प्राथमिक स्तर पर गणित के संदर्भ में सतत् व व्यापक मूल्यांकन ( Continuous and Comprehensive Evaluation ofMathematics at Primary Level ) Bihar D El Ed 7 pedagogy of mathematics pdf notes


प्राथमिक स्तर पर गणित के संदर्भ में सतत् व व्यापक मूल्यांकन ( Continuous and Comprehensive Evaluation ofMathematics at Primary Level )



 NCF 2005 परंपरागत आकलन पद्धति के बजाय नयी एवं सार्थक मूल्यांकन पद्धति अपनाने की सिफारिश करता है ताकि बच्चों के सीखने का समग्र रूप से मूल्यांकन किया जा सके और बच्चे बिना डरे मूल्यांकन की प्रक्रिया में भाग ले सकें । आर . टी . ई . अधिनियम 2009 ने बच्चों के निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के साथ - साथ बच्चों के सतत् और व्यापक मूल्यांकन की रूपरेखा भी प्रस्तुत की है जिसे कि हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं कि प्रचलित रूढ़िगत मूल्यांकन पद्धति बच्चों के ज्ञान का समग्र रूप से आकलन करने में असफल रहता है प्रचलित पद्धति में वर्ष में एक या सत्र के अंत में ढाई या तीन घंटों के परीक्षा के माध्यम से बच्चों के वर्षभर में अर्जित ज्ञान का आकलन उचित रूप से करना संभव नहीं है अत : यदि बच्चे के अर्जित ज्ञान एवं अधिगम अनुभव का समग्र मूल्यांकन करना हो तो वह सतत् और व्यापक मूल्यांकन की प्रक्रिया को अपनाकर किया जा सकता है । बच्चों के सीखे हुए ज्ञान का मूल्यांकन कक्षा - कक्ष के कई क्रियाकलापों , विद्यालय के सह - शैक्षणिक गतिविधियों , खेल के माध्यम से , शिक्षण - प्रशिक्षण की प्रक्रिया में बच्चों के सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करके सतत् एवं व्यापक रूप से किया जा सकता है । इन सभी परिस्थितियों में बच्चे के योग्यता , कौशल , व्यवहार , रुचि , अभिवृत्ति , गणितीय मनोवृत्ति व गणितीकरण की जाँच सतत् रूप से शिक्षक कर सकते हैं । सतत् और व्यापक मूल्यांकन प्रक्रिया सीखने - सिखाने की प्रक्रिया का अभिन्न अंग है तथा यह दोनों प्रक्रियायें साथ - साथ चलती हैं । सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन का उद्देश्य है विद्यार्थियों को सीखने - सिखाने , ज्ञान की संरचना करने , अवधारणाओं एवं विधियों की समझ बनाने व अपने तरीके से उपयोग करके , अपने अधिगम - अनुभव को प्रभावी व स्थायी बनाना है । जाहिर है बच्चों को गणितीय समस्या समाधान व समस्या निर्माण हेतु विभिन्न परिस्थितियों में कई अवसर उपलब्ध कराने की आवश्यकता है । हमें विद्यार्थियों का परिचय उन तमाम विधियों से करवाना है जिसमें वे स्वयं के उत्तर निर्मित करने की सामर्थ्य विकसित कर सकें तथा दूसरे बच्चों के उत्तर को देखकर उसका विश्लेषण करने एवं समझने का प्रयास भी कर सकें । उनका गलतियाँ करने के प्रति निडर होना और अपनी समझ को व्यक्त करने का आत्मविश्वास होना जरूरी है । संख्या प्रत्यय की समझ का विकास एवं विभिन्न संकेतों के माध्यम से संख्याओं की प्रस्तुती उदाहरण - पहली कक्षा में शिक्षक ने बोर्ड पर अंक 1 .... 