Bihar d.el.ed. 2nd year is S-7:Pedagogy of mathematics Notes pdf (bihar D.El.Ed. Study Material )


इकाई -2 गणित में सीखने की योजना और आकलन ( PLANNING AND ASSESSMENT OF LEARNING IN MATHEMATICS )

परिचय ( Introduction )

बच्चों को सीखने हेतु ठोस अनुभवों तथा सार्थक संदर्भो की आवश्यकता होती है । बच्चे खेल के माध्यम से और विषय वस्तु को परिवेश से जोड़कर सीखते हैं । सीखना बच्चों के लिए एक तरह से वस्तु के विषय में समझ बनाना है । उन्होंने जो कुछ भी सीखा है , उसी को आधार बनाकर अपनी समझ को आगे बढ़ाते हैं । इस तरह अपने हर अनुभव से सीखने की क्रिया में कुछ - न - कुछ जोड़ते चले जाते हैं । बच्चे कितना व किस प्रकार सीखे हैं , इसे जानने के लिए ही उनका मूल्यांकन किया जाता है । बच्चों ने किस अवधारणा को किस सीमा तक समझा है ? क्या बच्चा सीखी गई अवधारणा का दैनिक जीवन की समस्याओं के समाधान में प्रयोग कर पाता है ? यह सब जानने के लिए ही बच्चों का मूल्यांकन आवश्यक है । शिक्षक द्वारा बनायी गई पाठ तथा इकाई योजना एवं उसके द्वारा अपनायी गई शिक्षण विधियाँ किस सीमा तक अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति में किस हद तक सहायक रही , यह जानना अति आवश्यक है । साथ ही साथ बच्चों के अधिगम स्तर में सुधार हेतु करना आदि मूल्यांकन द्वारा ही संभव है । अवलोकन , समवाय समूह , परियोजना कार्य तथा औपचारिक बातचीत के जरिए इन समस्त पक्षों का मूल्यांकन किया जा सकता है तथा मूल्यांकन द्वारा प्राप्त जानकारी का शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के उद्देश्यों की प्राप्ति का उपयोग कर सकते हैं ।

इस इकाई में हम सतत् और व्यापक मूल्यांकन , गणित के संदर्भ में अधिगम का आकलन , अवधारणाओं के सिखाने में शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग तथा अवलोकन की कुछ प्रविधियों के बारे में जानेंगे ।

सीखने की योजना - लर्निंग प्लान ( Learning Plan )

जैसा कि हम जानते ही हैं कि दैनिक जीवन में हमारा सामना गणित से होता रहता है एवं एक छोटा बच्चा भी उसे देखता तथा महसूस करता है । माता - पिता उसे इसमें छिपी गणित को खेलों के माध्यम से समझाने का प्रयास भी करते हैं । इसी कारण बच्चों के पास गणित से सम्बन्धित परिवेश से प्राप्त कुछ अनुभव होते हैं । शिक्षक होने के नाते हम यह जानते हैं कि बच्चे गणित कैसे सीखते हैं एवं उनके गणित सीखने की प्रक्रिया को आनन्ददायी और सार्थक कैसे बनाया जा सकता है ? साथ - ही - साथ मूल्यांकन के लिए परीक्षा के उपयोग की भी जानकारी होती।

 प्रश्न - एक चार साल का बच्चा स्कूल आने से पहले गणित से सम्बन्धित क्या - क्या जानकारियाँ रखता है ? उसकी सूची बनाइए ।

आइए , एक उदाहरण लें । एक मिठाईवाला मिठाई तैयार करने से पहले किन - किन बातों पर विचार करता है ? वह देखता है कि उसके पास प्रतिदिन कितने ग्राहक आते हैं ? वे कौन - कौन सी मिठाइयाँ पसंद करते हैं ?

