पाठ्यक्रम में भाषा (language across the curriculum)
स्किनर, कोमास्की, पियाजे, ब्रूनर तथा वाईगोतास्की के विशेष संदर्भ में बच्चे भाषा को कैसे सीखते हैं?
डमविल के अनुसार,
"किसी जाति के भाषा विकास का इतिहास उसकी बुद्धि विकास का इतिहास दूसरे प्राणियों की अपेक्षा मनुष्य भाषा के कारण ही अधिक श्रेष्ठ है। भाषा का और सभ्यता का विकास साथ साथ चलता है ।प्रारंभ में शिशु मूर्त वस्तुओं का ही प्रयोग करता है। बाद में वह भाषा का व्यवहार करने लगता है। शिक्षा का एक प्रधान उद्देश्य बालक को भाषा का समुचित ज्ञान कराना है किसी व्यक्ति के बौद्धिक योग्यता का सर्वश्रेष्ठ माप उसके शब्द भंडार ही है।"
स्वीट के अनुसार,"भाषा ध्वनियों द्वारा मानव के भावों की अभिव्यक्ति है।"
भाषा संप्रेषण का एक लोकप्रिय माध्यम है भाषा के माध्यम से बालक अपने विचारों, इच्छाओं और भावनाओं को दूसरों के सामने व्यक्त करते हैं तथा साथ ही साथ वे दूसरे व्यक्तियों के विचारों को समझ भी सकते हैं।
बालकों में यदि भाषा का विकास ना हो तो निश्चय ही उनकी मानसिक विकास जिस सामान्य ढंग से होना चाहिए वैसे नहीं होगा वे गूंगे हो जाएंगे।
दैनिक जीवन में अनुभव में देखा जाता है कि भाषा के माध्यम से जिन विचारों को व्यक्त किया जाता है उनमें अस्पष्टता सर्वाधिक होती है।
विचारों को व्यक्त करने के अन्य माध्यम भाषा के सामने फीके हैं। बालक का सामाजिक विकास भी भाषा पर ही आधारित होता है।
बालक किसी भी चीज को नहीं समझ सकता ना सीख सकता है भाषा के अभाव में।
बचपनावस्था(Babyhood), में प्रत्यक्षीकरण (Perception), तथा संज्ञान (Cognition) में सुधार के बाद बच्चे मानव जाति के सबसे विशिष्ट गुण भाषा की ओर अग्रसर होते हैं। औसत रूप से यह देखा गया है कि 12 माह की आयु में बालक सबसे पहला शब्द उच्चारण करता है।जैसे-जैसे बालक शब्दों को बोलना शुरू करता है वैसे-वैसे भाषा का विकास तीव्र गति से होना शुरू हो जाता है।
एक अध्ययन मैं देखा गया है कि 1 से 2 वर्ष की आयु के बच्चे दो शब्दों का इस्तेमाल करके बोलने लगते हैं। 6 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते बच्चों का शब्द भंडार 10000 शब्दों का हो जाता है। पइस आयु में बच्चे लंबे-लंबे वाक्य बोलने लगते हैं तथा भाषा के संप्रेषण में पर्याप्त कौशल प्राप्त कर लेते हैं।
लिखना, पढ़ना - बोलना मुखात्मक अभिव्यक्ति हावभाव संकेतों का प्रयोग तथा कलात्मक अभिव्यक्तिया आदि भाषा में ही सम्मिलित है।
वाक्य शक्ति (वाणी) के अर्थ को स्पष्ट करते हुए हरलॉक ने लिखा है कि, "वाणी भाषा का एक स्वरूप है जिसमें अर्थ को दूसरों को व्यक्त करने के लिए कुछ ध्वनि आया शब्द उच्चारित किए जाते हैं।"
अतः कहा जा सकता है कि वाणी भाषा का एक विशिष्ट रूप है। वाणी प्रत्यय की अपेक्षा भाषा - प्रत्यय अधिक व्यापक है।बानी का विकास को बालकों में देखा जाए तो बानी पर राम में अस्पष्ट और अनियंत्रित होती है, परंतु विकास के साथ-साथ वह स्पष्ट हो जाती है।
बालक द्वारा उत्पन्न प्रत्येक ध्वनि वाणी नहीं है। केवल उस ध्वनि या शब्द को बानी नहीं कह सकते हैं जो बालक द्वारा बोली गई है और जिसका बालक अर्थ जानता है,साथ ही साथ ध्वनि या शब्द जिस वस्तु के लिए बोला गया है उससे उसका संबंध होना भी आवश्यक होता है। इसकी दूसरी कसौटी यह भी है कि बालक द्वारा बोले गए शब्द ऐसे हो कि समाज के अन्य सदस्य उन्हें समझ सके।
भाषा विकास के सिद्धांत:
पर आराम से ही मनोवैज्ञानिकों की भाषा के विकास और भाषा के कार्यों के अध्ययन में रुचि रही है, इसे कुछ मनोवैज्ञानिकों ने अपने द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के आधार पर यह व्याख्या करने का प्रयास किया है कि बच्चे बोलने की योग्यता किस प्रकार अर्जित करते हैं। इनमें से कोई भी सिद्धांत संतोषजनक नहीं है ।कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांत निम्न प्रकार है-
1. स्वर यंत्र की परिपक्वता:
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि भाषा का विकास शरीर के किसी एक अंग की परिपक्वता पर निर्भर नहीं करता, बल्कि स्वर यंत्र जीभ, गला और फेफड़ा आदि सभी की परिपक्वता पर भाषा का विकास निर्भर करता है।
यह सभी अंग जब तक एक विशेष परिपक्वता स्तर पर नहीं पहुंचते हैं तब तक भाषा का सामान्य विकास संभव नहीं है।
भाषा का विकास उपर्युक्त अंगों के अतिरिक्त मास्टिक्स में वाणी केंद्र स्पीच सेंटर, होंठ ,दांत , तालू और नाक के विकास पर भी निर्भर करता है।
परंतु यह सारे अंग एक साथ परिपक्व नहीं हो पाते हैं समुचित भाषा के लिए यह आवश्यक है कि सभी अंग पूर्ण रूप से परिपक्व हो।
शारीरिक अंगों के अतिरिक्त वातावरण संबंधी कारक भी भाषा के विकास को प्रभावित करते हैं भाषा के विकास में वातावरण संबंधी कारक में अनुकरण के अवसर एक महत्वपूर्ण कारक है।
2. व्यवहारवादी दृष्टिकोण:
अधिगम सिद्धांत वादियो ने बालक में भाषा के विकास को उद्दीपन अनुक्रिया के बीच स्थापित साहचर्य के आधार पर समझाया है।
इन सिद्धांत वादियो ने पुरस्कार और पुनर्बलन जैसे नियमों के आधार पर भी भाषा के विकास को समझाया है।
इस दिशा में स्किनर का प्रयास अति सराहनीय है। स्किनर ने पुनर्बलन के आधार पर भाषा के विकास को समझाया है।
स्किनर का विचार है कि अन्य व्यवहार पर कार्यों की भांति भाषा का विकास भी आपरेंट अनुबंधन पर निर्भर करता है।
इससिद्धांत के अनुसार बालक द्वारा भाषा का अर्जित करना ध्वनि और वाणी संयोजन के चयनात्मक पुनर्बलन पर निर्भर करता है।
स्किनर का विचार है कि बच्चे स्वत: अनायास या अनुकरण के आधार पर बोलते हैं।
बालक के चारों ओर के वातावरण में उपस्थित उसके निकट संबंधी व्यक्ति बालक द्वारा बोली गई कुछ ध्वनियों का पुनर्बलन करते हैं, उदाहरण के लिए बच्चा जब कुछ ध्वनियों को बाबा, पापा या दादा ,दादी बोलता है तो बालक के परिवार के व्यक्ति बालक द्वारा बोली गई इस ध्वनि को अपने अधिक ध्यान या प्रशंसा द्वारा पुरस्कृत करते हैं। जिसके कारण बालक भाषा जल्दी सीख लेता है।
उद्दीपन अनुक्रिया के बीच स्थापित साहचर्य के आधार पर भी बालक शब्दों का अधिगम करता है, जैसे यदि बच्चे के सामने गेंद रखकर या दिखाकर बार-बार गेंद शब्द बोला जाए तो वह गेंद वस्तु (उद्दीपक) और उसके अर्थ दोनों से इतना परिचित हो सकता है कि जब बच्चे के सामने गेंद शब्द बोला जाएगा तो उसके मस्तिष्क में गेंद की प्रतिमा अंकित हो जाएगी। बच्चा गेंद शब्द के अर्थ को समझ जाएगा। उद्दीपक (गेंद वास्तु )और अनुक्रिया ( गेंद शब्द) के बीच स्थापित साहचर्य कि यह प्रणाली अनुबंधन कहलाती है।
3. कोमास्की मनोभाषिक सिद्धांत:
मनोभाषिक सिद्धांत का प्रतिपादन कोमास्की ने किया था।
कुछ लेखकों ने जानबूझकर छात्रों को गुमराह करने के उद्देश्य से या अज्ञानता वश कोमास्की द्वारा इस सिद्धांत के प्रतिपादन का वर्ष 1968 तथा 1980 बताया है जो पूर्णता गलत है।
इस सिद्धांत के अनुसार को कोमास्की ने सन् 1959,बालकों में भाषा विकास के संबंध में लिखा है कि,"मानव भाषिक सिद्धांत के अनुसार भाषा प्राप्ति का कार्य भाषा विकास वातावरण का प्रभाव (जैसे माता-पिता) की बानी तथा पुनर्बलन और भाषा अर्जित करने की जन्मजात प्रवृत्ति की अंतः क्रिया द्वारा होता है।"
उनका यह भी मानना है कि lAD तंत्रिका तंत्र से इस प्रकार संबंधित होता है कि बालक को व्याकरण के नियमों को समझने में आसानी होता है।लड़ाई सिद्धांत के अनुसार बच्चे शब्दों की एक निश्चित संख्या से अपने जन्मजात प्रवृत्ति की सहायता प्राप्त करते हुए कुछ व्याकरण संबंधी नियमों का अनुसरण करके उनके वाक्य अथवा शब्दों के अर्थ को समाज तथा उनका निर्माण कर सकते हैं।
को मास की का कहना है कि प्रत्येक बालक में जन्मजात प्रवृत्ति built-in-System होता है जिसे भाषा और जनतंत्र (language Acquisition Device-LAD) कहते हैं।
4. सामाजिक अधिगम सिद्धांत:-
इस सिद्धांत के प्रतिपादक ओ में बंधुरा का नाम प्रमुख है। इस सिद्धांत सिद्धांत के समर्थकों का कहना है कि बालक भाषा के संबंध में जो कुछ सीखता है वाह मॉडल के व्यवहार के निरीक्षण अनुकरण पर आधारित होता है।
बालक जिस वातावरण में रहता है उसमें रहने वाले अन्य व्यक्ति जो भाषा और शब्द बोलते हैं वह बच्चा सुनता रहता है। कई बार वे शब्दों का तुरंत अनुकरण नहीं कर पाता है। फिर भी वह शब्दों और भाषा के बारे में कुछ सूचना अवश्य ग्रहण कर लेता है।
5. भाषा का सनायुविक आधार:
भाषा का प्रारंभिक विकास और अधिगम न्यूरो मस्कुलर सिस्टम के परिवर्तनों और परिपक्वता पर आधारित है।क्षेत्र में जो शोध कार्य हुए हैं उनमें से यह स्पष्ट हुआ है कि भाषा का अधिगम स्नायुविक संरचनाओं के प्रकारों पर निर्भर करता है। मस्तिष्क के 2 भाग होते हैं। भाषा का संबंध मस्तिष्क के बाएं भाग से होता है। यह जो दो भाग हैं वह ब्रोका और रिंकीज क्षेत्र के हैं। यह दोनों ही क्षेत्र मस्तिष्क के बाएं हेमिस्फेयर में पाए जाते हैं।
अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि जिन बच्चों का बाया हेमिस्फेयर जन्म के समय कोई क्षति ग्रस्त हो जाता है उन बच्चों में दाएं हेमिस्फेयर भाषा के विकास के लिए उत्तरदाई होता है।
परंतु दो-तीन साल के बच्चों का यदि बाया हेमिस्फेयर छतिग्रस्त हो जाता है तो निश्चय ही वह भाषा विकास में अन्य बच्चों की अपेक्षा पीछे रह जाते हैं।
इन क्षेत्रों के कार्यों और महत्व को समझाते हुए मुसेन और उनके साथियों ने लिखा है कि,"बड़ों का क्षेत्र मस्तिष्क के बाएं भाग के आगरा क्षेत्र के आंतरिक भाषा क्षेत्र है इसके क्षतिग्रस्त होने से गत्यात्मक वाक्य शक्ति में कठिनाई हो जाती है।इसी प्रकार ब्रोका के बाहरी क्षेत्र के क्षतिग्रस्त होने से भाषा के विस्तार में कठिनाई उत्पन्न हो जाती है।
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