विद्यार्थियों में अक्सर ऐसा देखने को मिलता है कि वह गणित के कक्षा को पसंद नहीं करते हैं।
ऐसा लगता है कि विद्यार्थी वास्तव में गणित विषय से ही डरते हैं। अक्सर, इस इस बात के स्थान पर 'मैथ फोबिया' नामक शब्द हम लोग सुनते हैं।
सामान्यता कक्षा तीन एवं चार के अधिकांश क बच्चे गणित की मांगों को पूरा करने में स्वयं को कमजोर तथा अयोग्य पाते हैं।
ऐसा लगता है कि विद्यार्थी वास्तव में गणित विषय से ही डरते हैं। अक्सर, इस इस बात के स्थान पर 'मैथ फोबिया' नामक शब्द हम लोग सुनते हैं।
सामान्यता कक्षा तीन एवं चार के अधिकांश क बच्चे गणित की मांगों को पूरा करने में स्वयं को कमजोर तथा अयोग्य पाते हैं।
आप सोचते होंगे कि बच्चे आखिर गणित से क्यों डरते है? चलिए इसका मुख्य कारण हम लोग समझते हैं क्या होता है कि बच्चे गणित से डरते हैं:-माता, पिता, बड़े, भाई, बहन या गणित का शिक्षक बच्चे को गणित सिखाते समय गलती होने पर आंख दिखाएं, उसे मारे तो बच्चा पहले अपने गणित सिखाने वाले व्यक्ति से डरने लगता है। और फिर बाद में गणित विषय से ही उसे डर लगने लगता है तथा गणित पढ़ना नहीं चाहता।गणित पढ़ाने वाले शिक्षकों को बच्चे गणित सिखाने में रुचि लें इसके लिए उन्हें खेल खेल में गणित सिखाना चाहिए। शिक्षकों माता-पिता भाई-बहन की भाषा सरल व स्पष्ट न होने पर भी बच्चा को गणित सीखने में दिक्कतें पैदा होती है।
एक और महत्वपूर्ण कारण है बच्चों का गणित से डरने का यह की उच्च विद्यालय में जो बच्चे साल के अंत में होने वाली परीक्षाओं में केवल एक या दो विषयों में अनुत्तीर्ण होते हैं और इस कारण अगले वर्ग में जाने से रोक दिए जाते हैं, उनमें सबसे ज्यादा होते हैं गणित में अनुत्तीर्ण होने वाले बच्चे।यह आंकड़ा कक्षा 10 तक जारी रहता है और उस समय तक जब तक भारतीय राज्य विद्यार्थी को शिक्षा का प्रमाण पत्र नहीं देते हैं बोर्ड परीक्षा में असफलता के कारणों में गणित सबसे बड़ा कारण है।Video 👇👇👇👇
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स्कूल में गणित के प्रति भरम की क्या वजह है, इस पर कई अध्ययन और विश्लेषण किए गए हैं। इनमें प्रमुख है। गणित की प्रकृति।
उदाहरण के लिए यदि आपको दसमलाव में कठिनाई है तो आपको प्रतिशत भी कठिन लगेंगे।और यदि आपको प्रतिशत कठिन लगते हैं तो आपको बीजगणित में भी कठिनाई होगी और इसी प्रकार गणित का अन्य प्रकरण भी कठिन लगेंगे।
एक अन्य कारण है प्रतीकात्मक भाषा का प्रभुत्व। पंजाब गणितीय प्रतीकों को बिना समझे प्रयुक्त किया जाता है तो एक समय के बाद कई बच्चों पर निराश था और घबराहट हावी होने लगती है और बच्चों में हीन भावना विकसित होता है।
सामान्यता हम देखते हैं कि गणित पढ़ाने सिखाने के लिए विद्यालय गणित को जिस प्रकार डिजाइन किया है उसमें चार मुख्य बातें निहित है जिसके कारण विद्यार्थियों में भय, चिंता, भ्रम एवम् मिथक उत्पन्न होती है जो निम्नलिखित है>>>
.विद्यालय गणित पढ़ाया अमूर्त प्रतीकों के उपयोग को शामिल करता है जिसके कारण विद्यार्थी गणित को समझने में कठिनाई महसूस करते हैं।
.यह वास्तविक अर्थ पूर्ण व असहाय पाठ्यपुस्तक से रहित है। गणित के किसी विद्वान ने कहा है कि,' गणित के साथ समस्या यह है कि यह किसी के बारे में नहीं है।'
.विद्यालय गणित में बच्चों को नए पेपर और पेंसिल रणनीति अपनाने की आवश्यकता होती है जो कि उनके द्वारा विकसित किए गए राजनीति से अलग होता है।
.विद्यालय गणित में पराया समस्याओं का सही उत्तर प्राप्त करने पर अधिक बल दिया जाता है और समाधान प्राप्त करने की प्रक्रिया को समझने के लिए विशेष प्रयास नहीं किया जाता है।
उपर्युक्त बातों से यह पता चलता है कि गणित में शुद्धता (सटीकता) की अधिक आवश्यकता होती है जो गणित को अधिक कठिन बनाता है। गणित में जैसे तैसे बात बनाकर काम नहीं चल पाता है ।इसमें प्रश्नों का उत्तर लगभग निश्चित रहता है। वहीं उत्तर उस प्रश्न के लिए निश्चित रहता हैं।
गणित के प्रति भय के कुछ अन्य कारण इस प्रकार हैं--
1. गणित के बारे में पूर्व नकारात्मक अनुभव
2. विद्यालय का अप्रिय वातावरण
3. प्रोत्साहन की कमी
4. सजा के रूप में गणित का उपयोग
5. परीक्षा का अत्याधिक दबाव
6. अपने आप में हीनता महसूस करना
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