Important Questions answer हिंदी व्याकरण
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Q 1. शुक्लोत्तर युग के निबंधो की विशेषताओं को लिखें।
उत्तर :-
शुक्लोत्तर युग के निबंधों की विशेषताएं .
1. गंभीर विचारात्मक भावनात्मक एवं आत्मपरक निबंध।
2. विषय प्रधान निबंध ।
3. प्रौढ़ एवं गभीर शैली ।
4. मनोविकासात्मक तथा विचारात्मक निबंध।
5. विषय वस्तु में पर्याप्त विविधता ' ।
6. इस युग के निबंधों में संस्कृति एवं परंपरागत ज्ञान विज्ञान के साथ-साथ युगीन समस्याओं को भी सम्मिलित किया गया है।
Q 2. संकलन त्रय क्या है? नाटकों में इसका क्या महत्व है?
उत्तर :-
" संकलन त्रय " का तात्पर्य है - तीन तत्वों का संकलन होना ।
ये तीन संकलन है-
1. समय की एकता
2. स्थान की एकता
3. कार्य की एकता
1. समय की एकताः - विभाजन की त्रासदी , स्वतंत्रता के बाद का समम, रामायण काल का समय मतभारत काल का समय आदि ।
2. स्थान की एकता :- विभाजन के समय लाहोर दिल्ली, स्वतंत्रता के बाद दिल्ली का स्थान ।
3. कार्य की एकताः- उस समय की भाषा, उस समय का वस्त्र, उस समय के आभूषण।
नाटक में संकलनत्रय : नाटक में प्रस्तावित स्थल , काल और कार्य की अन्विति ही संकलनत्रय कहलाती है । यह परम आवश्यक तत्व है ।
संकलन त्रय का महत्व : संकलनत्रय के तीन तत्व होते हैं , 1.प्रस्तावित स्थल ,
2.काल ( समय ) ,
3. कार्य अन्विति ।
1.प्रस्तावित स्थल : नाटकीय घटना यथार्थ जीवन में एक ही स्थान पर घटित होनी चाहिए ।
2.काल ( समय ) : जिसका तात्पर्य है कि नातकीय घटना यथार्थ जीवन में 24 घंटे से अधिक घटित होने वाली नहीं होनी चाहिए ।
3.कार्य अन्वितिः कथावस्तु में केवल एक ही मुख्य कथा हो , उसमें सहकारी , उपकथाएं ना हो ।
Q 3. रिपोर्ताज से क्या आशय है ? रिपोर्ताज की तीन विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर :-
रिपोर्ताज लेखक किसी घटना का सूक्ष्म एवं मनोवैज्ञानिक वर्णन करता है । इसकी शैली चित्रात्मक एवं विवरणात्मक होती है ।
विशेषताएँ:-
( 1 ) रिपोर्ताज हिन्दी की ही नहीं , पाश्चात्य साहित्य की भी नवीनतम विधा है ।
( 2 ) इसका जन्म साहित्य और पत्रकारिता के संयोग से हुआ है ।
( 3 ) रिपोर्ताज घटना का आँखों देखा हाल होता है ।
( 4 ) इसमें कुछ घटनाओं के सूक्ष्म निरीक्षण के आधार पर मनोवैज्ञानिक विवेचन तथा विश्लेषण होता है ।
Q 4. मत्तगयन्द छंद की परिभाषा और उदाहरण दीजिए।
परिभाषा / अर्थ
सवैया का एक भेद या प्रकार
इसके प्रत्येक चरण में 7 भगण ( 211 ) और दो गुरु के क्रम से 23 वर्ण होते हैं ।
मत्तगयंद के प्रत्येक चरण में सात भगण तथा दो गुरु होते है।
उदाहरण
सीस जटा , उर बाहु , बिसाल , विलोचन लाल , तिरीछी - सी भौहें ।
तून सरासन बान धरे , तुलसी बन - मारग में सुठि सोहै । ।
सादर बारहिं बार सुभाय चितै तुम त्यों हमरो मन मोहैं । पूछति ग्राम बधू सिय सों “ कहाँ साँवरे से , सखि रावरे को है ?