. उनको बनाने हेतु कौन - कौन सी सामग्री की आवश्यकता होगी ? उनकी मात्रा क्या होगी ? उनको बनाने की कौन - कौन सी विधियाँ होंगी ? बनाने का क्रम क्या होगा ? इसके आधार पर खर्च क्या आयेगा ? श्रम कितना लगेगा ? इसके आधार पर मिठाईवाला अपने लाभ को देखते हुए मिठाइयों का मूल्य तय करेगा एवं ग्राहकों को बेचेगा ।

 निष्कर्ष है कि मिठाई बनाने से बेचने तक की सारी क्रियाओं हेतु एक मिठाईवाले को एक योजना बनानी पड़ेगी , तभी वह सफलतापूर्वक मिठाई की दुकान का संचालन कर सकता है और अपनी मिलाई की दुकान खोलने के उद्देश्य की प्राप्ति कर सकता है ।

योजना क्यों बनाएं ? ( Why to Make Plan )

 बच्चे अच्छे तरीके से तभी सीखते हैं , जब पाठ को इस ढंग से सावधानीपूर्वक व्यवस्थित किया जाए कि सीखने की क्रिया दिलचस्प बने । ऐसे सवालों से उन्हें सीखने में सहायता मिलती है जो उन्हें सोचने के लिए प्रेरित करें । इसके अतिरिक्त ऐसी सामग्री और गतिविधियों का इस्तेमाल उपयोगी होता है जिनसे बच्चों की समझ विकसित हों एवं अभ्यास का मौका मिले । दूसरी ओर आपको कक्षा की सच्चाइयों का भी सामना करना होता है । इन सच्चाइयों में सामाजिक , आर्थिक और ढांचागत भिन्नताओं के अलावा पाठ्यवस्तु को लागू करने और मूल्यांकन से जुड़े मुद्दे भी सम्मिलित हैं । इसीलिए , अगर आप योजना के महत्त्व को स्वीकार करके उन्हें लागू करना चाहेंगे , तो हो सकता है कि आपके सामने नीचे दिए गए सवाल खड़े हो जाएं

• अगर मैं चाहूँ कि बच्चे वास्तव में सीखें तो सिलेबस ( Syllabus ) कैसे पूरा होगा ?

 अगर पाठ्यपुस्तक के मुताबिक चलना है तो गणित सीखने के सिद्धान्तों का पालन कैसे करूँगा ?

• अगर बच्चों की साझेदारी बढ़ाऊँ , तो कक्षा में शोरगुल कैसे रोकूँ ?

 • जब स्कूल में इतने कम साधन हैं , तो बच्चों के लिए ठोस चीजों का बन्दोबस्त कैसे करूँगा ?

• बच्चों के विकास की जरूरतों में इतना अन्तर है ; तो सब बच्चों की जरूरतें कैसे पूरी करूँगा ?

• मुझे कैसे पता चले कि मेरा सिखाने का तरीका कारगर है एवं सही ?

इनमें से ज्यादातर सवालों से निपटा जा सकता है , बशर्ते कि आप अपने पाठ्यक्रम की , उसे लागू करने की एवं मूल्यांकन प्रक्रिया की योजना बना लें । आप कहेंगे कि योजना बनाना तो ठीक है , किन्तु कई बार ऐसी बातें सामने आ जाती हैं जिन पर हमारा कोई काबू नहीं रहता । जैसे कि अचानक होने वाली छुट्टियाँ , बच्चों की बीमारी , फसल कटाई की वजह से बच्चों की गैर हाजरी , वगैरह । सही है , योजना एवं असलियत के बीच अक्सर अन्तर पड़ जाता है । लेकिन आप इस अन्तर से भी फायदा उठा सकते हैं । आप इनको नोट करें , इसके बारे में सोचें कि ऐसा क्यों हुआ , तथा तब अपने निष्कर्षों को दर्ज कर लें । दरअसल यह सब योजना बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है । इससे हमें बच्चों के साथ अपने कामकाज को व्यवस्थित करने में सहायता मिलती है , जिससे उन्हें सीखने में बढ़ावा मिलता है । ऐसा करने से हमें इस बात पर भी गौर करने का मौका मिलता है कि हम क्या कर रहे हैं ? इस तरह से सामान्यतः हमारी सिखाने की क्षमता बेहतर हो जाती है ।

