➡️ संज्ञानात्मक विकास की अवस्था
- संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएँ - बच्चों के सोचने का तरीका वयस्क के सोचने के तरीके से ही केवल अलग नहीं होता है परन्तु आपने अनुभव किया होगा कि अलग - अलग आयु वर्ग के बच्चे भी सोचने के विभिन्न रूपों का प्रदर्शन करते हैं । ( Piaget ) ने बच्चों में ज्ञानात्मक विकास के स्तर सिद्धांत को विकसित करते समय बारीकी से इसका अवलोकन किया है । प्याजे ने अपने तीन बच्चों का उनके जन्म से ही बहुत बारीक से अवलोकन किया और उनकी क्रियाओं की ( विशिष्ट रूप से संक्रियाएँ ) कुछ समानताजी के आधार पर समूह बनाया , और फिर स्तर या विशेषकाल की क्रियाओं के प्रतिमानों का निर्माण किया तथा यह प्रदर्शित किया कि बच्चे सोचने या संज्ञान के विकास के कुछ विस्तृत स्तरों या कालों का अनुसरण करते हैं ।
तदनुसार प्याजे ने संज्ञानात्मक विकास के स्तरों या कालों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया है
- संवेदी क्रियात्मक काल ( जन्म से 2 वर्ष तक )
- पूर्व - संक्रिया काल ( 2 से 7 वर्ष तक )
- मूर्त संक्रिया काल ( 7 से 11 वर्ष ) और
- औपचारिक संक्रिया काल ( 11-12 वर्ष से 14-15 वर्ष तक )
1. संवेदी क्रियात्मक काल - पहला स्तर , जन्म से डेढ़ वर्ष या 2 वर्ष तक , पूर्व - मौखिक , पूर्व प्रतीकात्मक काल है । इस काल की विशेषतायें है बच्चों की प्रत्यक्ष क्रियायें , जैसे सूचना , देखना , पकड़ना आदि जो पहले असमायोजित होते हैं परन्तु बाद में धीरे - धीरे समायोजित बन जाती हैं । इसमें क्षणिक गति और प्रतिक्रियात्मकता से प्राप्त आदतों और इनसे बौद्धिक क्रिया - कलापों की ओर उत्तरोत्तर वृद्धि होती है । उदाहरण के लिए सबसे पहली क्रिया जो बच्चा प्रदर्शित करता है वह है अंगूठा चूसना जो कि प्रतिक्रियात्मक क्रिया नहीं है परन्तु यह एक आदत है जिसे बच्चा खोजता है और संतुष्टि प्राप्त करता है । यह आदत बच्चे को प्रतिक्रियात्मक क्रिया से निकलता है या बाहरी प्रतिबंधों के द्वारा बनता है । एक वर्ष की आयु पर बच्चे के व्यवहार में एक नया तत्व आ जाता है । वह अपनी क्रियाओं में एक उद्देश्य या इच्छा स्थापित कर सकता है । वह गलीचे पर कुछ दूरी पर रखी एक बॉल को पकड़ने के क्रम में वह उस तक लेटकर पहुँचने की कोशिश करता है । वह बॉल को प्राप्त करने की विधि का विकास कर सकता है । वह गलीचे पर कुछ दूरी पर रखी एक बॉल को पकड़ने के क्रम में , वह उस तक लेटकर पहुंचने की कोशिश करता है । वह बॉल को प्राप्त करने की विधि का विकास कर सकता है । वह गलीचे को खींचकर , बॉल को खींचने की कोशिश कर सकता है , इसलिए वह गलीचे को अपनी ओर खींचता है ऐसी क्रिया किसी कार्य के पीछे की भावना को प्रदर्शित करती है और पियाजे इसे एक बुद्धिमानी वाला कार्य समझता है । बच्चा कुछ उद्देश्य या साध्य के साथ सोचना शुरू करता है और उस साध्य को प्राप्त करने के लिए उचित साधन की तलाश करता है । आगे इस काल के अंत की ओर बच्चा घर पर बोले जाने वाली भाषा के एकाक्षर का इस्तेमाल करके बोलना शुरू कर देता है । यह प्रतीकात्मक क्रिया के शुरू होने का सूचक होता है , एक बुद्धिमता का घटक होता है ।
2. पूर्व - संक्रिया काल - यह काल 11 या 2 वर्ष से शुरू होकर 7 वर्ष की आयु तक चलता है । इसे विद्यालय के पूर्व की अवस्था भी माना जाता है । यह काल प्रतीकों के निरूपण की अवस्था के रूप में भी जाना जाता है । प्रतीकात्मक प्रकार्यों में भाषा,प्रतीकात्मक खेल , कल्पना का अधिकार और बिलावा अनुकरण शामिल क्रियात्मक काल के दौरान वस्तुओं और कल्पनाओं को निषित करने के लिए किसी काम या प्रतीक का उपयोग नहीं होता है लेकिन पूर्व - सक्रिया काल में बच्या किती नुककिया जैसे कोई खेल खेलना , में शब्दों का उपयोग करता है । प्रायः इस खेल रूप धारण करते है , जो वास्तविक जीवन प्रतीकात्मक रूप से बताते हैं । विलोबा अनुकरण में बच्या स्वयं को ऐसी क्रिया - कलानी में संलिप्त रखता है जिसमें ऐसे प्रतिरूपों के अनुकरण करने की आवश्यकता पड़ती । उनके सामने उपलव्य नहीं होता है । ऐसे क्रिया - कलाप खास बनाना , खिलौने को सपा पहनाना आदि हैं और इसी प्रकार के अन्य क्रिया - कलाप शामिल है । ऐसे किया - कताओं के द्वारा निरूपण करना संभव है । निरूपण करने का अर्थ है - विचारों का क्रियाओं में रूपांतरण करना । इस प्रकार से बाहय क्रिया - कलापों को आत्मसात करना जो कि विचार के कई आयामों को बढ़ाने में सहायता करता है । पूर्व सक्रिया विचार काल प्रतिवर्ती संक्रियाओं और अवधारणा के संरक्षण से रहित होता है । चार से पांच वर्ष की आयु के बच्चे एक छोटे तथा चोदे बोतल से दय पदार्थ को एक लम्बे तथा पतले बोतल में उड़ेल सकता है और यह सोचता है कि लम्बे पतले बर्तन में ज्यादा द्रव पदार्थ है । इस प्रक्रिया के विपरीत क्रिया दिखाने के बाद भी यह संतुष्ट नहीं होता है कि द्रव पदार्थ की मात्रा समान है ।
3. मूर्त संक्रिया काल - तीसरी अवस्था , लगभग सात से ग्यारह या भारत वर्ष की आयु मूर्त संक्रिया काल की होती है । यह आपके लिए विशेष महत्त्व रखता है क्योंकि प्राथमिक विद्यालय के अधिकांश बच्चे अधिकतर समय इस स्तर के विकास की अवस्था में होते है । यह स्तर गणितीय तार्किक सोच की प्रारम्भिक अवस्था है । अतः गणित अधिगम के लिये ये महत्त्वपूर्ण हैं जिसके बारे में हम इस इकाई के उत्तरोत्तर भागों में विस्तृत चर्चा करेंगे । इस काल में बच्चे क्रिया का प्रदर्शन शुरू करते हैं जो कि उनके मूर्त वस्तुओं का भौतिक रूप से हस्त - कौशल के द्वारा तार्किक सोच को योग्यता की ओर इंगित करता है । बच्चा ज्ञानेंद्रिय संकेतों पर इस काल में निर्भर नहीं होता है । इस काल के दौरान बच्चा दो मुख्य सक्रियाओं का प्रदर्शन करता है । ये क्रियाएँ - समूहीकरण और संरक्षण है जो कि गणितीय अवधारणाओं के विकास से जुड़ी हुई है । अगले भाग में चर्चा से यह स्पष्ट हो जायेगा ।
4. औपचारिक संक्रिया काल - चौथी अवस्था , औपचारिक सक्रिया काल को है , जो कि ॥ या 12 वर्ष की आयु तक पटित नहीं होती है । बच्चा उच्च प्राथमिक स्तर पर होता है त्या प्रतीकों या विचारों का उपयोग करके तर्क करता है और अपनी सोच के लिए भौतिक वस्तुओं की जरूरत महसूस नहीं करता है । बच्चा नयो मानसिक संरचना प्राप्त कर पुका होता है । ये नई संरचनाएँ - प्रतीकात्मक तर्क का प्रस्तावनात्मक संयुक्तोकरण , जैसे अभिप्रेतार्थ ( यदि ... तब ) , वियोजन ( दोनों में से एक या दोनों , अपवर्जन ( कोई एक पा ) इसी तरह अन्य संरचनाएं शामिल है । बच्चा अब अनुपातों से संबंधित परिकलन करना जानता है जो कि उसको छोटा या बड़ा मानचित्र बनाना , समय और दूरी से संबंधित समस्याएं हल करना , प्रायिकता और ज्यामितीय समस्याओं को हल करने में सहयोग करता है ।
संक्षेप में, सोच या संज्ञान का विकास , अनुभव और संवेदी क्रियात्मक अनुभवों से आगे बढ़ता है । फिर मूर्त वस्तुओं का हस्त कौशल करके सोचने की प्रक्रिया से आगे बढ़कर काल्पनिक रूप से सोचने की ओर आगे बढ़ता है जिसमें अमूर्त वस्तुओं की अनुपस्थिति में अमूर्त पदों के द्वारा कई प्रकार के विचारों को संयुक्त करता है । संज्ञानात्मक विकास की समझ और विशेषताएँ आपको अधिगम विधियों के विकास में सहायता करेगा तथा उचित विकास स्तरों में गणित अधिगम के लिए साधन उपलब्ध कराने में सहायता करता है ।
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