EVS Pedagogy Notes (*Topic Wise*) Notes CTET, UPTET


EVS Pedagogy Notes (*Topic Wise*) Notes

Topic-1 – पर्यावरण अध्ययन की अवधारणा एवं क्षेत्र (Concept and scopes of Evs): 
Topic-2 – पर्यावरण अध्ययन का महत्व एवं एकीकृत पर्यावरण अध्ययन(Significance of Evs, Integrated Evs): 
Topic- 3 – पर्यावरण अध्ययन(Environmental studies),पर्यावरण शिक्षा: 

Topic- 4 – अधिगम के सिद्धांत (Learning principles): 

Topic- 5 – अवधारणा प्रस्तुतीकरण के उपागम (Approaches of Presenting Concepts): 

Topic- 6 – पर्यावरण अध्ययन की शिक्षण अधिगम की विधियां(environment teaching method in Hindi) :




Topic – 7 – EVS Pedagogy Activities (क्रियाकलाप) click here

Topic -8 & 9 – Practical Work And Steps In Discussion Click here

Topic – 10 पर्यावरण अध्ययन में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन(C.C.E in Evs) Click here

Topic – 11 & 12 –पर्यावरण शिक्षण की समस्याएं एवं शिक्षण सहायक सामग्री
Introduction (परिचय)

पर्यावरण अध्ययन (Environment)का अध्यापन राष्ट्रीय पाठ्यचर्या समिति ने 1975 के नीतिगत दस्तावेज” 10 वर्षीय स्कूल के लिए पाठ्यक्रम: एक रूपरेखा” अर्थात(The curriculum for the 10 year school: a framework)मैं सिफारिश की थी, कि एक एकल विषय पर्यावरण अध्ययन(evs)  प्राथमिक स्तर पर पढ़ाया जाना चाहिए।

  • पहले 2 वर्ष में( कक्षा 1-2 ) पर्यावरण अध्ययन प्राकृतिक और सामाजिक वातावरण दोनों को देखेगा, जबकि कक्षा 3 – 4  में सामाजिक अध्ययन और सामान्य विज्ञान के लिए अलग से होंगे Evs part 1 और Evs part 2 ।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National policy of education)1986 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF)1988  में भी प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण के लिए यही दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
  • NCF 2000मैं सिफारिश की थी कि पर्यावरण अध्ययन को एक एकीकृत पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाया जाए, प्राथमिक स्तर( कक्षा 3 -4 ) पर विज्ञान और सामाजिक अध्ययन के लिए अलग-अलग विषय ना बढ़ाए जाएं।
  • वर्तमान एनसीएफ 2005 में पर्यावरण अध्ययन के लिए एकीकृत दृष्टिकोण को निरंतरता आगे मजबूत बनाने का आह्वान किया है।

पर्यावरण का अर्थ है वाह्य आवरण जो हमें चारों ओर से घेरे हुए हैं।  अतः पर्यावरण से अभिप्राय उन सभी भौतिक दशाएं तथा तथ्यों से लिया जाता है जो हमें चारों ओर से घेरे हुए हैं।

पर्यावरण शिक्षा निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है अतः प्राथमिक स्तर से ही इसका शिक्षण आवश्यक है।


पर्यावरण अध्ययन की संकल्पना(NCF2005)Concept of environmental studies-

  • बच्चों को प्राकृतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण के बीच संबंधों का पता  लगाने और उन्हें समझने के लिए प्रशिक्षित करना।
  • अवलोकन और चित्रों के आधार पर समझ विकसित करने के लिए अनुभव के माध्यम से उन में भौतिक, जैविक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू की  समझ प्राप्ति की ओर अग्रसर करना।
  • बच्चो  को सामाजिक घटनाओं के प्रति जिज्ञासु बनाने हेतु संख्यात्मक क्षमता पैदा करने के लिए परिवार से शुरुआत कर पूरे संसार की समझ विकसित करते हुएआगे बढ़ाना।
  • पर्यावरण के मुद्दों के बारे में जागरूकता विकसित करना।
  • बुनियादी संख्यात्मक और मनो प्रेरणा कौशल(Psychomotor Skills) प्राप्त करने के लिए बच्चे को खोजपूर्ण और हाथों की गतिविधियों में संलग्न कराना अर्थात अवलोकन, वर्गीकरण आदि द्वारा।
  • विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय मुद्दे जैसे- लिंगभेद, उत्पीड़न के मुद्दे, प्रदूषण, अनैतिक व्यवहार आदि को मूर्त घटनाओं से संबंधित कर उन्हें समझने की क्षमता का विकास कराना ताकि उनमें मानवीय अधिकारों, समानता और न्याय  मूल्यों के लिए सम्मान विकसित हो।
  • उन्हें इस योग्य बनाने की समानता, न्याय, मानव की गरिमा और अपने अधिकारों संबंधी मुद्दों को हल करने में सक्षम हो सके।
  • पर्यावरण संरक्षण क्यों आवश्यक है?  प्रदूषण क्या है? इसका समाधान कैसे हो सकता है? इन प्रश्नों के उत्तर  की समझ विकसित करने के लिए पर्यावरण अध्ययन को प्राथमिक स्तर पर शामिल किया जाना आवश्यक है ।
  • पर्यावरण को किसी प्रकार की हानि ना हो इसलिए इससे संबंधित अच्छी आदतों का विकास करने हेतु पर्यावरण अध्ययन आवश्यक है।

पर्यावरण अध्ययन विषय को बाल केंद्रित एवं एकीकृत करने के लिए इसमें लगभग 6 सामान्य विषयों का समावेश किया गया है जो इस प्रकार है।

1  परिवार और मित्र(Family and friends)

2 भोजन(Food)

3  आश्रय( shelter)

4  पानी( water)

5  यात्रा( travel)

6 चीजें जो हम बनाते हैं और करते हैं (Things we make and do)

