संप्रेषण की परिभाषाएं(Communication Definition and Types In Hindi)

 

संप्रेषण की परिभाषाएं(Communication Definition and Types In Hindi)

संप्रेषण का अर्थ

‘एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को सूचनाओं एवं संदेशों को भेजना तथा प्राप्तकर्ता द्वारा उन्हें ठीक और सही अर्थ में समझाना, जिस रूप और अर्थ में संप्रेषण चाहता है।’

संप्रेषण को आंग्ल भाषा मे कम्युनिकेशन कहा जाता है। इस आंग्ल भाषा शब्द का निर्माण लैटिन शब्द ‘कम्युनी’ से हुआ है। इसका आशा सामान्य विचारों, भावनाओं, सूचनाओं के आदान-प्रदान से होता है।

सम (भली प्रकार) + प्रेषण (भेजना) = संप्रेषण

संप्रेषण की परिभाषाएं (Communication definitions)

पॉललीगंस के अनुसार  “संचार (संप्रेषण) वह क्रिया है, जिसके द्वारा दो या अधिक लोग विचारों, तथ्यों, भावनाओं एवं प्रभावों आदि का इस प्रकार विनिमय करते हैं कि संचार प्राप्त करने वाला व्यक्ति संदेश के अर्थ, उद्देश्य तथा उपयोग को भलीभांति समझ लेता है।”

डॉ. आई . पी. तिवारी के अनुसार – “संप्रेषण जीवन की एक क्रिया है। इसके अभाव में जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। संप्रेषण जीवन के साथ शुरू होता है, और जीवन के अंत के साथ खत्म हो जाता है। सामाजिक व्यवस्था में संप्रेषण की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।”

अच्छे संप्रेषण की विशेषताएं (Characteristics of good communication)

  • छात्रों की पूर्व अनुभवों का ध्यान
  • उचित पथ प्रदर्शन
  • अच्छी योजना
  • निर्देशात्मक
  • बालकों की कठिनाइयों का निदान
  • अधिगम से संप्रेषण का संबंध

संप्रेषण के घटक या कारक

  • प्रेषक
  • संदेश
  • माध्यम
  • प्रतिपुष्टि
  • प्रापक
  • प्रतिक्रिया

(1) प्रेषक (Communicator) – प्रेषक एक माध्यम की सफलता का मूल आधार संदेश होता है। प्रेषक को अपना संदेश प्रेषित करते समय निम्न बिंदुओं का ध्यान रखना चाहिए।

  • छात्रों का बौद्धिक स्तर
  • उद्देश्य की जानकारी
  • स्वयं का व्यक्तित्व
  • अभिप्रेरणा
  • कक्षा का वातावरण
  • पाठ योजना का निर्माण
  • विषय वस्तु का चयन
  • वैयक्तिक विभिन्नताओं का ध्यान
  • निष्पक्ष भाव
  • बालक का मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य
  • विषयों के सह संबंध पर आधारित शिक्षण संप्रेषण

(2) संदेश (message) – संदेश से आशय पाठ्य पुस्तक से हैं। प्रेषक ग्राही को जो कुछ भी सिखाना चाहता है। इस कार्य हेतु अपना जो अनुभव व ज्ञान व शिक्षण के माध्यम से प्रेषित करता है। उसे संदेश कहते हैं।

यदि एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को सूचना या जानकारी दी जाती है,और दूसरा व्यक्ति समझ लेता है, तो वह संप्रेषण कहलाता है।

संप्रेषण पूरा होने के लिए संप्राप्ति की आवश्यकता है, अथवा किसी के द्वारा कही गई बात को उसी तरह समझ लेना संप्रेषण कहलाता है।

Communication Definition and Types In Hindi

(3) माध्यम (Media)- माध्यम प्रेषक और प्रापक के बीच मेल कराते हैं। जैसे – रेडियो, टेलीविजन, ओवरहेड, प्रोजेक्टर, टेलीफोन, बी.सी.आर. आदि।

(4) ग्राही (Receiver) – ग्राही अर्थात ग्रहण करने वाले प्राप्त करने वाला सीखने वाला, संप्रेषण के द्वारा दिए जाने वाले ज्ञान को ग्रहण करने वाला ग्राही कहलाता है। संप्रेषण के तीन प्रमुख घटक है। संप्रेषण, संदेश एवं ग्राही

ग्राही को अन्य नामों जैसे- प्रापक, प्राप्तकर्ता, ग्राहीकर्ता, विषयी इत्यादि नामों से संबोधित किया जाता है।

(5) प्रतिपुष्टि (Feed Back) – सीखने की प्रक्रिया में समय पर प्रतिपुष्टि देना आवश्यक होता है। जिससे वह संदेश की प्रति जागरूक रहता है।

संप्रेषण के प्रकार (Types of communication)

संप्रेषण के दो प्रकार होते हैं।

1. शाब्दिक संप्रेषण – शाब्दिक संप्रेषण को दो भागों में बांटा गया है।

  • मौखिक (वार्ता, व्याख्या, कहानी, प्रश्नोत्तर, मौखिक बोलकर संप्रेषण)
  • लिखित (विभिन्न तथ्यों का लिखित रूप से संप्रेषण)

2. अशाब्दिक संप्रेषण – अशाब्दिक संप्रेषण को तीन भागों में बांटा गया है।

  • वाणी या आवाज
  • आंख एवं मुख मुद्रा संप्रेषण
  • स्पर्श या छूकर विभिन्न तथ्यों का संप्रेषण

वैयक्तिक संप्रेषण (individual communication)

जब शिक्षा प्रत्येक बालक को अलग-अलग शिक्षण देता है तो इसे वैयक्तिक संप्रेषण कहा जाता है।

ए.जी. मेलबिन के अनुसार – “विचारों का आदान-प्रदान अथवा व्यक्तिगत वार्तालाप द्वारा बालकों को अध्ययन में सहायता, आदेश तथा निर्देश प्रदान करने के लिए शिक्षक का प्रतीक बालक से प्रथक प्रथक साक्षात्कार करना।”

वैयक्तिक संप्रेषण के उद्देश्य

छात्रों की रुचियो, अभिरुचियो, आवश्यकताएं तथा मानसिक योग्यताओं के अनुसार शिक्षण देना।

  • साधारण बालक ओं को उनके पसंदीदा क्षेत्र में आगे बढ़ाना।
  • बाला को की विशिष्ट योग्यता और व्यक्तित्व का विकास करना।
  • क्रियाशीलता का अवसर देना।

सामूहिक संप्रेषण (Collective communication)

सामूहिक संप्रेषण का अर्थ कक्षा शिक्षण है। विद्यालय में एक की मानसिक योग्यता वाले छात्रों की अनेक उप समूह बना लिए जाते हैं। साधारणतया इनको कक्षा कहते हैं। यह कक्षाएं सामूहिक इकाइयां होती है। शिक्षक इन कक्षाओं में जाकर सभी छात्रों को एक साथ शिक्षा देते हैं। इस विधि में एक कक्षा के सभी छात्रों के लिए सामूहिक शिक्षण विधि का प्रयोग किया जाता है।

प्रभावी संप्रेषण के तरीके (Effective communication methods)

  • उद्देश्य पूर्ण
  • अध्यापन आदेश आत्मक ना होकर निर्देश आत्मक होना चाहिए।
  • प्रेरणास्पद
  • बाल केंद्रित
  • सुनियोजित
  • प्रजातांत्रिक पद्धति पर आधारित
  • सक्रियअध्यापन
  • विषय से क्रमबद्ध ता
  • सहयोग की भावना का विकास
  • पूर्व ज्ञान से संबंधित
  • स्वतंत्र वातावरण
  • आत्मविश्वास की जागृति
  • अध्यापन उपचार पूर्ण होना चाहिए
  • क्रियाशीलता एवं छात्रों की अपनी बात कहने के अवसर
  • सहायक सामग्री का समुचित प्रयोग।

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत(Theory of cognitive development

 

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत(Theory of cognitive development)

प्रवर्तक – इस सिद्धांत के प्रतिपादक जीन पियाजे ,स्विट्जरलैंड के निवासी थे। जीन पियाजे एक मनोवैज्ञानिक और आनुवंशिक एपिस्टेमोलॉजिस्ट थे। वह सबसे अधिक संज्ञानात्मक विकास के अपने सिद्धांत के लिए प्रसिद्ध है जो इस बात पर ध्यान देता है कि बचपन के दौरान बच्चे बौद्धिक रूप से कैसे विकसित होते हैं।

पियाजे के सिद्धांत से पहले, बच्चों को अक्सर केवल मिनी-वयस्कों के रूप में सोचा जाता था। इसके बजाय, पियाजे ने सुझाव दिया कि जिस तरह से बच्चे सोचते हैं, वह उस तरह से अलग है, जिस तरह से वयस्क सोचते हैं।

उनके सिद्धांत का मनोविज्ञान के भीतर एक विशिष्ट उपक्षेत्र के रूप में विकासात्मक मनोविज्ञान के उद्भव पर जबरदस्त प्रभाव था और शिक्षा के क्षेत्र में बहुत योगदान दिया। उन्हें रचनावादी सिद्धांत के एक अग्रणी के रूप में भी श्रेय दिया जाता है, जो बताता है कि लोग अपने विचारों और अपने अनुभवों के बीच की बातचीत के आधार पर सक्रिय रूप से दुनिया के अपने ज्ञान का निर्माण करते हैं।

2002 के एक सर्वेक्षण में पियाजे को बीसवीं शताब्दी के दूसरे सबसे प्रभावशाली मनोवैज्ञानिक के रूप में स्थान दिया गया था।

Jean Piaget cognitive development theory facts:

  • सर्वप्रथम संज्ञानात्मक पक्ष का क्रमबद्ध व वैज्ञानिक अध्ययन स्विट्जरलैंड के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे के द्वारा किया गया।
  • संज्ञान- प्राणी का वह व्यापक और स्थाई ज्ञान है जिससे वह वातावरण/ उद्दीपक जगत/ बाह्य जगत के माध्यम से ग्रहण करता है।
  • समस्या समाधान, समप्रत्ययीकरर्ण ( विचारों का निर्माण), प्रत्येकक्षण( देखकर सीखना) आदि मानसिक क्रियाएं सम्मिलित होती है। यह क्रियाएं परस्पर अंतर संबंधित होती हैं।
  • जीन पियाजे का संज्ञानात्मक पक्ष पर बल देते हुए संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत का प्रतिपादन किया था इसीलिए जीन पियाजे को विकासात्मक मनोविज्ञान का जनक कहा जाता है।
  • विकासात्मक मनोविज्ञान के अंतर्गत शुरू से अंत तक अर्थात गर्भावस्था से वृद्धावस्था तक का अध्ययन किया जाता है
  • विकास प्रारंभ होता है – गर्भावस्था से
  • संज्ञान विकास – शैशवअवस्था से प्रारंभ होकर जीवन पर्यंत चलता रहता है।
  • जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत को कितनी अवस्थाओं में समझाया है। – 4

1.संवेदी पेशीय अवस्था/ इंद्रिय जनित अवस्था – 0 से 2 वर्ष

  • जन्म के समय शिशु वाह जगत के प्रति अनभिज्ञ होता है धीरे-धीरे व आयु के साथ साथ अपनी संवेदनाएं वह शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से बाय जगत का ज्ञान ग्रहण करता है
  • वह वस्तुओं को देखकर सुनकर स्पर्श करके गंध के द्वारा तथा स्वाद के माध्यम से ज्ञान ग्रहण करता है
  • छोटे छोटे शब्दों को बोलने लगता है
  • परिचितों का मुस्कान के साथ स्वागत करता है तथा आप परिचितों को देख कर भय का प्रदर्शन करता है

2 . पूर्व सक्रियात्मक अवस्था : 2 से 7 वर्ष

  • अवस्था में दूसरे के संपर्क में खिलौनों से अनुकरण के माध्यम से सीखता है
  • खिलौनों की आयु इसी अवस्था को कहा जाता है
  • शिशु, गिनती गिनना रंगों को पहचानना वस्तुओं को क्रम से रखना हल्के भारी का ज्ञान होना
  • माता पिता की आज्ञा मानना, पूछने पर नाम बताना घर के छोटे छोटे कार्यों में मदद करना आदि सीख जाता है लेकिन वह तर्क वितर्क करने योग्य नहीं होता इसीलिए इसे आतार्किक चिंतन की अवस्था के नाम से भी जाना जाता है
  • वस्तु स्थायित्व का भाव जागृत हो जाता है
  • निर्जीव वस्तुओं में संजीव चिंतन करने लगता है इसे जीव वाद कहते हैं
  • प्रतीकात्मक सोच पाई जाती है
  • अनुकरण शीलता पाई जाती है
  • शिशु अहम वादी होता है तथा दूसरों को कम महत्व देता है

3 . स्थूल / मूर्त संक्रिया त्मक अवस्था: 7 से 12 वर्ष

  • इस अवस्था में तार्किक चिंतन प्रारंभ हो जाता है लेकिन बालक का चिंतन केवल मुहूर्त प्रत्यक्ष वस्तुओं तक ही सीमित रहता है
  • वह अपने सामने उपस्थित दो वस्तुओं के बीच तुलना करना, अंतर करना, समानता व असमानता बतलाना, सही गलत व उचित अनुचित में विविध करना आदि सीख जाता है
  • इसीलिए इसे मूर्त चिंतन की अवस्था के नाम से भी जाना जाता है
  • बालक दिन, तारीख, समय, महीना, वर्ष आदि बताने योग्य हो जाता है
  • उत्क्रमणीय शीलता पाई जाती है इसीलिए इसे पलावटी अवस्था के नाम से भी जाना जाता है
  • भाषा एवं संप्रेषण योग्यता का विकास की अवस्था में हो जाता है

4 औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था : 12 वर्ष के बाद

  • इस अवस्था में किशोर मूर्ति के साथ साथ अमूर्त चिंतन करने योग्य भी हो जाता है
  • इसीलिए इसे तार्किक चिंतन की अवस्था के नाम से भी जाना जाता है
  • इस अवस्था में मानसिक योग्यताओं का पूर्ण विकास हो जाता है
  • इस अवस्था में परीकल्पनात्मक चिंतन पाया जाता है

जीन पियाजे का शिक्षा में योगदान:

  • जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
  • बाल केंद्रित शिक्षा पर बल दिया।
  • जीन पियाजे ने शिक्षण में शिक्षक की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि-

1 शिक्षक को बालक की समस्या का निदान करना चाहिए।

2 बालकों के अधिगम के लिए उचित वातावरण तैयार करना चाहिए।

  • जीन पियाजे ने बुद्धि को जीव विज्ञान के ‘स्कीमा’ की भांति बदला कर बुद्धि की एक नवीन व्याख्या प्रस्तुत की
  • जीन पियाजे ने आत्मीय करण, समंजन, संतुलितनी करण, व स्कीमा आज ऐसी नवीन शब्दों का प्रयोग कर शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • ” स्कीमा” – वातावरण द्वारा अर्जित संपूर्ण ज्ञान का संगठन ही स्कीमा है
  • संरचना की व्यवहार गत समानांतर प्रक्रिया जीव विज्ञान में इसकी मां कहलाती है अर्थात किसी उद्दीपक के प्रति विश्वसनीय अनुप्रिया को स्कीमा कहते हैं।

जीन पियाजे की संज्ञानात्मक सिद्धांत से संबंधित अति महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न. पियाजे के सिद्धांत को और किस नाम से भी जाना जाता है?

उत्तर: विकास अवस्था सिद्धांत

प्रश्न. पियाजे के अनुसार व्यक्ति के किस विकास में उसके जीवन के किस भाग का विशेष योगदान होता है?

उत्तर: बचपन

प्रश्न. पियाजे के संज्ञानात्मक विकास की प्रक्रिया में मुख्यतः किन दो बातों को महत्व पूर्ण नाम माना है?

उत्तर:- संगठन व अनुकूलन

प्रश्न.तार्किक चिंतन की क्षमता का विकास किस अवस्था में होता है?

उत्तर: – औपचारिक या अमूर्त संक्रिया तमक अवस्था

प्रश्न.व्यक्ति व वातावरण के संबंध को कौन सा वाह्य रूप में प्रभावित करता है?

उत्तर: अनुकूलन

प्रश्न.इस नियम के अनुसार बालक किसके साथ अनुकूलन करने के लिए अनेक नियमों को सीख लेता है?

उत्तर: पर्यावरण के साथ

प्रश्न. समस्या समाधान की क्षमता का विकास किस अवस्था में होता है?

उत्तर: अमूर्त/ औपचारिक संघ क्रियात्मक अवस्था

प्रश्न. जीन पियाजे का जन्म कब हुआ?

उत्तर: 9 अगस्त 1896

प्रश्न. बुद्धि में विभिन्न ने प्रक्रिया है जैसे प्रत्यक्षीकरण, स्मृति, चिन्ह एवं तर्क सभी संगठित होकर कार्य करती है, इसका तात्पर्य किससे है?

उत्तर: संगठन से

प्रश्न.पियाजे का सिद्धांत किस पद्धति से सीखने पर बल देता है?

उत्तर: खोज पद्धति से

प्रश्न. पियाजे के अनुसार 10 वर्ष या उससे बड़े उम्र के बच्चे किस प्रकार की नैतिकता प्रदर्शित करते हैं?

उत्तर:- स्वतंत्रता आधारित नैतिकता

प्रश्न.जीन पियाजे की प्रसिद्धि का प्रमुख कारण क्या था?

उत्तर: बाल विकास पर किए गए कार्य

प्रश्न.पूर्व संक्रिया अवस्था में प्रकट होने वाले लक्षण को कितने प्रकार में विभाजित किया गया है?

उत्तर: दो – 1. पूर्व प्रत्यात्मक काल- 2 से 4 वर्ष

2. अंतःप्रत्यात्मक काल – 4 से 7 वर्ष

प्रश्न. संवेदी पेशीय अवस्था को कितने भागों में बांटा गया है?

उत्तर: – संवेदी पेशीय अवस्था को 6 भागों में बांटा गया है।

1 सह क्रिया अवस्था

2 प्रमुख वित्तीय अनुप्रिया ओं की अवस्था

3 गौर्ण वृत्तीय अनु क्रियाओं की अवस्था

4 गौर्ण सिकमेटा की समन्वय की अवस्था

5 तृतीय वृत्तीय अनु क्रियाओं की अवस्था

6 मानसिक सहयोग द्वारा नए साधनों की खोज की अवस्था

प्रश्न.जीन पियाजे ने किस उम्र के बच्चों का अवलोकन और साक्षात्कार किया था?

उत्तर: – 4 से 12 वर्ष

प्रश्न. संज्ञानात्मक विकास की कितनी अवस्थाएं होती हैं?

उत्तर: – 4

प्रश्न. बाहरी सत्ता के आधार पर नैतिक चिंतन करने वाले बच्चे किस धारणा में विश्वास करते हैं?

उत्तर: – तुरंत न्याय

प्रश्न. संगठन, व्यक्ति एवं वातावरण के संबंध को किस प्रकार से प्रभावित करता है?

उत्तर: आंतरिक रुप से

प्रश्न. जीन पियाजे कौन थे?

उत्तर: – स्विजरलैंड की एक मनोवैज्ञानिक चिकित्सक

प्रश्न. पियाजे का संज्ञानात्मक सिद्धांत किससे संबंधित है?

उत्तर: मानव बुद्धि की प्रकृति एवं उसके विकास से

प्रश्न. यह सिद्धांत किस की प्रकृति के बारे में बतलाता है?

उत्तर: – ज्ञान की – कैसे प्राप्त व उपयोग होता है

प्रश्न. जीन पियाजे ने कौन सा सिद्धांत दिया था?

उत्तर:– संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत

प्रश्न.संज्ञानात्मक विकास की कौन-कौन सी अवस्थाएं होती है?

उत्तर: (a) संवेदी पेशीय अवस्था(Sensor motor) – 0 से 2

(b) पूर्व क्रियात्मक अवस्था(Pre-operation) – 2 से 7

(c) अमूर्त संक्रियाएंत्मक(Cocrete operation) – 7 से 11

(d) मूर्त संक्रियाआत्मक (Formal operation ) – 11 से 18

प्रश्न.विकासात्मक सिद्धांत क्या है?

