गणित शिक्षण के शैक्षिक उद्देश्य | ज्ञानात्मक उद्देश्य ( Knowledge Objectives ) - इस उद्देश्य का विशिष्टीकरण ( Specification )









1. गणित शिक्षण के शैक्षिक उद्देश्य
उद्देश्य शब्द का शाब्दिक अर्थ है . - " उच्च दिशा दिखाना या उच्च शिक्षा की ओर संकेत करना । उद्देश्य वह योजनात्मक क्रिया है जिसके द्वारा व्यवहार में परिवर्तन लाया जाता है । कक्षा में शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण स्पष्ट शब्दों में करना आवश्यक है अन्यथा किसी भी प्रकार की अस्पष्टता इन उद्देश्यों की प्राप्ति में बाधक सिद्ध हो सकती है । " गणित शिक्षण के सामान्य शैक्षिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं _

1 . ज्ञानात्मक उद्देश्य ( Knowledge Objectives ) - इस उद्देश्य का विशिष्टीकरण ( Specification ) के अन्तर्गत दो वर्ग हैं -
 ( i ) प्रत्यास्मरण ( Recall ) - छात्र निम्नलिखित का प्रत्यास्मरण करेंगे - पद ( Terms ) , परिभाषाएँ ( Definitions ) , तथ्य ( Facts ) , तकनीक ( Techniques ) , विधियाँ ( Methods ) , नियम ( Laws ) , सिद्धान्त ( Principles ) , प्रतीक ( Symbols ) , सूत्र ( Formula ) , समीकरण ( Equation ) , प्रमेय ( Theorem ) आदि ।
 ( ii ) पहचान ( Recognition ) - छात्र पद , परिभाषाओं , तथ्यों , तकनीकों , विधियों , नियमों , सिद्धान्तों , समीकरण , प्रमेय आदि को पहचान सकेंगे ।

2 . अवबोधनात्मक उद्देश्य ( Objectives of Understanding ) -
 इस उद्देश्य में प्रमुख . विशिष्टीकरण इस प्रकार हैं-

 * अन्तर करना ( To find difference )
 * समानता ज्ञात करना ( To find similarity )
 *तुलना कर सकेंगे ( To compare )
 * अपने शब्दों में परिभाषित करना ( To define in own words )
 *रूपान्तरण करना ( To translate )
 * उदाहरण देना ( To give examples ) वर्गीकरण करना ( To classify )
* सही स्थिति बतलाना ( To locate correctly )
* त्रुटि ज्ञात कर ठीक करना ( To find error and correct them )
* आँकडों को तार्किक क्रम में व्यवस्थित करना ( To arrange data in logical order )
* सही मिलान करना ( To match correctly )
 * स्पष्ट करना ( Toexplain )
 * विवरण देना ( To describe )
*कार्य - कारण सम्बन्ध ज्ञात करना ( To find cause and effect relationship )
* अनुमान लगाना ( To infer )
* उद्धरण देना ( To give illustrations )

 3 . उपयोजनात्मक ( Application ) - इस उद्देश्य का तात्पर्य यह है कि अधिकत्ता ज्ञान , बोध और कौशल को नवीन परिस्थिति में समायोजन या समस्या के समाधान के उपयोग में लाता है । इसके विशिष्टीकरण इस प्रकार हैं-

*विश्लेषण करना (to analyse)
 * संश्लेषण करना ( To synthesize )
* गणना करना ( Toc )
* कार्य - संगत निर्णय देना ( Tog justified judgement )
* भविष्यवाणी करना ( To predict )
* प्राक्कल्पनाएँ सूत्रबद्ध करना ( To formulate hypothesis )
* सुझाव देना ( To sugggest )
* सावधानियाँ रखना ( To take precautions )
 * जोड़ - तोड़ करना ( To manipulate )
 * तर्क देना ( To reason )
 * समस्या का समाधान करना ( To solve problem )
 * सिद्ध करना ( To prove )

 4 . कौशलात्मक उद्देश्य ( Objectives of Skill ) इस उद्देश्य में प्रमुख विशिष्टीकरण इस प्रकार हैं-
*ज्यामितीय चित्रों का सही एवं स्पष्ट रेखांकन ( Correct and vivid draws of geometricfigures )
* दत्त का सही प्रेक्षण और एकत्रीकरण ( Correct observation and collection of data )
* दत्त का संगत प्रस्तुतीकरण ( Relevant presentation of data )
* प्रतिरूपों का समुचित निर्माण ( Appropriate making of models )
* जयामितीय उपकरणों का समुचित प्रयोग ( Appropriate use of geometric | instrument ) * सही मापन करना ( Measuring correctly )

 2.उत्तर -
 महान शिक्षाशास्त्री प्लेटो ने अपनी पाठशाला के द्वार पर लिख रखा था कि जो व्यक्ति रेखागणित को नहीं समझते वे इस पाठशाला में शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य से प्रवेश न करें । प्लेटो के उक्त लिखित वाक्य से गणित की महत्ता स्पष्ट हो जाती है । न केवल प्लेटो अपितु अनेक महान शिक्षाशास्त्रियों जैसे फ्रॉबेल , हर्बर्ट , मॉण्टेसरी , नन , पैस्टालॉजी आदि ने भी गणित को मानवीय विकास हेतु आवश्यक माना था ।

     गणित बालका के तार्किक दृष्टिकोण का विकास करता है । अर्थात वह बालकों में । सिक अनुशासन के विकास में सहायक होता है । गणित सामाजिक जीवन - यापन के लिए । आवश्यक होता ह , समाज में लेन - देन , व्यापार आदि गणित की सहायता से ही सम्भव नेपोलियन ने तो स्पष्ट कहा है कि " गणित की उन्नति तथा वृद्धि देश की सम्पन्नता से धित है । " इसी प्रकार हॉगवेन ने गणित को सभ्यता और संस्कृति का दर्पण कहा है । इस प्रकार गणित का सामाजिक व सांस्कृतिक महत्त्व भी दर्शित होता है । गणित दैनिक जीवन में भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इस प्रकार उपर्युक्त बिन्दुओं से स्पष्ट होता है कि गणित मानव जीवन के विकास की । आधारशिला है । यह बालकों में स्वस्थ तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करता है । गणित के महत्व व उपयोगिता को निम्न प्रकार उल्लेखित किया जा सकता है-
 1 . व्यावहारिक जीवन में उपयोगी
 2 . सामाजिक मूल्यों के विकास में सहायक
 3 . सांस्कृतिक मूल्यों के विकास में सहायक
 4 . भौतिक सभ्यता का आधार
 5 . बौद्धिक व मानसिक विकास में सहायक माओं के सजन में सहायक

 6 . कलाओं के सृजन में सहायक
7. अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में उपयोगी
8. विज्ञानों की रूह या आत्मा
9. चरित्र विकास में सहायक
 10 . अन्य विषयों की शिक्षा में उपयोगी
11. विचारों व मनोभावों के विकास में महत्त्वपूर्ण
 12 . मनोवैज्ञानिक महत्त्व
13. जीविकोपार्जन में उपयोगी
 14 . नैतिक महत्त्व
 15 . अवकाश के समय का सदुपयोग
 16 . अनुशासन सम्बन्धित उपयोगिता ।

1. व्यावहारिक जीवन में उपयोगी -
 गणित का उपयोग दिन - प्रतिदिन के जीवन में वहारिक रूप से अधिक होता है । बाजार में सब्जी , मिठाई , बरतन , भोजन , रसोई का जते आदि खरीदने जाने पर गणित के ज्ञान का सर्वाधिक उपयोग होता है । उक्त कार्यो देत प्राथमिक शिक्षा में सिखाया गया ज्ञान जैसे - जोड़ , बाकी , गुणा , भाग आदि का ज्ञान प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक है ।

 2 . सामाजिक मूल्यों के विकास में सहायक -
 मनुष्य समाज में रहकर विभिन्न उद्यम । करता है तथा उसके सभी उद्यम लेन - देन पर आधारित होते हैं । समाज में व्यक्ति एक - दूसरे के व्यवसायों , उद्योग - धन्धों , वैज्ञानिक आविष्कारों आदि के द्वारा निकट आता है तथा हमारी सामाजिक संरचना को वैज्ञानिक व सुव्यवस्थित बनाता है । इन सभी कार्यों में गणित का महत्त्वपूर्ण योगदान है ।

" The progress and the improvement of mathematics are linked to the prosperity of the state . " _ _ अत : नेपोलियन के उक्त कथन से भी स्पष्ट है कि गणित सामाजिक मूल्यों को बढ़ाने वाला है । - नेपोलियन
 3 . सांस्कृतिक मूल्यों के विकास में सहायक - संस्कृति मूलत : व्यक्ति के पीढीगत अनुभवों का संकलन होती है . गणित उन अनुभवों को आधार प्रदान करती है जैसे प्राचीनकाल में जितनी भी यज्ञ वेदियाँ बनती थीं उन सबका आधार रेखागणित था , वर्तमान में भी उसी नाम के आधार पर इसे निर्मित किया जाता है । गणित व्यक्ति की जीवन पद्धति को प्रभावित करता है । . " Mathematics is the mirror of utilization . " . - हॉगवेन

4 . भौतिक सभ्यता का आधार - “ वर्तमान के लौह , वाष्प और विद्युत युग में जिस ओर भी मुड़कर देखें , गणित ही सर्वोच्च स्थान पर है । यदि इस रीढ़ की हड्डी ( Back bone ) को हटा दिया जाए तो हमारी भौतिक सभ्यता का अन्त हो जाएगा । " यंग के उक्त कथन से गणित की भौतिक सभ्यता का आधार होने का महत्त्व स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है ।

  5 . बौद्धिक व मानसिक विकास में सहायक - " गणित उस पत्थर के समान है जो स्पष्ट , क्रमबद्ध , तार्किक एवं सावधानीपूर्वक सोचने की शक्ति को तीक्ष्ण करता है । " - हब्श - हब्श का उक्त कथन अत्यन्त सही है , क्योंकि गणित बालकों को मानसिक कार्य करने , समस्याओं को समझने व समाधान करने में सहायक होती है । यह मानसिक शक्तियों को प्रशिक्षित करने में सहायक है । इसके अध्ययन से बालकों में स्मरण शक्ति , चिन्तन शक्ति , तर्क शक्ति , निरीक्षण शक्ति व अन्वेषण शक्ति का विकास होता है । .

 . 6 . कलाओं के सृजन में सहायक - " संगीत , मनुष्य के अचेतन मन का अंकों से व्यवहार करने या आदान - प्रदान करने का एक गुप्त अभ्यास है । " - लेविनिज . लेविनिज के उक्त कथन से स्पष्ट है कि गणित संगीत निर्माण में सहायक होता है , साथ ही यदि अन्य कलाओं जैसे चित्रकला , मूर्तिकला , नृत्य आदि में भी गणित आवश्यक है । चित्रकला में रंगों का विभिन्न अनुपात में मिश्रण , मूर्तिकला में मूर्ति के नाक - नक्श व अंगों का निश्चित कोणों पर झकाव आदि गणित की कला के सृजन में आवश्यकता व उपयोगिता को दर्शाता है ।

 7 . अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में कमी - वर्तमान में वैश्वीकरण के इस दौर में समस्त देश आपस में इस प्रकार अन्तःसम्बन्धित हैं कि एक देश द्वारा की गई खोज दूसरे देश को प्रभावित करती है व अन्य देशों में उसी क्षेत्र में की जा रही खोज भी तत्काल प्रभावित होती है । | . गणित के क्षेत्रों में एक देश द्वारा की गई खोज अन्य देशों को उसी क्षेत्र में की जा रही खोज में सहायक हो सकती है । वर्तमान में व्यक्ति केवल अपने देश तक ही सीमित नहीं है , वह अन्य देशों में जाकर भी रोजगार व व्यापार करता है । ऐसे में अन्य देशों की मुद्रा को अपने देश में प्रचलित मुद्रा

के मूल्य के अनुसार बदलना एवं वस्तुओं के क्रय - विक्रय हेतु गणित का ज्ञान होना अत्यन्त नायक हो जाता है तथा गणित की महत्ता अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास को दर्शाता है ।

 8 . विज्ञानों की रूह या आत्मा - गणित विषय के सम्बन्ध में बैकन द्वारा सही ही कहा या है , " गणित सभी विज्ञानों का मुख्य द्वार एवं चाबी है । " बैकन के उक्त कथन को बालकों के परीक्षा परिणाम और समर्थन करते हैं , मान्यतः अध्ययनों में भी यह पाया गया है कि जिन बालकों के गणित में अच्छे अंक हैं , के विज्ञान विषयों में भी अच्छे अंक होंगे , क्योंकि विज्ञान विषयों में भी गणित की भाँति गणना का कार्य होता है । काण्ट ने भी कहा है कि विज्ञान उस सीमा तक ही सत्य होता है जहाँ तक उसमें गणित का प्रयोग हुआ है । वास्तव में गणित के ज्ञान द्वारा ही जीव विज्ञान में आनुवंशिक नियमों आदि को , भौतिक में विभिन्न नियमों को , रसायन में समीकरण आदि को हल किया जाता है । इसी प्रकार मौसम , तफान व भूकम्प का पूर्व - ज्ञान , सूर्य - चन्द्र गहण , सूर्य व अन्य ग्रहों की दूरी आदि का ज्ञान भी गणित द्वारा ही सम्भव है । अतः कहा जा सकता है कि गणित , विज्ञान विषयों की रूह या आत्मा है ।
 9 . चरित्र विकास में सहायक - गणित के परिणाम सदैव सत्याधारित होते हैं , गणित अध्ययन से बालक में स्वतः ही क्रमबद्ध रूप से समस्या का समाधान करना , समय की पाबन्दी , नियमों पर दृढ़ रहना आदि गुण विकसित हो जाते हैं । बालक में अच्छे चारित्रिक गुणों का विकास प्रारम्भ से ही किया जाना चाहिए । अतः प्राथमिक स्तर से ही गणित शिक्षण का कार्य होता है जो कि चारित्रिक विकास की नींव के रूप में स्थापित होता है । .

 10 . अन्य विषयों की शिक्षा में उपयोगी - गणित शिक्षण न केवल विज्ञान विषयों अपितु यह भूगोल , अर्थशास्त्र , ज्योतिषशास्त्र , समाजशास्त्र आदि समस्त विषयों में सहायक होता है । _ _

_ 11 . विचारों व मनोभावों के प्रकाश में महत्त्वपूर्ण - गणित विषय में अधिकांश तथ्यों को प्रतीकों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है , बालकों को इन प्रतीकों का अर्थ देना होता है , अत : गणित शिक्षण द्वारा बालक में अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने का गण भी विकसित होता है , जिसे सत्यापित करना भी वह गणित के माध्यम से ही सीखता है ।

 12 . मनोवैज्ञानिक महत्त्व - गणित शिक्षण में स्थाई ज्ञान की प्राप्ति हेतु करके सीखने पर बल दिया जाता है , जो कि मनोविज्ञान के सिद्धान्त पर आधारित है । गणित शिक्षण में बालक अभ्यास कार्य . अनुभवों द्वारा अधिगम , समस्या समाधान , अधिगम सिद्धान्तों का अनुसरण कर ज्ञान प्राप्त करता है । _ _

 _ 13 . जीविकोपार्जन में उपयोगी - वर्तमान समय में प्रबन्धन सम्बन्धित पाठ्यक्रम जैसे • एम . बी . ए . , बी . बी . ए . एवं अन्य पाठ्यक्रम जैसे इन्जीनियरिंग , सी . ए . , सी . एस . , कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग आदि समस्त पाठ्यक्रमों में सफल होकर जीविकोपार्जन करने के लिए गणित अत्यन्त ही उपयोगी व महत्त्वपूर्ण विषय है । अत : गणित विषय का ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति के जीवनयापन हेतु प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आवश्यक होता है ।

14.नैतिक महत्त्व -" गप्पें, चमचागीरी, आडम्बर, छल - कपट व धोखा देना आदि उस व्यक्ति के मस्तिष्क की बातें हैं जिसने गणित का प्रशिक्षण नहीं लिया है।  गणित तार्किक विचार,  सत्य कथन व सत्य बोलने की क्षमता प्रदान करता है।"दार्शनिक दर्शन के अनुसार,
- गणित के द्वारा नैतिकता का विकास होता है। 

15. अवकाश के समय का सदुपयोग - गणित में प्रयुक्त अनेक पहेलियों व खेलों के द्वारा बालक के अवकाश का सदुपयोग भी होता हो जाता है और उसके ज्ञान की वृद्धि भी हो जाती है।  गणित का अध्ययन छात्रों को मनोरंजन प्रदान करता है। 

16 . अनुशासन सम्बन्धित उपयोगिता - गणित का ज्ञानी व्यक्ति भावनाओं पर पर नियन्त्रण रखता है । वह नियम विरुद्ध कार्य नहीं करता है तथा बालक गम्भीर व विवेक द्वारा अनुशासनात्मक जीवन बिताने के योग्य होता है । प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण के प्राप्य उद्देश्य एवं अपेक्षित व्यवहारगत प्रतिफल : गणित शिक्षण के उद्देश्य - विद्यालय में गणित शिक्षण के पीछे जिस दार्शनिक विचारधारा को रखा गया है वह अग्रलिखित हैं -
( i ) बालक गणित से डरने की अपेक्षा उसका आनन्द उठायें तथा गणित की समस्याओं के समाधान में प्रसन्नता का अनुभव करें । -
 ( ii ) बालक केवल गणित के सूत्रों व यान्त्रिक प्रक्रियाओं को ही न करें अपितु महत्त्वपूर्ण व उपयोगी गणित सीखें । .
 . ( iii ) बालक व्यर्थ की समस्याओं की अपेक्षा सार्थक समस्याओं को उठाएँ और उन्हें , हल करें ।
 ( iv ) बालक अंकगणित , बीजगणित व रेखागणित की मूल संरचना को समझें तथा उनमें उपलब्ध अमूर्त की प्रणाली , संघटन के सामान्यीकरण की पद्धति को सीखें ।
 ( v ) गणित को सम्प्रेषण में सहायक विषय मानकर उस पर चर्चा व कार्य करें ।
    गणित का उक्त दर्शन राष्ट्रीय पाठ्यक्रम 2005 में उल्लेखित किया गया है । साथ ही पाठ्यक्रम में गणित शिक्षण का मुख्य उद्देश्य बालकों में गणितीकरण की क्षमताओं का विकास करना माना है , जिनके अन्तर्गत , लाभप्रद क्षमताएँ , सांख्यिक संक्रियाएँ , माप दशमलव प्रतिशत आदि अंकगणितीय क्षमताओं को रखा गया है । गणित शिक्षण के उच्च उद्देश्य गणितीय ढंग से सोचने , तर्क करने , परिणाम निकालने व अमूर्त को समझकर , सूत्रबद्ध कर समस्या का हल ढूँढ़ने की क्षमता को विकसित करना माना है।




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