आई 0 सी 0 टी 0 की आलोचनात्मक समझ प्रश्नपत्र कोड- EPC - 3
1 . सूचना एवं संचार तकनीकी की अवधारणा ।
2 . सूचना एवं संचार तकनीकी का शिक्षा के लिए महत्त्व ।
3 . सूचना एवं संचार तकनीकी का लक्ष्य एवं उद्देश्य ।
• वर्तमान पीढ़ी को प्रभावी ‘साइबर शिक्षा ऐज’ में उचित प्रकार से प्रतिस्थापित करना, जिससे विद्यार्थी अपने स्थान पर ही विभिन्न संचार साधनों व उपकरणों से ऑन लाइन शिक्षा प्राप्त कर सकें।
• पारंपरिक पुस्तकालयों के स्थान पर संचार तकनीकी पर आधारित डिजिटल पुस्तकालयों की
स्थापना करना।
• शिक्षा एवं अनुसंधान जनित विषय सामग्री को जन-जन तक सुलभ संचार करना, हस्तांतरण करना तथा प्रभावी पंहुच बनाना।
• शिक्षा, कृषि, व्यापार, स्वास्थ्य आदि महत्वपूर्ण क्षेत्रों की सूचनाओं का राष्ट्रीय डाटाबेस बनाना।
• आईसीटी के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों तथा महाविद्यालयों में एक अनुकूल माहौल उत्पन्न करना। इसके लिए उपयोग उपकरणों का वृहद स्तर पर उपलब्धता, इंटरनेट कनेक्टिविटी और आईसीटी साक्षरता को बढ़ावा देना।
• निजी क्षेत्र व स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशनल टेक्नोलॉजी के माध्यम से अच्छी सूचनाओं की ऑनलाइन उपलब्धता सुनिश्चित करना।
• शिक्षण व प्रशिक्षण के लिए वर्तमान पाठ्यक्रम व शिक्षणशास्त्र के संवर्द्धन के लिए सूचना व
संचार प्रौद्योगिकी उपकरणों का उपयोग करना।
• उच्च अध्ययन और लाभकारी रोजगार के लिए जरूरी सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ी कुशलता प्राप्त करने में विद्यार्थियों को सक्षम बनाना।
• सूचना व संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से शारीरिक व मानसिक रूप से विकलांग छात्र छात्राओं के लिए प्रभावी शिक्षण वातावरण उपलब्ध कराना। आत्म-ज्ञान का विकास कर छात्रों में महत्वपूर्ण सोच और विश्लेषणात्मक कौशल को बढावा देना। यह कक्षा को शिक्षक केंद्रित स्थल से बदलकर विद्यार्थी केंद्रित शिक्षण केन्द्र में बदल देगा।
• दूरस्थ शिक्षा एवं रोजगार प्रदान करने के लिए दृश्य-श्रव्य एवं उपग्रह आधारित उपकरणों के माध्यम से सूचना व संचार प्रौद्योगिकी के प्रयोग को बढ़ावा देना।
• निजी क्षेत्र व स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशनल टेक्नोलॉजी के माध्यम से अच्छी सूचनाओं की ऑनलाइन उपलब्धता सुनिश्चित करना।
• शिक्षण व प्रशिक्षण के लिए वर्तमान पाठ्यक्रम व शिक्षणशास्त्र के संवर्द्धन के लिए सूचना व
संचार प्रौद्योगिकी उपकरणों का उपयोग करना।
• उच्च अध्ययन और लाभकारी रोजगार के लिए जरूरी सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ी कुशलता प्राप्त करने में विद्यार्थियों को सक्षम बनाना।
• सूचना व संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से शारीरिक व मानसिक रूप से विकलांग छात्र छात्राओं के लिए प्रभावी शिक्षण वातावरण उपलब्ध कराना। आत्म-ज्ञान का विकास कर छात्रों में महत्वपूर्ण सोच और विश्लेषणात्मक कौशल को बढावा देना। यह कक्षा को शिक्षक केंद्रित स्थल से बदलकर विद्यार्थी केंद्रित शिक्षण केन्द्र में बदल देगा।
• दूरस्थ शिक्षा एवं रोजगार प्रदान करने के लिए दृश्य-श्रव्य एवं उपग्रह आधारित उपकरणों के माध्यम से सूचना व संचार प्रौद्योगिकी के प्रयोग को बढ़ावा देना।
4 . सूचना तकनीकी का अर्थ एवं आवश्यकता ।
Ans. सूचना एवं संचार तकनीकी से तात्पर्य उस सूचना सम्प्रेषण तकनीकी से है जिसके माध्यम से सम्प्रेषण कार्य अत्यधिक प्रभावी ढंग से समपन्न किया जाता है। इसका संबंध वैज्ञानिक तकनीकी के ऐसे संसाधनो व साधनों से होता है जिसके माध्यम से त्वरित गति से सूचनाओं का प्रभावी आदान-प्रदान होता है। इसे सामान्य अर्थ में यह कहा जा सकता है कि किसी तथ्य या सूचना को जानना एवं उसे तुरंत उसी रूप में आगे पहुँचाना जिस रूप में वह है, सूचना संचार प्रौधिगिकी कहलाता है।’
इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार- “ एक व्यक्ति या संस्थान से दूसरे व्यक्तियों या संस्थान तक एक बात का पंहुचाना सूचना कहलाता है जबकि संचार का अर्थ है सूचना या अन्य किसी तथ्य का एक स्थान से दसरे स्थान तक गमन ।”
सूचना एवं संचार तकनीकी विभाग (आईसीटी) का मुख्य उद्देश्य संस्थान में संजाल (नेटवर्किंग), ई-मेल एवं कम्प्यूटर सेवाएं उपलब्ध कराना है। विभाग का मुख्य क्रियाकलाप ई-मेल सेवा का उच्चीकरण, वेबसाइट, इण्टरनेट, डीएचसीपी, डीएनएस, रूटर, ब्रिज, एण्टी वायरस, बैक-अप, एवं डाटाबेस सर्वर का रखरखाव है।
5 . भारत में ICT शिक्षा का विकास ।
Ans. (आईसीटी) के रूप में संदर्भित एक नई सूचना पर्यावरण का निर्माण करने के लिए संयुक्त थे।