पर्यावरण अध्ययन का क्षेत्र

  • राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005(NCF 2005) बच्चों  के स्कूली जीवन को बाहर के जीवन से जोड़ने का समर्थन करती है।
  • पर्यावरण अध्ययन के विषय में तो यह पूरी तरह से सही है, क्योंकि पर्यावरण अध्ययन का ध्येय मात्र ज्ञान का अर्जन ही नहीं ,बल्कि इससे जुड़े सामाजिक, प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक मुद्दों पर एक संपूर्ण रूप से समझ बनाते हुए आवश्यक कौशलों के  विकास द्वारा पर्यावरण संबंधी समस्याओं का समाधान करना भी है।
  • पर्यावरण अध्ययन में पर्यावरण विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान का समावेश है । यह इन विषयों के सार को संकलित करके प्राकृतिक वातावरण तथा उसके भौतिक, रासायनिक एवं जैविक तत्व की पारस्परिक क्रियाओं को व्यवस्थित रूप से समझने तथा संचालित करने में सहायता करता है।
  • पर्यावरण शब्द फ्रांसीसी फ्रेंच शब्द “इंवीरोनर”से लिया गया है जिसका अर्थ है पूरा परिवेश।
  • पर्यावरण अध्ययन में हम प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, भूकंप, भूस्खलन चक्रवात आंधी के कारण एवं परिणाम को समझने एवं प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के उपाय का अध्ययन करते हैं।
  •  इसमें हम वनस्पति एवं जंतु के प्रकारों एवं उनकी सुरक्षा के बारे में अध्ययन करते हैं।
  • प्राकृतिक संपदा एवं उनकी समस्याओं का संरक्षण एवं सुरक्षा इसमें जल, मृदा, वन, खनिज, बिजली एवं परिवहन शामिल है।
  • पर्यावरण के अध्ययन क्षेत्र में ना सिर्फ पृथ्वी वरन अंतरिक्ष भी सम्मिलित है
  •  मानव पर्यावरण संबंध पर्यावरण मुद्दों से संबंधित नीति एवं कानून का अध्ययन करते हैं ।
  • मौसम संबंधी अनेक कारण जैसे कि तापमान,, पवन, दाब, वर्षा, ओलावृष्टि, हिमपात ,पाला पड़ना भी पर्यावरण के जैविक घटकों को प्रभावित करते हैं जलवायु परिवर्तन के कारण आज अनेकों समस्याएं हमारे सामने प्रगट हो रही हैं, जिन्हें समझने तथा उनके निवारण हेतु मौसम विज्ञान के बारे में हम पर्यावरण अध्ययन में पढ़ते हैं ।
  • पर्यावरण का क्षेत्र काफी व्यापक होता है पर्यावरण अध्ययन को 3:00 व्यापक नियमों के अनुसार संचालित किया जाता है।
  • पर्यावरण के बारे में सीखना।
  • पर्यावरण के लिए सीखना।
  • पर्यावरण के माध्यम से सीखना।
  • पर्यावरण अध्ययन का विस्तार पर्यावरण को सीखने के माध्यम की तरह प्रयोग करने से लेकर, इसकी सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए क्या किया जा सकता है इस की विषय वस्तु की व्यवस्था बच्चे के आसपास के परिचित अनुभवों से शुरू होकर बाहरी अपरिचित दुनिया की तरफ चलती है ।
  • पर्यावरण अध्ययन का क्षेत्र सिर्फ बच्चों को अपने पर्यावरण की खोज करके समझा ना ही नहीं बल्कि-

सकारात्मक अभिवृत्तियो , मूल्यों एवं प्रथाओं जैसे कि धरती पर जीवन की रक्षा, प्यार, अपने और दूसरों की देखभाल, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, सामूहिक अधिगम की प्रशंसा, अपनेपन का भाव, सामाजिक दायित्व, संस्कृति के महत्व को समझने का विकास भी करना है।
पर्यावरण की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सकारात्मक तथा अनुकूल क्रियाओं की शुरुआत करना।
संरक्षण की नीतियों को बढ़ावा देना तथा पर्यावरण को बढ़ावा देने वाले स्वभाव एवं आदतों को अपनाना ।

पर्यावरण अध्ययन विषय को बाल केंद्रित एवं एकीकृत करने के लिए इसमें लगभग 6 सामान्य विषयों का समावेश किया गया है जो इस प्रकार है।

1  परिवार और मित्र(Family and friends)

2 भोजन(Food)

3  आश्रय( shelter)

4  पानी( water)

5  यात्रा( travel)


6 चीजें जो हम बनाते हैं और करते हैं (Things we make and do)

पर्यावरण अध्ययन का क्षेत्र

  • राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005(NCF 2005) बच्चों  के स्कूली जीवन को बाहर के जीवन से जोड़ने का समर्थन करती है।
  • पर्यावरण अध्ययन के विषय में तो यह पूरी तरह से सही है, क्योंकि पर्यावरण अध्ययन का ध्येय मात्र ज्ञान का अर्जन ही नहीं ,बल्कि इससे जुड़े सामाजिक, प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक मुद्दों पर एक संपूर्ण रूप से समझ बनाते हुए आवश्यक कौशलों के  विकास द्वारा पर्यावरण संबंधी समस्याओं का समाधान करना भी है।
  • पर्यावरण अध्ययन में पर्यावरण विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान का समावेश है । यह इन विषयों के सार को संकलित करके प्राकृतिक वातावरण तथा उसके भौतिक, रासायनिक एवं जैविक तत्व की पारस्परिक क्रियाओं को व्यवस्थित रूप से समझने तथा संचालित करने में सहायता करता है।
  • पर्यावरण शब्द फ्रांसीसी फ्रेंच शब्द “इंवीरोनर”से लिया गया है जिसका अर्थ है पूरा परिवेश।

1 पर्यावरण अध्ययन में हम प्राकृतिक आपदाओं जैसे  बाढ़, भूकंप, भूस्खलन चक्रवात आंधी के कारण एवं परिणाम को समझने एवं प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के उपाय का अध्ययन करते हैं।

2  इसमें हम वनस्पति एवं जंतु के प्रकारों एवं  उनकी सुरक्षा के बारे में अध्ययन करते हैं।

3 प्राकृतिक संपदा एवं उनकी समस्याओं का संरक्षण एवं सुरक्षा इसमें जल, मृदा, वन, खनिज, बिजली एवं परिवहन शामिल है।

4  पर्यावरण के अध्ययन क्षेत्र में ना सिर्फ पृथ्वी वरन अंतरिक्ष भी सम्मिलित है

5  मानव पर्यावरण संबंध पर्यावरण मुद्दों से संबंधित नीति एवं कानून का अध्ययन करते हैं ।

6  मौसम संबंधी अनेक कारण जैसे कि तापमान,, पवन, दाब, वर्षा, ओलावृष्टि, हिमपात ,पाला पड़ना भी पर्यावरण के जैविक घटकों को प्रभावित करते हैं जलवायु परिवर्तन के कारण आज अनेकों समस्याएं हमारे सामने प्रगट हो रही हैं, जिन्हें समझने तथा उनके निवारण हेतु मौसम विज्ञान के बारे में हम पर्यावरण अध्ययन में पढ़ते हैं ।

7 पर्यावरण का क्षेत्र काफी व्यापक होता है पर्यावरण अध्ययन को 3:00 व्यापक नियमों के अनुसार संचालित किया जाता है।

  • पर्यावरण के बारे में सीखना।
  • पर्यावरण के लिए सीखना।
  • पर्यावरण के माध्यम से सीखना।

8 पर्यावरण अध्ययन का विस्तार पर्यावरण को सीखने के माध्यम  की तरह प्रयोग करने से लेकर, इसकी सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए क्या किया जा सकता है इस की विषय वस्तु की व्यवस्था बच्चे के आसपास के परिचित अनुभवों से शुरू होकर बाहरी अपरिचित दुनिया की तरफ चलती है ।

9 पर्यावरण अध्ययन का क्षेत्र सिर्फ बच्चों को अपने पर्यावरण की खोज करके समझा ना ही नहीं बल्कि-

