गणित के सन्दर्भ में अधिगम का आकलन ( Assessment of Learning in the Context of Mathematics Bihar DElEd. 2nd year study material Notes pdf. S 7 pedagogy of mathematics


 एक बच्चा चलने का प्रयास कर रहा है । वह कुछ पग / डग / कदम बढ़ाता है । उसकी माँ उँगलियों का इस कर रही है । कुछ देर के बाद वह उसे उँगली पकड़ादेती है । स्पष्ट है कि माँ ने अनुमान कर लिया था कि बच्चा र इतने कदमों के बाद गिर सकता है । माँ ने उसके पहले ही उँगली बच्चे को पकड़ा दी । क्या बच्चे को चा सिखाने के क्रम में माँ की कितनी भूमिका है ?

 इसी तरह एक कक्षा को लें । शिक्षक कुछ पढ़ाते हैं । एक क्षण के लिए रुकते हैं । बच्चों के चेहो हाव - भाव से अनुमान करते हैं कि बच्चों ने कितना सीखा ? इसी के आधार पर वे सिखाने की क्रिया में बदल लाते हैं एवं आगे बढ़ते हैं । शिक्षक का यही अनुमान आकलन है जो कक्षा में निरन्तर चलता रहता है । निश्चित इस तरह के आकलन के अभाव में शिक्षक के सिखाने की क्रिया को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है ।

 " बच्चे कैसे सीखते हैं ? " इसके बारे में शिक्षक अपने परिवार में , समाज में , विद्यालय में देखते हैं , यह देखते हैं कि उनके माता - पिता या परिवार के लोग हर समय सीखने का आकलन किस तरह करते हैं ? शिक्षक कक्षा में आते हैं , तो उन्हें यह अनुभव कक्षा के बच्चों के सीखने के क्रम में आकलन करने में मदद होता है ,

 आइए , दो कक्षाओं का तुलनात्मक अध्ययन करें । एक कक्षा में शिक्षक पाठ्यपुस्तक की मदद से ला बच्चों को बताए जा रहे हैं , वे रुकते नहीं हैं , ज्यादा - से - ज्यादा अपनी बातों को स्पष्ट करने का प्रयास करते हैं । अनुमान करते हैं कि उन्होंने जो कुछ भी बच्चों को सिखाया , सभी बच्चे सीख गये , वे अपनी सिखाने की प्रति में भी कोई बदलाव नहीं लाते ।

 अब दूसरा दृश्य देखें । बच्चे कक्षा में बैठे हुए हैं । पाठ सिखाने के क्रम में थोड़ी - थोड़ी देर बा रुकते हैं । बच्चों के चेहरे का भाव पढ़ते हैं , कुछ सवाल करते हैं तथा हर बात का अनुमान करते हैं कि उनके बच्च ने क्या सीखा । इसके आधार पर वे यह भी तय करते हैं कि उनके सिखाने की प्रक्रिया कितनी सफल रही ? दोनों कक्षाओं को देखने के बाद आप अनुमान लगायें कि-

 ( i ) कौन - सी कक्षा बेहतर है और क्यों ?

( ii ) दोनों कक्षाओं में कहाँ पर आकलन का कार्य हो रहा है और यह कितना उपयोगी है ?

 क्या आपको लगता है कि आकलन को और उपयोगी बनाने हेतु कुछ विचार करने की आवश्यकता है ? क्या इस विमर्श में निम्न बिन्दुओं को शामिल करना सार्थक होगा

• बच्चे की व्यक्तिगत और विशेष जरूरतों को पहचानना - जैसे - कोई भी बच्चा क्या कर सकता है । उसकी किन चीजों में विशेष रुचि है ? इनके सम्बन्ध में समझ बनाना ।

• कई विषयों में एक ही कालावधि ( समय ) में बच्चे की प्रगति और उसमें आने वाले परिवर्तनों का पा लगाना ।

• सीखने सिखाने की कई स्थितियों की योजना बनाकर इसके लिए अधिक उपयुक्त तरीके ढूँढ़ना ।

