लिंग की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए । आधुनिक भारतीय समाज लिंगभेद की स्थिति क्या है । (Explain the concept of gender. What is the status of gender discrimination in modern Indian society.)

Q. लिंग की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए । आधुनिक भारतीय समाज लिंगभेद की स्थिति क्या है ।

(Explain the concept of gender. What is the status of gender discrimination in modern Indian society.)

Ans. लिंग की अवधारणा-

समाज की संरचना संगठन और व्यवस्था में लिंग समानता और असमानता का विशेष महत्व है। लिंग की असमानता पर समाज के संरचनात्मक संस्थागत और संगठनात्मक ढांचे का प्रभाव पड़ता है। लिंग की असमानता भी समाज के संतुलन व्यवस्था और विकास को प्रभावित करती है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से यह अध्ययन करना होगा कि लिंग की असमानता किसे कहते हैं? इस असमानता के कारण कौन-कौन से हैं? लिंग की असमानता के कारण स्त्री और पुरुष में से किसका शोषण हो रहा है? असमानता का शिकार कौन सा वर्ग (स्त्री वर्ग या पुरुष वर्ग) है? लिंग के अनुसार समाज की धारणाएं क्या है? भेदभाव के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? लिंग असमानता को दूर करने के लिए क्या क्या प्रयास और प्रावधान किए गए हैं? संवैधानिक अधिकारों और उनके व्यवहार में कितना अंतर है? आदि की विवेचना समाजशास्त्री दृष्टिकोण से यहां किया गया है।लिंग की अवधारणा एक प्राकृतिक तथ्य है, जिसको नकार कर के हम समाज की संकल्पना ही नहीं कर सकते,अतः समष्टि,समाज के संरक्षण व विकास हेतु लिंग की अवधारण अत्यंत ही महत्वपूर्ण है |

लिंग की परिभाषा एवं अर्थ-

लिंग और यौन अवधारणाएं एक दूसरे से संबंधित है इसीलिए लिंग और लिंग भेद को यौन और योन भेद के संदर्भ में समझना अधिक सरल है। इसी संदर्भ में लिंग की परिभाषा और अर्थ की विवेचना प्रस्तुत है।

प्राकृतिक विज्ञान में विशेष प्रणाली से प्राणी विज्ञान स्त्री-पुरुष के जैविक लक्षणों का वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं। इनका जैविक और पुनर्जनन कार्यों पर ही ध्यान केंद्रित रहता है। विगत वर्षों में ऐसे अध्ययनों को योनि भेद (सेक्स) से संबंधित किया जाने लगा है। सामाजिक विज्ञानों में विशेष रूप से समाजशास्त्र में स्त्री-पुरुषों का अध्ययन लिंग भेद के आधार पर किया जाता है, जिसका तात्पर्य है कि उन्हें सामाजिक अर्थ प्रदान किया जाता है। “स्त्री” और “पुरुष” का अध्ययन सामाजिक संबंधों को गहराई से समझने के लिए किया जाता है। योनि-भेद जैविक-सामाजिक है, और लिंग-भेद सामाजिक संस्कृतिक है। योनि- भेद शीर्षक के अंतर्गत “स्त्री” “पुरुष” का नर-मादा के बीच विभिन्नताओ का अध्ययन करते हैं, जिसमें जैविक गुण जैसे पुनर्जनन कार्य पद्धति, शुक्राणु-अंडाणु एवं गर्भाधान क्षमता, शारीरिक बल क्षमता, शरीर रचना की भिन्नता आदि पर ध्यान दिया जाता है। लिंग भेद में "स्त्री" और "पुरुष" का अध्ययन पति-पत्नी, माता-पिता, भाई-बहन, पुत्र- पुत्री के रूप में अर्थात सामाजिक सांस्कृतिक दृष्टिकोण से किया जाता है। उनकी समाज में प्रस्थिति और भूमिकाए क्या है? उनके कर्तव्य व अधिकार क्या है? का अध्ययन किया जाता है। लिंग भेद की धारणा का उद्देश्य “स्त्री” और “पुरुष” के बीच सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक आदि विभिन्नताओं, समानताओं और असमानताओं का वर्णन व्याख्या करना है।

