Q.परिवार की उत्पत्ति परिवार की उत्पत्ति कैसे हुई?
उत्तर - परिवार की उत्पत्ति को जाने से पहले परिवार के बारे में जानना जरूरी है कि परिवार है क्या?
परिचय -
• परिवार सामाजिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण आधार स्तंभ है, जिसका व्यक्ति के जीवन में प्राथमिक महत्व है। परिवार सामाजिक संगठन की एक सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक निर्माणक इकाई है। परिवार के द्वारा ही सामाजिक संबंधों का निर्माण होता है जो समाजशास्त्र की विषय वस्तु है।
• मूल मानव में सदैव जीवित रहने की इच्छा होती है जिसे परिवार द्वारा वह पूरा करता है मैलिनोवस्की (Sex and Repression in savage society) कहते हैं कि 'परिवार ही एक ऐसा समूह है जिसे मनुष्य पशु अवस्था से अपने साथ . लाया है।
● एल्मर अपनी पुस्तक Sociology of Family में लिखते हैं कि 'Family' शब्द का उदगम लैटिन शब्द 'Famulus' से हुआ है जो एक ऐसे समूह के लिए प्रयुक्त हुआ है जिसमें माता-पिता, बच्चे, नौकर व दास हों।'
परिवार क्या होता है?
• परिवार एक ऐसी संस्था है जिसकी परिभाषा ऐसी नहीं दी जा सकती है जो सभी देश, कालों के परिवारों के लिए सही हो। इसका मुख्य कारण यह है कि परिवार के रूप एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति में बदलते रहते हैं। कहीं पर एक विवाह प्रथा मान्य है तो कहीं पर बहु विवाह | एक विवाह और बहु विवाह का प्रभाव परिवार पर पड़ता है। इन्हीं सब बातों को दृष्टि में रखते हुए डनलप महोदय ने कहा कि परिवार की कोई सार्वभौमिक परिभाषा नहीं दी जा सकती है।
• परिवार को साधारणतया एक ऐसे समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें पति, पत्नी और उनके बच्चे पाए जाते हैं तथा जिसमें इन बच्चों की देख-रेख तथा पति-पत्नी के अधिकार व कर्त्तव्यों का समावेश होता है।
परिवार की परिभाषा
मैकाइवर व पेज के अनुसार परिवार की परिभाषा
"परिवार निश्चित यौन संबंध द्वारा परिभाषित एक ऐसा समूह है जो बच्चों के जनन एवं लालन-पालन की व्यवस्था करता है।"
लूसीमेयर के अनुसार के अनुसार परिवार की परिभाषा
"परिवार एक गार्हस्थ समूह है जिसमें माता- पिता और संतान साथ साथ रहते हैं। इसके मूल में दंपति और उसकी संतान रहती है।"
किंग्सले डेविस के अनुसार, के अनुसार परिवार की परिभाषा:-
"परिवार ऐसे व्यक्तियों का समूह है जिसमें सगोत्रता के संबंध होते हैं और जो इस प्रकार एक-दूसरे के संबंधी होते हैं।"
बर्गेस व लॉक के अनुसार, के अनुसार परिवार की परिभाषा
" परिवार व्यक्तियों के उस समूह का नाम है जिसमें वे विवाह, रक्त या दत्तक संबंध से संबंधित होकर एक गृहस्थी का निर्माण करते हैं एवं एक दूसरे पर स्त्री-पुरूष, माता-पिता, पुत्र-पुत्री, भाई-बहन इत्यादि के रूप में प्रभाव डालते व अंतः क्रिया करते हुए एक सामान्य संस्कृति का निर्माण करते हैं।"
● एल्मर अपनी पुस्तक Sociology of Family में लिखते हैं कि 'Family' शब्द का उदगम लैटिन शब्द 'Famulus' से हुआ है जो एक ऐसे समूह के लिए प्रयुक्त हुआ है जिसमें माता-पिता, बच्चे, नौकर व दास हों।'
परिवार क्या होता है?
» परिवार एक ऐसी संस्था है जिसकी परिभाषा ऐसी नहीं दी जा सकती है जो सभी देश, कालों के परिवारों के लिए सही हो। इसका मुख्य कारण यह है कि परिवार के रूप एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति में बदलते रहते हैं। कहीं पर एक विवाह प्रथा मान्य है तो कहीं पर बहु विवाह | एक विवाह और बहु विवाह का प्रभाव परिवार पर पड़ता है। इन्हीं सब बातों को दृष्टि में रखते हुए डनलप महोदय ने कहा कि परिवार की कोई सार्वभौमिक परिभाषा नहीं दी जा सकती है।
→ परिवार को साधारणतया एक ऐसे समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें पति, पत्नी और उनके बच्चे पाए जाते हैं तथा जिसमें इन बच्चों की देख-रेख तथा पति-पत्नी के अधिकार व कर्त्तव्यों का समावेश होता है।
बर्गेस व लॉक के अनुसार, के अनुसार परिवार की परिभाषा
» परिवार व्यक्तियों के उस समूह का नाम है जिसमें वे विवाह, रक्त या दत्तक संबंध से संबंधित होकर एक गृहस्थी का निर्माण करते हैं एवं एक दूसरे पर स्त्री-पुरूष, माता-पिता, पुत्र-पुत्री, भाई-बहन इत्यादि के रूप में प्रभाव डालते व अंतःक्रिया करते हुए एक सामान्य संस्कृति का निर्माण करते हैं।'
ऑगबर्न और निमकॉफ के
अनुसार
परिवार
» जब हम परिवार के बारे में सोचते हैं तो हमारे समक्ष एक ऐसी कम या अधिक स्थायी समिति का चित्र आता है। जिसमें पति एवं पत्नी अपने बच्चों के साथ या बिना बच्चों के रहते हैं। या एक ऐसे अकेले पुरूष या अकेली स्त्री की कल्पना आती है जो अपने बच्चों के साथ रहते हैं।' परिवार को एक समिति मानते हुए ऑगबर्न और निमकॉफ ने इसे भिन्न लिंग व्यक्तियों के बीच होने वाले समझौते के परिणामस्वरूप संतानोत्पत्ति की सामाजिक वैधता के रूप में स्पष्ट किया है परिवार तब भी परिवार है जब उसमें बच्चे नहीं हैं यह अकेली माता अथवा अकेले पिता के साथ बच्चों सहित भी परिवार ही है।
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि परिवार जैविकीय संबंधों पर आधारित एक सामाजिक समूह है जिसमें माता-पिता और उनकी संतानें होती हैं तथा जिसका उद्देश्य अपने सदस्यों के लिए भोजन, प्रजनन, यौन संतुष्टि समाजीकरण संबंधी आवश्यकताओं की करना है।
इस प्रकार परिवार के निम्नलिखित पांच तत्वों का उल्लेख किया जा सकता है
» स्त्री-पुरूष का यौन संबंध
(Mating
relationship)
» यौन संबंधों को विधिपूर्वक स्वीकार किया जाता है। ● संतानों की वंश व्यवस्था ( Reckoning of descent )
» सह निवास (Child & Rearing )
परिवार की विशेषताएं
सार्वभौमिकता
» परिवार एक सार्वभौमिक इकाई है। परिवार हर समाज, हर काल, देश व परिस्थिति में पाए जाते हैं, चाहे इनका स्वरूप कुछ भी हो। समाज का इतिहास ही परिवार का इतिहास रहा है। क्योंकि जब से मानव का जन्म इस धरती पर हुआ है तभी से परिवार रहा है। चाहे पहले उसका स्वरूप भले ही कुछ रहा हो।
भावात्मक आधार
» परिवार का आधार व्यक्ति की वे भावनाएं हैं जिनकी पूर्ति के लिए उसने परिवार का निर्माण किया है, जैसे वात्सल्य, यौन, सहयोग, सहानुभूति इत्यादि ।
सृजनात्मक प्रभाव
■ व्यक्ति परिवार में ही जन्म लेता है और परिवार में ही उसकी मृत्यु हो जाती है। इसलिए परिवार व्यक्ति पर रचनात्मक प्रभाव डालता है। जिस प्रकार का परिवार होगा उसी प्रकार व्यक्तियों के विचार व दृष्टिकोण निर्मित होंगे। मिट्टी के बर्तन के समान बच्चों के भविष्य का निर्माण परिवार में ही होता है।
सीमित आकार
» चूंकि परिवार के अंतर्गत केवल वे ही व्यक्ति आते हैं जो वास्तविक या काल्पनिक रक्त संबंध से होते हैं, इसलिए अन्य संगठनों की अपेक्षा इसका आकार सीमित होता है। किसी भी परिवार में दो-चार सौ सदस्य नहीं होते, क्योंकि जैसे बच्चे बड़े होते गए उनका विवाह होता गया, फलस्वरूप उन्होंने अलग परिवार बसाना प्रारंभ किया, इस तरह परिवार का आकार सीमित होता जाता है। आज संतति निरोध द्वारा पारिवारिक आकार को और सीमित बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है।
सामाजिक संरचना में केंद्रीय स्थिति
» परिवार सामाजिक संरचना का केंद्र बिंदु है। जिसके आधार पर समाज की अन्य समस्त इकाइयों व सामाजिक संबंधों का निर्माण होता है। परिवार के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। समाज का छोटा रूप परिवार और परिवार का विस्तृत रूप समाज है।
परिवार के प्रकार (parivar ke prakar)
परिवार एक महत्वपूर्ण संस्था है। देश, काल परिस्थिति के अनुसार समय-समय पर इसके स्वरूप मे परिवर्तन होता रहा है। सामाजिक विचारको ने परिवार का वर्गीकरण विभन्न आधारो पर किया है। परिवार के प्रकार या स्वरूप इस प्रकार है--
(A) सदस्यों की संख्या के आधार पर परिवार
सदस्यों की संख्या के आधार पर परिवार दो प्रकार के होते है--
1. प्राथमिक परिवार
जिस परिवार मे सिर्फ माता तथा उनके अविवाहित बच्चे होते है, उस परिवार को प्रथामिक परिवार कहते है।
पढ़ना न भूलें; परिवार का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं
2. विस्तृत परीवार या संयुक्त परिवार
जिस परिवार मे एक वंश के समस्त भाई, उनकी पत्नियां, लड़के-बच्चे, उनकी बहने तथा माता-पिता आदि रहते है और जिस घर का एक बुजुर्ग व्यक्ति मालिक या मुखिया होता है। उस परिवार को विस्तृत परीवार कहते है।
(B) विवाह के आधार पर परिवार के प्रकार
विवाह के आधार पर परिवार को निम्म दो श्रेणियों मे विभाजित किया जा सकता है--
1. एक विवाही परिवार
एक विवाही परिवार वह परिवार है जिसमे एक समय मे एक पुरूष तथा स्त्री वैवाहिक जीवन व्यतीत करते है।
2. बहुविवाही परिवार
वह परिवार जिसमे एक पुरूष या स्त्री कई पुरूषो या स्त्रियों के साथ वैवाहिक जीवन व्यतीत करते है। इस प्रकार इन्हे दो भागो मे बांटा जा सकता है--
(अ) बहु-पत्नी विवाही परिवार
(ब) बहुपति विवाही परिवार
(C) संबंध के आधार पर परिवार के प्रकार
संबंधों के आधार पर भी परिवार दो तरह के होते है--
1. रक्त संबंधी परिवार
चार्ल्स विनिक के शब्दों मे, " रक्त संबंधी परिवार रक्त संबंधियों का एक केन्द्र है, जो पति पत्नी के जाल से घिरा होता है।"
इस परिवार मे वे सभी आते है जो कि जन्म द्वारा एक दूसरे से संबंधित होते है तथा इसलिए इनमे चुनाव अथवा व्यक्तिगत इच्छा का कोई प्रश्न ही नही उठता।
2. विवाह संबंधी परिवार
चार्ल्स विनिक के अनुसार," विवाह संबंधी परिवार पति-पत्नी का केंद्र है, जो कि संबंधियों के जाल से घिरा होता है।" इस तरह विवाह संबंधी परिवार मे पति-पन्ति तथा उनके बच्चे तो प्राथमिक रूप से होते ही है। साथ ही साथ विवाह के कारण दोनो परिवार के संबंधी भी सहयोगी के रूप मे ऐसे परिवार मे आते है।
(D) सत्ता के आधार पर परिवार के प्रकार
सत्ता के आधार पर भी दो तरह के परिवार होते है--
1. पितृसत्तात्मक परिवार
पितृसत्तात्मक परिवार उन परिवारों को कहते है जहाँ पर पिता को प्रधान माना जाता है।
2. मातृसत्तात्मक परिवार
मातृसत्तात्मक परिवार वे परिवार है जहाँ पर पिता के स्थान पर माता को प्रधानता दी जाती है। इस तरह के परिवारों का प्रचलन मालाबार के नायरों मे है।
(E) वंश के आधार पर परिवार के प्रकार
वंश के आधार पर भी परिवार दो तरह के होते है--
1. पितृवंशीय परिवार
जिन परिवारों मे वंश परंपरा पिता के नाम से चलती है एवं जिनमे किसी एक पुरूष को पूर्वज माना जाता है उसे पितृवंशीय परिवार कहते है।
2. मातृवंशीय परिवार
ये परिवार वे परिवार है जिनमे वंश परंपरा माता के नाम से चलती है तथा किसी स्त्री को मूल पूर्वज माना जाता है। मालाबार के नायरों मे मातृसत्तात्मक परिवार मातृवंशीय परिवार ही होते है।
(F) निवास स्थान के आधार पर परिवार के प्रकार
निवास स्थान के आधार पर भी परिवार दो तरह के होते हैं--
1. पितृस्थानी परिवार
पितृस्थानी परिवार उन परिवारों को कहते है जिनमे विवाहोपरांत स्त्री पुरुष के घर जाकर रहती है।
2. मातृस्थानी परिवार
ये परिवार है जिनमे विवाहोपरांत पुरूष स्त्री के घर जाकर निवास करता है, जैसे मालाबार के मातृसत्तात्मक परिवार।
(G) नाम के आधार पर परिवार के प्रकार
यह भी दो तर के होते है--
1. पितृनामी परिवार
पितृनामी परिवार वे परिवार है जिनमे परिवार का नाम पिता के नाम पर चलता है। साधारणतया पितृसत्तात्मक, पितृवंशीय तथा पितृस्थानी परिवार पितृनामी परिवार ही होते है।
2. मातृनामी परिवार
मातृनामी परिवार वे परिवार होते है जिनमे परिवार का नाम पिता के बजाय माता के नाम पर चलता है। यह परिवार भी साधारणतया मातृसत्तात्मक, मातृवंशीय तथा मातृस्थानी परिवार मातृनामी परिवार कहे जाते है।
(H) पक्ष के आधार पर परिवार के प्रकार
पक्ष के आधार पर भी परिवार दो तरह के होते हैं--
1. एक पक्षीय परिवार
वे परिवार है जिनमे वंश परंपरा या तो पुरुष की तरफ से चलती है या स्त्री की ओर से।
2. उभयपक्षी परिवार
उभयपक्षी परिवार मे वंश परंपरा स्त्री तथा पुरूष दोनों की तरफ से चलती है।
परिवार के कार्य या महत्व (parivar ke karya)
ऑगबर्न ने परिवार के निम्म कार्य बताए है--
1. स्नेह तथा प्रेम सम्बन्धी कार्य
2. आर्थिक कार्य
3. मनोरंजन सम्बन्धी कार्य
4. पालन पोषण अथवा रक्षा सम्बन्धी कार्य
5. धार्मिक कार्य
6. शिक्षा सम्बन्धी कार्य
मैकाईवर तथा पेज के अनुसार परिवार के कार्य इस प्रकार है--
(अ) अनिवार्य कार्य
1. यौन आवश्यकता की स्थायी संतुष्टि
2. संतानोत्पत्ति एवं उनका पालन-पोषण
3. स्नेहात्मक कार्य
(ब) अ-अनिर्वाय कार्य
1. आर्थिक कार्य
2. धार्मिक कार्य
3. शैक्षणिक कार्य
4. मनोरंजनात्मक कार्य
5. सरकारी कार्य
6. स्थिति प्रदान करने के कार्य।
लुण्डबर्ग ने परिवार के इस प्रकार कार्य बताए है--
1. यौन व्यवहारों एवं सन्तानोत्पत्ति का नियमन
2. शिशु पालन एवं प्रशिक्षण
3. श्रम विभाजन से उत्पन्न कार्य प्रारूप
4. प्राथमिक समूह सम्बन्धों की तुष्टि।
परिवार का महत्व किसी से भी छिपा नही है। इसका व्यक्ति तथा समाज दोनों ही दृष्टियों से बड़ा महत्व है। परिवार व्यक्ति और समाज के विकास मे महत्वपूर्ण योगदान देता है। परिवार के कार्यों का वर्गीकरण हम दो भागों मे कर सकते है--
(A) परिवार के मौलिक कार्य
1. यौन इच्छाओं की पूर्ति
परिवार यौन संबंधी इच्छाओं की पूर्ति का महत्वपूर्ण साधन है। परिवार व्यवस्थित रूप से प्रत्येक व्यक्ति को विवाह के द्वारा यौन संबंधो को स्थापित करने की स्वीकृति प्रदान करता है और इनका उल्लंघन करने पर दंड भी देता है। इस कार्य के नही होने पर समाज मे अव्यवस्था एवं अनैतिकता फैल सकती है।
2. संतानोत्पत्ति
संतानोत्पत्ति परिवार का दूसरा प्रमुख प्राणीशास्त्रीय कार्य है। यद्यपि यह कार्य परिवार के बाहर भी संभव है लेकिन वे संताने अवैध होती है ऐसी संतानो का समाज तिरस्कार करता है। परिवार द्वारा किये जाने वाले संतानोत्पत्ति के कार्य से ही समाज का अस्तित्व एवं निरंतरता बनी रहती है। परिवार संतानो को वैधता प्रदान करता है।
3. सदस्यों की शारीरिक रक्षा
परिवार अपने सदस्यों की शारीरिक रक्षा का कार्य भी संपन्न करता है। पालन-पोषण से लेकर बच्चे को सामाजिक प्राणी बनने तक संपूर्ण दायित्व परिवार द्वारा वहन किये जाते है। शारीरिक चोट एवं बीमारी की अवस्था मे सेवा सुश्रुषा की व्यवस्था, असहाय, कमजोर, वृद्ध तथा अपहिजों की देखरेख का कार्य परिवार ही करता है। सदस्यों को आवश्यकतानुसार सुरक्षा एवं सुविधाएं देना, मानसिक सुरक्षा प्रदान करना परिवार का महत्वपूर्ण कार्य है।
4. मनोवैज्ञानिक कार्य
व्यक्ति को शारीरिक सुरक्षा ही पर्याप्त नही होती बल्कि मानसिक सुरक्षा का भी होना आवश्यक है तभी व्यक्ति समाज मे अच्छी तरह रह सकता है। परिवार अपने सदस्यों को मानसिक संतुष्टि, शांति व सुरक्षा प्रदान करता है।
(B) परिवार के परंपरागत कार्य
1. सामाजिक कार्य
परिवार व्यक्ति का समाजीकरण करता है। उसके व्यवहारों पर नियंत्रण रखता है, उसके व्यवहार को सामाजिक नियमो तथा रीति-रिवाजो के अनुसार ढालता है। परिवार से ही व्यक्ति की सामाजिक स्थिति निर्धारित होती है।
2. सांस्कृतिक कार्य
समाज के प्रत्येक सदस्य को उसकी संस्कृति अर्थात् उसकी परंपराओं तथा रीति रिवाजों के अनुकूल ढालना पड़ता है। परिवार इस कार्य को पूरा करने के लिए प्रत्येक सदस्य के लिए सांस्कृतिक पर्यावरण प्रस्तुत करता है।
3. धार्मिक कार्य
बालक अपने माता पिता द्वारा नाना प्रकार की धार्मिक बाते सुनकर धर्म के प्रति प्रेम करना सीख जाते है। किस तरह धार्मिक उत्सव मनाना चाहिए, ईश्वर की पूजा करनी चाहिए, किस तरह साधु सन्यासी की सेवा करनी चाहिए आदि धार्मिक कार्य बालक परिवार मे ही सीखता है।
4. शिक्षणात्मक कार्य
परिवार का बच्चे के जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। बच्चा जन्म से ही अपने माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों से अनेक बाते सीखता है। इस प्रारंभिक शिक्षा का बच्चे के चरित्र व व्यक्तित्व के निर्माण पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। प्लटो और अरस्तु ने परिवार को " जीवन की प्रारंभिक पाठशाला " के नाम से पुकारा है।
5. सामाजिक नियंत्रण का कार्य
परिवार नियंत्रण सामाज का सर्वोन्मुख साधन है क्योंकि सबसे पहले परिवार मे ही व्यक्ति सामाजिक जीवन के अनुकूल चलना सीखता है।
6. राजनीतिक कार्य
राजनीतिक कार्य भी परिवार के द्वारा किये जाते है। एक प्रशासनिक इकाई के रूप मे परिवार का महत्व सर्वव्यापी है। आदिम समाजो मे परिवार का यह कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है। वहाँ मुखिया परिवार का शासक होता है। मुखिया द्वारा व्यक्ति के व्यवहारों को नियंत्रित करना, दंडित करना, अनुशासन, समानता, स्वतंत्रता तथा मातृत्व की भावना का विकास कर देश को सफल नागरिक बनाना परिवार का वास्तविक शासक होता है, परिवारिक झगड़ों का निपटाना उसी का कार्य है।
परिवार की उत्पत्ति के सिद्धांत - theories of the origin of the family
परिवार एक सामाजिक संस्था है जिसे आदिम समाजों की बहुत शुरुआती रूप में जाना जाता है। इसका अर्थ है कि परिवार सदा से था केवल इसका स्वरूप अलग था। Maclver के अनुसार, “इतिहास में ऐसा कोई चरण नहीं था जिसमें परिवार जैसी सामाजिक संस्था अनुपस्थित थी।
परिवार की उत्पत्ति के बारे में विवाद है लेकिन परिवार की उत्पत्ति के बारे में उद्विकास के कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांत निम्नलिखित हैं।
1. यौन साम्यवाद का सिद्धांत
2. पितृसत्तात्मक सिद्धांत
3. मातृसत्तात्मक सिद्धांत
4. एकविवाही (मोनोगैमी) का सिद्धांत
5. उद्विकासवादी सिद्धांत
6. बहुकारक सिद्धांत
यौन साम्यवाद का सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार, प्राचीन समाजों में स्थायी यौन विनियमन पर कोई नियंत्रण नहीं था। कोई भी पुरुष या महिला अन्य पुरुष या महिला के साथ यौन संबंध स्थापित कर सकती / सकता था और यौन संबंध पर कोई प्रतिबंध नहीं था। एक महिला को आतिथ्य के संकेत के रूप में मेहमानों के लिए प्रस्तुत किया जाता था। मुक्त पुरुष और महिला के बीच के इस तरह के मुक्त यौन संबंध के चरण को यौन साम्यवाद कहा जाता है। इस प्रकार का परिवार मनुष्य की भावना या उसकी ईर्ष्या का उत्पाद था। जब अपनी पत्नियों की जरूरत महसूस हुई तब पारिवारिक जीवन शुरू हुआ था।
पितृसत्तात्मक परिवार का सिद्धांत
यह सिद्धांत प्लेटो और अरस्तू द्वारा दिया गया था और सर हेनरी मेन द्वारा विस्तृत किया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार पुरुष का बच्चों और पत्नी पर प्रमुख अधिकार माना जाता था।
रोम में आदमी को अपनी पत्नी और बेटों को मारने का अधिकार दिया गया था। तो, उस आदमी को परिवार का मुखिया कहा जाता था। इस सिद्धांत के अनुसार पहले परिवार की उत्पत्ति हुई जो पितृसत्तात्मक था। यह सिद्धांत दोषपूर्ण है क्योंकि अधिकांश अन्य प्राचीन समाजों में मां को अधिकार और नियंत्रण की शक्ति थी।
मातृसत्तात्मक परिवार का सिद्धांत
कुछ लोग परिवार की उत्पत्ति के मातृसत्तात्मक सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करते हैं ब्रिफ़ोटिस के अनुसार प्राचीन समाजों में लोगों को पितृत्व के साथ बच्चे के संबंध के बारे में पता नहीं था। प्राचीन समाजों के लोग स्वतंत्र व्यवहार करते हैं एक दूसरे के साथ संभोग करते हैं, जो यह नहीं जानते थे कि पिता कौन है। निश्चित रूप से माँ को बच्चे को जन्म देने और उसके पालन-पोषण के लिए जाना जाता था। इस सिद्धांत से ऐसा लगता है कि परिवार की उत्पत्ति मातृसत्तात्मक थी, बाद में पिता के महत्व पर सभ्यता की प्रगति और कृषि के विकास के साथ वृद्धि हुई थी।
उद्विकासवादी सिद्धांत
अमेरिकी समाजशास्त्री मॉर्गन ने परिवार की उत्पत्ति के उद्विकासवादी सिद्धांत को सामने रखा है। उनके अनुसार उद्विकासवाद का यह सिद्धांत निम्न चरणों से गुजरा है।
1) समरक्त परिवार: इस प्रकार के परिवार में, रक्त संबंधीयों के बीच विवाह की मनाही नहीं थी।
2) समूह परिवार इस प्रकार के परिवार में एक परिवार के भाई दूसरे परिवार की बहनों के साथ विवाह कर सकते हैं, लेकिन इस तरह के यौन पर प्रतिबंध नहीं था। यौन संबंधों के नियम निर्धारित नहीं थे।
3) सिण्डेस्मियन परिवार इस अवस्था में एक पुरुष एक समय में एक महिला के साथ शादी कर सकता है लेकिन परिवार में विवाहित महिला के यौन संबंधों को परिभाषित नहीं किया गया था।
4) पितृसत्तात्मक परिवार: इस प्रकार के परिवार में पुरुष की श्रेष्ठता थी, और वह एक समय में कई महिलाओं के साथ यौन संबंध रखता था।
5) एक-विवाही परिवारः यह परिवार प्रणाली का वर्तमान चरण है। इस प्रकार में एक पुरुष एक समय में एक महिला के साथ विवाह कर सकता है।
एकविवाही (मोनोगैमी) का सिद्धांत
यह सिद्धांत वेस्टनमार्क ने प्रस्तुत किया था जो उनकी पुस्तक "हिस्ट्री ऑफ ह्यूमन मैरिज" में है। यह डार्विन, जुकरमैन और मालिनोवस्की द्वारा समर्थित था। डार्विन के अनुसार परिवार एक पुरुष की आवश्यकता और एक महिला के मालिक होने की इच्छा से उत्पन्न हुआ। यह सिद्धांत व्यक्ति की स्वामित्व और ईर्ष्या की भावना पर आधारित है। मैन पॉवर और अधिकार के कारण वह एक महिला को अपने पास रखना चाहता था और उसके साथ यौन संबंध बनाता था। बाद में इस प्रथा को आमतौर पर समाज द्वारा स्वीकार कर लिया गया।
बहुकारक सिद्धांत
कई समाजशास्त्रियों/मानवविज्ञानियों का मानना है कि राल्फ लिंटन के अनुसार परिवार के विकास के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं, “समाजों ने अपने उद्विकास के एक ही रेखा का पालन नहीं किया है अपितु यह उद्विकास बहुरेखीय रहा है। ऐसे बहुत से कारक हैं जो इसके उद्विकास को प्रभावित करते हैं।
इस तरह से यह सिद्धांत आधुनिक समाजशास्त्रियों/मानवविज्ञानियों के लिए स्वीकार्य है। Maclver के अनुसार, परिवार के मूल में कारक निम्नानुसार हैं।
1. यौन संबंध: यह परिवार की उत्पत्ति का मूल कारक है। परिवार के सदस्यों की संतुष्टि के लिए यौन आवश्यक है। यह प्रजनन के लिए आवश्यक है।
2. प्रजनन परिवार का मुख्य प्रकार्य बच्चों के प्रजनन और उनके पालन-पोषण करना है। यह पुरुष और महिला के बीच बच्चे पैदा करने की इच्छा है।
3. आर्थिक संगठन: बुनियादी जरूरतों की पूर्ति में परिवार महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पुरुष पत्नी और परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं के लिए अर्थव्यवस्था का स्रोत है।
चर्चा से हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि, परिवार के उद्विकास और उत्पत्ति का कोई विशिष्ट सिद्धांत नहीं है, लेकिन कई लोगों ने मूल के बारे में अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। अब अगर हम देखें, तो बहु-कारक सिद्धांत सभी समाजशास्त्रियों द्वारा स्वीकार किया जाता है।
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