Bihar D.El.Ed. Piyaje के संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएं।,F-7: गणित का इकाई -2: प्राथमिक स्तर पर गणित का अधिगम आधार उद्देश्य एवं पाठ्यक्रम,

 ➡️ संज्ञानात्मक विकास की अवस्था 

  •  संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएँ - बच्चों के सोचने का तरीका वयस्क के सोचने के तरीके से ही केवल अलग नहीं होता है परन्तु आपने अनुभव किया होगा कि अलग - अलग आयु वर्ग के बच्चे भी सोचने के विभिन्न रूपों का प्रदर्शन करते हैं ।  ( Piaget ) ने बच्चों में ज्ञानात्मक विकास के स्तर सिद्धांत को विकसित करते समय बारीकी से इसका अवलोकन किया है । प्याजे ने अपने तीन बच्चों का उनके जन्म से ही बहुत बारीक से अवलोकन किया और उनकी क्रियाओं की ( विशिष्ट रूप से संक्रियाएँ ) कुछ समानताजी के आधार पर समूह बनाया , और फिर स्तर या विशेषकाल की क्रियाओं के प्रतिमानों का निर्माण किया तथा यह प्रदर्शित किया कि बच्चे सोचने या संज्ञान के विकास के कुछ विस्तृत स्तरों या कालों का अनुसरण करते हैं ।

 तदनुसार प्याजे ने संज्ञानात्मक विकास के स्तरों या कालों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया है

  • संवेदी क्रियात्मक काल ( जन्म से 2 वर्ष तक )
  • पूर्व - संक्रिया काल ( 2 से 7 वर्ष तक )
  • मूर्त संक्रिया काल ( 7 से 11 वर्ष ) और
  • औपचारिक संक्रिया काल ( 11-12 वर्ष से 14-15 वर्ष तक )

1. संवेदी क्रियात्मक काल - पहला स्तर , जन्म से डेढ़ वर्ष या 2 वर्ष तक , पूर्व - मौखिक , पूर्व प्रतीकात्मक काल है । इस काल की विशेषतायें है बच्चों की प्रत्यक्ष क्रियायें , जैसे सूचना , देखना , पकड़ना आदि जो पहले असमायोजित होते हैं परन्तु बाद में धीरे - धीरे समायोजित बन जाती हैं । इसमें क्षणिक गति और प्रतिक्रियात्मकता से प्राप्त आदतों और इनसे बौद्धिक क्रिया - कलापों की ओर उत्तरोत्तर वृद्धि होती है । उदाहरण के लिए सबसे पहली क्रिया जो बच्चा प्रदर्शित करता है वह है अंगूठा चूसना जो कि प्रतिक्रियात्मक क्रिया नहीं है परन्तु यह एक आदत है जिसे बच्चा खोजता है और संतुष्टि प्राप्त करता है । यह आदत बच्चे को प्रतिक्रियात्मक क्रिया से निकलता है या बाहरी प्रतिबंधों के द्वारा बनता है । एक वर्ष की आयु पर बच्चे के व्यवहार में एक नया तत्व आ जाता है । वह अपनी क्रियाओं में एक उद्देश्य या इच्छा स्थापित कर सकता है । वह गलीचे पर कुछ दूरी पर रखी एक बॉल को पकड़ने के क्रम में वह उस तक लेटकर पहुँचने की कोशिश करता है । वह बॉल को प्राप्त करने की विधि का विकास कर सकता है । वह गलीचे पर कुछ दूरी पर रखी एक बॉल को पकड़ने के क्रम में , वह उस तक लेटकर पहुंचने की कोशिश करता है । वह बॉल को प्राप्त करने की विधि का विकास कर सकता है । वह गलीचे को खींचकर , बॉल को खींचने की कोशिश कर सकता है , इसलिए वह गलीचे को अपनी ओर खींचता है ऐसी क्रिया किसी कार्य के पीछे की भावना को प्रदर्शित करती है और पियाजे इसे एक बुद्धिमानी वाला कार्य समझता है । बच्चा कुछ उद्देश्य या साध्य के साथ सोचना शुरू करता है और उस साध्य को प्राप्त करने के लिए उचित साधन की तलाश करता है । आगे इस काल के अंत की ओर बच्चा घर पर बोले जाने वाली भाषा के एकाक्षर का इस्तेमाल करके बोलना शुरू कर देता है । यह प्रतीकात्मक क्रिया के शुरू होने का सूचक होता है , एक बुद्धिमता का घटक होता है ।

