पाठ्यचर्या की अवधारणा और उद्देश्य ( concept of Curriculum ) | पाठ्यचर्या के उद्देश्य


पाठ्यचर्या की अवधारणा और इसके उद्देश्य

पाठ्यचर्या दो शब्दों से मिलकर बना है– पाठ्य और चर्या। पाठ्य का अर्थ है ‘पढ़ने योग्य’ अथवा ‘पढ़ाने योग्य’ और चर्या का अर्थ है नियमपूर्वक अनुसरण’। इस प्रकार पाठ्यचर्या का अर्थ हुआ– पढ़ने योग्य (सीखने योग्य) अथवा पढ़ाने योग्य (सिखाने योग्य) विषयवस्तु और क्रियाओं का नियमपूर्वक अनुसरण।
पाठ्यचर्या को अंग्रेजी मे ‘करीक्यूलम’ (Curriculum) कहा जाता है। करीक्यूलम शब्द लैटिन भाषा से अंग्रेजी मे लिया गया है यह लैटिन शब्द ‘कुर्रेर’ से बना है। ‘कुर्रेर’ का अर्थ है ‘दोड़ का मैदान’। यहाँ पर दो शब्द प्रयुक्त किए गए है– दौड़ को छात्रों की क्रियाएं व संक्रियाएँ तथा मैदान को पाठ्यक्रम या शिक्षण सामग्री के रूप में दर्शाया गया है। 

पाठ्यचर्या की परिभाषा (pathyacharya ki paribhasha)

हेनरी के अनुसार,” पाठ्यचर्या में वे सभी क्रियाएं आती है जो विद्यालय में विद्यार्थियों को दी जाती है।” 
एनन के अनुसार,” पाठ्यचर्या पर्यावरण मे होने वाली क्रियाओं का योग है।” 
व्यूसैम्प के अनुसार,” विद्यालय में बालकों के शैक्षिक अनुभव के लिए एक सामाजिक समूह की रूपरेखा पाठ्यचर्या कहलाती है।” 
सी. वी. गुड के अनुसार,” व्यक्ति को समाज में समायोजित करने के उद्देश्य से विद्यालय के निर्देशन में निर्धारित शैक्षिक अनुभवों का समूह पाठ्यचर्या कहलाता है।” 
कनिंघम के अनुसार,” पाठ्यचर्या वह यंत्र (साधन) है जो कलाकार (शिक्षक) के हाथों मे अपनी सामग्री (छात्र) को अपने आदर्शों (उद्देश्यो) के अनुसार अपने विद्यालय में कोई रूप प्रदान करने के लिये होता है।” 
मुनरो के अनुसार,” पाठ्चर्या में वे सभक क्रियाएं सम्मिलित है, जिनका हम शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु विद्यालय में उपयोग करते है।” 
पाॅल हिर्स्ट के अनुसार,” उस सभी क्रियाओं का प्रारूप जिनके द्वारा शैक्षिक लक्ष्यों अथवा उद्देश्यों को प्राप्त कर लेंगे, पाठ्यचर्या की संज्ञा दी जाती है।” 
फ्रोबेल के अनुसार,” पाठ्यचर्या को मानव जाति के सम्पूर्ण ज्ञान तथा अनुभवों का सार समझना चाहिए।”
विभिन्न विद्वानों द्वारा दि गई पाठ्यचर्या की उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि पाठ्यचर्या का क्षेत्र बहुत अधिक विस्तृत है। यह बालक के जीवन के समस्त पहलुओं को स्पष्ट करता है फिर चाहे वह शारीरिक हो, मानसिक हो, आध्यात्मिक हो, सामाजिक हो, धार्मिक हो, राष्ट्रीय हो, बौद्धिक हो या नैतिक किसी से भी जुड़ हो। 
पाठ्यचर्या की विशेषताएं (pathyacharya ki visheshta)