• परीक्षणों के प्रति बच्चों के अन्दर व्याप्त भय को दूर कर उन्हें स्व - आकलन हेतु प्रेरित करना ।

• प्रत्येक बच्चे के विकास में मदद करना एवं सुधार की संभावनाएँ खोजना ।

आओ कुछ सवालों पर विचार करते हैं अधिकांश बच्चे गणित शब्द से घबराते हैं , क्यों ? क्या उन्हें गणित विषय नीरस या उबाऊ या कठिन लान है ? बच्चे गणित विषय में फेल होने से डरते हैं ? क्यों ? क्या इसके लिए गणित पाठ्यचर्या या इसका मूल्या पद्धति दोषी है ? क्या गणित शिक्षण पद्धति दोषी है ?

आप कैसे पता लगाते हैं कि बच्चे सीख रहे हैं ?

• आप बच्चों का मूल्यांकन क्यों करते हैं? यदि किसी बच्चे को 100 में से 32 और दूसरे बच्चे के 100 में से 33 अंक आते हैं, तो इससे आपको बच्चे के बारे में क्या क्या पता चलता है?

• मूल्यांकन से बच्चों के बारे में और क्या - क्या जानकारी मिलती है ?

• क्या प्रचलित परीक्षा प्रणाली में बच्चों के व्यक्तित्व के सभी पहलुओं की प्रगति को जानने का कोई तरीका है ?

• यदि कोई बच्चा किसी भी कारण से परीक्षा में अनुपस्थित रहता है तो उसका मूल्यांकन किस तरह किया जाता है ?

  जब आप सोच रहे होंगे तो आपको लगेगा कि मूल्यांकन सीखने की प्रक्रिया का भाग होना चाहिए । मूल्यांकन न केवल बच्चे के लिए अपितु शिक्षक के लिए भी सीखने सिखाने की प्रक्रिया का मार्गदर्शन करे । मूल्यांकन बच्चे को सफल और असफल की श्रेणियों में न बांटकर सीखने की दिशा में निरन्तर गतिशील एवं सुदृढ़ करने में मदद करें ।

 शिक्षा का महत्त्वपूर्ण लक्ष्य बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्रदान करना है । अत : विद्यालय में औपचारिक शिक्षण - प्रशिक्षण के दौरान बच्चों द्वारा अर्जित ज्ञान का मूल्यांकन करना आवश्यक है । मूल्यांकन पाठ्यचर्या का एक प्रमुख हिस्सा है । मूल्यांकन के आधार पर ही पता लगाया जा सकता है कि बच्चों ने किस हद तक सार्थक तरीके से गुणवत्तापूर्ण ज्ञानार्जन किया है । प्राथमिक स्तर पर गणित की अवधारणाओं पर चर्चा करने के पश्चात् हम बच्चे के व्यक्तित्व में किस प्रकार का बदलाव देखना चाहते हैं तथा बच्चे की सुदृढ़ व्यक्तित्व निर्माण की नींव रखने में प्राथमिक कक्षा में कई विषयों में अर्जित ज्ञान किस हद तक सहायक है ? इन सब प्रश्नों का उत्तर अध्यापक विद्यार्थी द्वारा सीखी गई अवधारणाओं और उन आवश्यकताओं का उसके द्वारा अपने व्यावहारिक जीवन में उपयोग द्वारा मूल्यांकन करके प्राप्त किया जा सकता है ।

 प्राथमिक कक्षाओं में मूल्यांकन की निम्नांकित उद्देश्य हो सकते हैं

  •  यह जानना कि बच्चे ने कितना सीखा है ?
  • बच्चे को व्यक्तिगत विशेषताओं को जानना ।
  • बच्चों के सीखने के तरीकों , कठिनाइयों को पहचानना एवं उसके अनुसार उसकी मदद करना ।
  •  कक्षा में सीखने - सिखाने की विधि को बेहतर बनाना ।
  • प्रत्येक बच्चे के सीखने - सिखाने की प्रक्रिया की पहचान करना व उसमें अपेक्षित सुधार कर उनके विकास में सहयोग करना ।
  • बच्चों में आत्मविश्वास का भाव जाग्रत करना ।

