भाषा का अर्थ
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहते हुए वह सदैव विचार विनिमय करता है भाषा मानव भाव की अभिव्यक्ति का माध्यम है तथा अपने भावों की अभिव्यक्ति के लिए मनुष्य संसाधनों का प्रयोग करता है उसे ही सामान्यता भाषा कहते हैं यदि भाषा नहीं होती तो यह संसार निरुद्देशय एवं दिशाहीन हो जाता क्योंकि भाषा के अभाव में मानव अपने भावों की अभिव्यक्ति नहीं कर पाता अतः भाषा मानव को प्राप्त एक अमूल्य वरदान है इस संपूर्ण संसार में केवल मानव जाति को ही भाषा रूपी वरदान प्राप्त है किंतु डरविन जैसे विचारको का मत है कि भाषा ईश्वरीय वरदान नहीं है अपितु मानवीय कलाकृति है।
अतः हम कह सकते है भाषा सार्थक ध्वनि की व्यवस्था है जिसके माध्यम से वक्ता और श्रोता अपने विचारों का आदान प्रदान करते हैं भाषा ध्वनियों, शब्दों और बोलियों से विकसित होती है ।
भाषा की परिभाषा
संपूर्ण संसार में ज्ञान विज्ञान और सभ्यता संस्कृति का आधार भाषा ही है अतः हम कह सकते हैं कि भाषा व साधन है जिसके द्वारा हम बोलकर या लिखकर अपने मन के भाव और विचारों को दूसरों तक पहुंचाते हैं और दूसरे के भाव एवं विचारों को सुनकर या पढ़कर ग्रहण करते हैं विभिन्न विद्वानों ने भाषा की परिभाषा अपने शब्दों में विभिन्न प्रकार से दी है -
डॉक्टर बाबूराम सक्सेना के अनुसार -"जिन ध्वनि चिन्हों के द्वारा मनुष्य परस्पर विचार विनिमय करता है उनको समस्ती रूप से भाषा कहते हैं।"
काव्यादर्श के अनुसार - "यह समस्त तीनो लोक अंधकारमय हो जाते यादि शब्द रूपी ज्योति से यह संसार प्रदीप न होता।"
ब्लॉक और ट्रेजर के अनुसार - "भाषा उस व्यक्त वाणी चीह्न की पद्धति को कहते हैं जिसके माध्यम से समाज पर इस पर व्यवहार करता है।"
भाषा के कितने रूप होते हैं (भाषा के प्रकार)(bhasha ke kitne roop hote hain)
मनुष्य अपने विचारों का आदान प्रदान करने के लिए भाषा के तीन रूपों का प्रयोग करते हैं। भाषा के तीन रूप का नाम नीचे है।
i. मौखिक भाषा
ii. लिखित भाषा
iii. संकेतिक भाषा
i. मौखिक भाषा : - भाषा का वह रूप जिसमें मनुष्य बोल कर अपने बातों को दूसरों तक पहुंचाता है और दूसरा व्यक्ति उनकी बातों को सुनकर समझता है उसे ही मौखिक भाषा कहते हैं। जैसे फोन में बातें करना, एक दूसरे से बात करना इत्यादि।
ii. लिखित भाषा : - जब मनुष्य अपनी बातों को या विचारों को लिखकर दूसरों तक पहुंचाते हैं और दूसरा व्यक्ति उनकी बातों को पढ़कर समझता है तो उसे ही लिखित भाषा कहते हैं जैसे पुस्तक पढ़ना समाचार पत्र पढ़ना व्हाट्सएप का मैसेज पढना इत्यादि।
भाषा की प्रकृति या विशेषताएं
भाषा के विकास तथा मानव के विकास का सीधा संबंध है भाषा भाव एवं विचारों की जननी तथा अभिव्यक्ति का माध्यम और साधन है। भाषा के कारण ही मानव इतना उन्नत प्राणी बन सका है। बुद्धि तथा विचार तथा चिंतन शक्ति के कारण ही मनुष्य भाषा का अधिकारी बना है तथा भाषा की प्रकृति स्वरूप एवं विशेषता के संबंध में हम निम्नलिखित बिंदुओं को देख सकते हैं -
१. भाषा पैतृक संपत्ति नहीं है
२. भाषा परंपरागत है व्यक्ति इसका अर्चन कर सकता है उत्पन्न नहीं कर सकता
३. भाषा का अर्जन अनुकरण के द्वारा होता है
४. भाषा आज संपत्ति है
५. भाषा सामाजिक वस्तु है