शिक्षा किस तरह की और किस विधि से प्रदान की जानी चाहिए जिससे की बालक की संपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके और साथ ही मानव का सर्वांगीण विकास हो। इन सभी प्रश्नों का एक उत्तर है कि शिक्षा की पाठ्यचर्या किस प्रकार की हों? 
पाठ्यचर्या की विशेषताएं निम्नलिखित है–
1. पाठ्यर्या, सन्तुलित व्यक्तित्व मूल्यांकन में सहायक 
जीवन से संबंधित सभी प्रक्रियाओं, आवश्यकताओं आदि को पाठ्यचर्या मे सम्मिलित किया जाता है। व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास के मूल्यांकन मे पाठ्यचर्या सहायक होती है साथ ही विकास मे गतिशीलता भी प्रदान करती है।
2. पाठ्यचर्या गतिशील होती है 
पाठ्यचर्या का राष्ट्र की विविध समस्याओं, आवश्यकताओं एवं विकास के लिए गतिशील होना बहुत ही जरूरी है। पाठ्यचर्या मे यह परिवर्तनशील या गतिशीलता नागरिकों की जीवन शैली के साथ-साथ होती रहती है। 
3. पाठ्यचर्या आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है 
ढाँचा और व्यवस्था पाठ्यचर्या में दो अनिवार्य तत्व है। ढाँचा एवं व्यवस्था का स्वरूप एवं विषय वस्तु अधिगम अनुभवों का समायोजन है। पाठ्यचर्या परिस्थियों, वातावरण एवं आवश्यकताओं के अनुसार ही गतिशील है जो समय के साथ परिवर्तित होता रहता है। जैसे पूर्व पाठ्यचर्या में हैजा, मलेरिया आदि सम्मिलित था परन्तु अब यह बीमारियाँ भारत में लगभग समाप्त हो गई है वस्तुतः इन्हें पाठ्यचर्या से हटाकर अन्य बीमारियों जैसे– ह्रदयगति, कैंसर, एड्स इत्यादि को पाठ्यचर्या में सम्मिलित किया गया है। 
4. पाठ्यचर्या, लक्ष्य प्राप्ति का साधन 
इच्छित उद्देश्य प्राप्त करने मे पाठ्यचर्या साधन के रूप मे कार्य करती है। इसका अन्त नही होता है। शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण दर्शनशास्त्र करता है जबकि पाठ्यचर्या उन उद्देश्यों को प्राप्त करती है।
5. समाज की आवश्यकताओं की पूरक पाठ्यचर्या 
समाज में तकनीकी शिक्षा तथा व्यावसायिक शिक्षा की आवश्यकता है तो विद्यालय में समाज की आवश्यकता के अनुरूप ही विद्यालयों में पाठ्यचर्या निर्धारित की जाती है। इस प्रकार समाज एवं पाठ्यचर्या एक दूसरे के पूरक है। विद्यालय में वही पाठ्यचर्या निश्चित की जाती है– जिसकी समाज, समुदाय और राष्ट्र में आवश्यकता हों। 
6. पाठ्यचर्या, निर्देशन का महत्वपूर्ण अंग है 
पाठ्यचर्या की एक विशेषता यह है कि यह निर्देशन का महत्वपूर्ण अंग है। पाठ्यचर्या समस्याओं के निदान के लिए ही नही बल्कि आवश्यकताओं एवं परिस्थतियों के अनुसार सही मार्ग प्रदर्शित करता है। पाठ्यचर्या बालकों के उज्जवल भविष्य तथा जीवन के सही मार्ग दर्शन हेतु व्यावसायिक विषय आदि चयन के लिए परामर्श तथा निर्देशन प्रदान करता है।
7. पाठ्यचर्या, विद्यालय का संपूर्ण कार्यक्रम है 
पाठ्यचर्या में विद्यालय के समस्त कार्यक्रमों का समावेश होता है। 
8. पाठ्यचर्या की अन्य विशेषताएं 
1. पाठ्यचर्या राष्ट्रीय शिक्षा नीति का व्यापक स्वरूप होती है।
2. पाठ्यचर्या अध्ययन के प्रत्येक, पक्ष को प्रस्तुत करती है।
3. पाठ्यचर्या एक व्यापक सम्प्रत्यय है जिसमें शैक्षिक उद्देश्य, पाठ्यवस्तु, शिक्षण अधिगम एवं मूल्यांकन सम्मिलित है।
4. पाठ्यचर्या देश की आत्मा का प्रतिनिधित्व करती है।
5. पाठ्यचर्या के माध्यम से बालक की शैक्षिक क्रियाओं को विकसित किया जाता है।
6. पाठ्यचर्या में उन क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जिससे बालक की शारीरिक, मानसिक, भाषात्मक, सामाजिक, आध्यात्मिक एवं नैतिक पक्षों का विकास हो।
7. यह अनुसंधान द्वारा संशोधित किया हुआ एवं परीक्षण किया हुआ होता है।