2. पूर्व - संक्रिया काल - यह काल 11 या 2 वर्ष से शुरू होकर 7 वर्ष की आयु तक चलता है । इसे विद्यालय के पूर्व की अवस्था भी माना जाता है । यह काल प्रतीकों के निरूपण की अवस्था के रूप में भी जाना जाता है । प्रतीकात्मक प्रकार्यों में भाषा,प्रतीकात्मक खेल , कल्पना का अधिकार और बिलावा अनुकरण शामिल क्रियात्मक काल के दौरान वस्तुओं और कल्पनाओं को निषित करने के लिए किसी काम या प्रतीक का उपयोग नहीं होता है लेकिन पूर्व - सक्रिया काल में बच्या किती नुककिया जैसे कोई खेल खेलना , में शब्दों का उपयोग करता है । प्रायः इस खेल रूप धारण करते है , जो वास्तविक जीवन प्रतीकात्मक रूप से बताते हैं । विलोबा अनुकरण में बच्या स्वयं को ऐसी क्रिया - कलानी में संलिप्त रखता है जिसमें ऐसे प्रतिरूपों के अनुकरण करने की आवश्यकता पड़ती । उनके सामने उपलव्य नहीं होता है । ऐसे क्रिया - कलाप खास बनाना , खिलौने को सपा पहनाना आदि हैं और इसी प्रकार के अन्य क्रिया - कलाप शामिल है । ऐसे किया - कताओं के द्वारा निरूपण करना संभव है । निरूपण करने का अर्थ है - विचारों का क्रियाओं में रूपांतरण करना । इस प्रकार से बाहय क्रिया - कलापों को आत्मसात करना जो कि विचार के कई आयामों को बढ़ाने में सहायता करता है । पूर्व सक्रिया विचार काल प्रतिवर्ती संक्रियाओं और अवधारणा के संरक्षण से रहित होता है । चार से पांच वर्ष की आयु के बच्चे एक छोटे तथा चोदे बोतल से दय पदार्थ को एक लम्बे तथा पतले बोतल में उड़ेल सकता है और यह सोचता है कि लम्बे पतले बर्तन में ज्यादा द्रव पदार्थ है । इस प्रक्रिया के विपरीत क्रिया दिखाने के बाद भी यह संतुष्ट नहीं होता है कि द्रव पदार्थ की मात्रा समान है ।

3. मूर्त संक्रिया काल - तीसरी अवस्था , लगभग सात से ग्यारह या भारत वर्ष की आयु मूर्त संक्रिया काल की होती है । यह आपके लिए विशेष महत्त्व रखता है क्योंकि प्राथमिक विद्यालय के अधिकांश बच्चे अधिकतर समय इस स्तर के विकास की अवस्था में होते है । यह स्तर गणितीय तार्किक सोच की प्रारम्भिक अवस्था है । अतः गणित अधिगम के लिये ये महत्त्वपूर्ण हैं जिसके बारे में हम इस इकाई के उत्तरोत्तर भागों में विस्तृत चर्चा करेंगे । इस काल में बच्चे क्रिया का प्रदर्शन शुरू करते हैं जो कि उनके मूर्त वस्तुओं का भौतिक रूप से हस्त - कौशल के द्वारा तार्किक सोच को योग्यता की ओर इंगित करता है । बच्चा ज्ञानेंद्रिय संकेतों पर इस काल में निर्भर नहीं होता है । इस काल के दौरान बच्चा दो मुख्य सक्रियाओं का प्रदर्शन करता है । ये क्रियाएँ - समूहीकरण और संरक्षण है जो कि गणितीय अवधारणाओं के विकास से जुड़ी हुई है । अगले भाग में चर्चा से यह स्पष्ट हो जायेगा ।

4. औपचारिक संक्रिया काल - चौथी अवस्था , औपचारिक सक्रिया काल को है , जो कि ॥ या 12 वर्ष की आयु तक पटित नहीं होती है । बच्चा उच्च प्राथमिक स्तर पर होता है त्या प्रतीकों या विचारों का उपयोग करके तर्क करता है और अपनी सोच के लिए भौतिक वस्तुओं की जरूरत महसूस नहीं करता है । बच्चा नयो मानसिक संरचना प्राप्त कर पुका होता है । ये नई संरचनाएँ - प्रतीकात्मक तर्क का प्रस्तावनात्मक संयुक्तोकरण , जैसे अभिप्रेतार्थ ( यदि ... तब ) , वियोजन ( दोनों में से एक या दोनों , अपवर्जन ( कोई एक पा ) इसी तरह अन्य संरचनाएं शामिल है । बच्चा अब अनुपातों से संबंधित परिकलन करना जानता है जो कि उसको छोटा या बड़ा मानचित्र बनाना , समय और दूरी से संबंधित समस्याएं हल करना , प्रायिकता और ज्यामितीय समस्याओं को हल करने में सहयोग करता है ।


संक्षेप में, सोच या संज्ञान का विकास , अनुभव और संवेदी क्रियात्मक अनुभवों से आगे बढ़ता है । फिर मूर्त वस्तुओं का हस्त कौशल करके सोचने की प्रक्रिया से आगे बढ़कर काल्पनिक रूप से सोचने की ओर आगे बढ़ता है जिसमें अमूर्त वस्तुओं की अनुपस्थिति में अमूर्त पदों के द्वारा कई प्रकार के विचारों को संयुक्त करता है । संज्ञानात्मक विकास की समझ और विशेषताएँ आपको अधिगम विधियों के विकास में सहायता करेगा तथा उचित विकास स्तरों में गणित अधिगम के लिए साधन उपलब्ध कराने में सहायता करता है । 



Bihar D.El.Ed S-7:- गणित का शिक्षणशास्त्र – 2 Full Notes / Paper Question Paper

 Pedagogy Of Mathematics -2 (Class 6-8) गणित का शिक्षणशास्त्र – 2

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Q 1. ‘मूर्त से अमूर्त तक’ की अवधारणा  को गणित के स्कूली पाठ्यपुस्तकों से दो उदाहरण देते हुए समझाएँ ।


अथवा,


Q 1. ‘विशिष्ट से व्यापक तक’ की अवधारणा को गणित के स्कूली पाठ्यपुस्तकों से दो उदाहरण देते हुए समझाएँ ।


Q 2. अगर कोई विद्यार्थी मौखिक रूप में किसी सवाल को आसानी से हल कर पा रहा / रही है लेकिन लिखित रूप में उसे कठिनाई आ रही है, तो बताइए कि इसके क्या कारण हो सकते हैं ?