६. भाषा परिवर्तनशील है
७. भाषा का कोई अंतिम स्वरूप नहीं है
८. भाषा जटिल से सरलता की ओर जाती है
१. भाषा पैतृक संपत्ति नहीं है :-पैतृक संपत्ति पर पुत्र का अधिकार होता है किंतु भाषा पैतृक संपत्ति नहीं है। यदि यह पैतृक संपत्ति होती तो प्रत्येक बालक जो भारत का निवासी है वह भारतीय भाषा ही बोलता किंतु यदि किसी भारतीय बच्चे को जन्म के कुछ दिन पश्चात इंग्लैंड भेज दिया जाए तो वह वहां भारतीय भाषा नहीं बोलेगा बल्कि वहां की भाषा बोलेगा इसलिए भाषा पैतृक संपत्ति नहीं है।
२. भाषा परंपरागत है व्यक्ति इसका अर्चन कर सकता है उत्पन्न नहीं कर सकता : - व्यक्ति भाषा को उत्पन्न नहीं कर सकता है उसमें परिवर्तन भले ही करते है पर भाषा का जन्म परंपरा और समाज से ही होता है यही भाषा की जननी है।
३. भाषा का अर्जन अनुकरण के द्वारा होता है :- बच्चा मां से कई तरह की बातें सुन कर सकता है वह रोटी कहने का प्रयत्न करता है अनुकरण मनुष्य का सबसे बड़ा गोल है और हम अनुकरण के सहारे ही भाषा को सीखते हैं।
४. भाषा अर्जित संपत्ति है :- मनुष्य भाषा का अर्जुन अपने परिवार और वातावरण से करता है इसलिए जैसा वातावरण होता है वैसे ही मनुष्य की भाषा भी होती है।
५. भाषा सामाजिक वस्तु है :- भाषा का अर्जन समाज के संपर्क से ही होता है क्योंकि भाषा का जन्म समाज में ही होता है और प्रयोग भी समाज में ही होता है मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसे विचार विनिमय के लिए समाज में रहते हुए में भाषा की आवश्यकता पड़ती है।
६. भाषा परिवर्तनशील है :- वस्तुतः भाषा के मौखिक रूप को ही भाषा कहा जाता है लिखित रूप तो इसलिए पीछे पीछे चलती हैं भाषा को व्यक्ति अनुकरण के द्वारा सीखता है और या अनुकरण सदा पूर्ण होता है इसी कारण भाषा में हमेशा बदलाव या परिवर्तन होता है।
७. भाषा का कोई अंतिम स्वरूप नहीं है :- भाषा कभी भी पूर्ण नहीं होती अर्थात् यह कभी नहीं कहा जा सकता कि भाषा का अंतिम रूप कुछ और है भाषा से हमारा तात्पर्य जीवित भाषा से हैं।
८. भाषा जटिल से सरलता की ओर जाती है :- कोई भी मनुष्य कम परिश्रम में अधिक कार्य करना चाहता है मानव की यही प्रवृत्ति भाषा के लिए उत्तरदायी है। जैसे टेलीविजन को टीवी कहां कर काम चला लिया जाता है।
९. भाषा के माध्यम से मानव अपने ज्ञान को संक्षिप्त करता है प्रचार करता है और अभिवृद्धि भी करता है।
१०. भाषा के प्रमुख तत्व ध्वनियां, चीह्न एवं व्याकरण होते हैं भाषा के अंतर्गत सार्थक शब्द समूह को भी सम्मिलित किया जाता है।
११. भाषा मानवी कलाकृति हैं जिसका प्रमुख कौशल बोलना, पढ़ना, लिखना एवं सुनना है।
१२. भाषा मौखिक तथा लिखित प्रतीकों शब्दों और संकेतों की व्यवस्था है।
♦भाषा शिक्षण का उद्देश्य♦
● भाषा शिक्षण का उद्देश्य भाषा की समझ और अभिव्यक्ति का विकास करना है।
● इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए ऐसा आत्मीय परिवेश ज़रूरी है जिसमें हर बच्चा अपनी सोच और भावनाओं को बगैर डर और संकोच के व्यक्त कर सके।
● इसके लिए नीचे दिए गए तीन बिंदुओं पर एक अध्यापक का संवेदनशील होना ज़रूरी है–
(1) सभी बच्चों की सीखने की गति समान नहीं होती।
(2) बच्चे के घर की भाषा और संस्कृति को सहज रूप से स्वीकार करें तथा बहुभाषिकता को एक संसाधन के रूप में इस्तेमाल करें।
