गणित में अभ्यास कार्य:-
अर्थ:-
गणित में अभ्यास कार्य अत्यंत आवश्यक है।अंकगणित बीजगणित तथा ज्यामिति की प्रक्रियाओं का स्पष्ट अवबोधन अभ्यास कार्य से ही संभव है। यदि अभ्यास कार्य ना हो तो गणित शिक्षण प्रभावी नहीं होगा।
प्रारंभिक स्तर से लेकर उच्च स्तर पर गणित को सीखने के लिए अभ्यास कार्य आवश्यक होता है। जोड़, घटाव, गुना, भाग के लिए अभ्यास कार्य अति आवश्यक है। इन सभी क्रियाओं को करने की क्षमता बालक में तब पैदा होती है जब उनको इनका व्यवस्थित ढंग से अभ्यास कराया जाता है।
जिस प्रकार अन्य क्षेत्रों में निपुणता एवं कुशलता पाने के लिए अभ्यास कार्य आवश्यक है उसी प्रकार गणित के लिए भी अभ्यास कार्य आवश्यक है।
बिना अभ्यास के व्यक्ति अपने कार्य में पारंगत नहीं हो सकता। गणित में नियमों, सूत्रों, सिद्धांतों, विधियों, प्रक्रिया आदि पर अधिकार प्राप्त करने के लिए निरंतर अभ्यास की आवश्यकता होती है।
यह कहावत भी आप लोगों ने सुनी होगी," करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।"
इसका अर्थ हुआ कि जड़ बुद्धि वाले भी अभ्यास से होशियार बन बन सकते हैं।कक्षा में जो विद्यार्थी गणित में अच्छे हैं तथा विषय के सिद्धांतों, नियमों, प्रक्रियाओं आदि को समझते हैं,तथा उनका सही प्रयोग करते हैं । उनकी इस क्षमता का कारण उनके व्यवस्थित ढंग से अभ्यास करना ही है। निरंतर अभ्यास से छात्रों में स्पष्ट ज्ञान एवं प्रयोग करने की क्षमता आती है।
अभ्यास का साधारण शब्दों में अर्थ है:-
एक ही कार्य को बार-बार करते रहना जब तक उस कार्य को करने में निपुणता नहीं आ जाए।
अभ्यास कार्य का महत्व:-
1अभ्यास कार्य द्वारा छात्रों में गणना संबंधी कुशलता मे विकास किया जा सकता है।
2. सीखे हुए सिद्धांतों, नियमों ,प्रक्रियाओं आदि का प्रयोग अभ्यास कार्य द्वारा ही संभव है।
3.अभ्यास द्वारा सूत्रों और नियमों आदि को रटने से बचा जा सकता है ,अभ्यास द्वारा छात्र इन्हें समझ कर याद कर सकते हैं।
4.अभ्यास से समस्याओं को गति एवं शुद्धता के साथ करने की क्षमता में वृद्धि होती है।
अभ्यास कार्य कैसे कराई जाए?
1.अभ्यास कार्य के लिए प्रमुख बात यह है कि जो नियम व पक्रिया जब छात्रों को बताई जाए उसका उसी समय अभ्यास होना चाहिए।
2. एक कार्य का अभ्यास अधिक समय तक ना कराई जाए,इससे छात्र ऊबने लगते हैं।
3. अभ्यास कार्य को बार-बार कराना चाहिए ।
4.अभ्यास कार्य हमेशा एक ही प्रकार के ना हो, इसका ध्यान शिक्षक को रखनी चाहिए।
अर्थ:-
गणित में अभ्यास कार्य अत्यंत आवश्यक है।अंकगणित बीजगणित तथा ज्यामिति की प्रक्रियाओं का स्पष्ट अवबोधन अभ्यास कार्य से ही संभव है। यदि अभ्यास कार्य ना हो तो गणित शिक्षण प्रभावी नहीं होगा।
प्रारंभिक स्तर से लेकर उच्च स्तर पर गणित को सीखने के लिए अभ्यास कार्य आवश्यक होता है। जोड़, घटाव, गुना, भाग के लिए अभ्यास कार्य अति आवश्यक है। इन सभी क्रियाओं को करने की क्षमता बालक में तब पैदा होती है जब उनको इनका व्यवस्थित ढंग से अभ्यास कराया जाता है।
जिस प्रकार अन्य क्षेत्रों में निपुणता एवं कुशलता पाने के लिए अभ्यास कार्य आवश्यक है उसी प्रकार गणित के लिए भी अभ्यास कार्य आवश्यक है।
बिना अभ्यास के व्यक्ति अपने कार्य में पारंगत नहीं हो सकता। गणित में नियमों, सूत्रों, सिद्धांतों, विधियों, प्रक्रिया आदि पर अधिकार प्राप्त करने के लिए निरंतर अभ्यास की आवश्यकता होती है।
यह कहावत भी आप लोगों ने सुनी होगी," करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।"
इसका अर्थ हुआ कि जड़ बुद्धि वाले भी अभ्यास से होशियार बन बन सकते हैं।कक्षा में जो विद्यार्थी गणित में अच्छे हैं तथा विषय के सिद्धांतों, नियमों, प्रक्रियाओं आदि को समझते हैं,तथा उनका सही प्रयोग करते हैं । उनकी इस क्षमता का कारण उनके व्यवस्थित ढंग से अभ्यास करना ही है। निरंतर अभ्यास से छात्रों में स्पष्ट ज्ञान एवं प्रयोग करने की क्षमता आती है।
अभ्यास का साधारण शब्दों में अर्थ है:-
एक ही कार्य को बार-बार करते रहना जब तक उस कार्य को करने में निपुणता नहीं आ जाए।
अभ्यास कार्य का महत्व:-
1अभ्यास कार्य द्वारा छात्रों में गणना संबंधी कुशलता मे विकास किया जा सकता है।
2. सीखे हुए सिद्धांतों, नियमों ,प्रक्रियाओं आदि का प्रयोग अभ्यास कार्य द्वारा ही संभव है।
3.अभ्यास द्वारा सूत्रों और नियमों आदि को रटने से बचा जा सकता है ,अभ्यास द्वारा छात्र इन्हें समझ कर याद कर सकते हैं।
4.अभ्यास से समस्याओं को गति एवं शुद्धता के साथ करने की क्षमता में वृद्धि होती है।
अभ्यास कार्य कैसे कराई जाए?
1.अभ्यास कार्य के लिए प्रमुख बात यह है कि जो नियम व पक्रिया जब छात्रों को बताई जाए उसका उसी समय अभ्यास होना चाहिए।
2. एक कार्य का अभ्यास अधिक समय तक ना कराई जाए,इससे छात्र ऊबने लगते हैं।
3. अभ्यास कार्य को बार-बार कराना चाहिए ।
4.अभ्यास कार्य हमेशा एक ही प्रकार के ना हो, इसका ध्यान शिक्षक को रखनी चाहिए।
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