प्रश्न . गणित शिक्षण के प्राप्य उद्देश्य पर प्रकाश डालें ।Bihar D.El.Ed. F-7:Ganit ka Shikshan Shastra notes

 प्रश्न . गणित शिक्षण के प्राप्य उद्देश्य पर प्रकाश डालें ।


उत्तर - प्रत्येक उद्देश्य के अन्तर्गत बहुत से प्राप्य उद्देश्य ( Objectives ) आते हैं । एक शिक्षक को किसी विशेष उद्देश्य हेतु कुछ प्राप्य उद्देश्यों को ध्यान में रखना होता है । कक्षा में किसी उपविषयों को पढ़ाते समय अध्यापक , को एक प्राप्य उद्देश्य सम्मुख है । प्रत्येक प्राप्य उद्देश्य की परीक्षा के लिए शिक्षक को पाठ्य - वस्तु तथा बालक के व्यवहार में परिवर्तन को ध्यान में रखना होता है । यह स्पष्ट है कि किसी प्राप्य उद्देश्य की परीक्षा करने के लिए पाठ्य - वस्तु , प्रश्न , व्यवहार परिवर्तन तथा आवश्यक वस्तुएँ आवश्यक होती हैं । कुछ उदाहरणों से उपर्युक्त कथन की पुष्टि होती है । प्राप्य उद्देश्य कक्षा में अध्यापक द्वारा प्राप्त किये जाने वाले तात्कालिक तथ्य होते हैं । इनके द्वारा छात्र के व्यवहार में परिवर्तन आता है , उनका पूर्वानुमान लगाकर उन्हें अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तनों के रूप में व्यक्त करने की चेष्टा की जाती है । शिक्षाविदों ने कहा है कि , " शिक्षण कुछ कहना न होकर अनवरत अभ्यास की एक प्रक्रिया है । "

अतः सतत् अभ्यास द्वारा छोटे - छोटे लक्ष्य निधारित किये जाते हैं । उन लक्ष्यों को प्राप्य उद्देश्य कहा जाता है तथा इन उद्देश्यों के आधार पर शिक्षण के उद्देश्य निर्धारित होते हैं तथा पुनः विभिन्न शिक्षण विधियों का प्रयोग कर व्यवहारगत परिवर्तन की आशा की जाती है । प्राप्य उद्देश्य ( Objectives ) तथा व्यावहारिक उपयोगिता कहलाती हैं । प्राप्य उद्देश्य लक्ष्य उद्देश्य प्राप्ति की छोटी - छोटी क्रियाएँ प्राप्य उद्देश्य हैं । अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन प्राप्ति के साधन हैं । इन प्राप्य उद्देश्यों की परीक्षा के लिए पाल्य वस्तु , प्रश्न , व्यवहार परिवर्तन तथा आवश्यक वस्तुएँ आवश्यक हैं । गणित शिक्षण में निम्नलिखित प्राप्य उद्देश्य होते हैं-

( 1 ) ज्ञानात्मक उद्देश्य ( Knowledge Type Objectives ) , ( 2 ) अवबोधनात्मक उद्देश्य ( Understanding Type Objectives ) ,

 ( 3 ) अनुप्रयोगात्मक उद्देश्य ( Application Type Objectives ) ,

( 4 ) कौशलात्मक उद्देश्य ( Skill Type Objectives ) ,

( 5 ) अभिवृत्यात्मक उद्देश्य ( Attitude Type Objectives)

( 6 ) अभिरुच्यात्मक उद्देश्य ( Interest Type Objectives)

( 1 ) ज्ञानात्मक उद्देश्य - इसके अन्तर्गत छात्रों को प्रत्ययों , तथ्यों , पदों , चिहों तथा इन पर आधारित नियमों का चयन करना होता है ताकि छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन हो सके । ये निम्नलिखित हैं ( i ) गणित के नये - नये शब्द , चिह , संकेत आदि की वैज्ञानिक शब्दावली के अनुसार जानकारी । ( ii ) विभिन्न शब्दों की परिभाषाओं , नियमों , सिद्धान्तों आदि से परिचित करना तथा उसके पारस्परिक सम्बन्ध को समझना । ( iii ) अपने समीप के वातावरण से सामंजस्य एवं आवश्यक जानकारी होना । ( iv ) पदों , प्रत्ययों तथा नियमों एवं सिद्धान्तों का पूर्ण स्मरण कर सकना तथा उन्हें पहचान सकना । ( v ) गणित के इतिहास के बारे में सम्यक् जानकारी तथा समाज पर उसके प्रभाव से अवगत हो सकना । ( vi ) आरेख रेखाचित्र में पैमाने का उचित निर्धारण ताकि समकों को आकृति में सुगमता से उभारा जा सके ।

( 2 ) अवबोधनात्मक उद्देश्य - इसके अन्तर्गत छात्र गणित से सम्बन्धित पदों , तथ्यों , प्रत्ययों एवं संकेतों का अवबोध करता है । इससे बालक के व्यवहार में निम्नलिखित परिवर्तन होंगे ( i ) आवश्यकतानुसार सूत्र एवं सिद्धान्त का चयन एवं प्रयोग कर सकेगा । त विभिन्न भौतिक राशियों एवं इकाइयों को व्यक्त कर सकेगा तथा विभिन्न सूत्रों , संकेतों एवं नियमों का वर्गीकरण कर सकेगा । ( iii ) तथ्यों , पदों एवं प्रत्ययों के उदाहरण दे सकेगा । ( iv ) छात्र विभिन्न तथ्यों , प्रत्ययों आदि की परस्पर तुलना कर सकेगा ।

( v ) गणितीय विचारों एवं सिद्धान्तों को अपनी भाषा में अभिव्यस्त कर शकणा । ( vi ) दिये गये समंकों एवं अवधारणों की उपयुक्तता एवं अनुपयुकाता को पहचान सकेगा ।

( 3 ) अनुप्रयोगात्मक उद्देश्य - गणितीय समस्याओं को हल करने , नवीन निर्णय लेने हेतु विकास करता है । इससे छात्र के व्यवहार में निम्नलिखित परिवर्तन होता है। समस्या के वर्गीकरण में सूत्र एवं विषय में सूत्र एवं नियम के अन्तर को भली - भति पहचान सकेगा । ( i ) दिये गये आँकड़ों की सहायता से सामान्यीकरण कर नये नियम बना सकेगा । ( iii ) आँकड़ों एवं संकेतों का पूर्वानुमान कर सकेगा । ( iv ) पूर्वानुमानों को कर सकेगा । ( v ) छात्र प्राप्त ज्ञान को जीवन की नई - नई परिस्थितियों में प्रयोग करना सीख सकेंगे । ( 4 ) कौशलात्मक उद्देश्य - गणितीय आरेख , रेखाचित्र , ग्राफ खींचना , यंत्रों का उचित प्रयोग , गणना कार्य , जिसमें शुद्धता आये एवं त्रुटियों का संशोधन कर सके । इससे बालक में निम्नलिखित व्यवहारगत परिवर्तन दृष्टिगोचर होंगे ( 6 ) छात्र गणितीय यंत्रों का नाम जानकर उनका उचित प्रयोग कर सकेगा । ( ii ) गणितीय उपकरणों ( मॉडल ) घन , वर्ग , पिरामिड , शंकु एवं बेलन बना सकेगा । ( iii ) आँकड़ों के आधार पर सही पैमाना मानकर गणितीय आरेख खींच सकेगा । ( iv ) कलात्मक रुचि का विकास कर सकेगा , सहायक सामग्री का निर्माण एवं प्रयोग दक्षता प्राप्त कर सकेगा 


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