आईसीटी सूचना प्रौद्योगिकी के बारे में संवाद करने और प्रबंधित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले तकनीकी उपकरण हैं I आईसीटी के पुराने रूप में रेडियो और टेलीफोन शामिल हैं, जबकि इस शताब्दी में आईसीटी में कंप्यूटर का उपयोग, विभिन्न वायरलेस तकनीकों या प्रमुख उपकरण इंटरनेट शामिल हैं। आईसीटी को एक सूचना प्रबंधन उपकरण के रूप में भी माना जा सकता है, जो मूल रूप से विकासशील देशों में उनके विकास के लिए मुख्य रूप से उत्पादन, वितरण और आदान-प्रदान करता है। आईसीटी के उपकरण एक विशाल नेटवर्क का निर्माण करते हैं जो दुनिया के हर कोने तक पहुंचता है।
ग्रामीण विकास आर्थिक विकास से संबंधित है और साथ ही पर्याप्त और आवश्यक आवश्यकताओं को प्रदान करके ग्रामीण लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए आईसीटी ग्रामीण विकास में मदद करने के लिए नया उपकरण हो सकता है। आईसीटी ग्रामीण क्षेत्रों में सूचनाओं की उपलब्धता और पहुंच बढ़ाने और सामाजिक संबंधों को बनाने और बदलने के लिए सहायता प्रदान करने में मदद कर सकता है। आईसीटी ग्रामीण भारत को सशक्त बनाने और टिकाऊ ग्रामीण विकास को प्राप्त करने के लिए विभिन्न तरीकों की पेशकश कर एक अभिन्न अंग चलाते हैं।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच डिजिटल विभाजन को पुल करने के लिए भारत सरकार कई परियोजनाओं को लागू कर रही है। डिजिटल डिवाइड आईसीटी का इस्तेमाल करने और उसका उपयोग करने में अक्षमता है जिससे इसके संभावित लाभ प्राप्त करने की उनकी क्षमता को सीमित कर सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्य रूप से स्वास्थ्य, शिक्षा, सरकार और बुनियादी ढांचे में शहरी क्षेत्रों के पीछे आते हैं। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों से भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान करने में मदद करने के लिए इस अंतर को दूर करने के लिए तत्काल आवश्यकता है। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वे नई प्रौद्योगिकियों के अनुकूल हों और उनकी आवश्यकता को समझें, जो कि ज्यादातर अशिक्षित हैं। भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न ग्रामीण विकास योजनाएं और कार्यक्रम निम्न हैं:
प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई): यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क संपर्क प्रदान करने के लिए शुरू की गई थी। असंबद्ध गांवों के लिए सबसे पुराना कार्यक्रम शुरू किया गया।
प्रधान मंत्री ग्रामीण आवास योजना (पीएमजीए): ग्रामीण भारत के लिए आवास उपलब्ध कराने के लिए भारत सरकार द्वारा यह योजना शुरू की गई थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य उन्हें सम्माननीय के घर बनाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना था। 2017 तक भारतीय गांवों से अस्थायी घरों को बदलने की सरकार का प्रमुख दृष्टिकोण है
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी): यह भारत सरकार की एक केन्द्रीय प्रायोजित योजना है जो सामाजिक पेंशन के रूप में वृद्ध, विधवा और विकलांग व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
प्रधान मंत्री ग्रामीण विकास फैलो (पीएमआरडीएफ): यह योजना ग्रामीण इलाकों या देश के पृथक और दूरदराज के इलाकों में मदद करने के लिए अपने जीवन को बेहतर बनाने और गरीबी को कम करने के लिए शुरू किया गया था। यह ग्रामीण विकास मंत्रालय (एमओआरडी), भारत सरकार (भारत सरकार) और राज्य सरकारों की एक पहल है।
ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाओं का प्रावधान (पूर्वा): यह एक रणनीति है जो ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और बेहतर सुविधाओं के निर्माण के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी बुनियादी सुविधाओं और सेवाओं का प्रस्ताव पेश करती है, ताकि ग्रामीण इलाकों में आर्थिक अवसर पैदा हो सकें। यह अवधारणा भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा। ए.पी.जे. द्वारा दी गई थी। अब्दुल कलाम।
ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में मुख्य रूप से सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाएं सुधारना, साथ ही साथ स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य आवश्यक क्षेत्रों के लिए आधारभूत सुविधाएं प्रदान करना शामिल हैं। आईसीटी संचार और साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कार्यों का एक अद्वितीय संयोजन है ग्रामीण विकास के लिए एक प्रेरणा शक्ति के रूप में भारत में आईसीटी की तेजी ने पहले ही लोगों के जीवन में बदलाव शुरू कर दिया है।
6. सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के साधन / माध्यम - बहुमाध्यम ।
Ans.