उत्तर:  पियाजे का संज्ञानात्मक सिद्धांत

कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत 1958 (Kohlberg theory of moral development)

 

कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत 1958 (Kohlberg theory of moral development)

कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत 1958 (kohlberg theory of moral development pdf)

नैतिकता(morality)

यह वह गुण है। जिससे हमें सही और गलत की पहचान होती है। इसे सामाजिक परिवेश से सीखा जाता है। जब बालक का जन्म होता है, तो वह ना तो नैतिक होता है और ना ही अनैतिक होता है। वह अच्छा या बुरा समाज से ही सीखता है।

Moral development theory

  • कोहल बर्ग ने नैतिक विकास सिद्धांत को अवस्था सिद्धांत( stage theory) भी कहा है। उन्होंने नैतिक विकास सिद्धांत को 6 अवस्थाओं में विभाजित किया है एवं उन्हें सार्वभौमिक(Universal) माना है।
  • सार्वभौमिक का तात्पर्य है कि कोई भी बच्चा हो वह इन अवस्थाओं से होकर अवश्य गुजरता है।
  • नैतिक विकास की अवस्थाएं एक निश्चित क्रम में आती है। इस क्रम को बदला नहीं जा सकता है।
  • नैतिक अवस्था की अंतिम अवस्था में पहुंचने वाले बच्चों की संख्या बहुत कम होती है।नैतिक तर्क शक्ति के आधार पर बालक को में व्यक्तिगत विभिन्नता होती है।

Kohlberg’s theory six Stages of moral development

कोहल बर्ग ने नैतिक विकास की कुल 6 अवस्थाओं का वर्णन किया है लेकिनउन्होंने दोनों अवस्थाओं को एक साथ रखकर इनको तीन स्तर पर रखा है एवं इसकी व्याख्या की है जो कि इस प्रकार है।

1. पूर्व परंपरागत अवस्था (Pre-conventional stage)

(a)आज्ञा एवं दंड की अवस्था( stage of order punishment)

(b) अहंकार की अवस्था (Stage of ego)

2. परंपरागत अवस्था (Conventional stage)

(a)प्रशंसा की अवस्था ( stage of appreciation)

(b)सामाजिक व्यवस्था के प्रति सम्मान की अवस्था ( stage of respect for social system)

3 उत्तर परंपरागत स्तर ( post- conventional stage)

(a)सामाजिक समझौते की अवस्था ( stage of social contract)

(b) सार्वभौमिक सिद्धांत की अवस्था ( Universal principles\Interaction stage)

1. पूर्व परंपरागत अवस्था(Pre- conventional stage)

जब बालक बाहरी तत्व या घटना के आधार पर किसी व्यवहार को नैतिक या अनैतिक मानता है, तो उसकी नैतिक तर्क शक्ति Pre- conventional स्तर की कही जाती है । इसमें दो अवस्थाएं होती है जोकि इस प्रकार है ।

(a)आज्ञा एवं दंड की अवस्था( stage of order punishment)

  • इस अवस्था में बालक का व्यवहार बंद के व्यय पर आधारित होता है, और इसी डर से वह अच्छा व्यवहार करता है।
  • इस प्रकार नैतिक विकास की शुरू की अवस्था में दंड को ही बच्चों की नैतिकता का मुख्य आधार मानते हैं।
  • बच्चा सोचता है कि बंद से बचने के लिए आदेश का पालन करना चाहिए।
  • सही गलत का निर्णय दिए गए दंडवा पुरस्कार से करता है।

(b) अहंकार की अवस्था (Stage of ego)

  • इस अवस्था में बालक का व्यवहार स्वयं की इच्छा को पूरा करने वाला होता है।
  • उसे लगता है कि वही बात सही है। जिसमें बराबरी का लेन-देन हो अर्थात हम दूसरी की कोई इच्छा पूरी कर दे तो वह भी हमारी इच्छा पूरी करेगा।
  • इस अवस्था में बालक में अहंकार होता है, यदि उसका कोई उद्देश्य झूठ बोलने से क्या चोरी करने से होता है तो वह वह काम करता है ऐसे अनैतिक नहीं समझता है।

2. परंपरागत अवस्था (Conventional stage)

इस अवस्था में बच्चों का व्यवहार उनकी मां बाप या किसी बड़े व्यक्ति द्वारा बनाए गए नियमों पर आधारित होता है। इसमें दो अवस्थाएं होती है जो इस प्रकार है।

(a)प्रशंसा की अवस्था ( stage of appreciation)

  • इस अवस्था में बच्चा जो भी करता है वह प्रशंसा पाने के लिए करता है।
  • इसमें बालक समाज को अच्छा लगने वाला व्यवहार करता है जिससे कि वह प्रशंसा प्राप्त कर सके।
  • उस व्यवहार को ही वह अनैतिक मानता है जिससे प्रशंसा मिलती है।
  • इस अवस्था में बच्चे के चिंतन का स्वरूप समाज और उसके परिवेश से निर्धारित किया जाता है।

(b)सामाजिक व्यवस्था के प्रति सम्मान की अवस्था ( stage of respect for social system)

  • उत्पादकता में बच्चों के नैतिक विकास की अवस्था सामाजिक, आदेश, कानून, न्याय और कर्तव्यों पर आधारित होती है।
  • यह अवस्था अत्यंत महत्वपूर्ण अवस्था मानी जाती है, इस अवस्था में प्रवेश से पहले बालक समाज को केवल प्रशंसा के लिए महत्व देता है।
  • इस अवस्था में पहुंच कर वह समझने लगता है, कि सामाजिक नियमों के विरुद्ध प्रत्येक कार्य को अनैतिक कहते हैं।

3 उत्तर परंपरागत स्तर ( post- conventional stage)

उत्तर परंपरागत स्तर को 2 उप-अवस्थाओं में बांटा गया है।

(a)सामाजिक समझौते की अवस्था ( stage of social contract)

  • इस अवस्था तक आते आते वह समझने लगता है कि व्यक्ति व समाज के बीच एक समझौता होता है।
  • व्यक्ति यह मानने लगता है, कि हमारा दायित्व है कि हम समाज के नियमों का पालन करें क्योंकि समाज हमारे हितों की रक्षा करता है।
  • अगर नियमों का पालन नहीं करते हैं तो व्यक्ति व समाज के बीच का समझौता टूट जाता है।
  • परंतु यह इस अवस्था में यह समझा जाता है कि समाज की सहमति से सामाजिक नियमों को भी बदला जा सकता है।

(b) सार्वभौमिक सिद्धांत की अवस्था ( Universal principles\Interaction stage)

    • इसे विवेक की अवस्था भी कहा जाता है इस अवस्था तक व्यक्ति के अच्छे बुरे, उचित अनुचित आदि विषयों पर स्वयं के व्यक्तिगत विचार विकसित हो जाते हैं, एवं अपने बनाए गए नियमों पर चलता है।
    • इस अवस्था में बालक अपने विवेक का प्रयोग करने लगता है।

कोहल बर्ग सिद्धांत से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर(questions about kohlberg’s moral stage development)

1. कोहलबर्ग के नैतिक तर्क के चरणों के संदर्भ में, किस चरण के तहत किसी बच्चे के गिरने की विशिष्ट प्रतिक्रिया होगी? “यदि आप ईमानदार हैं तो आपके माता-पिता को आप पर गर्व होगा। इसलिए आपको ईमानदार होना चाहिए। ”

(a) सामाजिक अनुबंध अभिविन्यास

(b) सजा-आज्ञापालन अभिविन्यास

(c) गुड गर्ल-गुड बॉय ओरिएंटेशन

(d) लॉ एंड ऑर्डर ओरिएंटेशन

Answer: c

2. कोहलबर्ग के सिद्धांत के पूर्व-पारंपरिक स्तर के अनुसार, नैतिक निर्णय लेते समय निम्नलिखित में से किसके लिए एक व्यक्तिगत मोड़ होगा?

(a) व्यक्तिगत ज़रूरतें और इच्छाएँ

(b) व्यक्तिगत मूल्य

(c) पारिवारिक अपेक्षाएँ

(d) संभावित सजा शामिल है

Answer: (d)

3. लॉरेंस कोह्लबर्ग के सिद्धांत में, कौन सा स्तर सही अर्थों में नैतिकता की अनुपस्थिति को दर्शाता है?

(a) स्तर III

(b) स्तर IV

(c) स्तर I

(d) स्तर II

Answer: c

4. कोहलबर्ग के अनुसार, एक शिक्षक बच्चों में नैतिक मूल्यों को जन्म दे सकता है?

(क) ‘व्यवहार कैसे करें’ पर सख्त निर्देश देना

(b) नैतिक मुद्दों पर चर्चा में उन्हें शामिल करना

(c) व्यवहार के स्पष्ट नियम रखना

(d) धार्मिक शिक्षाओं को महत्व देना

Answer: (b)

5. कोहलबर्ग के सिद्धांत की एक प्रमुख आलोचना क्या है?

(a) कोहलबर्ग ने नैतिक विकास के स्पष्ट चरण नहीं दिए।

(b) कोह्लबर्ग ने बिना किसी अनुभवजन्य आधार के एक सिद्धांत का प्रस्ताव रखा।

(c) कोहलबर्ग ने प्रस्ताव दिया कि नैतिक तर्क विकासात्मक है।

(d) कोहलबर्ग ने पुरुषों और महिलाओं के नैतिक तर्क में सांस्कृतिक अंतर का हिसाब नहीं दिया।

Answer: (d)

अभिप्रेरणा के सिद्धांत (Theories of Motivation

 

अभिप्रेरणा के सिद्धांत (Theories of Motivation )

(1) मनोविश्लेषणवाद का सिद्धांत (Theory of psychoanalysis)

प्रतिपादक- सिगमंड फ्रायड है। इनके अनुसार “व्यक्ति के अचेतन मन की दमित इच्छाएं उसे कार्य करने के लिए प्रेरित करती है।”

(2) मूल प्रवृत्तियों का सिद्धांत (Theory of basic trends)

प्रतिपादक – मैक्डूगल
इनके अनुसार व्यक्ति में 14 मूल प्रवृत्तियां पाई जाती है, और यही मूल प्रवृत्तियां ही व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं।क्योंकि व्यक्ति अगर अपनी मूल प्रवृत्तियों को पूरा नहीं करता है तो उसका जीवित रहना संभव नहीं है। और इन से संबंधित 14 संवेग भी है जो मूल प्रवृत्तियों से संबंध रखते हैं। व्यक्ति संवेगो को की पूर्ति के लिए अभिप्रेरित होकर अपनी मूल प्रवृत्तियों केअनुसार कार्य करता है।

14 मूल प्रवृत्तियां एवं संवेग इस प्रकार है।
क्र.
मूल प्रवृत्ति
संवेग
1.पलायनवह
2.युयुत्सा (युद्ध करने की इच्छा)क्रोध
3.निवृत्ति ( पीछा छुड़ाना)घराना
4.संतान की प्राप्तिवात्सल्य
5.शरणागतिदुख\ कष्ट या करुणा
6.कामकामुकता
7.जिज्ञासाआश्चर्य
8.दैन्य ( दया करना)आत्म हीनता
9.आत्म गौरवआत्मस्वाभिमान
10.सामूहिकताएकाकीपन
11.भोजनभूख
12.संग्रहणस्वामित्व\ अधिकार
13.रचनात्मकताकृति भाग
14.हास्यआमोद

(3) आवश्यकता का सिद्धांत (Principle of necessity)

प्रतिपादक – अब्राहम मास्लों
इस सिद्धांत के बारे में अब्राहम मस्लो ने कहा है कि ” प्रत्येक व्यक्ति आवश्यकता की पूर्ति हेतु अभिप्रेरित होता है।” मास्लों का मानना है कि आवश्यकता वह तत्व है जो व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। क्योंकि व्यक्ति अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए कार्य करना चाहता है। मांस लो आवश्यकता के

अब्राहम मस्लो ने पांच प्रकार की आवश्यकताओं के बारे में बताया है।

1. शारीरिक आवश्यकता
2. सुरक्षा की आवश्यकता
3. स्नेह\ संबंधता की आवश्यकता
4. सम्मान पाने की आवश्यकता
5. आत्मसिद्धि की आवश्यकता

(4) उपलब्धि का सिद्धांत (Achievement principle)

प्रतिपादक – मैक्किलैंड
इनके अनुसार “उपलब्धियों की प्राप्ति हेतु व्यक्ति अभी प्रेरित होता है।” इनका मानना है कि व्यक्ति के द्वारा निर्धारित की गई सामान्य या विशिष्ट उपलब्धियां ही व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करती रहती है, और अंततः विशिष्ट उपलब्धियों को ही प्राप्त करना चाहता है।

(5) उद्दीपन – अनुक्रिया का सिद्धांत (Stimulus – theory of response)

प्रतिपादक – स्किनर तथा थार्नडाइक है।
उन्होंने बताया कि ‘उद्दीपक’ व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। और व्यक्ति जब तक अनुप्रिया करता है। तब तक वह उद्दीपक प्राप्त नहीं कर लेता। इसीलिए हम कह सकते हैं कि व्यक्ति उद्दीपक के माध्यम से प्रेरित होता हैं।

(6) प्रोत्साहन का सिद्धांत (Principle of encouragement)

प्रतिपादक – बॉल्फ एवं फाकमैन

इन्होंने प्रोत्साहन के दो प्रकार के रूप बताएं हैं।

  1. स्वयं कार्य हेतु प्रेरित होना। – सकारात्मक अभिप्रेरणा
  2. किसी अन्य द्वारा कार्य हेतु प्रेरित होना। – नकारात्मक अभिप्रेरणा

(7) क्षेत्रीय सिद्धांत (Regional theory)

प्रतिपादक- कुर्ट लेविन
इनका सिद्धांत स्थान विज्ञान के आधार पर कार्य करता है। लेविन के अनुसार – स्थान या वातावरण के अनुसार व्यक्ति प्रेरित होकर कार्य करता है। अगर वह कार्य नहीं करेगा तो समायोजन नहीं कर सकता है। लेविन ने अभिप्रेरणा को ‘वातावरण’ तथा ‘ समायोजन’ दोनों से संबंधित माना है।

(8) प्रणोद का सिद्धांत (Theory of thrust)

प्रतिपादक – सी.एल हल
उनके द्वारा इस सिद्धांत के बारे में कहा गया कि “व्यक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति होने वाले कार्य कठिन ही क्यों ना हो व्यक्ति द्वारा सीख लिए जाते हैं।”

सी.एल हल के अनुसार चालक वह तत्व है, जो व्यक्ति को कार्य करने के लिए बाध्य करता है। जैसे भूख ( चालक) की पूर्ति हेतु कोई व्यक्ति कुछ भी कर सकता है। चाहे काम कितना भी कठिन क्यों ना हो? वह अपनी भूख मिटाने के लिए भोजन का जुगाड़ करेगा कैसे भी हो? इसलिए हम कह सकते हैं, प्रणोद\ चालक अभी प्रेरित करता है।

(9) स्वास्थ्य का सिद्धांत (Principle of health)

प्रतिपादक – हर्जवर्ग
इनके अनुसार यदि बालक शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ है तो बालक रुचि के साथ कार्य करता है। परंतु अगर वह अस्वस्थ हो तो वह कार्य करने में रुचि नहीं लेगा।

(10) शारीरिक गति\ परिवर्तन सिद्धांत (Physical movement theory)

प्रतिपादक- विलियम जेम्स, शेल्डर, रदरफोर्ड
इनके अनुसार- समय, परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार बालक की शरीर में जो शारीरिक परिवर्तन होते हैं। वह परिवर्तन ही बालक को कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं।

अभिप्रेरणा के सिद्धांत से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर (Important questions related to the principle of motivation)


प्रश्न1 ” अभिप्रेरणा किसी कार्य को प्रारंभ करने, जारी रखने अथवा नियंत्रित करने या नियमित करने की प्रक्रिया है।” यह किसका कथन है?

उत्तर- गुड़

प्रश्न2 ” प्रेरणा का प्रश्न,’क्यों’ का प्रश्न है?” यह कथन किसका है?

उत्तर- क्रैच व क्रचफील्ड का

प्रश्न3 अभिप्रेरणा के कितने प्रकार होते हैं?

उत्तर- दो

प्रश्न4 अब्राहम मस्लो ने अभिप्रेरणा के प्रकार बताएं हैं?

उत्तर- दो ( जन्मजात एवं अर्जित अभिप्रेरणा)

प्रश्न5 थॉमसन ने अभिप्रेरणा के कितने प्रकार बताए हैं?

उत्तर- दो ( स्वाभाविक अभिप्रेरणा तथा कृत्रिम अभिप्रेरणा)

प्रश्न6 गैरेट के अनुसार अभिप्रेरणा के कितने प्रकार हैं?

उत्तर- तीन ( जैविक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक अभिप्रेरणा)

प्रश्न7 अभिप्रेरणा का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत किसने दिया है?

उत्तर- सिगमंड फ्रायड ने

प्रश्न8 मूल प्रवृत्तियों का सिद्धांत किसके द्वारा दिया गया है?

उत्तर- मैक्डूगल

प्रश्न9 अभिप्रेरणा का क्षेत्रीय सिद्धांत किसके द्वारा दिया गया है?

उत्तर- कुर्ट लेविन

प्रश्न10 आवश्यकता का सिद्धांत किसने दिया है?

उत्तर- अब्राहम मास्लो

प्रश्न11 फ्राइड ने बताया कि व्यक्ति में 2 मूल प्रवृत्तियां पाई जाती है उनके नाम क्या है?

उत्तर- इरोज एवं थैंनटॉस

प्रश्न12 अब्राहम मस्लो ने आवश्यकता के कितने प्रकार बताए है?

उत्तर- पांच प्रकार

प्रश्न13 प्रणोद का सिद्धांत किसके द्वारा दिया गया है?

उत्तर हल ने

प्रश्न14 ‘भूख’ क्या है?

उत्तर- चालक

प्रश्न15 “अभिप्रेरणा अधिगम का सर्वोत्कृष्ट राजमार्ग है।” यह कथन है?

उत्तर- स्किनर

स्टर्नबर्ग का त्रितंत्र का सिद्धांत(Sternberg’s triarchic Theory of Intelligence)

 

स्टर्नबर्ग का त्रितंत्र का सिद्धांत(Sternberg’s triarchic Theory of Intelligence)

बुद्धि का त्रितंत्र सिद्धांत

प्रतिपादक- रॉबर्ट जे स्टर्नवर्ग (1985)

रॉबर्ट जे स्टर्नवर्ग ने मानव बुद्धि पर कार्य किया। इन्होंने मानव IQ को चुनौती देते हुए कहा कि जरूरी नहीं है, जिस व्यक्ति का IQ Level कम हो वह अपने जीवन में सफल नहीं हो सकता है । तथा यह भी जरूरी नहीं है कि जिस व्यक्ति का IQ Level अच्छा हो वह निश्चित ही अपने जीवन में सफल हो। एक सफल बुद्धिमान व्यक्ति की सफलता उसकी बुद्धि पर निर्भर करती है। प्रत्येक व्यक्ति में तीन प्रकार की बुद्धि होती है। तीन प्रकार में से वह किसी भी प्रकार की बुद्धि के क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। तीन बुद्धि के वर्णन के कारण इस सिद्धांत का नाम त्रितंत्र सिद्धांत (Sternberg’s triarchic Theory of Intelligence) है। स्टर्नवर्ग ने अपने द्वारा इस सिद्धांत में बुद्धि की व्याख्या की है।

तीन प्रकार की बुद्धि को उन्होंने तीन उप सिद्धांतों के द्वारा समझाया है।

त्रितंत्र सिद्धांत

1. घटकीय उपसिद्धांत (Componential Subtheury)

♦ विश्लेषणात्मक बुद्धि (Analytical Intelligence)

इसमें तीन घटक होते हैं

(1) मेटा घटक(Meta component) – यह व्यक्ति को समस्या समाधान तथा योजना बनाने में सक्षम बनाता है.

(2) प्रदर्शन घटक( performance component) – जब व्यक्ति किसी समस्या को हल करने के लिए योजनाएं बनाता है, तो उन योजनाओं को लागू करने में यह घटक मदद करता है।

(3) ज्ञान अधिग्रहण घटक(Knowledge -acquistion components) – किसी नई जानकारी को प्राप्त करने में, अमूर्त चिंतन करने में इस घटक का प्रयोग होता है।

2. अनुभवी उप सिद्धांत(Experimential intelligence)

♦ रचनात्मक बुद्धि (Creative intelligence) : रचनात्मक बुद्धि में 2 भाग होते हैं

(1) नवीन(Novelty) – यह किसी व्यक्ति की पहली बार समस्या से निपटने की क्षमता से संबंधित होता है।

(2) स्वचालन(Automation) – यह किसी व्यक्ति की स्वचालित रूप से दोहराए गए कार्यों को करने की क्षमता से संबंधित है। उदाहरण- कुछ प्रश्नों से समझ सकते हैं

1. आप कितनी जल्दी नई समस्या को हल करते है।

2. क्या बे अपने आप नई कौशल का उपयोग करते हैं। समस्या को हल करने के लिए

उदाहरण- जेम्स बॉन्ड हर समय नई समस्याओं से निपटने के लिए अपने ज्ञान और कौशल का उपयोग करता था वह रचनात्मक बुद्धि रखता है।

3. संदर्भात्मक उपसिद्धांत (Contertual Subtheory)

♦ व्यवहारिक बुद्धि (Practical Intelligence) : व्यावहारिक बुद्धि में 3 भाग होते हैं।

(1)अनुकूलन(Adaptation) – व्यक्ति ने माहौल याद नहीं समस्या से निपटने के लिए उसके अनुसार अपने अंदर बदलाव लाकर, अनुकूल होने की कोशिश करता है।

(2) चयन(Selection)- जब व्यक्ति पूर्णतः नए वातावरण में आ जाता है, तो सोचता है कि कैसे पुराने वातावरण को नए वातावरण के हिसाब से बदला जाए।

(3) आकार देना( shaping)- इसके दौरान व्यक्ति खुद में कोई बदलाव नहीं लाता है, बल्कि उसने वातावरण को ही अपने हिसाब से बदल देता है।

आसान शब्दों में व्यवहारिक बुद्धि का उपयोग रोजमर्रा के कार्यों जैसे- घर, नौकरी, बाजार में आने वाली समस्याओं को दूर करने में किया जाता है।

थार्नडाइक का संबंधवाद का सिद्धांत( Thorndike ka Sidhant )

 

थार्नडाइक का संबंधवाद का सिद्धांत( Thorndike ka Sidhant )

थार्नडाइक का संबंधवाद का सिद्धांत

    • प्रतिपादन – अमेरिकी वैज्ञानिक “एडवर्ड एल थार्नडाइक
    • इसे उद्दीपक अनुक्रिया का सिद्धांत भी कहते हैं।
    • जब कोई उद्दीपक प्राणी से समक्ष उपस्थित होता है। तब वह उसके प्रति प्रतिक्रिया करता है। प्रतिक्रिया के सही अथवा संतोषजनक होने पर उसका संबंध उस विशेष उद्दीपक से हो जाता है। जिसके कारण प्रतिक्रिया की गई है।
    • अधिगम की प्रक्रिया के दौरान उद्दीपक तथा अनुप्रिया के बीच एक प्रकार की बंधन अथवा संबंध बन जाते हैं। जिसे उद्दीपन अनुक्रिया अनुबंध या S – R बांड कहते हैं।
    • अधिगमकर्ता के परिणामों से संतुष्ट होने पर यह बंधन मजबूत होते हैं। और परिणामों की संतोषप्रद ना होने पर बंधन कमजोर होते हैं।
    • जब किसी विशेष उद्दीपक तथा विशेष अनुप्रिया के बीच बंधन बन जाता है। उस विशेष उद्दीपक के प्रस्तुत होने पर जी उससे संबंधित विशेष अनुप्रिया को शीघ्रता से करता है।
    • इस सिद्धांत के अनुसार जीप की सीखने की प्रक्रिया प्रयास एवं त्रुटि पर आधारित होती है।
    • थार्नडाइक ने अपने अधिगम संबंधी प्रयोग बिल्ली, चूहे तथा मुर्गियों पर किए थे।

थार्नडाइक के संबंधबाद अधिगम सिद्धांत की प्रमुख सैद्धांतिक बिंदु इस प्रकार हैं।

1. अधिगम में प्रयास एवं त्रुटि समाहित होती है।

2. अधिगम संबंधी या बंधनों के बनने का परिणाम है।

3. अधिगम संज्ञान पर आधारित ना हो पर प्रत्यक्ष होता है।

4. अधिगम सूज युक्त ना होकर उत्तरोत्तर होती है।

थार्नडाइक में अपने प्रयोग के आधार पर तीन मुख्य नियम एवं पांच गौण नियमों का प्रतिपादन किया जो इस प्रकार हैं।

मुख्य तीन नियम इस प्रकार है।

(1) अभ्यास का नियम

(2) प्रभाव का नियम

(3) तत्परता का नियम

1. अभ्यास का नियम

यह नियम इस तथ्य पर आधारित है। कि अभ्यास से व्यक्ति में पूर्णता आती है। अभ्यास का नियम यह बतलाता है कि अभ्यास करने से उद्दीपक तथा अनुक्रिया का संबंध मजबूत होता है। और अभ्यास रोक देने से संबंध कमजोर पड़ जाता है। तथा पाठ्यवस्तु विस्मृति हो जाती है।

अभ्यास के नियम को दो भागों में बांटा गया है।
  • उपयोग का नियम
  • अनुपयोग का नियम

मनुष्य जिस कार्य को बार-बार दोहराता है। उसे शीघ्र ही सीख जाता है। जब हम किसी पार्ट या विषय को दोहराना बंद कर देते हैं, तो उसे धीरे-धीरे भूलना प्रारंभ कर देते हैं।

थार्नडाइक ने अपने प्रयोगों के आधार पर बताया कि “सीखने की प्रक्रिया क्रमिक प्रक्रिया है।”

थार्नडाइक ने बताया कि सीखने के लिए दो बातें अनिवार्य है।

1 बिल्ली भूखी होनी चाहिए। अर्थात सीखने के लिए अभिप्रेरणा आवश्यक है।

2 भूख की संतुष्टि के लिए भोजन का होना जरूरी है। अर्थात पुनर्बलन होना जरूरी है।

e="color: #000080;">अभ्यास के नियम का शैक्षणिक महत्व
  • इस नियम के अनुसार बालकों को सिखाई जाने वाली क्रिया का उन्हें पर्याप्त अभ्यास कराया जाए।
  • कक्षा कक्ष में पढ़ाई गई विषय वस्तु का मौलिक अभ्यास कराया जाए।
  • इससे बालक ओं का मस्तिष्क ज्ञान के प्रति सचेत बना रहता है। तथा पाठ्य सामग्री को दोहराने का भी अवसर मिलता है।
2. प्रभाव का नियम

इस नियम को संतोष संतोष का नियम भी कहते हैं। जिन कार्यों को करने से व्यक्ति को संतोष मिलता है। उसे वह बार-बार करता है। जिन कार्यों से असंतोष मिलता है, उन्हें वह नहीं करना चाहता है।उन्हें वह नहीं करना चाहता है।

संतोषप्रद परिणाम व्यक्ति के लिए शक्ति वर्धक होते हैं। तथा कष्टदायक असंतोषप्रद परिणाम अनुक्रिया के बंधन को कमजोर बना देते हैं।

हिलगार्ड तथा बॉअर ने इस सिद्धांत की व्याख्या करते हुए कहा – “प्रभाव के नियम में किसी उद्दीपक व अनुक्रिया का संबंध उसके प्रभाव के आधार पर मजबूत या कमजोर होता है। यह संबंध ऐसा होता है कि उससे जब व्यक्ति में संतोषजनक प्रभाव होता है, तो इसमें संबंध की शक्ति बढ़ जाती है। और जब संबंध ऐसा होता है, कि उससे व्यक्ति में असंतोष जनक प्रभाव होता है, तो उसकी शक्ति स्वत: ही कम होती जाती है।”

प्रभाव के नियम का शैक्षणिक महत्व
  • छात्रों को सीखने के लिए प्रोत्साहित तथा अभिप्रेरित किया जाना चाहिए।
  • क्रिया की समाप्ति पर पुरस्कार तथा दंड की व्यवस्था की जाए इससे अधिगम प्रभाव स्थाई हो जाते हैं।
  • विद्यालय में छात्रों को व्यक्तिगत तथा उनके मानसिक स्तर को ध्यान में रखते हुए अधिगम कार्य को कराएंगे।
  • शिक्षण कार्य करते समय अध्यापक को ऐसी विधियों को अपनाना चाहिए जिससे छात्रों को संतोषप्रद अनुभव हो। छात्रों को ज्यादा भला बुरा नहीं कहना चाहिए।
  • शिक्षक को कक्षा शिक्षण में नवीन क्रियाओं को सिखाते समय शिक्षण विधियों में विविधता लानी चाहिए। उनके द्वारा उपयोग में लाई गई शिक्षण विधियां भी नवीन तथा रोचक होनी चाहिए।
  • इससे छात्रों को नवीन विषय वस्तु सीखने में सफलता मिलती है क्योंकि अधिगम क्रियाएं छात्रों के मानसिक स्तर में रुचि तथा क्षमता के अनुकूल होती हैं।
3. तत्परता का नियम

इस नियम का तात्पर्य यह है कि जब प्राणी किसी कार्य को करने के लिए तैयार होता है, तो वह प्रक्रिया है:- यदि वह कार्य करता है, जो उसे आनंद देता है तथा कार्य नहीं करता है। तो कष्ट व तनाव उत्पन्न करती है। जब वह सीखने को तैयार नहीं होता है अथवा उसे अधिगम हेतु बाहय किया जाता है तो वह झुझुलाहट अनुभव करता है। रुचिकर कार्य करने में प्राणी को आनंद की अनुभूति होती है। और अरुचि कर कार्य सीखने में असंतोष का अनुभव करता है।

थार्नडाइक के द्वारा इस नियम के अंतर्गत निम्न बातों की व्याख्या की गई है जो इस प्रकार है।
  • व्यवहार करने वाली संवाहक इकाई तत्पर होती है, तो व्यवहार करने से संतोष की अनुभूति होती है।
  • इस नियम के अंतर्गत व्यवहार करने वाली इकाई जब कार्य करने को तत्पर नहीं होती है, तो उस समय कार्य करना मानसिक तनाव उत्पन्न करता है।
  • व्यवहार करने वाली इकाई को जब बल पूर्वक कार्य करवाने का प्रयास किया जाता है, तो उसे असंतोष कष्ट एवं तनाव की अनुभूति होती है।
तत्परता का नियम और कक्षा शिक्षण

1. नवीन ज्ञान देने से पूर्व छात्रों को मानसिक रूप से नए ज्ञान को ग्रहण करने के लिए तैयार करना चाहिए।

2. इसमें छात्रों की वैयक्तिक भिन्नता को भी ध्यान में रखना चाहिए।

3. अध्यापक को छात्रों को अधिगम के लिए बाध्य नहीं करना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से छात्रों का भावनात्मक दमन होगा और उनकी ऊर्जा का दुरुपयोग होगा।

4. छात्रों में मानसिक तत्परता के लिए अध्यापक को नवीन शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए। जिससे कि छात्रों में अधिगम के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न हो सके।

सीखने के गौण नियम इस प्रकार है।

बहु अनुक्रिया का नियम

जब व्यक्ति के सामने कोई भी समस्या आती है तो वह उसे सुलझाने के लिए अनेक प्रकार की अनुक्रियाएं करता है। और अनुक्रियाओ के करने का क्रम तब तक चलता रहता है। जब तक वह सही अनुक्रिया के रूप में समस्या का समाधान नहीं कर लेता है। इस प्रकार अपनी समस्या को सुलझाने पर व्यक्ति संतोष का अनुभव करता है।

