प्रश्न. भक्ति आंदोलन के उदय के कारणों का परीक्षण कीजिए और समाज पर उसके प्रभाव को समझाइए । ( ( Examine the cause of the rise of Bhakti movenint and explain its impact on the society . )
उत्तर - सल्तनत काल ( 1206-1526 ) सैनिक संघर्ष के साथ - साथ धार्मिक संघर्ष का काल भी था । इस संघर्ष का कारण तुर्क मुस्लिम आक्रमणकारी थे जो सैनिक विजय के साथ धार्मिक विजय भी चाहते थे । अत : यह संघर्ष सैनिक क्षेत्र के साथ सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र में भी हुआ । इसके फलस्वरूप भक्ति आन्दोलन का जन्म हिन्दू समाज में हुआ जिसे मुसलमानों के अनेक वर्गों का , विशेष रूप से सूफियों का समर्थन प्राप्त था । इसका उद्देश्य एक ओर निराश हिन्दुओं में आशा का संचार करना , उन्हें सामाजिक तथा धार्मिक आस्था प्रदान करना तथा दूसरी ओर , उस सामान्य भूमि की खोज करना था जिससे हिन्दू धर्म व समाज तथा मुस्लिम समाज व धर्म में सहयोग तथा सद्भावना की स्थापना हो सके । भक्ति आंदोलन ने एक सीमा तक इस आवश्यकता को पूरा किया ।
भक्ति आंदोलन के कारण संक्षेप में , मध्यकालीन भारत में भक्ति आंदोलन के कारण निम्नलिखित थे-
1. सरल धर्म की आकांक्षा - जनसाधारण के लिए कर्मकाण्ड प्रधान या ज्ञानमार्ग को अपनाना कठिन था । वे ऐसा धर्म चाहते थे जिसमें पुरोहितवाद न हो । भागवत धर्म के उत्थान के बाद ही याज्ञिक कर्मकाण्ड कम होते जा रहे थे । भक्ति आंदोलन इस प्रकार के रूढ़िवादी विचारों के विरुद्ध था । समाज में ब्राह्मणवाद की जटिलता के कारण भी प्रतिक्रिया हो रही थी । ब्राह्मणों ने अपना सर्वोच्च स्थान बनाए रखने के लिए विभिन्न सामाजिक तथा धार्मिक नियमों को बनाया था जिन्हें सामान्य लोग स्वीकार करने को तैयार नहीं थे ।
अलबरूनी लिखता है कि , " समाज पर ब्राह्मणों का प्रभुत्व था । वेद अध्ययन , धार्मिक पूजा , आराधना , यज्ञ , अन्य लोगों के लिए वर्जित था । जब शूद्र तथा वैश्य ने वेद अध्ययना तथा आराधन , यज्ञ का प्रयास किया हो तो समकालीन शासकों ने ब्राह्मणों के प्रभाव में आकर उसकी जिह्वा कटवा ली । " समाज में ब्राह्मणों की प्रभुता अन्य वर्गों को स्वीकार नहीं थी । प्राचीनकाल में बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म ने भी यही प्रयास किए थे लेकिन ब्राह्मण वर्ग ने धर्म के स्वरूप तथा उससे सम्बन्धि त कर्मकाण्ड पर नियन्त्रण स्थापित करके अपना प्रभुत्व बनाए रखा तथा निम्न जातियों के लिए मोक्ष के द्वार बन्द कर दिए । यह धार्मिक असमानता भक्ति आन्दोलन का कारण बना ।
2. सामाजिक समानता की आकांक्षा - भक्ति आन्दोलन का दूसरा कारण सामाजिक असमानता थी । मध्य काल में जाति व्यवस्था जटिल हो चुकी थी । अनेक विदेशी वर्गों को हिन्दू समाज में सम्मिलित कर लिया गया था जिससे हिन्दू समाज में जाति प्रथा जटिल हो गई थी । प्रतिलोम विवाह से उत्पन्न सन्तानों का जाति प्रथा में कोई स्थान नहीं था । अस्पृश्यता की भावना में वृद्धि हो रही थी । बौद्ध और जैन धर्मों ने भी सामाजिक समानता के सिद्धान्त को स्थापित कर दिया था । लेकिन ब्राह्मण धर्म की पुनर्स्थापना से जाति प्रथा भी जटिल रूप में पुनः स्थापित हो गई थी । अतः भक्ति आन्दोलन इस प्रकार की सामाजिक असमानता के विरुद्ध विद्रोह था । भक्ति के क्षेत्र में सभी बराबर थे ।
अतः दलितों तथा अस्पृश्यों को समानता का मार्ग उपलब्ध हुआ । ईश्वर को स्मरण करना ही धर्म का प्रमुख लक्षण माना जाने लगा । अलबरूनी ने भगवान वासुदेव के शब्दों को इस प्रकार लिखा है कि , “ ईश्वर निष्पक्ष भाव से न्याय करता है । यदि कोई ईश्वर को भूलकर सत्कार्य करता है तो वह उसकी दृष्टि में बुरा है । यदि कोई बुरा कर्म करते हुए भी ईश्वर का स्मरण करता है तो वह उसकी दृष्टि में अच्छा है । "
( 3 ) मुसलमानों के अत्याचार - भक्ति आन्दोलन दो चरणों में विकसित हुआ था । प्रथम चरण दक्षिण भारत में था जो इस्लाम के आगमन के पूर्व था । उत्तर भारत में भी भागवत धर्म का प्रसार मुसलमानों के आगमन के पूर्व हो रहा था लेकिन तेरहवीं शताब्दी में इस्लाम के उत्तर भारत में आ जाने से स्थिति में परिवर्तन हो गया । मुस्लिम शासकों के संकीर्ण धार्मिक दृष्टिकोण के कारण हिन्दू समाज के लिए अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो गया । अतः ऐसी स्थिति में हिन्दुओं ने ईश्वर की भक्ति में शान्ति प्राप्त की जो दुष्टों तथा आत्याचारियों के विनाश के लिए समय - समय पर अवतार लेता है । इससे पलयानवाद की भावना का भी जन्म हुआ ।
4. इस्लाम का प्रचार - मुसलमान शासकों का उद्देश्य इस्लाम का प्रसार करना था । उलेमा वर्ग इसकी माँग करता रहता था । अत : भक्ति आन्दोलन का एक कारण हिन्दू समाज का संगठन दृढ़ करना तथा उसकी रक्षा करना था । इसलिए इस्लाम के प्रसार को रोकने के लिए हिन्दू समाज को जनवादी बनाना आवश्यक हो गया था । इसके लिए निम्न जातियों को समानता देना आवश्यक हो गया था ।
5. इस्लाम का प्रभाव - भारत में इस्लाम के आने के पूर्व भक्ति आन्दोलन चल रहा था । एकेश्वरवाद तथा मानव समानता के सिद्धान्त हिन्दुओं को मालूम थे और दक्षिण भारत में आल्वार सन्तों ने इनकी स्थापना भी कर दी थी , लेकिन इस्लाम का प्रभाव दूसरे प्रकार से पड़ा । एक ओर तो हिन्दू धर्म तथा समाज में सुरक्षा की भावना उत्पन्न हुई तो दूसरी ओर , मुसलमानों से सहयोग तथा सम्पर्क का विकास हुआ । मुसलमानों के भारत में स्थायी बस जाने से इस प्रकार के सामाजिक सम्बन्धों की स्थापना होना स्वाभाविक था । सूफी सन्तों तथा हिन्दू भक्तों में निकट सम्बन्ध भी स्थापित हुए । इन सम्बन्धों से हिन्दुओं को इस्लाम को समझने का अवसर प्राप्त हुआ । इसका प्रभाव यह हुआ कि हिन्दू समाज आडम्बरों तथा अनेक बुराइयों से मुक्त हो गया ।
भक्ति आंदोलन का प्रभाव :
1. व्यावहारिक धर्म - मध्यकाल में जब मुस्लिम शासकों के अत्याचार के कारण हिन्दू धर्म का पालन करना असम्भव हो गया था , भक्ति आन्दोलन ने नाम स्मरण मात्र को ही धर्म पालन का स्वरूप निर्धारित कर दिया । इस प्रकार के व्यावहारिक धर्म में मन्दिर , मूर्ति , पुरोहित , शास्त्रों की आवश्यकता नहीं थी ।
2. हिन्दुओं को आशान्वित करना - भक्ति आन्दोलन ने हिन्दुओं में आशा का संचार किया । उनकी अपने धर्म में श्रद्धा गहरी हुई ।
3. समन्वय का दृष्टिकोण - भक्ति आन्दोलन ने हिन्दू तथा मुसलमानों को निकट लाने में सफलता प्राप्त की जिससे समन्वय के दृष्टिकोण का विकास हुआ ।
4. संकीर्णता का परित्याग - भक्ति आन्दोलन ने सामाजिक तथा धार्मिक संकीर्णता को समाप्त किया और धर्म संगठित हुआ और इस्लाम की चुनौती का सामना करने के लिए तत्पर हो गया । इससे हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन रुक गया ।
5. मुसलमानों का प्रभाव - भक्तों तथा सन्तों के मुस्लिम सन्तों से घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हुए । इससे उन्हें एक - दूसरे को समझने का अवसर प्राप्त हुआ । उदार तथा प्रबुद्ध मुसलमानों में हिन्दू धर्म के प्रति आदर उत्पन्न हुआ । शासक वर्ग पर भी इसका प्रभाव पड़ा और मुसलमानों के अत्याचारों में कमी आयी ।
6. आडम्बरों की समाप्ति - भक्ति आन्दोलन के कारण कर्मकाण्ड और आडम्बर समाप्त हो गए और ईश्वर को भक्ति का ही पर्याय समझा गया ।
7. निम्न जातियों का उत्थान - भक्ति आन्दोलन ने जात - पात का विरोध किया जिससे निम्न जातियों को उत्थान का अवसर प्राप्त हुआ । इनमें से कई ने प्रसिद्ध सन्तों के समान आदर प्राप्त किया । इससे हिन्दू समाज का सुधार हुआ ।
8. क्षेत्रीय साहित्य का निर्माण - सन्तों ने अपने पदों की रचना स्थानीय भाषा में की तथा इसी बोलचाल की भाषा में अपने उपदेश दिए । इससे मराठी , गुजराती , अवधी , पंजाबी आदि भाषाओं में भक्ति साहित्य का निर्माण हुआ । भक्ति आन्दोलन का प्रभाव शासकों पर भी पड़ा था । बाबर ने इसकी सराहना की थी और अकबर ने इसे पुनः लागू करने का प्रयास किया था लेकिन समस्त गुणों के होते भी भक्ति आन्दोलन हिन्दू और मुसलमानों के मध्य घनिष्ठ विश्वास तथा सम्बन्ध स्थापित करने में असफल रहा।
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