लिंग भेद (सेक्स) शब्द का प्रयोग अन्य ओकेल ने 1972 में अपनी कृति “सेक्स जेंडर एंड सोसाइटी” में किया था। आपके अनुसार “योन भेद” का अर्थ “स्त्री” और “पुरुष” का जैविकीय विभाजन है और लिंगभेद से आपका तात्पर्य स्त्रीत्व और पुरुषत्व के रूप में समानांतर एवं सामाजिक रूप से आसामान विभाजन से है। लिंग भेद की अवधारणा के अंतर्गत “स्त्री” और “पुरुष” के बीच में सामाजिक दृष्टिकोण से जो विभिन्नताएं हैं उनका अध्ययन किया जाता है। लिंग भेद शब्द का प्रयोग सांस्कृतिक आदर्शों स्त्रीत्व और पुरुषत्व से संबंधित धारणाओं के लिए किया जाता है। इस अवधारणा का प्रयोग स्त्री और पुरुष के बीच शारीरिक क्षमताओं के आधार पर जो सामाजिक संस्थाओं और संगठनों में श्रम विभाजन होता है,उनके लिए भी किया जाता है।

विगत कुछ वर्षों में समाज विज्ञानों में लिंग के सामाजिक पक्ष को उभारने का प्रयास किया गया है और इसे जेवी किए पक्ष से अधिक समझा जाने लगा 1970 के लगभग सामाजिक संस्थाओं एवं मनोवैज्ञानिकों ने इसके अध्ययन में दिलचस्पी लेनी शुरू की। उनके अध्ययन में यह साबित किया कि भारतीय संस्कृति में लिंग भेद तथा स्त्रियों एवं पुरुषों की भूमिका में संस्कृति के आधार पर काफी भिन्नता है। स्त्री एवं पुरुष के बीच काम के वितरण में भी और समानता पाई गई। समाज शास्त्रियों ने इसे सामाजिक समस्या के रूप में उभारा और पुरुष तथा स्त्रियों के बीच वह ओ समानता की खाई को अपने अध्ययन का विषय बनाया ।

सर्वप्रथम 1972 में क्षत्रिय प्ले ने अपनी पुस्तक सेक्स जेंडर एंड सोसाइटी में सेक्स शब्द की महत्ता का वर्णन किया। उनके अनुसार से स्त्री एवं पुरुष का जेवी किए विभाजन तथा जेंडर का अर्थ स्त्रीत्व एवं पुरुषत्व के रूप में समानांतर और सामाजिक रूप से वह सामान विभाजन से है । अर्थात स्त्रियों और पुरुषों के बीच सामाजिक रूप से निर्मित विनता के पहलुओं पर ध्यान आकर्षित करती है।

आधुनिक भारतीय समाज लिंगभेद की स्थिति:-

भारतीय समाज में लिंग असमानता का मूल कारण इसकी पितृसत्तात्मक व्यवस्था में निहित है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री सिल्विया वाल्बे के अनुसार, “पितृसत्तात्मकता सामाजिक संरचना की ऐसी प्रक्रिया और व्यवस्था हैं, जिसमें आदमी औरत पर अपना प्रभुत्व जमाता हैं, उसका दमन करता हैं और उसका शोषण करता हैं।” महिलाओं का शोषण भारतीय समाज की सदियों पुरानी सांस्कृतिक घटना है। पितृसत्तात्मकता व्यवस्था ने अपनी वैधता और स्वीकृति हमारे धार्मिक विश्वासों, चाहे वो हिन्दू, मुस्लिम या किसी अन्य धर्म से ही क्यों न हों, से प्राप्त की हैं।I

उदाहरण के लिये, प्राचीन भारतीय हिन्दू कानून के निर्माता मनु के अनुसार, “ऐसा माना जाता हैं कि औरत को अपने बाल्यकाल में पिता के अधीन, शादी के बाद पति के अधीन और अपनी वृद्धावस्था या विधवा होने के बाद अपने पुत्र के अधीन रहना चाहिये। किसी भी परिस्थिति में उसे खुद को स्वतंत्र रहने की अनुमति नहीं हैं।”

मुस्लिमों में भी समान स्थिति हैं और वहाँ भी भेदभाव या परतंत्रता के लिए मंजूरी धार्मिक ग्रंथों और इस्लामी परंपराओं द्वारा प्रदान की जाती है। इसीस तरह अन्य धार्मिक मान्याताओं में भी महिलाओं के साथ एक ही प्रकार से या अलग तरीके से भेदभाव हो रहा हैं।महिलाओं के समाज में निचला स्तर होने के कुछ कारणों में से अत्यधिक गरीबी और शिक्षा की कमी भी हैं। गरीबी और शिक्षा की कमी के कारण बहुत सी महिलाएं कम वेतन पर घरेलू कार्य करने, संगठित वैश्यावृति का कार्य करने या प्रवासी मजदूरों के रुप में कार्य करने के लिये मजबूर होती हैं

लड़की को बचपन से शिक्षित करना अभी भी एक बुरा निवेश माना जाता हैं क्योंकि एक दिन उसकी शादी होगी और उसे पिता के घर को छोड़कर दूसरे घर जाना पड़ेगा। इसलिये, अच्छी शिक्षा के अभाव में वर्तमान में नौकरियों कौशल माँग की शर्तों को पूरा करने में असक्षम हो जाती हैं, वहीं प्रत्येक साल हाई स्कूल और इंटर मीडिएट में लड़कियों का परिणाम लड़कों से अच्छा होता हैं।अतः उपर्युक्त विवेचन के आझार पर कहा जा सकता हैं कि महिलाओं के साथ असमानता और भेदभाव का व्यवहार समाज में, घर में, और घर के बाहर विभिन्न स्तरों पर किया जाता हैं।

भारत में लिंग के आंकड़े: -

भारत में बालिकाओं एवं महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर कई अध्ययन किए गए। ऐतिहासिक काल से लेकर आधुनिक काल तक कोई भी समाज ऐसा नहीं मिला जहां स्त्री पुरुष और समांतर समान रूप में ना पाई गई हो। लिंगभेद में लिंग असमानता एक सार्वभौमिक विशेषता है। सरकार द्वारा कराई गई 2011 जनगणना के आंकड़े के आधार पर भारत में प्रति 1000 पर केवल 919 स्त्रियां है। 2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा में प्रति 1000 पुरुषों पर केवल 834 महिलाएं थी पंजाब में 846 उत्तर प्रदेश में 902 तथा राजस्थान में 888 बालिकाएं हैं।