अथवा,


गणित के किसी एक सवाल का उदाहरण दें, जिसके शिक्षक द्वारा सोचा गया अर्थ और बच्चों द्वारा समझे गए अर्थ में अन्तर होने की सम्भावना होती है ? यह अन्तर क्या है, यह भी बताएँ ।


Q 3. ऋणात्मक संख्या क्या है ? इसे बच्चों को समझाने का कोई तरीका बताएँ।


अथवा,


धनात्मक और ऋणात्मक संख्याओं को जोड़ने के लिए किसी मॉडल को सुझाएँ तथा उसकी प्रक्रिया भी बताएँ । सिमाना कि


Q 4. अपने रोजमर्रा के जीवन में दिखनेवाले व्यापक निमयों के कोई दो उदाहरण दें । इनमें से कौन-कौन से नियम गणितीय तर्क की दृष्टि से स्वीकार्य योग्य होंगे ?


अथवा,


कक्षा 6 की परीक्षा में यह सवाल दिया गया – “मानवी की वर्तमान उम्र (x) उसकी माँ की वर्तमान उम्र (y) की आधी है । इसे समीकरण के रूप में प्रस्तुत करें ।” कक्षा के कुछ बच्चों ने इसे y = x/2 लिखा । आपके अनुसार बच्चों ने ऐसा क्यों किया ? आप उसे सही समीकरण बनाने के लिए कैसे मदद करेंगे ?


Q 5. टैनग्राम का चित्र बनाएँ तथा इसकी उपयोगिता समझाएँ ।


अथवा,


अपने दैनिक जीवन में उपयोग में ली जानेवाली किन्हीं दो वस्तुओं का उदाहरण देकर उनके ज्यामितीय – विशेषताओं की व्याख्या करें ।


Q 6. प्रतिशत क्या है ? इसके शिक्षण के दौरान, आप अपनी कक्षा के बच्चों को दैनिक जीवन से क्या-क्या उदाहरण देंगे?


अथवा,


एक कमरे की लम्बाई 30 मी० और इसकी चौड़ाई 20 मी० है । अत: कमरे की चौड़ाई का लम्बाई से अनुपात समझाएँ ।


Q 7. माध्य क्या है ? उदाहरण देते हुए इसकी उपयोगिता को समझाएँ ।


अथवा,


कुल मिलाकर 20 फल हैं । 10 आम हैं, 5 केला हैं और 5 लीची हैं । इस आँकड़े को वृत्त आलेख या पाई चार्ट बनाकर दर्शाएँ ।


Q 8. गणित विषय के मूल्यांकन में किन-किन बातों का विशेष ध्यान रखने की जरूरत है ?


अथवा,


पाँचवीं कक्षा के स्तर के बच्चों के लिए गणितीय समझ के कोई चार सवाल बनाएँ ।


दीर्घ-उत्तर वाले प्रश्न (न्यूनतम 350 शब्दों में उत्तर दें)।

प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम अंक 10 हैं । 


Q 9. गणित की कक्षा – 3 से 7 के पाठ्यक्रम से कोई एक अवधारणा को चुनिए और उस पर एक लर्निंग प्लान बनाएँ ।


अथवा,


बच्चों के स्थान सम्बन्धी समझ किस प्रकार की होती है ? पियाजे द्वारा किए गए पहाड़ वाले प्रयोग की विशेष व्याख्या करते हुए विश्लेषण करें ।


Q 10. आँकड़ों को प्रस्तुत करने के क्या-क्या तरीके हो सकते हैं ? उनकी विशेषताओं के बारे में उदाहरण देते हुए विस्तृत व्याख्या करें ।



अथवा,


गणित सीखने के बैंकिंग मॉडल और प्रोग्रामिंग मॉडल की सोदाहरण व्याख्या करें । अपने उत्तर में इन मॉडलों की विशेषताओं एवं सीमाओं का भी उल्लेख करें ।


Q 11. गणित सीखने सिखाने का क्रम अ-भा-चि-प्र ( ELPS ) क्या है? इसकी व्याख्या करे।


 अथवा,

 गणितीय कारण से आप क्या समझते हैं? बच्चों में गणितीय करण कैसे करेंगे।

F-7: गणित शिक्षण शास्त्र unit-1 bihar d.el.ed

Q. गणित को परिभाषित करें ।

परिभाषाएँ ( Definitions ) - गणित की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं

1. मार्शल , एच . स्टोन ( Marshal , H. Stone ) के अनुसार- " गणित एक ऐसी अमूर्त व्यवस्था का अध्ययन है जो कि अमूर्त तत्वों से मिलकर बनी है । इन तत्वों को मूर्त रूप में परिभाषित किया गया है । "

2. बर्टेण्ड रसैल ( Bertrand Russel ) के अनुसार- " गणित एक ऐसा विषय है जसमें यह भी नहीं जानते कि हम किसके बारे में बात कर रहे हैं और न ही यह जान पाते हैं कि हम जो कह रहे हैं , वह सत्य है । "

3. गैलीलियो ( Galileo ) के अनुसार- " गणित वह भाषा है जिसमें परमेश्वर ने सम्पूर्ण जगत या ब्रह्माण्ड को लिख दिया है । "


4. लौक ( Locke ) के अनुसार- " गणित वह मार्ग है जिसके द्वारा बच्चों के मन या मस्तिष्क में तर्क करने की आदत स्थापित होती है । "

 5. गॉस ( Gauss ) के अनुसार- " गणित , विज्ञान की रानी है । "

6. बेल ( Bell ) महोदय के अनुसार- " गणित को विज्ञान का नौकर माना जाता है । "

7. गिब्स ( J. Willard Gibbs ) के अनुसार- " गणित एक भाषा है । "

8. बेकन ( Bacon ) के अनुसार- " गणित सभी विज्ञानों का मुख्य द्वार एवं कुंजी है । "

9. काण्ट ( Kant ) महोदय के अनुसार- " एक प्राकृतिक विज्ञान केवल उसी स्थिति जब तक इसका स्वरूप गणितीय है । "

10. अर्थलॉट ( Berthelot ) के अनुार- " " गणित सभी वैज्ञानिक शोधों का एक अति महत्वपूर्ण उपकरण है । " 11. कॉमटे ( Comte ) के अनुसार- " वह सभी वैज्ञानिक शिक्षा जो गणित को साथ लेकर नहीं चलतो , अनिवार्यतः अपने मूल रूप में दोषपूर्ण है । "

12. होगबेन ( Hogben ) के अनुसार- " गणित सभ्यता और संस्कृति का दर्पण है । "

13. व्हाइटहेड ( White Head ) के अनुसार- " व्यापक महत्व की दृष्टि से गणित सभी प्रकार की औपचारिक निगमनात्मक तार्किक योग्यता का विकास है । "

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर गणित के सम्बन्ध में सारांश रूप में हम कह सकते हैं कि-

( 1 ) गणित स्थान तथा संख्याओं का विज्ञान है ।

( 2 ) गणित गणनाओं का विज्ञान है । 

( 3 ) गणित माप - तौल ( मापन ) , मात्रा ( परिमाण ) तथा दिशा का विज्ञान है ।

( 4 ) गणित विज्ञान को क्रमबद्ध , संगठित तथा यथार्थ शाखा है ।

( 5 ) इसमें मात्रात्मक तथ्यों और सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है ।

( 6 ) यह तार्किक विचारों का विज्ञान है ।

( 7 ) गणित के अध्ययन से मस्तिष्क में तर्क करने की आदत स्थापित होती है ।

( 8 ) यह आगमनात्मक तथा प्रायोगिक विज्ञान है ।


Q. हमारे जीवन से गणित का संबंध बहुत घनिष्ठ है । कैसे ?

उत्तर -

  • गणित का सम्बन्ध हमारे जीवन से बहुत घनिष्ठ है । आजकल की सभ्यता का आधार गणित ही है । गणित को व्यापार का प्राण और विज्ञान का जन्मदाता समझा जाता है ।
  • इन्जीनियरिंग का पूरा कार्य गणित पर ही आधारित रहता है ।
  • मातृ - भाषा के अतिरिक्त ऐसा कोई भी विषय नहीं है जो दैनिक जीवन से इतना अधिक सम्बन्धित हो ।
  • आधुनिक सभ्यता एप्लाइड गणित के आधार पर ही खड़ी हुई है ।
  • गणित एक उपकरण है , जिसका प्रयोग विज्ञान करता है । मनुष्य जिस वातावरण में रहता है , उसमें रुचि लेने की क्षमता प्रदान करने के लिए तथा उन प्रयत्नों का मूल्यांकन करने के लिए जो दूसरे लोग प्रयोग करते हैं , गणित का कुछ ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक हो जाता है ।
  • एक विशेषज्ञ को अपने क्षेत्र में गणित का सरलतापूर्वक प्रयोग करने के लिए उसका पर्याप्त ज्ञान अवश्य प्राप्त करना चाहिए ।
  • ऐसे व्यवसायों की संख्या जिनमें गणित के ज्ञान को आवश्यकता होती है , बहुत अधिक है तथा निरनतार बढ़ती ही जा रही है ।
  •  गणित का प्रकृति से भी गहरा सम्बन्ध है । प्राकृतिक क्रियाओं में विविधता में परिवर्तन मुख्य है ।
  • चलन कलन में परिवर्तन का ही अध्ययन किया जाता है , अत : इसे प्रकृति का गगिन कहा जा सकता है । प्राकृतिक विज्ञान जैसे - ज्योतिर्विज्ञान तथा भौतिक विज्ञान अधिकांशतः गणित के समान ही हैं ।
  • ऐसा माना जाता है कि बल और क्रियाओं के बीच में गणितीय सम्बन्ध रहता है । इन सम्बन्धों की खोज तथा नियमोकरण से ही किसी विषय का निश्चित ज्ञान हो पाता है । गणित के ज्ञान के बिना प्रकृति का अध्ययन नहीं हो सकता ।
  • माध्यमिक विद्यालयों के विद्यार्थी चाहे पूर्ण रूप से इस तथ्य की अनुभूति न कर सकें , परन्तु या प्रकृति में गणितीय रचना की झलक अवश्य देख सकते हैं ।
  • गणित में विद्यार्थी को इस बात की आवश्यकता होती है कि वह स्थिति को ठीक रूप से देखें ।
  • प्रायः अनेक अनावश्यक विचरणों में से तथ्यों की खोज करनी पड़ती है । एक विद्यार्थी को स्पष्ट और शीघ्रता से यह जानना होता है कि क्या दिया है और क्या ज्ञात करना है ।
  • गणित में प्रयुका होने वाली प्रक्रिया अनुमानात्मक है । अन्तत : हमारे सभी विचार इसी प्रकार के हैं । यदि हम किसी व्यवसाय अथवा व्यापार को चुनते हैं तो हमें एक निश्चित मार्ग अपनाना पड़ता है । यदि हम अपने धन को एक विशेष ढंग से खर्च करते हैं , किसी राजनैतिक दल को बोट देते हैं , किसी समिति का कार्य सम्भालते हैं , अपने पड़ोसी का जान - बूझकर अपमान करते हैं . .....तब ........ जब कभी भी हमें कार्य करने के विभिन्न तरीकों में से एक का निश्चय करना पड़ता है तो अनुमानात्मक वृत्ति ही हमारे सामने रह जाती है ।
  •  इस महत्वपूर्ण आदत का सामान्य प्रशिक्षण एवं अभ्यास कराने के लिए गणित शिक्षा एक शक्तिशाली शस्त्र बन सकता है ।
  • इसमें तथ्यात्मक सूचनाएँ कम से कम होती है तथा ध्यान को आवश्यक तथा पर्याप्त शब्दों की खोज में तथा निष्कर्ष निकालने पर ही केन्द्रित कर दिया जाता है ।
  • ऐसे शब्दों के द्वारा , जिनकी संक्षिप्त ढंग से परिभाषा की गयी हो एवं चिहों के प्रयोग से , किसी भी तर्क का सार बड़ी स्पष्टता से प्रकट हो जाता है ।