सूचना एवं संचार तकनीकी के विविध साधन आज तंत्रयुग में विकसित हुए हैं । इन साधनों के माध्यम से सूचना एवं संचार तकनीकी के क्षेत्र का विकास हुआ है । सूचना एवं संचार तकनीकी एवं संचार तकनीकी क्षेत्र के विकसित साधनों से शिक्षा क्षेत्र मे द्रुत गति से विकास हुआ है ।
साधनों के प्रकार
० दृश्य साधन प्रदर्शन , स्थिरचित्र , दृश्य प्रतीक , मानचित्र , एटलस , भित्तीचित्र , ग्लोब , रेखाचित्र , आलेख चित्र , चित्र विस्तारक यंत्र , चार्ट , बुलेटिन बोर्ड , फॅनल बोर्ड आदि साधनों का समावेश दृश्य साधनों में होता है ।
• श्रव्य साधन रेडियो , टेपरिकॉर्डर , ऑडिओ रिकॉर्डर , सम्मेलन . साक्षात्कार . सार्वजनिक सभा . टेलीफोन आदि साधनों का समावेश श्रव्य साधनों में होता है ।
२ दृश्य - श्रव्य साधन नाटक . फिल्म , चलचित्र ( दृश्य - श्रव्य ) , दूरदर्शन , वीडियो प्लेअर , सी.डी.प्लेअर . संगणक , टेलीकान्फ्रेसिंग , उपग्रह प्रक्षेपण . इंटरनेट आदि साधनों का समावेश दृश्य - श्रव्य साधनों में होता है ।
सूचना एवं संचार तकनीकी के प्रमुख साधन निम्नलिखित हैं :
1 ) रेडियो प्रसारण ( Radio Broad Casting ) यह शिक्षण का श्रव्य साधन है । आजकल रेडियो प्रसारण सूनना प्रत्येक व्यक्ति की चि में शामिल है । रेडियो जनसंचार का प्रभावी एवं महत्वपूर्ण माध्यम है । शिक्षण हेतु रेडियो का प्रयोग बढ़ता जा रहा है । शिक्षण विशेषज्ञ , शैक्षिक विचारक , शैक्षिक दर्शनशास्त्री , शिक्षा विषयक नवाचार का प्रसारण रेडियो द्वारा प्रभावी रूप से कर सकते हैं । यह सूचना एवं संचार तकनीकी का शिक्षा के लिए उपयुक्त प्रयोग है ।
2 ) टेपरिकॉर्डर ( Tape Recorder ) बालकाव्य , भाषा संभाषण , भाषण कौशल , देशभक्ति एवं शैक्षिक काव्य , प्रेरणादायी विचारों का संकलन , शिक्षा विशेषज्ञ , आदर्श पाठ्यक्रम आदि के शिक्षा के उपयोग में टेपरिकॉर्डर प्रभावी साधन सिद्ध हुआ है ।
3 ) शिक्षण मशीन ( Teaching Machines ) बी . एफ . स्किनर ने सर्वप्रथम शिक्षण मशीन का प्रयोग किया जिसमें विद्यार्थियों को मशीन के माध्यम से बाह्य अनुक्रिया के लिए स्पष्टीकरण दिया जाता है । इससे विद्यार्थी अपनी त्रुटि सुधार लेता है तथा उसे पुनर्बलन ( Reinforcement ) भी मिलता है । अभिक्रमित अनुदेशन के प्रस्तुतिकरण में शिक्षण मशीन बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है ।
4 ) टेलीविजन ( Television ) टेलीविजन नवीनतम दृश्य - श्रव्य उपकरण है । शिक्षा देने के लिए इसका प्रयोग प्रारम्भ हो गया है । टेलीविजन मे बालक अपनी देखने तथा सुनने की दोनों इंद्रियों का प्रयोग करने के कारण किसी भी तथ्य को शीघ्रता से सीख जाता है । यह उपकरण योग्यतम शिक्षकों को देश की शिक्षा संस्थाओं तक पहुंचा देता है और शिक्षा के स्तर को ऊँचा उठाने में सहायक होता है । इसका लाभ यह है कि इसमें मानचित्र , मॉडल , फोटोचित्र , फिल्म आदि विविध प्रकार की अव्य - दृश्य सामग्री का उपयोग किया जा सकता है , ताकि शिक्षण प्रभावशाली बन सके । इस उपकरण के महत्व का उल्लेख करते हुए ' धट व गेरेबेरिच ' ( Thut & Gereberich ) ने बड़ा सटीक कहा है , " यह सबसे अधिक आशापूर्ण श्रव्य - दृश्य उपकरण है क्योंकि संदेशवाहक के इस एक यंत्र में रेडियो तथा चलचित्र के गुणों का सम्मिश्रण है । प्रारम्भिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण , औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा , वयस्कों के लिए अनौपचारिक , आर्थिक एवं सामाजिक शिक्षा , राष्ट्रीय एकता के लिए शिक्षा आदि के लिए उपयुक्त है । यह टेली - पाठ के प्रसारण हेतु अत्यंत उपयुक्त है ।
5 ) संगणक ( Computer ) 21 वीं सदी का सर्वोत्तम मानवीय अविष्कार संगणक का निर्माण है । संगणक की कार्यक्षमता एवं उपयोगिता के अनुसार संगणक सभी क्षेत्रों में उपयुक्त सिद्ध हुआ है । संगणक को सहायता से अनुदेशन कार्यक्रम शिक्षा के लिए उपयुक्त है । इससे शिक्षार्थी एवं विद्यार्थी दोनों ही अपनी गति , क्षमता , बौद्धिक स्तर के अनुसार शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं । शिक्षा प्रबंधन हेतु संगणक बहुत ही महत्वपूर्ण है । शिक्षण एवं अनुदेशन में संगणक का प्रयोग दिन - प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है । आधुनिक युग में संगणक का उपयोग मापन , मूल्यमापन एवं मूल्यांकन हेतु किया जाने लगा है । परीक्षा परिषदें , विश्वविद्यालय और अन्य शिक्षा संस्थान परीक्षाओं में मूल्यांकन करने और परीक्षा परिणाम बनाने में संगणक का सहारा लेते हैं । संगणक का शिक्षण - साधन के रूप में अधिक उपयोग न करके अधिगम साधन के रूप में अधिक उपयोग किया जाता है । शोधकार्य में सूचना संकलन तथा सांख्यिकीय विश्लेषण तथा वर्ड प्रोसेसिंग ( शब्द संसाधन ) आदि के लिए भी उपयुक्त है ।
