विज्ञान की प्रकृति और संरचना
विज्ञान एक व्यापक अवधारणा है । इसकी ऐतिहासिक पृष्टभूमि विश्व की सभी प्राचीन संस्कृतियों में व्याप्त है । भारतीय ऋषियों ने जिन प्राकृतिक रहस्यों को हजारों वर्ष पूर्व उद्घाटित किया था , वे अभी तक कपोल कल्पित माने जाते थे । किन्तु आधुनिक विज्ञान अब उन्हें ही अपनी महान् खोज मानता है । आधुनिक विज्ञान विशुद्ध रूप से पाश्चात्य है । इसलिए यहां इसी संदर्भ में इसकी विवेचना की जा रही है । भारतीय विज्ञान की विवेचना एक व्यापक और जटिल कार्य है । यह दर्शन और धर्म में इतना घुला - मिला है कि इसका एक अलग अनुशासन के रूप में प्रस्तुत करना दुष्कर है । पाश्चात्य आधुनिक विज्ञान तो इसकी तुलना में सतही है । किन्तु अध्ययन इसी का किया जा रहा है । विज्ञान के सामान्य स्वरूप व्याख्या ही उसकी प्रकृति में निहित है । विज्ञान ज्ञान व ज्ञानार्जन विधि दोनो से ही सम्बन्धित हैं विज्ञान के दो स्वरूप या दो पक्ष होते है । एक स्थिर पक्ष जो सिद्धान्तों पर आधारित हैं एवं दूसरा गतिशील पक्ष जो विज्ञान की प्रायोगिक प्रक्रिया से सम्बन्धित है । अत : हम विज्ञान को दो रूपों में विश्लेषित कर सकते है : विज्ञान एक उत्पादन के रुप में ( Science as a products ) विज्ञान एक प्रक्रिया के रूप में ( Science as a process ) प्रथम पक्ष के अन्तर्गत विज्ञान में निश्चित तथ्य सिद्धान्त , मान्यतायें , नियम एवं विचारधाराएं आदि को सम्मिलित किया जाता है । द्वितीय पक्ष के अन्तर्गत तथ्यों , नियमों को निश्चित करने की विधि है जिसे हम वैज्ञानिक विधि कहते है , सम्मिलित है । वैज्ञानिक अभिवृत्ति इसी पक्ष के अन्तर्गत आती है इसलिए कहा जाता है विज्ञान संज्ञा की अपेक्षा क्रिया अधिक है ( Science is more a verb then it is a noun ) दूसरे शब्दो में हम कह सकते है विज्ञान का प्रथम पक्ष स्थिर हैं जो कि सैद्धान्तिक है और दूसरा पक्ष गतिशील है या गत्यात्मक है जो क्रियात्मकता को अधिक बल देता है । Success rey
Science is a broad concept. Its historical background is pervasive in all the ancient cultures of the world. The natural mysteries that Indian sages revealed thousands of years ago were still considered fictional. But modern science now considers them to be its greatest discovery. Modern science is purely western. Therefore, it is being discussed here in this context. Discussion of Indian science is a comprehensive and complex task. It is so mixed in philosophy and religion that it is difficult to present it as a separate discipline. Western modern science is superficial in comparison. But this is what is being studied. The general nature of science lies in its nature, interpretation. Science is related to both knowledge and knowledge acquisition method, science has two forms or two sides. One static side which is based on principles and the other dynamic side which is related to the experimental process of science. Therefore, we can analyze science in two forms: Science as a product (Science as a product) Science as a process (Science as a process) Under the first side, certain facts in science Theories, beliefs, rules and ideologies etc. Under the second party, there is a method of determining facts, rules, which we call the scientific method, is included. Scientific attitude comes under this side, so it is said that science is more a verb than a noun ( Science is more a verb then it is a noun ) In other words we can say that the first side of science is stable which is theoretical and the second The aspect is dynamic or dynamic which gives more emphasis to the activity. Success rey
विज्ञान मनुष्य मात्र की सामूहिक कार्य कुशलता है और इसी के ही फलस्वरूप मानव की उन्नति एवं प्रगति अति तीव्र तथा असाधारण हुई है।
आर्थर वाल्फोर ने कहा है– विज्ञान सामाजिक परिवर्तन का एक महान उपकरण है। आधुनिक सभ्यता के विकास में सहयोगी सभी क्रांतियों में सबसे अधिक शक्तिशाली है।’’
