C8 Knowledge and curriculum( ज्ञान एवं पाठ्यक्रम) B.Ed most important questions answer for exam


 Unit-1 knowledge and knowing

( ज्ञान और जानना )

 इन सभी प्रश्नों के उत्तर जल्द ही जोड़े जाएंगे।

Q. 1.  ज्ञान की अवधारणा क्या है? ज्ञान की प्रकृति एवं प्रकारों का वर्णन करें।( what is a concept of knowledge? discuss the nature and types of knowledge? )

उत्तर -

 ज्ञान की अवधारणा

(Concept Of Knowledge) 


 ज्ञान शब्द की कोई व्यापक परिभाषा देना कठिन है क्योंकि दर्शन के विभिन्न विचारधाराओं में ज्ञान की अपने-अपने ढंग से व्याख्या की गई है। प्रज्ञा, ज्ञाता और ज्ञेय के पारस्परिक संबंध को माना जाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्रत्येक ज्ञान के एक ज्ञाता तथा एक ज्ञेय होता है और जब ज्ञाता का ज्ञान के साथ इंद्रियों के माध्यम से संपर्क होता है तो ज्ञेय को पदार्थ के संबंध में एक चेतना होती है जिसे ज्ञान की संज्ञा दी जा सकती है। इसी प्रकार ज्ञानेंद्रियों से जो प्रत्यक्षीकरण तथा अनुभव होता है उसे विज्ञान कहते हैं ज्ञान इंद्रियों तक ही सीमित नहीं होता अपितु इंद्रियों से पर भी जो अनुभूतियां होती है उसे भी ज्ञान कहा जाता है।

 आदर्शवाद ने जहां चेतना को ज्ञान की संज्ञा दी गई है जो ज्ञानेंद्रियों तथा ज्ञान इंद्रियों से परे अनुभूतियों से संबंधित है जबकि प्रयोजनवाद और प्रकृतिवाद कमा ज्ञानेंद्रियों के प्रत्यक्षीकरण को ही ज्ञान मानते हैं। ज्ञान को समझने हेतु ज्ञान के स्वरूप पर प्रकाश डालना आवश्यक है।

 ज्ञान का स्वरूप (Nature of Knowledge )-

ज्ञान किसी वस्तु के संबंध में जानकारी है जब हम किसी वस्तु के संबंध में यह कहते हैं कि हमें उनकी जानकारी है तो हम यह मानकर चलते हैं कि यह जानकारी सत्य है। आतम ज्ञान की धारणा में पहले तो यह बात नहीं है कि ज्ञान को अवश्य सत्य होना चाहिए। उदाहरण के लिए हम यदि कहते हैं कि श्याम को हम जानते हैं कि श्याम में हमारा परिचय सत्य होना चाहिए। दूसरी बात यह भी के ज्ञाता को उस बात की सत्यता पर विश्वास होना चाहिए। अर्थात हमें यह विश्वास होना चाहिए कि श्याम को हम जानते हैं तथा तीसरी बात यह कि ज्ञाता के प्रायः इस बात के पर्याप्त प्रमाण होने चाहिए कि यह बात सत्य है। इस प्रकार ज्ञान के अर्थ में तीन बातें आती हैं - सत्यता, सत्यता में विश्वास  तथा सत्यता के लिए पर्याप्त प्रमाण आदि ज्ञान के स्वरूप को मानसिक तथा मनोवैज्ञानिक क्रिया  जैसे- जानना, करना और अनुभूति करना मानते हैं। यही मनुष्य के तीन प्रकार के व्यवहार होते हैं।

 ज्ञान और नॉलेज 


प्रायः इन दोनों शब्दों को समानार्थी , ही प्रयुक्त किया जाता है परन्तु ' पाश्चात्य मत ' में मिली ' नॉलेज ' शब्द की विवेचना तथा भारतीय मतानुसार ' ज्ञान ' शब्द की दार्शनिक विवेचना में अन्तर है । ' नॉलेज ' सिर्फ सत्य होता है जबकि ' ज्ञान ' का सत्य व असत्य दोनों ही रूपों में पाया जाना नियत है । पाश्चात्य तर्कनिष्ठ अनुभववादी पम्परा में ' असत्य ज्ञान ' ( False knowledge ) एक स्वतोष्याघाती पद और ' सत्य ज्ञान '(true knowledge ) एक पुनरुक्ति है जबकि भारतीय परम्परा में न तो ' असत्य ज्ञान ' स्वतोव्याघमक है व ' सत्य ज्ञान ' पुनरुक्ति है । साधारण शब्दकोष में ' ज्ञान ' पद का अनुवाद ' नॉलेज ' पद से किया जाता है किन्तु दार्शनिक दृष्टि में यह उचित नहीं है । भारतीय और पाश्चात्य ज्ञान मीमांसा में आधारभूत भेद है अत : दोनों शब्दों को एक - दूसरे की भाषा में अनूदित या रूपान्तरित नहीं किया जा सकता ।

भारतीय दर्शन के अनुसार ज्ञान का अर्थ अथवा ज्ञान का स्वरूप ( Meaning of Knowledging according to Indian Philosophy ) -

भारतीय दर्शन के अनुसार ' ज्ञान का अर्थ ' समझने से पूर्व ' सत्य की वस्तुनिष्ठता ' ( objectivity of truth ) ज्ञान की सार्थकता ( worth of knowledge ) , ज्ञान की सत्यता ( Truthfulness of Knowledge ) तथा तार्किक सत्यता ( Truthfulnessk of Logical proportion ) पर विचार करना आवश्यक है । अर्थात्,

( क ) ज्ञान की सत्यता हेतु उसकी वस्तुनिष्ठता का आंकलन किया जाना आवश्यक है ।

( ख ) ज्ञान की अस्तित्व में कोई संशय नहीं होना चाहिए ।

( ग ) ज्ञान की सत्यता की पुष्टि भी सन्देहरहित होनी चाहिए ।

( घ ) तार्किक प्रतिज्ञाप्ति भी सत्य होनी चाहिए ।

ज्ञान की अवधारणा स्पष्ट करते हुए यह प्रश्न उठाया जाता है कि क्या ज्ञान का स्वरूप परिवर्तनीय है या अपरिवर्तनीय है ।      यह प्रश्न भी जटिल है ज्ञान के सम्मिलित तथ्य , विचार प्रत्यय , नियम और निष्कर्ष आदि ज्ञान के श्रव्य है अर्थात् जब अध्यापक छात्रों को ज्ञान प्रदान करता है तो इन सभी तत्वों को बताता और समझाता है । अब जहाँ तक ज्ञान के तत्त्वां के बदलने या न बदलने का प्रश्न है तो इसमें सन्देह नहीं है कि ज्ञान के कुछ तत्त्व नहीं बदलते या इनके परिवर्तन की दर इतनी धीमी होती है कि उनका बदलाव महसूस नहीं होता । वहीं अनेक तथ्य , प्रत्यय व नियम ऐसे भी हैं जो लगभग नहीं बदलतं । ज्ञान के यही तत्त्व शिक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है । बहुत से जीवन मूल्य ऐसे होते हैं जिनमें परिवर्तन नहीं होता ।

शिक्षा छात्रों के मन में उनके प्रति आस्था उत्पन्न करती है और यह शिक्षा का दायित्व भी है । इसके विपरीत ज्ञान के कुछ तत्त्व परिवर्तन से प्रभावित होते हैं । वैज्ञानिक खोजों से भी ज्ञान में अभिवृद्धि होती है , उसमें परिवर्तन आता है । उदाहरणार्थ पहले शिक्षक द्वारा छात्रों को यह ज्ञात दिया जाता था कि सूर्य प्रातःकाल पूर्व दिशा से चलना आरम्भ करता है और शाम को पश्चिम दिशा में अपनी यात्रा समाप्त करता है । परन्तु अब छात्रों को यह बताया जाता है कि सूर्य स्थिर है और पृथ्वी उसके चारों ओर घूमती है । इस रूप में यदि देखा जाये तो पुरातन ज्ञान अज्ञान था । एक और उदाहरण द्वारा भी इसे समझा जा सकता है कि चलती हुई रेलगाड़ी में बैठने पर हमें पेड़ चलते हुए प्रतीत होते हैं परन्तु वास्तव में चलती स्थिति में तो रेलगाड़ी ही है । पृथ्वी की गति का ज्ञान हो जाने से भूगोल की शिक्षा में परिवर्तन आया ।