6 ) इंटरनेट ( Internet ) संगणक इंटरनेट से सूचना का आदान - प्रदान सरलता से करता है । इंटरनेट से बातचीत , खरीददारी , व्यवसाय . पत्रव्यवहार , मनोरंजन आदि कार्य किये जाते हैं । शोध कार्य हेतु इंटरनेट अधिक महत्वपूर्ण है । जानकारी प्राप्त करने में इंटरनेट अलादिन के चिराग जैसा है जिसके माध्यम से विश्व के किसो क्षेत्र , विषय , व्यक्ति आदि को जानकारी तुरन्त प्राप्त की जाती है । शिक्षा क्षेत्र हेतु यह महत्वपूर्ण कदम है । ई - मेल जैसी ऑनलाईन सेवाओं से घर बैठे या अपने कार्यालय में बैठे - बैठे सरलता से कार्य किया जा सकता है । इंटरनेट द्वारा संदेश भेजना और प्राप्त करना बड़ा आसान है । ई - मेल से ग्राफिक्स , टेक्स्ट तथा एनीमेशन आदि को आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रेषित और प्राप्त किया जा सकता है । इंटरनेट की सहायता से चैटिंग , ई - कॉमर्स , ई - बॉकंग , ई - एजुकेशन आदि का उपयोग सरलता किया जा सकता है । आज Facebook , WhatsApp , Twitter , You - tube आदि सोशल नेटवर्क साईट्स सूचना एवं संचार तकनीकी का अहम हिस्सा बन रहे हैं ।
7 ) उपग्रह प्रसारण सूचना एवं संचार तकनीकी क्षेत्र में उपग्रह का महत्वपूर्ण उपयोग किया जा रहा है । उपग्रह की सहायता से सूचनाओं का आदान - प्रदान करना सरल हुआ है । रेडियो , टेलीविजन , संगणक , इंटरनेट , मोबाइल , सोशल साइट्स आदि के उपयोग के लिए उपग्रह प्रसारण का ही प्रसारण किया जाता है । शिक्षा क्षेत्र में जनशिक्षा हेतु उपग्रह प्रसारण महत्त्वपूर्ण है । वीडियो कॉन्फ्रेसिंग , टेलिकॉन्फ्रेसिंग , ई - मेल , चेटिंग , ऑनलाईन पत्रिकाएं , विज्ञापन पढ़ना और जानना , नेटसफिंग आदि की कल्पना आज उपग्रह प्रसारण के बिना असम्भव है ।
8 ) वीडियो डिस्क वीडियों में सूचनाओं का दृश्य एवं श्रव्य मंडार किया जाता है । इसमें मडारित सूचनाओं को आवश्यकतानुसार स्क्रीन पर देखा जा सकता है । टेलीविजन सेट मोनिटर या वीडियो डिस्क प्लेअर के माध्यम से इन सूचनाओं को देखा . सुना जा सकता है । वीडियो डिस्क में मुद्रित पाठ्य - सामग्री . दृश्य - श्रव्य , फिल्म , स्लाइड्स आदि को संचय या भंडार किया जा सकता है । वीडियो डिस्क को आगे - पीछे घुमाकर सुविधा अनुसार सूचना एवं ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है । यह अध्ययन - अध्यापन कार्य हेतु एक प्रभावी माध्यम है ।
9 ) टेलीटेक्स्ट टेलोटेक्स्ट संगणक तकनीक की एक युक्ति है । इसका प्रयोग रेलवे , एअर ट्रैफिक कंट्रोल , एअरलाइंस पूछताछ आदि विभिन्न क्षेत्रों में देखा जा सकता है । विद्युत उपकरण की सहायता से टेलोटेक्स्ट प्रयोक्ता प्रसारण सूचना में से बाछित सूचना का चयन कर सकता है । टेलोटेक्स्ट संचार तकनीकी में टेलीविजन प्रसारण केंद्र से सूचना को टेलीविजन नेटवर्क के माध्यम से प्रसारित किया जाता है ।
10 ) वीडियो टेक्स्ट टेलीविजन के माध्यम से शिक्षण प्रशिक्षण देने की पद्धति को वीडियो टेक्स्ट कहते हैं । यह दोनों तरफ से संचार माध्यम होता है । संगणकीकृत सूचनाओं तक पहुंच बनाने के लिए वीडियो टेक्स्ट में टेलीविजन और टेलीफोन का उपयोग किया जाता है । वीडियो टेक्स्ट को चलाए जाने पर उसमें संग्रहित सामग्री को रिकॉर्डर की सहायता से टेलीविजन पर प्रदर्शित किया जाता है । वीडियो टेक्स्ट पद्धति के अन्तर्गत एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से प्रश्न पूछ सकता है और अपेक्षित सूचना प्राप्त करने का प्रयास कर सकता है । टेलीटेक्स्ट इलेक्ट्रॉनिक पाठ का व्यापक - विस्तृत रूप वीडियो टेक्स्ट होता है ।
11 ) पेजिंग , सेल्युलर एवं सेटेलाईट फोन सेवा सूचना तकनीकी के क्षेत्र में पेजिंग , सेल्युलर एवं सेटेलाईट फोन सेवा का भी महत्वपूर्ण योगदान है । इन प्रणालियों में रेडियो तरंगों का उपयोग होता है । पेजर का प्रयोक्ता एक निश्चित पहुँच के दायरे में अंकों अथवा शब्दों में सूचना या संदेश भेज सकता है तथा ये संदेश या सूचनाएँ पेजर में आती हैं जिन्हें पेजर प्रयोक्ता बाद में भी पढ़ सकता है । सेल्युलर फोन सूचना या संदेश संप्रेषण की दुतरफा संचार सेवा है । इसका उपयोग कहीं भी किसी भी समय किया जा सकता है । सेटेलाईट फोन सेवा उपग्रह आधारित सेवा है जिसके माध्यम से विश्व में किसी भी जगह बैठे व्यक्ति से तुरंत संपर्क स्थापित किया जा सकता है । सूचना एवं संचार तकनीकी साधन का उपयोग शिक्षा , व्यापार , बैंकिंग , प्रबन्धन , कम्पनियों , स्वास्थ , अभियांत्रिकी , प्रशासन आदि क्षेत्रों में किया जा रहा है ।
7 . शिक्षा में सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी की भूमिका ।
आधुनिक युग में सूचना सम्प्रेषण तकनीकी ने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । सूचना सम्प्रेषण तकनीकी ने मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया है । सूचना सम्प्रेषण तकनीकी मानव जीवन की आवश्यकता ही नही बल्कि एक विशेष अंग बन गई है । निम्न बिन्दुओं के आधार पर सूचना सम्प्रेषण तकनीकी का महत्व बताया जा . सूचना - सम्प्रेषण तकनीकी विधार्थियों के लिए ध्यान केन्द्रित करने का उत्तम साधन है । सूचना - सम्प्रेषण तकनीकी का उपयोग छात्र - छात्राओं के अधिगम स्तर को सरल तथा सुगम बनाने में किया जा सकता है ।
• सूचना - सम्प्रेषण तकनीकी छात्रों के स्तरानुसार पाठ्य - सामग्री को सरस एवं रूचिपूर्ण बनाने में उपयोगी सिध्द . . सभी स्तर के विधार्थीयों की शिक्षा सम्बन्धी जरूरतों को पूर्ण करने में सूचना सम्प्रेषण तकनीकी का अधिकाधिक महत्व है ।
दिन - प्रतिदिन शिक्षा की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए वर्तमान समय में सूचना सम्प्रेषण तकनीकी का अहम योगदान रहा है । सूचना - सम्प्रेषण शैक्षिक ही नही वरन् सामाजिक वातावरण को व्यवस्थित दिशा एवं दशा प्रदान करने में लाभदायक है ।
. आवश्यकता - सूचना सम्प्रेषण तकनीकी , मानव - जीवन की महत्वपूर्ण आवश्यकता बन चुकी है । सूचना - सम्प्रेषण के माध्यम से किसी भी क्षेत्र के कर्मचारियों तथा अधिकारियों के ज्ञान में तीव्र वृष्दि की जा सकती है । इससे वे अपने कार्य को और भी ज्यादा निपूणता पूर्वक कर सकते है । मानवीय संसाधनों को जुटाना , नियुक्ति सम्बन्धी कार्य करना आदि । इन सभी कार्यों के लिए सूचनाओं का प्रचार - प्रसार अत्यन्त आवश्यक है । सूचना - सम्प्रेषण का प्रयोग इस कारण भी किया जाता है । ताकि व्यवसाय से सम्बन्धित सभी सूचनाओं का आदान - प्रदान सरतापूर्वक हो सके ।
इसकी सहायता से वस्तुओं का क्रय - विक्रय , उपभोक्ताओं की आवश्यकता पूर्ति , संसाधनों की उपलब्धता आदि के सम्बन्ध में सूचनाएं भेजी एवं प्राप्त की जा सकती है । सम्प्रेषण का उपयोग आज के वर्तमान समय में सभी स्तरों पर सूचनाओं भेजने प्राप्त करने , योजनाएं बनाने आमजन को जीवन की वास्तविकताओं से परिचित कराने में किया जाता है । सूचना - सम्प्रेषण तकनीकी समन्वय के लिए भी आवश्यक है । सभी प्रकार की व्यावसायिक क्रियाओं को व्यवस्थित क्रियाओं को व्यवस्थित रूप से जारी रखने के लिए आवश्यक है कि , विभिन्न विभागों एवं संस्थाओं में समन्वय स्थापित किया जाए और ऐसे कार्यों के लिए भी सूचना सम्प्रेषण की सहायता ली जाती है । इन्ही कारणों की वजह से सूचना - सम्प्रेषण तकनीकी मानवीय बहुमुखी विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक है ।
8 . टेली कान्फ्रेन्सिंग ।
उत्तर -
टेली कॉन्फ्रेन्सिंग (Tele Conferencing)- टेली कॉन्फ्रेन्सिंग में कई माध्यम होते हैं। इसमें द्विमार्गीय प्रसार द्वारा अन्तर्क्रिया तथा सामूहिक संचार की व्यवस्था होती है। डॉ. कुलश्रेष्ठ एवं सिन्हा के अनुसार, “टेली कॉन्फ्रेन्सिंग या टेली कॉन्फ्रेन्स वास्तव में दूर दूर बैठे हुए दो अथवा दो से अधिक के मध्य वास्तविक समय अन्तःप्रक्रिया होती है।” टेली कॉन्फ्रेन्सिंग करने के लिए एक से अधिक टेलीफोन लाइनों की आवश्यकता पड़ती है। अथवा पारस्परिक सम्बन्धित युक्तियों की जरूरत होती है जिसे सम्पर्क विधि कहा जाता है। प्रत्येक युक्तियों को प्रत्येक सम्पर्क द्वारा जोड़ना सामान्य अभ्यास माना जाता है। सम्पर्क हेतु स्पीकर फोन, रेडियो, शीर्ष सैट, हाथों के सेट की जरूरत होती है। टेली कॉन्फ्रेंसिंग एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली है जो दो अथवा अधिक स्थितियों में उपस्थित तीन अथवा चार व्यक्तियों को किसी चर्चा पर बहस करने या परिचर्चा में भाग लेने के लिए द्विमार्गीय एकमार्गीय वीडियो के प्रयोग हेतु निकट लाती है।
9 . कम्प्यूटर सहायक अधिगम ।
कंप्यूटर सहायक अधिगम एक ऐसी प्रणाली है जिसमें 1 छात्र आवश्यक अधिगम सामग्री से युक्त कंप्यूटर के माध्यम से अंतः क्रिया करता है। अधिगम अंतः क्रिया का उद्देश्य होता है कि छात्रा अपनी योग्यता और गति के अनुसार वैयक्तिक रूप से स्व अधिगम करता हुआ वंचित अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति करता है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत शिक्षण में कंप्यूटर का प्रयोग दो प्रकार से किया जा सकता है
कंप्यूटर को एक सूक्ष्मता से बनाई हुई शिक्षण मशीन की भांति प्रयोग किया जा सकता है जो कि शिक्षण सामग्री छात्र के सामने प्रस्तुत करती है और उसके प्रत्युत्तर को अर्थ प्रदान करती है। इसे ही कंप्यूटर सहायक शिक्षा कहते हैं।
कंप्यूटर का प्रयोग शिक्षक के शिक्षण प्रक्रिया को शामिल करने में कर सकते हैं जिसमें 1 छात्र की योग्यताओं का मापन करता है और शिक्षण संबंधी कोर्स को प्रस्तावित करता है। इसे ही कंप्यूटर प्रशासित शिक्षण कहते हैं।
हिलगार्ड एवं बाउल के शब्दों में, "कंप्यूटर सहायक अधिगम का क्षेत्र अब इतना विस्तृत हो गया है कि अब इन्हें मात्र स्किनर द्वारा प्रतिपादित अभिक्रमित अधिगम अथवा शिक्षण मशीन के रूप में नहीं समझा जा सकता।"
Computer-assisted learning has now taken as so many dimensions that it can no longer be considered as simple derivative of the teaching machine or the kind of programmed learning that Skinner introduction.
उपरोक्त कथन से स्पष्ट हो रहा है कि कंप्यूटर सहायक अधिगम एक आधुनिकतम नवाचार है जिसे मात्र शिक्षण मशीन द्वारा प्रस्तुत अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री के समान नहीं ठहराया जा सकता है। इसका क्षेत्र और अनुदेशन तकनीकी विभिन्न विषयों में बहुत अधिक व्यापक और विस्तृत है। अतः कंप्यूटर सहायक अधिगम के अभिप्राय को स्पष्ट करने के लिए हम कह सकते हैं कि
कंप्यूटर सहायक अधिगम में किसी एक छात्र तथा कंप्यूटर के मध्य उसी प्रकार की अंतर क्रिया चलती है। जैसे एक ट्यूटोरियल प्रणाली में शिक्षक और छात्र के मध्य चलती है।
कंप्यूटर द्वारा छात्रों को व्यक्तिगत रूप से अधिगम सामग्री प्रस्तुत करना पूर्ण रूप से संभव है।
जैसे ही अधिगम सामग्री कंप्यूटर के मॉनिटर पर प्रस्तुत की जाती है वैसे ही छात्र वांछित अनुक्रिया व्यक्त करता है। इन अनु क्रियाओं को कंप्यूटर द्वारा भली-भांति ग्रहण करके छात्र को आगे क्या करना है? इस प्रकार के निर्देश प्रदान किए जाते हैं।
कंप्यूटर तथा छात्र के मध्य चलने वाली अंतः क्रिया निर्धारित अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक बनती है।
10. इन्टरनेट तथा ई - मेल ।
प्रस्तावना
‘इंटरनेट’ शब्द को आज सभी लोग जानते हैं। बच्चे हों या बड़े सभी लोग इसका प्रयोग करना अच्छी तरह से जानते हैं। अगर सही अर्थों में देखा जाए तो आज इंटरनेट हम सभी के लिए जीने की वजह बन चुका है। इंटरनेट ने आज हमारी बहुत सी मुश्किलों को आसान कर दिया है जिसकी वजह से हमें हर काम बहुत आसान लगता है।
100 साल पहले किसी ने भी यह नहीं सोचा होगा कि इंसान खुद ही किसी ऐसी चीज़ की रचना कर देगा, जिससे दुनिया की तमाम सारी जानकारी एक ही स्थान पर बहुत ही आसानी से मिल जाएगी और दुनिया के लगभग सभी देश आपस में जुड़े होंगे।.
इंटरनेट हमारे आज के जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है। आज के समय में इंटरनेट दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे लोकप्रिय नेटवर्क बन चुका है। इंटरनेट को आधुनिक और उच्च तकनीकी विज्ञान का आविष्कार भी माना जाता है। दुनिया भर के सभी नेटवर्क इंटरनेट से जुड़े हुए हैं इस तरह से हम इसे नेटवर्कों का नेटवर्क भी कह सकते हैं।
इंटरनेट का अर्थ
इंटरनेट आई. टी. के क्षेत्र में क्रांति लाने वाला विश्व का सबसे बलशाली और सबसे बड़ा नेटवर्क है। इसे संक्षिप्त में नेट भी कहा जाता है क्योंकि इंटरनेट एक दूसरे से जुड़े बहुत सारे कम्प्यूटरों का जाल है जो कि उपग्रहों, केवल तंतु प्रणालियों, एल.ए.एन, और वी.ए.एन प्रणालियों तथा टेलीफोनों के जरिए सम्पूर्ण विश्व के करोड़ों कम्प्यूटर्स एवं उपनेटवर्क्स को आपस में जोड़ता है।
दूसरे शब्दों में कहे तो संसाधनों को साँझा करने अथवा सूचनाओं का आदान प्रदान करने के लिए टी.सी.पी/आई.पी प्रोटोकॉल के द्वारा दो अथवा कई कम्प्यूटर्स को एक साथ जोड़कर अंत:सम्बन्ध स्थापित करने की प्रक्रिया को इंटरनेट कहते हैं तथा इनके बीच की साँझा करने की प्रकिया को कंप्यूटर नेटवर्क्स कहते है। कंप्यूटर नेटवर्क्स के अनेकों रूप हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख है एल.ए.एन, इंटरनेट एवं इंट्रानेट
ईमेल - ईमेल या इलॅक्ट्रॉनिक मेल (हिन्दी: विपत्र), (अंग्रेज़ी: E-mail / Electronic mail) एक इंटरनेट के माध्यम किसी कम्प्युटर या अन्य उपकरण से पत्र भेजने का एक तरीका है। एक ईमेल को भेजने के लिए एक ईमेल पते की आवश्यकता होती है जो यूजर-नेम और डोमेन नेम से मिल कर बना होता है। आमतौर इंटरनेट पर कई मुफ्त ईमेल सेवायें उपलब्ध हैं और जिस प्रकार एक ईमेल को कंप्यूटर से भेजा जाता है उसी प्रकार से एक ईमेल को स्मार्टफ़ोन से भी भेजा जा सकता है।
जिस तरह से हम डाक के माध्यम से एक पत्र भेजते हैं, उसी तरह ईमेल पत्र भेजने का एक आधुनिक रूप है। यह लगभग हर जगह उपयोग किया जाता है चाहे वह घर, कार्यालय स्कूल, कॉलेज, कोर्ट, उद्योग, बैंक या कोई भी सरकारी या प्राइवेट कार्यालय हो। इस माध्यम का उपयोग करके हम पाठ, चित्र, फाइलें और कई अन्य प्रकार के दस्तावेज भी भेज सकते हैं।
11 . परम्परागत सूचना तकनीकीयाँ ।
परम्परागत सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकियां-
त्रिआयामी सहायक साधन, जैसे-नमूने मॉडल, कठपुतलियाँ, मैकअप आदि। दृश्य श्रव्य हार्डवेयर उपकरण, जैसे-रेडियो, टेलीविजन, स्लाइड प्रोजेक्ट ओवरहैड प्रोजेक्टर, चलचित्र या सिनेमा, टेप रिकार्डर, आडियो-वीडियो रिकार्डिंग उपकरण तथा शिक्षण मशीन आदि।