       बच्चों के सीखने का आकलन करते समय किस - किस बात का ध्यान रखना है , यह जानना बहुत जरूरी है । बच्चे के सीखने का स्तर एवं विकास के स्तर को जानने के लिए निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देना जरूरी है -

  • बच्चों द्वारा सीखी गयी अवधारणाओं का दैनिक जीवन की समस्याओं के समाधान में उपयोग करने की क्षमता और एक निश्चित समयावधि में उसके प्रगति का स्तर ।
  • बच्चे के व्यक्तित्व विकास में कई पक्षों का आकलन ।
  • बच्चे का सीखने , विषय व स्वयं के प्रति दृष्टिकोण ।
  • विभिन्न परिस्थितियों तथा मौकों पर बच्चे की प्रतिक्रिया ।

मूल्यांकन के लिए समय निर्धारण ( Assessment Time for Evaluation )

 मूल्यांकन कब किया जाए ? इसकी समयावधि क्या होनी चाहिए ? मूल्यांकन कितनी देर तक करना चाहिए ? आकलन हेतु मूल्यांकन समयावधि निर्धारित करना बहुत जरूरी है । मूल्यांकन दो प्रकार से किया जा सकता है

1. दैनिक मूल्यांकन - बच्चों के कक्षाकक्ष सम्बन्धी गतिविधियों का प्रतिदिन आकलन विद्यालय के अन्दर व बाहर के परिस्थितियों में सतत् रूप से करना ।

2. आवधिक मूल्यांकन - विद्यार्थियों के सीखने का मूल्यांकन एक निश्चित समयावधि के भीतर किया जाता है ।

बच्चों की भागीदारी के आधार पर मूल्यांकन के प्रकार ( Types ofAssessment Based on Children's Participation )

व्यक्तिगत मूल्यांकन -

इसमें किसी विशेष बच्चे की गतिविधियों , सीखने के तरीकों एवं उपलब्धि का आकलन किया जाता है ।

समूह मूल्यांकन -

इसमें किसी विशेष समूह के बच्चों की गतिविधियों , सीखने के तरीकों तथा उपलब्धि का विशेषकर समूह कार्यों मे साझेदारी , नेतृत्व क्षमता का आकलन किया जाता है ।

सहपाठियों द्वारा मूल्यांकन -

इसमें कोई बच्चा दूसरे बच्चे या बच्चों के एक समूह की गतिविधियों , सीखने के तरीकों का आकलन करता है ।

मूल्यांकन की प्रक्रिया -

मूल्यांकन के बहुत - से उपकरण हो सकते हैं । यह अध्यापक पर निर्भर करता है । कि वह विद्यार्थियों के आवश्यकताओं पर परिस्थितियों के आधार पर किस तकनीक का उपयोग करता है । मूल्यांकन के बाद परिणाम को शिक्षक द्वारा दर्ज करके बच्चों , माता - पिता व अन्य को बताया जाना चाहिए ।

सीखने - सिखाने की प्रक्रिया का मूल्यांकन ( Assessment of Learning Process )

एक दिन मैं पास के एक स्कूल में कक्षा 2 के बच्चों से मिलने गई थी । मैंने देखा कि उनमें से अनेक बच्चे " आधे ' की अवधारणा को ठीक से समझ नहीं पाए थे । शिक्षक से बात करने पर पता चला कि उन्होंने सम्बन्धित गतिविधियों के जरिये यह अवधारणा बच्चों को सिखाई थी । फिर भी बच्चे अवधारणा को समझ नहीं पाए थे । शिक्षक को यह बात तभी पता चली जब मैंने उन्हें बताया । ऐसा क्या हुआ ? क्या सिर्फ गतिविधियाँ दे देने से सुनिश्चित हो जाता है कि बच्चे सीख जाएंगे ? आप यह पक्के तौर पर कैसे कह सकते हैं कि आप जो कुछ सिखाना चाहते थे , वह बच्चों ने सीख लिया है ? इस हिस्से में हम इन्हीं सवालों पर गौर करेंगे।

