती है काफी आम बात है। केवल भरने और फिर जाँचने के अनुभवों से ही वे यह समझना शुरू करते हैं कि ऐसा हमेशा सच हो यह जरूरी नहीं। पारदर्शी बरतनों का उपयोग करने से बच्चों को अलग-अलग बरतनों की क्षमताओं को देखने में आसानी होती है। बच्चों को बराबर लम्बाई के प्लास्टिक के दो बरतन दें जिनमें से एक का आधार सँकरा हो और दूसरे का चौड़ा। उन्हें दोनों बरतनों में एक-एक कप पानी डालने को कहें। फिर पूछें : एक बरतन में पानी की ऊँचाई दूसरे बरतन में पानी की ऊँचाई से ज्यादा क्यों है?
उन्हें समझाएँ कि एक बरतन के आधार की माप दूसरे बरतन के आधार की माप से ज्यादा है। गलतफहमियों को दूर करने के लिए ऐसे कुछ अन्य प्रयोग ढूँढ निकालें।
वजन के गुण को समझना
सामग्री : बड़ा टब, समान माप के कुछ कप या मग, गत्ते के छोटे-छोटे डिब्बे, रेत, पानी, मोती, इस्तेमाल किए हुए पैन, पत्तियाँ, चॉक के टुकड़े, अलग-अलग वजन की कई चीजें।
बच्चों को एक हाथ में एक चीज और दूसरे हाथ में दूसरी चीज लेकर दोनों के वजनों की तुलना करने को कहें।
बच्चों से कहें कि वे एक कप को अलग-अलग चीजें जैसे रेत, चॉक के टुकड़े, पत्थर आदि से भरें और फिर उनसे पूछें: सबसे भारी चीज कौन-सी है? कौन-सी चीज सबसे हल्की है?
लम्बाई और वजन या आयतन और वजन को लेकर बच्चों की कुछ गलत धारणाएँ हो सकती हैं। वजन के सम्बन्ध में किसी भी तरह की गलतफहमी से बचाने और उसे दूर करने के लिए आप उन्हें साथ ही साथ विपरीत उदाहरण भी देते चलें जैसे कि नीचे दिए गए हैं।
बड़ी चीज का वजन हमेशा ज्यादा नहीं होता।
बच्चों को एक बड़ा-सा गुब्बारा और टेनिस की एक गेंद दें। उनसे कहें कि दोनों चीजों के वजनों की तुलना करें और देखें कि आकार में बड़ा होने के बावजूद गुब्बारे का वजन कम है। उन्हें दो अन्य चीजें भी दें जिनमें बड़ी चीज का वजन ज्यादा हो जैसे कि एक मोटी किताब और एक पतली किताब।
ज्यादा मात्रा की चीज का वजन हमेशा ज्यादा नहीं होता।
एक बड़े-से पैकेट में रुई या बुरादा भरें। एक छोटे पैकेट में रेत भरें ताकि रेत वाले पैकेट का वजन बुरादे वाले पैकेट के वजन से ज्यादा हो। बच्चों से कहें कि दोनों पैकेट उठाएँ और पता करें कि किसका वजन ज्यादा है। समान लम्बाई की चीजों का वजन अलग-अलग हो सकता है। बच्चों को समान लम्बाई की कई चीजें दें जैसे कि कागज की एक पट्टी और लकड़ी या धातु की कोई छड़। उनसे कहें कि दोनों हाथों में एक-एक चीज पकड़ें और उनके वजन की तुलना करें। समान लम्बाई वाली अन्य कई चीजों के जोड़ों के साथ भी यही गतिविधि करें।
यदि एक तरह की चीजें ज्यादा संख्या में हों और एक दूसरी तरह की चीजें कम संख्या में हो तो यह जरूरी नहीं कि हमेशा ज्यादा संख्या वाली चीजों का वजन कम संख्या वाली चीजों से ज्यादा हो।
बच्चों को पाँच गुब्बारे या टेबल टेनिस (पिंग-पॉग) की गेंदें और एक किक्रेट की गेंद दें। उनसे कहें कि दोनों के वजन की तुलना करें और देखें। उन्हें यह समझने दें कि जरूरी नहीं कि ज्यादा संख्या मतलब ज्यादा वजन हो।
कक्षा के एक छोर से दूसरे छोर तक एक रस्सी बाँधे जिसमें एक डलिया लटक रही हो। रस्सी को कसकर बाँधे। बच्चों से कहें कि वे डलिया में अलग-अलग चीजें डालें और सबसे भारी और सबसे हल्की चीज का पता लगाएँ।
मूल्यांकन की अवधारणा