लिंग और समानता: -

भारत में महिलाओं की संख्या में अंतर का कारण भारतीय समाज की सामाजिक आर्थिक परिस्थितियां है। लड़कियों को समाज में बोझ समझने के कारण उसे पारिवारिक अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है। उसे असहाय दिलाता जाता है कि या पुरुष प्रधान समाज है। अथवा उसे उनके अधीन रहना है। उनके अत्याचारों को सहना है परंतु उनके विरुद्ध आवाज नहीं उठानी है। सत्तात्मक समाज में स्त्रियों को ना तो दो वक्त का भोजन मिल पाता है और ना ही उनके इलाज की सुविधाएं दी जाती है । अधिकांश मौतें प्रसव और बच्चे के जन्म के समय ही हो जाती है। कल में लड़की का जन्म पिता के सम्मान में बाधक होता था पूर्णविराम वह परंपरा आज भी कई समाजों में विद्यमान है जहां बेटी के जन्म लेते ही उसे मार दिया जाता था पूर्णविराम राजस्थान में एक ऐसा गांव है जहां कृत कहते हैं कि 50 वर्ष से बारात नहीं आई। या शर्मनाक स्थिति है बेटी के जन्म को अनचाहा मानने की प्रवृत्ति शहरों में और पढ़े-लिखे समाजों में भी देखने को मिलती है। भारतीय समाज में भ्रूण हत्या का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। 1984 में हुए एक अध्ययन के अनुसार लगभग 40,000 भ्रूण की हत्या की गई पूर्ण राम भारत सरकार ने एक विधेयक पारित किया जिसमें भ्रूण हत्या एवं भ्रूण परीक्षण को कानूनन अपराध माना गया लेकिन इसके बावजूद भ्रूण हत्या एवं भ्रूण परीक्षण पर रोक नहीं लगाई जा सकी पूर्णविराम यदि इस कानून पर अमल किया जाता तो स्त्रियों की संख्या पुरुषों की तुलना में कम ना पड़ती पूर्णब्रह्म शोध एवं सर्वेक्षण में यह भी साबित किया है कि लड़कियों के साथ बचपन से ही और समान व्यवहार शुरू कर दिया जाता है। बालिकाओं के साथ तेजी से बढ़ती घटनाएं समाज शास्त्रियों के समक्ष एक प्रश्न चिन्ह बनकर खड़ी है समाज में ऐसा विपन क्यों है और कौन इसके लिए जिम्मेदार है बढ़ती गुंडागर्दी अपराध और हिंसा ने समाज में असुरक्षा का माहौल खड़ा कर दिया है। इस क्षेत्र में शीघ्रता शीघ्र कदम उठाना आवश्यक है।

लिंग असमानता को दूर करने के उपाय: -

भारत सरकार ने 14 वर्ष तक के बच्चों को बिना किसी भेदभाव के विकास के अधिकार दिए हैं साथ ही साथ बच्चों के साथ होने वाले अन्याय शोषण तथा लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव को रोकने के लिए बच्चों के स्वास्थ्य शिक्षा विकास और उनके जन्म आदि में बाधा डालने वाली समस्याओं को जड़ से समाप्त करने के लिए तथा समाज में बच्चों ने उन लड़कियों के प्रति लोगों का दृष्टिकोण बदलने के लिए कई कानून बनाए जो निम्नलिखित हैं-

अधिनियम 1961 , संरक्षक और प्रतिपाली अधिनियम 1990, किशोर अपराध न्याय अधिनियम 1981 इत्यादि

इनके अलावा एक कानून बनाए गए हैं जिनमें लिंग असमानता दूर करने का प्रयास किया गया। अनेक कल्याणकारी आपराधिक कानून है जिनमें बच्चों की देखभाल और महिलाओं की सुरक्षा के प्रधान है। ऐसे अनेक सर्वाधिक कानून है जिन्हें अधिकांश राज्यों ने कुछ स्थानीय परिशोधन ओं के साथ पारित किया है। विकास की दृष्टि से यह भी अवस्था क्रांतिकारी परिवर्तनों की अवस्था मानी जाती है क्योंकि इस अवस्था में परिवर्तनों का स्वरूप इस प्रकार का होता है कि बालक को ना तो बालक ही कहा जा सकता है ना पूर्ण। परिवर्तनों की प्रक्रिया के फलस्वरूप बाल्यावस्था के सभी शारीरिक व मानसिक गुण समाप्त हो जाते हैं और उनका स्थान नया खून ले लेते हैं। यह परिवर्तन ही बालकों को किशोरावस्था की ओर अग्रसर करते हैं।

जड़ शील्ड के शब्दों में: -

“किशोरावस्था वह काल है जिसमें विकासशील प्राणी बाल्यावस्था से परिपक्वता की ओर बढ़ता है।”

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