          अपने अनुभव से आप जानते हैं कि यह हमेशा सम्भव नहीं होता कि हमारी योजना के अनुसार सीखने का माहौल बन जाए । अधिक बार यह ऐसे कारणों से होता है , जो आपके बस में नहीं हैं । हर मर्तबा जब कोई पाठ योजना के मुताबिक नहीं चलता , तो आपको इसके कारणों की छानबीन करनी चाहिए । क्या यह शिक्षण साधनों की कमी की वजह से हुआ ? या गतिविधियों की गलत डिजाइन की वजह से हुआ ? या कक्षा के संयोजन व प्रबन्ध न की दिक्कतों की वजह से हुआ ? या और कोई कारण था ?

 कई मर्तबा गतिविधियों का अपेक्षित असर नहीं होता क्योंकि समय कम पड़ जाता है तथा शिक्षक को सिलेबस आगे बढ़ाने की हड़बड़ी होती है लेकिन कारगर शिक्षण के लिए जरूरी है कि बच्चों को सही तरीके से चुनी हुई गतिविधियाँ दी जाएं , और इन्हें करने के लिए तथा इनसे सीखने के लिए काफी समय दिया जाए । यदि कोई गतिविधि अच्छे से चल रही है एवं बच्चे उसमें जुटे हुए हैं , तो इसे योजना के हिसाब से ज्यादा वक्त भी दिया जा सकता है । यह भी हो सकता है कि गतिविधि कुछ ऐसी हो कि उसे पूरी कक्षा के साथ नहीं किया जा सकता । यहीं पर योजना में लचीलेपन का फायदा होता है यदि एक योजना नहीं चल रही है , तो दूसरी आजमाई जा सकती है।

 किसी भी सिखाने के तरीके का एक जरूरी भाग होता उसके असर का मूल्यांकन । सीखने - सिखाने की प्रक्रिया कारगर हैं या नहीं , इसका फैसला करने हेतु आप खुद से कुछ इस तरह के सवाल पूछ सकते हैं -

• क्या बच्चों को पाठ में मजा आ रहा है ?

• क्या वे सवाल कर रहे हैं एवं गतिविधियों में पहल कर रहे हैं ?

• क्या आपके द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देने के लिए उन्हें काफी समय मिल रहा है ?

• क्या उन्हें , वे जो कुछ कर रहे हैं , उसके बारे में सोचने के लिए बढ़ावा मिल रहा है ?

  बच्चों की समझ को जाँचना एवं उसका मूल्यांकन करना शिक्षण का अभिन्न अंग होना चाहिए । शिक्षकों को यह पक्का कर लेना चाहिए कि क्या वास्तव में उन्होंने यह सब कुछ पढ़ा दिया है , जो वे सोचते हैं कि उन्होंने पढ़ाया है तथा यह भी तय कर लेना चाहिए कि क्या हर बच्चे ने वह सब सीख लिया है जिसकी उससे उम्मीद थी । जैसे , हो सकता है कि मूल्यांकन के जरिये शिक्षक को पता चले कि करीब एक - चौथाई बच्चे ' आधे ' की अवधारणा पकड़ नहीं पाए हैं । तब उन्हें एक बार फिर उन बातों से प्रारम्भ करना होगा , जिनसे बच्चे पहले से परिचित हों । इस बार शिक्षक नए तरीके आजमाने का फैसला कर सकती है , जैसे कि अलग - अलग बच्चों को उनकी खास जरूरतों के अनुसार अलग - अलग वर्कशीट दी जा सकती है , या मित्रों से सीखने का ढंग अपनाया जा सकता है । शिक्षक को इस बात का एहसास भी होना चाहिए कि कब किसी बच्चे को ठोस चीजों के इस्तेमाल की जरूरत है , तथा जरूरत के मुताबिक उस बच्चे को इसका मौका देना होगा ।