  • सकारात्मक   अभिवृत्तियो , मूल्यों एवं प्रथाओं जैसे कि धरती पर जीवन की रक्षा, प्यार, अपने और दूसरों की देखभाल, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, सामूहिक अधिगम की प्रशंसा, अपनेपन का भाव, सामाजिक दायित्व,  संस्कृति के महत्व को समझने का विकास भी करना है।
  • पर्यावरण की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सकारात्मक तथा अनुकूल क्रियाओं की शुरुआत करना।
  • संरक्षण की नीतियों को बढ़ावा देना तथा पर्यावरण को बढ़ावा देने वाले स्वभाव एवं आदतों को अपनाना ।

पर्यावरण अध्ययन का महत्व एवं एकीकृत पर्यावरण अध्ययन(Significance of Evs ,Integrated Evs)

  • पर्यावरण अध्ययन अपने आप में अलग से कोई विषय नहीं है।  इसके अंतर्गत विभिन्न विषयों सामाजिक अध्ययन, विज्ञान, पर्यावरण शिक्षा (Science, social science, Environmental education) की अवधारणाओं का उपयोग करते हुए प्राथमिक कक्षाओं में इसकी आधार भूमि तैयार की जाती है।
  • प्रत्येक विषय के शिक्षण का अपना उद्देश्य है अपना महत्व है एवं इससे विषय के सीखने की प्रक्रिया जुड़ी है।     

पर्यावरण अध्ययन का महत्व Significance of Evs

1 संपूर्ण शिक्षा का उद्देश्य बच्चों की मानसिक, भावनात्मक, सृजनात्मक, सामाजिक, शारीरिक आदि क्षमताओं का विकास करना है, यह सिर्फ कक्षाओं में रट्टा मार कर पढ़ने से नहीं होता बल्कि पर्यावरण के साथ जुड़ाव तथा अनुभव से होता है।

2  पर्यावरण अध्ययन के मुख्य केंद्र बिंदुओं में से एक है।  बच्चों को वास्तविक संसार जिसमें वह रहते हैं से परिचित कराया जाए पर्यावरण अध्ययन की परिस्थितियां तथा अनुभव उन्हें अपने प्राकृतिक एवं मानव निर्मित प्रति देश की छानबीन करने तथा उससे जुड़ने में सहायता करते हैं।

3 हम अपने अस्तित्व एवं जीवन की निरंतरता के लिए अपने पर्यावरण पर निर्भर हैं।  इस संदर्भ में प्रत्येक व्यक्ति का नैतिक कर्तव्य है कि हम अपने पर्यावरण की रक्षा एवं संरक्षण करें ऐसा  करने के लिए इस बात की समझ अत्यंत आवश्यक है, कि हमारे पर्यावरण की संरचना क्या है, तथा इसका महत्व क्या है पर्यावरण अध्ययन इसमें सहायक  होता है।

4 पर्यावरण अध्ययन बच्चों को पर्यावरण में होने वाली अनेक घटनाओं एवं क्रियाकलापों के बारे में अपनी समाज का विकास करने में सहायता करता है इसके द्वारा इन्हें सीखने के लिए प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान किए जाते हैं।

5  पर्यावरण अध्ययन बच्चों को यह समझ प्रदान करता है कि हम किस प्रकार से अपने भौतिक, जैविक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण के साथ पारस्परिक क्रियाकलाप करते हैं तथा उसके द्वारा प्रभावित होते हैं।

6  पर्यावरण अध्ययन का मुख्य लक्ष्य की बच्चों को इस योग्य बनाना ताकि वह पर्यावरण से संबंधित सभी मुद्दों को जानने समझने और संबंधित समस्याओं को हल करने में सक्षम हो सके।

7 यह बच्चों को कक्षा में सकारात्मक माहौल प्रदान करता है तथा सीखने के लिए प्रेरित करता है।

8  पर्यावरण अध्ययन शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सरल और सुविधाजनक बनाने में सहायक है क्योंकि यह करके सीखने पर बल देता है।

9  पर्यावरण अध्ययन पाठ्यक्रम में हाथों से काम करने के महत्व और विरासत में प्राप्त शिल्प परंपराओं को प्रोत्साहित करने की जरूरत पर बल दिया गया है।

10 पर्यावरण अध्ययन NCF 2005  की चिंताओं में से एक को कम करने में भी मदद करता है, पाठ्यक्रम के बोझ को घटाना।

11  इसके अध्ययन से बच्चे गहनता से  सोचते एवं सीखते हैं तथा अनुभवों का विश्लेषण करते हैं।

12 इस प्रकार के अनुभव बच्चों में सामूहिक कौशलों का विकास करने में सहायता करते हैं।  यह उन्हें दल के साथ घुलने मिलने के कुछ प्राथमिक कौशलों का विकास करने में सहायता करते हैं, जैसे की दल के साथ काम करना, उनकी बात सुनना तथा उनसे बात करना सीखना आदि।

13 इसी के साथ बच्चों में दूसरों के दृष्टिकोण एवं विश्वासों के प्रति भावनाओं का विकास होता है।  विचारों, अनुभवों लोगो, भोजन, भाषा, पर्यावरण तथा सबसे अधिक सामाजिक-सांस्कृतिक रिवाजों एवं आस्थाओं की कदर करना सीखते हैं।

14 अपने शुरुआती वर्षों में बच्चों के ऐसे अनुभव उन्हें बड़े होकर लोकतांत्रिक देश के अच्छे नागरिक बनने में सहायता करते हैं ।

15 अधिगम इर्द गिर्द के पर्यावरण, प्रकृति, वस्तु एवं लोगों के साथ क्रियाओं एवं भाषा के द्वारा संपर्क बनाने से होता है।  खोजना तथा खुद काम करना, प्रश्न करना सुनना तथा सहक्रिय करना मुख्य क्रियाए हैं जिसके माध्यम से अधिगम होता है, पर्यावरण अध्ययन  इसमें सहायक है ।

एकीकृत पर्यावरण अध्ययन(Integrated Evs)

1 हमारी राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा( 1975, 1988, 2000, 2005) इस बात को ध्यान में रखकर बनाई गई है कि पर्यावरण की सुरक्षा महत्वपूर्ण है।

2  राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में” पर्यावरण के बचाव” को केंद्र में रखकर ही राष्ट्रीय पाठ्यचर्या के विकास की बात कही गई है अर्थात यह संपूर्ण शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है।

3  राष्ट्रीय स्तर पर N.C.E. R.T द्वारा विकसित सब्जी पाठ्यचर्या में इस पर ध्यान देने पर विशेष बल दिया गया है।

4 1975 की राष्ट्रीय पाठ्यचर्या(NCF 1975) प्राथमिक कक्षाओं में पर्यावरण को एक अलग विषय के रूप में पढ़ाने की थी।  इसमें यह प्रस्तावित किया गया था कि पर्यावरण अध्ययन के रूप में प्राथमिक कक्षाओं में कक्षा 1 और कक्षा दो में प्राकृतिक और सामाजिक दोनों को सम्मिलित पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए एवं कक्षा 3 व 4 तक इसमें दो विषय के रूप में अर्थात पर्यावरणीय अध्ययन 1 ( प्राकृतिक विज्ञान) और पर्यावरण अध्ययन 2 ( सामाजिक विज्ञान) पढ़ाया जाना चाहिए ।