अतः शिक्षा को ज्ञान के तत्त्वों में आने वाले परिवर्तनों पर दृष्टि रखनी होगी । प्रगतिशील शिक्षा के समर्थक ड्यूवी ने ज्ञान को अनुभव की सतत पुनर्रचना ( continuous reconstruction , of experiences ) कहा है । विद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी समय - समय पर कुछ बदलाव किय जाने चाहिए । सत्य के अन्वेषण से जो नये नियम और सिद्धान्त प्रकाश में आते हैं , वे ज्ञान के स्थूल रूप में परिवर्तन की अपेक्षा करते हैं । ज्ञान की अवधारणा के सन्दर्भ में एक तथ्य और है कि ज्ञान केवल अनुभूति मात्र नहीं है । अनुभूति मात्र बाह्य स्वरूप की होती है परन्तु जब वस्तु के बाह्य रूप को देखने के बाद हम उसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं तो यह स्थिति संभवत : ज्ञान की कही जा सकती है । ऐसा ज्ञान प्राप्त होने की स्थिति को ही ज्ञान चक्षु का खुल जाना कहा जा सकता है ।

 शिक्षा यदि हमारे ज्ञान चक्षु खोल दे तो वह अर्थात् हमारी शिक्षा का इस प्रकार भारतीय दर्शन के अनुसार चेतना को ही ज्ञान की संज्ञा दी जाती है । ज्ञान इन्द्रियों के अनुभव तक ही सीमित नहीं हैं ,अपितु इन्द्रियों से प्राप्त अनुभूतियों द्वारा भी ज्ञान की प्राप्ति होती है जिसके लिए कर्म , ज्ञान व भक्ति में समन्व आवश्यक है।


ज्ञान की प्रकृति

( Nature of Knowledge )


 ज्ञान की प्रकृति को समझने के लिए ज्ञान के सिद्धान्तों के बारे में जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है क्योंकि ज्ञान के सिद्धान्त ज्ञान की परिभाषा देने और उसक विशेषताओं की व्याख्या करने का प्रयास करते हैं । ज्ञान का शाब्दिक अर्थ ठोस विश्वास है जो जानने , निर्देश देने , प्रकाशित ( प्रकट ) करने , सीखने और क्रियात्मक निपुणता की ओर संकेत करता है । ज्ञान की प्रकृति को ज्ञान की विशेषताओं के माध्यम से समझा जा सकता है । ज्ञान की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1.  ज्ञान सत्य तक पहुँचने का समाधान है ।
  2.  विचार ज्ञान के लिए श्रेष्ठ सामग्री का काम करता है ।
  3.  भाषा के माध्यम से ज्ञान की प्राप्ति और इसका संचार होता है ।
  4. शब्दों के अर्थ , शर्ते , विचार , ज्ञान की शिला का आधार बनते हैं ।
  5.  ज्ञान सुनिश्चित है ।
  6. ज्ञान की पुष्टि की जा सकती है ।
  7.  तथ्य और मूल्य ज्ञान के ढाँचे के आधार बनते हैं ।

ज्ञान अपने में सार्थक सम्पूर्णता समेटे हुए सूचना का एक खाका है जो सुव्यवस्थित ढंग से तथ्यों को प्रस्तुत करने की विधि है जो ज्ञान को सार्थक बनाती है ।


ज्ञान के प्रकार

( Types of Knowledge )


ज्ञान के सामान्य प्रकार-

ज्ञान की प्रकृति समझने के पश्चात् इसके प्रकार को समझना आसान हो जाता है । विस्तृत रूप में ज्ञान के दो प्रकार है -

1. प्राग्नुभाविक ज्ञान

ए प्रयोरी ज्ञान बुद्धि पर आधारित होता है जिसको हम प्रागनुभविक ( A Priori Knowledge ) ज्ञान भी कहते हैं । ऐसा ज्ञान जिसको बुद्धि सहायता के बिना प्राप्त करती है । इस ज्ञान के उदाहरण गणित शास्त्र के क्षेत्र और तर्क शास्त्र के क्षेत्र में मिलते हैं , जैसे दो और दो चार होते हैं , इस बात को प्रमाणित करने के लिए किसी प्रकार के अनुभव की कोई आवश्यकता नहीं है । इसी प्रकार जब हम यह कहते हैं कि AB से बड़ा है और BC से बड़ा है इसलिए AC से भी बड़ा है । यह बात इसलिए ठीक है क्योंकि यह तर्क पर आधारित है । तक शास्त्र में निगमन के आधार पर जो तर्क दिया जाता है वह तार्किक नियमों पर आधारित होने के कारण वैध ( Valid ) है । बहुत - से कथन , कहावतें और तथाकथित सत्य जिसका हम दैनिक जीवन में प्रयोग करते हैं , वे सभी ए प्रयोरी ( प्रागुनभाविक ) ज्ञान के अन्तर्गत आते हैं ।

2. प्रायोगिक ज्ञान ( Empirical Knowledge ) 

 अनुभव ज्ञान प्रयोग पर आधारित होता है । यह ज्ञान ए प्रयोरी ज्ञान से भिन्न है । यह ज्ञान इन्द्रियगत और बाहरी जगत् के अवलोकन , निरीक्षण और मनुष्य के स्वयं के अनुभव अवलोकन और निरीक्षण से प्राप्त होता है । इसलिए कहा जाता है कि इन्द्रियाँ ज्ञान की द्वार है । हमें अपने वातावरण के चहुँ ओर का ज्ञान जो निरीक्षण एवं इन्द्रियों से प्राप्त होता है , वह प्रयोग सिद्ध ज्ञान कहलाता है । भारतीय दार्शनिकों की दृष्टि से ज्ञान दो प्रकार का है-

 ( i ) परा विद्या_इस प्रकार का ज्ञान उस भौतिक संसार और बाहरी प्रकृति के संचार से सम्बन्धित है । इस भौतिक ज्ञान की प्राप्ति हेतु हमें अपनी पाँच इन्द्रियों और तर्क का सहारा लेना पड़ता है । इस प्रकार के ज्ञान को लौकिक ज्ञान भी कह सकते हैं ।

( ii ) अपरा विद्या अपरा विद्या का सम्बन्ध दूसरे लोक या जगत् के साथ है । इस लोक संपरे का ज्ञान , अर्थात् प्रकृति में आध्यात्मिकता की झलक पाना , यह ज्ञान मानव प्रकृति का सर्वोच्च ज्ञान है । यह ज्ञान व्यक्ति के स्वयं को जानने , आत्मा और परमात्मा से सम्बन्धित ज्ञान है । यह ज्ञान आत्मा और परमात्मा पारस्परिक सम्बन्धों की व्याख्या करता है । उदाहरण के रूप में कबीर द्वारा रचित इसे निम्नलिखित दोहे में आत्मा और परमात्मा के सम्बन्ध को व्याख्या है " जल में कुम्भ , कुम्भ में जल , बाहर भीतर पानी । फूटा कुम्भ , जल ही जल समाना , यह तथ्य कथित ज्ञानी ।। "

ज्ञान के विशेष प्रकार

 ज्ञान के विशेष प्रकारों का आधार मुख्य रूप से ज्ञान के स्रोत हो कं विशेष प्रकार निम्न हैं -

1. आपत वचन , अधिकारात्मक -

अगर हम विचार करें तो हमें इस बात का आभास हंगा कि जो हमारा ज्ञान है उसमें से अधिकांश ज्ञान न तो स्वयं अपनी इन्द्रियों को देकर प्राप्त किया है और न ही स्वयं तर्क करकं । जैसे - शाहजहाँ ने ताजमहल बनवाया था , पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है । यह ज्ञान आपने दूसरो के वचनों पर विश्वास करके प्राप्त किया है । दूसरे व्यक्ति विषय विशेष के अधिकारी या विशेषज्ञ होते हैं । अनुसंधान पर आधारित ज्ञान भी इसी प्रकार का होता है ।

2. प्रयोग सिद्ध या सूझ -

बूझ पर आधारित ज्ञान —जो ज्ञान हमारे अनुभवों , निरीक्षणों और अवलोकन पर आधारित होता है उसे प्रयोग सिद्ध ज्ञान कहते हैं । यह ज्ञान इन्द्रियानुभव से सम्बन्धित है । यह ज्ञान मनुष्य का सबसे प्रारम्भिक और महत्त्वपूर्ण ज्ञान है । यह ज्ञान पाँच इन्द्रियों के माध्यम से प्राप्त किया जाता है । जैसे कहा भी गया है , इन्द्रियाँ ज्ञान के द्वार हैं । प्रयोग सिद्ध ज्ञान प्रत्यक्ष होता है ।