 यानी , बच्चों का मूल्यांकन जरूरी है , किन्तु यह उपयोगी तभी होता है जब आप इसका असर अपनी शिक्षण प्रक्रिया पर पड़ने दें । सिर्फ ' अच्छा ' , या ' औसत ' ठहराने के मकसद से किया गया मूल्यांकन ( जैसा कि आम तौर पर होता है ) ज्यादा उपयोगी नहीं होता । मूल्यांकन के जरिये यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि किस हद तक हर बच्ची अपनी गणितीय क्षमताएँ विकसित कर पाई हैं । इसलिए मूल्यांकन के दायरे में अलग - अलग तरह के गणितीय कार्य सम्मिलित किए जाने चाहिए । मूल्यांकन में बच्चों को ऐसी समस्याओं से निपटने का मौका मिलना चाहिए जिनमें उन्हें कई गणितीय बातों का इस्तेमाल करना पड़े । उनकी योग्यता जानने हेतु आप ऐसी तकनीक अपना सकते हैं जिनसे अनेक क्षमताओं की जाँच साथ - साथ हो सकती है । इनमें बच्चों के लिए बहुत बोझिल कार्य न हो । लिखित व मौखिक कार्य भी शामिल हो सकते हैं ।

     यानी , मूल्यांकन प्रक्रिया से आपको यह देखने में सहायता मिलनी चाहिए कि क्या शिक्षण के सारे निर्धारित लक्ष्य हासिल हो गए हैं ? दरअसल हर कदम पर मूल्यांकन आपकी सीखने - सिखाने की प्रक्रिया का भाग होना चाहिए । इस प्रक्रिया के दौरान मूल्यांकन के लिए बच्चों से उनकी प्रतिक्रियाएँ बार - बार लेते रहना चाहिए । इस प्रकार के मूल्यांकन से आपको यह पता लगता रहेगा कि बच्चे की समझ में कोई गलती तो नहीं है , या उसे किसी तरह की मुश्किल तो नहीं आ रही है और यह बात आपको उसी समय पता लग जाएगी जब यह गलती या दिक्कत सामने आएगी एवं समय रहते उसका सुधार कर सकेंगे । इससे काफी समय और मेहनत की बचत होगी । खासकर गणित जैसे विषय में ऐसे उपाय जरूरी होते हैं क्योंकि इनमें अवधारणाएँ एक निश्चित क्रम में विकसित होती हैं ।

  सिखाने के दौरान मूल्यांकन के अतिरिक्त आपको समय - समय पर परीक्षा भी करनी होगी । इससे आपके विद्यार्थियों को तो शिक्षण के उद्देश्य हासिल करने में मदद मिलेगी ही , साथ में आप भी अपने शिक्षण का मूल्यांकन कर पाएंगे , हर बच्चे की समस्या को पहचान पाएंगे एवं उन्हें सुलझाने में बच्चों की मदद कर पाएंगे ।

ऊपर दी गई चर्चा के बाद आप इस बात से जरूर सहमत होंगे कि बच्चों का मूल्यांकन सिर्फ सत्र या साल के आखिर में करने की बजाय पूरे साल भर करना जरूरी है । सत्र के अन्त में किए गए मूल्यांकन से न तो बच्चों को सहायता मिलती है और न ही शिक्षक को ।

मूल्यांकन प्रक्रिया में मुख्यतः निम्न तीन बातों के सम्बन्ध में निर्णय किया जाता है

1. शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हुई ?

2 उद्देश्य प्राप्त करने की विधि कितनी प्रभावी रही ?

 3. अधिगम - अनुभव कितने प्रभावी उत्पादक रहे ?