Q . गणित शिक्षण के प्राप्य उद्देश्य पर प्रकाश डालें ।

उत्तर -

 प्रत्येक उद्देश्य के अन्तर्गत बहुत से प्राप्य उद्देश्य ( Objectives ) आते हैं । एक शिक्षक को किसी विशेष उद्देश्य हेतु कुछ प्राप्य उद्देश्यों को ध्यान में रखना होता है । कक्षा में किसी उपविषयों को पढ़ाते समय अध्यापक , को एक प्राप्य उद्देश्य सम्मुख है । प्रत्येक प्राप्य उद्देश्य को परीक्षा के लिए शिक्षक को पाठ्य - वस्तु तथा बालक के व्यवहार में परिवर्तन को ध्यान में रखना होता है । 

       यह स्पष्ट है कि किसी प्राप्य उद्देश्य की परीक्षा करने के लिए पाठ्य - वस्तु , प्रश्न , व्यवहार परिवर्तन तथा आवश्यक वस्तुएँ आवश्यक होती हैं । कुछ उदाहरणों से उपर्युक्त कथन को पुष्टि होती है ।

          प्राप्य उद्देश्य कक्षा में अध्यापक द्वारा प्राप्त किये जाने वाले तात्कालिक तथ्य होते हैं ।  इनके द्वारा छात्र के व्यवहार में परिवर्तन आता है , उनका पूर्वानुमान लगाकर उन्हें अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तनों के रूप में व्यक्त करने की चेष्टा की जाती है ।  शिक्षाविदों ने कहा है कि , " शिक्षण कुछ कहना न होकर अनवरत अभ्यास की एक प्रक्रिया है।

 "अतः सतत् अभ्यास द्वारा छोटे - छोटे लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं । उन लक्ष्यों को प्राप्य उद्देश्य कहा जाता है तथा इन उद्देश्यों के आधार पर शिक्षण के उद्देश्य निर्धारित होते हैं तथा पुनः विभिन्न शिक्षण विधियों का प्रयोग कर व्यवहारगत परिवर्तन की आशा की जाती है ।

                      उद्देश्य प्राप्ति की छोटी - छोटी क्रियाएँ प्राप्य उद्देश्य हैं । अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन प्राप्य उद्देश्य ( Objectives ) तथा व्यावहारिक उपयोगिता कहलाती हैं । प्राप्य उद्देश्य लक्ष्य प्राप्ति के साधन हैं । इन प्राप्य उद्देश्यों की परीक्षा के लिए पाठ्य - वस्तु , प्रश्न , व्यवहार परिवर्तन तथा आवश्यक वस्तुएँ आवश्यक हैं ।

          गणित शिक्षण में निम्नलिखित प्राप्य उद्देश्य होते हैं ( 1 ) ज्ञानात्मक उद्देश्य ( Knowledge Type Objectives ) ,

( 2 ) अवबोधनात्मक उद्देश्य ( Understanding Type Objectives ) ,

( 3 ) अनुप्रयोगात्मक उद्देश्य ( Application Type Objectives ) ,

( 4 ) कौशलात्मक उद्देश्य ( Skill Type Objectives ) ,

( 5 ) अभिकृत्यात्मक उद्देश्य ( Attitude Type Objectives ) .

( 6 ) अभिरुच्यात्मक उद्देश्य ( Interest Type Objectives ) ,

 ( 1 ) ज्ञानात्मक उद्देश्व - इसके अन्तर्गत छात्रों को प्रत्ययों , तथ्यों , पदों , चिह्नों तथा इन पर आधारित नियमों का चयन करना होता है ताकि छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन हो सके । ये निम्नलिखित है

( i ) गणित के नये - नये शब्द , चिन्ह  , संकेत आदि की वैज्ञानिक शब्दावली के अनुसार जानकारी ।

(ii) विभिन्न शब्दों की परिभाषाओं , नियमों , सिद्धान्तों आदि से परिचित करना तथा उसके पारस्परिक सम्बन्ध को समझना ।

( iii ) अपने समीप के वातावरण से सामंजस्य एवं आवश्यक जानकारी होना । 

( iv ) पदों , प्रत्ययों तथा नियमों एवं सिद्धान्तों का पूर्ण स्मरण कर सकना तथा उन्हें पहचान सकना ।

( v ) गणित के इतिहास के बारे में सम्यक् जानकारी तथा समाज पर उसके प्रभाव से अवगत हो सकना ।

( vi ) आरेख रेखाचित्र में पैमाने का उचित निर्धारण ताकि समंकों को आकृति में सुगमता से उभारा जा सके ।

( 2 ) अवबोधनात्मक उद्देश्य - इसके अन्तर्गत छात्र गणित से सम्बन्धित पदों , तथ्यों , प्रत्ययों एवं संकेतों का अवबोध करता है । इससे बालक के व्यवहार में निम्नलिखित परिवर्तन होंगे।

(i) आवश्यकतानुसार सूत्र एवं सिद्धान्त का चयन एवं प्रयोग कर सकेगा ।

( ii ) विभिन्न भौतिक राशियों एवं इकाइयों को व्यक्त कर सकेगा तथा विभिन्न सूत्रों , संकेतों एवं नियमों का वर्गीकरण कर सकेगा ।

( iii ) तथ्यों , पदों एवं प्रत्ययों के उदाहरण दे सकेगा ।

( iv ) छात्र विभिन्न तथ्यों , प्रत्ययों आदि की परस्पर तुलना कर सकेगा । 

 ( v ) गणितीय विचारों एवं सिद्धान्तों को अपनी भाषा में अभिव्यक्त कर सकेगा ।

( vi ) दिये गये समकों एवं अवधारणों की उपयुक्तता एवं अनुपयुक्तता को पहचान

( 3 ) अनुप्रयोगात्मक उदेश्य :- गणितीय समस्याओं को हल करने , नवीन निर्णय लेने हेतु विकास करता है । इससे के व्यवहार में निम्नलिखित परिवर्तन होता है

( O समस्या के वर्गीकरण में सूत्र एवं विषय में सूत्र एवं नियम के अन्तर को भली - भांति a पहचान सकेगा ।

( 1 ) दिये गये आंकड़ों की सहायता से सामान्यीकरण कर नये नियम बना सकेगा ।

( iii ) ऑकड़ों एवं संकेतों का पूर्वानुमान कर सकेगा । 

 ( iv ) पूर्वानुमानों को कर सकेगा ।

( v ) छात्र प्राप्त ज्ञान को जीवन की नई - नई परिस्थितियों में प्रयोग करना सीख सकेंगे ।

( 4 ) कौशलात्मक उद्देश्य - गणितीय आरेख , रेखाचित्र , ग्राफ खींचना , यंत्रों का उचित प्रयोग , गणना कार्य , जिसमें शुद्धता आये एवं शुटियों का संशोधन कर सके । इससे बालक में निम्नलिखित व्यवहारगत परिवर्तन दृष्टिगोचर होंगे :-

( i ) छात्र गणितीय यंत्रों का नाम जानकर उनका उचित प्रयोग कर सकेगा ।

( ii ) गणितीय उपकरणों ( मॉडल ) धन , वर्ग , पिरामिड , शंकु एवं बेलन बना सकेगा ।

( iii ) आँकड़ों के आधार पर सही पैमाना मानकर गणितीय आरेख खाँच सकेगा ।

( iv ) कलात्मक रुचि का विकास कर सकेगा , सहायक सामग्री का निर्माण एवं प्रयोग में दक्षता प्राप्त कर सकेगा ।

Q. गणित शिक्षण की पाठ्यक्रम में क्या आवश्यकता है विवेचना करें ।

उत्तर - गणित को विद्यालय के पाठ्यक्रम में क्या स्थान दिया जाये ? इसकी पाठ्यक्रम में क्या आवश्यकता है ? इसे पूर्ण विषय बनाने को लेकर भी मतभेद है । फ्रोल , माण्टेसरी , पेस्थालॉजी आदि शिक्षाशास्त्रियों ने गणित की शिक्षा को मनुष्य के बौद्धिक एवं सांस्कृतिक विकास का सर्वश्रेष्ठ साधन मानकर गणित को शिक्षा के पाठ्यक्रम में उच्च स्थान दिया । जैन गणितज्ञ श्री महावीराचार्य ने भी अपनी पुस्तक " गणित सार संग्रह " में इसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बताते हुए लिखा ... अधिक क्या कहें सचराचर के त्रैलोक्य में जो कुछ भी वस्तु है , उसका अस्तित्व गणित के बिना सम्भव नहीं हो सकता । 1. गणित का जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध - गणित का जीवन के विभिन्न पक्षों से घनिष्ठ सम्बन्ध है । गणित के माध्यम से चित्त की एकाग्रता एवं मानसिक अनुशासन को बनाये रखा जा सकता है । इसके कारण तर्क - वितर्क , नवीनतम खोज , कर्म के प्रति लगन एवं निष्ठा को आदत का विकास होता है । गणित से स्पष्ट भाव एवं विचारों को व्यक्त करने की आदत का विकास होता है । गणित की एक एक समस्या मस्तिष्क के लिए एक खुली चुनौती होती है जो कि हमारे समान मानसिक शक्तियों को सुनियोजित ढंग से जीवन की समस्याओं को हल करने के लिए तैयार करती है । 2. गणित का अन्य विषयों से सम्बन्ध - गणित का अन्य विषयों के साथ गहरा सम्बन्ध है । आधुनिक संस्कृति की नींव विज्ञान है परन्तु इस नीव में लगाई जाने वाली ईट गणित के


नियम हैं । कोई ऐसा विषय नहीं है जिसमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से गणित की आवश्यकता नहीं पड़ती हो । गणित का ज्योतिष , चिकित्सा , भूगोल , अर्थशास्त्र , रसायन आदि विषयों में ही नहीं वरन् इतिहास के अध्ययन में भी इसको आवश्यकता पड़ती है । 3. सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति में महत्त्व - गणित का सम्बन्ध रोजी - रोटी कमाने से भी है । सामाजिक एवं आर्थिक विकास की जड़ें शिक्षा के साथ हैं । गणित शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण भाग है । सभी व्यवसायों और उद्योगों की कुंजी गणित के हाथ में है । व्यापार के सभी आँकड़े तथा मूल्यांकन गणित के द्वारा ही किया जाता है । गणित के माध्यम से ही हम व्यापार की वास्तविक स्थिति का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । सामाजिक विकास में गणित को अहम् भूमिका है । सामाजिक विकास का मापदण्ड आधुनिक उपकरण है । आधुनिक उपकरणों के विकास में गणित आवश्यक है । इस तरह हम देखते हैं कि सामाजिक एवं आर्थिक गति में गणित प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों रूप में सहयोगी है । 4. मानसिक विकास में सहायक - गणित एक ऐसा विषय है जो मानसिक शक्तियों के प्रशिक्षण के अवसर उपलब्ध कराता है तथा एक सोई हुई व अनिर्देशित आत्मा में चेतना व जागृति उत्पन्न करने का कौशल गणित ही प्रदान कर सकता है । 5. गणित तार्किक दृष्टिकोण पैदा करता है - गणित के माध्यम से छात्रों में समस्याओं को हल करने के लिए तार्किक दृष्टि मिलता है । इसके द्वारा छात्रों में बौद्धिक एवं मानसिक विकास होता है । इसी कारण तर्क के माध्यम से किसी समस्या के हल तक पहुंचा जा सकता है । गणित के सूत्र इसी तरह तर्क के आधार पर समस्या हल करने की ओर प्रेरित करते हैं । 6. परिणाम की निश्चितता - गणित में किसी भी सम्बन्ध का हल निश्चित होता है । इसमें कक्षा या आयु के आधार पर किसी प्रकार के अन्तर की सम्भावना नहीं होती है । गणित के फल एक ही रूप में होते हैं . इनमें शंका की गुंजाइश नहीं होती है । परिणाम की इस निश्चितता के कारण परीक्षा में मूल्यांकन भी पूर्ण होता है । 7. समस्या समाधान की कुशलता हेतु आवश्यक - विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत समस्याओं के उचित समाधान हेतु उन्हें सरल रूप में बदलना , अनुमान लगाना , परिणाम निकालना , स्थिति विश्लेषण , अमूर्तता आदि युक्तियों का अधिगम आवश्यक है । इन युक्तियाँ का ज्ञान विद्यार्थियों को गणित की सहायता से ही हो सकता है । अत : समस्या समाधान किस प्रकार होगा इसकी कुशलता हेतु यह आवश्यक है । 8. गणित के अन्वेषणात्मक नियमों से परिचय हेतु आवश्यक - बालकों को गणित के अन्वेषण एवं खोजने के नियमों का ज्ञान होना भी आवश्यक है , केवल गणित को एक विज्ञान बताना ही पर्याप्त नहीं है । 9. प्रत्यक्षीकरण और निरूपण के कौशल हेतु आवश्यक - गणित शिक्षण से बालकों में वस्तु के आकार , प्रकार , संरचना , परिणाम एवं रूपों द्वारा स्थितियों का सर्वोत्तम प्रत्यक्षीकरण होता है । साथ ही गणितीय नियमों , सिद्धान्तों व अवधारणाओं का अनेक तरीकों से निरूपण भी गणित द्वारा ही सौखा जाता है । उक्त दोनों कौशल जीवन - पर्यन्त चलने वाले ट्रेनिंग हैं , अत : यह भी आवश्यक होते हैं ।

 इस प्रकार गणित शिक्षण अत्यंत ही आवश्यक है, प्राथमिक स्तर से ही बालक गणितीय चिंतन की ओर बढ़ता है बालक अपने अनुभव व त्रुटियों के साथ काम करना प्रणाम करता है वह धीरे-धीरे विद्यालय शिक्षा का यह ज्ञान एक विषय आत्मक उपागम की ओर बढ़ता है।

 आता गणित का अध्ययन प्रत्येक व्यक्ति को इस योग्य बनाता है कि उसकी चिंतन प्रक्रिया क्रमबद्ध, तर्कसंगत एवं व्यवहारिक हो तथा इस दैनिक जीवन में गणितीय संक्रिया ओं का प्रयोग कर सकें।






12th Board Important Questions answer हिंदी व्याकरण अलंकार, छंद

 Important Questions answer हिंदी व्याकरण

For All Board Exam

 Q 1. शुक्लोत्तर युग के निबंधो की विशेषताओं को लिखें।

  उत्तर :-

शुक्लोत्तर युग के निबंधों की विशेषताएं .