 कक्षा में जो परिस्थितियाँ हो सकती हैं तथा होती हैं , उनसे निपटने का कोई एक ही तरीका नहीं है । हर बार जब हम समस्या से निपटने का कोई तरीका अपनाते हैं एवं बाद में उन तरीकों को चुनने के कारणों पर गौर करते हैं , तो इससे सामूहिक सोच की हमारी क्षमता बेहतर बनती है ।

योजना कैसे बनाएँ ?( How to Make Plan )

 मान लीजिए कि आप से कक्षा 3 को गणित पढ़ाने के लिए कहा जाता है । आप उनको गणित किस प्रकार पढ़ाएंगे ? एक तरीका तो यह होगा कि आप कक्षा 3 की गणित की पाठ्य - पुस्तक उठा लें एवं आंख मूंदकर एक - एक अध्याय पढ़ाना शुरू कर दें । अगर ऐसा है तो आपके मुख्य उद्देश्य होंगे

( क ) पाठ्य - पुस्तक को पूरा करना । मतलब यह हुआ कि पाठ्य - पुस्तक को ही आप पाठ्यक्रम के समान मान रहे हैं । आमतौर पर यही होता भी है क्योंकि शिक्षक के पास पाठ्य - पुस्तक के अलावा कोई और शिक्षण का साधन नहीं होता ।

( ख ) साल के आखिर में बच्चों का मूल्यांकन करके यह पता लगाना कि पाठ्य - पुस्तक की कितनी विषयवस्तु उन्हें याद है ।

ज्यादातर शिक्षक इन्हीं ढंगों को अपनाते हैं । इसके लिए योजना बनाने की जरूरत न के बराबर होती है । वे यह मानकर चलते हैं कि हर किस्म की कक्षा व स्कूल के सभी शिक्षकों हेतु और हर तरह के बच्चों के लिए पाठ्य - पुस्तक में दी गई योजना उचित है । इस तरह के तरीके में योजना बनाने से सम्बन्धित सारे मुद्दों , जैसे सिखाने के ढंग , अवधारणाओं को क्रमबद्ध करने और उन्हें सिखाने के लिए समय तय करने , आदि का पका - पकाया उत्तर मिल जाता है क्योंकि-

  •  इसके तहत् गणित की अवधारणाएँ / विषय एक निर्धारित क्रम में पढ़ाए जाने हैं ( शिक्षक के सिर्फ पृष्ठ - दर - पृष्ठ पाठ्य - पुस्तक का पालन करना है ) ।
  •  सिखाने का तरीका सिर्फ बच्चों से किताब में दिए सूत्र , उदाहरण एवं अभ्यास के सवालों को हल कराना रह जाता है ।
  •  समय विभाजन का आधार सामान्य तौर पर यह हो जाता है कि कुल अध्यायों की संख्या को स्कूल खुला रहने के कुल महीनों से भाग दे दिया जाए । जिससे यह तय हो जाता है कि एक महीने में कितने अध्याय पूरे करने हैं ।
पाठ्य - पुस्तक से पढ़ाने का दूसरा तरीका यह हो सकता है कि आप खुद पहले इसको पढ़ लें एवं फिर गणित सीखने के सिद्धान्तों के मुताबिक हर पाठ की योजना ध्यान से बनाएं । इसके लिए जरूरी होगा कि आप सावधानी से हर पाठ को देखकर ऐसी योजना बनाएं जिसके मुताबिक-