3. तर्क संगत ज्ञान -

मनुष्य को प्रत्यक्ष के द्वारा वर्तमान का ही ज्ञान होता है लेकिन तर्क तथा अनुभव द्वारा हम भूत , वर्तमान और भविष्य से सम्बन्धित घटनाओं के बारे में भी ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । इस प्रकार ज्ञान के क्षेत्र में इन्द्रियानुभव के बाद तर्क को महत्त्व दिया जाता है । वास्तव में व्यवहार और विज्ञान दोनों क्षेत्रों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए इन्द्रियानुभव और तर्क दोनों का सहारा लेना पड़ता है । तर्क के अन्तर्गत दो प्रकार का तर्क आता है । पहला है निगमनात्मक तर्क , दूसरा आगमनात्मक तर्क ।

4. वैज्ञानिक ज्ञान —

यह ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र से सम्बन्धित है और जिन मनुष्यों की विज्ञान में रुचि होती है और जीवन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है तो वे इस ज्ञान को प्रगशालाओं में प्रयोग करके निरीक्षणों द्वारा प्राप्त करते हैं । इस ज्ञान की पुष्टि अन्य मनुष्यों के द्वारा किये गये परीक्षणों से की जा सकती है । इस ज्ञान को प्रकट करने हेतु इन्द्रियानुभव ज्ञान और तर्कसंगत ज्ञान का सहारा लिया जाता है ।

5. क्रियात्मक ज्ञान —

यह ज्ञान डॉ . डी . वी . के प्रयोजनवाद पर आधारित है । प्रयोजनवाद को अर्थ क्रियावाद भी कहते हैं । अर्थ क्रियावाद की यह मूलभूत मान्यता है कि विचार अथवा विश्वास जीवन के उपकरण है , ये व्यक्ति की इच्छाओं की सन्तुष्टि के साधन हैं । ये कार्य की योजनाओं में सहायक हैं इसलिए किसी विचार अथवा विश्वास के सफल होने का अर्थ उनकी व्यावहारिक सफलता है । एक विचार पर अमल करने में सफलता मिलती है तो वह सही रूप में ज्ञान है , यदि इसके विपरीत होता है तो ज्ञान सही ज्ञान नहीं है जो ज्ञान लाभदायक और उपयोगी होता तो वह क्रियात्मक ज्ञान के अन्तर्गत आता है । यह ज्ञान व्यक्ति के अनुभव , प्रयोग , निरीक्षण के आधार पर होता है और यह व्यक्तिगत ( Subjective ) होता है । इसके साथ ही यह ज्ञान व्यक्ति के सामंजस्य में सहायक होता है ।

6. सहबोध अथवा अन्तः प्रज्ञा –

सहजबोध का सम्बन्ध न तो व्यक्ति के अनुभव और न ही उसकी बुद्धि के घेरे में आता है । इस ज्ञान का सम्बन्ध तर्क बुद्धि से भी नहीं है । यह ज्ञान सहजबांध व अन्त : प्रज्ञा ( Intitution ) से प्रारम्भ होता है । बुद्धि को विश्लेषण , सामान्यीकरण और विभंदीकरण आदि प्रक्रियाएँ बाद में आती हैं । भविष्य में किसी प्रकार की घटना के घटने के बारे में पहले से ही जान लेना सहजबोध अथवा अन्त प्रज्ञा कहलाता है । यह ज्ञान स्वाभाविक और प्राकृतिक होता है और इसकी पुष्टि विज्ञान द्वारा सम्भव नहीं है ।

7. श्रतिज्ञान -

यह ज्ञान अधिकांश रूप में धार्मिक ज्ञान होता है । धर्म ग्रन्थों की प्रामाणिकता को सिद्ध करने के लिए प्रायः कहा जाता है कि उनके वचनों तथा शब्दों की श्रुति पैगम्बरों और शब्दों को सचमुच सुना है लेकिन बाहरी कानों से नहीं अपितु अन्तरात्मा में यह सब कुछ हुआ है । मुसलमान कुरान शरीफ को , ईसाई बाइबिल को , सिख गुरु ग्रन्थ साहिब को और हिन्दू वेदों को श्रुति कहते हैं । श्रुति को धर्म क्षेत्र में स्वतः भाषा माना जाता है । इस प्रकार का ज्ञान धार्मिक ग्रन्थों से प्राप्त होता है । यह ज्ञान नया न होकर पुराना , परम्परागत और सर्वमान्य होता है । धार्मिक विचार रखने वाले मनुष्य में इस ज्ञान के प्रति किसी भी प्रकार का संशय नहीं होता । इस ज्ञान में किसी प्रकार का परिवर्तन समाज के लिए असहनीय होता है ।