12. आधुनिक सूचना तकनीकीयाँ तथा इसके लाभ ।
सूचना व संचार प्रौद्योगिकी (IT) उन कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सूचना के पारेषण, संग्रहण, निर्माण, प्रदर्शन या आदान-प्रदान में काम आते हैं। सूचना व संचार प्रौद्योगिकी की इस व्यापक परिभाषा के तहत रेडियो, टीवी, वीडियो, डीवीडी, टेलीफोन (लैंडलाइन और मोबाइल फोन दोनों ही), सैटेलाइट प्रणाली, कम्प्यूटर और नेटवर्क हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर आदि सभी आते हैं; इसके अलावा इन प्रौद्योगिकी से जुड़ी हुई सेवाएं और उपकरण, जैसे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, ई-मेल और ब्लॉग्स आदि भी आईसीटी के दायरे में आते हैं।
'सूचना युग' के शैक्षिक उद्देश्यों को साकार करने के लिए शिक्षा में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के आधुनिक रूपों को शामिल करने की आवश्यकता है। इसे प्रभावी तौर पर करने के लिए शिक्षा योजनाकारों, प्रधानाध्यापकों, शिक्षकों और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों को प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण, वित्तीय, शैक्षणिक और बुनियादी ढांचागत आवश्यकताओं के क्षेत्र में बहुत से निर्णय लेने की आवश्यकता होगी। अधिकतर लोगों के लिए यह काम न सिर्फ एक नई भाषा सीखने के बराबर कठिन होगा, बल्कि उस भाषा में अध्यापन करने जैसा होगा।
लाभ -
- कई माध्यमों से अध्ययन
- शैक्षिक टीवी
- शैक्षिक रेडियो
- वेब आधारित निर्देश
- खोज के लिए पुस्तकालय
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी में व्यावहारिक गतिविधियां
- मीडिया का इस्तेमाल
- कम अवस्था में विकास, कम जनसंख्या घनत्व, प्रौढ़ साक्षरता, महिला शिक्षा और कार्यबल में वृद्धि जैसे क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी का लक्षित इस्तेमाल।
- शिक्षकों को तैयार करने और कैरियर से जुड़े प्रशिक्षण के लिए प्रौद्योगिकी
- नीति-निर्माण, डिजाइन और डेटा प्रबंधन के लिए प्रौद्योगिकी
- स्कूल प्रबंधन के लिए प्रौद्योगिकी
13. ई - लर्निंग की प्रकृति एवं विशेषताएँ ।
उत्तर -
ई - लर्निंग की प्रकृति एवं विशेषताएँ - 1. ई - लर्निंग या इलेक्ट्रानिक अधिगम पद का संबंध इस प्रकार के अधिगम से है । जिसके संपादन से कम्प्यूटर सेवाओं की अनिवार्य रूप से आवश्यकता पड़ती है ।
2. ई - लर्निंग शब्दावली का प्रयोग कम्प्यूटर विज्ञान की इंटरनेट तथा वेब तकनीकी पर आधारित ऑन लाइन लर्निंग तक ही सीमित रखा जाना चाहिए ।
3. कम्प्यूटर आधारित अधिगम या कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन की तुलना में ई- लर्निंग की अवधारणा कुछ अधिक व्यापक मानी जानी चाहिए ।
4. ई - लर्निंग की अवधारणा कुछ अन्य समरूप पदावलियों जैसे ऑन लाइन लर्निंग तथा आन लाइन एजूकेशन से कुछ अधिक व्यापक मानी जानी चाहिए क्योंकि इन दोनों का संबंध पूरी तरह से केवल मात्र वेब आधारित लर्निंग या अधिगम से है जबकि ई - लर्निंग में इस कार्य से कुछ आगे बढ़कर अनुवर्ती कार्य तथा अध्यापक और विद्यार्थियों के बीच , आवश्यक संप्रेषण एवं अंतरक्रिया बनाए रखने पर ध्यान दिया जाता है ।
5. ई - लर्निंग या अधिगम को दृश्य - श्रव्य अधिगम , दूरवर्ती शिक्षा या दूरवर्ती अधिगम का पर्याय नहीं माना जाना चाहिए । यह सही है कि आज के दिन दृश्य श्रव्य बहुमाध्य तकनीकी तथा दूरवर्ती शिक्षा संबंधी कार्यक्रम कम्प्यूटर द्वारा सुलभ इंटरनेट वेब सेवाओं पर बहुत कुछ निर्भर है परन्तु इससे इन्हें ई - ल्लिंग का पर्याय न मानकर ई -लर्निंग में सहायक परिस्थितियों या ई - लर्निग प्रणाली की उप्रणालियों के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए ।
14. ई - लर्निंग की विभिन्न प्रारूप एवं शैलियाँ ।
उत्तर -
ई - लर्निंग के विभिन्न प्रारूप एवं शैलियाँ जैसा कि हम अच्छी तरह से जान चुके हैं कि किसी अधिगम या लर्निंग को तभी ई- लर्निंग का दर्जा दिया जा सकता है जबकि उसमें प्रदत्त अधिगम सामग्री का अनुदेशन को किसी आधुनिक विकसित इलेक्ट्रानिक माध्यम या उपकरण जैसे कम्प्यूटर मल्टीमीडिया तथा मोबाइल के उपयोग करते हुए अधिगमकर्ताओं को प्रदान किया जाए । इस शर्त की अनुपालना करते हुए ई - लर्निंग में जो विविध प्रारूप एवं शैलियाँ आज हमें दिखाई देती हैं उन्हें मुख्य रूप से निम्न प्रकार सामने रखा जा सकता है ।