मूल्यांकन वह प्रक्रिया है जिसके आधार पर हम किसी छात्र के ज्ञान का आकलन करते हैं। मूल्यांकन के द्वारा ही छात्र की किसी विषय में कमियों, उसकी किसी विषय के प्रति रूचि और उसकी प्रतिभा का आकलन किया जाता है। इस पोस्ट में हम आपको मूल्यांकन का अर्थ , मूल्यांकन की परिभाषा, मूल्यांकन के सोपान, मूल्यांकन के उद्देश्य, मूल्यांकन के महत्व की विस्तृत जानकारी देंगे।
मूल्यांकन की परिभाषा :-
क्विलिन व हन्ना के अनुसार मूल्यांकन की परिभाषा :-
’’छात्रों के व्यवहार में विद्यालय द्वारा लाए गए परिवर्तनों के विषय में प्रमाणों के संकलन और उसकी व्याख्या करने की प्रक्रिया ही मूल्यांकन है।’’
एम एन डन्डेकर के अनुसार मूल्यांकन की परिभाषा :-
’’मूल्यांकन की परिभाषा एक व्यवस्थित रूप में की जा सकती है जो इस बात को निश्चित करती है कि विद्यार्थी किस सीमा तक उद्देश्य प्राप्त करने में समर्थ रहा।’’
मूल्याकंन का अर्थ, मूल्याकंन की परिभाषा, मूल्यांकन के सोपान, मूल्यांकन के उद्देश्य, मूल्याकन का महत्व।
मूल्यांकन के उद्देश्य :-
मूल्याकन के उद्देश्य यद्यपि मापन एवं मूल्यांकन के पूर्व वर्णित संकल्पना से इनके उद्देश्य स्पष्ट हो जाते हैं, फिर भी शैक्षिक मापन तथा मूल्यांकन के प्रमुख उद्देश्यों को निम्नवत् ढ़ंग से सूचीबद्ध किया जा सकता है-
1. ज्ञान की जाँच एवं विकास की जानकारी :-
विद्यार्थी निर्धारित पाठ्यक्रम से उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक प्राप्त कर लिए हैं, उससे उनका विकास किस सीमा तक हुआ, विकास में बाधक तत्व कौन-कौन से हैं, इत्यादि की जानकारी करना इनका प्रमुख उद्देश्य है।
2. अधिगम की प्रेरणा :-
मापन तथा मूल्यांकन द्वारा अधिगम को प्रेरित किया जाता है और पूर्व निर्धारित उद्देश्यों तक पहुँचने का प्रयास किया जाता है।
3. व्यक्तिगत भिन्नताओं की जानकारी :-
मापन व मूल्यांकन के माध्यम से छात्रों के पारस्परिक भिन्नता की जानकारी मिलती है, जिससे उनके शारीरिक, मनोवैज्ञानिक गुण-दोषों का पता चलता है।
4. निदान :-
मापन एवं मूल्यांकन का एक प्रमुख उद्देश्य है कि विद्यार्थियों के कमजोर क्षेत्रों की पहचान करके उन्हें आगे बढ़ाने में मदद करता है।
5. शिक्षण की प्रभावशीलता ज्ञात करना :-
मापन तथा मूल्यांकन की सहायता से शिक्षण विधियों की प्रभावशीलता का आकलन किया जाता है।
6. पाठ्यक्रम में सुधार :-
मापन तथा मूल्यांकन का प्रमुख उद्देश्य पाठ्यक्रम की उपादेयता की जाँच करके उसकी उपयोगिता को बढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम सुधार करना है।
7. चयन:-
मापन व मूल्यांकन का एक प्रमुख उद्देश्य उपयोगी पाठ्यपुस्तकों व आवश्यकता व योग्यतानुरूप विद्यार्थियों का चयन करने मे सहायता प्रदान करना है।
8. शिक्षण सहायक सामग्री की उपादेयता की जानकारी :-
मापन और मूल्यांकन की सहायता से शिक्षण सहायक सामग्री के उपादेयता की जाँच करते हुए सुधार किया जाता है।
9. वर्गीकरण :-
छात्रों को मापन तथा मूल्यांकन की सहायता से अच्छे, औसत, खराब के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
10. निर्देशन :-
मापन तथा मूल्यांकन का उद्देश्य छात्रों को व्यवसाय, शिक्षा इत्यादि के लिए निर्देशन प्रदान करना है।
मापन और मूल्यांकन में अंतर
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