मानसिक स्थिति का नियम

किसी भी प्राणी के सीखने की योग्यता उसकी अभिवृत्ति तथा मनोवृति द्वारा निर्देशित होती है। यदि व्यक्ति की किसी कार्य को सीखने में रुचि व तत्परता है, तो वह उसे शीघ्र ही सीख लेता है। किंतु यदि प्राणी मानसिक रूप से किसी कार्य को सीखने के लिए तत्पर नहीं है तो वह उस क्रिया को या तो सीख ही नहीं पाएगा अथवा फिर उसी कठिनाई से जूझना पड़ेगा।

आंशिक क्रिया का नियम

यह नियम इस बात पर बल देता है कि कोई क्रिया संपूर्ण स्थिति के प्रति नहीं होती है। यह केवल संपूर्ण स्थिति के कुछ पक्षियों तथा अंशों के प्रति ही होती है। अर्थात यह नियम बताता है कि कार्य को अंशिता विभाजित करके करने से वह कार्य जल्दी सीख लिया जाता है।

सादृश्य अनुक्रिया का नियम

इस नियम का आधार पूर्ण अनुभव है। प्राणी किसी नवीन परिस्थिति या समस्या की उपस्थित होने पर उससे मिलती-जुलती अन्य परिस्थिति क्या समस्या का अनुसरण करता है। जिसे वह पहले ही अनुभव कर चुका हो। वह उसके प्रति वैसी ही प्रतिक्रिया करेगा जैसा उसने पहली परिस्थिति या समस्या के साथ की थी। समान तत्वों के आधार पर नवीन ज्ञान का पुराने अनुभवों से समानता करने पर सीखने में सरलता तथा शीघ्रता होती है।

संप्रेषण की परिभाषाएं: Communication Definition and Types In Hindi

 

संप्रेषण की परिभाषाएं: Communication Definition and Types In Hindi

Communication Definition and Types In Hindi

इस पोस्ट में हम संप्रेषण का अर्थ, विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई संप्रेषण की परिभाषाएं तथा संप्रेषण की विशेषताएं, प्रकार (Communication Definition and Types In Hindi), कारक एवं घटक का अध्ययन करेंगे।

संप्रेषण का अर्थ

‘एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को सूचनाओं एवं संदेशों को भेजना तथा प्राप्तकर्ता द्वारा उन्हें ठीक और सही अर्थ में समझाना, जिस रूप और अर्थ में संप्रेषण चाहता है।’

संप्रेषण को आंग्ल भाषा मे कम्युनिकेशन कहा जाता है। इस आंग्ल भाषा शब्द का निर्माण लैटिन शब्द ‘कम्युनी’ से हुआ है। इसका आशा सामान्य विचारों, भावनाओं, सूचनाओं के आदान-प्रदान से होता है।

सम (भली प्रकार) + प्रेषण (भेजना) = संप्रेषण

संप्रेषण की परिभाषाएं (Communication definitions)

पॉललीगंस के अनुसार  “संचार (संप्रेषण) वह क्रिया है, जिसके द्वारा दो या अधिक लोग विचारों, तथ्यों, भावनाओं एवं प्रभावों आदि का इस प्रकार विनिमय करते हैं कि संचार प्राप्त करने वाला व्यक्ति संदेश के अर्थ, उद्देश्य तथा उपयोग को भलीभांति समझ लेता है।”

डॉ. आई . पी. तिवारी के अनुसार – “संप्रेषण जीवन की एक क्रिया है। इसके अभाव में जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। संप्रेषण जीवन के साथ शुरू होता है, और जीवन के अंत के साथ खत्म हो जाता है। सामाजिक व्यवस्था में संप्रेषण की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।”

अच्छे संप्रेषण की विशेषताएं (Characteristics of good communication)

  • छात्रों की पूर्व अनुभवों का ध्यान


  • उचित पथ प्रदर्शन


  • अच्छी योजना


  • निर्देशात्मक


  • बालकों की कठिनाइयों का निदान


  • अधिगम से संप्रेषण का संबंध


संप्रेषण के घटक या कारक

  • प्रेषक


  • संदेश


  • माध्यम


  • प्रतिपुष्टि


  • प्रापक


  • प्रतिक्रिया


(1) प्रेषक (Communicator) – प्रेषक एक माध्यम की सफलता का मूल आधार संदेश होता है। प्रेषक को अपना संदेश प्रेषित करते समय निम्न बिंदुओं का ध्यान रखना चाहिए।

  • छात्रों का बौद्धिक स्तर


  • उद्देश्य की जानकारी


  • स्वयं का व्यक्तित्व


  • अभिप्रेरणा


  • कक्षा का वातावरण


  • पाठ योजना का निर्माण


  • विषय वस्तु का चयन


  • वैयक्तिक विभिन्नताओं का ध्यान


  • निष्पक्ष भाव


  • बालक का मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य


  • विषयों के सह संबंध पर आधारित शिक्षण संप्रेषण


(2) संदेश (message) – संदेश से आशय पाठ्य पुस्तक से हैं। प्रेषक ग्राही को जो कुछ भी सिखाना चाहता है। इस कार्य हेतु अपना जो अनुभव व ज्ञान व शिक्षण के माध्यम से प्रेषित करता है। उसे संदेश कहते हैं।

यदि एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को सूचना या जानकारी दी जाती है,और दूसरा व्यक्ति समझ लेता है, तो वह संप्रेषण कहलाता है।

संप्रेषण पूरा होने के लिए संप्राप्ति की आवश्यकता है, अथवा किसी के द्वारा कही गई बात को उसी तरह समझ लेना संप्रेषण कहलाता है।
Communication Definition and Types In Hindi

(3) माध्यम (Media)- माध्यम प्रेषक और प्रापक के बीच मेल कराते हैं। जैसे – रेडियो, टेलीविजन, ओवरहेड, प्रोजेक्टर, टेलीफोन, बी.सी.आर. आदि।

(4) ग्राही (Receiver) – ग्राही अर्थात ग्रहण करने वाले प्राप्त करने वाला सीखने वाला, संप्रेषण के द्वारा दिए जाने वाले ज्ञान को ग्रहण करने वाला ग्राही कहलाता है। संप्रेषण के तीन प्रमुख घटक है। संप्रेषण, संदेश एवं ग्राही

ग्राही को अन्य नामों जैसे- प्रापक, प्राप्तकर्ता, ग्राहीकर्ता, विषयी इत्यादि नामों से संबोधित किया जाता है।

(5) प्रतिपुष्टि (Feed Back) – सीखने की प्रक्रिया में समय पर प्रतिपुष्टि देना आवश्यक होता है। जिससे वह संदेश की प्रति जागरूक रहता है।

संप्रेषण के प्रकार (Types of communication)

संप्रेषण के दो प्रकार होते हैं।

1. शाब्दिक संप्रेषण – शाब्दिक संप्रेषण को दो भागों में बांटा गया है।

  • मौखिक (वार्ता, व्याख्या, कहानी, प्रश्नोत्तर, मौखिक बोलकर संप्रेषण)


  • लिखित (विभिन्न तथ्यों का लिखित रूप से संप्रेषण)


2. अशाब्दिक संप्रेषण – अशाब्दिक संप्रेषण को तीन भागों में बांटा गया है।

  • वाणी या आवाज


  • आंख एवं मुख मुद्रा संप्रेषण


  • स्पर्श या छूकर विभिन्न तथ्यों का संप्रेषण


  • वैयक्तिक संप्रेषण (individual communication)

    जब शिक्षा प्रत्येक बालक को अलग-अलग शिक्षण देता है तो इसे वैयक्तिक संप्रेषण कहा जाता है।

    ए.जी. मेलबिन के अनुसार – “विचारों का आदान-प्रदान अथवा व्यक्तिगत वार्तालाप द्वारा बालकों को अध्ययन में सहायता, आदेश तथा निर्देश प्रदान करने के लिए शिक्षक का प्रतीक बालक से प्रथक प्रथक साक्षात्कार करना।”

    वैयक्तिक संप्रेषण के उद्देश्य

    छात्रों की रुचियो, अभिरुचियो, आवश्यकताएं तथा मानसिक योग्यताओं के अनुसार शिक्षण देना।

    • साधारण बालक ओं को उनके पसंदीदा क्षेत्र में आगे बढ़ाना।


    • बाला को की विशिष्ट योग्यता और व्यक्तित्व का विकास करना।


    • क्रियाशीलता का अवसर देना।


    सामूहिक संप्रेषण (Collective communication)

    सामूहिक संप्रेषण का अर्थ कक्षा शिक्षण है। विद्यालय में एक की मानसिक योग्यता वाले छात्रों की अनेक उप समूह बना लिए जाते हैं। साधारणतया इनको कक्षा कहते हैं। यह कक्षाएं सामूहिक इकाइयां होती है। शिक्षक इन कक्षाओं में जाकर सभी छात्रों को एक साथ शिक्षा देते हैं। इस विधि में एक कक्षा के सभी छात्रों के लिए सामूहिक शिक्षण विधि का प्रयोग किया जाता है।

    प्रभावी संप्रेषण के तरीके (Effective communication methods)

    • उद्देश्य पूर्ण


    • अध्यापन आदेश आत्मक ना होकर निर्देश आत्मक होना चाहिए।


    • प्रेरणास्पद


    • बाल केंद्रित


    • सुनियोजित


    • प्रजातांत्रिक पद्धति पर आधारित


    • सक्रियअध्यापन


    • विषय से क्रमबद्ध ता


    • सहयोग की भावना का विकास


    • पूर्व ज्ञान से संबंधित


    • स्वतंत्र वातावरण


    • आत्मविश्वास की जागृति


    • अध्यापन उपचार पूर्ण होना चाहिए


    • क्रियाशीलता एवं छात्रों की अपनी बात कहने के अवसर


    • सहायक सामग्री का समुचित प्रयोग।

मूल्यांकन एवं मापन प्रश्न और परिभाषाएं(Measurement and Evaluation in Education)

 

मूल्यांकन एवं मापन प्रश्न और परिभाषाएं(Measurement and Evaluation in Education)

  • कोठारी आयोग – “मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया है तथा शिक्षा की संपूर्ण प्रक्रिया का अभिन्न अंग है यह शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ण रूप से संबंधित है मूल्यांकन के द्वारा शैक्षणिक उपलब्धि की भी जांच नहीं की जाती बल्कि उसके सुधार में भी सहायता मिलती है”


  • हन्ना के अनुसार – “विद्यालय द्वारा बालक के व्यवहार में लाए गए परिवर्तन के संबंध में परमाणु की संख्या और उनकी व्याख्या करने की प्रक्रिया को मूल्यांकन कहते हैं”


  • गुड्स के अनुसार –” मूल्यांकन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सही ढंग से किसी वस्तु का मापन किया जा सकता है”


  • मुक्फात के अनुसार – “मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया है तथा यह बालक ओं की औपचारिक शैक्षणिक उपलब्धि की अपेक्षा करता है यह व्यक्ती के विकास में अधिक रुचि रखता है यह व्यक्ती के विकास को उसकी भावनाओं, विचारों तथा क्रियाओं से संबंधित वांछित व्यवहार गत परिवर्तन के रूप में व्यक्त करता है”


  • रेमर्स एवं गेज के अनुसार – ” मूल्यांकन में व्यक्ति या समाज अथवा दोनों की दृष्टि में जो उत्तम है अथवा वांछनीय है को माना जाता है”


  • क्लार व स्टार के अनुसार – ” मूल्यांकन वह निर्णय या विश्लेषण है जो विद्यार्थी के कार्य की प्राप्त सूचनाओं से निकाला जाता है”


#मापन एवं मूल्यांकन के अति महत्वपूर्ण वन लाइनर (measurement and evaluation in education in hindi)

  • मूल्यांकन किन दो शब्दों से मिलकर बना है। – मूल्य+अंकन


  • मूल्यांकन के कितने प्रकार होते हैं। – 3 लिखित, मौखिक, साक्षात्कार


  • मापन के कितने स्तर होते हैं। – 4 नामित, क्रमित, आंतरिक, अनुपातिक


  • मापन किस प्रकार की प्रक्रिया है। – नियमानुसार अंक प्रदान करने की


  • मूल्यांकन का संबंध किससे होता है। – अभिगमन से


  • मापन के स्तर किसने बतलाए हैं। – S.S Stivance


  • मूल्यांकन का क्षेत्र कैसा होता है। – व्यापक


  • ‘मानसिक मापन’ शब्द किसने प्रयोग किया। -Cattle


  • मापन की कोई दो विशेषता बतलाइए। – वस्तुनिष्ठ, वैध


  • उद्देश्य केंद्रित शिक्षा किस का लक्ष्य है। – मूल्यांकन का


  • ‘चर’ कितने प्रकार के होते हैं। – गुणात्मक, मात्रात्मक


  • मूल्यांकन में किसका अध्ययन किया जाता है। – शिक्षक एवं छात्र दोनों का


  • मात्रात्मक चर कितने प्रकार के होते हैं। – सतत एवं असतत


  • परिणात्मक मूल्यांकन होते हैं। – लिखित, मौखिक, प्रयोगात्मक


  • गुणात्मक मूल्यांकन होते हैं। – साक्षात्कार, निरीक्षण, प्रश्नावली


  • सर्वांगीण विकास हेतु क्या आवश्यक होता है। – सतत एवं व्यापक मूल्यांकन


  • मापन द्वारा किन बातों की जांच की जाती है। – रुचि, प्रकृति, चिंतन, कल्पना, प्रवृत्ति


  • किसी गुण या विशेषता को गणिती इकाई में व्यक्त करना क्या कहलाता है। – मापन


  • मूल्यांकन प्रक्रिया के कितने अंग होते हैं। – 3


  • मूल्यांकन किस प्रकार की प्रक्रिया है। – निर्णयत्मक


  • उपचारात्मक शिक्षा का उद्देश्य होता है। – विद्यार्थियों की कमजोरियों में सुधार करना


  • बहुविकल्पीय प्रश्न होते हैं। – वस्तुनिष्ठ


  • निबंधात्मक प्रश्नों के अंकों का प्रतिशत कितना होना चाहिए। – 40%


  • वस्तुनिष्ठ प्रश्न कितने प्रकार के होते हैं। – 4


  • परीक्षण विधि के अंतर्गत मूल्यांकन की परिस्थितियां होती है। – अर्ध कृतिम तथा वास्तविक


  • दैनिक मूल्यांकन लाभदायक होता है। – बालक को की तात्कालिक शैक्षिक स्थिति का पता लगाने में


  • मापन के कोई दो कार्य बतलाइए। – निर्देशन एवं परामर्श


  • किस परीक्षण में छात्र को सत्य एवं असत्य में उत्तर देना पड़ता है। – सत्यासत्य परीक्षण में


  • सार्थक ज्ञान के लिए निदान एवं उपचार का पथ प्रशस्त करता है।– सतत मूल्यांकन


  • ” मापन किन्ही निश्चित स्वीकृत नियमों के अनुसार वस्तु को अंक प्रदान करने की प्रक्रिया है” यह कथन किसका है। – स्टीवेंसन का


  • क्रियात्मक धन का लक्ष्य है। – सामान्य ज्ञान की खोज, विशिष्ट ज्ञान की खोज, नवीन शैक्षणिक ज्ञान की खोज


  • वस्तुनिष्ठ प्रश्न होने चाहिए। – 20 अंक के


  • निबंधात्मक प्रश्नों की संख्या होनी चाहिए। – 5


  • आजकल परीक्षाओं में सबसे अधिक किस प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं। – लघु उत्तरी एवं वास्तुनिष्ठ


  • अध्यापक निर्मित परीक्षण की विशेषता है। – किसी प्रकार के मानक होना अनिवार्य नहीं है


  • मूल्यांकन की क्रियात्मक पक्ष में सम्मिलित है।– समायोजन


  • सतत मूल्यांकन का क्षेत्र होता है। – व्यापक


  • जिसके द्वारा व्यक्ति की विभिन्न ने योग्यताओं का मापन, उसके दायित्व बा विषयों का अध्ययन किया जाता है वह क्या कहलाता है। – मूल्यांकन


  • मूल्यांकन की प्रशासनिक आवश्यकता किस कारण होती है।– शैक्षणिक स्तर की जांच करने के लिए


  • किसके अनुसार” शैक्षणिक मूल्यांकन की प्रक्रिया चतुर्मुखी है” – डॉक्टर पटेल के अनुसार


  • शैक्षणिक मापन के कितने स्तर होते हैं। – चार स्तर : शाब्दिक:, कृमित, अंतराल, अनुपात


  • मूल्यांकन के क्षेत्र में छात्र के व्यक्तित्व के कौन-कौन से अंग आते हैं। – ज्ञान, कुशलताये , रुचियां, योग्यता, बुद्धि


  • मूल्यांकन का क्रियात्मक पक्ष क्या होता है। – स्वभावीकरण करना


  • मापन मूल्यांकन का वह भाग है जो बालक की शैक्षणिक योग्यता को प्रतिशत,, में अंको में प्रदर्शित करता है क्या कहलाता है। – शैक्षणिक मापन


  • एक अच्छे परीक्षण का मुख्य गुण क्या होता है। – अच्छा परीक्षण सम प्रयोजन, उद्देश्य पूर्ण होता है


  • छात्रों के शैक्षणिक कौशल की जांच प्रतिमाह या तिथि वार करना क्या कहलाता है।– सतत मूल्यांकन


  • सतत मूल्यांकन किस प्रकार की प्रक्रिया होती है। – निरंतर चलने वाली प्रक्रिया


  • निरंतर मूल्यांकन योजना किसे कहते हैं। – सतत मूल्यांकन को


  • सतत मूल्यांकन की विधियों का नाम बताइए। – मासिक परीक्षा, सेमेस्टर परीक्षा, सत्र परीक्षा


  • किसी वस्तु के भाव को ग्रहण करने की योग्यता है। – बोध


  • वस्तुनिष्ठ परीक्षण की कोई एक विशेषता बताइए। – इसमें ऐसे प्रश्न होते हैं, जिनकी उत्तर निश्चित व संक्षिप्त होते हैं


  • उत्तम परीक्षण की विशेषता होती है। – वैधता, विश्वसनीयता


  • जब परीक्षण करने से बार-बार एक जैसा ही परिणाम आए, तो इसे क्या कहते हैं। – विश्वसनीयता


  • औषध बुद्धि स्तर के छात्र की बुद्धि लब्धि कितनी होती है।– 90 से 110


  • कक्षा गत समस्या का समाधान किसके द्वारा किया जाता है। – क्रियात्मक अनुसंधान


  • वस्तुनिष्ठ परीक्षा की विशेषता है। – विश्वसनीयता, वैधता, वास्तुनिष्ठता


  • अपचारी शिक्षण की विधि है। – अनुवर्ग शिक्षण, स्वामित्व अधिगम


  • मूल्यांकन द्वारा पता चलता है। – छात्रों के व्यवहार परिवर्तन का


  • विकासात्मक प्रश्न पूछे जाते हैं – प्रस्तुतीकरण में


  • मूल्यांकन की प्रक्रिया छात्रों को क्या देती है। – श्रेष्ठ कार्य करने की प्रेरणा


  • निबंधात्मक परीक्षा की विशेषता होती है। – उपयोगिता


  • ” मूल्यांकन की प्रक्रिया की व्यापकता विद्यार्थियों के समस्त व्यक्तित्व पर अपने प्रसार का उल्लेख करती है ना कि केवल उसकी बौद्धिक उपलब्धि का” यह कथन किसका है। – रेमसर्जगेज का


  • बहु वैकल्पिक प्रश्न होते हैं। – वस्तुनिष्ठ प्रश्


  • अच्छे प्रश्नों के निर्माण की सर्वाधिक प्रमुख विशेषता होती है। – उद्देश्य एवं प्रयोजन


  • ” निरीक्षण आंख द्वारा विचार पूर्वक किया गया अध्ययन है” किसका कथन है। – युग का


  • ” परीक्षण- योग्यता निष्पत्ति जा उपलब्धि रुचि आदि का मापन करने के लिए परीक्षा या प्रश्नावली या किसी प्रकार की युक्ति या विधि है” यह परिभाषा किसकी द्वारा दी गई है। – सी.बी गुड


  • प्रश्नों के कई प्रकार होते हैं पौधे एवं जानवरों में चार अंतर बताएं यह प्रश्न किस प्रकार के प्रश्न का उदाहरण है। – लघु उत्तरीय प्रश्न


  • एक चित्र के द्वारा डॉक्टर कि रोगी का परीक्षण करते हुए दिखाया जा रहा है, यह कौन से प्रश्न का प्रकार है। – चित्रात्मक प्रश्न


  • आलोचनात्मक चिंतन का अर्थ होता है। – सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों चिंतन


  • आकलन मूल्यांकन की कौन सी प्रक्रिया होती है। – संक्षिप्त प्रक्रिया


  • मूल्यांकन शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों के लिए किस प्रकार का कार्य करता है। – पुनर्बलन का


  • विद्यालय आधारित मूल्यांकन किस प्रकार का होता है। – बहुआयामी


  • अधिगम में आकलन किस लिए आवश्यक होता है। – प्रेरणा के लिए


  • गणित में अधिगम निर्योग्यता का आकलन किस परीक्षण द्वारा सर्वाधिक उचित तरीके से किया जा सकता है। – निदानात्मक परीक्षण


  • मार्गदर्शन का प्रयोजन है। – मूल्यांकन की बहु विध मॉडलओं का प्रयोग


  • कौन-सा व्यवहार बच्चे को अधिगम-निर्योग्यता की पहचान करता है? – मनोभाव का जल्दी-जल्दी बदलना (मूड स्विंग्स)


  • बच्चों में अमूर्तमान प्रत्ययों को ग्रहण करने की योग्यता होती है? – .प्रतिभाशाली

शिक्षण कौशल की परिभाषाएं (Teaching Skills Definition)


शिक्षण कौशल की परिभाषाएं (Teaching Skills Definition)

डॉक्टर बी के पासी के अनुसार- “शिक्षण कौशल, छात्रों के सीखने के लिए सुगमता प्रदान करने के विचार से संपन्न की गई संबंधित शिक्षण क्रियाओं या व्यवहारिक का समूह है।”



मेकइंटेयर एवं व्हाइट के अनुसार “शिक्षण कौशल, शिक्षण व्यवहार से संबंधित वह स्वरूप है ,जो कक्षा की अंतः प्रक्रिया द्वारा उन विशिष्ट परिस्थितियों को जन्म देता है। जो शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होती है और सीखने में सुगमता प्रदान करती है।”

डॉ कुलश्रेष्ठ के अनुसार- ” शिक्षण कौशल शिक्षक की हाथ में वह शस्त्र है। जिसका प्रयोग करके शिक्षक अपनी कक्षा शिक्षण को प्रभावी तथा सक्रिय बनाता है एवं कक्षा की अंतर प्रक्रिया में सुधार लाने का प्रयास करता है।”

शिक्षण कौशल की प्रमुख विशेषताएं (Features of Teaching Skills)

  1. शिक्षण कौशल शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाते हैं।
  2. यह समस्त अंतः क्रिया को सक्रिय बनाते हैं।

3.यह विषय वस्तु को सरल एवं सुगम बनाते हैं।

4.शिक्षण कौशल विशिष्ट लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक होते हैं।

5.यह शिक्षण प्रक्रिया तथा व्यवहार को संयमित करते हैं।

शिक्षण कौशल की प्रमुख विधियां (Major methods of teaching skills)

1.शिक्षण कार्य अवलोकन विधि(Teaching work observation method)

2.साक्षात्कार और विचार विमर्श विधि(Interviews and Discussion Methods)

3.पाठ्यक्रम और उद्देश्य विश्लेषण विधि(Course and objective analysis method)

4.शिक्षा सम्मति विधि(Law of education)

शिक्षण कौशल से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर (Important questions related to teaching skills)

  • सूक्ष्म- शिक्षण का विकास किसने किया। – डी.डब्लू.एलेन
  • डॉ.वी.के. पासी ने अपने अध्ययन के आधार पर कितने शिक्षण कौशल की सूची तैयार की थी।– 13
  • शिक्षण कौशल के विकास एवं सुधार की प्रविधि किसे कहा जाता है। – सूक्ष्म शिक्षण
  • चित्र तथा पोस्टर कौन से साधन/ सामग्री है। – दृश्य
  • अभिक्रमित अनुदेशन का विकास किसने किया था। – बी. एफ. स्किनर ने
  • रेखीय विक्रम का प्रतिपादक किसे माना जाता है। – बी.एफ स्किनर को
  • रेखीय अभिक्रमित अन्य किस नाम से जाना जाता है। -बाहय अभिक्रम
  • चलचित्र कैसा साधन है। – दृश्य- श्रव्य
  • ” एजुकेशन टेक्नोलॉजी” शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया था। – ब्रायनमोर जोंस(1967)
  • शैक्षिक तकनीकी केंद्र किसने प्रारंभ किया था ।– NCERT नई दिल्ली
  • आधारभूत शिक्षण प्रतिमान किसके द्वारा दिया गया था। – रॉबर्ट ग्लेजर
  • शिक्षण मशीन का निर्माण किसके द्वारा किया गया। – सिडनी एल प्रेसी(अमेरिका में 1926)
  • “Technology”शब्द की उत्पत्ति किस किस भाषा से हुई है। – Technikos(कला)
  • शिक्षण प्रतिमान के कितने तत्व होते हैं। – 4(उद्देश्य, संरचना, सामाजिक प्रणाली,मूल्यांकन)
  • साखी अभिक्रम का विकास किसके द्वारा किया गया। -नार्मन ए. क्राउडर
  • एलेन एवं रेयान ने सूक्ष्म शिक्षण के कितने कौशल बताए हैं। – 14
  • अभिक्रमित अनुदेशन कितने प्रकार के होते हैं। – 3(रेखीय, शाखीय,मैथेटिक्स)
  • OHP का पूरा नाम है।-Over Head Projector (ओवरहेड प्रोजेक्टर)
  • सूक्ष्म शिक्षण में एक समय में कितने शिक्षण कौशल का विकास किया जाता है। – एक
  • भारत में दूरदर्शन सेवा का औपचारिक रूप से उद्घाटन कब हुआ। – 15 सितंबर 1959 ई
  • टेलीकॉन्फ्रेसिंग कितने प्रकार की होती है। – 3( टेलीकॉन्फ्रेसिंग, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, कंप्यूटर कॉन्फ्रेंसिंग)
  • श्रव्य दृश्य सामग्री के उपागम के अंतर्गत आती है। – हार्डवेयर
  • कठोर शिल्प उपागम का संबंध अनुदेशन के किस पक्ष से होता है। – ज्ञानात्मक
  • खोजपूर्ण प्रश्न पूछने से छात्रों में किस का विकास होता है। – ज्ञानात्मक
  • किस शिक्षण कौशल के अंतर्गत शिक्षक द्वारा हावभाव एवं अपनी स्थिति को बदला जाता है। -उद्दीपन भिन्नता
  • बोध स्तर के शिक्षण प्रतिमान का प्रतिपादन किसके द्वारा किया गया। – बी एस ब्लूम
  • एजर डेल के अनुसार किस प्रकार का अनुभव सबसे स्थाई होता है। – प्रत्यक्ष अवलोकन
  • शिक्षक की योग्यता एवं आचरण का मूल्यांकन सबसे भली प्रकार कौन करता है। – छात्र/ शिष्य
  • शिक्षण की समस्याओं को हल करने का दायित्व किस का होता है। – शिक्षक का
  • विद्यालय परिसर के बाहर एक शिक्षक को अपने छात्र से किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए। – मैत्रीपूर्ण
  • निगमनात्मक शिक्षण प्रविधि किसके अंतर्गत आती है। – सामान्य से विशिष्ट की ओर
  • अध्यापक के लिए सबसे मूल्यवान वस्तु क्या होती है। – छात्रों का विश्वास
  • ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों के स्कूल से भागने तथा पढ़ाई छोड़ने का क्या कारण होता है। – नीरज वातावरण
  • भारत में शिक्षित बेरोजगारी का प्रमुख कारण होता है। – उद्देश्यहीन शिक्षा
  • किस प्रकार का कक्षा नेतृत्व सबसे उत्तम माना गया है। – लोकतांत्रिक
  • किसी भी विषय वस्तु को छात्रों को सरलता से सिखाने के लिए आवश्यक गुण अध्यापक के लिए कौन सा है। – प्रभावी अभिव्यक्ति
  • वर्तमान समय में प्राइमरी शिक्षा की दुर्दशा का मुख्य कारण बतलाइए। – शिक्षक- छात्र विषम अनुपात
  • छोटे बच्चों की शिक्षा देना जरूरी है, लेकिन बच्चों पर कौन सा बोझ नहीं डालना चाहिए। – गृह
  • जब छात्र उन्नति करते हैं तो उनका अध्यापक कैसा महसूस करता है। – आत्म संतोष
  • शिक्षा से किस का कल्याण होता है। – समाज के सभी वर्गों का
  • यह किसने कहा है कि“ शिशु का मस्तिष्क कोरी स्लेट होता है”।– प्लेटो ने
  • किस विद्वान के द्वारा सीखने के पांच चरण बतलाए गए हैं। – हरबर्ट स्पेंसर
  • “ किंडरगाटेर्न ” स्कूल सबसे पहले किस देश में खोले गए थे। – जर्मनी
  • भाषा सीखने का सबसे प्रभावी उपाय है। – वार्तालाप करना
  • नर्सरी स्कूलों की शुरुआत किसने की थी। – फ्रोबेल
  • कौन सी शिक्षण विधि वास्तविक अनुभवों को प्रदान करने के लिए उत्तम मानी जाती है। – भ्रमण विधि
  • किस विद्वान के अनुसार शिक्षा के क्षेत्र में” अभिरुचि” को सबसे महत्वपूर्ण तत्व बताया गया है। – टी पी नन
  • आज के आवासीय स्कूल किस भारतीय पद्धति के समान है। – गुरुकुल
  • भारत में स्त्री शिक्षा के महान समर्थक कौन थे। – कार्वे
  • ज्ञान इंद्रियों का प्रशिक्षण किस प्रकार का होता है। – अभ्यास द्वारा
  • प्रयोजनवादी विचारधारा के प्रवर्तक थे। – विलियम जेम्स
  • यह किसने कहा है कि”बच्चों के लिए सबसे उत्तम शिक्षक वह होता है जो स्वयं बालक जैसा हो”। – मैकेन
  • गणित शिक्षण की कौन सी संप्रेषण रणनीति सर्वाधिक उत्तम उपयुक्त मानी गई है। – एल्गोरिथ्म
  • एक शिक्षक के घर में किस वस्तु का होना ज्यादा जरूरी है। – पुस्तकालय
  • किस सिद्धांत द्वारा बालक में रूचि का विकास होता है। – प्रेरणा का सिद्धांत
  • अधिगम का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत बतलाइए। – क्रिया का सिद्धांत
  • वैदिक काल में परिवार में विद्या का प्रारंभ करते समय कौन सा संस्कार होता था। – विद्यारंभ संस्कार( चूड़ाकर्म)
  • शिक्षा की अवधि क्या है। – 500 ईसा पूर्व से 1200 तक

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