(3) त्रुटियाँ बच्चों की सीखने की प्रक्रिया का स्वाभाविक और अस्थायी चरण होती हैं।
● इन तीनों बिंदुओं का विस्तृत वर्णन इस प्रकार से है–
⊙ सभी बच्चों की सीखने की गति समान नहीं होती-
● बच्चों की सीखने की गति समान नहीं होती (यह विकास के व्यक्तिगत भिन्नता के सिद्धांत पर आधारित है)।
● सीखने में बच्चों का उत्साह पैदा करने और उसे बनाए रखने के लिए यह ज़रूरी है कि उन्हें अपनी गति से सीखने की छूट मिले।
● इसके लिए अध्यापक को धैर्यवान होना चाहिए ताकि वह ऐसे अवसरों पर धैर्य रख सके।
⊙ बच्चे के घर की भाषा (बहुभाषिकता) और संस्कृति को एक संसाधन के रूप में इस्तेमाल करें–
● बच्चे का परिवेश उसकी भाषा को गढ़ता है। इसलिए उच्चारण और शब्दावली परिवेश का प्रभाव होना स्वाभाविक है।
● यह बहुत ज़रूरी है कि अध्यापक बच्चे के घर की भाषा और संस्कृति को सहज रूप से स्वीकार करें ताकि बच्चे में सीखने का आत्मविश्वास और उत्साह पैदा हो सके।
● रिमझिम और मैरीगोल्ड (Marigold)° में भाषा के कई प्रश्न दिए गए हैं जो एन.सी.एफ(2005) में दिए गए सुझाव के अनुरूप बहुभाषिकता को एक संसाधन के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
°– English Textbook (l–V)
● बहुभाषिकता हमारे देश की एक सांस्कृतिक विशेषता है जो किसी ना किसी रूप में हर कक्षा में देखी जा सकती है।
● विभिन्न शोधों के माध्यम से यह बात पूरे विश्व में सिद्ध हो चुकी है कि कक्षा में मौजूद भाषायी विविधता सोचने, समझने और व्यक्त करने के तरीकों का विस्तार करती है।
⊙ त्रुटियाँ बच्चों की सीखने की प्रक्रिया का स्वाभाविक और अस्थायी चरण–
● किसी भी भाषा की समृद्धि तथा जीवंतता की पहचान उसके विभिन्न रूपों, शब्दों तथा शैली की विविधता से होती है।
● कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिसका अर्थ अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग होता है।
● बच्चों से इस बारे में चर्चा करें, इस दौरान बहुत से शब्द निकल कर आएँगे।
● बच्चों के उत्तरों और उनमें निहित सोच एवं कल्पना को स्वीकार करना ज़रूरी है।
● शुरू से ही बच्चों की त्रुटियाँ निकालना, उनकी अलोचना करना और दंडित करना शिक्षा के बुनियादी उद्देश्यों को खंडित और ध्वस्त कर देना है।
● प्रारंभिक स्तर में की गई त्रुटियाँ बच्चों की सीखने की प्रक्रिया का स्वाभाविक और अस्थायी चरण होती हैं।
● त्रुटियों से आपको यह जानने में मदद मिलेगी कि उन पर कब और कैसे ध्यान दिया जाना उपयोगी होगा।
● अध्यापक को बच्चों की आँचलिक रंगतों को उनकी त्रुटियाँ समझने से बचना चाहिए।
● अध्यापक बच्चों की उन्हीं त्रुटियों पर ध्यान दें जो बातचीत तथा समझ में बाधा बन रहीं हो।
● जब बच्चा कोई त्रुटि करता है तो अध्यापक को बीच में ही उसे ठीक नहीं करना चाहिए। बच्चे को उसकी बात पूरी करने पर ही सहजता के साथ ठीक करना चाहिए।
● अध्यापक यह प्रयास करे कि बच्चा स्वयं अपनी त्रुटि को अपनी समझ और कोशिश से दूर कर सके।
● जहाँ तक परीक्षा की बात है, परीक्षा में त्रुटियों पर ध्यान देने के बदले बच्चे द्वारा कही गई बात को ध्यान में रखना अधिक उपयोगी रहेगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें