M.ED.,B.ED.,D.EL.ED.

शिक्षण अधिगम गतिविधियाँ तथा सामग्री ( Teaching Learning Activities and Materials ) S-7: गणित का शिक्षण शास्त्र -2 (unit-1) बिहार D.El.Ed

‘ गणित ‘ मानव हेतु बौद्धिक चिन्तन का विषय रहा है । यह मस्तिष्क में नई रचनात्मक कल्पनाएँ उत्पन्न करता है एवं विचारों को सही दिशा प्रदान करता है । गणित का अमूर्त तत्त्वों , संकेतों और कल्पनाओं से अधिक सम्बन्ध रहता है , जिसके कारण गणित सीखना कठिन समझा जाता रहा है । सभी गणितीय ज्ञान केवल मौखिक वर्णन कर देने से स्पष्ट नहीं होता है । इसे स्पष्ट करने के लिए मूर्त वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है । मूर्त वस्तुओं की सहायता से अमूर्त अवधारणाओं को आसानी से समझा जा सकता है । इन वस्तुओं की उपलब्धता स्थानीय परिवेश में भी संभव है , जिसे शिक्षण अधिगम सामग्री के रूप में प्रयोग किया जाता है ।

किसी शिक्षण बिन्दु या अवधारणा की समझ स्पष्ट करने के लिए जिन सामग्रियों का उपयोग करते हैं , उसे शिक्षण अधिगम सामग्री ( TLM ) कहते हैं । स्थानीय परिवेश में उपलब्ध सामग्री से आशय है – विद्यालय के अन्दर उपलब्ध सामग्री एवं विद्यालय के बाहर उपलब्ध सामग्री । पहले विद्यालय के अन्दर उपलब्ध सामग्रियों की सूची बनायेंगे । संभावित सामग्रियाँ – ईंट , दीवार , छत , कमरा , श्यामपट्ट , पुस्तक , घंटी , कंकड़ , झिटकी , फूल – पत्ते – चोक आदि हो सकते हैं । इन सामग्रियों को शिक्षण अधिगम सामग्री के रूप में प्रयोग कर गणितीय अवधारणाओं को स्पष्ट किया जा सकता है , जिससे बच्चे सहजता से अवधारणाओं को समझेंगे । वस्तुओं को शिक्षण अधिगम सामग्री के ( T.L.M. ) रूप में उपयोग करना उदाहरण के तौर पर आप बच्चों में संख्याओं की समझ विकसित करने हेतु यह गतिविधि करवाइये । आप बच्चों के सहयोग से विद्यालय परिवेश से रबर इकट्ठा कीजिए । इन रबरों को निम्नांकित समूह में रखिए एवं संख्यांक को निरूपित कीजिए । संख्यांक को कागज के टुकड़ों पर अंकित कीजिए । किसी अन्य वस्तु के द्वारा भी यह गतिविधि करवाई जा सकती है ।

बोर्ड के प्रकार ( Types of Board )

( 1 ) ज्यामितीय बोर्ड

( 2 ) छिपी वस्तु पहचानो ( मरीचिका बोर्ड )

( 3 ) पेंटिंग बोर्ड

ये बोर्ड विद्यालय में दीवारों पर या दरवाजों पर पेन्ट करवाए जा सकते हैं और बच्चों को इस पर कार्य करवाया जा सकता है । BaLA से यह फायदा होगा कि वे जब चाहें इस पर कार्य कर सकते हैं । इसी तरह डॉट बोर्ड व ग्रिड बोर्ड को भी हम दीवारों , दरवाजों या फर्शों पर भी पेन्ट करवा सकते हैं ।

सीखने के संसाधन के रूप में गणित की पाठ्य – पुस्तक एवं पुस्तकालय ( Mathematics Text – Book and Library as a Learning Resources )

पाठ्यपुस्तक को सदैव विद्यालयी शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण भाग समझा जाता है । एक अध्यापक शायद पाठ्यक्रम को नहीं देखता हो किन्तु पाठ्यपुस्तक के बिना वह पढ़ा नहीं सकता है । एक पाठ्यपुस्तक का विकास विषय विशेषज्ञों और अनुभवी अध्यापकों द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार किसी एक कक्षा के लिए करते हैं । पाठ्यपुस्तक के विषयवस्तु एवं उससे संबंधित अवधारणाओं को एक निश्चित क्रम के अनुसार व पाठ्यक्रम के अनुरूप उन विशेषज्ञ समूह के द्वारा व्यवस्थित किया जाता है पाठ्यपुस्तक का भी विकास करते हैं । इसलिए पाठ्यपुस्तक को विद्यार्थियों , अध्यापकों , अभिभावकों एवं हितधारकों द्वारा विभिन्न विषयों के विद्यालय पाठ्यक्रम के समग्र अनुभव के रूप में देखा जाता है । चूंकि पाठ्यपुस्तक शिक्षण और अधिगम में सहायक होता है इसे सबसे उपयुक्त शिक्षण अधिगम सामग्री समझा जाता है ।

अध्यापक के रूप में हम प्रायः पाठ्यपुस्तक का अनुसारण विषयवस्तु के अनुरूप एवं पाठों के क्रमानुसार शिक्षण कार्य करते हैं तथा पाठ्यपुस्तक के अंत में दिये गये अभ्यास को पूरा करने के लिए कहते हैं । विद्यार्थियों के प्रदर्शन का मूल्यांकन पाठ्यपुस्तक के विषयवस्तु के आधार पर निर्मित परीक्षण पत्र के द्वारा किया जाता है । यह कहना गलत न होगा कि विद्यालय की शैक्षणिक क्रियाकलाप पूर्ण रूप से निर्धारित पाठ्यपुस्तक के विषयवस्तु पर आधारित होता है । पाठ्यपुस्तक को शिक्षण अधिगम के लिए आधारभूत सामग्री के रूप में पहचाना जाता हैं।

बिहार राज्य ने गणित की पाठ्यपुस्तकों का निर्माण राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा 2005 और बिहार पाठ्यक्रम रूपरेखा 2008 के सिफारिशों के अनुसार किया है । इन पाठ्यपुस्तकों को ठीक प्रकार से उपयोग किया जाये तो यह अधिगम हेतु निम्नांकित विशेषताओं के कारण एक उत्तम स्रोत हो सकता है –

• राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा 2005 तथा बिहार पाठ्यक्रम रूपरेखा 2008 के सिफारिशों के अनुसार पाठ्यपुस्तक का निर्माण , कक्षाकक्ष के अन्दर व बाहर विद्यार्थियों और अध्यापकों के लिए क्रियाकलापों को व्यवस्थित रूप से समावेश करके किया गया है । ये सब अध्यापकों और विद्यार्थियों हेतु अधिगम क्रियाकलापों का आयोजन करने के अवसर उपलब्ध कराता है ।

• विषय वस्तु से सम्बन्धित अवधारणाओं को पाठ्यपुस्तक में व्यापक रूप से व्यवस्थित किया जाता है जो कि पाठ को पढ़ाने के लिए रूपरेखा तैयार करने में नये विचारों को जन्म देता है । एक कम कल्पनाशील अध्यापक शायद पाठ्यपुस्तक में दिये गये उदाहरणों का अनुसरण करके कक्षा में शिक्षण कार्य करें किन्तु एक अधिक कल्पनाशील अध्यापक पाठ्यपुस्तक के उदाहरणों से प्रेरणा लेकर कई वैकल्पिक शिक्षण अधिगम क्रियाकलापों का सृजन कर सकता है जिससे विषय – वस्तु के अवधारणाओं को रुचिपूर्वक व अर्थपूर्ण तरीके से वह विद्यार्थियों को समझा सकता है ।

• अवधारणाओं को कई तरह के क्रियाकलापों / माध्यमों , जैसे गाना , कविता , कहानी , पहेली और चर्चा से प्रस्तुत किया गया है । इसके कारण बच्चे सीखने में अधिक रुचि लेते हैं । पाठ्यपुस्तक में

प्रस्तुत सामग्रियों के आधार पर आप अपने वातावरण , परिवेश में उपलब्ध सामग्रियों का इस्तेमाल करके अधिगम क्रियाकलाप कम खर्च व प्रयास से तैयार कर सकते हैं ।

• सिखायी गयी अवधारणाओं को सुदृढ़ बनाने हेतु विद्यार्थियों के अभ्यास के लिए क्रियाकलाप दिया गया है । इससे विद्यार्थियों के अभ्यास के लिए नये क्रियाकलापों का सृजन करने के लिए नये विचार उपलब्ध कराता है । इस संदर्भ में पाठ्यपुस्तक एक उत्कृष्ट शिक्षण अधिगम सामग्री है ।

• नई पाठ्यपुस्तक का निर्माण तथ्यों पर आधारित होने के साथ – साथ विद्यार्थियों के लिए चर्चा करने हेतु अवसर प्रदान करता है । उदाहरण के लिए अवधारणाओं और क्रियाकलापों समस्याओं को समझने व अभ्यास करने के लिए स्थान दिया गया है जिससे बच्चों में चिन्तनात्मक सोच का विकास हो तथा छोटे समूह में कार्य करने के लिए प्रेरित हो ।

• पाठ्यपुस्तक में दिये गये अभ्यासों व क्रियाकलापों का उपयोग विद्यार्थियों के अर्जित ज्ञान का मूल्यांकन करने के लिए किया जा सकता है । ये अभ्यास आपको कई तरह के परीक्षण आइटम तैयार करने में सहायक सिद्ध होंगे जिसका उपयोग आप इकाई परीक्षण और अन्य मूल्यांकन परिस्थितियों में कर सकते हैं ।

प्रश्न – जिस पाठ्यपुस्तक का उपयोग आप कर रहे हैं उसमें से एक विषयवस्तु का चयन करके उसे कक्षा में पढ़ाने के लिए जिन क्रियाकलापों व सामग्रियों का उपयोग आप करेंगे उनकी एक सूची बनायें । राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा 2005 के अनुसार , किसी भी पाठ्यपुस्तक का प्रयोग एक संरचनात्मक समझ विकसित करने के लिए लिखित विचारों , वस्तुओं एवं व्यक्तियों के सक्रिय भागीदारी के द्वारा किया जा सकता है ।

गणित पुस्तकालय में कई विषयों से सम्बन्धित बहुत – सी पठनीय सामग्री उपलब्ध होती है जिसका उपयोग सहायक शिक्षण सामग्री के रूप में उपयोग किया जा सकता है । आपको अपने विद्यालय के विद्यार्थियों को पुस्तकालय से पुस्तकें प्राप्त करने हेतु योजना बनाने की आवश्यकता है । छुट्टी के दिनों में भी विद्यार्थियों को पुस्तकालय की पुस्तकें उपलब्ध करायें । जिससे विद्यार्थियों में पढ़ने की प्रवृत्ति का विकास होगा साथ – ही – साथ उन्हें संदर्भ सामग्री जैसे एटलस , शब्दकोष , इनसाइक्लोपीडिया या विषयविशेष से सम्बन्धित आलेख आदि | प्राप्त करने का लाभ मिलेगा ।

गणित कोना एवं प्रयोगशाला ( Mathematics Corner and Laboratory )

गणित विषय को कठिन माना जाता है और कहा जाता है कि यह केवल उच्च मानसिक योग्यता वाले विद्यार्थियों के पढ़ने के लिए ही है । यह बच्चों में डर उत्पन्न करता है जो अधिगम में बाधा उत्पन्न करता है तथा बच्चों की उपलब्धियों पर विपरीत प्रभाव डालता है । लेकिन वास्तव में , विद्यालय में उचित माहौल के जरिए गणित को सभी बच्चे को सिखाया जा सकता है ।

गणित को प्रसन्नता , हर्ष , रुचि और खुशी के भाव से सिखाए जाने की आवश्यकता है । विषय में रुचि उत्पन्न करने के लिए जहाँ तक संभव हो इसे दैनिक जीवन की परिस्थितियों से जोड़ा जाना चाहिए । गणितीय अवधारणाओं का विकास केवल सैद्धान्तिक जानकारी देने और पाठ्यपुस्तक में दी गई समस्याओं को हल करने के द्वारा ही संभव नहीं है इसके साथ – साथ मूर्त अनुभवों पर आधारित गतिविधियों को कराया जाना आवश्यक है । शिक्षार्थी को बहुत – से गणितीय तथ्यों को बताया जाता है , किन्तु यह कभी – कभी ही बताया जाता है जि |

वास्तव में गणितीय प्रक्रिया क्या है एवं इसे कैसे लागू किया जाना चाहिए । गणितीय शिक्षण को बच्चों में अवधारणात्मक स्पष्टता के जरिए किया जाना आवश्यक है न कि केवल सैद्धान्तिक सूचनाएँ प्रदान करवे । जिन्हें बच्चा केवल नोटबुक पर दर्ज करता रहता है तथा रटकर परीक्षाओं में लिख देता है । इसके लिए विद्यालय में गणित को सही तरीके से सिखाने की आवश्यकता है जिसमें गणित कोना तथा गणित प्रयोगशाला बहुत सहायता करती है । गणित प्रयोगशाला ऐसा स्थान है जहाँ बच्चे विविध गतिविधियों एवं सामग्री के जरिए अधिगम करते हैं तथा कई गणितीय अवधारणाओं की खोज करते हैं , विविध गणितीय तथ्यों का सत्यापन करते हैं एवं उन्हें प्रमाणित करते हैं ।

गणित सीखने – सिखाने की प्रक्रिया में गणित प्रयोगशाला , सैद्धान्तिक ज्ञान तथा प्रयोगात्मक कार्य को एकीकृत करने में मदद करती है । यहाँ बच्चे विविध गतिविधियों के जरिए हस्त कौशलों द्वारा अनुभव करते हैं । गणित प्रयोगशाला , गणित की विभिन्न शाखाओं में गणितीय जागरूकता , कौशल निर्माण , सकारात्मक अभिवृत्ति तथा करके सीखने की योग्यता विकसित करती है ।

गणित प्रयोगशाला वह स्थान है जहाँ बच्चे मूर्त वस्तुओं का प्रयोग करके बहुत – से गणित तो का सत्यापन विभिन्न मॉडलों , मापन एवं अन्य क्रियाकलापों के जरिए करते हैं । उदाहरण के लिए कक्षा आठ के बच्चों को वृत्त का क्षेत्रफल सिखाने के दौरान , क्षेत्रफल ज्ञात करने का सूत्र बता देना और श्यामपट्ट पर उसी तरह की अनेक समस्याएँ हल करवा देना परम्परागत तरीका है । शिक्षण का यह तरीका परिणाम आधारित है जो कि शिक्षार्थियों में गणनात्मक कौशलों के विकास पर केन्द्रित है । शिक्षार्थी यह जान ही नहीं पाते कि वृत्त का क्षेत्रफल ज्ञात करने का तरीका गई क्यों एवं कैसे है ? इसलिए गणित सीखने की प्रक्रिया ज्ञान की रचना हेतु अनिवार्य है तथा गणित प्रयोगशाला प्रक्रिया आधारित अधिगम में सहायता प्रदान करती है ।

गणित प्रयोगशाला का उपयोग प्राचीन तरीकों से गणित सीखने से अधिक प्रभावी है । वास्तव में अधिगम उन परिस्थितियों में अधिक प्रभावी एवं सुदृढ़ होता है जहाँ बच्चों को अपने विचार व्यक्त करने एवं पृष्ठ पोषण अवसर मिलते हैं । गणित प्रयोगशाला में गणित की अवधारणाओं को सिखाने के लिए गणित प्रयोगशाला को पाठ्यक्रम में नियमित तरीके से जोड़ा जाना आवश्यक है । गणित प्रयोगशाला कक्षा – कक्ष अधिगम प्रक्रिया की विरोधी नहीं है अपितु गणितीय अवधारणाओं को विविध गतिविधियों के जरिए सिखाने की एक विधि है जिसका उद्देश्य ज्ञान सृजन करना है । गणित प्रयोगशाला गतिविधि में शिक्षक , शिक्षार्थी , कक्षा – कक्ष , तकनीक , व्यवस्था , प्रबन्धन , परियोजना , प्रयोग शिक्षात्मक योजनाएँ सभी सम्मिलित हैं । हम गणित प्रयोगशाला को करके सीखने , अवलोकन द्वारा सीखने , अनुकरण करके सीखने , एक – दूसरे से विचार विमर्श करके सीखने का स्थान कह सकते हैं ।

गणित प्रयोगशाला के प्रयोग के निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं –

• अमूर्तता को मूर्त रूप से समझाना ।

. विद्यार्थी को स्वयं खोज के अवसर प्रदान करना ।

• विद्यार्थी में रुचि और प्रेरणा को बढ़ावा देना ।

• गणित के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति को बढ़ावा देना ।

• समस्या समाधान की योग्यता को बढ़ाना ।

• बच्चे की उसकी अपनी दर से सीखने के अवसर देना ।

• बच्चे की सव्य रूप से साझेदारी सुनिश्चित करना । गणितीय सूचनाओं का प्रदर्शन करना ।

• प्रायोगिक कार्य के द्वारा प्रयोग के लिए एक स्थान ।

• आसान पहुँच हेतु गणितीय सामग्रियों एवं संसाधनों को रखने का स्थान ।

• अमूर्तता को समाप्त करना और प्रभावी शिक्षण अधिगम को बढ़ावा देना ।

गणित प्रयोगशाला के इन लाभों के अलावा यह आशा की जाती है गणित प्रयोगशाला के प्रयोग से इसविषय की अमूर्तता को कम किया जा सकता है एवं बच्चों को इस दिशा में कार्य करने के अवसर प्रदान किया जा सकता है गणितीय अवधारणाओं के सिखाने में गणित प्रयोगशाला में की जाने वाली गतिविधियाँ निम्नलिखित ढंगों से योगदान दे सकती हैं-

• ये गतिविधियाँ बच्चों को गणितीय अवधारणाओं को मूर्त रूप से समझने में सहायता करती हैं । साथ ही यह अधिक अमूर्त चिंतनों के लिए मजबूत आधार प्रदान करती हैं ।

• ये गतिविधियाँ व्यक्तिगत रूप से कार्य करने के अवसर प्रदान करती हैं । ये बच्चों को स्वयं करके सीखने हेतु प्रेरित करती हैं साथ ही बच्चा अपनी गति से सीखने का प्रयास करता है ।

• यह गतिविधियाँ बच्चों में रुचि एवं आत्म विश्वास बढ़ाने में सहायक हैं । यह बच्चों को एक ही गतिविधि को कई बार दोहराने के अवसर प्रदान करती है । वे पुनः करके देख सकते हैं तथा समस्या एवं उसके समाधान खोजने हेतु पुनर्विचार कर सकते हैं । यह बच्चों में संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा देता है ।

• यह बच्चों में समूह में चर्चा करने , चिन्तन करने तथा अवधारणाओं के समायोजन के अवसर प्रदान करती है । . . यह बच्चों में अपने परिवेश में गणितीय अवधारणाओं के अनुप्रयोग के अवसर प्रदान करती है ।

• यह विषय के नए क्षेत्रों के लिए आधार तैयार करती है तथा नए प्रयोगों हेतु अवसर प्रदान करती है ।

• बहु – इंद्रियों के प्रयोग की वजह से बच्चे के ज्ञान में वृद्धि होती है । सापेक्ष रूप में नए रूप में गणित प्रयोगशाला को गणित कोना भी कहा जा सकता है । यह भी वास्तव में एक नया प्रत्यय है , जिस विद्यालय में गणित प्रयोगशाला नहीं है वहाँ बच्चे अपनी कक्षा के एक कोने में गणित के तथ्यों के सत्यापन के लिए सामग्री को एकत्र कर सकते हैं ।

अध्यापक किसी भी एक कोने को गणित कोने का रूप दे सकता है जहाँ वह बच्चों को कम लागत की सामग्री , परिवेश में उपलब्ध सामग्री , गणित उपकरणों का संग्रह करने हेतु प्रेरित कर सकता है । गणित कोने में गणित प्रयोगशाला की तरह सभी उपकरण नहीं रखे जा सकते हैं परन्तु आवश्यक उपकरणों का संग्रह किया जा सकता है जिनका उचित रख – रखाव और प्रबंधन आवश्यक है ।

गणित प्रयोगशाला या गणित कोने में पायी जाने वाली सामग्री या उपकरणों में बने बनाए लकड़ी / धातु / प्लास्टिक के गणित सैट , चार्ट एवं चित्र , कम्प्यूटर , श्रव्य – दृश्य अनुदेशन सामग्री जैसे प्रोजेक्टर , रेडियो , टेलीविजन , टेप रिकॉर्डर इत्यादि , ठोस ; यथार्थ रूप में या मॉडल रूप में , बुलेटिन बोर्ड , त्रिविमीय सामग्री , फिल्म स्ट्रिप , पोर्टेबल बोर्ड , अबेकस , कार्डबोर्ड्स , ग्राफिक्स , टेप मापक , कार्य पुस्तिकाएँ , ग्राफ , विविध बोर्ड , फ्लेश काई आदि हो सकते हैं ।

मनोरंजक गणित : गणितीय खेल तथा पहेलियाँ ( Fun Mathematics : Mathematical Games and Puzzles )

कभी आपने इस बात पर विचार किया है कि कुछ बच्चे गणित को नीरस एवं उबाऊ विषय समझकर पढ़ने से दूर भागते हैं , जबकि कुछ बच्चों को गणित सीखने में आनन्द मिलता है । ऐसा क्यों होता है , इसका कारण है – ‘ गणित ‘ सीखने – सिखाने की प्रक्रिया मनोरंजक रूप से करने पर आनन्द मिलता है लेकिन ऐसा नहीं होने पर गणित नीरस और उबाऊ लगता है । गणित सीखने – सिखाने की प्रक्रिया में मनोरंजन के साधन हैं – खेल , पहेलियाँ आदि ।

खेलकर सीखना ( Learning by Playing )

बच्चे खेल – खेल में काफी कुछ सीखते हैं । अत : हमें विद्यालय में ऐसे खेलों को प्रोत्साहन देना चाहिए जिससे वे खेल – खेल में सही जानकारी लें व कौशल सीखें ।

इबारती प्रश्न के रूप में पहेलियाँ

किसी पेड़ की दो टहनियों पर कुछ पक्षी बैठे हैं । पहली टहनी पर बैठे पक्षी , दूसरी टहनी पर बैठे पक्षी से बोलता है कि तुम लोग में से कोई एक पक्षी आकर मेरे टहनी पर बैठ जाओ तो दोनों टहनी पर बराबर – बराबर पक्षी हो जायेंगे । इस तरह दूसरी टहनी पर बैठे पक्षी कहता है कि तुम लोग ( पहली टहनी ) में से एक पक्षी आकर हमारी टहनी पर आकर बैठ जाए तो हमारी टहनी पर तुम्हारी टहनी पर बैठे पक्षियों की संख्या से दुगुने पक्षी हो जाएंगे । अब बतायें कि दोनों टहनियों पर कितने – कितने पक्षी बैठे थे ।

पहेलियों की सहायता से तर्क एवं अनुमान लगाने की क्षमता का विकास करना एक पेड़ पर एक चिड़िया बैठी थी । आकाश में चिड़ियों का एक झुंड उड़ते हुये जा रहा था । पेड़ पर बैठी चिड़िया ने कहा कि अरे ओ एक सौ बहनों , थक गई होंगी आ जाओ आराम कर लो । इस पर झुंड में से एक चिड़िया बोली , अरी बहन हम एक सौ नहीं हैं । यदि जितनी हम हैं उतनी और हमारी आधी , हमारी चौथाई तथा तुम मिल जाओ तो हम एक सौ हो जायेंगी । तो बताओ आकाश में कुल कितनी चिड़िया उड़ रही थीं ?

हल – अनुमान लगाने की प्रक्रिया में आप पायेंगे कि • चिड़ियों का आधा एवं चौथाई होना है तो कुल चिड़ियों की संख्या 4 से विभाजित होनी चाहिए । • चिड़ियों की संख्या – चिड़ियों की संख्या + चिड़ियों की संख्या का आधा + चिड़ियों की संख्या का चौथाई – चिड़ियों की संख्या के तीन गुने से कम • चिड़ियों की संख्या अनुमान रूप में 33 तथा 38 के बीच में होनी चाहिए । .34,35,36,37 में 4 से विभाजित होने वाली संख्या 36 . कुल चिड़ियों की संख्या = 36 इस तरह अनुमान लगाने में बच्चे की तर्कशक्ति तथा गणितीय समस्या के समाधान करने की क्षमता का विकास होता है ।

ICT आधारित गतिविधियाँ ( ICT Based Activities )

अध्ययन केन्द्र पर स्थित सूचना और संचार प्रौद्योगिकी कक्ष में जाइए । यदि आप कम्प्यूटर के बारे में जानते हो तो स्वयं से अन्यथा ऑपरेटर या साधन – सेवी की मदद से भिन्न , दशमलव आदि गणितीय अवधारणा को स्पष्ट करने हेतु गणितीय खेल की रचना करें । कम्प्यूटर पर गणितीय खेल से सम्बन्धित सी.डी. देखें और उसमें प्रयुक्त गणितीय अवधारणाओं पर चर्चा करें ।

अभ्यास प्रश्न दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ( Long Answer Type Questions )

1. गणित सीखने में अ – भ – चि – प्र की क्या आवश्यकता है ? एक उदाहरण देकर समझाइए ।

2 औपचारिक गणित को ठोस अनुभवों से जोड़ने की क्या जरूरत है ?

3. बच्चे एक – दूसरे से कैसे सीखते हैं ? बच्चों के एक समूह का अवलोकन कर ऐसे सम्बन्ध में एक प्रतिवेदन तैयार करें

4. क्या गलतियाँ उपयोगी होती हैं ? बच्चों द्वारा की गई कुछ गलतियों का उदाहरण देकर बताएं कि वे गलतियाँ बच्चे के गणित सीखने में किस प्रकार उपयोगी हो सकती हैं ?

By – Prof. Rakesh Giri

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