वैन हीले मॉडल में गणित शिक्षा (ज्यामितीय अधिगम)




लेवल 0.चक्षुषीकरण/ पहचानना/मानसिक चिंतन(visualisation) :

 इस स्तर पर, बच्चे की सोच का ध्यान व्यक्तिगत आकृतियों पर होता है, जिसे बच्चा अपनी समग्र उपस्थिति को देखते हुए वर्गीकृत करना सीख रहा होता है। 

विद्यार्थी ज्यामितीय आकृतियों जैसे कि त्रिभुज आयत समानांतर रेखाएं चतुर्भुज आदि को उनके नाम से पहचान करते हुए उनकी बनावट के आधार पर तुलना करते हैं।

 छात्र चक्षुशीकरण द्वारा प्रत्यक्ष करके छात्र विभिन्न आकृतियों की पहचान  उनके समग्रता(Wholistically) के अनुसार करते हैं ना कि उनके अंशो के आधार पर। जैसे, छात्र एक आयत को इस रूप में पहचानते हैं कि यह दरवाजे जैसी दिखती है ना कि इस रूप में कि इसके चार भुजाएं वह चार समकोण है।

स्तर 1. विश्लेषण(Analysis):

 इस स्तर पर, आकार उनके गुणों के वाहक बन जाते हैं। इस स्तर पर एक व्यक्ति कह सकता है, "एक वर्ग में 4 बराबर भुजाएँ और 4 बराबर कोण होते हैं। इसके विकर्ण सर्वांगसम और लम्बवत होते हैं, और ये एक दूसरे को काटते हैं।"

विद्यार्थी एक श्रेणी की आकृतियों की विशेषताओं के नियम खोज/ढूंढ लेता है।जैसे की आकृतियों के अंशो तथा उन अंशो के बीच संबंध के आधार पर कागज मोड़ लेता है उन्हें माप लेता है तथा विश्लेषण कर लेता है इस स्तर पर अंशो के भागों तथा उनकी विशेषताओं का प्रयोग आकृति की विशेषताओं का वर्णन करने में छात्र करता है।

 उदाहरण के लिए एक विद्यार्थी जिसमें विश्लेषणात्मक तर्क है यह बताने लगता है कि 1 वर्ग के 4 बराबर कौन है तथा चार बराबर भुजाएं हैं  जिसमें चार कोने भी हैंइस स्तर पर विद्यार्थी यह विश्वास नहीं कर पाता की एक श्रेणी में कई नामों की आकृतियां होती है जैसे कि विद्यार्थी यह स्वीकार नहीं करेगा कि एक आयत एक समानांतर चतुर्भुज है। विद्यार्थी आकृति की परिभाषा तो बता सकता है लेकिन अर्थ नहीं।

स्तर 2. अमूर्तता/अनौपचारिक निगमन/ क्रमांकन : इस स्तर पर, गुणों का ज्ञान दिया जाता है। विचार की वस्तुएं ज्यामितीय गुण हैं, जिसे छात्र ने जोड़ना सीखा है। 

छात्रा अनौपचारिक तर्क देते हुए आज स्तर दो में खोजी गई आकृति की विशेषताओं अथवा नियमों के मध्य संबंध स्थापित कर लेता है।छात्र एक आकृति के अंतर्गत  तथा दूसरी संबंधित आकृति के लिए भी कर सकता है।
 इस स्तर पर दो सामान्य प्रकार के चिंतन उत्पन्न होते हैं। पहला छात्र आकृतियों के मध्य अमूर्त संबंधों का आयोजन कर लेता है। जैसे की आयत व समांतर चतुर्भुज के मध्य संबंध तथा छात्रों में किए गए अवलोकन को अपने निगमन द्वारा उचित ठहराने लगता है।
 इस अवसर पर परिभाषा की भूमिका तथा औपचारिक सबूत का आवर्धन नहीं कर पाता है लेकिन ज्यामिति के महत्व को समझने लगता है।

स्तर 3. कटौती/ औपचारिक निगमन (Formal Deviation) : 
इस स्तर पर छात्र  प्रमेय को निगमनात्मक तौर पर सिद्ध करने लगता है तथा प्रमेय के तंत्रों(Network) के मध्य सह - संबंध स्थापित करने लगता है।
 छात्रा स्तर- 3 में विकसित सहसंबंध का हस्तपरक अनुभव करने लगता है। सह - संबंध स्थापित करने की आवश्यकता को न्यायोचित मानने लगता है तथा पर्याप्त परिभाषाएं विकसित कर लेता है
 इस स्तर की तर्कणा में ज्यामिति के अध्ययन हेतु औपचारिक गणितीय पद्धति का प्रयोग छात्र करने लगता है।

स्तर 4. कठोरता/दृढ़ता(Rigour)

इस स्तर पर छात्र प्रमेय को विभिन्न अवधारणा पद्धतियों में स्थापित कर लेता है तथा इस पद्धतियों का विश्लेषण कर लेता है ।तथा इसके मध्य तुलना कर लेता है।

 इस स्तर पर ज्यामिति के अध्ययन के लिए छात्र में उच्च स्तर की अमूर्तता आ जाती है उसे मूर्त यां चित्रात्मक आकृति की जरूरत नहीं रह जाती है।



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