गर्भावस्था ('गर्भधारण से जन्म तक)
गर्भावस्था को तीन चरणों में बाँटा गया है-
I. बीजावस्था/भूणिक/डिम्बावस्था - यह अवस्था 0 से 2 सप्ताह तक रहती है। इस अवस्था में बालक की आकृति एक बीज के समान और अण्डानुमा आकृति की होती है। इसे युक्ता (Zygote) कहते हैं। योक नामक पदार्थ को बालक आहार के रूप में ग्रहण करता है, लगभग 15 दिन में योक एवं युक्ता समाप्त हो जाते हैं और वह गर्भाशय की दीवार से चिपक जाता है तथा माँ के शरीर से आहार ग्रहण करता है और बालक की भ्रूणावस्था प्रारम्भ हो जाती है।
II. भ्रूणावस्था/भ्रूणीय/पिण्डावस्था:- यह अवस्था 2 सप्ताह से लेकर दूसरे माह के अन्त तक रहती है अर्थात् 8 सप्ताह तक रहती है। ध्यान रहे यह अवस्था 8 सप्ताह तक रहती है, जिसमें शिशु का विकास सर्वाधिक तीव्र गति से होता है और इसी अवस्था में शिशु की श्वसन नली की शाखाएँ, फेफड़े, यकृत, अग्नाशय, थायराइड ग्रन्थि, लार ग्रन्थि आदि का निर्माण शुरू हो जाता है। इस अवस्था में तीन परतों के द्वारा बालक का शारीरिक निर्माण होता है-
एक्टोडर्म- इसे बाहरी परत भी कहते हैं एवं इसके द्वारा त्वचा, बाल इत्यादि अंगों का निर्माण होता है।
मीसोडर्म- इसके द्वारा बालक की मांसपेशियों का निर्माण होता है।
एण्डोडर्म-इसके द्वारा बालक का मस्तिष्क, हृदय इत्यादि अंगों का निर्माण होता है।
III. गर्भस्थ शिशु की अवस्था - यह अवस्था 8 सप्ताह से लेकर जन्म तक रहती है अर्थात् 2 माह से 9 माह तक रहती है। ध्यान रहे गर्भावस्था में शिशु को पीड़ा का अनुभव नहीं होता है और उसका विकास सिर से पैर की ओर होता है। जन्म से पूर्व शिशु को गन्ध का अनुभव नहीं होता है लेकिन गर्भावस्था के तीसरे माह में शिशु की स्वाद इन्द्रियों (मुख, नाक, कान, गला आदि) का विकास प्रारम्भ हो जाता है।
गर्भावस्था की अवधि सामान्यतया 270-280 दिन या 9 माह 10 दिन की होती है।
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