5 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 तथा राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 1988(NCF 1988) में भी पर्यावरण अध्ययन के बारे में उपयुक्त व्यवस्था को ही मंजूर किया गया था।

बोझ रहित अधिगम ( शिक्षा: राष्ट्रीय सलाहकार समिति की रिपोर्ट 1993)

ईश्वर भाई पटेल समीक्षा समिति 1977,NCERT कार्य समूह( 1984) और शिक्षा के लिए समीक्षा समिति पर राष्ट्रीय नीति(1990) ने सीखने के कार्य को आसान करने के लिए छात्रों पर शैक्षणिक बोझ को कम करने के लिए कई सिफारिशें की लेकिन कम होने के बजाय समस्या और अधिक तीव्र हो गई ,और इसीलिए संसाधन विकास मंत्रालय ने छात्रों पर शैक्षणिक  बोझ बढ़ाने की समस्या की जांच करने के लिए 1992 में एक राष्ट्रीय सलाहकार समिति की स्थापना की( भारत सरकार 1993)

इसके उद्देश्यों में शामिल है-” जीवन भर स्वयं सीखने और कौशल तैयार करने के लिए क्षमता सहित की गुणवत्ता में सुधार करते हुए सभी स्तरों पर छात्रोंप्  पर भार को कम करने के लिए तरीके और साधन सूझाना”

इस समिति ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की( 1993) “ बोझ रहित शिक्षण”  – पर्यावरण शिक्षा पाठ्यक्रम पर निर्णय को काफी हद तक इसके द्वारा निर्देशित किया गया था।

NCF -2000 (राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2000)

NCF -2000  ने पहली बार सुझाव दिया की विभिन्न विषयों के विचारों और अवधारणाओं को एकीकृत किया जाए । जैसे-  भारत की संस्कृति विरासत पर्यावरण की सुरक्षा, परिवार प्रणाली, कानूनी साक्षरता, मानव अधिकार शिक्षा, वैज्ञानिक सोच का पोषण इत्यादि।

NCF -2000 मैं पहली बार पर्यावरण अध्ययन को सामाजिक अध्ययन और विज्ञान के रूप में प्रथक प्रथक ना कर एकीकृत रूप में पढ़ने की सिफारिश की गई थी इसके अनुसार-

  • कक्षा 1 व 2 ने इसे पाठ्यक्रम के अलग से विषय के रूप में नहीं रख कर इसे भाषा और गणित विषयों के साथ एकीकृत कर पढ़ाने के लिए कहा गया गणित की सामग्री बच्चे के नजदीक पर्यावरण के चारों ओर बनाई जानी है।
  • कक्षा 3 व 4 में बच्चों को पर्यावरण एवं उसके प्राकृतिक और सामाजिक रूप में विभक्त ना करते हुए एक संपूर्ण विषय के रूप में पढ़ने के लिए कहा गया।

NCF -2005 (राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005)

  • NCF -2005 मैं भी प्राथमिक कक्षाओं में पर्यावरण अध्ययन को एक रत रूप में ही सशक्त रूप से  पढ़ने पर बल दिया गया।
  • कक्षा 1 व कक्षा 2 में पर्यावरण संबंधी कौशल एवं सरोकारों को भाषा एवं गणित के माध्यम से संबोधित करने की संस्तुति दी गई।
  • कक्षा 3 बा 4 तक अलग विषय के रूप में पढ़ाए जाने की संस्तुति दी गई।

पर्यावरण अध्ययन को एकीकृत करने की आवश्यकता-

ऐसा माना जाता है, कि बच्चा टुकड़े टुकड़े में खंडित बातों की बजाय संपूर्णता मैं बातों को आसानी से समझता है।  जैसे कि बच्चा पेड़ को एक संपूर्ण पेड़ के रूप में पहचानता है। वह पेड़ को घर का पेड़ या बाहर का पेड़ के रूप में पहचानता है।  वह मूर्त बातों को ही देखता हैऐसे में हम यदि उसे अमूर्त और अनुभव से परे की बात बताने लगे तो वह उन्हें अपने अनुभवों से जोड़ नहीं पाएगा और सूचनाओं को रटने लगेगा  अपनी पर्यावरण के प्रति सार्थक समझ विकसित नहीं कर पाएगा।

NCERT  द्वारा कक्षा 3- 5: तक पर्यावरण अध्ययन के पाठ्यक्रम को एकीकृत, स्वरूप प्रदान करने के लिए 6 विषय क्षेत्रों  की पहचान की जिसमें बहु विशेयकता को एकीकृत किया गया इन्हें ”थीम” अर्थात प्रकरण कहां गया।

  1. परिवार एवं मित्र( संबंध, जानवर, पौधे, कार्य एवं खेल)
  2. भोजन
  3. आश्रय\ आवाज
  4. पानी
  5. यात्रा
  6. चीजें जो हम बनाते और करते हैं

 

1 “परिवार एवं मित्र” प्रकरण की भाग के रूप में

  • “पौधे” एवं” जानवर” : “पौधे” एवं” जानवर परिवार एवं मित्र  प्रकरण में सोच समझकर शामिल किए गए हैं । यह स्पष्ट करने के लिए कि मानव पौधे और जीव जंतुओं के साथ प्रगाढ़ संबंध रखते हैं तथा हमें उनके बारे में पूर्ण एवं संगठित वैज्ञानिक एवं सामाजिक नजरिए से पढ़ने की आवश्यकता है।
  • “रिश्ते\ संबंध” :  इस  उपप्रकरण में, वे अपने रिश्तेदारों के बारे में चर्चा करते हैं जो उनके साथ रहते हैं और जो कहीं और चले गए हैं जिससे उनके रिश्ते और घरों में क्या बदलाव आए हैं।  उसका ज्ञान मिलता है वह सोचते हैं कि अपने रिश्तेदारों में कौन-कौन प्रशंसा के पात्र हैं एवं किन किन गुणों या कौशलों के कारण संबंध तथा परिवारों से बच्चों में अपनेपन तथा प्रेम की भावना का विकास होता है।
  • “ काम तथा खेल” :  इस उपप्रकरण से  उन्हें यह पता चलता है, कि परिवार या पड़ोस में कुछ लोग काम करते हैं या कुछ काम नहीं करते हैं।  इससे उन्हें लिंग भेज दो पर आधारित भूमिकाओं को भावात्मक रूप से समझने में सहायता प्राप्त होती है।
  •   वे जो खेल खेलते हैं उनका विश्लेषण करने का अवसर मिलता है किस प्रकार पारंपरिक खेल तथा खिलौने से वह अलग है यह समझ मिलती है।

 Environmental studies and environmental education (पर्यावरण अध्ययन एवं पर्यावरण शिक्षा)

पर्यावरण अध्ययन(EVS) (Environmental studies)

पर्यावरण अध्ययन परिवेश के सामाजिक और भौतिक घटकों की अंतर क्रियाओं का अध्ययन है।  अतः जब हम अपने परिवेश, अर्थात इर्द-गिर्द उपस्थित उपरोक्त सामाजिक और बौद्धिक घटकों को समझने का प्रयास करते हैं, तो वहीं पर्यावरण अध्ययन कहलाता है।

सामाजिक घटक- भाषा, मूल्य, संस्कृति

भौतिक घटक-  वनस्पति, पशु पक्षी, हवा, पानी

पर्यावरण शिक्षा(environmental education)

पर्यावरण शिक्षा में लोगों को बताया जाता है कि प्राकृतिक पर्यावरण के तरीके पर प्रदूषण मुक्त पर्यावरण को बनाए रखने के लिए परिस्थितिकी तंत्र को कैसे व्यवस्थित रखना चाहिए?

