प्रश्न. बालक के समाजीकरण में विद्यालय का महत्व को लिखे समाजीकरण की प्रक्रिया में शिक्षक के कार्यों को लिखें।
उत्तर - बालक के समाजीकरण में विद्यालय का महत्व -
समाजीकरण की प्रक्रिया में विद्यालय का महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि विद्यालय ही वह स्थान है जहां परिवार के बाद छात्र अधिक समय बिताता है । यहीं पर वह अपने अन्य सहपाठियों के सम्पर्क में आकर बहुत सी नयी - नयी बातें सीखता है । यहीं पर उसका परिचय अपने शिक्षकों से होता है और शिक्षकों के द्वारा ही वह समाजीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है । अतः विद्यालयों का समाजीकरण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व है । संक्षेप में समाजीकरण को ध्यान में रखते हुए विद्यालयों को निम्न कार्य करने चाहिए-
1. विद्यालय को चाहिए कि वह समय - समय पर बालको के शोभनीय व्यवहार के लिए उन्हें पुरस्कृत करने और अशोभनीय व्यवहार के लिए दण्डित करने की व्यवस्था करे ।
2. बालकों का सही दिशा में समाजीकरण के लिए विद्यालयों को नाटक , वाद - विवाद जैसे कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना चाहिए ।
3. विद्यालयों को समाज का एक लघु रूप स्वीकार किया जाता है । अतः विद्यालयों को चाहिए कि वह अपने यहां ऐसा सामाजिक वातावरण तैयार करें जो समाज की परिस्थितियों के अनुकूल हो और उसमें रहते हुए बालकों का समाजीकरण समाज की आवश्यकताओं के अनुकूल ही सम्भव हो सके ।
4. विद्यालयों को चाहिए कि वह ऐसे वातावरण का निर्माण करें जिससे बालकों में समानता , सहयोग , स्वतन्त्रता , न्याय और बन्धुत्व के गुणों का विकास सम्भव हो सके ।
5. विद्यालयों में ऐसे समाज सेवा संकार्यों की स्थापना की जानी चाहिए जो देश पर विपत्ति के समय में समाज सेवा में आगे आयें । इससे बालकों के सही दिशा में समाजीकरण में सहायता मिलेगी ।
6. विद्यालयों को अपने छात्रों को समाज की भलाई के लिए उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए । इसका एक छा उदाहरण श्रमदान हो सकता है । विद्यालयों को चाहिए कि वह समय - समय पर श्रमदान के माध्यम से बच्चों में श्रम के प्रति प्रेम की भावना को जागृत करने का प्रयास करें ।
7. विद्यालयों को चाहिए कि वह अपने यहां ऐसे कार्यक्रमों को भी लागू करें जिनसे बालकों में सामाजिक व व्यवसायिक कुशलता बढ़ सके और उनका सही दिशा में समाजीकरण सम्भव हो सके ।
समाजीकरण में शिक्षक / अध्यापक की भूमिका/कार्य
(1) विद्यालय न केवल शिक्षा का एक औपचारिक साधन है, बल्कि यह बच्चे के समाजीकरण की प्रक्रिया को तीव्र गति प्रदान करताहै और विद्यालय के इस । कार्य में शिक्षक की भूमिका सर्वाधिक अहम होती है।
(2) परिवार के बाद बच्चों को विद्यालय में प्रवेशमिलता है। अध्यापक ही शिक्षा के द्वारा बच्चे में वे सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यपैदा करता है, जो समाज व संस्कृति में मान्य होतेहैं।
(3) स्कूल में खेल प्रक्रिया द्वारा बच्चे सहयोग, अनुशासन, सामूहिक कार्य आदि सीखतेहैं। इस प्रकार, विद्यालय बच्चे में आधारभूतसामाजिक व्यवहार तथा व्यवहार के सिद्धान्तों की नींव डालता है।
(4) समाजीकरण की प्रक्रिया को तीव्र गति प्रदानकरने के लिए शिक्षक का सर्वप्रथम कार्य यह है कि वह बालक के माता-पिता से सम्पर्कस्थापित करके उसकी रुचियों तथा मनोवृत्तियों के विषय में ज्ञान प्राप्त करे एवंउन्हीं के अनुसार उसे विकसित होने के अवसर प्रदान करे।
(5) शिक्षक को चाहिए कि वह स्कूल में विभिन्नसामाजिक योजनाओं के द्वारा बालकों को सामूहिक क्रियाओं में सक्रिय रूप से भाग लेनेके अवसर प्रदान करे। इन क्रियाओं में भागलेने से उसका समाजीकरण स्वत: हो जाएगा।
(6) बालक के समाजीकरण में स्वस्थ मानवीय सम्बन्धोंका गहरा प्रभाव पड़ता है। अत: शिक्षक को चाहिए कि वह दूसरे बालकों, शिक्षकों तथा स्कूल के प्रधानाचार्य के साथ स्वस्थ मानवीय सम्बन्धस्थापित करे। इन स्वस्थ मानवीय सम्बन्धों के स्थापित हो जाने से स्कूल का समस्तवातावरण सामाजिक बन जाएगा
(7) बच्चे को सामाजिक, सांस्कृतिक मान्यताओं, मूल्यों, मानकों आदि का ज्ञान देना उनके समाजीकरण को तीव्र करने में सहायकसिद्ध होता है। जहाँ तक सामाजिक भूमिका की प्रत्याशा एवं उनके निर्वाह का प्रश्नहै, तो अध्यापक स्वयं अपना उदाहरण प्रस्तुत कर उन्हेंअनुकरण हेतु प्रेरित कर सकता है।
(8) विद्यार्थियों से घनिष्ठ व्यक्तिगत सम्बन्धस्थापित कर उन्हें अपनी अभिवृत्तियों की समीक्षा करने हेतु प्रोत्साहित कर तथाउनकी वर्तमान अभिवृत्तियों का समर्थन कर उनके समाजीकरण में सहायता की जा सकती है।समाजीकरण के मामले में बच्चे अपने अभिभावकों एवं शिक्षकों का ही अनुकरण करते हैं।
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