9 , लिखे थे । इसके बाद उन्होंने समस्त बच्चों से प्रत्येक अंक से सम्बन्धित संख्या के नाम दोहराने को कहा था एवं आखिर में उन्होंने सभी बच्चों से होम - वर्क पुस्तिका में अनेक बार ये अंक लिखवाए थे । इसके कुछ महीने बाद शिक्षक ने उन्हें दो अंक वाली संख्याएँ सिखाने इस प्रकार शुरू किया । सबसे पहले उन्होंने बच्चों को एक अंक वाली संख्याएँ याद दिलाई । इसके बाद उन्होंने बोर्ड पर लिखा 10 11 12 उन्होंने जो भी लिखा था , बच्चों ने उसे ठीक वैसा ही उतार लिया । अब शिक्षक ने एक - एक संख्यांक की ओर इशारा करते हुए संख्याओं के नाम बोलना प्रारम्भ कर दिया । आखिर में उन्होंने बच्चों से हरेक संख्यांक पाँच - पाँच बार लिखवाए । साथ में कहती गई , 1 के साथ 0 लिखो दस , 1 के साथ 1 लिखो ग्यारह , 1 के साथ 9 लिखो , उन्नीस । " थोड़े एवं अभ्यास के बाद वे संतुष्ट हो गए कि बच्चे 1 से 100 तक के संख्यांक व संख्यानाम जानते हैं । अगले साल इसी प्रकार से बच्चों को सिखाया गया कि 101 से 1000 तक की संख्याओं को कैसे दर्शाएँ । दूसरी कक्षा के शिक्षक ने उन्हें यह भी बताया है कि यदि उन्हें कोई संख्या , जैसे एक सौ बावन लिखने को कहें , तो पहले वे अपनी कॉपी में सै . , द . , ई . , लिख लें । उन्होंने यह भी समझा दिया कि यहाँ सै . , द . , ई . , का अर्थ सैंकड़ा , दहाई , इकाई होता है । चूँकि एक सौ बावन में एक सैंकड़ा , पाँच दहाई तथा दो इकाई है , इसलिए बच्चे सै . , के नीचे 1 , द . के नीचे 5 और ई . के नीचे 2 लिखें । इसके बाद शिक्षक ने उन्हें दो व तीन अंकों की संख्याएँ लिखने की काफी कवायद करवाई । शिक्षक ने ब्लैकबोर्ड पर कुछ उदाहरण देकर इसे समझाया । इसके बाद बच्चों को निम्नलिखित किस्म के सवाल गृहकार्य हेतु दे दिए : 251 में कितनी दहाई है ? ज्यादातर बच्चों का जवाब था 5 , मगर एक बच्चे ने कहा 25 है । प्रश्न - आपके ख्याल से जवाब में ये अलग - अलग अंतर क्यों आए होंगे ? हममें से कई लोग इकाई , दहाई , सैकड़ा की अवधारणा काफी मशीनी तरीके से सिखा देते हैं । इस ढंग से सिखाए जाने पर बच्चे कह देते हैं कि 251 में 5 दहाई हैं । हमें थोड़ा गहराई में जाकर , कुछ ठोस गतिविधियों के इस्तेमाल से बच्चों को याद दिलाना चाहिए कि आखिरकार एक सैकड़ा भी 10 दहाई के बराबर होता है , वगैरह । तभी वे यह समझ पाएँगे कि 251 में 25 दहाई है । प्रश्न - ऊपर दिए गए तरीके से सिखाए जाने के बाद एक बच्ची 203 को तेईस पढ़ती है । उसे अपने गलती का अहसास कराने हेतु आप क्या गतिविधियाँ सुझा सकते हैं ।



कक्षा - कक्ष में उपलब्ध चीजों की तरफ इशारा करते हुए बच्चों को संख्या भान कराएँ , जैसे - हमारे वर्ग कक्ष में 1 टेबल , 2 दरवाजे , 3 खिड़कियाँ , 4 कोने , आदि हैं । बच्चों की तरफ इशारा करते हुए लड़के और लड़कियों की संख्यानुसार संख्या का मान कराइए । इस गतिविधि से प्राप्त निष्कर्षो को लिखिए । हमने जसवंत के उदाहरण में देखा कि वह किस तरह गलती करता है । अब उसकी मम्मी ने सोचा कि अपने बेटे को उसी तरह अंक पद्धति समझाऊँ जैसे कि मेरे एक मित्र ने अपने बच्चों को समझाया था । मैंने जो किया , वह यह था उदाहरण - मैंने अपने बेटे को ढेर सारे मोती दिए एवं दिखाया कि उससे वह 10-10 मोतियों के समूह कैसे बनाए । फिर मैंने