पर्यावरण एवं जैव विविधता ( ( Environment and biodiversity ) पर्यावरण किसे कहते हैं ? ( What is the environment called ? )

 पर्यावरण एवं जैव विविधता a( Environment and biodiversity ) पर्यावरण किसे कहते हैं ? ( What is the environment called ? )

पृथ्वी तथा उस पर स्थित वनस्पति एवं जीव जंतु एवं वायु मंडल को सम्मिलित रूप से पर्यावरण कहा जाता है । A.G टांसले नहीं पारिस्थितिकी तंत्र की स्थापना की जिसके अनुसार इन सभी का एक अनुवांशित संबंध है । किसी वृक्ष को काटने पर ना सिर्फ पक्षी और कीड़े का आश्रय स्थल नष्ट होता है ।अपितु ऑक्सीजन का स्रोत तथा कार्बन सिंक भी नष्ट होता है।वृक्ष कार्बन सिंक के रूप में Co2 का अवशोषण करते हैं एक शोध के अनुसार जिन जंगलों में भाग नहीं है वहां हिरणों की मृत्यु दर बढ़ जाती है।

संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था U.N.E.P ( United Nations environment programme ) पर्यावरण के लिए कार्य करने वाली शीर्षस्थ संस्था है ।1972 में इसकी स्थापना की गई थी । यह ऐसी अकेली प्रमुख संस्था है जिसका मुख्यालय भूमध्य रेखा के दक्षिण के नैरोबी ( केन्या ) में है ।

What is the environment and biodiversity? (What is the environment called?)

The earth and the flora and fauna and its atmosphere are collectively called the environment. AG is not a channel of the ecosystem. Established according to which all these have a undetermined relationship. By cutting a tree, not only the shelter of birds and insects is destroyed. But also the source of oxygen and the carbon sink are also destroyed. Absorption of Co2 in the form of tree carbon sink. According to a research, the death rate of deer increases in forests where there is no escape. UNEP (United Nations environment program) is the apex body working for environment. It was founded in 1972 It is the only major organization headquartered in Nairobi (Kenya) south of the equator.

जैव विविधता ( Biodiversity )


🔹 एक ब्रिटिश संस्था के अनुसार संसार में 87 लाख प्रकार के जीव है जिनमें से सर्वाधिक जीव जलचर है जीवन में कीड़ों की संख्या सर्वाधिक है ।

🔹 1948 में जनेवा में | .U.C.N ( International Union for conservation of nature ) की स्थापना की गई इसके 160 सदस्य देश हैं ।

🔹 1966 से ही I.U.C.Nred Data Book का प्रकाशन कर रही है इसमें संकटापन्न प्रजातियों को शामिल किया जाता है ।

🔹 1962 में जेनेवा ( स्विजरलैंड ) में World wide Fund की स्थापना की गई जो जल संरक्षण के लिए प्रयासरत है इसका प्रतीक चिन्ह Giant Panda है ।

🔹 1980 में Peaple For Ethical Treatment of anomal ( PETA ) की स्थापना की गई । इसका मुख्यालय वर्जीनिया ( USA ) में है । इसकी कुल 2 करोड़ सदस्य हैं PETA शाकाहार को प्रोत्साहित करता है तथा ऐसे उत्पादों का बहिष्कार करता है जो जानवरों को मारकर प्राप्त किए गए हो ।

According to Biodiversity

a British institution, there are 87 lakh types of organisms in the world, of which the largest number of organisms is aquatic, the largest number of insects in life.

 🔹 in 1948 in Geneva. .U.C.N (International Union for Conservation of Nature) was established with 160 member countries. 0 has been publishing I.U.C.Nred Data Book since 1966, which includes endangered species.

 🔹 In 1962, the World Wide Fund was established in Geneva (Switzerland), which strives for water conservation, its symbol is Giant Panda.

 🔹 Peaple For Ethical Treatment of anomal (PETA) was established in 1980. It is headquartered in Virginia (USA). It has a total of 2 crore members, PETA encourages vegetarianism and boycott products that are derived from killing animals.

  I.U.C.N की Red List                   ( I.U.C.N's Red List )

I.U.C.N की Red List मैं कोई 64000 प्रजातियों को समाहित किया गया है । इसमें 30000 प्रजातियां खतरे में है जिनमें से 4000 प्रजातियां अत्याधिक खतरे में है । प्रतिवर्ष 40000 प्रजातियां नष्ट हो जाती हैं । रेड डाटा बुक ( read data book ) में इन प्रजातियों को 9 श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है जिनमें से कुछ श्रेणियां इस प्रकार है ।

1 Indangered Species वह प्रजातियां जिनकी संख्या वर्तमान में कम है परंतु भविष्य में लुप्त हो सकती है इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं ।

 2 Vulnerable Species इस श्रेणी के अंतर्गत वह प्रजातियां जिनकी संख्या वर्तमान में तो कम नहीं है परंतु भविष्य में वह कम हो सकती है वह इसके अंतर्गत आते हैं ।

3 Rare Species वह प्रजातियां जो कुछ क्षेत्रों में पाई जाती है तथा भविष्य में यह लिप्त हो सकती है इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं ।

 4 Threatened Species उपरोक्त तीनों में से किसी भी श्रेणी में शामिल प्रजातियों को इस श्रेणी में रखा जाता है ।

 5 Extinct Species ( faqa yoifa ) वह प्रजाति जो विगत 40 वर्षों से अपने मूल निवास में नहीं पाई जाती उन्हें विलुप्त कहा जाता है जैसे कि मॉरीसन का डोडो पक्षी तथा चीता ।

I.U.C.N's Red List (I.U.C.N's Red List)

 I.U.C.N's Red List contains some 64000 species. It has 30,000 species endangered out of which 4000 species are highly endangered. Every year 40000 species are destroyed. In the red data book, these species are classified into 9 categories, some of which are as follows.

 1 Indangered Species Species whose numbers are presently low but may become extinct in the future fall under this category.

2 Vulnerable Species Under this category, the species whose number is not less at present but may decrease in future, they come under it.

3 Rare Species The species which is found in some areas and may be covered in the future fall under this category.

4 Threatened Species The species included in any of the above three categories are placed in this category.

5 Extinct Species (faqa yoifa) Species that have not been found in their native habitat for the past 40 years are called extinct such as Morrison's dodo bird and cheetah.









Hot Spot ( जैव विविधता हॉटस्पॉट in india )

जेपी दत्ता की दृष्टि से कुछ स्थलों को अत्यंत समृद्ध माना जाता है , जिन्हें Hot Spot कहा जाता है ऐसे कुछ 25 स्थलों को चिन्हित किया गया है ।

1. मध्य अमेरिका

2. कैलिफोर्निया

3. कोलंबिया

4. पश्चिम इक्वाडोर

5. ब्राजील का अटलांटिक तट

6. पश्चिमी अमेजेनिया

7. मध्य चिली

8. आइवरी कोस्ट

9. तजीनिया

10. पूर्वी मेडागास्कर

11. केप वर्डे

12. पश्चिमी घाट

13. पूर्वी हिमालय

14. पश्चिमी श्री लंका

Hot Spot (Biodiversity Hotspot in India)

 According to JP Dutta some sites are considered to be extremely rich, some 25 sites have been identified as Hot Spot.

1. Central America

2. California

3. Colombia

4. West Ecuador

5. Brazil's Atlantic Coast

6. Western Amazon

7. Central Chile

8. Ivory Coast

9. Tagnia

10. Eastern Madagascar

11. Cape Verde

12. Western Ghats

13. Eastern Himalaya

14. Western Sri Lanka


जैव विविधता संरक्षण के लिए किए गए कुछ उपाय ( Some Tips for Biodiversity Conservation )

 1973 में यूनेस्को ने man and biosphere project प्रारंभ में किया जिसके तहत विश्व में 669 BSR चिन्हित किए गए इसमें 10 BSR भारत में भी हैं भारत में कुल 18 BSR है National Park और अभ्यारण भी Flora और Fana की रक्षा के लिए स्थापित किए गए हैं 1972 में Wild life projection act भारत में लागू किया गया कार्टा जेना प्रोटोकॉल ( Cartagena protocol ) 1999 में जैव विविधता के संरक्षण के लिए यह प्रोटोकॉल अस्तित्व में आया वर्ष 2000 में मॉन्ट्रियल में 135 देशों में इसका अनुमोदन कर दिया । आद्र भूमि ( Wet Land ) वह भूमि जहां जल सतह के निकट अथवा जो जल में डूबी हुई है उसे आद्र भूमि कहा जाता है जैसे नदी , झील , तालाब , लैगून , तथा सिंचित क्षेत्र इसी श्रेणी में आते हैं । Ramsar Convention 1971 ईरान के Ramsar मैं यह Convention अस्तित्व में आया 158 देशों के 1758 स्तनों को आद्र भूमि के रूप में चिन्हित किया गया इसमें 26 Wet Land भारत के हैं ।


Some measures for biodiversity conservation (Some Tips for Biodiversity Conservation) In 1973, UNESCO started the man and biosphere project under which 669 BSRs have been identified in the world, out of which 10 BSRs are also in India India has a total of 18 BSRs. Parks and sanctuaries have also been established to protect Flora and Fana. The Wild life projection act was implemented in India in 1972. The Cartagena protocol came into force in 1999. This protocol for the conservation of biodiversity came into existence in Montreal in the year 2000. Approved it in 135 countries. Wet Land: The land where water is near the surface or which is submerged in water, it is called wet land such as river, lake, pond, lagoon, and irrigated area fall in this category. Ramsar Convention 1971 This Convention came into existence in Iran in Ramsar 1758 breasts of 158 countries have been identified as wet land, including 26 Wet Land of India.

Montrer Recard

 Ramsar Convention के तहत उन Wet Land को Montre Recard मैं रखा जाता है । जिसका अस्तित्व खतरे में है , तथा जिन्हें विशेष देखरेख की आवश्यकता है , Ramsar Convention मैं भारत की Wet Land शामिल है । . भीतर्कणिका ( उड़ीसा ) • चिल्का ( उड़ीसा ) हरिके बैराज पंजाब कोलेरू झील ( आंध्र प्रदेश ) • लोकटक झील ( मणिपुर ) • सांभर झील ( राजस्थान ) बेम्बानाड ( केरल ) वूलर झील ( जम्मू कश्मीर ) • ऊपरी गंगा नदी भोजसर ( मध्य प्रदेश ) • Kevladev ghana sanctuary .

Under the Montrer Recard Ramsar Convention, those Wet Land are kept in Montre Recard. The existence of which is in danger, and which needs special care, is the Wet Land of India at the Ramsar Convention. . Bhitarkanika (Orissa) • Chilka (Orissa) Harike Barrage Punjab Kolleru Lake (Andhra Pradesh) • Loktak Lake (Manipur) • Sambhar Lake (Rajasthan) Bembanad (Kerala) Wular Lake (Jammu Kashmir) • Upper Ganges River Bhojasar (Madhya Pradesh) • Kevladev ghana sanctuary.

भारत के पारिस्थितिक तंत्र ( Ecosystem of India )

भारत में 7 पारिस्थितिक तंत्र है ।

1. हिमालय पारिस्थितिकी तंत्र

2. जलोढ़ मैदानी पारिस्थितिकी तंत्र

3. उष्ण मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र

4. समुद्र तटीय प्राकृतिक तंत्र

5. पठारी पारिस्थितिकी तंत्र

6. उत्तर पूर्वी पारिस्थितिकी तंत्र

7. मैदानी पठार सीमांत पारिस्थितिकी तंत्र मूंगे की चट्टाने या प्रवाल भित्ति ( Coral reefs )

• यह दुनिया उथले समुद्र में पाई जाती है ।

• यह सिलेंटेट्रा नामक जीव के आवरण है जो कैलशियम कार्बोनेट से निर्मित है ।

• यह अत्यंत मजबूत चट्टाने है जो समुद्री जीव का आश्रय स्थल है ।

• प्रवाल भित्ति या समुद्र में कुल क्षेत्रफल के 1 % भाग पर है परंतु कुछ समुद्री जीवो का 25 % यही शरण पाता है । ऑस्ट्रेलिया के उत्तर पूर्वी में ग्रेट बैरियर रीफ प्रवाल भित्ति का सबसे बड़ा उदाहरण है ।

• भारत में प्रवाल भित्ति के संरक्षण के लिए चार क्षेत्रों को चिन्हित किया गया है ।

1. लक्ष्यदीप

2. अंडमान निकोबार

3. कच्छ की खाड़ी

4. मन्नार की खाड़ी

Ecosystem of India There are 7 ecosystems in India.

1. Himalayan ecosystem

2. Alluvial plains ecosystem

3. Thermal desert ecosystem

4. Seaside natural system

5. Plateau ecosystem 6. North eastern ecosystem

7. Plain plateau marginal ecosystem Coral reefs or coral reefs )

 • This world is found in the shallow sea.

 • It is the cover of an organism called Silentatra which is made from calcium carbonate.

• It is a very strong rock which is a shelter of sea creatures.

• The coral reef or sea occupies 1% of the total area, but 25% of some marine life finds this refuge. The Great Barrier Reef in the north east of Australia is the largest example of coral reefs.

 • Four areas have been identified for the protection of coral reefs in India. .

1. Lakshdeep

2. Andaman and Nicobar

3. Bay of Kutch

4. Gulf of Mannar


मैंग्रोव वनस्पति ( Mangrove vegetation ) खारे पानी में उगने वाली बनस्पति को मेट्रो वनस्पति कहा जाता है । कच्छ के रण में इस की अधिकता के कारण कच्छ वनस्पति भी कहते हैं । सुंदरी , नारियल , केवड़ा , कोमिज इसी प्रकार की वनस्पति है । यह बनस्पति ना सिर्फ मजबूत इमारती लकड़ी प्रदान करती है , अपितु सुनामी से भी हमारी रक्षा करती आधुनिकीकरण की होड़ में कच्छ वनस्पति को हानि पहुंचाई जाती है । पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में झारखाली विश्व का पहला मैंग्रोव जू स्थापित किया गया । 1960 में भारत सरकार ने कच्छ वनस्पति संरक्षण एवं प्रबंधन की योजना प्रारंभ की इसके तहत 29 कच्छ वनस्पति को चिन्हित किया गया जिनमें से कुछ प्रमुख नीचे दी गई है ।

 🔹 उत्तरी अंडमान और निकोबार सुंदरबन ( सबसे बड़ी )

 🔹 भीतर कणिका ( उड़ीसा )

🔹 तोरिगा ( आंध्र प्रदेश )

🔹 इच्छावरम

🔹 point कोलिंबो ( तमिलनाडु )

 🔹 कच्छ की खाड़ी कुंडापुर ( कर्नाटक )

🔹 रत्नागिरी ( महाराष्ट्र )

🔹 वेंबनाड ( केरल ) 

Mangrove vegetation is a metro vegetation that grows in saltwater. Due to the abundance of this in the Rann of Kutch, it is also called Kutch vegetation. Sundari, coconut, kevda, komiz are similar vegetation. This Banaspati not only provides strong timber, but also protects us from tsunamis in the race for modernization, damaging the mangroves. The world's first mangrove zoo was established in 24 Parganas district of West Bengal. In 1960, the Government of India started the scheme of conservation and management of Kachchh vegetation. Under this, 29 Kachchh plants were identified, some of which are given below.

🔹 North Andaman and Nicobar Sundarbans (largest)

🔹 Within Kanika (Orissa)

🔹 Toriga (Andhra Pradesh)

🔹 Ichhavaram

🔹 point Kolimbo (Tamil Nadu)

🔹 Gulf of Kutch Kundapur (Karnataka)

🔹 Ratnagiri (Maharashtra)

🔹 Vembanad (Kerala)









कुछ गणितीय खेल | Maths Pedagogy For D.El.Ed., B.Ed., CTET, TET, KVS, NVS, DSSB, PGT, TGT and all teaching Exams.

कुछ गणितीय खेल 

Pedagogy Of Mathematics 

प्रायमरी और माध्यमिक स्तर की कक्षाओं में करवाई जा सकने वाली कुछ गतिविधियां


खेलों द्वारा गणित की कक्षा को मजेदार, प्रेरक और रोचक बनाया जा सकता है। गणित के खेल छात्रों को सक्रिय रूप से शामिल होने और सीखने का मौका देते हैं। खेलों में बच्चे खुशी और सफलता महसूस करते हैं और इनसे उनमें उत्साह और आत्मविश्वास पैदा होता है।

परंतु गणित के खेल, केवल मज़े और आत्मविश्वास के लिए नहीं हैं। खेल बच्चों की सहायता करते हैं:

➔ गणित की अवधारणाएं समझने में।

➔ गणित के कौशल विकसित करने में।

➔ गणित के तथ्य जानने में। 4

➔ गणित की शब्दावली और भाषा समझने में।

➔ गणित के प्रश्नों का मन-गणित करके झटपट उत्तर देने में।

आगे हम ऐसे ही कुछ खेलों पर विचार करेंगे।


संभाविता का खेल -

संभाविता किसी घटना के होने की एक नाप है।

हम जितनी अधिक बार किसी प्रयोग को दोहराएंगे उसके परिणाम, सैद्धांतिक संभावना के उतने ही करीब होंगे।

खेल: बाएं और दाएं

दो खिलाड़ियों के लिए खेल।

सामग्री: दो पांसे, गोटियां और बोर्ड

चित्र में दिखाए अनुसार बोर्ड बनाएं।

गोटी को बीच के खाने में रखें। फिर दोनों पासों को इकट्ठा फेंके। दोनों पासों की संख्याओं का अंतर मालूम करें। अगर अंतर 0, 1 या 2 हो तो गोटी को एक खाना बाएं ओर बढ़ाइए। अगर अंतर 3, 4 या 5 हो तो गोटी को एक खाना दाएं बढ़ाएं। दोनों खिलाड़ी बारी-बारी से पांसे फेंके, संख्याओं को घटाएं और गोटी को आगे बढ़ाएं। आप कितनी बार जीते या हारे इसका हिसाब रखें। क्लास के सभी बच्चों के नतीजों को इकट्ठा करें।

-- छात्र कुल कितनी बार जीते? कितनी बार हारे?

-- क्या खेल उचित है? उचित है तो क्यों? अगर नहीं तो क्यों?

-- क्या आप खेल को किसी तरह बदल सकते हैं ताकि जीतने की

संभावनाः

➔ हारने से ज्यादा हो जाए।

➔ हारने से कम हो जाए।

➔ हारने के बराबर हो जाए।


स्थानीय मान संबंधी खेल

- अंक जिस जगह पर होते हैं वे उसी का मान ग्रहण करते हैं।

- संख्या रेखा एक सीधी लकीर होती है जिसमें संध्याओं को उनके मान के हिसाब से रखा जाता है। यह रेखा अनंत तक जाती है और इसके मध्य में शून्य होता है।

खेल: कोई संख्या सोचें

दो लोगों के लिए खेल।

पहला खिलाड़ी किसी संख्या को सोचने के बाद संख्या रेखा पर उसकी स्थिति दूसरे खिलाड़ी को बताए। उदाहरण के लिए संख्या 0 से 100 के बीच या -10 और -20 के बीच या 1000 और 2000 के बीच हो सकती है। दूसरे खिलाड़ी को संख्या पता करने के लिए प्रश्न पूछने होंगे। पहला खिलाड़ी उन प्रश्नों के उत्तर सिर्फ 'हां' या 'ना' में दे सकता है। दूसरा खिलाड़ी इस प्रकार के प्रश्न पूछ सकता है:

“क्या संख्या 50 से बड़ी है?"

"क्या संख्या 10 से छोटी है?"

सही संख्या मालूम करने के लिए कितने प्रश्न पूछे गए उनकी गिनती करें और हरेक प्रश्न को एक अंक दें। खेल को कई बार दोहराएं जिससे हरेक खिलाड़ी को संख्या चुनने और प्रश्न पूछने के कई मौके मिलें। अंत में जिस खिलाड़ी को सबसे कम अंक मिलेंगे वही जीतेगा।


अंकों के गुणधर्म

अंकों को उनके गुणधर्मों के आधार पर पहचाना जा सकता है। उन्हें अलग-अलग समूहों में रखा जा सकता है। जैसे सम, विषम, गुणनखंड, गुणांक (Multiple), अभाज्य (Prime), आयताकार, वर्गाकार, या त्रिकोण।

खेल: कोई संख्या सोचें

पहला खिलाड़ी 1 से 100 के बीच की कोई संख्या सोचे। दूसरा खिलाड़ी अब पहले खिलाड़ी द्वारा चुनी संख्या को मालूम करे। इसके लिए दूसरा खिलाड़ी, पहले खिलाड़ी से संख्या के गुणधर्मों के बारे में सवाल पूछ सकता है। उदाहरण के लिए:

"क्या वह एक अभाज्य संख्या है?"

“क्या वह एक वर्ग संख्या है?"

“क्या वह एक विषम संख्या है?"

“क्या वह 3 का गुणनखंड है?"

पहला खिलाड़ी केवल 'हां' या 'ना' में ही जवाब दे सकता है। खेलते समय दूसरे खिलाड़ी के पास संख्याएं काटने के लिए 10x10 का एक चार्ट होगा, तो उसे काफी आसानी होगी।

ध्यान दें हरेक खिलाड़ी को, संख्या चुनने और प्रश्न पूछने का मौका कई बार मिले।


कोणों के नाप का अनुमान लगाना  

➔ कोण, मोड़ की एक माप है। इसे अंश में नापा जाता है।

➔ कोण कई प्रकार के होते हैं। न्यून कोण (90 से कम), समकोण (90 डिग्री), अधिक कोण (90 से ज्यादा, 180 से कम), और बृहतकोण (180 से ज्यादा)।

 

खेल: कोण का अनुमान लगाना (खेल: एक)

दो लोगों के लिए खेल।

पहला खिलाड़ी कोई भी कोण चुने जैसे 49 डिग्री। दूसरा खिलाड़ी बिना चांदे की मदद के केवल अपने अनुमान से यह कोण बनाए। पहला खिलाड़ी अब चांदे की मदद से कोण नापे। असली कोण और बनाए हुए कोण के बीच का अंतर दूसरे खिलाड़ी के अंक होंगे। उदाहरण के लिए दूसरे खिलाड़ी ने जब कोण नापा तो कोण केवल 39 डिग्री का ही निकला। इसलिए दूसरे खिलाड़ी को 10 अंक (49-39) मिलेंगे। दोनों खिलाड़ियों को बारी-बारी से खेलने का मौका मिलेगा। अंत में जिसके सबसे कम अंक होंगे वही। खिलाड़ी जीतेगा।


कोण का अनुमान लगाना (खेल: दो)

पहले दोनों खिलाड़ी सफेद कागज़ पर 15 अलग-अलग कोण बनाएं। उसके बाद वे कागज़ों को आपस में बदल लें और एक-दूसरे द्वारा बनाए कोणों का अनुमान लगाएं। फिर वे हरेक कोण को चांदे से नाप कर अपने अंदाज़ और शुद्ध माप की तुलना करें। कोणों के शुद्ध माप और अनुमान के बीच जो कुछ अंतर होगा, उतने ही अंक खिलाड़ियों को मिलेंगे। जिस खिलाड़ी को सबसे कम अंक मिलेंगे वही जीतेगा।

Gender School and Society,B.Ed., D.El.Ed. , CTET, TET, STET, KVS, NVS, TGT PGT and all oneday Exams.

 🔹INTRODUCTION


This unit will discuss basic gender concepts with the help of examples and case studies. It aims at explaining the social construction of gender and how all forms of gender discrimination start from this notion of social construction only. 


The unit will introduce some of the significant concepts of gender including the gender/sex difference, gender dynamics, gender needs, gender analysis and the notion of equity and equality debate.

🔹OBJECTIVES 



After reading this unit, you will be able to:


➡️ Understand what is the meaning of gender;


➡️ Explain the difference between sex and gender;


➡️ Comprehend some of the key concepts of gender studies which encourage critical thinking. 







CONCEPT OF SEX AND GENDER 

Sex and gender are different concepts that are often used interchangeably. The UK government refers to sex as being biologically defined, and gender as a social construct that is an internal sense of self, whether an individual sees themselves as a man or a woman, or another gender identity.

Gender is not a biological category but is acted out by the individuals in society. Therefore, gender is understood as socially constructed against the category of sex, which is a biological construction. 


Individuals have been divided into female and male depending upon their biological characteristics. For instance, women have breasts and men have beards (Lips 2014). 


The notion of feminity and masculinity is created by the society but one can question that even within the category of individual woman and man, 


how closely are they associated with the society’s notion of feminity or masculinity? Therefore, the question of gender is complicated and its understanding varies across societies and cultures.



Gender is a learned behavior therefore it can be named as gender socialization. Gender socialization is a process in which individuals learn certain gender norms and behavior and identity.


Let us think about gender socialization in our everyday life by looking at some of the hypothetical questions like:


➡️ What was the reaction of the parents when a child is born as a boy or girl?


➡️ What colour would the parents use to decorate the baby’s room?


➡️ How to think about different names for a baby boy or a girl?


➡️ What kind of toys will everybody get for the baby boy or baby girl?


➡️  How the teachers will make two different lines for boys and girls in the school?


➡️ How families and schools assign different natures of work to boys and girls?


Think about these questions and internalize the notion of gender differences which people experience in their everyday life. 


Oakley in her book Sex, Gender and Society (1972) made a clear distinction between sex and gender which says:


‘Sex’ is a word that refers to the biological differences between male and female: the visible difference in genitalia, the related difference in procreative function. ‘Gender’, however, is a matter of culture:


it refers to the social classification into ‘masculine’ and ‘feminine’ (Adapted from Freedman 2002, p. 15). Gender includes social relationship, labour, power, emotion and language. 


It is interpreted differently in different societies and cultures. Let us look at an appropriate quote to understand gender: “Not all women are poor, and not all poor people are women, but all women have the potential to suffer from discrimination” 

🔹 GENDER DYNAMICS 



Gender dynamics explains the power difference that exists between women and men. Let us take the example of a family in which father/husband/brother is the head of the household. 


Majority of decisions with regard to finance, allocation and distribution of resources rest with the man in the household. Women in the family on the other hand, belong to the subordinated class position in which they are responsible for carrying out the tasks but not


necessarily take part in the decision-making process. Gender dynamics helps us to understand the gender relations (power relation between men and women) within the family, and outside of it


. Let us take a simple example of sexual division of labour. This concept explains that there is a visible difference between women and men in taking up responsibilities related to running of the family.



Proponents of gender and development studies argue that more attention needs to be given to gender dynamics to be able to achieve genderequitable development. 


Gender dynamics affects vulnerability, risks and shocks in several ways. According to Meinzen-Dick et al. (2011),


🔹 Women and men experience shocks differently within the home and community. For example, ill health affects women more as they are not only affected by their own health but also take the responsibility of care giving to the other family members.


🔹 Women and men have different abilities to be able to deal with shocks. Women have lower access to irrigation, agricultural training and waterharvesting methods.


🔹 Women and men apply different coping strategies to deal with shocks. Women’s assets are disposed of more quickly to cover the expenses of family illness whereas men’s assets are used for covering marriage expenses and dowry.


🔹 There are shocks that can affect women specifically. For instance, divorce or death of their husbands can lead to women losing their assets, when marriage is governed by the customary laws. 

🔹 GENDER NEEDS 



Gender needs are understood as a concept in the context of Gender and Development approach. There are two policy perspectives/approaches, i.e., Women in Development (WID) and Gender and Development (GAD) which relate women with development. 


WID approach aims to include women in development process as beneficiaries of the development projects and to integrate them with the economic development of any country. 


On the other hand, GAD approach aims at addressing inequalities between women and men that exist in their social roles, relations, conditions, organizations and cultures. 


The shift of developmental policy from WID to GAD approach introduced concepts like gender needs and gender relations (Elson 1995; Kabeer 1994, cf. March et.al 1999). Societies are patriarchal in nature;


therefore, organization’s culture, structure and practices are based on male values and attitudes. 


🔹GENDER ANALYSIS 



Gender Analysis is the tool or framework to reduce gender inequalities both at the levels of policy and social action. These frameworks are designed to integrate gender analysis in social research and policy planning.


It is known as a practical guide to understand issues, roles, relationships and social positions which affect women and men’s lives differently. 


For example, women’s/girl’s engagement in productive roles such as: agriculture, incomegeneration activities and others compared to men’s/boy’s engagement in productive roles.  

  🔹 Gender Analysis     Framework 



There are different gender-analysis frameworks developed by various gender experts to carry out gender related research. Let us briefly read about some of these frameworks:



Harvard Analytical Framework and People-Oriented Planning: This framework is also known as the Gender Roles Framework and was published in the year 1985. 


This was developed by the researchers of Harvard Institute of International Development, USA in collaboration with the WID office of USAID. 


The aim of this framework is to help the policy planners to design efficient projects based on the productive resources held by women and men, and the types of work carried out by women and men in the household and community.



People-Oriented Planning Framework: This framework is developed for analyzing the refugee situation. It was developed by Mary B. Anderson and M. Howarth for United Nations High Commission on Refugee Women.


The framework aims at promoting equitable distribution of resources and services among the communities.



Moser Framework: This framework was developed by Caroline Moser as a tool of gender analysis at the Development Planning Unit, University of London. 


The aim was to initiate gender planning at various levels (National, State or Regional) as a separate activity. 





























विविधता की प्रकृति और अवधारणा (Nature and Concept of diversity)

 विविधता की अवधारणा

( Concept of diversity)

विविधता की अवधारणा स्वीकृति और सम्मान को शामिल करती है। इसका अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय है, और हमारे व्यक्तिगत अंतर को पहचानता है। ये नस्ल, जातीयता, लिंग, यौन अभिविन्यास, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, आयु, शारीरिक क्षमता, धार्मिक विश्वास, राजनीतिक विश्वास या अन्य विचारधाराओं के आयामों के साथ हो सकते हैं। यह एक सुरक्षित, सकारात्मक और पोषण पर्यावरण में इन अंतरों की खोज है। यह एक दूसरे को समझने और प्रत्येक व्यक्ति के भीतर निहित विविधता के समृद्ध आयामों को गले लगाने और मनाने के लिए सरल सहिष्णुता से आगे बढ़ने के बारे में है।


विविधता व्यक्तियों और समूहों द्वारा जनसांख्यिकीय और दार्शनिक मतभेदों के एक व्यापक स्पेक्ट्रम से बनाई गई वास्तविकता है। विविधता का समर्थन और रक्षा करना बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि व्यक्तियों और समूहों को पूर्वाग्रह से मुक्त करके और एक ऐसी जलवायु को बढ़ावा देकर जहां  और आपसी सम्मान आंतरिक है, हम एक सफलता-उन्मुख, सहकारी और देखभाल करने वाले समुदाय का निर्माण करेंगे और बौद्धिक शक्ति पैदा करेंगे। अपने लोगों के तालमेल से अभिनव समाधान।


"विविधता" का अर्थ केवल स्वीकार करने और / या अंतर को सहन करने से अधिक है। विविधता जागरूक प्रथाओं का एक समूह है जिसमें शामिल हैं:
  • मानवता, संस्कृतियों और प्राकृतिक पर्यावरण की अन्योन्याश्रितता को समझना और सराहना करना।
  • उन गुणों और अनुभवों के लिए पारस्परिक सम्मान का अभ्यास करना जो हमारे अपने से अलग हैं।
  • उस विविधता को समझना न केवल होने के तरीकों में शामिल है, बल्कि जानने के तरीकों में भी शामिल है;
  • यह पहचानना कि व्यक्तिगत, सांस्कृतिक और संस्थागत भेदभाव दूसरों के लिए नुकसान पैदा करने और बनाए रखने के दौरान कुछ के लिए विशेषाधिकार बनाता है और बनाए रखता है;
  • मतभेदों में गठजोड़ करना ताकि हम सभी प्रकार के भेदभाव को मिटाने के लिए मिलकर काम कर सकें।

विविधता में शामिल हैं, इसलिए, यह जानना कि उन गुणों और शर्तों से कैसे संबंधित हैं जो हमारे अपने और उन समूहों से अलग हैं जिनसे हम संबंधित हैं, फिर भी अन्य व्यक्तियों और समूहों में मौजूद हैं। इनमें शामिल हैं, लेकिन उम्र, जातीयता, वर्ग, लिंग, शारीरिक क्षमता / गुण, दौड़, यौन अभिविन्यास, साथ ही धार्मिक स्थिति, लिंग अभिव्यक्ति, शैक्षिक पृष्ठभूमि, भौगोलिक स्थिति, आय, वैवाहिक स्थिति, माता-पिता की स्थिति और काम तक सीमित नहीं हैं अनुभव। अंत में, हम स्वीकार करते हैं कि अंतर की श्रेणियां हमेशा तय नहीं होती हैं, बल्कि तरल भी हो सकती हैं, हम आत्म-पहचान के लिए व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान करते हैं, और हम मानते हैं कि कोई भी संस्कृति दूसरे से आंतरिक रूप से बेहतर नहीं है।


समिति के सदस्यों का उद्देश्य: एक अंतर बनाने के लिए

विविधता - हमारे सभी मानव मतभेद


विविधता प्रशिक्षण - यह समझना कि हमारे मतभेद कार्य पर हमारे संबंधों को कैसे प्रभावित या प्रभावित कर सकते हैं (साथियों, अधीनस्थ, बॉस, और ग्राहक - जानबूझकर या अनजाने में)


विविधता और एक समावेशी कार्य स्थल के बीच संबंध - आशय अपने कार्यस्थल और ग्राहक रैंक में विविधता को देखते हुए ( प्रभाव ) सभी कर्मचारियों के लिए एक अधिक समावेशी कार्य वातावरण बनाना है और इस प्रक्रिया में अधिक ग्राहकों को आकर्षित करना है


एक विविधता मुद्दा मौजूद है जब ...

एक मुद्दा (नीति या व्यवसायिक अभ्यास - औपचारिक, अनौपचारिक, आंतरिक या बाहरी) का एक विशेष समूह (यानी पुरुषों बनाम महिलाओं, काले बनाम सफेद, अमेरिकी बनाम विदेशी, शहरी बनाम ग्रामीण ) पर एक अलग प्रभाव पड़ता है । विवाहित बनाम एकल, आदि)


यह किसी विशेष समूह के लिए अधिक बार होता है (यानी, विभिन्न समूहों में नाटकीय रूप से भिन्न "संख्याएं" हो सकती हैं - टर्नओवर, समाप्ति, पदोन्नति, अनुशासन, कुछ या कोई रोल मॉडल, आदि)


एक समूह पर काबू पाना अधिक कठिन है (यानी, किसी संगठन के भीतर किसी विशेष समूह के लिए ऊपर की गतिशीलता - "ग्लास छत")


एक विविधता का मुद्दा मौजूद है जहां नीति या व्यावसायिक व्यवहार में अंतर का विशेष प्रभाव होता है (अंतर का समावेश नहीं)। क्या कोई प्रवृत्ति या पैटर्न है (जानबूझकर या अनजाने में)?


जरूरी नहीं कि विविधता का मुद्दा हो। इसके बारे में कुछ भी नहीं करने से आपको इस मुद्दे का ज्ञान होता है, जहां संगठन गलत होते हैं (लापरवाही)। इन मुद्दों के बारे में इनकार करने के कारण उन्हें दूर नहीं जाना है। कोर्ट-कचहरी के अंदर या बाहर अज्ञानता नहीं है। असली सवाल यह है कि हमारे पास यह मुद्दा क्यों है और क्या हम इसे ठीक करने या स्थिति में सुधार करने के लिए कार्रवाई कर सकते हैं।




मूर्त से अमूर्त की ओर कविता 


मूर्त से

अमूर्त की ओर

न जाने कब

शुरू हो गयी यात्रा


पथ चलते

कोई कहाँ जान पाता है कि

वह कहाँ पहुँचेगा

कब पहुँचेगा

और कैसे पहुँचेगा

या कभी कहीं पहुँच भी पायेगा

या बस यूँही चलता चलेगा


चलते - चलते

कहीं पहुँचने का आभास तो

तब होता है जब कोई बाँह थाम ले

अनायास और पूछे कि

अरे मुझ तक कैसे आ पहुँचे





मूर्त और अमूर्त क्या है? मूर्त वस्तु और अमूर्त वस्तु किसे कहते हैं? मूर्त चिंतन अमूर्त चिंतन में अंतर?

मूर्त वस्तु

 वैसे ही वस्तु जिसका प्रत्यक्ष रूप या स्वरूप हो उसे मूर्त वस्तु कहते हैं। आपके हाथ में मोबाइल है तो यह मूर्त वस्तु  है।

 अमूर्त वस्तु

वह वस्तु जो मूर्त न हो या जिसका कोई ठोस रूप सामने न हो,आवाज़ एक अमूर्त वस्तु है ।

मूर्त चिंतन क्या है ?

 मूर्त चिंतन , चिंतन की प्रक्रिया का सबसे निम्न रूप है । मूर्त चिंतन प्रत्यक्ष वस्तु के बारे में चिंतन है । अर्थात जब कोई वस्तु सामने में उपस्थित हो तो उसको देखकर या छूकर उसके बारे में बताया जाए तो इस प्रकार के चिंतन को मूर्त चिंतन कहते हैं । मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि मूर्त चिंतन छोटे बच्चों , पशु पक्षियों द्वारा किया जाता है ।

 अमूर्त चिंतन क्या है ?

अमूर्त चिंतन ज्ञान पर आधारित चिंतन होता है । अमूर्त चिंतन के लिए किसी वस्तु का प्रत्यक्ष रूप से सामने होना जरूरी नहीं है । इस प्रकार के चिंतन के लिए बालक अपनी बुद्धि एवं कल्पना शक्ति का उपयोग करता है । जब कोई वस्तु या समस्या प्रत्यक्ष रूप से सामने नहीं हो फिर भी उसके बारे में चिंतन करना अमूर्त चिंतन कहलाता है ।

एक उदाहरण की सहायता से मूर्त चिंतन एवं अमूर्त चिंतन को समझते हैं : जब एक बालक के सामने काले रंग के दो पैर वाला वाला पक्षी आता है तो बालक अपने पापा से पूछता है कि पापा यह क्या है ? तो उसके पापा बताते हैं कि - यह एक पक्षी है , जिसका नाम कौवा है । तो बालक उस कौवा को गौर से देखता है फिर अवलोकन करता है । बालक मूर्त चिंतन के द्वार कौवा का अवलोकन करता है । कुछ देर बाद कहा वहां से कौवा उड़ जाता है । तो उसके पापा बालक से पुनः पूछते हैं कि कुछ देर पहले यहां पर क्या बैठा हुआ था ? तो बालक जवाब देता है कि यहां पर दो पैर वाला तथा काले रंग का एक पक्षी था , जिसका नाम कौवा था । बालक ने यह जवाब अपने अमूर्त चिंतन के द्वारा दिया है । अतः इस उदाहरण से स्पष्ट है कि मूर्त चिंतन तथा अमूर्त चिंतन क्या है ?

जब एक बालक के सामने काले रंग के दो पैर वाला वाला पक्षी आता है तो बालक अपने पापा से पूछता है कि पापा यह क्या है ? तो उसके पापा बताते हैं कि यह एक पक्षी है , जिसका नाम कौवा है । तो बालक उस कौवा को गौर से देखता है फिर अवलोकन करता है । बालक मूर्त चिंतन के द्वार कौवा का अवलोकन करता है । कुछ देर बाद कहा वहां से कौवा उड़ जाता है । तो उसके पापा बालक से पुनः पूछते हैं कि कुछ देर पहले यहां पर क्या बैठा हुआ था ? तो बालक जवाब देता है कि यहां पर दो पैर वाला तथा काले रंग का एक पक्षी था , जिसका नाम कौवा था । बालक ने यह जवाब अपने अमूर्त चिंतन के द्वारा दिया है । अतः इस उदाहरण से स्पष्ट है कि मूर्त चिंतन तथा अमूर्त चिंतन क्या है ?



औपचारिक गणित को ठोस अनुभवों से जोड़कर सिखाना


 औपचारिक गणित को ठोस अनुभवों से जोड़कर सिखाना


 बच्चे ठोस वस्तुओं के साथ खेलने में मजा लेते हैं इसलिये कक्षा में पहले

इनसे ही शुरूआत करनी चाहिये। चीजें एकत्र करके उनसे खेलने, उन्हें तरह–तरह से परखने का बच्चों को मौका दिया जाना चाहिये। इनकी मदद से छांटने’, रंग पहचानने, जोडि़याँ बनाने, क्रम को समझने जैसे काम करवाये जा सकते हैं। बच्चों के साथ मिलकर मिट्टी के खिलौने, रेत और मिट्टी पर आकृतियाँ बनाई जा सकती हैं। ठोस वस्तुओं के साथ खेलते या काम करते हुए बच्चों के साथ बातचीत करना या उनके अनुभव सुनना बहुत जरूरी है। अक्सर जब हम कक्षा में ठोस वस्तुओं का प्रयोग करते हैं तो एक ही तरह की ठोस वस्तु का उपयोग करते हैं, जबकि तरह–तरह की ठोस वस्तुओं के साथ काम करने से बच्चों की समझ अधिक पक्की होती है। गणित सीखने–सिखाने का क्रम बच्चेगणित को निम्नांकित क्रम में आसानी से सीखते हैं, जो मूर्त से अमूर्तकी ओर पर आधारित है।


👉 ठोस वस्तुओं से अनुभव।


👉 भाषा द्वारा अभिव्यक्ति


👉 चित्रों का उपयोग


👉 संकेतों का प्रयोग


बेहतर हो कि गिनतियाँ–पहाड़े रटने की जगह गिनतियों का एहसास कराने और पहाड़े बनाने पर जोर रहे। जोड़, गुणा, घटाना व भाग की क्रियाएं पहले ठोस वस्तुओं के साथ की जाएं, तब अंकों के साथ। वस्तुओं के साथ इन क्रियाओं का पर्याप्त अनुभव अंकों के साथ क्रियाओं को आसान बनायेगा। जोड़, गुणा, घटाना व भाग की शुरूआत भले ही ठोस वस्तुओं से हो लेकिन सीखना सार्थक तभी है जब बच्चे इन क्रियाओं की अवधारणा तक पहुँचे। वे जानें कि गिनती ‘एक में एक जोड़नें, से बनती है। जोड़ने का मतलब चीजों को मिलाना और गुणा का मतलब एक ही मात्रा में चीजों को बार–बार बढ़ाना है – दोनों ही क्रियाओं में चीजें बढ़ती हैं। या घटाने का मतलब चीजों को कम करनाहै या भाग का मतलब उन्हें बराबर बाटना है। इन दोनों ही क्रियाओं में चीजें घट जाती हैं। आमतौर पर बिन्दु, रेखा, त्रिभुज आदि की परिभाषाएं रटाने से – सीखना–सिखाना निहायत नीरस और उबाऊ काम बन जाता है। बेहतर है कि इन आकृतियों को अपने आसपास खोजा जाय या उनका निर्माण किया जाय। ‘जगह’ संबंधी अनुभवों से सिलसिलेवार गुजरने के बाद बड़ी कक्षाओं में ‘आयतन’ व ‘क्षेत्रफल’ की समझ बनाना आसान होगा।



मौखिक गणित की प्राथमिक स्तर में उपयोगिता



मौखिक गणित बच्चों के लिये बहुत उपयोगी है। यह बच्चों में सोचने की प्रक्रिया को बढ़ावा देती है। पर यह ध्यान रखना जरूरी है कि मौखिक गणित के सवाल उनके परिवेश से जुड़े हों और बच्चे उनका व्यवहारिक अर्थ निकाल सकें। सवालों में दिये घटनाक्रम का औचित्य भी बच्चे समझ सकें। गणित में भाषा और संदर्भ गणित सीखने में अध्यापक की भाषा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 


गणित सीखने में अभ्यास बहुत जरूरी है। अक्सर हम कक्षाओं में ‘रटने का अभ्यास’ करते हैं। जबकि अभ्यास में सृजनशीलता और नवीनता की संभावनाएं रहती हैं। इसमें किसी क्रिया को समझ और तर्क के साथ करने की गुंजाईश होती है। इसके विपरीत रटना एक मशीनी क्रिया है। इसमे किसी बात को बगैर सोचे–समझे बार–बार दोहराना होता है। इसमें मस्तिष्क कम सक्रिय होता है। शायद हमसे कक्षा में चूक हो रहीहै। हमारा गणित शिक्षण का तरीका बच्चों को रटने की ओर प्रेरित करता नज़र आता है।




बच्चों को समझाएं गणित का सौन्दर्य




रूचि लेकर और गतिविधियों की मदद से कक्षा में काम किया जाय तो गणित सीखना सिखाना एक मनोरंजक काम बन जाता है। इससे बच्चों में कई क्षमताएं विकसित होती हैं। बच्चों में क्रमबद्धता की समझ पैदा होती है।तर्क व सोचने की क्षमता बढ़ती है। बच्चे संश्लेषण–विश्लेषण करना, निर्णय लेना व निष्कर्ष निकालना सीखते हैं। गणित के साथ–साथ ही भाषा की समझ बनती है। इससे बच्चे सोचने समझने की समस्याएं हल कर सकते हैं। डिजाइनिंग, वास्तुकला तथा चीजों / जगहों की बाहरी–भीतरी सज्जा में गणित का सौन्दर्य ही है। लगातार गणित की गतिविधियों से बच्चों में इनका सौन्दर्यबोध जगाया जा सकता है । गणित की कठिनाइयाँ बहुत कुछ कक्षा में अपनाये जा रहे सीखने–सिखाने के तरीकों पर भी निर्भर करती है। कई बार कोई अवधारणा किसी कक्षा के लिये मुश्किल होती है पर वही अगली कक्षा में आसान साबित हो जाती है। 




गणित में ऐसे करें बच्चों का मूल्यांकन




यह मान्यता अब आम होती जा रही है कि केवल परीक्षाओं के जरिएमूल्यांकन एकांगी मूल्यांकन हैं। यह बच्चों के पूरे व्यक्तित्व उनकी खूबियों और कमजोरियों को नहीं समेटता। बच्चे रोज बरोज नए प्रभाव ग्रहण करते और नए–नए व्यवहार सीखते हैं। उन्हें व्यक्त करते हैं। ऐसे में लगातार चलने वाली सतत मूल्यांकन पद्धति उपयोगी हो सकती है। इसमें अध्यापक की चौकस आँखें लगातार बच्चों को देखती पढ़ती रहती हैं। उनकी गतिविधियों का जायजा लेती रहती हैं। न सिर्फ़ बच्चों का बल्कि अपने काम और तरीकों की भी जाँच – परख करती रहती हैं । दरअसल बच्चों के मूल्यांकन में अध्यापक का मूल्यांकन भी शामिल है। सच कहा जाय तो किसी भी विषय में बच्चे नहीं बल्कि सीखने–सिखाने की व्यवस्था या प्रणालियाँ असफल होतीहैं। बच्चों का असफल होना तो किन्हीं असफल कोशिशों का परिणाम है। मूल्यांकन का कोई आधार बनाना मुश्किल है फिर भी कुछ मानक बनाये जा सकते हैं। जैसे –


👉 संक्रिया/पाठ को सीखने – सिखाने की परिस्थिति


👉 सिखाए गए पाठ/संक्रिया का प्रभाव पड़ा ?


👉 प्रभाव ठीक नहीं था तो शिक्षक की अपनी कोशिशों का मूल्यांकन


👉 सीखने–सिखाने में बच्चों की प्रगति


👉 बच्चे द्वारा सीखी हुई अवधारणा का अलग–अलग परिस्थितियों में इस्तेमाल


👉 अपनी व दूसरे की गलतियों पर उनका रुख


👉 दूसरों के द्वारा गलतियाँ बताने पर उनका रूख 


परीक्षा की कापियाँ जांचना भी मूल्यांकन का एक पहलू है। इसमें केवल उत्तरों को महत्व देने की जगह बच्चों द्वारा सवाल हल करने में अपनाई गई प्रक्रिया और प्रदर्शित की गई समझ को जांचने पर जोर हो। बच्चेकुछ खास सवालों को हल करने में ज्यादातर गलतियाँ करते हैं। शिक्षक इसे जानते हैं। पढ़ाने के दौरान, और बाद में भी, इसे पता करने की कोशिश की जनि चाहिए कि बच्चे अक्सर गलती कहाँ करते है। बच्चोंके लिये गणित सीखने का अनुभव एक सुखद अनुभव भी हो सकता है और वह भयावह अनुभव भी। यह सीखने सिखाने की परिस्थिति और प्रक्रिया पर निर्भर करता है कि बच्चे के लिये गणित प्रिय विषय बन जाये या गणित से डरने लगे।




--------------------------------------------------------------------



बच्‍चों में गणित का भय दूर करने एवं रुचि पैदा करने के लिए खेलों का सहारा लिया जा सकता है।



 प्राथमिक स्‍तर के बच्‍चों के साथ कुछ इस तरह के रोचक खेल खेले जा सकते हैं। 


👉 खेल-1: गिनती व पहाड़े

कक्षा के सारे बच्‍चों को एक गोले में बिठाकर किसी भी बच्‍चे से गिनती शुरू करवाकर क्रमवार आगे बोलना है। जो बच्‍चा गलत बोलता है वह इस खेल से बाहर हो जाएगा। अगला बच्‍चा फिर 1 से शुरू करेगा। यह क्रम चलता रहेगा। जो बच्‍चा ध्‍यान पूर्वक गिनती बोलेगा और आउट नहीं होगा, वह विजेता होगा। यही खेल पहाड़े बोलकर भी खेल जा सकता है। इस खेल में एकाग्रता का बहुत महत्‍व है। सब बच्‍चों को ध्‍यानपूर्वक सुनना है कि उसका पड़ोसी क्‍या बोल रहा है।   



👉 खेल-2: जोड़ व बाकी

बच्‍चों को सर्किल में बिठाकर कोई एक संख्या बोलेंगे और यह बताएँगे कि उसमें कितने जोड़ने हैं ? मिसाल के तौर पर हमने संख्या 4 बोली और उसमें 3 जोड़ते हुए आगे बढ़ना है जो बच्‍चा गलत बोलेगा वह बाहर हो जाएगा। इसी तरह घटाने का खेल भी खेल सकते हैं। मान लो संख्या 57 बोली उसमें से 2 घटाते हुए बोलना है। जो सही बोलेगा खेल में बना रहेगा जो गलत बोलेगा वह खेल से बाहर हो जाएगा।



👉 खेल-3: विभाजित होने वाली संख्‍या पर आगे बढ़ो 

विभाजित होने वाली संख्या पर आगे बढ़ो या गुड या क्या फर्क पड़ता है आदि शब्द बोलना है। उदाहरण के लिए 4 से विभाजित संख्या नहीं बोलनी है। बच्‍चे 1,2,3 बोलेंगे 4 आने पर आगे बढ़ो बोला जाएगा। अगला बच्‍चा 5 बोलेगा। इस खेल में बहुत ही आनन्द आता है। ध्यान आकर्षण के साथ सहज भाव से बालक किसी भी संख्या से विभाजित होने वाली संख्या को सीख जाता है।



👉 खेल-4: ज्‍यामिति आकृतियाँ

ज्यामिति आकृतियों को पहचानने का भी एक खेल बच्‍चों को खिलाता हूँ । पहले कक्षा में बच्‍चों को कोण, त्रिभुज, आयत, वर्ग, वृत बेलन बताकर समझाकर फिर इस पर आधारित खेल खिलाता हूँ। एक गोला बनाकर उसमें कोण, त्रिभुज, आयत, वर्ग, वृत, गोला आदि बनाकर बच्‍चों को गोले में चारों ओर दौड़ने के लिए कहा जाता है। फिर बोला जाता है कि आयत , त्रिभुज में 2, 3 या 4 छात्र खड़े होंगे। जो बच्‍चे पहचानकर इन आकृतियों मे खडे़ हो जाते हैं वे खेल में बने रहते हैं, दूसरी आकृतियों मे खडे़ होने वाले खेल से बाहर हो जाते हैं। जहाँ यह खेल आनन्ददायी है वहीं पर ज्यामिति आकृतियों की पहचान कराने में बड़ा कारगर है।



👉 खेल-5: खेल खेल में मूल्यांकन

अधिगम स्तर को जाँचने के लिए हम किसी भी विषय में इस खेल को आजमा सकते हैं। भय युक्त परीक्षा प्रणाली से हटकर खेल ही खेल में जो कुछ हमने सिखाया उसकी जाँच कर सकते हैं।

छोटे-छोटे प्रश्न बनाकर उनको पर्चियों में लिख दें। इनमें जितना हमने बच्‍चों को सिखाया है उससे सम्बन्धित ही प्रश्न हों। कक्षा-कक्ष में ही बच्चों को एक घेरा बनाकर बिठा दें। बारी बारी से एक बच्‍चा पर्ची खोलेगा। प्रश्न पढ़ेगा और उसका उत्तर देगा। यदि बच्‍चा प्रश्न का उत्तर देता है तो वह खेल में बना रहेगा गलत जवाब पर खेल से बाहर हो जाएगा। यह क्रम निरन्तर चलता रहेगा। जो बच्‍चा सबसे अन्त तक खेलेगा वह खेल का विजेता होगा। जिसे हम छोटा मोटा पुरस्कार देकर उत्साहित भी कर सकते हैं। इस खेल से जहाँ हमारे सिखाने की प्रक्रिया का आकलन होगा वहीं अधिगम स्तर को जाँचने का बेहतरीन माध्यम है। यह खेल हम किसी भी पाठ के पश्चात खेल सकते हैं।

इस प्रकार और भी कई खेल हो सकते हैं जिनके द्वारा हम बालकों से गणित विषय का डर निकालकर उनमें रुचि पैदा कर सकते हैं।


--------------------------------------------------------------------



बच्चे को लिखना सीखाने के लिए इन तरीकों को अपनाएं




1. सबसे पहले पेन या पेंसिल पकड़ना सिखाएं – बच्चे को पेंसिल या पेन दें इसके बाद उन्हें दिखाएं कि उसे कैसे पकड़ना है। उसे उंगली व अंगूठे के बीच पेन पकड़ने की सलाह दें। अगर उसका ग्रिप मजबूत हो जाएगा, तो लिखने में दिक्कत नहीं होगी।



👉 रफ कॉपी या स्लेट दें – जब बच्चा पेन, पेंसिल व चॉक पकड़ना सीख जाए तो उसे रफ कॉपी या स्लेट दें और उस पर कुछ भी चलाने को कहें। इससे वह पेन को चलाना सीख जाएगा।



👉 रंग का लें सहारा – बच्चों को रंग काफी पसंद आता है। आप रंगों की मदद से भी उसमें लिखने की इच्छा जगा सकते हैं। उसे रंग लाकर दें और किसी भी पेपर पर उसे चलाने को कहें।



👉 व्हाइट बोर्ड व मार्कर का सहारा लें – जब बच्चा पेन पकड़ना व उसे चलाना सीख जाए, तो लिखवाने की प्रैक्टिस शुरू कराएं। इसके लिए व्हाइट बोर्ड व मार्कर बच्चे को दें। इसके बाद बच्चे को अल्फाबेट या गिनती के कुछ अक्षर लिखकर दें और वैसे ही लिखने को कहें।



👉 बच्चे को दिखाकर खुद भी लिखें – बच्चे अक्सर बड़ों को कॉपी करते हैं। ऐसे में आप बच्चे को दिखाते हुए कुछ लिखने बैठें। आपको देखकर वह भी लिखने की जिद करेगा। जब वह ऐसा करे, तो उसे दूसरा पेन व कॉपी दे दें और लिखने को कहें।



👉 बच्चे को प्रोत्साहित करें – अगर आप चाहते हैं कि बच्चा कोई भी काम अच्छे से करे, तो उसके लिए उसे प्रोत्साहित करना सबसे ज्यादा जरूरी है। लिखने की कला सिखाने में भी यह जरूरी है। अगर बच्चा जरा सा भी पेन चलाए, कुछ बनाए तो उसे प्रोत्साहित करें। दूसरे बच्चों का नाम लेकर उसकी तुलना करते हुए अपने बच्चे को जीनियस बताएं। इससे वह और अच्छा करेगा। उसे कभी भी हतोत्साहित न करें, ये बातें न कहें कि तुम्हें तो कुछ नहीं आता।


आपका एक सुझाव हमारे अगले ब्लॉग को और बेहतर बना सकता है तो कृपया कमेंट करें, अगर आप ब्लॉग में दी गई जानकारी से संतुष्ट हैं तो अन्य पैरेंट्स के साथ शेयर जरूर करें।


-----------------------------------------------



गणित की गतिविधियां - 




गतिविधि - 1 चम्मच पर कंचा रखकर लाइन पर चलो, कंचा गिरे नहीं




1.यह गतिविधि हम क्यों करें?


बच्चे खेल के माध्यम से गणित से जुड़ पाएँगे।


हम यह समझ पाएँगे कि बच्चे कहाँ तक की संख्याओं को सही क्रम में बोल पाते हैं।


2. यह गतिविधि हम कैसे करें?


कक्षा या मैदान में एक लम्बी लाइन खींचें।


चम्मच को मुँह में दबाकर उस पर कंचा रखकर एक बच्चे को लाइन पर चलने को कहें।


अन्य बच्चों को गोल घेरे में इस प्रकार खड़ा करें कि गतिविधि सबको दिखाई दे। यदि बच्चे नहीं चल पा रहे हों तो स्वयं करके बताएँ।


बच्चे द्वारा चले गए कदमों को हम व अन्य बच्चे गिनें। कुछ समय बाद हम गिनना बन्द कर दें। केवल बच्चे गिनें।


प्रत्येक बच्चे के चलने के बाद हम अन्य बच्चों से पूछें कि वह कितने कदम चला।


यह गतिविधि सभी बच्चों से बारी-बारी कराएँ।


3. क्या यह भी हो सकता है?


सिर पर डंडा रखकर लाइन पर चलने को कहें।


सिर पर गिलास रखकर चलने को कहें।


इसी प्रकार के अन्य खेल जो आपको उपयुक्त लगें।


4. इस गतिविधि के कुछ फायदे और भी हैं -


बच्चों में ‘लाइन‘ की सामान्य समझ विकसित होगी।


बच्चों में एकाग्रता आएगी।


बच्चे सामूहिक रूप से गिनती बोलना सीखेंगे।


बच्चों में किसी लाइन के ‘शुरू’ और ‘अंत’ की सामान्य समझ विकसित होगी।


बच्चों के मन से भय दूर होगा।



 प्रोफेसर राकेश गिरी का अनुभव 


मैं घर से ही यह गतिविधि करने का निश्चय कर स्कूल गया। मैंने अपने साथ एक चम्मच और कुछ कंचे भी रख लिए थे। स्कूल पहुँच कर मैं बच्चों को मैदान में ले आया। वहाँ आम के पेड़ के नीचे एक लम्बी लाइन खींची। बच्चों को बारी - बारी से चम्मच को मुँह में दबाकर उस पर कंचा रखकर लाइन पर चलने की गतितिधि को कराया। बाद में मैंने इसी गतितिधि को सिर पर डंडा एवं गिलास रखकर भी करवाया।


बच्चे इस गतिविधि को आसानी से कर रहे थे। एक-दो बच्चों को छोड़कर बाकी सब बच्चे लाइन के अंतिम छोर तक पहुंचने में कामयाब रहे। सिर पर डंडा, गिलास रखकर यह गतिविधि करने पर बच्चों को थोड़ी कठिनाई हुई परन्तु कुछ अभ्यास के बाद इसमें भी सफलता प्राप्त हो गई। बच्चों का उत्साह देखते ही बनता था। मैंने भी उनके साथ बच्चा बनकर इस गतिविधि में भाग लिया। 

शिक्षार्थियों में विविधता की समझ, understanding diversity in learners

 ★  बचपन के विकास में विभिन्नता 



 विभिन्न प्रकार की विविधताएँ हैं जिनका बच्चे बड़े होने के दौरान सामना करते हैं और जिसका सीधा असर उनके व्यक्तित्व विकास पर पड़ता है। बच्चों के लिए विभिन्न प्रकार के विकासात्मक जोखिम हैं जो विभिन्न प्रकार की विविधताओं में बड़े होने के परिणामस्वरूप होते हैं। बेशक, कुछ निश्चित लाभ भी हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए समाज की भूमिका है कि बच्चों को अधिक संज्ञानात्मक, व्यवहारिक, प्रेरक और भाषाई घाटे का सामना न करना पड़े।



 जोखिम/संकट  के रूप में विविधता की अवधारणा


 प्रवासी परिवारों के बच्चों में अस्वच्छता, आक्रामकता, अति सक्रियता, ध्यान की कमी और खराब शैक्षणिक प्रदर्शन के विकास का खतरा अधिक होता है। उन्हें जाति, वर्ग, नस्ल, पंथ या रंग के आधार पर भेदभाव का भी सामना करना पड़ता है। विभिन्न सामाजिक स्तरों पर ऐसे बहिष्करण के अनुभव बच्चों के स्वस्थ भावनात्मक, सामाजिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास के लिए अपमान का कारण बनते हैं। अलगाव, जिसमें आवासीय, आर्थिक, भाषाई, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक शामिल हैं - न केवल बच्चे को जोखिम में डालता है, बल्कि विविध सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की आबादी के बीच अविश्वास भी फैलाता है।


 निम्नलिखित मामले पर विचार करें:


 केस 1:

10 साल का रोहित, एक प्रवासी बच्चा अपने साथियों के साथ पार्क में खेलना चाहता है। हालाँकि उनके साथी उन्हें क्रिकेट के अपने खेल में सीधे शामिल नहीं करेंगे, फिर भी उन्हें एक अतिरिक्त के रूप में उपयोग करेंगे जो मैदान से बाहर जाने पर उनके लिए गेंद हासिल करने के लिए दौड़ेंगे। रोहित इस अलगाव पर चोट महसूस करते हैं लेकिन इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहे हैं।


संपत्ति के रूप में विविधता की अवधारणा

शोधों से पता चला है कि बच्चों के विकास पर प्रवासी परिवारों के कुछ सकारात्मक प्रभाव हैं जैसे मजबूत जातीय मूल्य, पारिवारिक सामंजस्य की मजबूत भावनाएं, सामाजिक स्थिति को बढ़ाने के लिए शिक्षा को उच्च मूल्य देना। मध्य बचपन से अगले स्तर तक इन मूल्यों को स्थापित करना यह सुनिश्चित करता है कि बच्चे उपलब्धि की आवश्यकता की मजबूत भावनाओं का विकास करेंगे।



 उदाहरण के लिए, कई परिवार जो विशेष रूप से दिल्ली में देश के उत्तरी हिस्सों में यूपी, बिहार और दक्षिणी राज्यों से चले गए थे, दोनों राज्यों की संस्कृति को संवारा है। उनके बच्चों को भी दोहरी सांस्कृतिक परवरिश का लाभ मिलता है, जो कभी बच्चों पर एक दायित्व के रूप में सोचा गया था और उनके उचित सामाजिक भावनात्मक विकास में बाधा डालने की क्षमता थी।


 वास्तव में, अध्ययन से पता चलता है कि द्विभाषावाद संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा देता है और एक व्यक्ति में मैथुन कौशल को बढ़ाता है। इन विविध पृष्ठभूमि से आने वाले बच्चे, एक नई संस्कृति के साथ विलय कर रहे हैं, वास्तव में विभिन्न विविध पृष्ठभूमि के लोगों के साथ जुड़ने में सक्षम हैं, जो भविष्य में उनके अधिक व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास का नेतृत्व करते हैं।


★  विभिन्न प्रकार की पारिवारिक संरचनाओं में वृद्धि: -

 विभिन्न प्रकार की पारिवारिक संरचनाओं में बढ़ते हुए विभिन्न आयामों जैसे पारंपरिक परिवारों, गैर पारंपरिक परिवारों, कम आय वाले परिवारों और संपन्न परिवारों से देखा जा सकता है। परिवार की संरचना और बच्चे के पालन अभ्यास व्यक्ति के समाजीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उसके भविष्य के व्यक्तित्व के अनुसार आकार दिया जाता है।

 वर्तमान विश्व में पारिवारिक संरचनाओं की विविधता अपने इतिहास के किसी भी अन्य समय की तुलना में निश्चित रूप से अधिक है। शिशुओं का जन्म पारिवारिक प्रकार और संरचनाओं में हुआ है, जो पचास साल पहले भी मौजूद नहीं थे। कई नए परिवार प्रकार हैं, जो पहले मौजूद नहीं थे, जैसे, प्रजनन तकनीकों के माध्यम से पैदा हुए बच्चे, तलाक के पुनर्विवाह, एकल माताएं जिन्होंने कभी शादी नहीं की। भ्रम की स्थिति में, एकल समलैंगिक महिलाएं और एकल समलैंगिक पुरुष, विवाहित समलैंगिक जोड़े और विवाहित समलैंगिक जोड़े भी बच्चों को पाल रहे हैं। फिर ऐसे बच्चों की पर्याप्त संख्या है जो केवल दादा-दादी के साथ रहते हैं और अपने जैविक माता-पिता को कभी नहीं देखा है।




 पारिवारिक संरचनाओं के प्रकार को आमतौर पर दो में विभाजित किया जा सकता है- i) पारंपरिक परिवार और ii) गैर-पारंपरिक परिवार।



 आप जानते हैं कि पारंपरिक परिवारों में, दो विषमलैंगिक माता-पिता थे जिनकी शादी एक-दूसरे से हुई थी और जैविक रूप से उन बच्चों से संबंधित थे जिन्हें वे पालन कर रहे थे। ऐसे परिवारों में पिता काम करने वाले थे, जबकि माताएँ घर पर रहती थीं और बच्चे की देखभाल और घर के काम में व्यस्त रहती थीं। कभी-कभी पिता और मां दोनों काम कर रहे होते हैं।

और पारंपरिक परिवार का यह पैटर्न वह आदर्श है जिसके खिलाफ परिवार के अन्य सभी पर्यावरण को मापा जाता है। फ्रायड के मनोविश्लेषण सिद्धांत के अनुसार, दोनों जैविक माता-पिता के साथ घरों में नहीं उठाए गए बच्चों को मनोवैज्ञानिक समस्याओं का खतरा है। लेकिन वर्तमान दुनिया में, परिवार की संरचना की विविधता एक बढ़ती वास्तविकता है। अब हम गैर पारंपरिक परिवार के बारे में चर्चा करते हैं।

★ गैर-पारंपरिक परिवार - 



 पारंपरिक परिवार की अवधारणा से परे फैले हुए परिवार को परिवार के रूप में माना जाता है। आज, एकल माता-पिता परिवारों, तलाकशुदा परिवारों, दादा-दादी के नेतृत्व वाले परिवारों, सहवास करने वाले परिवारों, कम्यूटर परिवारों, समलैंगिक, समलैंगिक, उभयलिंगी और ट्रांसजेंडर द्वारा बनाए गए परिवारों जैसे महान रूपों में प्रदर्शित होते हैं। इनमें से प्रत्येक के बच्चों के लिए अलग-अलग परिणाम हैं। हालांकि पारंपरिक परिवारों के विभिन्न रूप हैं, हम बाद के पैराग्राफ में गैर-पारंपरिक परिवारों के कुछ रूपों पर चर्चा करेंगे।



 ♦ एकल अभिभावक परिवार


 एकल अभिभावक परिवार एक पारिवारिक संरचना है जिसमें माता-पिता अपने बच्चों को बिना साथी के या तो तलाक, जीवनसाथी की मृत्यु या फिर कभी शादी नहीं करने के लिए पालते हैं, लेकिन अकेले बच्चे पैदा करना। ऐसे परिवार में एकल माता-पिता को अपने बच्चे के लिए पिता और माँ दोनों की भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं। उन सभी कार्यों को जो अन्यथा दो माता-पिता द्वारा साझा किए जाएंगे, उन्हें एक के द्वारा पूरा किया जाना चाहिए, जिससे अक्सर तनाव पैदा होता है। एक एकल माता-पिता कई स्रोतों से तनाव का सामना करते हैं जिनमें वित्तीय समस्याएं, तनावपूर्ण रिश्ते, पालन-पोषण की मांग और खुद की देखभाल के लिए समय की कमी शामिल हैं।


 इन स्थितियों में उठाई गई एक विशेष चिंता को भावनात्मक अभिभावक कहा जाता है, जिसमें बच्चे अपने माता-पिता के बीच मध्यस्थता करने से अधिक चिंतित हो जाते हैं। ऐसे परिवारों में बच्चों को घरेलू गतिविधियों के प्रबंधन में अधिक जिम्मेदारी लेनी पड़ती है जैसे कि भाई-बहनों की देखभाल, घर की सफाई, खरीदारी आदि। अमेटो (2006) के अनुसार, तलाक के कारण एकल पेरेंटिंग में बढ़ रहे बच्चे न केवल घर में व्यवहार संबंधी समस्याओं का सामना करते हैं। साथियों के साथ तनावपूर्ण संबंध, कम आत्मसम्मान, शैक्षणिक समस्याएं, और स्कूल में समायोजन कठिनाइयों। अगर कस्टोडियल पेरेंट गर्म, आधिकारिक और सुसंगत बना रह सकता है, तो बच्चों के उदास होने की संभावना कम होती है।

★ आय पर आधारित पारिवारिक संरचना: -

 मानव विकास पर पारिवारिक विविधता के प्रभाव को  समाजीकरण की प्रक्रिया पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। एकल माता-पिता परिवारों, सौतेले परिवारों और दोहरे कैरियर दो माता-पिता परिवारों के अध्ययन के आसपास कई शोध किए गए हैं और परिणामों में लगातार पता चला है कि परिवार के संसाधन, प्रक्रियाएं और रिश्ते सफल संरचनाओं के पारिवारिक समाज के आकलन से अधिक महत्वपूर्ण भविष्यवाणियां हैं।


 आइए एक नजर डालते हैं कि निम्न आय वाले परिवारों और संपन्न परिवारों के बच्चे के समाजीकरण की प्रक्रिया में क्या प्रभाव पड़ता है।


 कम आय वाला परिवार


 कम आय वाले परिवारों के बच्चों को संपन्न परिवारों की तुलना में पर्याप्त पोषण और उचित स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त होने की संभावना कम होती है। इसके अलावा कम आय वाले परिवारों को पर्यावरणीय हानि, समुदाय / परिवार की हिंसा, घरेलू हिंसा, और प्रत्यक्ष रूप से शारीरिक शोषण और उपेक्षा का शिकार होने का जोखिम है।


 कम आर्थिक संसाधनों वाले माता-पिता अपने माता-पिता के प्रति कम आत्मविश्वास वाले पाए गए हैं, अपने बच्चों के प्रति कम गर्मी दिखाते हैं। शोध में पाया गया है कि कम आर्थिक संसाधनों वाले माता-पिता अपने बच्चों के लिए मौखिक और शारीरिक रूप से अधिक अपमानजनक हैं और अधिक वित्तीय संसाधनों वाले माता-पिता की तुलना में अपने बच्चों को कम गर्मी दिखाते हैं।



  संपन्न परिवार


 समाजोपाथिक प्रवृत्ति विकसित करने के लिए संपन्न परिवारों के बच्चे गरीब परिवारों के बच्चों की तुलना में कम जोखिम वाले होते हैं। उपरोक्त चर्चाओं से यह स्पष्ट है कि परिवार एक व्यक्ति के मूल्यों और लक्ष्यों को आकार देने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो समाजीकरण के लिए आवश्यक है।



 अपनी प्रगति की जाँच करें 

 i) उदाहरणों से स्पष्ट करें कि एकल अभिभावक परिवार समाजीकरण को कैसे प्रभावित करते हैं।


 ii) आय पर आधारित पारिवारिक संरचनाएं समाजीकरण को कैसे प्रभावित करती हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।


★ अभिभावक-बच्चे संबंध: -



 बच्चे का मानव संपर्क में आना परिवार की स्थापना है। एस / वह अपनी माँ और परिवार के अन्य सदस्यों को जवाब देना सीखता है। इन प्रारंभिक अंतःक्रियाओं की गुणवत्ता के आधार पर, वह उम्मीद से या अनिश्चितता के साथ घरों से बाहर के लोगों से संबंधित है। यदि परिवार के सदस्य एक-दूसरे की कंपनी का आनंद लेते हैं, तो बहुत समय एक साथ काम करने में बिताते हैं और घर और बाहर के लोगों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं, बच्चा समान दृष्टिकोणों का पालन करता है।


 इसके विपरीत, यदि पारिवारिक बातचीत दिन-प्रतिदिन के जीवन के सांसारिक व्यवसाय तक ही सीमित है या परस्पर विरोधी स्थिति होने पर ही बातचीत होती है, तो बच्चा मन के सकारात्मक फ्रेम के साथ दूसरों के साथ बातचीत करने के लिए तत्पर नहीं होता है। संवेदनशील और उत्तरदायी पेरेंटिंग का प्रभाव माता-पिता के बच्चे के संबंध की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।



 निम्नलिखित मामले को पढ़ें:


 केस 2: सोनिया एक 10 वर्षीय लड़की है जो सभी पुरुषों से बहुत डरती है। वह पुरुष शिक्षकों के सामने बहुत सुस्त हो जाती है लेकिन अन्यथा अपने दोस्तों और अन्य महिला कर्मचारियों के साथ बहुत सक्रिय रहती है। उसके साथ एक विस्तृत साक्षात्कार में पता चला कि उसके पास एक अपमानजनक शराबी पिता था जो हर बार उसे चिल्लाता था। वह एक हटकर व्यक्तित्व बन गई थी, जो शायद ही कभी उसके मन की बात कहती थी।

★ बाल विकास पर विभिन्न पालन शैली का प्रभाव -: -



 पेरेंटिंग शैली से तात्पर्य है कि जिस तरह से माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश करते हैं, जिस तरह से लोग पेरेंटिंग करते हैं, वह उनके बच्चे के सामाजिक-आर्थिक विकास और विकास को प्रभावित करता है।  ये पेरेंटिंग शैली एक ऐसे अनुशासन के साथ मेल खाती हैं जिसका एक अभिभावक आमतौर पर अपने बच्चों के साथ प्रयोग करता है।



 ♦ आधिकारिक


 बहुत से लोग सोचते हैं कि उच्च स्तर की भागीदारी और संतुलित नियंत्रण के कारण आधिकारिक पेरेंटिंग पेरेंटिंग के लिए अधिक सफल दृष्टिकोण है।  इस तरह के माता-पिता अपने बच्चों के लिए यथार्थवादी उम्मीदों और बातचीत के लगातार पैटर्न सेट करते हैं और उन्हें उचित / प्राकृतिक परिणाम भी प्रदान करते हैं।  प्राकृतिक परिणाम बच्चे के व्यवहार के स्वाभाविक परिणाम के रूप में होते हैं जिनमें किसी भी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती है।


 जैसे।, यदि कोई बच्चा गर्म चूल्हे को छूता है और गर्मी से जल जाता है, तो जलन एक स्वाभाविक परिणाम है।  आधिकारिक माता-पिता हमेशा गर्मजोशी और स्नेह व्यक्त करते हैं।  वे बच्चे के दृष्टिकोण को सुनने के लिए धैर्य रखते हैं और पर्याप्त रूप से स्वतंत्रता भी देते हैं।  वे बच्चों के परामर्श से व्यवहार के नियमों को ठीक करते हैं, नियमों और विनियमों का कारण बताते हैं और बच्चों को लगता है कि यह उनका अपना निर्णय है और आपसी सहमति से लचीलेपन की अनुमति देता है।


 शोधों से पता चला है कि आधिकारिक शैली का पालन करने वाले माता-पिता उन बच्चों की परवरिश करते हैं जो आत्मसम्मान पर उच्च होते हैं, दूसरों की तुलना में बेहतर सामाजिक कौशल रखते हैं और वयस्कों के रूप में अधिक सामाजिक रूप से परिपक्व होते हैं।  लेकिन पालन-पोषण की शैली संस्कृति से संस्कृति में भिन्न होती है और कई सांस्कृतिक सेटिंग्स में आधिकारिक शैली उपयुक्त नहीं हो सकती है।


 आधिकारिक 


 अधिनायकवादी शैली में, माता-पिता सख्त होते हैं और अपने बच्चों से निर्विवाद अनुपालन के साथ अनुरूपता और आज्ञाकारिता चाहते हैं।  ऐसे माता-पिता अपने बच्चों के व्यवहार और निर्णयों पर बड़ी मात्रा में नियंत्रण रखते हैं।  वे अपने बच्चों के लिए, कठोर नियमों का पालन करेंगे और यदि वे विद्रोही आवाज उठाएंगे, तो परिणाम बहुत गंभीर हो सकते हैं।  ऐसे घरों में बड़े होने वाले बच्चे कम आत्मसम्मान से पीड़ित होते हैं, आसानी से चिंतित हो जाते हैं और आमतौर पर व्यक्तित्व में वापस आ जाते हैं।  वे अपने माता-पिता की अस्वीकृति के डर से असामाजिक व्यवहार में संलग्न नहीं हो सकते हैं।


 गतिविधि 1


 सोनिया के मामले के बारे में अपने दोस्तों से चर्चा करें और उनकी सामाजिक सहभागिता को बेहतर बनाने के कुछ तरीके सुझाएं।

★  बाल विकास पर विभिन्न पालन-पोषण शैलियों का प्रभाव - : -



 अनुमोदक/स्वतंत्रता देनेवाला


 यह कहा जाता है कि किसी भी चीज की अति अच्छी नहीं होती है और यह अनुमित परवरिश में परिलक्षित होती है। अनुमेय माता-पिता अपने बच्चों के प्रति अधिक संवेदनशील, गर्म, प्यार और पोषण करने वाले होते हैं। ऐसे माता-पिता के बच्चों को परिणामों के लिए पूर्ण अवहेलना के साथ आवेगी होने की अधिक संभावना है। हालांकि, उनके पास उच्च आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास और अच्छे सामाजिक कौशल हो सकते हैं।



 बेपरवाह


 ऐसे माता-पिता अपने बच्चे की जरूरतों का जवाब नहीं देते हैं और अपने बच्चों की कम माँग रखते हैं। हालांकि, यह उनके अपने काम या शराब या अवसाद के साथ भागीदारी के कारण हो सकता है, आदि ऐसे माता-पिता भावनात्मक समर्थन के लिए अपने बच्चों की ओर देखते हैं और उनके बच्चों को अक्सर उनका "पालन-पोषण" करना पड़ता है। ऐसे माता-पिता के बच्चे अधिक भयभीत, चिंतित, सामाजिक रूप से पीछे हट जाते हैं, स्कूल में खराब प्रदर्शन करते हैं और मादक द्रव्यों के सेवन के जोखिम में होते हैं।



 अपनी प्रगति की जाँच करें 5


 नोट्स: (ए) नीचे दिए गए स्थान पर अपना उत्तर लिखें।


 (बी) इकाई के अंत में दिए गए एक के साथ अपने जवाब की तुलना करें।


 i) पेरेंटिंग की शैली किसी व्यक्ति की आत्म अवधारणा को कैसे आकार देती है?

★  प्रतिकूल परिस्थितियों में वृद्धि: -



 विभिन्न प्रतिकूल परिस्थितियाँ हैं जैसे कि कुपोषित वातावरण में पाले गए बच्चे, युद्ध क्षेत्र में, अनाथालयों में और यहाँ तक कि प्रवासी श्रमिकों के बच्चों के रूप में भी बड़े हो रहे हैं। आइए एक-एक करके उनकी जांच करें जो बच्चे के सामाजिक और भावनात्मक विकास को प्रभावित करता है।




 धन्यवाद!

पाठ्यक्रम , पाठ्यवस्तु एवं पाठ्यपुस्तक में अंतर और संबंध बिंदु के आधार पर स्पष्ट :




पाठ्यक्रम , पाठ्यवस्तु एवं पाठ्यपुस्तक में संबंध बिंदु के आधार पर स्पष्ट :

  •  1 ) पाठ्यक्रम के माध्यम से शिक्षण के उद्देश्यो को प्राप्त करने के लिए एक शिक्षक योजना तैयार करता है ।
  • 2 ) पाठ्यचर्या के आधार पर पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है तथा पाठ्यक्रम के आधार पर पठायपुस्त का निर्माण किया जाता है ।
  •  3 ) पाठ्यचर्या शैक्षिक उद्देशियो के सैध्दान्तिक पक्ष होते है जबकि पाठ्यक्रम एवं पाठ्यपुस्तक व्यावहर्रिक पक्ष होता है ।
  • 3 ) किसी भी राज्य या देश की पाठ्यचर्या एक ही होती है जब कि हम देख सकते है कि पाठ्यक्रम में राज्य के आधार पर अंतर देखने को मिलता है ।
  •  4 ) पाठ्यचर्या में शिक्षा के के सभी विषयों, सभी अंगों पर चर्चा की जाती है तथा साथ ही लक्ष्य भी निर्धारित किया जाता है ।
  •  5 ) पठायपुस्त का उद्देश्य पाठ्यचर्या के उद्देश्यो को प्राप्त करने में सहायक होता है ।
  •  6 ) छात्रों को प्रत्यक्ष रूप से पाठ्यचर्या की जानकारी नही होती है परन्तु छात्र पठायपुस्त और पाठ्यचर्या से जुड़े हुए होते है ।
  • उदहारण : पाठ्यक्रम को अंग्रेजी में सिलेबस कहते है । पाठ्यचर्या और पाठ्यक्रम में अंतर इतना है कि पाठ्यचर्या शिक्षा में उद्देश्यो को किस प्रकार से पढ़ाया जाए साथ ही किस प्रकार के सिद्धान्त और सामग्री काम मे लिया जाए इन सभी पर दिशा निर्देश दिया होता है साथ ही उदहारण दिया गया होता है जिसे शिक्षक व छात्र पाठ को समाज सके मानलीजिए अपने एक विषय लिया गणित अब आप यह तय करेंगे कि बालक को पहले क्या पडायजाये जैसे पहली कक्षा में गिनती कहांतक लिखाई जाए व पांच साल के बालक के लिए कहा से शुरू किया जाए इन्ही सभी का विस्तार क्रम ही पाठ्यक्रम कहलाता है।

मानवीय विविधता की प्रकृति और अवधारणा

विविधता की प्रकृति और अवधारणा:-

विविधता की अवधारणा स्वीकृति और सम्मान को शामिल करती है। इसका अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय है, और हमारे व्यक्तिगत अंतर को पहचानता है। ये नस्ल, जातीयता, लिंग, यौन अभिविन्यास, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, आयु, शारीरिक क्षमता, धार्मिक विश्वास, राजनीतिक विश्वास या अन्य विचारधाराओं के आयामों के साथ हो सकते हैं। यह एक सुरक्षित, सकारात्मक और पोषण पर्यावरण में इन अंतरों की खोज है। यह एक दूसरे को समझने और प्रत्येक व्यक्ति के भीतर निहित विविधता के समृद्ध आयामों को गले लगाने और मनाने के लिए सरल सहिष्णुता से आगे बढ़ने के बारे में है।


विविधता व्यक्तियों और समूहों द्वारा जनसांख्यिकीय और दार्शनिक मतभेदों के एक व्यापक स्पेक्ट्रम से बनाई गई वास्तविकता है। विविधता का समर्थन और रक्षा करना बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि व्यक्तियों और समूहों को पूर्वाग्रह से मुक्त करके और एक ऐसी जलवायु को बढ़ावा देकर जहां इक्विटी और आपसी सम्मान आंतरिक है, हम एक सफलता-उन्मुख, सहकारी और देखभाल करने वाले समुदाय का निर्माण करेंगे और बौद्धिक शक्ति पैदा करेंगे। अपने लोगों के तालमेल से अभिनव समाधान।


"विविधता" का अर्थ सिर्फ स्वीकार करने और / या अंतर को सहन करने से अधिक है। विविधता जागरूक प्रथाओं का एक समूह है जिसमें शामिल हैं:


  • मानवता, संस्कृतियों और प्राकृतिक पर्यावरण की अन्योन्याश्रितता को समझना और सराहना करना।
  • उन गुणों और अनुभवों के लिए पारस्परिक सम्मान का अभ्यास करना जो हमारे अपने से अलग हैं।
  • उस विविधता को समझना न केवल होने के तरीकों में शामिल है, बल्कि जानने के तरीके भी शामिल हैं;
  • यह पहचानना कि व्यक्तिगत, सांस्कृतिक और संस्थागत भेदभाव दूसरों के लिए नुकसान पैदा करने और बनाए रखने के दौरान कुछ के लिए विशेषाधिकार बनाता है और बनाए रखता है;
  • मतभेदों में गठजोड़ करना ताकि हम सभी प्रकार के भेदभाव को मिटाने के लिए मिलकर काम कर सकें।

विविधता में शामिल हैं, इसलिए, यह जानना कि उन गुणों और शर्तों से कैसे संबंधित हैं जो हमारे अपने से अलग हैं और उन समूहों के बाहर हैं जिनसे हम संबंधित हैं, फिर भी अन्य व्यक्तियों और समूहों में मौजूद हैं। इनमें शामिल हैं, लेकिन उम्र, जातीयता, वर्ग, लिंग, शारीरिक क्षमता / गुण, दौड़, यौन अभिविन्यास, साथ ही धार्मिक स्थिति, लिंग अभिव्यक्ति, शैक्षिक पृष्ठभूमि, भौगोलिक स्थिति, आय, वैवाहिक स्थिति, माता-पिता की स्थिति और काम तक सीमित नहीं हैं अनुभव। अंत में, हम स्वीकार करते हैं कि अंतर की श्रेणियां हमेशा तय नहीं होती हैं, बल्कि तरल भी हो सकती हैं, हम आत्म-पहचान के लिए व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान करते हैं, और हम मानते हैं कि कोई भी संस्कृति दूसरे से आंतरिक रूप से बेहतर नहीं है।


 मानव विविधता क्या है? मानव विविधता क्यों महत्वपूर्ण है?

 मानव विविधता शब्द का अर्थ विभिन्न वस्तुओं, भिन्नता, असमानता या बहुलता की विविधता, अनंतता या बहुतायत के लिए लोगों, जानवरों या चीजों के बीच अंतर या अंतर को दर्शाता है।


 विविधता शब्द लैटिन मूल की विविधताओं का है।(The word diversity is of variations of Latin origin.)

सामूहिक भिन्नताओं को निरूपित करने वाली शब्द विविधता, ताकि लोगों के समूहों के बीच असमानताओं का पता लगाया जा सके: भौगोलिक, धार्मिक, भाषाई, आदि। ये सभी अंतर सामूहिक मतभेदों और विभिन्न समूहों और संस्कृति के प्रसार को बनाए रखते हैं। भारतीय समाज में एकता के साथ-साथ विविधता भी है। भारत में मुख्य रूप से चार प्रकार की विविधताएँ हैं, जो हैं: 1. क्षेत्रीय विविधताएँ 2. भाषाई विविधता 3. धार्मिक विविधताएं और 4. सांस्कृतिक और जातीय विविधताएं 1. क्षेत्रीय विविधताएं: भारत एक विशाल देश है। उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में हिंद महासागर तक, ऊंचाई, तापमान, वनस्पतियों और जीवों में काफी अंतर हैं। भारत में हर प्रकार के जलवायु, तापमान और भौतिक विन्यास की अवधारणा है। राजस्थन की चिलचिलाती गर्मी और हिमालय की कड़कड़ाती ठंड है, वर्षा हर साल 1200 से 7.5 ems तक होती है। इसका परिणाम यह है कि भारत के पास दुनिया के कुछ सबसे सूखे और सूखे क्षेत्र हैं। भारत के पास शुष्क और उपजाऊ नदी की भूमि, नंगे और पहाड़ी रास्ते और शानदार खुले मैदान भी हैं। 2. भाषाई विविधता: भाषा विविधता का एक अन्य स्रोत है। यह सामूहिक पहचान और यहां तक ​​कि संघर्षों में भी योगदान देता है। भारतीय संविधान ने अपने आधिकारिक उद्देश्यों के लिए 8 वीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता दी है, लेकिन देश में 1652 भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं। ये भाषाएं पांच भाषाई परिवारों से संबंधित हैं; इंडो आर्यन भाषाएँ, द्रविड़ भाषाएँ, आस्ट्रिक भाषाएँ, टिबेटो - बर्मन भाषाएँ और यूरोपीय भाषाएँ। इससे भाषा की योजना और प्रचार मुश्किल हो जाता है। लेकिन मातृभाषा मजबूत भावनाओं और प्रतिक्रियाओं को जन्म देती है। इस बहुलता के परिणामस्वरूप, काफी द्विभाषावाद है और प्रशासन को एक से अधिक भाषाओं का उपयोग करना पड़ता है। भाषाई विविधता ने प्रशासनिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना किया है। इसके अलावा विभिन्न मातृभाषा वाले लोगों के लिए, संचार एक समस्या बन जाता है। 3. धार्मिक विविधता: भारत में 8 प्रमुख धार्मिक समुदाय हैं। मुस्लिम, ईसाई और सिख के बाद हिंदू बहुसंख्यक हैं। बौद्ध, जैन, पारसी और यहूदी 1% से कम हैं। प्रत्येक प्रमुख धर्म को आगे धार्मिक दस्तावेजों, संप्रदायों और पंथों की पंक्तियों के साथ विभाजित किया गया है। हिंदुओं को मुख्य रूप से शैव, वैष्णव और शक्ति (शिव, विष्णु और मातृ देवी - शक्ति के उपासक) और अन्य छोटे संप्रदायों में विभाजित किया गया है। भले ही उन्होंने भारत में जन्म लिया, लेकिन जैन धर्म और बौद्ध धर्म दोनों ने भारत में अपनी पकड़ खो दी है और कुछ छोटी जेबों तक ही सीमित हैं। दिगानिबर और श्वेतांबर जैनियों के दो विभाग हैं। भारतीय मुसलमानों को मोटे तौर पर शिया और सुन्नियों में विभाजित किया गया है। रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट के अलावा भारतीय ईसाइयों के पास अन्य छोटे क्षेत्रीय भाज्य चर्च हैं। सिख धर्म एक संश्लेषित धर्म है जो समतावाद पर जोर देता है। पारस भले ही एक छोटे समुदाय ने भारत के औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो। यहूदियों के पास एक सफेद और काला विभाजन है। 4. सांस्कृतिक और जातीय विविधता: विविधता का एक अन्य महत्वपूर्ण स्रोत सांस्कृतिक विविधता है। उनकी सामाजिक आदतों में लोग काफी भिन्न हैं। सांस्कृतिक अंतर राज्य से अलग-अलग होता है। रक्त, उपभेदों, संस्कृति, और जीवन के तरीकों के परस्पर विरोधी और अलग-अलग रंग, चरित्र, आचरण, विश्वास नैतिकता, भोजन, पोशाक, शिष्टाचार, सामाजिक मानदंड, सामाजिक-धार्मिक रीति-रिवाज, अनुष्ठान और आदि सांस्कृतिक और जातीय विविधता का कारण बनते हैं। देश। डॉ। आरके मुखर्जी ने ठीक ही कहा कि "भारत पंथ और रीति-रिवाजों, पंथों और संस्कृति, विश्वासों और जीभ, नस्लीय प्रकार और सामाजिक प्रणालियों का एक संग्रहालय है"।

 सांस्कृतिक विविधता


 सांस्कृतिक विविधता या संस्कृतियों की विविधता दुनिया भर में और कुछ क्षेत्रों में विभिन्न सह-अस्तित्व संस्कृतियों की बहुलता, सह-अस्तित्व और बातचीत को दर्शाती है, और एकजुट होने और विभेद न करने के उद्देश्य से भिन्नता और सांस्कृतिक समृद्धि की डिग्री को संबोधित करती है।


 सांस्कृतिक विविधता मानवता की साझी विरासत का हिस्सा है और कई राज्य और संगठन मौजूदा संस्कृतियों को संरक्षित करने और बढ़ावा देने और परस्पर संवाद, समझ और अन्य को बढ़ावा देने के लिए इससे लड़ते हैं।


 प्रत्येक संस्कृति अलग है, प्रत्येक व्यक्ति की सांस्कृतिक पहचान और सांस्कृतिक विविधता होनी चाहिए, इस अर्थ में, भाषा प्रबंधन, कला, संगीत, धार्मिक विश्वास, सामाजिक संरचना, कृषि, भूमि प्रबंधन प्रथाओं और फसल चयन, आहार, की विविधता से प्रकट होता है और मानव समाज की अन्य सभी विशेषताएँ।


 दुनिया में मौजूद विभिन्न सांस्कृतिक समूहों के बीच एक स्वस्थ संतुलन होना चाहिए ताकि सभी संस्कृतियाँ अपना बचाव कर सकें, अपनी रक्षा कर सकें, सहअस्तित्व कर सकें और विकास और शांति, गरीबी और सामाजिक एकता को कम करने में योगदान कर सकें।


 जब एक ही क्षेत्र में कई अलग-अलग संस्कृतियां सह-अस्तित्व में हैं, तो हम बहुसंस्कृतिवाद की बात करते हैं, और जरूरी नहीं कि विभिन्न सांस्कृतिक समूहों के बीच समतावादी संबंध हों, बल्कि एक स्वस्थ संपर्क और दूसरे को अलग पहचानना।


 इस मुद्दे के संबंध में, ऐसे प्रमाण हैं जो वैश्वीकरण को सांस्कृतिक विविधता के संरक्षण के लिए एक खतरा मानते हैं, क्योंकि वे समाज के पारंपरिक और विशिष्ट रीति-रिवाजों के नुकसान का श्रेय देते हैं, सार्वभौमिक और अवैयक्तिक विशेषताओं की स्थापना करते हैं।


 संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने 21 मई को "विश्व विविधता के लिए सांस्कृतिक विविधता और विकास के लिए विश्व दिवस" ​​के रूप में नामित किया है।


 अधिक जानकारी के लिए, लेख को सांस्कृतिक विविधता देखें।


 मानव विविधता के प्रकार

 जातीय विविधता


 जातीय विविधता एक ही समाज में विभिन्न लोगों का मिलन है, और प्रत्येक के अपने रीति-रिवाज, भाषा, त्वचा, धर्म, पारंपरिक त्योहार, कपड़े, भोजन हैं।


 भाषिक विभिन्नता


 भाषाई विविधता का तात्पर्य भौगोलिक स्थान के भीतर भाषाओं की बहुलता के अस्तित्व से है। यही है, यह भाषाई विविधता है जो एक ही समुदाय के भीतर विभिन्न भाषाओं के अस्तित्व को दर्शाता है और वे एक ही भौगोलिक स्थान साझा करते हैं।


 ऐसा कारक जो किसी क्षेत्र, देश या भौगोलिक क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता को मापता है, भाषाई विविधता है, जो किसी देश या किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में मौजूद भाषाओं की संख्या को मापता है।


 जिन क्षेत्रों में ऐतिहासिक रूप से व्यापार हुआ है, वहां राजनीतिक एकता, प्रवासन, उपनिवेशीकरण और सांस्कृतिक प्रभाव कम भाषाई विविधता है, और ग्रह के अलग-थलग क्षेत्रों में जहां संस्कृतियों का कम प्रसार हुआ है और लोगों के छोटे समूहों में अधिक भाषाई विविधता है।


 अधिक जानकारी के लिए, भाषाई और भाषाई विविधता पर लेख देखें।


 जैविक विविधता


 जैविक विविधता या जैव विविधता पृथ्वी पर मौजूद जीवित चीजों की विशाल विविधता को संदर्भित करती है, दोनों पशु और पौधों की प्रजातियां, और उनके पर्यावरण और प्राकृतिक पैटर्न जो इसे बनाते हैं, जो प्राकृतिक और प्रक्रियाओं के प्रभाव से विकास के परिणामस्वरूप होते हैं। मानवीय गतिविधियाँ।


 जैव विविधता शब्द वॉल्टर जी रोसेन द्वारा सितंबर 1986 में इस विषय पर एक सम्मेलन में बनाया गया था: "राष्ट्रीय विविधता पर राष्ट्रीय विविधता।"


 जैव विविधता में प्रत्येक प्रजाति के आनुवंशिक अंतर और पारिस्थितिक तंत्र की विविधता भी शामिल है, और ये जीवन के कई रूपों के संयोजन की अनुमति देते हैं। जीवन के विभिन्न रूप एक दूसरे के साथ और पर्यावरण के बाकी हिस्सों के साथ बातचीत करते हैं, ग्रह पर जीवन और जीविका की गारंटी देते हैं।


 जैव विविधता, जीवमंडल में संतुलन और कल्याण की गारंटी देती है, और इसलिए, इस विविधता के भाग और उत्पाद के रूप में, मनुष्य और उसकी संस्कृति को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह संरक्षित, रखरखाव और सम्मानित है। 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस है।


 जैव विविधता प्रत्येक प्रजाति और प्रत्येक व्यक्ति के जीवों में एक निरंतर विकसित होती प्रणाली है, इसलिए, यह स्थिर नहीं है, यह जानते हुए कि पृथ्वी पर मौजूद 99% प्रजातियां पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं।


 जैव विविधता उष्णकटिबंधीय में अधिक समृद्ध है, यह पृथ्वी पर समान रूप से वितरित नहीं है, और ध्रुवीय क्षेत्रों के करीब बड़ी आबादी में कम प्रजातियां हैं। जलवायु, मिट्टी, ऊंचाई और अन्य प्रजातियों के आधार पर, वनस्पतियों और जीवों में भिन्नता होती है।


 जैव विविधता के भीतर, आनुवांशिक विविधता है, जो विभिन्न प्रजातियों के व्यक्तियों के बीच विभिन्न प्रजातियों के अध्ययन के लिए समर्पित है जो एक ही प्रजाति का हिस्सा हैं, और उनमें से प्रत्येक पर्यावरण के साथ बातचीत करता है।


 पारिस्थितिकी में, पारिस्थितिक विविधता जैव विविधता की महान शाखाओं में से एक है और एक ही पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर मौजूद प्रजातियों की विविधता के अध्ययन के लिए समर्पित है।


 एक पारिस्थितिकी तंत्र की विविधता तीन कारकों पर निर्भर करती है, मौजूद प्रजातियों की संख्या, परिदृश्य की संरचना और विभिन्न प्रजातियों के बीच मौजूद बातचीत, उनके बीच जनसांख्यिकीय संतुलन तक पहुंचती है।


 कोलेफ के अनुसार, प्रजातियों की विविधता को कम से कम तीन स्तरों में वर्गीकृत किया जाता है: स्थानीय विविधता या अल्फा विविधता (α), क्षेत्रों या बीटा विविधता (β) और क्षेत्रीय विविधता या गामा विविधता (γ) के बीच विविधता का अंतर।



 यौन विविधता एक अभिव्यक्ति है जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के यौन अभिविन्यास और लिंग पहचान के लिए किया जाता है।


 यौन अभिविन्यास उस लिंग को संदर्भित करता है जिससे व्यक्ति आकर्षित होता है। सामान्य शब्दों में, इसे आम तौर पर वर्गीकृत किया जाता है:


 विषमलैंगिकता: जो लोग विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित होते हैं।

 समलैंगिकता: जो लोग एक ही लिंग के प्रति आकर्षित होते हैं।

 उभयलिंगीपन: जो लोग दोनों लिंगों के प्रति आकर्षित होते हैं।

 लिंग की पहचान पुरुष या महिला के साथ संबंधित व्यक्ति की भावना को संदर्भित करती है। निम्न प्रकार ज्ञात हैं:


  •  सिजेंडर: जो लोग अपने जैविक सेक्स से संतुष्ट हैं और संबंधित लिंग के अनुसार व्यवहार करते हैं (यह यौन अभिविन्यास से स्वतंत्र है)।
  •  ट्रांसजेंडर: जो लोग असाइन किए गए लिंग के साथ पहचान नहीं करते हैं, अर्थात, अपने जैविक लिंग को अस्वीकार किए बिना, वे विपरीत लिंग के साथ मनोवैज्ञानिक रूप से पहचाने जाते हैं और ऐसा कार्य करते हैं।
  •  ट्रांससेक्सुअल: वे लोग हैं जो अपने जैविक लिंग के साथ पहचान नहीं करते हैं और इसलिए, इसे संशोधित करने के लिए सर्जिकल और / या हार्मोनल हस्तक्षेप पर जाते हैं।
  •  तीसरा लिंग: वह शब्द जो उन लोगों को संदर्भित करता है जिन्हें पुरुष या महिला के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है, जो कि द्विआधारी सेक्स की अवधारणा के अनुरूप नहीं है।

 यौन विविधता के लिए विश्व दिवस 28 जून है।




 क्रियात्मक विविधता


 कार्यात्मक विविधता समाज की सभी व्यक्तियों के लिए समान रूप से या एक निश्चित सामाजिक समूह की एक घटना, विशेषता या तथ्य है, यह उल्लेख करने के लिए कि उनमें से प्रत्येक में कुछ विशिष्ट क्षमताएं हैं। बाकी विविधताओं को देखें, कार्यात्मक विविधता को इस तरह से प्रबंधित किया जाना चाहिए कि बहिष्करण या भेदभाव नहीं होता है, या ठीक किया जाता है, उदाहरण के लिए, विकलांग, अमान्य या अक्षम व्यक्ति के प्रति। इन अंतिम शब्दों का एक नकारात्मक अर्थ है और यही कारण है कि अभिव्यक्ति कार्यात्मक विविधता यह कहने के लिए बनाई गई थी कि हम सभी की अलग और विविध क्षमताएं हैं, और किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है। कार्यात्मक विविधता शब्द का उपयोग विकलांगता, विकलांगता या बाधा के वैकल्पिक शब्द के रूप में भी किया जाता है।

संप्रेषण की परिभाषाएं(Communication Definition and Types In Hindi)

  संप्रेषण की परिभाषाएं(Communication Definition and Types In Hindi) संप्रेषण का अर्थ ‘एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को सूचनाओं एवं संदेशो...