गणित शिक्षण की पाठ्यक्रम में आवश्यकता Pedagogy of Mathematics, maths pedagogy for B.Ed. and D.El.Ed. and CTET,TET, TGT, PGT,UPTET all teaching Exams.

 

गणित शिक्षण की पाठ्यक्रम में आवश्यकता Pedagogy of Mathematics, maths pedagogy for B.Ed. and D.El.Ed. and CTET,TET, TGT, PGT,UPTET all teaching Exams.




गणित शिक्षण की पाठ्यक्रम में क्या आवश्यकता है? विवेचना करें ।

उत्तर – गणित को विद्यालय के पाठ्यक्रम में क्या स्थान दिया जाये ? इसकी पाठ्यक्रम में क्या आवश्यकता है ? इसे पूर्ण विषय बनाने को लेकर भी मतभेद है । फ्रोबेल , माण्टेसरी , पेस्टालॉजी आदि शिक्षाशास्त्रियों ने गणित की शिक्षा को मनुष्य के बौद्धिक एवं सांस्कृतिक विकास का सर्वश्रेष्ठ साधन मानकर गणित को शिक्षा के पाठ्यक्रम में उच्च स्थान दिया । जैन गणितज्ञ श्री महावीराचार्य ने भी अपनी पुस्तक “ गणित सार संग्रह ” में इसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बताते हुए लिखा ….. अधिक क्या कहें सचराचर के त्रैलोक्य में जो कुछ भी वस्तु है , उसका अस्तित्व गणित के बिना सम्भव नहीं हो सकता ।

 1. गणित का जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध – गणित का जीवन के विभिन्न पक्षों से घनिष्ठ सम्बन्ध है । गणित के माध्यम से चित्त की एकाग्रता एवं मानसिक अनुशासन को बनाये रखा जा सकता है । इसके कारण तर्क – वितर्क , नवीनतम खोज , कर्म के प्रति लगन एवं निष्ठा की आदत का विकास होता है । गणित से स्पष्ट भाव एवं विचारों को व्यक्त करने की आदत का विकास होता है । गणित की एक – एक समस्या मस्तिष्क के लिए एक खुली चुनौती होती है जो कि हमारे समान मानसिक शक्तियों को सुनियोजित ढंग से जीवन की समस्याओं को हल करने के लिए तैयार करती है ।

 2. गणित का अन्य विषयों से सम्बन्ध – गणित का अन्य विषयों के साथ गहरा सम्बन्ध है । आधुनिक संस्कृति की नींव विज्ञान है परन्तु इस नींव में लगाई जाने वाली ईंट गणित के नियम हैं । कोई ऐसा विषय नहीं है जिसमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से गणित की आवश्यकता नहीं पड़ती हो । गणित का ज्योतिष , चिकित्सा , भूगोल , अर्थशास्त्र , रसायन आदि विषयों में हो नहीं वरन् इतिहास के अध्ययन में भी इसको आवश्यकता पड़ती है ।

 3. सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति में महत्त्व – गणित का सम्बन्ध रोजी – रोटी कमाने से भी है । सामाजिक एवं आर्थिक विकास की जड़ें शिक्षा के साथ हैं । गणित शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण भाग है । सभी व्यवसायों और उद्योगों को कुंजी गणित के हाथ में है । व्यापार के सभी आँकड़े तथा मूल्यांकन गणित के द्वारा ही किया जाता है । गणित के माध्यम से ही हम व्यापार को वास्तविक स्थिति का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । सामाजिक विकास में गणित की अहम् भूमिका है । सामाजिक विकास का मापदण्ड आधुनिक उपकरण है । आधुनिक उपकरणों के विकास में गणित आवश्यक है इस तरह हम देखते हैं कि सामाजिक एवं आर्थिक गति में गणित प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों रूप में सहयोगी है।

 4. मानसिक विकास में सहायक – गणित एक ऐसा विषय है जो मानसिक शक्तियों के प्रशिक्षण के अवसर उपलब्ध कराता है तथा एक सोई हुई व अनिर्देशित आत्मा में चेतना व आगृति उत्पन करने का कौशल गणित ही प्रदान कर सकता है ।


 5. गणित तार्किक दृष्टिकोण पैदा करता है – गणित के माध्यम से छात्रों में समस्याओं को हल करने के लिए तार्किक दृष्टि मिलता है इसके द्वारा छात्रों में बौद्धिक एवं मानसिक विकास होता है । इसी कारण तर्क के माध्यम से किसी समस्या के हल तक पहुंचा करते हैं जा सकता है गणित के सूत्र इसी तरह तक के आधार पर समस्या हल करने की ओर प्रेरित करते हैं।

 6. परिणाम की निश्चितता – गणित में किसी भी सम्बन्ध का हल निश्चित होता है । इसमें कक्षा या आयु के आधार पर किसी प्रकार के अन्तर की सम्भावना नहीं होती है । गणित के फल एक ही रूप में होते हैं , इनमें शंका की गुंजाइश नहीं होती है । परिणाम की इस निश्चितता के कारण परीक्षा में मूल्यांकन भी पूर्ण होता है ।

 7. समस्या समाधान की कुशलता हेतु आवश्यक – विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत समस्याओं के उचित समाधान हेतु उन्हें सरल रूप में बदलना , अनुमान लगाना , परिणाम निकालना , स्थिति विश्लेषण , अमूर्तता आदि युक्तियों का अधिगम आवश्यक है । इन युक्तियों का ज्ञान विद्यार्थियों को गणित की सहायता से ही हो सकता है । अत : समस्या समाधान किस प्रकार होगा इसकी कुशलता हेतु यह आवश्यक है ।

 8. गणित के अन्वेषणात्मक नियमों से परिचय हेतु आवश्यक – बालकों को गणित के अन्वेषण एवं खोजने के नियमों का ज्ञान होना भी आवश्यक है , केवल गणित को एक विज्ञान बताना ही पर्याप्त नहीं है ।

 9. प्रत्यक्षीकरण और निरूपण के कौशल हेतु आवश्यक – गणित शिक्षण से बालकों में वस्तु के आकार , प्रकार , संरचना , परिणाम एवं रूपों द्वारा स्थितियों का सर्वोत्तम प्रत्यक्षीकरण होता है । साथ ही गणितीय नियमों , सिद्धान्तों व अवधारणाओं का अनेक तरीकों हैं , अतः यह भी आवश्यक होते हैं । से निरूपण भी गणित द्वारा ही सीखा जाता है । उक्त दोनों कौशल जीवन – पर्यन्त चलने वाले हैं।अतः यह भी आवश्यक होते हैं।

इस प्रकार गणित शिक्षण अत्यन्त ही आवश्यक है , प्राथमिक स्तर से ही बालंक गणितीय चिन्तन की ओर बढ़ता है , बालक अपने अनुभवों व त्रुटियों के साथ काम करना प्रारम्भ करता है व धीरे – धीरे विद्यालयी शिक्षा का यह ज्ञान एक विषयात्मक उपागम की ओर बढ़ता है । अत : गणित का अध्ययन प्रत्येक व्यक्ति को इस योग्य बनाता है कि उसकी चिन्तन प्रक्रिया क्रमबद्ध , तर्क – सम्मत एवं व्यावहारिक हो तथा इस दैनिक जीवन में गणितीय संक्रियाओं का ‘ प्रयोग कर सके।












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