नोट - प्रश्नों के उत्तर के लिए नीचे दिए गए प्रश्नों पर क्लिक करें।


Q. 2. जानकारी का वर्णन करें।  (discuss the knowing. )

Q. 3. सूचना से आप क्या समझते हैं ? ज्ञान और सूचना में क्या अंतर है अस्पष्ट करें?

 What do you understand by information of question mark what is difference between information and knowledge?

Q. 4. ज्ञान एवं सूचना में अंतर तथा समानता का वर्णन करें।

 Discuss the distinction and similarities between knowledge and information.

 Q.5 . विश्वास से क्या तात्पर्य है ? तर्क व विश्वास में क्या अंतर है ? ( What do you mean belief ? What is difference between reason and belief . )

Q.6 . विश्वास , सूचना , ज्ञान एवं समझ की विवेचना करें । ( Describe Belief , Information , Knowledge and Understanding . )

Q.7 . ज्ञान और कौशल के अन्तर को स्पष्ट करें । ( Explain the Difference between knowledge and skill . )

 Q.8 . अधिगमकर्ता हेतु ज्ञान के स्रोतों का वर्णन करें । ( Discuss the Sources of Knowledge For Learners . )

 Q.9 . ज्ञान का निर्माण कैसे किया जाता है ? विवेचन करें । ( How knowledge can be constructed ? Discuss . )

Q. 10. जीन पियाजे के अनुसार ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन करें । ( Discuss Process of Knowledge according to Jean Piaget . )

 Q.11 . ब्रूनर के अनुसार ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन करें । ( Discuss the Process of Knowledge construction according to Burner . )

 Q. 12. वाइगोटस्की के अनुसार ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन करें । ( Discuss the Process of Construction of Knowledge According to Vygotsky . )

Q. 13. स्थानीय एवं सार्वभौम ज्ञान से अपना परिचय दें । ( Show your acquaintance with Local and Universal Knowledge . )

Q.14 . विद्यालयी तथा बाह्य विद्यालयी , सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक ज्ञान का वर्णन करें । ( ( Discuss the school and out of school , theoretical and Practical Knowledge . )

Q.15 . ज्ञान की अन्तर्शास्त्रीय उपागम के विकास की भावना का वर्णन करें । ( Discuss the growing sense of Interdisciplinary Approach of Knowledge . )

Q. 16. सैद्धान्तिक व व्यावहारिक ज्ञान पर एक टिप्पणी लिखें । ( Write a note on Theoretical and Practical knowledge . )

Q.17 . शिक्षा एवं संस्कृति के संबंध का वर्णन करें । ( Discuss the Relation of Education and Culture . )

Q. 18. ज्ञान में संस्कृति की क्या भूमिका है ? ( What is the role of culture in knowing ? )


UNIT - II : ज्ञान का रूप और उसके विद्यालयों में संगठन (  Forms of Knowledge and its Organisation in Schools )


Q. 19. ज्ञान क्या है ? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें । ( What is knowledge ? Describe its Characteristics . )

Q.20 . ज्ञान के सिद्धान्त की विवेचना करें । ( Discuss the theories of Knowledge . )

Q.21 . ज्ञान के प्रकार का वर्णन करें । ( Describe the types of Knowledge ? )

Q.22 . ज्ञान के सोत की विवेचना करें । ( Discuss the sources of Knowledge . )

Q.23 . ज्ञान से क्या तात्पर्य है ? उसके महत्त्व पर प्रकाश डालें । ( What do you mean by knowledge ? Throw light on its importance . )

Q.24 . प्रयोगात्मक ज्ञान , अन्तर्ज्ञानात्मक ज्ञान पर प्रकाश डालें । ( Throw light on Practical knowledge intuitive Knowledge . )

Q.25 . स्वदेशी ज्ञान एवं वैश्विक ज्ञान पर प्रकाश डालें । ( Throw light on Indigenous and Global Knowledge . )

Q.26 . कोर्स आधारित ज्ञान का वर्णन करें । ( Discuss Course Based knowledge . ) 