विज्ञान किसी भी विषय का पक्षपात रहित क्रमबद्ध सुसंगठित व सुव्यवस्थित ज्ञान है जो भांति-भांति से सत्यापित वर्गीकृत प्रयोगो पर आधारित है।
विज्ञान का अर्थ
विज्ञान वह व्यवस्थित ज्ञान या विद्या है जो विचार, अवलोकन, अध्ययन और प्रयोग से मिलती है, जो कि किसी अध्ययन के विषय की प्रकृति या सिद्धान्तों को जानने के लिये किये जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिये भी करते हैं, जो तथ्य, सिद्धान्त और तरीकों को प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करती है। इस प्रकार कह सकते हैं कि किसी भी विषय का क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान कह सकते है। ऐसा कहा जाता है कि विज्ञान के ‘ज्ञान-भण्डार’ के बजाय वैज्ञानिक विधि विज्ञान की असली कसौटी है।
शिक्षण में उद्देश्यों की आवश्यकता(Need of Objectives in Teaching)
किसी भी विषय की संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए उसके उद्देश्यों पर विचार करना आवश्यक है। उद्देश्यों के ज्ञान के अभाव में शिक्षण कार्य उचित रूप से नहीं हो सकता। इस विषय में एक विद्वान का कथन है,कि ,"उद्देश्य के ज्ञान के बिना शिक्षक उस नाविक के समान है जिसे अपने लक्ष्य का ज्ञान नहीं है तथा उसके शिक्षार्थी उस पतवारहीन नौका के समान है जो समुद्र की लहरों के थपेड़े खाकर तट की ओर बहती है।"
आजकल की शिक्षा का प्रमुख दोष उसका उद्देश्यहीन होना है। अध्यापकों को यह ज्ञात नहीं है कि वे शिक्षा किस उद्देश्य से दे रहे हैं और छात्रों को भी यह ज्ञात नहीं है कि वे किस उद्देश्य से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। अतः ऐसी दशा में विज्ञान शिक्षण के उद्देश्यों को निश्चित करना अति आवश्यक हो जाता है। उद्देश्यों के निर्धारित हो जाने पर अध्यापक तथा छात्र दोनों लाभान्वित होते हैं तथा शिक्षण कार्य सुचारू रूप से चलता है। विषय के प्रति तन्मयता की भावना का जन्म उद्देश्यों के निश्चित हो जाने पर ही होता है। उद्देश्यों का निर्धारण हो जाने पर अध्यापक का कार्य सरल हो जाता है तथा छात्रों में आत्म बल एवं दृढ़ता आती है। उन्हें ज्ञात हो जाता है कि वह जो कार्य कर रहे हैं वह सार्थक तथा उद्देश्य पूर्वक है। यह भावना दोनों पक्षों में उत्साह वृद्धि करती है।
विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य(Objectives of teaching Of Science)
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि किसी भी विषय को पढ़ाने से पहले उस विषय के लिए कुछ उद्देश्य निर्धारित कर लेना आवश्यक होता है। यही बात विज्ञान विषय के लिए भी सत्य है विद्यार्थियों के व्यवहार में अप्रत्याशित परिवर्तन करने के लिए यह आवश्यक है कि पढ़ाने से पहले कुछ उद्देश्यों को निर्धारित कर लिया जाए तथा उन्हीं उद्देश्यों के आधार पर विद्यार्थियों को ज्ञान प्रदान किया जाए। उद्देश्यों को निर्धारित करने के लिए कुछ निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:-
उद्देश्यों को बालकों की आवश्यकताओं तथा रुचिओं की पूर्ती करनी चाहिए।
उद्देश्यों से सीखने वाले व्यवहार में परिवर्तन किया जाना चाहिए।
उद्देश्यों से बालकों की प्रगति का मूल्यांकन करने में सहायता मिलनी चाहिए।
उद्देश्यों को प्रजातंत्र य शिक्षा के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बनाया जाना चाहिए।
उद्देश्यों में सहायक सामग्री को छांटने के लिए तथा उसके संगठन के लिए सहायता मिलनी चाहिए।
विज्ञान शिक्षण की आवश्यकता
जैसी कि पहले भी चर्चा की गई है, प्रत्येक विषय की अपनी प्रकृति होती है व साथ ही प्रत्येक विषय के अध्ययन का एक उद्देश्य होता है। उदाहरण के लिए हिन्दी व अँग्रेजी विषय भाषा दक्षता प्रदान करते हैं, सामाजिक विज्ञान समाज से सम्बन्धित क्रियाओं व प्रक्रियाओं से अवगत करता है, गणित विषय संख्यात्मक योग्यता प्राप्त करने का माध्यम है आदि। इसी प्रकार विज्ञान विषय के भी कुछ मुख्य उद्देश्य हैं जिनकी प्राप्ति हेतु विज्ञान का विषय के रूप में अध्ययन किया जाता है। इनमें से कुछ मुख्य उद्देश्य निम्न प्रकार हो सकते है:
गहन चिन्तन
वैज्ञानिक रुझान
संकल्पना और तथ्य, स्वयं जाँच करें एवं फिर विश्वास करें
ज्ञानोपयोग को जानना
सामाजिक आवश्यकता
विषय एवं व्यावहारिक ज्ञान के मध्य अन्तर को कम करने हेतु
सोच एवं वास्तविकता के मध्य अन्तर के विभिन्न स्तरों को समझना
सोच व अनुभव को जोड़ना
विज्ञान सीखने की प्रक्रिया
किसी भी विषय, बिन्दु अथवा पाठ को पढ़ने से पहले यह ज्ञात होना आवश्यक होता है कि इस विषय, बिन्दु अथवा पाठ का उद्देश्य क्या है व यह विद्यार्थियों को क्यों पढ़ाया जाए। यह एक सामान्य प्रश्न है जिसका उत्तर एक शिक्षक के पास होना अत्यन्त ही आवश्यक है। यह मात्र एक प्रश्न नहीं है, यह एक मार्ग है जो विषय से सम्बन्धित कई सारे पहलुओं को अपने में समेटे होता है। कक्षा में क्या पढ़ाना है, क्यों पढ़ाना है व कैसे पढ़ाना है, कुछ ऐसे प्रश्न है जिनका उत्तर यदि एक कक्षा में जाने से पहले यदि शिक्षक के पास मौजूद है तो वह नीरस से नीरस व कठिन से कठिन विषय को भी रोचक ढंग से प्रस्तुत कर सकता है। कक्षा में जाने से पूर्व शिक्षण बिन्दु की पूर्ण समझ कक्षा-कक्ष में इसके प्रभावी शिक्षण के लिए सहयोगी है। इसे इस प्रकार देखा जा सकता है, उदाहरण के लिए यदि एक शिक्षक कक्षा में जाकर कोशिका के बारे में शिक्षण कराना चाहता है तो इस विषय के बारे पूर्व जानकारी कक्षा के स्तर, आवश्यकता, विषय वस्तु का स्तर इत्यादि निर्धारित करती है। यदि शिक्षक कोशिका पढ़ाने के उद्देश्य से परिचित नहीं है, विषय की आवश्यकता का ध्यान नहीं है तो इस दशा में वह न तो शिक्षण के स्तर का ध्यान रख पाएगा न ही शिक्षण पद्धति का। इस दशा में विद्यार्थियों को विषय समझने में कठिनाई होगी और यह भी सम्भव है कि वे विषय को समझ ही न पाएँ।
इसी क्रम में यदि विषय को पूर्व ज्ञान के साथ जोड़कर देखा जाए तो यह बच्चों कि समझ वृद्धि में एक उपयोगी प्रयास हो सकता है। किसी कार्य को शून्य से प्रारम्भ करना अथवा पूर्व में निहित ज्ञान के आधार पर ज्ञान में वृद्धि करना दो अलग-अलग मार्ग हैं। विभिन्न शिक्षाविदों का मानना है कि बच्चा अपने जीवन में घटित हो रही प्रत्येक घटना अथवा गतिविधि से सीख रहा होता है, अतः पूर्व की यह धारणा कि बच्चे कोरा कागज होते हैं या मिट्टी के घड़े होते हैं व इन्हें किसी भी रूप में ढाला जा सकता है जैसी मान्यताएँ अब कमजोर हो गई हैं। बच्चा विद्यालय में आने से पहले से बहुत कुछ जानता है व विद्यालय में आने के बाद यदि बच्चे के इस ज्ञान का प्रयोग उसे ओर अधिक सीखने में किया जाता है तो यह बच्चा व शिक्षक दोनों के लिए एक उपयोगी चरण होता है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह विषय कि पुनरावृति को रोकता है जिससे विषय में रोचकता आती है। सीखे हुए ज्ञान से सीखना बच्चों के ज्ञान को एक मजबूत आधार देता है जो कि ज्ञान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
शिक्षक एवं विद्यार्थी की विषय पर पूर्व तैयारी एवं पूर्व ज्ञान के अतिरिक्त कुछ अन्य विषय भी हैं जिन्हें कक्षा प्रक्रियाओं के अन्तर्गत शामिल किया जाना जरूरी है और वे हैं तुलना करना व उपयोग करना। ज्ञान किसी भी विषय को ज्यों का त्यों याद कर लेना या पढ़ लेना मात्र नहीं, बल्कि इसका उपयोग अपने दैनिक जीवन में करना है। पूर्व में अध्ययन की गई जानकारी के आधार पर समस्या का निर्धारण, तुलना व ज्ञान के आधार पर उपाय करना ही ज्ञान का सही उपयोग है। यह बच्चों को पुस्तक की सहायता से परोसना सम्भव नहीं है, ये वे गुण हैं जो नियमित प्रयास के साथ व्यवहार में आते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि शिक्षण को दैनिक जीवन व चारों ओर के पर्यावरण व दैनिक गतिविधियों से जोड़ते हुए कराया जाए। विभिन्न गतिविधियों के द्वारा किया गया यह नियमित प्रयास ज्ञान के सही उपयोग को सुनिश्चित करता है। इसी प्रकार अन्य कई ऐसे उद्देश्य हैं जो पाठ्य-पुस्तक में दृष्टिगोचर नहीं होते किन्तु विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से पाठ्य-पुस्तक से निकलकर आते हैं जिन्हें पाठ्यक्रम के अन्तर्निहित गुण कहा जाता है। ये वे गुण हैं जो नियमित प्रयास व व्यावहारिक ज्ञान से प्राप्त होते हैं।
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