1. अवलंब अधिगम ( Support Learning ) - ई - लर्निंग अपनी इस भूमिका में कक्षा में चल रही शिक्षण - अधिगम गतिविधियों को सहारा देकर आगे बढ़ाने का कार्य कर रही होती है । इस प्रकार के ई - लर्निंग प्रारूप का उपयोग शिक्षक और विद्यार्थीगण दोनों ही अपने - अपने शिक्षण और ई - लर्निंग कार्यों को बेहतर बनाने हेतु कर सकते हैं । उदाहरणार्थ वे मल्टीमीडिया इंटरनेट तथा वेब टेक्नालोजी का उपयोग कक्षा शिक्षण के दौरान शिक्षण और अधिगम दोनों ही कार्यों में अपेक्षित सफलता प्राप्त करने हेतु कर सकते हैं ।
2. मिश्रित अधिगम ( Mixed Learning ) - ई - लर्निंग के प्रारूप में परंपरागत तथा सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी पर आधारित दोनों ही प्रकार के तकनीकियों के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता है । इस प्रारूप को अपनाने में कार्यक्रम और गतिविधियों को इस प्रकार नियोजित और क्रियान्वित किया जाता है कि परंपरागत कक्षा शिक्षण तथा ई - लन्निंग आधारित अनदेशन दोनों को उचित प्रतिनिधित्व देकर दोनों के ही लाभ शिक्षण अधिगम हेतु भली - भोंति उठाएँ जा सकें ।
( ii ) सेंक्रोनस संप्रेषण stoft ( Synchronous Communication Style ) - इस संप्रेषण शैली में शिक्षण अधिगम हेतु आवश्यक सीधा शिक्षक - शिक्षार्थी संप्रेषण इंटरनेट पर ऑन लाइन चैटिंग तथा ऑडियो - वीडियो कांफ्रेंसिंग के रूप में होता रहता है । इस कार्य हेतु शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों को ही शिक्षण अधिगम् प्रक्रिया के संपादन हेतु आवश्यक संप्रेषण करने के लिए एक समय विशेष में एक साथ इंटरनेट पर उपस्थित रहना होता है । परिणामस्वरूप इस प्रकार का संप्रेषण एक अध्यापक के लिये अपने विद्यार्थियों के साथ किसी भी प्रकार की आवश्यक सूचना , अधिगम सामग्री इत्यादि की भलीभाँति भागीदारी करने के अमूल्य अवसर प्रदान करता है । विद्यार्थी जहाँ कोई शंका हो उसके निवारण हेतु तुरंत ही अपना प्रश्न पूछ सकते हैं और अध्यापक द्वारा आवश्यक प्रतिपुष्टि प्राप्त कर सकते हैं । अध्यापक अपने विद्यार्थियों की अधिगम प्रगति के बारे में भी पूरी तरह अवगत रहने के लिए प्रश्न और अधिन्यास की सहायता लेकर विद्यार्थियों से उनके उत्तर ऑन लाइन तुरत ही देने की अपेक्षा कर सकते हैं । इस तरह इस प्रकार के संप्रेषण में परंपरागत कक्षा शिक्षण की भाँति अंतःक्रिया करने के लिए यथोचित प्रयत्न किए जाते हैं ।
3. पूर्णरूपेण ई लर्निंग या अधिगम ( Complete e learning ) - इस प्रकार के लर्निंग प्रारूप में परंपरागत कक्षा शिक्षण का स्थान पूरी तरह से अवास्तविक कक्षा कक्ष शिक्षण द्वारा ले लिया जाता है । इस प्रकार के अधिगम प्रारूप में परंपरागत विद्यालय शिक्षा की तरह कक्षा कक्षों , विद्यालय तथा उनमें मिलने वाले सजीव पारस्परिक अंतःक्रियायुक्त शिक्षण अधिगम वातावरण का कोई अस्तित्व नहीं होता । विद्यार्थियों के सामने पूरी तरह संरकचित एवं निर्मित ई- लर्निंग कोर्स तथा अधिगम सामग्री होती है जिन्हें वे स्वतंत्र रूप से अपनी - अपनी अधिगम गति से ग्रहण करने का प्रयत्न करते हैं । उनकी बहुत सारी अधिगम गतिविधियाँ ऑन लाइन ही संपन्न होती हैं परन्तु वे अपनी आवश्यकतानुसार उन सीडी रोम तथा डीवीडी की भी सहायता ले सकते हैं जिनमें वांछित अधिगम सामग्री उचित सूचनाओं या अधिगम पैकेज के रूप में संग्रहीत की गई हो । इस प्रकार की ई - लर्निंग मुख्य रूप से दो निम्न संप्रेषण शैलियों का उपयोग करती हुई पायी जाती है
( i ) एसेंक्रोनस संप्रेषण शैली ( Asynchronous Communication Style ) - इस संप्रेषण में अधिगम कोर्स सम्बन्धी सूचनाएँ तथा अधिगम अनुभव अधिगमकर्ता को ई मेल द्वारा प्रेषित की जाती है अथवा ये उसे वेब पेज वेब लोग या ब्लोग्स , विकीज और रिकॉर्ड किए गए सीडी रोम एवं डीवीडी के रूप में उपलब्ध रहती हैं । इस तरह इस प्रकार के संप्रेषण हेतु अध्यापक तथा विद्यार्थियों की समय विशेष में एक साथ उपस्थिति आवश्यक नहीं होती । अध्ययन सामग्री पहले से ही मौजूद रहती है । इसे विद्यार्थियों द्वारा अपनी इच्छानुसार किसी भी समय अपनी स्वरगति से अध्ययन करने हेतु काम में लाया जा सकता है ।
इन्हे भी पढ़े 👇👇
15 . ई - विषय वस्तु ( ई - मैग्जीन , ई - जर्नल्स ) का वर्तमान शिक्षा में प्रयोग ।
16 . एजूकाम्प , स्मार्ट क्लास कार्यक्रम में पी ० पी ० टी का योगदान ।
17 . शिक्षा में समाचार पत्र की उपयोगिता ।
18. आडियो - विजुअल सामग्रियों का प्रयोग ।
19. कम्प्यूटर एवं कम्प्यूटर के भागों का वर्णन ।
20. कम्प्यूटर एक लर्निंग टूल के रूप में : सूचनाओं को प्राप्त करना , भेजना ।
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