बच्चे ठोस वस्तुओं के साथ खेलने में मजा लेते हैं इसलिये कक्षा में पहले इनसे ही शुरूआत करनी चाहिये। चीजें एकत्र करके उनसे खेलने, उन्हें तरह–तरह से परखने का बच्चों को मौका दिया जाना चाहिये। इनकी मदद से छांटने’, रंग पहचानने, जोडि़याँ बनाने, क्रम को समझने जैसे काम करवाये जा सकते हैं। बच्चों के साथ मिलकर मिट्टी के खिलौने, रेत और मिट्टी पर आकृतियाँ बनाई जा सकती हैं। ठोस वस्तुओं के साथ खेलते या काम करते हुए बच्चों के साथ बातचीत करना या उनके अनुभव सुनना बहुत जरूरी है। अक्सर जब हम कक्षा में ठोस वस्तुओं का प्रयोग करते हैं तो एक ही तरह की ठोस वस्तु का उपयोग करते हैं, जबकि तरह–तरह की ठोस वस्तुओं के साथ काम करने से बच्चों की समझ अधिक पक्की होती है। गणित सीखने–सिखाने का क्रम बच्चेगणित को निम्नांकित क्रम में आसानी से सीखते हैं, जो मूर्त से अमूर्तकी ओर पर आधारित है।
👉 ठोस वस्तुओं से अनुभव।
👉 भाषा द्वारा अभिव्यक्ति
👉 चित्रों का उपयोग
👉 संकेतों का प्रयोग
बेहतर हो कि गिनतियाँ–पहाड़े रटने की जगह गिनतियों का एहसास कराने और पहाड़े बनाने पर जोर रहे। जोड़, गुणा, घटाना व भाग की क्रियाएं पहले ठोस वस्तुओं के साथ की जाएं, तब अंकों के साथ। वस्तुओं के साथ इन क्रियाओं का पर्याप्त अनुभव अंकों के साथ क्रियाओं को आसान बनायेगा। जोड़, गुणा, घटाना व भाग की शुरूआत भले ही ठोस वस्तुओं से हो लेकिन सीखना सार्थक तभी है जब बच्चे इन क्रियाओं की अवधारणा तक पहुँचे। वे जानें कि गिनती ‘एक में एक जोड़नें, से बनती है। जोड़ने का मतलब चीजों को मिलाना और गुणा का मतलब एक ही मात्रा में चीजों को बार–बार बढ़ाना है – दोनों ही क्रियाओं में चीजें बढ़ती हैं। या घटाने का मतलब चीजों को कम करनाहै या भाग का मतलब उन्हें बराबर बाटना है। इन दोनों ही क्रियाओं में चीजें घट जाती हैं। आमतौर पर बिन्दु, रेखा, त्रिभुज आदि की परिभाषाएं रटाने से – सीखना–सिखाना निहायत नीरस और उबाऊ काम बन जाता है। बेहतर है कि इन आकृतियों को अपने आसपास खोजा जाय या उनका निर्माण किया जाय। ‘जगह’ संबंधी अनुभवों से सिलसिलेवार गुजरने के बाद बड़ी कक्षाओं में ‘आयतन’ व ‘क्षेत्रफल’ की समझ बनाना आसान होगा।
मौखिक गणित की प्राथमिक स्तर में उपयोगिता
मौखिक गणित बच्चों के लिये बहुत उपयोगी है। यह बच्चों में सोचने की प्रक्रिया को बढ़ावा देती है। पर यह ध्यान रखना जरूरी है कि मौखिक गणित के सवाल उनके परिवेश से जुड़े हों और बच्चे उनका व्यवहारिक अर्थ निकाल सकें। सवालों में दिये घटनाक्रम का औचित्य भी बच्चे समझ सकें। गणित में भाषा और संदर्भ गणित सीखने में अध्यापक की भाषा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
गणित सीखने में अभ्यास बहुत जरूरी है। अक्सर हम कक्षाओं में ‘रटने का अभ्यास’ करते हैं। जबकि अभ्यास में सृजनशीलता और नवीनता की संभावनाएं रहती हैं। इसमें किसी क्रिया को समझ और तर्क के साथ करने की गुंजाईश होती है। इसके विपरीत रटना एक मशीनी क्रिया है। इसमे किसी बात को बगैर सोचे–समझे बार–बार दोहराना होता है। इसमें मस्तिष्क कम सक्रिय होता है। शायद हमसे कक्षा में चूक हो रहीहै। हमारा गणित शिक्षण का तरीका बच्चों को रटने की ओर प्रेरित करता नज़र आता है।
बच्चों को समझाएं गणित का सौन्दर्य
रूचि लेकर और गतिविधियों की मदद से कक्षा में काम किया जाय तो गणित सीखना सिखाना एक मनोरंजक काम बन जाता है। इससे बच्चों में कई क्षमताएं विकसित होती हैं। बच्चों में क्रमबद्धता की समझ पैदा होती है।तर्क व सोचने की क्षमता बढ़ती है। बच्चे संश्लेषण–विश्लेषण करना, निर्णय लेना व निष्कर्ष निकालना सीखते हैं। गणित के साथ–साथ ही भाषा की समझ बनती है। इससे बच्चे सोचने समझने की समस्याएं हल कर सकते हैं। डिजाइनिंग, वास्तुकला तथा चीजों / जगहों की बाहरी–भीतरी सज्जा में गणित का सौन्दर्य ही है। लगातार गणित की गतिविधियों से बच्चों में इनका सौन्दर्यबोध जगाया जा सकता है । गणित की कठिनाइयाँ बहुत कुछ कक्षा में अपनाये जा रहे सीखने–सिखाने के तरीकों पर भी निर्भर करती है। कई बार कोई अवधारणा किसी कक्षा के लिये मुश्किल होती है पर वही अगली कक्षा में आसान साबित हो जाती है।
गणित में ऐसे करें बच्चों का मूल्यांकन
यह मान्यता अब आम होती जा रही है कि केवल परीक्षाओं के जरिएमूल्यांकन एकांगी मूल्यांकन हैं। यह बच्चों के पूरे व्यक्तित्व उनकी खूबियों और कमजोरियों को नहीं समेटता। बच्चे रोज बरोज नए प्रभाव ग्रहण करते और नए–नए व्यवहार सीखते हैं। उन्हें व्यक्त करते हैं। ऐसे में लगातार चलने वाली सतत मूल्यांकन पद्धति उपयोगी हो सकती है। इसमें अध्यापक की चौकस आँखें लगातार बच्चों को देखती पढ़ती रहती हैं। उनकी गतिविधियों का जायजा लेती रहती हैं। न सिर्फ़ बच्चों का बल्कि अपने काम और तरीकों की भी जाँच – परख करती रहती हैं । दरअसल बच्चों के मूल्यांकन में अध्यापक का मूल्यांकन भी शामिल है। सच कहा जाय तो किसी भी विषय में बच्चे नहीं बल्कि सीखने–सिखाने की व्यवस्था या प्रणालियाँ असफल होतीहैं। बच्चों का असफल होना तो किन्हीं असफल कोशिशों का परिणाम है। मूल्यांकन का कोई आधार बनाना मुश्किल है फिर भी कुछ मानक बनाये जा सकते हैं। जैसे –
👉 संक्रिया/पाठ को सीखने – सिखाने की परिस्थिति
👉 सिखाए गए पाठ/संक्रिया का प्रभाव पड़ा ?
👉 प्रभाव ठीक नहीं था तो शिक्षक की अपनी कोशिशों का मूल्यांकन
👉 सीखने–सिखाने में बच्चों की प्रगति
👉 बच्चे द्वारा सीखी हुई अवधारणा का अलग–अलग परिस्थितियों में इस्तेमाल
👉 अपनी व दूसरे की गलतियों पर उनका रुख
👉 दूसरों के द्वारा गलतियाँ बताने पर उनका रूख
परीक्षा की कापियाँ जांचना भी मूल्यांकन का एक पहलू है। इसमें केवल उत्तरों को महत्व देने की जगह बच्चों द्वारा सवाल हल करने में अपनाई गई प्रक्रिया और प्रदर्शित की गई समझ को जांचने पर जोर हो। बच्चेकुछ खास सवालों को हल करने में ज्यादातर गलतियाँ करते हैं। शिक्षक इसे जानते हैं। पढ़ाने के दौरान, और बाद में भी, इसे पता करने की कोशिश की जनि चाहिए कि बच्चे अक्सर गलती कहाँ करते है। बच्चोंके लिये गणित सीखने का अनुभव एक सुखद अनुभव भी हो सकता है और वह भयावह अनुभव भी। यह सीखने सिखाने की परिस्थिति और प्रक्रिया पर निर्भर करता है कि बच्चे के लिये गणित प्रिय विषय बन जाये या गणित से डरने लगे।
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बच्चों में गणित का भय दूर करने एवं रुचि पैदा करने के लिए खेलों का सहारा लिया जा सकता है।
प्राथमिक स्तर के बच्चों के साथ कुछ इस तरह के रोचक खेल खेले जा सकते हैं।
👉 खेल-1: गिनती व पहाड़े
कक्षा के सारे बच्चों को एक गोले में बिठाकर किसी भी बच्चे से गिनती शुरू करवाकर क्रमवार आगे बोलना है। जो बच्चा गलत बोलता है वह इस खेल से बाहर हो जाएगा। अगला बच्चा फिर 1 से शुरू करेगा। यह क्रम चलता रहेगा। जो बच्चा ध्यान पूर्वक गिनती बोलेगा और आउट नहीं होगा, वह विजेता होगा। यही खेल पहाड़े बोलकर भी खेल जा सकता है। इस खेल में एकाग्रता का बहुत महत्व है। सब बच्चों को ध्यानपूर्वक सुनना है कि उसका पड़ोसी क्या बोल रहा है।
👉 खेल-2: जोड़ व बाकी
बच्चों को सर्किल में बिठाकर कोई एक संख्या बोलेंगे और यह बताएँगे कि उसमें कितने जोड़ने हैं ? मिसाल के तौर पर हमने संख्या 4 बोली और उसमें 3 जोड़ते हुए आगे बढ़ना है जो बच्चा गलत बोलेगा वह बाहर हो जाएगा। इसी तरह घटाने का खेल भी खेल सकते हैं। मान लो संख्या 57 बोली उसमें से 2 घटाते हुए बोलना है। जो सही बोलेगा खेल में बना रहेगा जो गलत बोलेगा वह खेल से बाहर हो जाएगा।
👉 खेल-3: विभाजित होने वाली संख्या पर आगे बढ़ो
विभाजित होने वाली संख्या पर आगे बढ़ो या गुड या क्या फर्क पड़ता है आदि शब्द बोलना है। उदाहरण के लिए 4 से विभाजित संख्या नहीं बोलनी है। बच्चे 1,2,3 बोलेंगे 4 आने पर आगे बढ़ो बोला जाएगा। अगला बच्चा 5 बोलेगा। इस खेल में बहुत ही आनन्द आता है। ध्यान आकर्षण के साथ सहज भाव से बालक किसी भी संख्या से विभाजित होने वाली संख्या को सीख जाता है।
👉 खेल-4: ज्यामिति आकृतियाँ
ज्यामिति आकृतियों को पहचानने का भी एक खेल बच्चों को खिलाता हूँ । पहले कक्षा में बच्चों को कोण, त्रिभुज, आयत, वर्ग, वृत बेलन बताकर समझाकर फिर इस पर आधारित खेल खिलाता हूँ। एक गोला बनाकर उसमें कोण, त्रिभुज, आयत, वर्ग, वृत, गोला आदि बनाकर बच्चों को गोले में चारों ओर दौड़ने के लिए कहा जाता है। फिर बोला जाता है कि आयत , त्रिभुज में 2, 3 या 4 छात्र खड़े होंगे। जो बच्चे पहचानकर इन आकृतियों मे खडे़ हो जाते हैं वे खेल में बने रहते हैं, दूसरी आकृतियों मे खडे़ होने वाले खेल से बाहर हो जाते हैं। जहाँ यह खेल आनन्ददायी है वहीं पर ज्यामिति आकृतियों की पहचान कराने में बड़ा कारगर है।
👉 खेल-5: खेल खेल में मूल्यांकन
अधिगम स्तर को जाँचने के लिए हम किसी भी विषय में इस खेल को आजमा सकते हैं। भय युक्त परीक्षा प्रणाली से हटकर खेल ही खेल में जो कुछ हमने सिखाया उसकी जाँच कर सकते हैं।
छोटे-छोटे प्रश्न बनाकर उनको पर्चियों में लिख दें। इनमें जितना हमने बच्चों को सिखाया है उससे सम्बन्धित ही प्रश्न हों। कक्षा-कक्ष में ही बच्चों को एक घेरा बनाकर बिठा दें। बारी बारी से एक बच्चा पर्ची खोलेगा। प्रश्न पढ़ेगा और उसका उत्तर देगा। यदि बच्चा प्रश्न का उत्तर देता है तो वह खेल में बना रहेगा गलत जवाब पर खेल से बाहर हो जाएगा। यह क्रम निरन्तर चलता रहेगा। जो बच्चा सबसे अन्त तक खेलेगा वह खेल का विजेता होगा। जिसे हम छोटा मोटा पुरस्कार देकर उत्साहित भी कर सकते हैं। इस खेल से जहाँ हमारे सिखाने की प्रक्रिया का आकलन होगा वहीं अधिगम स्तर को जाँचने का बेहतरीन माध्यम है। यह खेल हम किसी भी पाठ के पश्चात खेल सकते हैं।
इस प्रकार और भी कई खेल हो सकते हैं जिनके द्वारा हम बालकों से गणित विषय का डर निकालकर उनमें रुचि पैदा कर सकते हैं।
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बच्चे को लिखना सीखाने के लिए इन तरीकों को अपनाएं
1. सबसे पहले पेन या पेंसिल पकड़ना सिखाएं – बच्चे को पेंसिल या पेन दें इसके बाद उन्हें दिखाएं कि उसे कैसे पकड़ना है। उसे उंगली व अंगूठे के बीच पेन पकड़ने की सलाह दें। अगर उसका ग्रिप मजबूत हो जाएगा, तो लिखने में दिक्कत नहीं होगी।
👉 रफ कॉपी या स्लेट दें – जब बच्चा पेन, पेंसिल व चॉक पकड़ना सीख जाए तो उसे रफ कॉपी या स्लेट दें और उस पर कुछ भी चलाने को कहें। इससे वह पेन को चलाना सीख जाएगा।
👉 रंग का लें सहारा – बच्चों को रंग काफी पसंद आता है। आप रंगों की मदद से भी उसमें लिखने की इच्छा जगा सकते हैं। उसे रंग लाकर दें और किसी भी पेपर पर उसे चलाने को कहें।
👉 व्हाइट बोर्ड व मार्कर का सहारा लें – जब बच्चा पेन पकड़ना व उसे चलाना सीख जाए, तो लिखवाने की प्रैक्टिस शुरू कराएं। इसके लिए व्हाइट बोर्ड व मार्कर बच्चे को दें। इसके बाद बच्चे को अल्फाबेट या गिनती के कुछ अक्षर लिखकर दें और वैसे ही लिखने को कहें।
👉 बच्चे को दिखाकर खुद भी लिखें – बच्चे अक्सर बड़ों को कॉपी करते हैं। ऐसे में आप बच्चे को दिखाते हुए कुछ लिखने बैठें। आपको देखकर वह भी लिखने की जिद करेगा। जब वह ऐसा करे, तो उसे दूसरा पेन व कॉपी दे दें और लिखने को कहें।
👉 बच्चे को प्रोत्साहित करें – अगर आप चाहते हैं कि बच्चा कोई भी काम अच्छे से करे, तो उसके लिए उसे प्रोत्साहित करना सबसे ज्यादा जरूरी है। लिखने की कला सिखाने में भी यह जरूरी है। अगर बच्चा जरा सा भी पेन चलाए, कुछ बनाए तो उसे प्रोत्साहित करें। दूसरे बच्चों का नाम लेकर उसकी तुलना करते हुए अपने बच्चे को जीनियस बताएं। इससे वह और अच्छा करेगा। उसे कभी भी हतोत्साहित न करें, ये बातें न कहें कि तुम्हें तो कुछ नहीं आता।
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गणित की गतिविधियां -
गतिविधि - 1 चम्मच पर कंचा रखकर लाइन पर चलो, कंचा गिरे नहीं

1.यह गतिविधि हम क्यों करें?
बच्चे खेल के माध्यम से गणित से जुड़ पाएँगे।
हम यह समझ पाएँगे कि बच्चे कहाँ तक की संख्याओं को सही क्रम में बोल पाते हैं।
2. यह गतिविधि हम कैसे करें?
कक्षा या मैदान में एक लम्बी लाइन खींचें।
चम्मच को मुँह में दबाकर उस पर कंचा रखकर एक बच्चे को लाइन पर चलने को कहें।
अन्य बच्चों को गोल घेरे में इस प्रकार खड़ा करें कि गतिविधि सबको दिखाई दे। यदि बच्चे नहीं चल पा रहे हों तो स्वयं करके बताएँ।
बच्चे द्वारा चले गए कदमों को हम व अन्य बच्चे गिनें। कुछ समय बाद हम गिनना बन्द कर दें। केवल बच्चे गिनें।
प्रत्येक बच्चे के चलने के बाद हम अन्य बच्चों से पूछें कि वह कितने कदम चला।
यह गतिविधि सभी बच्चों से बारी-बारी कराएँ।
3. क्या यह भी हो सकता है?
सिर पर डंडा रखकर लाइन पर चलने को कहें।
सिर पर गिलास रखकर चलने को कहें।
इसी प्रकार के अन्य खेल जो आपको उपयुक्त लगें।
4. इस गतिविधि के कुछ फायदे और भी हैं -
बच्चों में ‘लाइन‘ की सामान्य समझ विकसित होगी।
बच्चों में एकाग्रता आएगी।
बच्चे सामूहिक रूप से गिनती बोलना सीखेंगे।
बच्चों में किसी लाइन के ‘शुरू’ और ‘अंत’ की सामान्य समझ विकसित होगी।
बच्चों के मन से भय दूर होगा।
श्री के एल सेन का अनुभव -
मैं घर से ही यह गतिविधि करने का निश्चय कर स्कूल गया। मैंने अपने साथ एक चम्मच और कुछ कंचे भी रख लिए थे। स्कूल पहुँच कर मैं बच्चों को मैदान में ले आया। वहाँ नीम के पेड़ के नीचे एक लम्बी लाइन खींची। बच्चों को बारी - बारी से चम्मच को मुँह में दबाकर उस पर कंचा रखकर लाइन पर चलने की गतितिधि को कराया। बाद में मैंने इसी गतितिधि को सिर पर डंडा एवं गिलास रखकर भी करवाया।
बच्चे इस गतिविधि को आसानी से कर रहे थे। एक-दो बच्चों को छोड़कर बाकी सब बच्चे लाइन के अंतिम छोर तक पहुंचने में कामयाब रहे। सिर पर डंडा, गिलास रखकर यह गतिविधि करने पर बच्चों को थोड़ी कठिनाई हुई परन्तु कुछ अभ्यास के बाद इसमें भी सफलता प्राप्त हो गई। बच्चों का उत्साह देखते ही बनता था। मैंने भी उनके साथ बच्चा बनकर इस गतिविधि में भाग लिया।
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