अर्थात पर्यावरण के विविध पक्षों इसके घटकों एवं मानव के साथ अंतः संबंध है । परिस्थितिक तंत्र, प्रदूषण विकास, नगरीकरण, जनसंख्या आदि का पर्यावरण पर प्रभाव आदि की समुचित जानकारी देना। .

उद्देश्य-

शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान प्रदान  कराने के साथ साथ जागरूकता पैदा करना, चिंतन का एक दृष्टिकोण पैदा करना और पर्यावरणीय चुनौतियों को नियंत्रित करने के आवश्यक कौशल को प्रदान करना है।

आज के बच्चे आंतरिक खेलों और इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों को खेलने में व्यस्त रहते हैं।  जिससे उन्हें अपनी प्राकृतिक दुनिया के बारे में जानने के अवसर नहीं मिलते छात्रों को अपने परिवेश से परिचित कराने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए,  और इसलिए पर्यावरण शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करना आवश्यक है।

पर्यावरण अध्ययन के उद्देश्य(NCF 2005) Objectives of environmental studies)

  • बच्चों का  उनके वास्तविक संसार( प्राकृतिक एवं सामाजिक- सांस्कृतिक) से परिचित करवाना, पर्यावरण का ज्ञान एवं समझ विकसित करना।
  • प्रकृति में पारस्परिक निर्भरता तथा संबंधों का ज्ञान कराना तथा समाज का विकास कराना।
  • पर्यावरण से संबंधित विषयों को समझने में उनकी सहायता कराना।
  • पर्यावरण के अनुकूल मनोवृति ओ तथा मूल्यों को प्रोत्साहित एवं  पोषितकरना।
  • अवलोकन, रचनात्मक कौशल तथा सकारात्मक क्रियाओं को बढ़ावा देना।
  • पिछले और वर्तमान पर्यावरण के मध्य तुलना विद्यार्थी कर सकें कि अतीत से अब में पर्यावरण में क्या परिवर्तन आया है।
  • पर्यावरण मुद्दों के प्रति विद्यार्थियों को जागरूक होना।
  • पर्यावरण के संरक्षण और प्रबंधन के लिए प्रभावी  कार्रवाई का महत्व बताना।
  • प्रश्न उठाने की क्षमता एवं उनका स्तर देने के लिए परिकल्पना(Hypothese) बनाने की क्षमता का विकास कराना।
  • परिकल्पना ओं की जांच के तरीके सोच पानी एवं उन तरीकों को काम में लेने के लिए आवश्यक क्षमताओं का विकास करना।
  • निष्कर्ष निकालने एवं चिंतन की क्षमता का विकास  करना।
  • बच्चों  को करके सीखने का अवसर मिले, खोज करने के लिए पर्याप्त स्थान मिले।
  • भौतिक और सामाजिक परिवेश के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना।

अधिगम\ सीखना एक व्यापक सतत एवं जीवन पर्यंत चलने वाली महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।  मनुष्य जन्म के उपरांत ही सीखना प्रारंभ कर देता है और जीवन भर कुछ न कुछ सीखता रहता है।  इसे ही अधिगम कहते हैं।

अधिगम के सिद्धांत (Learning principles)

अधिगम के भी कुछ नियम है अधिगम की प्रक्रिया इन्हीं नियमों के अनुसार चलती है कुछ लेखकों ने  इन नियमों को “ सिद्धांतों” ( principles)की संज्ञा दी है।

अधिगम क्रिया को बालक आभास या अनुभूति के फल स्वरुप संपन्न कर पाता है।


1  थार्नडाइक का सीखने का सिद्धांत(Thorndike’s theory of learning)

इस सिद्धांत को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है जो कि इस प्रकार है।

1  थार्नडाइक का संबंध वाद का सिद्धांत(Connectionist theory)

2  उद्दीपन- प्रतिक्रिया सिद्धांत(Stimulus-reaction(R-S) theory)

3   सीखने का संबंध सिद्धांत(Bond theory of learning)

4 प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत (Trial & Error learning )

इस सिद्धांत के अनुसार-  जब व्यक्ति कोई कार्य सीखता है।  तब उसके सामने एक विशेष स्थिति या उद्दीपक होता है, जो एक विशेष प्रकार की प्रतिक्रिया करने के लिए प्रेरित करता है।  इस प्रकार एक विशिष्ट उद्दीपक का एक वशिष्ठ प्रतिक्रिया से संबंध स्थापित हो जाता है। जिससे”उद्दीपक प्रतिक्रिया संबंध”(S-R Bond)द्वारा व्यक्त किया जा सकता है।

थार्नडाइक ने अपने सीखने के सिद्धांत का परीक्षण बिल्ली पर किया थार्नडाइक ने संबंध बाद के सिद्धांत में सीखने के क्षेत्र में प्रयास तथा त्रुटि को विशेष महत्व दिया है उन्होंने कहा है, कि जब हम किसी काम को करने में तृतीय भूल करते हैं,और बार-बार प्रयास करके त्रुटियों की संख्या कम या समाप्त की जाती है, तो यह स्थिति प्रयास एवं त्रुटि द्वारा सीखना कहलाती है।

इस सिद्धांत का शैक्षणिक महत्व

  • शिक्षक इस सिद्धांत से समझते हैं कि बालक विभिन्न कौशलों को सीखने की प्रक्रिया में गलतियां कर सकते हैं।
  • इसके आधार पर बार-बार के अभ्यास से बालक की गलतियों को कम किया जा सकता है।
  • इस सिद्धांत के अनुसार बालक को सीखने के लिए अभी प्रेरित करने पर जोर दिया जाता है।
  • यह सिद्धांत” करके सीखने” पर बल देता है।

1 थार्नडाइक का अधिगम के नियम(Tharndike’s Lows of  learning)

इन नियमों को 2 वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

1  मुख्य नियम(Primary Lows)
  • तत्परता का नियम( law of Readiness)
  • अभ्यास का नियम(law of Exercise )
  • प्रभाव का नियम(law of effect )


2 गौण नियम (Secondary laws)
  • बहु अनु क्रिया का नियम (law of multiple response)
  •  मानसिक स्थिति का नियम(law of mental set)
  • आंशिक क्रिया का नियम (law of partial  activity)
  • सादृश्य अनुक्रिया का नियम( law of similarity of Analogy)