8. यह छात्रों को अपने कौशलों, रूचि, अभिरूचि एवं अभिमूल्य को विकसित करने के पर्याप्त अवसर प्रदान करती है।

पाठ्यचर्या के उद्देश्य (pathyacharya ke uddeshya)

पाठ्यचर्या के निम्न उद्देश्य है– 
1. शिक्षा के निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करना 
शिक्षा के द्वारा ही मानवीय गुणों एवं क्षमताओं का विकास होता है एवं शिक्षा द्वार ही वह जीवन के लक्ष्यों को निर्धारित करता है। इन लक्ष्यों की प्राप्ति में अनेक प्रयास छात्र तथा शिक्षक द्वारा किए जाते हैं। इसी प्रकार पाठ्यचर्या एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त किया जाता है।
2. आवश्यक एवं उपयोगी ज्ञान प्रदान करना 
पाठ्यचर्या एक उद्देश्य आवश्यक तथा उपयोगी ज्ञान प्रदान करना है। उदाहरण के लिए भारत का नागरिक होने के नाते छात्र भारत की भौगोलिक स्थिति की जानकारी होना जरूरी है। इसीलिए पाठ्यचर्या मे भारत देश की भौगोलिक स्थिति को स्थान दिया जा सकता है तथा इससे संबंधित सामग्री छात्रों हेतु उपयोगी सिद्ध होगी।
3. ज्ञान को क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित रूप में प्रदान करना 
पाठ्यचर्या का एक उद्देश्य ज्ञान को छात्रों तक व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध स्वरूप मे पहुंचाना भी है। क्रमबद्ध से आशय प्रारंभिक शिक्षा मे यदि बालकों को गणना सिखाना है तो 01 से प्रारंभ करते हुए 100 तक का ज्ञान दिया जाए। उसी प्रकार भाषा सिखाते समय पहले अक्षरों से, फिर शब्दों से परिचय करवाया जाए। व्यवस्थित रूप में पाठ्यचर्या मे पाठ्यवस्तु सरल से कठिन की ओर रखी जाती है। जैसे– किस विद्वान के जीवनी मे सबसे पहले उनका जन्म स्थान, जन्म तिथि, माता-पिता का नाम आदि होगा बाद मे उनके जीवन में हो चुकी घटनाओं और अंत मे उनकी मृत्यु का विवरण दिया जाएगा।
4. पाठ्यचर्या उपलब्धि का आधार 
पाठ्यचर्या एक निश्चित ज्ञान के अध्ययन हेतु शिक्षकों तथा छात्रों को दिया जाता है जिसके आधार पर ही उन्हें उपलब्धि प्राप्त होती है। इसी उपलब्धि के अनुसार ही मूल्यांकन किया जाता है। अतः पाठ्यचर्या का उद्देश्य छात्रों की उपलब्धियों का मूल्यांकन करना है।

5. सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करना
पाठ्यचर्या मे इस प्रकार की पाठ्यवस्तु सम्मिलित की जाती है जो समाज से संबंध रखती है जिससे बालकों मे सामाजिकता की समझ विकसित होती एवं बालक एक सामाजिक प्राणी बनता है। इस तरह से पाठ्यचर्या सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दिशा-निर्देश देता है। अतः पाठ्यचर्या का एक उद्देश्य सामाजिक आवश्यकताओं को पूर्ण करना है। 
6. संस्कृति एवं सभ्यता को हस्तान्तरिक करना 
पाठ्यचर्या एक ऐसा साधन है जिससे शिक्षक बालकों को भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता से परिचित कराता है। संस्कृति एवं सभ्यता को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य भी पाठ्यचर्या की पाठ्यवस्तु के द्वारा ही किया जाता है। पाठ्यचर्या में त्यौहरों की जानकारी, त्यौहार मनाने के कारण, परम्पराओं की जानकारी, भाषा का ज्ञान, ऐतिहासिक संस्कृतियों का ज्ञान आदि तत्वों को सम्मिलित किया जाता है।
7. पर्यावरणीय जागरूकता में वृद्धि करना 
वर्तमान मे पर्यावरण एक वैश्विक समस्या बन चुकी है। तेजी से बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण से आज सारी दुनिया जूझ रही है। इसीलिए बालकों, शिक्षको एवं अभिभावकों मे पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलान बहुत जरूरी हो गया है। पाठ्यचर्या के माध्यम से छात्रों को पर्यावरण प्रदूषण व उसके प्रकारों, कारणों, प्रभावों एवं प्रदूषण को कम करने के उपायों की जानकारी दी जाती है। इस प्रकार से पाठ्यचर्या का एक उद्देश्य पर्यावरण जागरूकता में वृद्धि करना भी है।
8. व्यवसायपरक पाठ्य-सामग्री प्रदान करना 
पाठ्यचर्या के ही माध्यम से छात्रों को ऐसी पाठ्य-सामग्री प्रदान की जा सकती है जो कि छात्रों हेतु भविष्य मे उपयोगी हो एवं व्यवसाय के लिए एक ठोस आधार का निर्माण करे। ऐसी शिक्षा छात्रों को उनका व्यवसाय चुनने में सहायता करेगी एवं छात्रों की व्यावसायिक रूचि को भी पहचाना जा सके जिससे छात्रों को उचित निर्देशन प्राप्त होगा। 
9. अध्यापक को स्पष्टता प्रदान करना 
पाठ्यचर्या का एक मुख्य उद्देश्य अध्यापक को स्पष्टता प्रदान करना भी है। पाठ्यचर्या मे ऐसी पाठ्यवस्तु को सम्मिलित किया जाता है जो शिक्षक के लिए स्पष्ट हो एवं वह ज्ञान को छात्रों तक पहुंचाती हो। शिक्षक विभिन्न शिक्षण विधायों के माध्यम से निर्धारित पाठ्यवस्तु तथा प्रकरण को छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करता है। इस प्रकार वह नवीनता, रोचकता एवं स्पष्टता के साथ अध्यापन करता है। 
10. रूचिकर ज्ञान प्रदान करना 
पाठ्यचर्या का उद्देश्य बाल-केन्द्रित शिक्षा प्रदान करना है। इसके अंतर्गत छात्रों की व्यक्तिगत एवं शैक्षिक रूचियों, योग्यताओं व क्षमताओं को दृष्टिगत रखते हुए छात्रों को शिक्षा प्रदान करना है। इससे लाभ यह है कि सर्वप्रथम तो बालक विद्यालय आने मे रूचि लेने लगेगा एवं इस प्रकार वह अपनी रूचि अनुसार ज्ञान प्राप्त करेगा।
11. सामाजिक एवं शैक्षिक समस्याओं का निवारण 
पाठ्यचर्या एक उद्देश्य यह भी है कि इसके माध्यम से सामाजिक एवं शैक्षिक समस्याओं का समाधान हो सके। सामाजिक समस्याएँ, जैसे– गरीबी, अशिक्षा, जनसंख्या वृद्धि, भ्रष्टाचार, पर्यावरण क्षति आदि के विषयों से छात्रों को अवगत करवाया जा सकता है। शैक्षिक समस्या जैसे– अध्ययन में अरूचि, अपव्यय एवं अवरोधन, में कमी सामान्जस्य आदि की समस्याओं का समाधान भी विद्यालय मे ही पाठ्यचर्या की पाठ्यवस्तु के माध्यम से किया जा सकता है।
12. लोकतंत्र की स्थापना करना 
पाठ्यचर्या का उद्देश्य बालको की विचारधार को लोकतन्त्रत्मक बनाना है। यही कारण है की विद्यालय मे आने वाला प्रत्येक बालक अलग-अलग वातावरण एवं परिवेश से आता है एवं उसकी विचारधारा भिन्न-भिन्न होती है। इसीलिए उसमें लोकतंत्रात्मक गुणों एवं विचारों को विकसित करने के लिए पाठ्यचर्या की पाठ्यवस्तु बहुत प्रभावी कारक है।
13. अधिकारों एवं कर्तव्यों से परिचित करना 

पाठ्यचर्या मे देश के संविधान की जानकारी व मानव अधिकारों की शिक्षा पाठ्यचर्या मे सम्मिलित की जाती है ताकि छात्रों को अपने जीवन के अधिकारों एवं कर्तव्यों की भली-भाँति जानकारी हो, जिससे वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो एवं अपने परिवार, समाज एवं देश के प्रति कर्तव्यों को पहचान सके और उनका पालन भी करें।

Epamsiwan 

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