उसे दिखाया कि वह 10 मोतियों के एक समूह को एक पंक्ति में रख सकता है तथा उन्हें एक लड़ी कह सकता है । जब वह कुछ लड़ियाँ बना चुका तो मैंने उसे बताया कि 10 लड़ियों की एक माला बना सकता है । उसने मोतियों से लड़ियाँ एवं मालाएँ बनाना शुरू किया और धीरे - धीरे अपने दिमाग में माला व लड़ी का आपसी सम्बन्ध बनाता गया । थोड़ी देर बाद मैंने उससे पूछा कि एक माला के बदले में वह कितनी लड़ियाँ देगा । कुछ देर सोचकर वह बोला , ' 10 ' । तब मैंने उससे पूछा कि 107 मोतियों से वह कितनी मालाएँ बना सकता है ? उसने कुछ देर सोचने के बाद कहा , " 10 लड़ियाँ , एवं 7 मोती बचेंगे । " मैंने पूछा , " तो मालाएँ कितनी बनेंगी ? " उसकी मदद के लिए मैंने उससे 107 मोती लेकर अधिक - से - अधिक जितनी मालाएँ बना सकें , बनाने को कहा । शर्त यह है कि एक माला में 10 लड़ी हों तथा हर लड़ी में 10 मोती हो । तो उसने एक माला बनाई और 7 मोती बच गये । फिर मैंने उससे पूछा कि इस बात को वह कैसे लिखेगा ? हम दोनों ने मिलकर एक प्रणाली बनाई जिसमें हमने मा . / ल . / मो . लिख लिया - मालाओं की संख्या ( मा . ) के नीचे , लड़ियों की संख्या ( ल . ) के नीचे और मोतियों की संख्या ( मो . ) के नीचे लिखना था । मा . के नीचे उसने । लिखा और मो . के नीचे 7 लिखा । मैंने पूछा , " लड़ियों की संख्या क्या होगी ? " उसने जवाब दिया , " लड़ियाँ तो है ही नहीं । " तो मैंने उससे पूछा कि इस बात को कैसे दर्शाएगा । थोड़ी देर सोचने के बाद ल . के नीचे उसने 0 लिख दिया । अब मैंने मा . ल . मो . के ऊपर सै . द . ई . लिख दिया तथा उससे पूछा कि क्या वह ठीक है ? उसने थोड़ा सोचा एवं फिर कहा कि यह ठीक है क्योंकि 100 मोतियों की एक माला है और 10 मोतियों की एक लड़ी । मैंने कहा , बढ़िया ! और तब बताओ 429 कितना होगा ? उसने फौरन जवाब दिया , " 4 माला 2 लड़ी और 9 मोती । " तो ये कितनी मोती होंगे ? " ' चार सौ उन्तीस ' उसका जवाब था । इस प्रकार के चन्द और सवालों के बाद हमने एक खेल खेला । मैंने उसे 3 अंक दिए । उसे करना यह था कि उनकी सहायता से जितनी संख्याएँ बना सकें बनाए । इन संख्याओं को घटते क्रम में रखना भी था । जब मुझे लगा कि उसे इस खेल में मजा आ रहा है , तो मैंने चार अंक दे दिए । उसने इनकी मदद से सारी संभव संख्याएँ बना डाली । यहाँ तक कि 0,1,2 व 9 अंक देने पर उसने 0129 जैसी संख्या भी बनाई । मुझे अहसास हुआ कि ऐसी बातों को सीखने हेतु बच्चों को पूरा समय दिया जाना चाहिए । उन पर कोई दबाव नहीं होना चाहिए और यह एक अच्छा मौका था कि वह यह सब कर सकें । अलबत्ता , यह जरूरी होता है कि बच्चे को किसी अवधारणा के इस्तेमाल का मौका बार - बार दिया जाए । ऐसा इसलिए है क्योंकि हो सकता है कि किसी एक वक्त पर बच्चे उस गतिविधि को कर पाएं । मगर इससे यह नहीं मान लेना चाहिए कि वह इसे बाद में भी दोहरा पाएगा । इसीलिए मैंने हफ्ते - दस दिन बाद यह गतिविधि एवं इसी मकसद से दूसरी गतिविधि , उसके साथ दोहराई । इस दौरान मैंने उसे कई ऐसे अभ्यास दिए जिनसे उसे सै . द . ई . के प्रयोग के मौके मिल पाए ।




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