प्रश्न. गणित आधार पत्र 2006 में समाहित प्रमुख बिंदु की संपूर्ण व्याख्या करे।1. विद्यालय में गणित शिक्षा का मुख्य लक्ष्य बच्चों के विचार प्रक्रिया, चिंतन का गणितीय करण करना:-
छात्रों के अधिगम का मूल्यांकन करने के दो उद्देश्य हैं:
- योगात्मक आकलन (सीख का आकलन) पीछे मुड़ कर देखता है और जो पहले से सीखा गया है उसका निर्णय करता है। यह सामान्यतया परीक्षाओं के स्वरूप में आयोजित किया जाता है, जहाँ छात्रों को परीक्षा में प्रश्नों के प्रति उनकी उपलब्धियों को बताते हुए श्रेणीकृत किया जाता है। इससे परिणामों की रिपोर्टिंग में मदद मिलती है।
- रचनात्मक आकलन (या सीखने के लिए आकलन) काफ़ी अलग है, जो अधिक अनौपचारिक तथा नैदानिक स्वरूप का होता है। शिक्षक उनका शिक्षण प्रक्रिया के अंग के रूप में उपयोग करते हैं, उदाहरण के लिए, जहाँ यह पता लगाने के लिए प्रश्न पूछने का इस्तेमाल किया जाता है कि क्या विद्यार्थियों ने किसी चीज़ को समझा है या नहीं। इस आकलन के परिणामों का फिर अगले अधिगम अनुभव को बदलने के लिए उपयोग किया जाता है। निगरानी और फ़ीडबैक रचनात्मक मूल्यांकन का हिस्सा है।
रचनात्मक मूल्यांकन अधिगम को बढ़ाता है, क्योंकि सीखने के लिए, अधिकांश छात्रों कोः
- समझना चाहिए कि उनसे क्या सीखने की उम्मीद की जा रही है
- जानना चाहिए कि अपनी पढ़ाई में वे इस समय किस स्तर पर हैं
- समझना चाहिए कि वे किस प्रकार प्रगति कर सकते हैं (अर्थात् क्या पढ़ना चाहिए और कैसे पढ़ना चाहिए)
- जानना चाहिए कि कब उन्होंने लक्ष्य और अपेक्षित परिणाम हासिल कर लिए हैं।
शिक्षक के रूप में, अगर आप प्रत्येक पाठ में उपर्युक्त चार बिंदुओं पर ध्यान देंगे, तो आप अपने विद्यार्थियों से सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त करेंगे। इस प्रकार पढ़ाने से पहले, पढ़ाते समय और पढ़ाने के बाद आकलन किया जा सकता हैः
- पहलेः पढ़ाने से पहले आकलन से आपको यह जानने में मदद मिलती है कि छात्र क्या जानते हैं और पढ़ाने से पहले क्या कर सकते हैं। यह आधार–रेखा निर्धारित करता है और आपको अपनी शिक्षण योजना तैयार करने के लिए प्रारंभिक बिंदु देता है। छात्र क्या जानते हैं इस बारे में अपनी समझ को बढ़ाने से, छात्रों को जिसमें पहले से ही महारत हासिल है, उसे दुबारा पढ़ाने या संभवतः उन्हें जो जानना या समझना है (लेकिन नहीं जानते), उसे छोड़ने के मौक़े कम होंगे।
- पढ़ाते समयः कक्षा में पढ़ाते समय आकलन करने में यह देखना शामिल है कि छात्र क्या सीख रहे हैं और उनमें क्या सुधार हो रहा है। इससे आपको अपनी शिक्षण पद्धति, संसाधनों और गतिविधियों का समायोजन करने में मदद मिलेगी। यह आपको यह समझने में मदद करेगा कि छात्र वांछित उद्देश्य की दिशा में किस प्रकार प्रगति कर रहे है और आपका शिक्षण कितना सफल है।
- पढ़ाने के बादः शिक्षण के बाद किया जाने वाला आकलन पुष्टि करता है कि छात्रों ने क्या सीखा है और आपको दर्शाता है कि किसने सीखा है और किसे अभी मदद की ज़रूरत है। इससे आप अपने शिक्षण लक्ष्य की प्रभाविता का आकलन कर सकेंगे।
पहलेः आपके छात्र क्या सीखेंगे इस बारे में स्पष्ट रहना