Q.27 . ज्ञान के रूपों का उल्लेख करें । ( ( Mention the forms of Knowledge . )



UNIT - III : पाठ्यक्रम की अवधारणा ( ( Concept of Curriculum )



Q.28 . पाठ्यक्रम से आप क्या समझते हैं ? इसकी प्रकृति तथा आवश्यकताओं का वर्णन करें । ( What do you understand by curriculum ? Discuss its Nature and Needs . )

Q.29 . विद्यालयों में पाठ्यचर्या की आवश्यकता का वर्णन करें । ( Discuss the need of curriculum in Schools . )

 Q.30 . पाठ्यचर्या तथा पाठ्यक्रम में अन्तर कीजिए तथा पाठ्यक्रम के महत्वों का वर्णन कीजिए । ( Difference between curriculum and syllabus and Discuss the importance of curriculum . )

Q.31 . पाठ्य - पुस्तक की अवधारणा की व्याख्या करें । ( Explain the concept of Text - Book . )

Q.32 . अनिवार्य पाठ्यक्रम ( कोर पाठ्यक्रम ) से आप क्या समझते हैं ? इसके विशेषताओं तथा महत्त्वों का वर्णन करें । ( What do you mean by Core - Corriculum ? Discuss its ciraracteristics and importance of Significance . )

Q.33 . छिपे हुए पाठ्यक्रम पर एक टिप्पणी लिखें । ( Write note on the Hidden Curriculm . )

Q.34 . भारतीय विद्यालीय पाठ्यक्रम के निर्माण पर प्रकाश डालें । ( Throw light on the Construction of India School Curriculum . )

Q.35 . प्रचलित पाठ्यचर्या की समस्याओं का वर्णन करें । ( Discuss the Problems of Existing Curriculum . )

Q.36 . पाठ्यचर्या के महत्वों का वर्णन करें । ( Discuss the Significunce of Importance of curriculum ? )


 UNIT - IV : पाठ्यक्रम निर्धारक और विचार

Curriculum Determinants and Considerations 


Q.37 . रुचि से क्या तात्पर्य है ? रुचि के प्रकार तथा प्रकृति का वर्णन करें । ( What do yon mean by Interest ? Describe the types and nature of Interest . )

Q.38 . बालक में रुचि उत्पन्न करने की विधियों का वर्णन करें । ( Describe the methods of arousing Interest in Children . )

Q.39 . एक प्रक्रिया के रूप में अधिगम का वर्णन करें । ( Discuss Learning are process . )

Q.40 . राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना , 2005 के सिद्धान्तों तथा उद्देश्यों का वर्णन कीजिए । ( Discuss the Theories and objectives of National Curriculum Framework , 2005. )

Q.41 . राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना , 2005 की समस्याओं पर प्रकाश डालें । ( Throw light on the Problems of National Curriculum Frame Work 2005. )

Q.42 . राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा : 2000 एवं 2005 तथा राष्ट्रीय पाठ्यचर्या , 2000 की आवश्यकताओं का वर्णन करें । ( Discuss the Frum of National Curriculum : 2000 and 2005 and Needs of National curriculum , 2000. )

Q.43 . पाठ्यक्रम निर्माण के आधारों का वर्णन करें । ( Discuss the Basic of curriculum construction . )

 Q.44 . पाठ्यक्रम निर्माण के सामाजिक सिद्धान्त की विवेचना कीजिए । ( Discuss the Sociological Principles of Curriculum Development . )

Q.45 . पाठ्यक्रम निर्माण में शिक्षक की भूमिका का वर्णन करें । ( Describe the role of teacher in Curriculum Development . )

Q.46 . पाठ्यक्रम निर्माण में शिक्षकों के सहभागिता की वर्तमान स्थिति की विवेचना कीजिए । ( Discuss the present situation of teacher's participation in Curriculum Development . )

Q.47 . पाठ्यक्रम निर्माण में विषय विशेषज्ञ जनसामान्य , समाजशास्त्री एवं राजनीतिज्ञ की भूमिका का वर्णन करें । ( Describe the role of subject experts , common - people , sociologist and Politicians in Curriculum Development . )

Q.48 . पर्यावरण बोध के क्षेत्रीय आयामों का वर्णन कीजिए । ( ( Describe the spatial dimensioin of environmental preception . )

Q.49 . पर्यावरण प्रत्यक्षीकरण पर एक लेख लिखिए । ( ( Write an essay on environment perception . ) 

Q.50 . जलवायु परिवर्तन पर टिप्पणी लिखिए । ( Write a note on Climatic Change . )

Q.51 . विश्वव्यापी तापन पर एक लेख लिखिए । ( Write an essay on Global Warming . )

Q.52 . जलवायु परिवर्तन के लिश्वव्यापी परिणामों का वर्णन कीजिए । ( Describe the Global Consequences of Climate Change . )

Q. 53. जल संरक्षण पर लेख विस्तृत से लिखिए । ( Write an essay on Water Conservation . )

Q.54 . लिंग - भेद विवाद पर एक निबंध लिखें । ( Write an essay on Gender Issues . )

Q.55 . मूल्य उन्मुख शिक्षा की आवश्यकता पर प्रकाश डालें ? ( Throw light on the need for value - oriented education . )

Q.56 . विद्यार्थी के सामाजिक , सांस्कृतिक के संदर्भ में पाठ्यक्रमों का वर्णन करें । ( Discuss curriculum in the context of Socio - culture Relation of students . )


UNIT - V

: पाठ्यचर्या का विकास

Curriculum Development


Q.57 . पाठ्यचर्या या पाठ्यक्रम से आप क्या समझते है ? इसक आयामों का वर्णन करें । ( What do you mean by Curriculum ? Discuss its Approaches . )

Q.58 . पाठ्यचर्या के प्रकारों का वर्णन करें । ( Discuss the types of Curricululum . )

Q.59 . राष्ट्रीय पाठ्यचर्या निर्माण 2005 पर प्रकाश डालें । ( Throw light on National Curriculum Framwork , 2005. )

Q.60 . पाठ्यचर्या निर्माण के सिद्धान्तों का वर्णन करें । ( Discuss the Principles of Curriculum Formation . ) .

Q.61 . माध्यमिक शिक्षा आयोग तथा कोठारी आयोग के पाठ्यक्रम के क्षेत्र में सुझावों का वर्णन करें । ( Discuss the suggetions of secondary Education commission and kothari commission in the field of Curriculum . )

Q.62 . पाठयचर्या चयन एवं निर्माण के लिए मानदण्ड का वर्णन करें । ( Discuss the criteria for selection and formation of curriculum . )

Q.63 . पाठ्यचर्या के चयन एवं निर्माण के लिए प्रक्रियाओं का वर्णन करें । ( Discuss the process for selection and formation of Curriculum . )

Q.64 . प्रचलित पाठ्यचर्या की समस्याओं का वर्णन करें । ( Discuss the probleris of existeing curriculum . )

Q.65 . पाठ्यचर्या निर्माण के लिए शिक्षा का उद्देश्यों का वर्णन करें । ( Discuss the objectives of education for curriculum formation . )

Q.66 . पाठ्यक्रम निर्माण में शिक्षक की भूमिका का वर्णन करें । ( Discuss the Role of tedcher in Curriculum construction . )

Q.67 . पाठ्यक्रम के महत्त्व तथा पाठ्यक्रम को प्रभावित करने वाले घटकों का वर्णन करें । ( Discuss the Importance and factors affecting of Curriculum . )

Q.68 . सूचना सम्प्रेषण तकनीकी का वर्णन करें । ( Discuss the Information Communication Technology . )

 Q.69 . शिक्षा में तकनीकी साधनों के प्रयोग का वर्णन करें । ( Discuss the use of Technological resources in Education . )

Q.70 . पाठ्यचर्या में ज्ञान के चयन एवं प्रस्तुतीकरण का वर्णन करें । ( Discuss the selecting and Representing knowledge in curriculum . )

Q.71 . पाठ्यक्रम में अन्तर्वस्तु के चयन के मानदण्ड का वर्णन कीजिए । ( Discuss the Criteria of selection conteni in Curriculum . )

Q.72 . पाठ्य - पुस्तक से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रकारों तथा पाठ्यक्रम के उपकरण के रूप में पाठ्य - पुस्तकों का वर्णन करें । ( What do you mean by Text - Book ? Discuss its types and Text - Book as a Tool of curriculum . )

Q.73 . अधिगम के साधनों का वर्णन करें । ( Discuss the Learning Resources . )















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