थार्नडाइक ने सीखने के लिए पुनर्बलन को आवश्यक माना क्योंकि सीखी गई अनुप्रिया को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने के लिए पुनर्बलन आवश्यक होता है।

2 अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धांत(Classical conditioning theory)

इस सिद्धांत के प्रतिपादक रुचि  शरीर शास्त्री “I.P पावलव” थे इन्होंने कुत्ते पर अपना प्रयोग किया था।

  • इस सिद्धांत को संबंध प्रत्यावर्तन का सिद्धांत भी कहा जाता है, एवं इसे शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांत भी कहा जाता है।
  • इसके अनुसार- सीखना\ अधिगम एक अनुकूलित अनुक्रिया है।
  • यह माना जाता है, कि उद्दीपक के प्रति अनुक्रिया करना(S-R)मानव की प्रवृत्ति है जब मूल उद्दीपक के साथ एक नवीन उद्दीपक प्रस्तुत किया जाता है, तथा कुछ समय पश्चात जब मूल उद्दीपक को हटा दिया जाता है।  तब नवीन उद्दीपक के साथ अनुकूलित होजाती है जो मूल उद्दीपक से होती है। इस प्रकार अनुक्रिया उद्दीपक के साथ अनुकूलित हो जाती है।

इस सिद्धांत का शिक्षा में महत्व

  • बालक ओं के समक्ष उचित एवं आदर्श व्यवहार प्रस्तुत करके उन्हें अनुकूलित अनुक्रिया द्वारा उन्हें उचित अभिवृत्ति का विकास किया जा सकता है।
  • इस सिद्धांत के आधार पर उचित स्वभाव व आदत को आसानी से उत्पन्न किया जा सकता
  • अनुकूलन तथा अभ्यास द्वारा बालक को में संवेगात्मक स्थिरता विकसित की जा सकती है।  मानसिक उपचार में भी इस विधि का प्रयोग किया जाता है।
  • इस सिद्धांत द्वारा बाला को में सामाजिकरण की प्रक्रिया तथा अनुकूलन कराकर  बालको का सामाजिकरण किया जा सकता है।

3 स्किनर का सिद्धांत

इस सिद्धांत को निम्न नामों से भी जाना जाता है।

  • कार्यात्मक और प्रतिबद्धता का सिद्धांत
  • सक्रिय अनुबंधन का सिद्धांत
  • क्रिया प्रसूत का अनुबंध सिद्धांत

स्किनर ने अपने प्रयोग चूहे एवं कबूतर की क्रियाओं पर किए  हैं।

इस सिद्धांत के अनुसार-  हम वह व्यवहार करना सीख जाते हैं । जिसमें परिणाम सकारात्मक होते हैं, और हम वह व्यवहार करना छोड़ देते हैं, जो हमें नकारात्मक परिणाम देते हैं इस प्रकार के व्यवहार को क्रिया प्रसूत अनुबंधन का सिद्धांत कहते हैं ।


इस सिद्धांत का शिक्षा में महत्व

  • इस सिद्धांत में पुनर्बलन का अत्यधिक महत्व है पुनर्बलन के अनेक रूप हो सकते हैं, जैसे दंड, पुरस्कार, परिणाम का ज्ञान आदि।
  • इस सिद्धांत के आधार पर पाठ्य वस्तु को छोटे-छोटे भागों में बांटने पर बल दिया जाता है ,जैसे अधिगम शीघ्र तथा प्रभाव कारी हो जाता है।
  • छात्रों के व्यवहार को वांछित स्वरूप तथा दिशा प्रदान करने में यह सिद्धांत शिक्षकों की सहायता करता है।  यह सिद्धांत बताता है कि यदि अपने छात्रों को उनके प्रयासों के परिणाम का ज्ञान करा दिया जाए तो विद्यार्थी अपने कार्य में अधिक उन्नति कर सकते हैं।  

4 प्रबलन सिद्धांत (Reinforcement Theory)

प्रतिपादक – सी .एल .हल (अमेरिका)

Book –  principles of behaviour

यह सिद्धांत थार्नडाइक तथा पावलव के सिद्धांत पर आधारित था इस सिद्धांत के अनुसार- ” प्रत्येक मनुष्य अपनी आवश्यकता की पूर्ति करने का प्रयत्न करता है सीखने का आधार की आवश्यकता की पूर्ति की प्रक्रिया है मनुष्य या पशु उसी कार्य को सीखता है जिस कार्य से उसकी इसी आवश्यकता की पूर्ति होती है”

हल का कथन- “सीखना आवश्यकता की पूर्तिकी प्रक्रिया द्वारा होता है”

  • यह सिद्धांत बालक ओं के शिक्षण में प्रेरणा पर अत्याधिक बल देता है  बालक को को प्रेरित करके ही पढ़ाया जा सकता है।
  • स्किनर इस सिद्धांत को सीखने का सर्वश्रेष्ठ सिद्धांत मानते हैं।
  • वास्तव में सीखने का सिद्धांत” चालक न्यूनता का सिद्धांत” (Drive Reduction Theory)है।
  • हल्के अनुसार, जब किसी जीवधारी की कोई आवश्यकता पूरी नहीं होती तब उसमें असंतुलन उत्पन्न हो जाता है।

Ex. 1 बिल्ली  – क्रियाशील     – भोजन प्राप्त

       (भूखी)        भूख( चालक)

      2 बिल्ली की भूख की आवश्यकता संतुष्ट हो जाती है।  परिणाम स्वरूप भूख से चालक शक्ति बंद हो जाती है।

शैक्षणिक महत्व-

1 यह सिद्धांत इस बात पर बल देता है कि विद्यालय की विभिन्न क्रियाओं में बालकों की आवश्यकताओं पर भी ध्यान दिया जाए।

2  यह सिद्धांत शिक्षा में प्रेरणा को महत्व देता है।

3  यह सिद्धांत कहता है कि कक्षा में पढ़ाई जाने वाले तथ्यों के उद्देश्य को स्पष्ट करना परम आवश्यक है।

4  इस सिद्धांत की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें बालकों की क्रियाओं और आवश्यकताओं से संबंधित की स्थापना पर विशेष बल दिया जाता है।

5 यह सिद्धांत बताता है कि पाठ्यक्रम का निर्माण बालकों की विभिन्न आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही किया जाना चाहिए।

5  सूझ अंतर्दृष्टि का सिद्धांत (Insight Theory)

इस सिद्धांत के प्रतिपादक–  कोहलर

  • अंतर्दृष्टि या सूझ के सिद्धांत के प्रमुख समर्थक ”गेस्टाल्टवादी” है। 
  • उनके मतानुसार व्यक्ति या प्राणी “संबंध प्रतिक्रिया तथा प्रयत्न और भूल से ना सीख कर सूझ(Insight) द्वारा सीखते हैं।”
  • सर्वप्रथम प्राणी अपने आसपास की परिस्थिति के विभिन्न अंग में पारस्परिक संबंधों की स्थापना करता है ,और संपूर्ण परिस्थिति को समझने का प्रयास करता है तत्पश्चात उसके अनुसार अपनी प्रतिक्रिया करता है। 
  • अन्य शब्दों में सूझ  द्वारा सीखने का तात्पर्य परिस्थिति को पूर्णतया समझकर सीखना है। 

कोहलर का प्रयोग – सूझ   द्वारा सीखने के सिद्धांत का प्रतिपादन करने के लिए कूलर ने 6 वनमानुष ओं की एक कमरे में बंद कर दिया कमरे की छत पर खेलों का एक गुच्छा लटका दिया और कमरे के कोने में एक बॉक्स रख दिया

वनमानुष के समान मनुष्य भी सूझ  के आधार पर सीखते हैं प्रत्येक कार्य  या क्रिया के सीखने में हमें सूझ का प्रयोग करना पड़ता है।  विभिन्न समस्याओं का हल भी सूझ  के माध्यम से होता है। 

सूझ  को प्रभावित करने वाले कारक –  बुद्धि, समस्या की रचना, अनुभव। 

शिक्षा में महत्व-

  • अध्यापक द्वारा कुछ समस्या छात्रों की समक्ष समग्र रूप से प्रस्तुत की जानी चाहिए किसी भी समस्या में उस समय तक सूझ  उत्पन्न नहीं होगी जब तक कि वह समग्र रूप मैं छात्र के समक्ष प्रस्तुत ना हो जाए। 
  • बालकों का ध्यान समस्या में केंद्रित करने के लिए आवश्यक है कि अध्यापक द्वारा सीखने में बालकों की जिज्ञासा को बताएं रखा जाए बिना जिज्ञासा केसूझ  का विकास संभव नहीं है। 
  • सूझ   द्वारा सीखने में अनुभव का अधिक योगदान रहता है अध्यापक और छात्र के पूर्व अनुभव के संगठन द्वारा ध्यान देना चाहिए। 
  • सूझ  के विकास के लिए आवश्यक है ,कि विद्यालय का कार्य छात्र को सूझ  के अनुकूल होना चाहिए
  • अंतर्दृष्टि का विकास तभी संभव है । जबकि उद्देश्य छात्रों को स्पष्ट होंगे तथा छात्रों के लिए उपयोगी होंगे उद्देश्यों का दृष्टिकोण करके अध्यापक बालकों को प्रेरित कर सकता है। 

अवधारणा प्रस्तुतीकरण के उपागम (Approaches of Presenting Concepts)

     Topic-5

NCF-2005 शिक्षा तथा अधिगम से रचनात्मक बाल केंद्रित, अधिगम केंद्रित एवं  अनुभावनात्मक दर्शनों पर जो देता है

1   क्रिया आधारित अधिगम(Activity based learning)

  • प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन इसलिए रखा गया है ताकि सभी बच्चों में पर्यावरण की गुणवत्ता एवं प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन हेतु सुग्राही एवं संवेदनशील  लगाव का विकास किया जा सके इसीलिए अध्यापकों को चाहिए कि बच्चों को उनके आसपास के परिवेश से घुलने मिलने के अवसर प्रदान करें।
  • क्रिया आधारित उपागम बच्चों को उनके अपने अनुभवों पर आधारित ज्ञान के निर्माण तथा पुनः निर्माण में व्यस्त करती है।


एक  शैक्षिक क्रिया निम्न प्रकार की होनी चाहिए। 

  • पर्यावरण अध्ययन के अधिगम उद्देश्य से स्पष्ट ता से जुड़ी हुई।
  • वास्तविक जीवन आधारित तथा बच्चों के लिए सुखद या आनंददायक हो।
  • बच्चों के लिए सुरक्षित हो।
  • पूरा होने में अधिक समय ना लगे।  लंबी क्रिया को मध्यत्तर देकर छोटे-छोटे हिस्सों में बांटा जा सके।
  • बच्चों के आयु के अनुसार उचित हो।
  • ऐसी हो जो बच्चों में रुचि एवं जिज्ञासा जगाए एवं सार्थक सूचना का प्रदान करें।
  • बच्चों के अनुभवों पर केंद्रित हो व सभी बच्चों को सम्मिलित करें।





क्रिया आधारित शिक्षण अधिगम का आयोजन कराना

क्रिया आधारित अधिगम हेतु चार चरण होते हैं जो इस प्रकार है।

(1)  नियोजन(Planning)

  • अधिगम उद्देश्य की पहचान कर ली जाए जो नियोजित क्रिया द्वारा प्राप्त किए जाएंगे।
  • विभिन्न संसाधनों की सूची बनाएं तथा प्रबंध  करें- सामग्री, संसाधन( अधिगम), स्वयंसेवक आदि।
  • प्रिया के बाद संक्षिप्त चर्चा की योजना भी आपके द्वारा बनाई जानी चाहिए।  आपको इस बात का भी अंदाजा होना चाहिए कि आप किस प्रकार के मूल्यांकन करेंगे । विद्यार्थियों का एवं   क्रिया के प्रभाव का।

(2)  क्रिया को संचालित करना(Operate the activity)

  • क्रिया को शुरू करना –  बच्चों को क्रिया से अवगत कराएं तथा उनके अर्थ एवं उद्देश्य के बारे में बताएं।  उनकी भूमिका के बारे में, कितना समय लगेगा, मूल्यांकन कैसे होगा।
  • क्रिया करवाएं – क्रिया  शुरू होने के बाद देखे कि बच्चे क्रिया  करने में सार्थक रूप से योग्य है या नहीं सब बच्चों को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
  • क्रिया का समापन कराएं-  बच्ची अपने अनुभवों के बारे में विचार-विमर्श करें तथा पर्यावरण अध्ययन से जुड़ी हुई  सीख उनमें से निकले।

 (3) कार्य का मूल्यांकन(Evaluation)

  • एक अध्यापक होने के नाते आपको कार्य का मूल्यांकन भी करना है ताकि यह पता चल सके कि जिन शैक्षिक उद्देश्यों को आप क्रिया के द्वारा प्राप्त कराना चाहते थे उनकी प्राप्ति हो पाई या नहीं।  
  • जब बच्चे क्रिया कर रहे होते हैं उस दौरान उनका ध्यान से अवलोकन किया जाना चाहिए।
  • जब पुनर्निवेशन  की आवश्यकता है। उसी समय दिया जा सकता है, और प्रगति की जांच   निर्माणात्मक मूल्यांकन द्वारा की जानी चाहिए।
  • अंत में क्रिया  संकलित मूल्यांकन करें ताकि हर बच्चेकी क्रिया में भागीदारी का मूल्यांकन हो पाए।

(4)  प्रक्रिया  पर पुनर्विचार करना(Reconsider the activity)   

  • कुछ समय इस बात पर विचार करें कि क्या अच्छा रहा और क्या नहीं और क्यों?
  • पुनः विचार भविष्य में आपको किसी भी क्रिया को बेहतर रूपरेखा देने, योजना बनाने एवं क्रिया  मैं आवश्यक सुधार करने में सहायता करेंगे।

क्रिया आधारित अधिगम उपागमो के उपयोग   

    • अमूर्त अवधारणाओं को प्रयोगात्मक अनुभव या निदर्शन द्वारा स्पष्ट करने में सहायता करते हैं।
    • बहु ज्ञानेंद्रियों को प्रयोग करने का अवसर प्रदान करते हैं।  जैसे कि देखना, सुनना, छूना, सुघना एवं स्वाद इत्यादि। इस प्रकार जो सीखा जाता है अधिक समय तक बना रहता है।
    • विषय वस्तु सिखाने के अलावा कई जीवन कौशल सिखाए जाते हैं।
    • बच्चों की दृष्टिकोण से सीखने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है।  ना कि बड़ों के दृष्टिकोण से।
    • समस्याएं एवं समाधान ओं को ढूंढने की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जाता है।  जिससे आत्म सम्मान का विकास होता है।
    • “हाथ से काम करके सीखना” तथा “करके सीखना” पर बल देती है।
    • विज्ञान, गणित इत्यादि के नियमों को बच्चों की परीक्षित परिस्थितियों से जोड़कर अच्छी समझ विकसित करने में सहायता करते हैं।
    • इसमें सृजनात्मकता तथा लचीलापन को बढ़ावा मिलता है।
    • बच्चे को शारीरिक एवं मानसिक दोनों पक्षों को प्रयोग करने का अवसर प्रदान होता है।




 पर्यावरण अध्ययन की एक क्रिया का उदाहरण
  • अपने  कचरे को अलग करें   

उद्देश्य-  अलग-अलग प्रकार के कपड़े की पहचान, अलग करने का महत्व बता सके।

सहयोगी अधिगम उपागम(Associate learning approach)   

परिभाषाएं (Definition)  



(1) बरोड़ी तथा डेविस के अनुसार – “सहयोगी अधिगम शिक्षण उपागम है, जो पढ़ने के अनेकों तरीकों को जन्म देती है, जो सभी बच्चों को एक ही उद्देश्य की और समूहों में काम करने,   कार्य को बांटने की और लगाते हैं। इस प्रकार से कि वह ऐसा व्यवहार करें जिससे परस्पर निर्भरता दिखती हो तथा प्रत्येक बच्चे की भागीदारी तथा प्रयास भी नजर आते हो।”

(2) जी. जैकबज के अनुसार – ” सहयोगी अधिगम समूह में काम करने के मूल्य को बढ़ावा देने वाली अवधारणा एवं तकनीक है। “ सहयोगी अधिगम में समूहों में काम करना होता है।  पर्यावरण अध्ययन में यह महत्वपूर्ण अंतर्निहित मूल्य है, कि इकट्ठे सीखना चाहिए।

सहयोगी अधिगम शिक्षकों को निम्नलिखित के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
  • “मूल्य” सीखने सिखाने की  पारंपरिक आदर्श सोच से निकलने के लिए।
  • बच्चों को सहयोग की भावना समझने में सहायता करने के लिए।
  • यह समझने के लिए कि व्यक्तियों में अंतर होते हैं तथा   भिन्नताए लोकतंत्र हेतु आवश्यक है।
  • बच्चों के सामाजिक संदर्भ का महत्व समझने के लिए।


सहयोगी अधिगम के नियम

सहयोगी अधिगम के तीन अति महत्वपूर्ण सिद्धांत निम्न है।

(1)  सकारात्मक रूप से एक दूसरे पर निर्भरता

इसमें शामिल है समूह का एक सांझा उद्देश्य हो,सभी के संसाधन सांझा हो, एक समूह की एक पहचान बनाई जाए( जैसे समूहों नाम)।  इसके द्वारा सकारात्मक भावनाओं एवं मनोवृत्ति यों पर जोर दिया जाता है।

(2) व्यक्तिगत जिम्मेदारी

 यह बहुत महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक बच्चों को कुछ ना कुछ काम दिया जाए तथा कुछ कार्य समूह के सभी सदस्य इकट्ठे होकर करें।

(3) सामान स्तर पर सहक्रियाएं 


समूह के सदस्यों के बीच समान स्तर पर सहक्रियाएं  समूह के सहज कार्य हेतु आवश्यक होती हैं। शिक्षक का कार्य होगा कि शिक्षार्थी एक दूसरे के साथ सम्मान पूर्वक व्यवहार करें। समाधि स्थल की सहक्रियाएं  के लिए आवश्यक है कि शिक्षक प्रत्येक शिक्षार्थी को जानते हो।

सहयोगी अधिगम के उपयोग

  • सहयोगी अधिगम बच्चों में दूसरों के दृष्टिकोण एवं विचारों को समझने की योग्यता को बढ़ाता है।
  • बच्चों की एक दूसरे के साथ घुलने मिलने के कौशलों को विकसित करने में सहायता करता है।
  • समस्याओं को सुलझाने के आपात स्थिति को संभालने के तथा फैसले करने को कौशल का विकास करता है।
  • सहयोगी अधिगम बच्चों को अलग प्रकार से लेकिन परिस्थिति के अनुसार उचित प्रक्रिया करने में योग्य बनाता है।
  • सहयोगी अधिगम परिस्थितियां बच्चों को इस प्रकार के अवसर देती है कि वे  बहुआयामी विचारों की छानबीन कर सके तथा प्रतीक बच्चे से संबंधित संभावनाओं एवं परिणामों का अंदाजा लगा सके तथा उन पर तर्क वितर्क कर सके।
  • पर्यावरण अध्ययन शिक्षण अधिगम विश्लेषणात्मक सोच तथा समस्याओं के समाधान से संबंधित है।  सहयोगी अधिगम काफी हद तक शिक्षार्थियों में इन कौशलों का विकास करने में सहायता कर सकता है।

सहयोगी अधिगम की चुनौतियां

    •  सहयोगी अधिगम सत्र की आवश्यकता और फिर उद्देश्य वर्णन करना बहुत महत्वपूर्ण है पाठ्यक्रम के साथ इस क्रिया की कड़ियां जोड़ने सत्र से पहले तथा बाद शिक्षक द्वारा चर्चा आदि की योजना बनाने में काफी समय तथा क्रिया योजना चाहिए खासतौर पर प्रत्येक बच्चे के मूल्यांकन से संबंधित।
    • एक शिक्षक होने के नाते आप को छानबीन करने, प्रश्न करने, रास्ते ढूंढ कर  निकाल तो रहने, बच्चों को अर्थपूर्ण ढंग से समूह कार्य द्वारा सीखते रहने में सहायता करना है।
    • एक प्रभावी सहयोगी अधिगम समूहों  को बनाने के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षक अपने शिक्षार्थियों से भलीभांति परिचित हो।
    • बच्चों को अलग-अलग समूह में रखना एक कठिन प्रक्रिया है जो ध्यान पूर्वक किया जाना चाहिए।
    • सहयोगी समूह  बनाते समय विभिन्न अधिगम कौशल संस्कृति पृष्ठभूमि, व्यक्तित्व तथा लिंग का भी ध्यान रखना पड़ेगा।












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