 सीखने और सिखाने के प्रक्रिया में मूल्यांकन में निम्नांकित उद्देश्य हैं-

  • बच्चों के सीखने की प्रक्रिया की पहचान करना व उनका उचित मार्गदर्शन करना ।
  •  बच्चों के व्यवहारगत पक्षों को विकसित करना ।
  • बच्चों के मजबूत और कमजोर पक्षों की पहचान करना ।
  • बच्चों की सीखने की कठिनाइयों की पहचान करना ।
  • सीखने - सिखाने की विधियों को सुधार करके उन्नत बनाना ।
  • निदानात्मक व उपचारात्मक कार्यक्रम तैयार करना ।

 शिक्षा बच्चों के समझ के विकास से जुड़ी हुई है - शारीरिक , सामाजिक , भावात्मक और संज्ञानात्मक । अतएव यह आवश्यक है कि समस्त पहलुओं का आकलन किया जाए । शैक्षिक उपलब्धि के साथ - साथ सह - शैक्षिक उपलब्धि का भी । इस प्रकार विद्यालय के अन्दर और विद्यालय के बाहर होने वाली सभी गतिविधियाँ जिनमें बच्चों की भागीदारी होती है , उनका आकलन किया जाना चाहिए , साथ ही आकलन की प्रक्रियाओं को सूचना एवं प्रतिपुष्टि का स्रोत भी बनाना चाहिए ।

 उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए बताएं कि अधिगम की पूरी तस्वीर को समझने हेतु किन - किन बिन्दुओं का आकलन करना आवश्यक होगा ?

 बच्चों के अधिगम की पूर्णतः समझ के आकलन के लिए निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार करना पर्याप्त होगा

• कई विषयों एवं क्षेत्रों में बच्चों का प्रदर्शन ।

• बच्चों के कौशल , रुचियाँ , रुझान आदि ।

• अवधि विशेष में बच्चों के व्यवहार में होने वाले परिवर्तन ।

• विद्यालय के भीतर और बाहर अनेक अवसरों पर बच्चों की प्रतिक्रिया ।

इसी के साथ जुड़ा हुआ एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि बच्चों के सीखने की प्रक्रिया और प्रगति का कब और कैसे आकलन किया जाए ? चूँकि सीखने के परिणामों का आकलन अधिगम प्रक्रिया के साथ सतत् रूप से जुड़ा हुआ है , समग्र रूप से आकलन करने हेतु सभी पहलुओं को उचित स्थान देने के लिए प्रत्येक बच्चे का प्रोफाइल बनाना उचित हो जाता है । इसके लिए कालखण्ड तय करना पड़ेगा एवं उसके अनुसार कार्य करना पड़ेगा । कक्षा में अनौपचारिक अवलोकन , आकलन तो चलता ही रहना चाहिए लेकिन एक खास अवधि के अन्त में विशेष रूप से समीक्षा कर लेना जरूरी होगा ।

हम जानते हैं कि बच्चे अपने तरीके से ही सीखते हैं और वे सिर्फ स्कूल में नहीं सीखते हैं - सतत् सीखते रहते हैं । आवश्यक है कि हम सीखने के स्रोतों की जानकारी इकट्ठी करें साथ ही तरह - तरह की गतिविधियों , अनुभवों एवं अधिगम कार्य कलापों की जानकारी इकट्ठी करें । बच्चों से भी कहा जा सकता है कि वे उन कार्यों को चयन करें जो उनकी नजर में सर्वोत्तम हैं , तथा उनसे पूछे कि उन कार्यों का चयन क्यों किया । यद्यपि शिक्षक सूचनाओं के मुख्य स्रोत होते हैं , फिर भी बच्चों के स्वयं का आकलन अपना विशेष स्थान रखता है ।

शिक्षक और अन्य व्यक्तियों के साथ बात - चीत कर इन्हें भी आकलन की प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है

• समुदाय के लोग ।

• माता-पिता /अभिभावक।

• अन्य शिक्षक।

• बच्चों के समवय समूह।

• स्वयं बच्चा



By:- Prof. Rakesh Giri...  

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               Epam Siwan



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