जब आप तय करते हैं कि छात्रों को पाठ या पाठों में क्या सीखना चाहिए, तो आपको उसे उनके साथ साझा करना चाहिए। सावधानी से अंतर करें कि छात्रों को आप क्या करने के लिए कह रहे हैं, और छात्रों से क्या सीखने की उम्मीद की जा रही है। ऐसा प्रश्न पूछिये जिससे कि आपको इस बात का आकलन करने का अवसर प्राप्त हो कि क्या उन्होंने वाक़ई समझा है या नहीं। उदाहरण के लिएः

छात्रों को जवाब देने से पहले सोचने के लिए कुछ समय दें, या शायद छात्रों को पहले जोड़े या छोटे समूहों में अपने जवाब पर चर्चा करने को कहें। जब वे आपको अपना उत्तर बताएँ, आप जान जाएँगे कि क्या वे समझते हैं कि उन्हें क्या सीखना है।
पहलेः जानना कि छात्र अपने अधिगम के किस स्तर पर हैं
आपके विद्यार्थियों में सुधार के लिए मदद करने के क्रम में आपको और उन्हें उनके ज्ञान और समझदारी की वर्तमान अवस्था को जानने की ज़रूरत पड़ेगी। जैसे ही आप वांछित शिक्षण परिणामों या लक्ष्यों को साझा कर लें, आप निम्न कार्य कर सकते हैं:
- छात्रों को मानसिक चित्र बनाने या उस विषय के बारे में वे पहले से क्या जानते हैं, उसे सूचीबद्ध करने के लिए जोड़े में कार्य करने के लिए कहें, और उन्हें उसे पूरा करने के लिए पर्याप्त समय दें, लेकिन उन चंद विचारों के लिए बहुत ज्यादा समय नहीं देना चाहिए। उसके बाद आप उन मानसिक चित्र या सूचियों की समीक्षा करें।
- महत्वपूर्ण शब्दावली को बोर्ड पर लिखें और प्रत्येक शब्द के बारे में वे क्या जानते हैं, यह बताने के लिए स्वेच्छा से उन्हें आगे आने के लिए कहें। फिर बाक़ी कक्षा से कहें कि यदि वे शब्द समझते हैं, तो अपना अंगूठा थम्ब्स–अप की मुद्रा में ऊपर उठाएँ, यदि वे बहुत कम जानते हैं या बिल्कुल नहीं जानते हैं, तो थम्ब्स–डाउन की मुद्रा में अंगूठा नीचे करें और यदि वे कुछ जानते हैं, तो अंगूठे को क्षैतिज यानी बीच में रखें।
कहाँ से शुरुआत करनी है, यह जानने का मतलब है कि आप अपने छात्रों के लिए प्रासंगिक और रचनात्मक रूप से पाठ की योजना बना सकते हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि आपके छात्र यह आकलन करने में सक्षम हों कि वे कितनी अच्छी तरह सीख रहे हैं, ताकि आप और वे, दोनों जान सकें कि उन्हें आगे क्या सीखने की ज़रूरत है। आपके छात्रों को स्वयं अपने सीखने की जिम्मेदारी का अवसर प्रदान करने से उन्हें आजीवन शिक्षार्थी बनने में मदद मिलेगी।
पढ़ाते समयः छात्रों की अधिगम प्रगति सुनिश्चित करना
जब आप छात्रों से उनकी वर्तमान प्रगति के बारे में बात करते हैं, तो सुनिश्चित करें कि उन्हें आपका फीडबैक उपयोगी और रचनात्मक, दोनों लगे। निम्नांकित के द्वारा इस काम को करें:
- छात्रों को उनके मज़बूत पक्षों के बारे में बताना और यह जानने में मदद करना कि वे और सुधार कैसे कर सकते हैं
- इस बारे में स्पष्ट रहना कि आगे और किस चीज़ के विकास की ज़रूरत है
- इस बारे में सकारात्मक रहना कि वे अपनी सीख स्तर को किस प्रकार बढ़ा सकते हैं, तथा इस पर निगरानी रखना कि वे आपकी सलाह समझते हैं और उकका उपयोग करने में सक्षम महसूस करते हैं।
