PDF Notes प्राप्त करने के लिए इकाई -5 के नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें 👇👇👇👇👇
समाज , शिक्षा और पाठ्यचर्या की समझ पूर्णांक : 100 ( 70 + 30 ) 80 घंटा
F - 1 अध्ययन अवधि :
इकाई -1 : बच्चे , बचपन और समाज
• बच्चे तथा बचपन : सामाजिक , सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक समझ
• समाजीकरण की समझ अवधारणा , कारक तथा विविध संदर्भ
• बच्चों का समाजीकरण : माता - पिता , परिवार , पड़ोस , जेण्डर एवं समुदाय की भूमिका
• बाल अधिकारों का संदर्भ : उपेक्षित वर्गों से आनेवाले बच्चों पर विशेष चर्चा के साथ बच्चे तथा बचपन की संकल्पना
काल व स्थान के अनुसार सदैव बदलती रही है जिसके संदर्भ में मनोवैज्ञानिक , सामाजिक तथा शैक्षिक विपर्शी की बहुलता है । इसके अतिरिक्त प्रत्येक परिवार , समुदाय तथा समाज अपने बच्चों एवं उनके बचपन को भिन्न - भिन्न नजरिये से देखता है तथा विभिन्न तरीकों से उनको विकास की व्यवस्था करता है । अतः हर बच्चे का बचपन एक जैसा नहीं होता है । अपने अलग - अलग संदर्भ में बच्चों की आकांक्षाओं , खुशी , चुनौती , संघर्ष आदि में भी कई अंतर होते हैं । इस संदर्भ में , प्राथमिक्त समाजीकरण की प्रकिया तथा बाल अधिकारों की समीक्षात्मक समझ हर शिक्षक या शिक्षिका को होनी चाहिए , जिससे वे यह समझ पाएंगे कि विद्यालय में आने से पहले के समय में बच्चों के समाजीकरण पर किन - किन कारकों का कैसा प्रभाव पड़ता है । इस इकाई में प्राथमिक समाजीकरण के अंतर्गत जेण्डर की केवल परिचयात्मक चर्चा होगी जिसकी विस्तृत चर्चा दूसरे सत्र में की जाएगी । इसके अलावा , प्राथमिक समाजीकरण के अन्य कारकों की व्यापक चर्चा इस इकाई में होनी है ।
इकाई -2 : विद्यालय और समाजीकरण
• शिक्षा , विद्यालय और समाज : अंतर्सम्बंधों की समझ
• विद्यालय में समाजीकरण की प्रक्रिया विभिन्न कारकों की भूमिका व प्रभावों की समझ
• शिक्षा , शिक्षण तथा विद्यालय : सामाजिक , सांस्कृतिक , आर्थिक व राजनीतिक आधार
विद्यालय स्वयं में परवर्ती समाजीकरण ( सेकेण्डरी सोशियलाइजेशन ) की एक संस्था है जहां समाज तथा विद्यालय एक दूसरे से परस्पर अंतःक्रिया करते हुए बच्चे तथा बचपन दोनों को पुनर्निर्मित करते है । विद्यालय में शिक्षा - दीक्षा के साथ - साथ हमउम्र समूह , मित्र मण्डली , प्रतिस्पर्धा , आपसी संघर्ष , उग्रता . उपलब्धि आदि के माध्यम से बच्चों का समाजीकरण अनवरत चलता रहता है । साथ ही , विद्यालय में बच्चों की जेण्डर आधारित अंत किया निरन्तर चलती रहती है । विद्यालय के बाहर का सामाजिक , राजनैतिक तथा सांस्कृतिक परिवेश इस अंतःक्रिया को प्रभावित करते हैं । प्रस्तुत इकाई में उक्त गतिशीलताओं के संदर्भ में व्याप्त विमर्शों की समझ प्राप्त की जाएगी । सामाजिक - सांस्कृतिक के साथ - साथ , विद्यालय में आर्थिक एवं राजनैतिक कारकों का भी बच्चों के समाजीकरण में विशेष भूमिका होती है , जिनकी समझ इस इकाई में बनाई जाएगी ।
इकाई -3 : शिक्षा और ज्ञान : विविध परिप्रेक्ष्यों की समझ
• शिक्षा : सामान्य अवधारणा , उद्देश्य एवं विद्यालयी शिक्षा की प्रकृति
• शिक्षा को समझने के विभिन्न आधार / दृष्टिकोण : दर्शनशास्त्रीय , मनोवैज्ञानिक , समाजशास्त्रीय , शिक्षा का साहित्य , शिक्षा का इतिहास , आदि झान की अवधारणा : दार्शनिक परिप्रेक्ष्य
• ज्ञान के विविध स्वरूप एवं अर्जन के तरीके .
इकाई -4 : प्रमुख चिंतकों के मौलिक लेखन की शिक्षाशास्त्रीय समझ
. महात्मा गाँधी - हिन्द स्वराज : सामाजिक दर्शन और शिक्षा के संबंध को रेखांकित करते गिजुभाई बधेका - दिवास्वप्न : शिक्षा में प्रयोग के विचार को रेखांकित करते हुए
• रवीन्द्रनाथ टैगोर - शिक्षा : सीखने में स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता की भूमिका को रेखांकित करते मारिया मांटेसरी - ग्रहणशील मन पुस्तक से विकास के क्रम ' शीर्षक अध्याय : बच्चों के सीखने के . सम्बंध में विशेष पद्धति को रेखांकित करते हुए ज्योतिबा फुले - हंटर आयोग ( 1882 ) को दिया गया बयान : शैक्षिक , सामाजिक एवं सांस्कृतिक असमानता को रेखांकित करते हुए
• डॉ . जाकिर हुसैन - शैक्षिक लेख : बालकेन्द्रित शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए जे.कृष्णमूर्ति - ' शिक्षा क्या है : सीखने - सिखाने में संवाद की भूमिका को रेखांकित करते हुए जॉन डीवी - शिक्षा और लोकतंत्र से " जीवन की आवश्यकता के रूप में शिक्षा
' शीर्षक लेख : शिक्षा . और समाज की अंतःक्रिया को रेखांकित करते हुए शिक्षाशास्त्र को एक सार्वभौम तथा चिंतनशील गतिविधि के रूप में स्थापित करने तथा शिक्षकों की अध्ययनशीलता तथा सकारात्मक चिंतन विकसित करने के लिए कुछ प्रमुख चिंतकों की मूल रचनाओं की समीक्षायी अध्ययन करना आवश्यक है । इससे शिक्षा के विविध परिप्रेक्ष्यों की समझ बनती है । प्रस्तुत इकाई में उपरोक्त उल्लेखित व्यक्तियों की मौलिक रचनाओं के माध्यम से उनके शैक्षिक चिंतन की समीक्षा प्रशिक्षा कर पाएंगे ।
इकाई -5 : पाठ्यचर्या की समझ
: बच्चों तथा समाज के संदर्भ में पाठ्यचर्या तथा पाठ्यक्रम : अवधारणा तथा विविध आधार बच्चों की पाठ्यपुस्तकें :
शिक्षा , ज्ञान एवं समाजीकरण के माध्यम के तौर पर
• स्थानीय पाठ्यचर्या की समझ .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें