Q. गणित को परिभाषित करें ।
परिभाषाएँ ( Definitions ) - गणित की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं
1. मार्शल , एच . स्टोन ( Marshal , H. Stone ) के अनुसार- " गणित एक ऐसी अमूर्त व्यवस्था का अध्ययन है जो कि अमूर्त तत्वों से मिलकर बनी है । इन तत्वों को मूर्त रूप में परिभाषित किया गया है । "
2. बर्टेण्ड रसैल ( Bertrand Russel ) के अनुसार- " गणित एक ऐसा विषय है जसमें यह भी नहीं जानते कि हम किसके बारे में बात कर रहे हैं और न ही यह जान पाते हैं कि हम जो कह रहे हैं , वह सत्य है । "
3. गैलीलियो ( Galileo ) के अनुसार- " गणित वह भाषा है जिसमें परमेश्वर ने सम्पूर्ण जगत या ब्रह्माण्ड को लिख दिया है । "
4. लौक ( Locke ) के अनुसार- " गणित वह मार्ग है जिसके द्वारा बच्चों के मन या मस्तिष्क में तर्क करने की आदत स्थापित होती है । "
5. गॉस ( Gauss ) के अनुसार- " गणित , विज्ञान की रानी है । "
6. बेल ( Bell ) महोदय के अनुसार- " गणित को विज्ञान का नौकर माना जाता है । "
7. गिब्स ( J. Willard Gibbs ) के अनुसार- " गणित एक भाषा है । "
8. बेकन ( Bacon ) के अनुसार- " गणित सभी विज्ञानों का मुख्य द्वार एवं कुंजी है । "
9. काण्ट ( Kant ) महोदय के अनुसार- " एक प्राकृतिक विज्ञान केवल उसी स्थिति जब तक इसका स्वरूप गणितीय है । "
10. अर्थलॉट ( Berthelot ) के अनुार- " " गणित सभी वैज्ञानिक शोधों का एक अति महत्वपूर्ण उपकरण है । " 11. कॉमटे ( Comte ) के अनुसार- " वह सभी वैज्ञानिक शिक्षा जो गणित को साथ लेकर नहीं चलतो , अनिवार्यतः अपने मूल रूप में दोषपूर्ण है । "
12. होगबेन ( Hogben ) के अनुसार- " गणित सभ्यता और संस्कृति का दर्पण है । "
13. व्हाइटहेड ( White Head ) के अनुसार- " व्यापक महत्व की दृष्टि से गणित सभी प्रकार की औपचारिक निगमनात्मक तार्किक योग्यता का विकास है । "
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर गणित के सम्बन्ध में सारांश रूप में हम कह सकते हैं कि-
( 1 ) गणित स्थान तथा संख्याओं का विज्ञान है ।
( 2 ) गणित गणनाओं का विज्ञान है ।
( 3 ) गणित माप - तौल ( मापन ) , मात्रा ( परिमाण ) तथा दिशा का विज्ञान है ।
( 4 ) गणित विज्ञान को क्रमबद्ध , संगठित तथा यथार्थ शाखा है ।
( 5 ) इसमें मात्रात्मक तथ्यों और सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है ।
( 6 ) यह तार्किक विचारों का विज्ञान है ।
( 7 ) गणित के अध्ययन से मस्तिष्क में तर्क करने की आदत स्थापित होती है ।
( 8 ) यह आगमनात्मक तथा प्रायोगिक विज्ञान है ।
Q. हमारे जीवन से गणित का संबंध बहुत घनिष्ठ है । कैसे ?
उत्तर -
- गणित का सम्बन्ध हमारे जीवन से बहुत घनिष्ठ है । आजकल की सभ्यता का आधार गणित ही है । गणित को व्यापार का प्राण और विज्ञान का जन्मदाता समझा जाता है ।
- इन्जीनियरिंग का पूरा कार्य गणित पर ही आधारित रहता है ।
- मातृ - भाषा के अतिरिक्त ऐसा कोई भी विषय नहीं है जो दैनिक जीवन से इतना अधिक सम्बन्धित हो ।
- आधुनिक सभ्यता एप्लाइड गणित के आधार पर ही खड़ी हुई है ।
- गणित एक उपकरण है , जिसका प्रयोग विज्ञान करता है । मनुष्य जिस वातावरण में रहता है , उसमें रुचि लेने की क्षमता प्रदान करने के लिए तथा उन प्रयत्नों का मूल्यांकन करने के लिए जो दूसरे लोग प्रयोग करते हैं , गणित का कुछ ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक हो जाता है ।
- एक विशेषज्ञ को अपने क्षेत्र में गणित का सरलतापूर्वक प्रयोग करने के लिए उसका पर्याप्त ज्ञान अवश्य प्राप्त करना चाहिए ।
- ऐसे व्यवसायों की संख्या जिनमें गणित के ज्ञान को आवश्यकता होती है , बहुत अधिक है तथा निरनतार बढ़ती ही जा रही है ।
- गणित का प्रकृति से भी गहरा सम्बन्ध है । प्राकृतिक क्रियाओं में विविधता में परिवर्तन मुख्य है ।
- चलन कलन में परिवर्तन का ही अध्ययन किया जाता है , अत : इसे प्रकृति का गगिन कहा जा सकता है । प्राकृतिक विज्ञान जैसे - ज्योतिर्विज्ञान तथा भौतिक विज्ञान अधिकांशतः गणित के समान ही हैं ।
- ऐसा माना जाता है कि बल और क्रियाओं के बीच में गणितीय सम्बन्ध रहता है । इन सम्बन्धों की खोज तथा नियमोकरण से ही किसी विषय का निश्चित ज्ञान हो पाता है । गणित के ज्ञान के बिना प्रकृति का अध्ययन नहीं हो सकता ।
- माध्यमिक विद्यालयों के विद्यार्थी चाहे पूर्ण रूप से इस तथ्य की अनुभूति न कर सकें , परन्तु या प्रकृति में गणितीय रचना की झलक अवश्य देख सकते हैं ।
- गणित में विद्यार्थी को इस बात की आवश्यकता होती है कि वह स्थिति को ठीक रूप से देखें ।
- प्रायः अनेक अनावश्यक विचरणों में से तथ्यों की खोज करनी पड़ती है । एक विद्यार्थी को स्पष्ट और शीघ्रता से यह जानना होता है कि क्या दिया है और क्या ज्ञात करना है ।
- गणित में प्रयुका होने वाली प्रक्रिया अनुमानात्मक है । अन्तत : हमारे सभी विचार इसी प्रकार के हैं । यदि हम किसी व्यवसाय अथवा व्यापार को चुनते हैं तो हमें एक निश्चित मार्ग अपनाना पड़ता है । यदि हम अपने धन को एक विशेष ढंग से खर्च करते हैं , किसी राजनैतिक दल को बोट देते हैं , किसी समिति का कार्य सम्भालते हैं , अपने पड़ोसी का जान - बूझकर अपमान करते हैं . .....तब ........ जब कभी भी हमें कार्य करने के विभिन्न तरीकों में से एक का निश्चय करना पड़ता है तो अनुमानात्मक वृत्ति ही हमारे सामने रह जाती है ।
- इस महत्वपूर्ण आदत का सामान्य प्रशिक्षण एवं अभ्यास कराने के लिए गणित शिक्षा एक शक्तिशाली शस्त्र बन सकता है ।
- इसमें तथ्यात्मक सूचनाएँ कम से कम होती है तथा ध्यान को आवश्यक तथा पर्याप्त शब्दों की खोज में तथा निष्कर्ष निकालने पर ही केन्द्रित कर दिया जाता है ।
- ऐसे शब्दों के द्वारा , जिनकी संक्षिप्त ढंग से परिभाषा की गयी हो एवं चिहों के प्रयोग से , किसी भी तर्क का सार बड़ी स्पष्टता से प्रकट हो जाता है ।
Q . गणित शिक्षण के प्राप्य उद्देश्य पर प्रकाश डालें ।
उत्तर -
प्रत्येक उद्देश्य के अन्तर्गत बहुत से प्राप्य उद्देश्य ( Objectives ) आते हैं । एक शिक्षक को किसी विशेष उद्देश्य हेतु कुछ प्राप्य उद्देश्यों को ध्यान में रखना होता है । कक्षा में किसी उपविषयों को पढ़ाते समय अध्यापक , को एक प्राप्य उद्देश्य सम्मुख है । प्रत्येक प्राप्य उद्देश्य को परीक्षा के लिए शिक्षक को पाठ्य - वस्तु तथा बालक के व्यवहार में परिवर्तन को ध्यान में रखना होता है ।
यह स्पष्ट है कि किसी प्राप्य उद्देश्य की परीक्षा करने के लिए पाठ्य - वस्तु , प्रश्न , व्यवहार परिवर्तन तथा आवश्यक वस्तुएँ आवश्यक होती हैं । कुछ उदाहरणों से उपर्युक्त कथन को पुष्टि होती है ।
प्राप्य उद्देश्य कक्षा में अध्यापक द्वारा प्राप्त किये जाने वाले तात्कालिक तथ्य होते हैं । इनके द्वारा छात्र के व्यवहार में परिवर्तन आता है , उनका पूर्वानुमान लगाकर उन्हें अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तनों के रूप में व्यक्त करने की चेष्टा की जाती है । शिक्षाविदों ने कहा है कि , " शिक्षण कुछ कहना न होकर अनवरत अभ्यास की एक प्रक्रिया है।
"अतः सतत् अभ्यास द्वारा छोटे - छोटे लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं । उन लक्ष्यों को प्राप्य उद्देश्य कहा जाता है तथा इन उद्देश्यों के आधार पर शिक्षण के उद्देश्य निर्धारित होते हैं तथा पुनः विभिन्न शिक्षण विधियों का प्रयोग कर व्यवहारगत परिवर्तन की आशा की जाती है ।
उद्देश्य प्राप्ति की छोटी - छोटी क्रियाएँ प्राप्य उद्देश्य हैं । अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन प्राप्य उद्देश्य ( Objectives ) तथा व्यावहारिक उपयोगिता कहलाती हैं । प्राप्य उद्देश्य लक्ष्य प्राप्ति के साधन हैं । इन प्राप्य उद्देश्यों की परीक्षा के लिए पाठ्य - वस्तु , प्रश्न , व्यवहार परिवर्तन तथा आवश्यक वस्तुएँ आवश्यक हैं ।
गणित शिक्षण में निम्नलिखित प्राप्य उद्देश्य होते हैं ( 1 ) ज्ञानात्मक उद्देश्य ( Knowledge Type Objectives ) ,
( 2 ) अवबोधनात्मक उद्देश्य ( Understanding Type Objectives ) ,
( 3 ) अनुप्रयोगात्मक उद्देश्य ( Application Type Objectives ) ,
( 4 ) कौशलात्मक उद्देश्य ( Skill Type Objectives ) ,
( 5 ) अभिकृत्यात्मक उद्देश्य ( Attitude Type Objectives ) .
( 6 ) अभिरुच्यात्मक उद्देश्य ( Interest Type Objectives ) ,
( 1 ) ज्ञानात्मक उद्देश्व - इसके अन्तर्गत छात्रों को प्रत्ययों , तथ्यों , पदों , चिह्नों तथा इन पर आधारित नियमों का चयन करना होता है ताकि छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन हो सके । ये निम्नलिखित है
( i ) गणित के नये - नये शब्द , चिन्ह , संकेत आदि की वैज्ञानिक शब्दावली के अनुसार जानकारी ।
(ii) विभिन्न शब्दों की परिभाषाओं , नियमों , सिद्धान्तों आदि से परिचित करना तथा उसके पारस्परिक सम्बन्ध को समझना ।
( iii ) अपने समीप के वातावरण से सामंजस्य एवं आवश्यक जानकारी होना ।
( iv ) पदों , प्रत्ययों तथा नियमों एवं सिद्धान्तों का पूर्ण स्मरण कर सकना तथा उन्हें पहचान सकना ।
( v ) गणित के इतिहास के बारे में सम्यक् जानकारी तथा समाज पर उसके प्रभाव से अवगत हो सकना ।
( vi ) आरेख रेखाचित्र में पैमाने का उचित निर्धारण ताकि समंकों को आकृति में सुगमता से उभारा जा सके ।
( 2 ) अवबोधनात्मक उद्देश्य - इसके अन्तर्गत छात्र गणित से सम्बन्धित पदों , तथ्यों , प्रत्ययों एवं संकेतों का अवबोध करता है । इससे बालक के व्यवहार में निम्नलिखित परिवर्तन होंगे।
(i) आवश्यकतानुसार सूत्र एवं सिद्धान्त का चयन एवं प्रयोग कर सकेगा ।
( ii ) विभिन्न भौतिक राशियों एवं इकाइयों को व्यक्त कर सकेगा तथा विभिन्न सूत्रों , संकेतों एवं नियमों का वर्गीकरण कर सकेगा ।
( iii ) तथ्यों , पदों एवं प्रत्ययों के उदाहरण दे सकेगा ।
( iv ) छात्र विभिन्न तथ्यों , प्रत्ययों आदि की परस्पर तुलना कर सकेगा ।
( v ) गणितीय विचारों एवं सिद्धान्तों को अपनी भाषा में अभिव्यक्त कर सकेगा ।
( vi ) दिये गये समकों एवं अवधारणों की उपयुक्तता एवं अनुपयुक्तता को पहचान
( 3 ) अनुप्रयोगात्मक उदेश्य :- गणितीय समस्याओं को हल करने , नवीन निर्णय लेने हेतु विकास करता है । इससे के व्यवहार में निम्नलिखित परिवर्तन होता है
( O समस्या के वर्गीकरण में सूत्र एवं विषय में सूत्र एवं नियम के अन्तर को भली - भांति a पहचान सकेगा ।
( 1 ) दिये गये आंकड़ों की सहायता से सामान्यीकरण कर नये नियम बना सकेगा ।
( iii ) ऑकड़ों एवं संकेतों का पूर्वानुमान कर सकेगा ।
( iv ) पूर्वानुमानों को कर सकेगा ।
( v ) छात्र प्राप्त ज्ञान को जीवन की नई - नई परिस्थितियों में प्रयोग करना सीख सकेंगे ।
( 4 ) कौशलात्मक उद्देश्य - गणितीय आरेख , रेखाचित्र , ग्राफ खींचना , यंत्रों का उचित प्रयोग , गणना कार्य , जिसमें शुद्धता आये एवं शुटियों का संशोधन कर सके । इससे बालक में निम्नलिखित व्यवहारगत परिवर्तन दृष्टिगोचर होंगे :-
( i ) छात्र गणितीय यंत्रों का नाम जानकर उनका उचित प्रयोग कर सकेगा ।
( ii ) गणितीय उपकरणों ( मॉडल ) धन , वर्ग , पिरामिड , शंकु एवं बेलन बना सकेगा ।
( iii ) आँकड़ों के आधार पर सही पैमाना मानकर गणितीय आरेख खाँच सकेगा ।
( iv ) कलात्मक रुचि का विकास कर सकेगा , सहायक सामग्री का निर्माण एवं प्रयोग में दक्षता प्राप्त कर सकेगा ।
Q. गणित शिक्षण की पाठ्यक्रम में क्या आवश्यकता है विवेचना करें ।
उत्तर - गणित को विद्यालय के पाठ्यक्रम में क्या स्थान दिया जाये ? इसकी पाठ्यक्रम में क्या आवश्यकता है ? इसे पूर्ण विषय बनाने को लेकर भी मतभेद है । फ्रोल , माण्टेसरी , पेस्थालॉजी आदि शिक्षाशास्त्रियों ने गणित की शिक्षा को मनुष्य के बौद्धिक एवं सांस्कृतिक विकास का सर्वश्रेष्ठ साधन मानकर गणित को शिक्षा के पाठ्यक्रम में उच्च स्थान दिया । जैन गणितज्ञ श्री महावीराचार्य ने भी अपनी पुस्तक " गणित सार संग्रह " में इसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बताते हुए लिखा ... अधिक क्या कहें सचराचर के त्रैलोक्य में जो कुछ भी वस्तु है , उसका अस्तित्व गणित के बिना सम्भव नहीं हो सकता । 1. गणित का जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध - गणित का जीवन के विभिन्न पक्षों से घनिष्ठ सम्बन्ध है । गणित के माध्यम से चित्त की एकाग्रता एवं मानसिक अनुशासन को बनाये रखा जा सकता है । इसके कारण तर्क - वितर्क , नवीनतम खोज , कर्म के प्रति लगन एवं निष्ठा को आदत का विकास होता है । गणित से स्पष्ट भाव एवं विचारों को व्यक्त करने की आदत का विकास होता है । गणित की एक एक समस्या मस्तिष्क के लिए एक खुली चुनौती होती है जो कि हमारे समान मानसिक शक्तियों को सुनियोजित ढंग से जीवन की समस्याओं को हल करने के लिए तैयार करती है । 2. गणित का अन्य विषयों से सम्बन्ध - गणित का अन्य विषयों के साथ गहरा सम्बन्ध है । आधुनिक संस्कृति की नींव विज्ञान है परन्तु इस नीव में लगाई जाने वाली ईट गणित के
नियम हैं । कोई ऐसा विषय नहीं है जिसमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से गणित की आवश्यकता नहीं पड़ती हो । गणित का ज्योतिष , चिकित्सा , भूगोल , अर्थशास्त्र , रसायन आदि विषयों में ही नहीं वरन् इतिहास के अध्ययन में भी इसको आवश्यकता पड़ती है । 3. सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति में महत्त्व - गणित का सम्बन्ध रोजी - रोटी कमाने से भी है । सामाजिक एवं आर्थिक विकास की जड़ें शिक्षा के साथ हैं । गणित शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण भाग है । सभी व्यवसायों और उद्योगों की कुंजी गणित के हाथ में है । व्यापार के सभी आँकड़े तथा मूल्यांकन गणित के द्वारा ही किया जाता है । गणित के माध्यम से ही हम व्यापार की वास्तविक स्थिति का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । सामाजिक विकास में गणित को अहम् भूमिका है । सामाजिक विकास का मापदण्ड आधुनिक उपकरण है । आधुनिक उपकरणों के विकास में गणित आवश्यक है । इस तरह हम देखते हैं कि सामाजिक एवं आर्थिक गति में गणित प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों रूप में सहयोगी है । 4. मानसिक विकास में सहायक - गणित एक ऐसा विषय है जो मानसिक शक्तियों के प्रशिक्षण के अवसर उपलब्ध कराता है तथा एक सोई हुई व अनिर्देशित आत्मा में चेतना व जागृति उत्पन्न करने का कौशल गणित ही प्रदान कर सकता है । 5. गणित तार्किक दृष्टिकोण पैदा करता है - गणित के माध्यम से छात्रों में समस्याओं को हल करने के लिए तार्किक दृष्टि मिलता है । इसके द्वारा छात्रों में बौद्धिक एवं मानसिक विकास होता है । इसी कारण तर्क के माध्यम से किसी समस्या के हल तक पहुंचा जा सकता है । गणित के सूत्र इसी तरह तर्क के आधार पर समस्या हल करने की ओर प्रेरित करते हैं । 6. परिणाम की निश्चितता - गणित में किसी भी सम्बन्ध का हल निश्चित होता है । इसमें कक्षा या आयु के आधार पर किसी प्रकार के अन्तर की सम्भावना नहीं होती है । गणित के फल एक ही रूप में होते हैं . इनमें शंका की गुंजाइश नहीं होती है । परिणाम की इस निश्चितता के कारण परीक्षा में मूल्यांकन भी पूर्ण होता है । 7. समस्या समाधान की कुशलता हेतु आवश्यक - विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत समस्याओं के उचित समाधान हेतु उन्हें सरल रूप में बदलना , अनुमान लगाना , परिणाम निकालना , स्थिति विश्लेषण , अमूर्तता आदि युक्तियों का अधिगम आवश्यक है । इन युक्तियाँ का ज्ञान विद्यार्थियों को गणित की सहायता से ही हो सकता है । अत : समस्या समाधान किस प्रकार होगा इसकी कुशलता हेतु यह आवश्यक है । 8. गणित के अन्वेषणात्मक नियमों से परिचय हेतु आवश्यक - बालकों को गणित के अन्वेषण एवं खोजने के नियमों का ज्ञान होना भी आवश्यक है , केवल गणित को एक विज्ञान बताना ही पर्याप्त नहीं है । 9. प्रत्यक्षीकरण और निरूपण के कौशल हेतु आवश्यक - गणित शिक्षण से बालकों में वस्तु के आकार , प्रकार , संरचना , परिणाम एवं रूपों द्वारा स्थितियों का सर्वोत्तम प्रत्यक्षीकरण होता है । साथ ही गणितीय नियमों , सिद्धान्तों व अवधारणाओं का अनेक तरीकों से निरूपण भी गणित द्वारा ही सौखा जाता है । उक्त दोनों कौशल जीवन - पर्यन्त चलने वाले ट्रेनिंग हैं , अत : यह भी आवश्यक होते हैं ।
इस प्रकार गणित शिक्षण अत्यंत ही आवश्यक है, प्राथमिक स्तर से ही बालक गणितीय चिंतन की ओर बढ़ता है बालक अपने अनुभव व त्रुटियों के साथ काम करना प्रणाम करता है वह धीरे-धीरे विद्यालय शिक्षा का यह ज्ञान एक विषय आत्मक उपागम की ओर बढ़ता है।
आता गणित का अध्ययन प्रत्येक व्यक्ति को इस योग्य बनाता है कि उसकी चिंतन प्रक्रिया क्रमबद्ध, तर्कसंगत एवं व्यवहारिक हो तथा इस दैनिक जीवन में गणितीय संक्रिया ओं का प्रयोग कर सकें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें