भाषा का सांस्कृतिक संदर्भ{ Bhasha ka sanskritiksanskritik Samundar Ka sandarbh }

 भाषा का सांस्कृतिक संदर्भ:


सामाजिक सांस्कृतिक सिद्धांत के अनुसार सामाजिक अंतः क्रिया और सांस्कृतिक संस्थान; जैसे-विद्यालय, कक्षाएं आदि एक बालक के जीवन के संज्ञानात्मक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।


इस सिद्धांत के अनुसार सामाजिक सांस्कृतिक संदर्भ भाषा अधिगम की वर्तमान संज्ञानात्मक और मनोसामाजिक संकल्पना के परेे हैं। यह सिद्धांत बतलाता है कि भाषा अधिगम एक सतत् प्रक्रिया है, जो आसपास के वातावरण से प्रेरित होकर निरंतर चलती रहती है।


हमारा देश एक सांस्कृतिक रूप से भिन्नता लिए हुए देश है। कई संस्कृतियों ने यहां जन्म लिया और विकसित हुई और पनप रही है। इसलिए हर संस्कृति को समावेशित करती हुई शिक्षा दी जानी आवश्यक है।


जी संस्कृति से बालक जुड़ा रहता है उसी से संबंधित पहनावा, खान-पान, रीति रिवाज और रहन-सहन का तरीका उसे सबसे सरल लगता है।यही उसकी विनता का आधार होता है क्योंकि यही उसकी सोच विचार करने की शक्ति को प्रभावित करता है।


विभिन्न धर्मज समुदाय, जाति, जनजाति और व्यवहार व्यवसाय से जुड़े लोग अपने अनुसार अपने समाज में जीवन यापन के लिए नियम निर्माण करते हैं और वही उनके संस्कृति का एक बड़ा हिस्सा बनते हैं। बालक बालक आल से जो संस्कृति परिवेश देखता है उसी में विकसित होता है उसी के अनुसार सीखने के नियम बना लेता है। यही उसकी विनता का आधार बनती है। अतः भाषा शिक्षण में सांस्कृतिक महत्व है।

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