सतत और व्यापक मूल्यांकन में अन्तर

सतत मूल्यांकन का अर्थ

सतत मूल्यांकन एक ऐसा मूल्यांकन होता है।जिसमें शिक्षार्थियों को अध्ययन एवं अध्यापन करने के साथ-साथ, उनके अनुभव और व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों का लगातार मूल्यांकन किया जाता है।सतत मूल्यांकन में प्रत्येक इकाई के अध्ययन की समाप्ति के पश्चात ,विभिन्न उपकरणों के माध्यम से छात्रों का मूल्यांकन किया जाता है।इसे यह पता चलता है कि छात्रों को पढ़ाया गया पाठ कितना समझाया है, या कितना नहीं।

सतत मूल्यांकन का महत्व

कक्षा की उन्नति का प्रमुख साधन वार्षिक परीक्षा व उसके परिणाम होते हैं।इस प्रथा में सभी भलीभांति परिचित हैं।संपूर्ण स्कूल संकल्पना एक कार्यक्रम में अंतर्निहित सतत मूल्यांकन इस समस्या का प्रमुख समाधान है।सतत मूल्यांकन के माध्यम से बालक की योग्यता तथा योग्यता के बारे में नियमित रूप से उपयोगी तत्व का संकलन संभव हो सकेगा।
एक प्राथमिक शिक्षक अपने ज्ञान कार्यकुशलता की सहायता से मूल्यांकन का प्रयोग विद्यार्थी की ज्ञान की कठिनाइयों और उसके कारणों का निदान करने के लिए कर सकता है।वह उचित उपचारात्मक साधन अपना कर उसका गतिरोध एवं क्षति को कम से कम कर सकता है।तथा इस तरह से उसे अधिकतम ज्ञान प्राप्त करने में सहायता कर सकता है।

सतत मूल्यांकन की विधियां

वर्तमान समय में देखा जाए तो वार्षिक परीक्षा का अर्धवार्षिक परीक्षा का समय अंतराल का भी अधिक होता है।जिससे कि बालकों में होने वाली कठिनाइयों को हम नहीं जान पाते हैं। अतः बालकों की प्रगति को निरंतर मूल्यांकन करने के लिए सतत मूल्यांकन अति आवश्यक विधि है।सतत मूल्यांकन के लिए अनेक प्रकार की विधियों का प्रयोग किया जा सकता है। उदाहरण –
  • सत्र परीक्षा
  • इकाईपरीक्षा
  • मासिक परीक्षाएं
  • सेमेस्टर पद्धति

सतत मूल्यांकन के सोपान

सतत मूल्यांकन के सोपान निम्नलिखित हैं।
  1. उद्देश्य की व्याख्या
  2. परिस्थिति का ज्ञान
  3. प्रवृत्ति का प्रयोग
  4. मूल्यांकन की प्रवृत्तियों का चयन
  5. निष्कर्ष निकालना
  6. भविष्यवाणी
  7. प्रदत्त का विश्लेषण
  8. प्राप्त साक्ष्यों का विवेचन

सतत मूल्यांकन के क्षेत्र

सतत मूल्यांकन के क्षेत्र निम्नलिखित हैं।
  1. छात्र की अभिरुचि
  2. छात्र की सृजनात्मकता
  3. ज्ञान
  4. परिवारिक रुचियां
  5. बोध
  6. वैयक्तिक रुचियां
  7. शारीरिक स्थिति तथा स्वास्थ्य
  8. अनुप्रयोग
  9. विद्यार्थी की शैक्षिक उपलब्धि
  10. विद्यार्थी की त्रुटियां

व्यापक मूल्यांकन का अर्थ

शिक्षा जीवन पर शिक्षा एक जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है।जो मानव जीवन के सभी बच्चों को प्रभावित करती हैं।ज्ञान के साथ-साथ हमारे जीवन में मूल्यांकन में किसी न किसी रूप में जीवन पर्यंत चलता रहता है।बालक के अधिगम को किसी ना किसी रूप से प्रभावित करने वाले स्थूल सूक्ष्म ,प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आदि अनेक प्रकार के पक्ष होते हैं।जिनका मूल्यांकन करना व्यापक मूल्यांकन कहलाता है।

व्यापक मूल्यांकन के विभिन्न पक्ष

व्यापक मूल्यांकन के विभिन्न निम्नलिखित हैं।
संज्ञानात्मक पक्ष – संज्ञानात्मक पक्ष के अंतर्गत बालक के अंदर निहित ज्ञान ,स्मरण ,पुनः स्मरण आदि चीजें सम्मिलित होती हैं।जिनका मूल्यांकन किया जाता है।
भावनात्मक पक्ष – इसकेे अंतर्गत बालक के भाव पक्ष, दया करुणा सत्य निष्ठा आदि का मूल्यांकन किया जाता है।
कौशलात्मक पक्ष – इसमें निहित कार्यकुशलता कार्य करने की क्षमता आदि का मूल्यांकन किया जाता है।


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