बहुभाषिकता : राजस्थान के सन्दर्भ में

 

राजस्थानी आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में से एक है, जिसका वास्तविक क्षेत्र वर्तमान राजस्थान प्रान्त तक ही सीमित न होकर मध्यप्रदेश के कतिपय पूर्वी तथा दक्षिणी भाग में और पाकिस्तान के वहावलपुर जिले तथा दूसरे पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी सीमा प्रदेशों में भी है। यह हरियाणा, पंजाब, गुजरात और मध्य प्रदेश[3] के निकटवर्ती क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषाओं और बोलियों का समूह है। पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रांतों में भी इसके वक्ता हैं। राजस्थानी पश्चिमी इंडो-आर्यन भाषा होने के कारण पड़ोसी, संबंधित हिंदी भाषाओं से अलग भाषा है। यह भाषा भारत में लगभग नौ करोड़ लोगों के द्वारा बोली, लिखी एवं पढ़ी जाती है।


राजस्थानी की बोलियाँ संपादित करें


राजस्थानी की मुख्यतः आठ बोलियां है जिनका कुछ अन्य बोलियों में भी विभाजन किया जाता है। भारत की जनगणना 1991 व 2011 के अनुसार निम्न बोलियाँ आधुनिक राजस्थानी भाषा के प्राथमिक वर्गीकरण के अंतर्गत आती है: मारवाड़ी बोली, हाड़ौती बोली, मेवाड़ी बोली, ढूंढाड़ी बोली, शेखावाटी बोली, बागड़ी बोली, वागड़ी बोली, मेवाती बोली [4]




भारत की जनगणना 1961 में राजस्थानी भाषा के वक्ताओं द्वारा इस भाषा के 73 बोलियां लिखवाई गई किंतु इनमें से 46 बोलियों के वक्ताओं की संख्या 1 हजार से भी कम थी, साथ ही अन्य 13 बोलियों के वक्ताओं की संख्या 50 हजार से भी कम थी। इनमें से मुख्यतः 4 बोलियों के ही वक्ताओं की संख्या 10 लाख से ज्यादा थी। भाषाविदों के अनुसार राजस्थानी की मुख्यतः 8 बोलियां ही है।




राजस्थानी भाषा की बोलियों का वर्गीकरण संपादित करें


राजस्थानी भाषा पश्चिमी इंडो-आर्यन भाषा परिवार से संबंधित हैं।[5]




डॉ॰ ग्रियर्सन ने राजस्थानी की पाँच बोलियाँ मानी हैं-




(1) पश्चिमी राजस्थानी (मार marwadi bhajanवाड़ी),




(2) उत्तर पूर्वी राजस्थानी (मेवाती अहीरवाटी),




(3) मध्यपूर्वी (या पूर्वी) राजस्थानी (ढूँढाडी हाड़ौती),




(4) दक्षिण-पूर्वी राजस्थानी (मालवी),




(5) दक्षिणी राजस्थानी (निमाड़ी)।




ग्रियर्सन ने भीली और खानदेशी को स्वतंत्र भाषा वर्ग में माना है, किन्तु डॉ॰ चाटुर्ज्या इन्हें "राजस्थानी वर्ग" के ही अंतर्गत रखना चाहेंगे, जो अधिक समीचीन जान पड़ता है। डूँगरपुर, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़ तथा आसपास की भीली बोलियों और खानदेशी की व्याकरणिक संघटना राजस्थानी से विशेष भिन्न नहीं है। वस्तुत: ये राजस्थानी के वे रूप हैं जो क्रमश: गुजराती और मराठी तत्वों से मिश्रित हैं। राजस्थानी वर्ग के अंतर्गत पाकिस्तान तथा कश्मीर के सीमांत प्रदेश की गूजरी बोली और तमिल-नाड की सौराष्ट्र बोली भी आती है, जो पूर्वी राजस्थानी से विशेष संबद्ध जान पड़ती है। डॉ॰ चाटुर्ज्या ने ग्रियर्सन के राजस्थानी के पाँच बोली-भेदों को नहीं माना हे। वे मारवाड़ी और ढूँढाडी हाड़ौती को ही "राजस्थानी" संज्ञा देना ठीक समझते हैं। उनके अनुसार राजस्थानी के दो ही वर्ग हैं :-




(1) पश्चिमी राजस्थानी (मारवाड़ी),


(2) पूर्वी राजस्थानी (जैपुरी हाड़ौती)।


मेवाती, मालवी और निमाड़ी का वे पश्चिमी हिंदी की ही विभाषा मानने के पक्ष में हैं, यद्यपि इस संबंध में व अंतिम निर्णय नहीं देते।




प्रमुख बोलियाँ संपादित करें


राजस्थानी भाषा की निम्न किस्में (मुख्य लिखित रूप व बोलियां) है:[6]




मानक राजस्थानी: राजस्थानी लोगों की सामान्य भाषा है और यह राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में 1 करोड़ 80 लाख (2001) से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है।[7]


मारवाड़ी बोली: लगभग 4.5 से 5 करोड़ बोलने वालों के साथ सबसे अधिक बोली जाने वाली राजस्थानी भाषा की मुख्य बोली जो मारवाड़ क्षेत्र में बोली जाती है।


मालवी बोली: लगभग 1 करोड़ लोग राजस्थानी भाषा की इस बोली को मालवा क्षेत्र जो मध्य प्रदेश में है, बोलते है।


ढूंढाड़ी बोली: इसके वक्ताओं की संख्या 80 लाख के करीब है जो राजस्थान के ढूंढाड़ क्षेत्र में बोली जाती है।


हाड़ौती बोली: इसके लगभग 50 लाख वक्ता है जो राजस्थान के ढूंढाड़ क्षेत्र में बोलते है।


मेवाड़ी बोली: इसके वक्ताओं की संख्या 50 लाख के करीब है जो राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में बोली जाती है।


अहीरवाटी बोली: इसके वक्ताओं की संख्या 30 लाख के करीब है जो राजस्थान, दिल्ली व हरियाणा के कुछ क्षेत्र में बोली जाती है।


शेखावाटी बोली: इसके वक्ताओं की संख्या 35 लाख के करीब है जो राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में बोली जाती है।


वागड़ी बोली: इसके वक्ताओं की संख्या 2 करोड़ 20 लाख है जो राजस्थान के डूंगरपुर व बांसवाड़ा जिसे वागड़ क्षेत्र कहा जाता है, में बोली जाती है।


बागड़ी बोली: इसके वक्ताओं की संख्या 1 करोड़ 40 लाख के करीब है जो उतरी राजस्थान, उतरी पश्चिमी हरयाणा व दक्षिणी पंजाब (भारत) के क्षेत्र में बोली जाती है।


निमाड़ी बोली: इसके वक्ताओं की संख्या 22 लाख के करीब है जो निमाड़ क्षेत्र (मध्यप्रदेश) में बोली जाती है।


इसकी अन्य बोलियों को मिलाकर कुल 73 बोलियां है।

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