आपको छात्रों के लिए उनके शिक्षण को बेहतर बनाने के लिए अवसर मुहैया कराने की ज़रूरत पड़ेगी। इसका अर्थ यह हुआ कि पढ़ाई के मामले में छात्रों के वर्तमान स्तर और जहाँ आप उन्हें देखना चाहते हैं, इसके बीच के अंतराल को पाटने के लिए हो सकता है कि आपको अपनी पाठ योजना को संशोधित करना पड़े। ऐसा करने के लिए आपको निम्नवत करना होगाः
- कुछ ऐसे कार्य का पुनरावलोकन करना जिनके बारे में आपने सोचा था कि वे पहले से जानते हैं
- आवश्यकता के अनुसार छात्रों के समूह बनाना, उन्हें अलग–अलग कार्य देना
- छात्रों को स्वयं यह निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित करना कि उन्हें किन संसाधनों को पढ़ने की ज़रूरत है ताकि वे ‘स्वयं अपनी कमी दूर कर सकें’
- ‘निम्न प्रवेश, ऊँची सीमा’ वाले कार्यों का उपयोग करना, ताकि सभी छात्र प्रगति कर सकें – इन्हें इसलिए अभिकल्पित किया गया है कि सभी छात्र काम शुरू कर सकें, लेकिन अधिक समर्थ को प्रतिबंधित न किया जाए और वे अपने ज्ञान के विस्तार के लिए प्रगति कर सकें।
पाठों की रफ़्तार को धीमा करके, अक्सर आप दरअसल पढ़ाई को तेज़ करते हैं, क्योंकि आप छात्रों को उस पर सोचने और समझने का समय और आत्मविश्वास देते हैं, जिसमें उन्हें सुधार लाने की ज़रूरत होती है। छात्रों को आपस में अपने काम के बारे में बात करने का मौक़ा देकर, और इस बात पर चिंतन करके कि कमी कहाँ पर है और वे इसे किस प्रकार से ख़त्म कर सकते हैं, आप उन्हें स्वयं का आकलन करने के तरीक़े मुहैया करा रहे हैं।
पढ़ाने के बादः प्रमाण एकत्र करना और उसकी व्याख्या करना, और आगे की योजना बनाना
जब पढ़ाना–सीखना चल रहा हो और कक्षा–कार्य और गृह–कार्य निर्धारित करने के बाद, ज़रूरी है कि:
- इस बात का पता लगाएँ कि आपके छात्र कितनी अच्छी तरह कार्य कर रहे हैं
- इसे अगले पाठ के लिए अपनी योजना को साझा करने के लिए उपयोग में लाएँ
- छात्रों को फीडबैक दें।
आकलन की चार प्रमुख स्थितियों की नीचे चर्चा की गई है।
सूचना या प्रमाण एकत्रित करना
प्रत्येक छात्र, स्वयं अपनी गति और शैली में, स्कूल के अंदर और बाहर अलग प्रकार से सीखता है। इसलिए, छात्रों का मूल्यांकन करते समय आपको दो चीज़ें करनी होंगीः
- विविध सूत्रों से जानकारी एकत्रित करें – स्वयं अपने अनुभव से, छात्र, अन्य छात्रों, अन्य शिक्षकों, अभिभावकों और समुदाय के सदस्यों से।
- छात्रों का व्यक्तिगत रूप से, जोड़ों में और समूहों में आकलन करें, तथा स्व–आकलन को बढ़ावा दें। अलग विधियों का प्रयोग महत्वपूर्ण है, क्योंकि कोई एक पद्धति आपको वह सभी जानकारी उपलब्ध नहीं कराती, जिसकी आपको ज़रूरत है। छात्रों के सीखने और प्रगति के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के विभिन्न तरीक़ों में शामिल हैं, देखना, सुनना, विषयों और प्रकरणों पर चर्चा, तथा लिखित वर्ग और गृह–कार्य की समीक्षा करना।
रिकॉर्डिंग
भारत भर के सभी स्कूलों में रिकॉर्डिंग का सबसे आम स्वरूप रिपोर्ट कार्ड के माध्यम से होता है, लेकिन इसमें आपको एक छात्र के सीखने या व्यवहार के सभी पहलुओं को रिकॉर्ड करने की गुंजाइश नहीं हो सकती है। इस काम को करने के कुछ सरल तरीक़े हैं, जिन पर भी आप विचार कर सकते हैं, जैसे कि:
- पढ़ाते–सीखते समय जो आप देखते हैं उसे डायरी/नोटबुक/रजिस्टर में नोट करना
- छात्रों के कार्य के नमूने (लिखित, कला, शिल्प, परियोजनाएँ, कविताएँ आदि) पोर्टफ़ोलियो में रखना
- प्रत्येक छात्र का प्रोफ़ाइल तैयार करना
- छात्रों की किन्हीं असामान्य घटनाओं, परिवर्तनों, समस्याओं, शक्तियों और शिक्षण प्रमाणों को नोट करना।
प्रमाण की व्याख्या
जैसे ही सूचना और प्रमाण एकत्रित और अभिलिखित हो जाए, उसकी व्याख्या करना ज़रूरी है, ताकि यह समझ बन सके कि प्रत्येक छात्र किस प्रकार सीख रहा है और प्रगति कर रहा है। इस पर सावधानी से विचार करने और विश्लेषण करने की आवश्यकता है। फिर आपको अधिगम प्रक्रिया में सुधार करने, संभवतः छात्रों को फ़ीडबैक देकर या नए संसाधनों की खोज करके, समूहों को पुनर्व्यवस्थित करके, या शिक्षण बिंदु को दोहरा कर अपने निष्कर्षों पर कार्य करने की आवश्यकता है।
सुधार के लिए योजना बनाना
आकलन, प्रत्येक छात्र को सार्थक रूप से सीखने के अवसर प्रदान करने में आपकी मदद कर सकता है। आकलन से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर आप विशिष्ट और विभिन्न प्रकार की शिक्षण गतिविधियों के इस्तेमाल द्वारा, ज़रूरतमंद छात्रों पर विशेष ध्यान देकर और अधिक सीख स्तर वाले छात्रों को चुनौतीपूर्ण गतिविधि देकर सभी के लिए सार्थक अधिगम के उपलब्ध करा सकते हैं।
गणित शिक्षा का मुख्य लक्ष्य:
- गणित शिक्षण में बच्चे के सीखने के आनंद पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि NCF-2005 कहता है कि गणित को इस तरह से पढ़ाया जाना चाहिए कि बच्चे डरने के बजाय गणित का आनंद लेना सीखें।
- राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005 के अनुसार, स्कूल में गणित की शिक्षा का मुख्य लक्ष्य बच्चे की विचार प्रक्रिया का गणितीयकरण है।
- गणितीय संक्रियाओं को पर्यावरण से संबंधित व्यावहारिक गतिविधियों के संदर्भ में पढ़ाया जाना चाहिए ताकि शिक्षार्थी दैनिक जीवन में गणित के योगदान को समझ सकें।
- स्कूल में, गणित वह डोमेन है जो औपचारिक रूप से समस्या-समाधान को एक कौशल के रूप में संबोधित करता है। समस्याओं को प्रस्तुत करना और हल करना बच्चों में रचनात्मकता की क्षमता विकसित करने के अलावा सीखने के स्तर और गुणवत्ता को दर्शाता है।
- गणित शिक्षण बच्चे की बुनियादी क्षमताओं को विकसित करने में गणितिय प्रयोग तथा उनके विचारों में गणितीयकरण लाने पर केंद्रित होना चाहिए।
अतः, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि बच्चों में गणित की क्षमता का विकास करना, गणित शिक्षा का मुख्य लक्ष्य है ।
गणित की कक्षा में प्राथमिक स्तर पर छात्रों को सीखने, समस्याओं को हल करने, गणितीय जिज्ञासा को विकसित करने और समस्याओं का विश्लेषण करने और हल करने के लिए गणित का उपयोग करने में आश्वस्त होने का आनंद मिलता है।
प्राथमिक स्तर पर गणित का महत्व (NCF 2005): राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 की अनुशंसा यह है कि प्राथमिक स्तर पर गणित के शिक्षण पर निम्न ध्यान देना चाहिए
- छात्रों को दैनिक जीवन के साथ कक्षा के शिक्षण को जोड़ने में मदद करना चाहिए
- बच्चे को गणित से डरने के बजाय गणित को सीखने में आनंद लेना चाहिए
- बच्चे को अर्थपूर्ण समस्याओं को बताना और उन्हें हल करना चाहिए
- पर्यावरण से संबंधित व्यावहारिक गतिविधियाँ करनी चाहिए
- गाने, चित्र अध्ययन, खेल, पहेलियाँ, प्रश्नोत्तरी और घटनाओं का वर्णन करना चाहिए।
- बच्चे गणित को इस प्रकार देखते हैं जिसके बारे में कुछ बात किये जाये, जिसके माध्यम से बात किया जाये, जिसके बारे में उनके बीच चर्चा हो सके, जिससे वे साथ मिलकर काम कर सके इत्यादि।
अतः यह उपरोक्त बिंदुओं से स्पष्ट हो जाता है कि प्राथमिक स्तर पर गणित व्यावहारिक गतिविधियों में बच्चों की भागीदारी के बारे में अधिक है।
6. अंको से जुड़े गणित के खेल, पहेलियां, कथाएं आदि कोई संबंध को बताने में मदद करती है:-
भाग 1: यह निर्णय लेना कि आपको क्या जानना चाहिए
निम्नलिखित को ब्लैकबोर्ड पर लिखें:
आठ संकेत
- संख्या 9 से बड़ी है।
- संख्या 10 का गुणज नहीं है।
संख्या 7 का गुणज है।
- यह एक विषम संख्या है।
- संख्या 11 का गुणज नहीं है।
- संख्या 200 से कम है।
- इसका इकाई अंक इसके दहाई अंक से बड़ा है।
- इसका दहाई अंक एक विषम संख्या है।
विद्यार्थियों को नीचे दी गई बातें कहें:
मेरे मन में एक संख्या है जो कि एक सौ वर्ग पर है लेकिन मैं आपको यह नहीं बताने वाला कि वह क्या है। हालाँकि, आप मुझसे ब्लैकबोर्ड पर लिखे आठ में से चार संकेत पूछ सकते हैं और मैं उसका हाँ या नहीं में जवाब दूँगा।
इसके अलावा एक और चीज़ है जो मैं आपको बताना चाहता हूँ: दिए गए संकेतों में से चार सही हैं लेकिन उनसे संख्या को ढूँढने में कोई मदद नहीं मिलेगी। उनका पता लगाने के लिए चार संकेतों को ढूँढना आवश्यक है।
क्या आप अपने समूह में उस संख्या को ढूँढ सकते हैं जिसके बारे में मैं सोच रहा हूँ और यह पता लगा सकते हैं कि किन चार संकेतों से आपको मदद मिलेगी और किन चार से नहीं? आपको अपने सौ वर्ग में से चुनी गई संख्या को ढूँढने के लिए किस चीज़ की जानकारी होनी चाहिए?
भाग 2: संख्या क्या है?
यह भाग गतिविधि भाग 1 में विद्यार्थियों द्वारा लगाए गए अनुमान की परीक्षा लेने के लिए बनाया गया है।
- विद्यार्थियों से कहें कि: ‘मैं किसी संख्या के बारे में सोच रहा हूँ – अपने समूहों में रहकर, वे चार संकेत तय करें और मुझसे पूछें कि मैं किस संख्या के बारे में सोच रहा हूँ।’
- कुछ मिनट बाद एक अन्य समूह से उनके द्वारा सोचे गए संकेतों के बारे में पूछें और उन्हें इसे आज़माने दें। भले यह काम करे या न करे, लेकिन उनसे इन चार संकेतों को चुनने का कारण पूछें। यह पूछें कि क्या किसी समूह ने उनसे अलग चार संकेतों का चुनाव किया है और फिर उन संकेतों को आज़माएँ। संकेत सही होने पर रुक जाएँ और अपने द्वारा चुनी गई संख्या का पता लगाएँ।
- यही प्रक्रिया कई अलग संख्याओं के लिए दोहराएँ, या विद्यार्थियों से कहें कि वे अब आपकी भूमिका निभाएँ और कोई संख्या सोचें।
- उसके बाद इस बात पर चर्चा करें कि संख्या को ढूँढने के लिए किन चार संकेतों की आवश्यकता नहीं है। सर्वश्रेष्ठ संकेत क्या हो सकते हैं, और क्यों?
बच्चों के पास स्कूल आने से पहले गणित से सम्बन्धित अनेक अनुभव पास होते हैं बच्चों के तमाम खेल ऐसे जिनमें वे सैंकड़े से लेकर हजार तक का हिसाब रखते हैं। वे अपने खेलों में चीजों का बराबर बँटवारा कर लेते हैं।
अपनी चीजों का हिसाब रखते हैं। छोटा-बड़ा, कम-ज्यादा, आगे-पीछे, उपर-नीचे, समूह बनाना, तुलना करना, गणना करना, मुद्रा की पहचान, दूरी का अनुमान, घटना-बढ़ना जैसी तमाम अवधारणाओं से बच्चे परिचित होते हैं।
हम बच्चों को प्रतीक ही सिखाते हैं। उनके अनुभवों को प्रतीकों से जोड़ना महत्वपूर्ण है।
गणित मूर्त और अमूर्त से जुड़ने और जूझने का प्रयास है अवधारणाएँ अमूर्त होती हैं चाहे विषय कोई भी हो।
गणितीय अमूर्तता को मूर्त, ठोस चीजों की मदद से सरल बनाया जा सकता है। जब मूर्त को अमूर्त से जोड़ा जाता है तो अमूर्त का अर्थ स्पष्ट हो जाता है।
प्रस्तुतीकरण के तरीकों से भी कई बार गणित अमूर्त प्रतीत होने लगता है।
शुरुआती दिनों में गणित सीखने में ठोस वस्तुओं की भूमिका अहम होती है इस उम्र में बच्चे स्वाभाविक तौर पर तरह-तरह की चीजों से खेलते हैं, उन्हें जमाते. बिगाड़ते और फिर से जमाते हैं।
इस प्रक्रिया में उनकी सारी इंद्रियों सचेत होती हैं, और वे उनके सहारे मात्राओं को टटोलते व समझते रहते हैं - यहीं से शुरू होती है गणित सीखने की प्रक्रिया।
गणित सीखने का एक निश्चित क्रम है। पहले ठोस वस्तुओं के साथ काम, चित्रों के साथ काम और बाद में संकोश तथा प्रतीकों के साथ काम करना आवश्यक है।
पूर्व प्राथमिक शिक्षा 4-6 आयुवर्ग के बच्चों की विशेषताओं के आधार पर निश्चित रूप से खेल-विधि से दी जानेवाली शिक्षा है अर्थात खेल और क्रियाकलाप पर आधारित शिक्षा है, जिनमें निम्न खेल एवं क्रियाकलाप बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं
- खेल
- शिशुगीत
- कहानी
- वार्तालाप
- कठपुतली खेल
- गुड़िया का खेल
- प्रयोग
- अभिनय
- प्रकृति में विचरण
- संगीत व लयात्मक क्रियाएं खेल-सामग्री के साथ
- संज्ञानात्मक एवं भाषा-संबधी क्रियाएं
- कक्षा के अंदर व बाहर के खेल
पूर्व प्राथमिक शिक्षा का कार्यक्रम नियोजन बच्चों की आवश्यकताएं
आयु, स्तर, रुचियां एवं अभिरुचियां ही पूर्व । प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम का आधार होनी चाहिए। पूर्व प्राथमिक शिक्षा का नियोजन लंबी एवं छोटी, दोनों अवधि के लिए किया जाना चाहिए। लंबी अवधि के लिए नियोजन से तात्पर्य सालभर की योजना बनाने से है। इसे बनाते समय बच्चों का विकासात्मक स्तर, सामाजिक परिप्रेक्ष्य, सांस्कृतिक मान्यताएं एवं स्थानीय लोगों की विशेष आवश्यकताओं को दृष्टि में रखना चाहिए। तत्पश्चात, सालभर की योजना के आधार पर छोटी अवधि के लिए नियोजन करना चाहिए। छोटी अवधि के लिए नियोजन का अभिप्राय साप्ताहिक योजना बनाने से है, जिसके अंतर्गत प्रत्येक दिन की क्रियाओं और उसके आयोजन का विवरण हो। साल भर की योजना शैक्षिक सत्र के आरंभ में ही तैयार कर ली जानी चाहिए, जबकि साप्ताहिक योजना अगला सप्ताह शुरू होने से पहले तैयार की जानी चाहिए। यह सनिश्चित करना चाहिए कि यह नियोजन पूर्व प्राथमिक शिक्षा के उददेश्यों की प्राप्ति में सहायक हो।
बच्चे के सर्वांगीण विकास
पूर्व प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए निम्नलिखित आयामों को ध्यान में रखना आवश्यक है
- व्यक्तिगत, सामाजिक और संवेगात्मक विकास
- शारीरिक और गत्यात्मक विकास
- संज्ञानात्मक विकास
- भाषा विकास
- सृजनात्मक अभिव्यक्ति और सौंदर्यानुभूति का विकास
शिक्षिका कार्यकर्मी को एक दैनिक संतुलित कार्यक्रम बनाना चाहिए जिसमें उपरोक्त सभी आयामों से संबंधित खेल-क्रियाएं समाहित हों। इसके लिए समेकित प्रणाली का उपयोग करना वांछनीय है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें