B.Ed. EPC-4 understanding the self pdf Notes in hindi ( स्वयं की समझ ) common questions - answers for all university [Q. आत्म प्रत्यय से आप क्या समझते हैं? इस को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना करें ।

Q. आत्म प्रत्यय से आप क्या समझते हैं? इस को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना करें ।

Ans . आत्म – प्रत्यय वह सामान्य पद है , जिसका अर्थ है व्यक्ति के गुणों और व्यवहार आदि के सम्बन्ध में उसका मत । एक व्यक्ति अपने गुणों और रूवहार आदि के सम्बन्ध में जो मत रखता है , वही उसका आत्म – प्रत्यय है । प्रत्येक व्यक्ति का आत्म – प्रत्यय उसके विचारों पर आधारित होता है तथा उस व्यक्ति के लिए यह आत्म – प्रत्यय बहुत महत्वपूर्ण होता है । मनोविज्ञान में आत्म – प्रत्यय से सम्बन्धित शोध अध्ययन का सन् 1950 के आस – पास से बहुत अधिक महत्व दिया जा रहा है । आत्म – प्रत्यय व्यक्तित्व का केन्द्र बिन्दु है ।

व्यक्तित्व की तुलना साइकिल के पहिए से करें तो कहा जा सकता है कि साइकिल के पहिए में लगा हुआ अब आत्म – प्रत्यय है तथा हब से जुड़ी हुई तीलियाँ व्यक्तित्व के विभिन्न लक्षण या शीलगुण हैं ।

कैटेल ( 1957 ) ने इस सम्बन्ध में विचार व्यक्त करते हुए लिखा है- ” Self – concept is keystone of personality . ” शैफर और शोबिन ( 1956 ) ने इस सम्बन्ध में लिखा है कि- ” The major function of traits is to integrate lesser habits , attitudes and skills into larger thoughts , feeling action patterns . The concept of self , in turn , integrates the psychological capacities of the person and initiates action in this role , the concept of self is the true core centre of gravity of the pattern .”

आइजनेक और उनके साथियों ( 1972 ) ने आत्म – प्रत्यय को परिभाषित करते लिखा है कि ” व्यक्ति के व्यवहार , योग्यताओं और गुणों के सम्बन्ध में उसकी अभिवृत्ति , निर्णयों और मूल्यों के योग को ही आत्म – प्रत्यय कहते हैं । “

आत्म – प्रत्यय के अवयव ( Components of Self – Concept )

आत्म – प्रत्यय के निम्नलिखित तीन प्रमुख अवयव हैं- 1. प्रत्यक्षपरक अवयव ( Perceptual Component ) – इस अवयव के अन्तर्गत उसके शरीर की प्रतिभा आती है तथा दूसरों पर क्या छाप छोड़ता है यह भी उसके प्रत्यक्षपरक अवयव के अन्तर्गत आता है । दूसरे शब्दों में व्यक्ति शारीरिक रूप से कितना आकर्षक है । इस अवयव को शारीरिक आत्म – प्रत्यय भी कहते हैं ।

2. प्रत्ययात्मक अवयव ( Conceptual Component ) – इसके अन्तर्गत उसकी वह विशेषताएँ आती है , जिनके कारण वह दूसरों से भिन्न है । इसके अन्तर्गत उसकी योग्यताएँ और अयोग्यताएँ भी आती हैं । इसके अन्तर्गत जीवन के समायोजन से सम्बन्धित1 विशेषताएँ भी आती हैं , जैसे ईमानदारी , आत्म – शिवस , स्वतंत्रता , साहस अथवा इन गुणों के विपरीत गुण । इस अवयव को मनोवैज्ञानिक आत्म – प्रत्यय भी कहते हैं

3. अभिवृत्तिपरक अवयव ( Attitudinal Self – concept ) – इसके अन्तर्गत व्यक्ति के स्वयं के प्रति भाव आते हैं । इसके अन्तर्गत यह अभिवृत्तियाँ भी आती हैं जो इसके आत्म – सम्मान , आत्म – उपागम , गर्व आदि से सम्बन्धित होती हैं । इसके अन्तर्गत उसके विश्वास , धारणाएँ और विभिन्न प्रकार के मूल्य , आदर्श और आकांक्षाएँ भी आती

आत्म – प्रत्यय के प्रकार ( Kinds of Self – Concept ) – आत्म – प्रत्यय मुख्यतः दो प्रकार का हो सकता है ।

( 1 ) वास्तविक आत्म – प्रत्यय वह कौन और क्या है , से सम्बन्धित आत्म – प्रत्यय ही वास्तविक आत्म – प्रत्यय है

( 2 ) आदर्श आत्म – प्रत्यय वह क्या बनना चाहेगा , से सम्बन्धित आत्म – प्रत्यय ही आदर्श आत्म – प्रत्यय है । उपर्युक्त दोनों प्रकार का आत्म – प्रत्यय प्रायः दो – दो प्रकार का हो 1 सकता है ।

( 1 ) शारीरिक आत्म – प्रत्यय ,

( 2 ) मनोवैज्ञानिक

आत्म – प्रत्यय : इन दोनों प्रकार के आत्म – प्रत्यय का अर्थ ऊपर स्पष्ट किया जा चुका कुछ अनुसंधानकर्ताओं ने दो प्रकार के आत्म – प्रत्यय बताए

( 1 ) गुणात्मक आत्म – प्रत्यय ( Subjective Self – Concept ) – यह आत्म – प्रत्यय अस्थिर होता है । यह ” What I think of myself ” कथन पर आधारित होता है

( 2 ) वस्तुनिष्ठ आत्म – प्रत्यय ( Objective Self – concept ) – आत्म – प्रत्यय अपेक्षाकृत स्थिर होता है । यह ” What others think of me ” कथन पर आधारित होता है । किसी भी प्रकार का आत्म्म – प्रत्यय इन दो प्रकार में से किसी एक प्रकार का हो सकता

आत्म – प्रत्यय को प्रभावित करने वाले कारक ( Factors Effecting Self Concept ) बालकों में आत्म – प्रत्यय का विकास अनेक कारकों पर आधारित है । इन्हीं कारकों के प्रभावों के परिणामस्वरूप बालकों में आत्म – प्रत्यय का विकास होता है । कुछ महत्त्वपूर्ण कारक निम्न प्रकार से हैं ( 1 ) परिपक्वता , ( 2 ) बौद्धिक योग्यताएँ , जैसे बुद्धि , तर्क , कल्पना , स्मृति और चिन्तन आदि( 3 ) सीखने के अवसर , ( 4 ) बालक के परिवार का आर्थिक – सामाजिक स्तर , ( 5 ) अनुभव , विशेष रूप से मूर्त अनुभव , ( 6 ) लिंग , आयु बढ़ने के साथ – साथ यह कारक आत्म – प्रत्यय निर्माण को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करता है , ( 7 ) सूचना प्रतिपूर्ति , ( 8 ) समायोजन , ( 9 ) सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक वातावरण आदि कुछ प्रमुख कारक हैं ।

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