सन्दर्भ - महाकवि तुलसीदास हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं । कवितावली तुलसीदास का प्रसिद्ध तथा श्रेष्ठ खण्डकाव्य है । हमारी पाठ्य - पुस्तक की वन - पथ पूर ' शीर्षक कविता कवितावली काव्य में संकलित है जिससे प्रस्तुत पद उद्धृत किया गया है । इसमें रचना वन में जाते समय श्रीराम के सौन्दर्य का वर्णन है ।
व्याख्या - श्रीराम सीता और लक्ष्मण के साथ वन में जा रहे थे । मार्ग में एक गाँव के पास से गुजरते हैं । ग्रामीण स्त्रियाँ इन्हें देखकर मुग्ध हो जाती हैं । एक स्त्री सीताजी से पूछती है हे सखी ! ये श्याम रंग के कुमार कैसे सुन्दर हैं ! इनके सिर पर जटाएँ हैं । इनका वक्षस्थल तथा भुजा विशाल है । लाल - लाल इनकी आँखें और तिरछी भाँहि हैं । ये तरकस , धनुष तथा बाण धारण किये नहीं हुए हैं तथा वन के मार्ग में अति सुन्दर शोभायमान हैं । ये बड़े अंदर के सायं बार - बार स्वाभाविक ढंग से देखते हैं और हमारे मन का मोहित कर लेते हैं । अन्त में ग्रामीण स्त्री परिहास करती हुई पूछती हैं . हे सखी ! हमें बताओ ये श्याम रंग के कुमार तुम्हारे कौन हैं ?
Q 5. कवित्त छंद के लक्षण और उदाहरण लिखिए।
उत्तर :-
साधारण अर्थ में कविता को 'कवित्त' कहते हैं (निज कवित्त केहि लाग न नीका —तुलसीदास)। किन्तु विशेष अर्थ के रूप में कवित्त एक छन्द है।
इसमें प्रत्येक चरण में 7, 6, 6, 7. के साथ 31 अक्षर होते हैं। अंत में केवल गुरु होना चाहिए, शेष वर्णों के लिए लघु गुरु का कोई नियम नहीं है। जहां तक संभव हो, एक ही अक्षर के शब्दों का उपयोग करते समय पाठ मधुर होता है। यदि विषम अक्षर शब्द होते हैं तो दो एक साथ होते हैं। इसे 'मनहरण' और 'घनाक्षरी' भी कहा जाता है।
उदाहरण
कूलन में, केलि में, कछारन में, कुंजन में, कयारिन में कलिन कलीन किलकंत है ।
कहै पझाकर परागन में, पौनहू में, पातन में, पिक में, पलासन पगंत है ।
द्वारे में, दिसान में दुनी में, देस देसन में, देखी दीप दीपन में, दीपत दिगंत है ।
बीथिन में, ब्रज में, नबेलिन में, बेलिन में, बनन में, बागन में, बगरयो बसंत है ।
— पद्माकर( ऋतु वर्णन )
Q 6. विशेषोक्ति अलंकार को उदाहरण सहित समझाइए।
विशेषोक्ति अलंकार वह अलंकार है जिसमे प्रबल कारण होने पर भी कार्य न हो ।
जैसे :-
दो - दो मेघ बरसते है , पर मैं प्यासी की प्यासी हूँ । अर्थात काव्य में जहाँ कारण के होते हुए भी कार्य का न होना पाया जाय , वहाँ विशेषोक्ति अलंकार होता है ।
विशेषोक्ति अलंकार के उदाहरण
(1) दो-दो मेघ बरसते मैं प्यासी की प्यासी।
नीर भरे नित प्रति रहै, तऊ न प्यास बुझाई।।
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में यह कहा गया है कि दो दो बादल बरस रहे हैं फिर भी मैं प्यासी हूं। अर्थात यहां पर कारण तो है कि वर्षा हो रही है फिर भी वह प्यासी है अर्थात कार्य नहीं हुआ इसलिए यहां पर विशेषोक्ति अलंकार है।
(2) फूलइ फलइ न बें, जदपि सुधा बरसहिं जलद ।
मूरख हृदय न चतें, जौ मुरू मिलई विरंचि सम।।
स्पष्टीकरण – बादल की सुधदृष्टि के बाद भी बेंत का न फूलना न फलना और विदंचि (ब्रह्मा) जैसे गुरू होने के बाद भी मूर्ख के हृदय में चेतना उत्पन्न न होना ‘विशेषोक्ति अलंकार’ है।
(3) लागन उर उपदेश, जदपि कहयौ सिव बार बहु।
स्पष्टीकरण – शिव के बार-बार कहने पर भी, मूर्ख को उपदेश समझ में नहीं आ रहा है। अर्थात यहाँ कारण तो है की स्वयं भगवान समझा रहे पर फिर भी कार्य में सफलता नही मिली अतः यहाँ पर विशेषोक्ति अलंकार है।
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