 ( i ) पढ़ाने का क्रम बच्चों के विकास स्तर से मेल खाता हो । अधिकतर मामलों में इसका मतलब यह होता है कि पाठ्य - पुस्तक की पूरी सामग्री को नए क्रम में जमाया जाए । मिसाल के तौर पर , ज्यादातर पाठ्य - पुस्तकों के हिसाब से जोड़ - घटा जैसी क्रियाएँ सिखाने से पहले बच्चों को 1 से 100 तक की संख्याएँ सिखानी चाहिए । परन्तु वास्तव में बच्चे 100 तक की संख्याओं के नाम याद करने से बहुत पहले ही जोड़ - घटा की कुछ समझ बना चुके होते हैं । दरअसल जोड़ - घटा के माध्यम से उन्हें भिन्न - भिन्न आकार ( साइज ) के समूहों की आपसी तुलना करने में और संख्या की कुछ समझ बनाने में सहायता मिलती है । इनसे गिनती के अभ्यास का भी एक बढ़िया संदर्भ बनता है । इसलिए बेहतर होगा कि जब बच्चों में छोटी संख्याओं की समझ बन जाए , तब ही अंकगणित की आसान क्रियाएं सिखाई जाएं । सौ तक की संख्याएँ सीखने का काम धीरे - धीरे चलता रह सकता है । . -

( ii ) बच्चों को सीखने के ऐसे मौके मिलें जिनके जरिये वे गणितीय अवधारणाओं की अपनी एक समझ बना सकें । जैसे कि कक्षा । के बच्चों को ऐसे इबारती सवाल दिए जा सकते हैं जिनका जवाब देने हेतु उन्हें जोड़ , घटा और शायद गुणा , भाग का उपयोग करना पड़े । इससे बच्चों को अपनी समझ बनाने के बहुत मौके मिलते हैं । साथ - साथ , बच्चे जो कुछ अपनी तार्किक सोच से समझ गए हों , उसे व्यक्त जरूर करें । उन्हें सही जवाब जल्द से जल्द ढूँढ़ने हेतु मजबूर नहीं करना चाहिए । उचित प्रश्न पूछ कर आप उन्हें धीरे - धीरे जवाब की ओर ले जा सकते हैं । अर्थात् बच्चों में अमूर्त अवधारणाओं का विकास मूर्त उदाहरणों की सहायता से करें ।

 ( iii ) बच्चे जो कुछ पहले से जानते हैं , उसे आधार मानकर आगे बढ़ा जाए । उदाहरण हेतु , बच्चे ठोस रूप में भिन्न संख्याएँ ( firactions ) कुछ हद तक समझते हैं । हालांकि हो सकता है कि प्रतीकों के रूप में भिन्नों से उनका पाला न पड़ा हो । तब भिन्न सिखाने हेतु उनकी इस समझ का इस्तेमाल क्यों न किया जाए ? ठोस शैली का इस्तेमाल करने से बच्चे जो कुछ जानते हैं , उसे सामने लाने में सहायता मिलेगी । इसके बाद प्रतीकों से कड़ी जोड़ी जा सकती है ।

( iv ) किसी गणितीय अवधारणा को लिखित रूप में सीखने से पहले और सीखने के दौरान बच्चों को उसके बारे में बोलने के मौके मिलें । लिखित ( प्रतीकात्मक ) से सम्बन्ध जोड़ने से पहले बच्चों को मौका मिलना चाहिए कि वे गणितीय अवधारणाओं को मौखिक व ठोस रूप में समझ सकें । इससे उनकी गणितीय समझ बेहतर होगी तथा वे सूत्रों को आँख मूंदकर लागू करने से बच जाएँगे । ऊपर हमने जिन बातों पर चर्चा की है उनका निष्कर्ष यह निकलता है कि हमें योजना कुछ इस प्रकार बनानी होगी कि बच्चों की गणितीय सोच व कौशलों को विकसित करने में मदद कर सकें । इसके लिए उन्हें सीखने के ठोस अनुभवों की जरूरत है , न कि प्रतीकों के साथ अधिक माथापच्ची करने की । इसका मतलब है कि सिर्फ पाठ्य - पुस्तक होती पर निर्भर रहने से काम नहीं चलेगा । प्रश्न - क्या यह मुमकिन है कि सिर्फ पाठ्य - पुस्तक का प्रयोग किया जाए और फिर भी गणित शिक्षण की योजना गणित सीखने के सिद्धान्तों के अनुसार बनाई जाए ? उदाहरण सहित जवाब दीजिए । आँख मूंदकर पाठ्य - पुस्तक की लीक पर चलने से बचने का एक पक्का तरीका यह होगा कि इकाई व पाठ योजना बनाई जाए । एक इकाई का मतलब किसी एक विषय या एक अध्याय से होता है । इकाई को एक या अधिक पाठों में बाँटा जाता है । जैसे , ' भिन्न ' एक इकाई होगी और इस इकाई में एक पाठ'आधे ' की अवधारणा पर हो सकता है , इस पाठ भिन्न - भिन्न तरह की भिन्नों पर , एक पाठ भिन्नों के जोड़ पर , वगैरह । यानी , एक इकाई में एक या ज्यादा पाठ हो सकते हैं और एक साल में अनेक इकाइयाँ पढ़ाई जाएंगी । इस तरह के विभाजन का हम शिक्षकों के लिए क्या महत्त्व है ? आइए देखें । इकाई की योजना ( Unit Plan ) गणित की किसी नई इकाई को पढ़ाने की योजना बनाने हेतु सबसे पहले आपको क्या पता होना चाहिए ? जैसा कि मैंने पहले कहा था कि एक इकाई में कई गणितीय अवधारणाएँ , प्रतीक , सिद्धान्त , प्रक्रियाएं इत्यादि सम्मिलित हो सकते हैं । इन सबको विद्यार्थियों तक पहुँचाने का सबसे अच्छा तरीका क्या होगा ? इस सवाल का जवाब देने हेतु आपको हर इकाई का गहराई से विश्लेषण करके यह पता लगाना होगा कि उसके हर हिस्से के सिखाने के लक्ष्य क्या हैं ? आपको यह भी पता लगाना होगा कि आपकी कक्षा के बच्चे गणित से सम्बन्धित कौन - सी अवधारणाएँ या कौशल पहले से जानते हैं । एक बार यह सब पता लगा लिया , तो आगे क्या ? फिर गणित सीखने के सिद्धान्तों के अनुसार उन अवधारणाओं एवं कौशलों को क्रमबद्ध करना होगा , जिन्हें बच्चे सीखने वाले हैं । इसके बाद आपको यह सोचना होगा कि हर अवधारणा या कौशल को सीखने हेतु बच्चों को किन अनुभवों , सामग्रियों और गतिविधियों को जरूरत होगी ।

इस तरह के गहरे विश्लेषण से आपको अपनी इकाई सिखाने की ऐसी योजना बनाने में सहायता मिलेगी जिसमें नीचे दी गई बातों का ध्यान रखा गया हो ( i ) बच्चों की क्षमता व समझ । ( ii ) नई गणितीय अवधारणाएँ या कौशल समझने हेतु पहले से जरूरी जानकारी । ( ii ) जिन गणितीय अवधारणाओं को सीखा जाना है , उनकी प्रकृति । ( iv ) स्पष्ट लक्ष्य जिन्हें हासिल किया जाना है । योजना बनाते वक्त यह बहुत जरूरी है कि आप तय कर लें कि इकाई के किस भाग को कितना समय देना है ? जैसे कि , समय के मापन सम्बन्धी इकाई की योजना , नाते वक्त आप इच्छित लक्ष्यों की रूपरेखा बनाएंगे यह तय करेंगे कि कौन - कौन - सी बातें पढ़ाई जाती हैं ( जैसे , समय का कोई क्षण , समय का अन्तराल , मापन की इकाई , आदि ) , किस क्रम में इन्हें पढ़ाया जाना है तथा हर बात पर आप कितना समय लगाएंगे ? अब आप यह देखने की स्थिति में हैं कि इस इकाई का कितना भाग कितने दिन में पढ़ाना संभव है ? आप एक एक हफ्ते के लिए जरूरी समय तय कर सकते हैं । एक उदाहरण के तौर पर आइए देखें कि छोटे बच्चों को लम्बाई का मापन सिखाने हेतु शिक्षण योजना कैसे बनाएं ? लम्बाई किसी भी चीज का सबसे आसानी से नजर आने वाला गुण है । आध , तर बच्चे स्कूल शुरू करने से पहले ही लम्बाई की समझ बना लेते हैं और इससे सम्बन्धित शब्दावली से थोड़े बहुत परिचित होते हैं । किन्तु कई बार उनकी समझ ऐसी होती है जिसे बड़े लोग गलत कहेंगे । जैसे कि बच्चे कह सकते हैं कि बल खाई रस्सी , सीधी रखी रस्सी से छोटी है । ऐसी गलतियाँ उन बच्चों में बहुत आम हैं जो लम्बाई के संरक्षण की बात को पकड़ या समझ न पाए हों । जैसे - जैसे बच्चों का संज्ञान विकसित होता है तथा उन्हें समझ बनाने के लिए सीखने के अनुभव मिलते हैं , वैसे - वैसे ये गलतियाँ दूर होती जाती हैं । तो इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए , आइए देखें कि सीखने के अनुभवों का क्रम क्या हो ? एक क्रम निम्नानुसार हो सकता है ( 1 ) उस गुण को पहचानना जिसका मापन करना है सबसे पहले हमें कोशिश करनी होगी कि चीजों की तुलना के जरिये बच्चे उस गुण ( यानी लम्बाई ) से परिचित हो जाएं । इसके लिए कुछ गतिविधियाँ की जा सकती हैं ( क ) देखने से , सबसे पहले यह पहचानें कि कौन - सी छड़ ज्यादा लम्बी है । ( ख ) प्रत्यक्ष रूप से , दो चीजों की तुलना करके । ( ग ) अप्रत्यक्ष रूप से लम्बाई की तुलना करने हेतु किसी तीसरी चीज ( पैमाने ) का इस्तेमाल करके । ( 2 ) दो चीजों की लम्बाई की तुलना के लिए इकाई का चुनाव इकाइयाँ मुख्य रूप से दो प्रकार की हो सकती हैं ( क ) मनमानी इकाई ( अमानक इकाई ) , जैसे हाथ या पेंसिल या रस्सी । ( ख ) मानक इकाई , जैसे इंच या सेण्टीमीटर या मीटर । ( 3 ) इकाइयों की संख्या का पता लगाना और बताना बच्चे इकाइयों की संख्या निम्नानुसार पता लगा सकते हैं ( क ) हाथों की संख्या गिनकर , ( ख ) पैमाने का उपयोग करके , ( ग ) इकाइयों के परस्पर सम्बन्ध का इस्तेमाल करके । हर बार वे बताएं कि परिणाम क्या आया ?

( 4 ) मानक इकाइयों की जरूरत को समझना अब आपने विषय के छोटे - छोटे हिस्से कर लिए हैं और शिक्षण के उद्देश्य भी तय कर लिए हैं । अब आपको यह तय करना है कि आप सीखने हेतु कौन - से अनुभव देना चाहेंगे , उनमें कितना समय लगेगा , वगैरह एवं आखिर में आपको ऐसे उपयुक्त औजार और तकनीकें तैयार करनी होंगी जिनसे आप अपने सिखाने के तरीके के असर का मूल्यांकन कर सकें । पाठ की योजना ( Lesson Plan ) हर इकाई की योजना बनाते हुए आप हर हफ्ते अपनी कक्षा के बच्चों की प्रगति की जाँच कर सकते हैं । यदि जरूरी हो , तो आप उनकी जरूरतों के मुताबिक सिखाने की रफ्तार बदल सकते हैं । आप योजना इस प्रकार भी बना सकते हैं कि कक्षा में अलग - अलग समूह में बच्चे विभिन्न प्रकार की विषयवस्तु का अभ्यास करें । इसके लिए एक तरीका तो यह हो सकता है कि आप एक ही समय पर कई वर्कशीट का इस्तेमाल करें । एक तरीका यह भी हो सकता है कि बाकी बच्चों को खेलकूद के लिए भेजकर आप कुछ बच्चों पर विशेष ध्यान दें । ऐसी गतिविधियाँ भी आयोजित की जा सकती हैं जिनमें सारे बच्चे हिस्सा ले सकें , चाहें उनकी जानकारी का स्तर अलग - अलग क्यों न हो । यह सब सोचना पाठ की योजना बनाने का हिस्सा है । पाठ की योजना बनाने में निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखने से शायद आपको सहायता मिले • पाठ के उद्देश्य स्पष्ट तौर पर सामने रखें - आप कौन - सी गणितीय अवधारणा पढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं ? इसके कौन - से पहलू को आप चाहते हैं कि बच्चे सीखें ? मकसद क्या है - एक नई चीज से परिचित कराना या किसी चीज की समझ विकसित करना , या कोई खास कौशल विकसित करना या कुछ बातों का दोहरान करना ? • जिन बातों को पहले से जानना जरूरी है उन्हें पता करें - पाठ में आप जो कुछ पढ़ाने जा रहे हैं , उसके पहले क्या - क्या सीख लेना जरूरी है ? क्या बच्चे यह सब सीख चुके हैं ? • क्रम तय करें - आप जिस कक्षा में पढ़ाने जा रहे हैं उसमें पहले , दूसरे आदि क्रम पर तार्किक रूप से कौन - सी गणितीय अवधारणा आती है ? उसे देखते हुए ही पढ़ाने का क्रम तय करें । क्या बच्चों के मनोवैज्ञानिक स्तर को देखते हुए इस तार्किक क्रम में कोई फेरबदल जरूरी है ? .कार्य पद्धति तय करें - सिखाने का कौन - सा तरीका सबसे अधिक कारगर होगा ? पिछले पाठों से इस पाठ को जोड़ने हेतु क्या करना होगा ? बच्चों को किस तरह के ठोस अनुभवों की जरूरत होगी ? कौन - सी गतिविधियों से बच्चों की दिलचस्पी बनी रहेगी तथा उनका ध्यान भी लगा रहेगा ? गतिविधि में आपकी भूमिका क्या होगी , एवं इसे कैसे करवाया जाएगा ? क्या इस पाठ / गतिविधि में पूरी कक्षा शामिल रहेगी या छोटे समूहों में या सामग्री का उपयोग करेंगे , और कैसे ? बच्चों की निजी जरूरतों को पूरा करने हेतु सामग्री या गतिविधियों में किस तरह के फेरबदल किए जायेंगे ? • यह तय करें कि पाठ के हर हिस्से पर कितना वक्त लगाएंगे - क्या इस अवधारणा की समझ बनाने हेतु इतना वक्त काफी होगा ? क्या किसी गतिविधि के लिए ज्यादा समय देना उचित होगा ? उसका मतलब होगा कि बाद में कहीं और समय कम करना होगा । • मूल्यांकन का तरीका तय करें - पाठ के दौरान सीखने - सिखाने की प्रक्रिया का मूल्यांकन करने के लिए आप क्या औजार प्रयोग करेंगे ? पाठ के अन्त तक बच्चों ने क्या सीखा , इसका मूल्यांकन किस तकनीक से करेंगे ? • पाठ की योजना को लिखें - योजना को लिख लेने से आपको अनेक बातों को स्पष्ट करने का मौका मिलेगा , और यह एक रिकॉर्ड भी रहेगा । इसका इस्तेमाल आप बच्चों के तथा खुद अपने काम के मूल्यांकन के लिए कर सकते हैं एवं आगे के पाठों की योजना बनाते समय भी यह काम आएगा ।







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