 1. गंभीर  विचारात्मक  भावनात्मक एवं आत्मपरक निबंध।

 2. विषय प्रधान निबंध ।

 3. प्रौढ़ एवं गभीर शैली ।

 4. मनोविकासात्मक तथा विचारात्मक निबंध।

 5. विषय वस्तु में पर्याप्त विविधता ' ।

 6. इस युग के निबंधों में संस्कृति एवं परंपरागत ज्ञान विज्ञान के साथ-साथ युगीन समस्याओं को भी सम्मिलित किया गया है।

 Q 2. संकलन त्रय क्या है? नाटकों में इसका क्या महत्व है?

 उत्तर :-

" संकलन त्रय " का तात्पर्य है - तीन तत्वों का संकलन होना ।

 ये तीन संकलन है-

1. समय की एकता

2. स्थान की एकता

3. कार्य की एकता

1. समय की एकताः - विभाजन की त्रासदी , स्वतंत्रता के बाद का समम, रामायण काल का समय  मतभारत काल का समय आदि ।

2. स्थान की एकता :- विभाजन के समय लाहोर दिल्ली, स्वतंत्रता के बाद दिल्ली का स्थान ।

3. कार्य की एकताः- उस समय की भाषा, उस समय का वस्त्र, उस समय के आभूषण।


नाटक में संकलनत्रय : नाटक में प्रस्तावित स्थल , काल और कार्य की अन्विति ही संकलनत्रय कहलाती है । यह परम आवश्यक तत्व है ।

संकलन त्रय का महत्व : संकलनत्रय के तीन तत्व होते हैं , 1.प्रस्तावित स्थल ,

2.काल ( समय ) ,

3. कार्य अन्विति ।

1.प्रस्तावित स्थल : नाटकीय घटना यथार्थ जीवन में एक ही स्थान पर घटित होनी चाहिए ।

2.काल ( समय ) : जिसका तात्पर्य है कि नातकीय घटना यथार्थ जीवन में 24 घंटे से अधिक घटित होने वाली नहीं होनी चाहिए ।

 3.कार्य अन्वितिः कथावस्तु में केवल एक ही मुख्य कथा हो , उसमें सहकारी , उपकथाएं ना हो ।


Q 3. रिपोर्ताज से क्या आशय है ? रिपोर्ताज की तीन विशेषताएँ लिखिए ।

 उत्तर :-

रिपोर्ताज लेखक किसी घटना का सूक्ष्म एवं मनोवैज्ञानिक वर्णन करता है । इसकी शैली चित्रात्मक एवं विवरणात्मक होती है ।

विशेषताएँ:-

( 1 ) रिपोर्ताज हिन्दी की ही नहीं , पाश्चात्य साहित्य की भी नवीनतम विधा है ।

( 2 ) इसका जन्म साहित्य और पत्रकारिता के संयोग से हुआ है ।

( 3 ) रिपोर्ताज घटना का आँखों देखा हाल होता है ।

( 4 ) इसमें कुछ घटनाओं के सूक्ष्म निरीक्षण के आधार पर मनोवैज्ञानिक विवेचन तथा विश्लेषण होता है ।

 Q 4. मत्तगयन्द छंद की परिभाषा और उदाहरण दीजिए।

परिभाषा / अर्थ

सवैया का एक भेद या प्रकार

इसके प्रत्येक चरण में 7 भगण ( 211 ) और दो गुरु के क्रम से 23 वर्ण होते हैं । 

मत्तगयंद के प्रत्येक चरण में सात भगण तथा दो गुरु होते है।

उदाहरण

सीस जटा , उर बाहु , बिसाल , विलोचन लाल , तिरीछी - सी भौहें ।

तून सरासन बान धरे , तुलसी बन - मारग में सुठि सोहै । ।

 सादर बारहिं बार सुभाय चितै तुम त्यों हमरो मन मोहैं । पूछति ग्राम बधू सिय सों “ कहाँ साँवरे से , सखि रावरे को है ? ​

सन्दर्भ - महाकवि तुलसीदास हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं । कवितावली तुलसीदास का प्रसिद्ध तथा श्रेष्ठ खण्डकाव्य है । हमारी पाठ्य - पुस्तक की वन - पथ पूर ' शीर्षक कविता कवितावली काव्य में संकलित है जिससे प्रस्तुत पद उद्धृत किया गया है । इसमें रचना वन में जाते समय श्रीराम के सौन्दर्य का वर्णन है ।

 व्याख्या - श्रीराम सीता और लक्ष्मण के साथ वन में जा रहे थे । मार्ग में एक गाँव के पास से गुजरते हैं । ग्रामीण स्त्रियाँ इन्हें देखकर मुग्ध हो जाती हैं । एक स्त्री सीताजी से पूछती है हे सखी ! ये श्याम रंग के कुमार कैसे सुन्दर हैं ! इनके सिर पर जटाएँ हैं । इनका वक्षस्थल तथा भुजा विशाल है । लाल - लाल इनकी आँखें और तिरछी भाँहि हैं । ये तरकस , धनुष तथा बाण धारण किये नहीं हुए हैं तथा वन के मार्ग में अति सुन्दर शोभायमान हैं । ये बड़े अंदर के सायं बार - बार स्वाभाविक ढंग से देखते हैं और हमारे मन का मोहित कर लेते हैं । अन्त में ग्रामीण स्त्री परिहास करती हुई पूछती हैं . हे सखी ! हमें बताओ ये श्याम रंग के कुमार तुम्हारे कौन हैं ?

Q 5. कवित्त छंद के लक्षण और उदाहरण लिखिए।

 उत्तर :-

साधारण अर्थ में कविता को 'कवित्त' कहते हैं (निज कवित्त केहि लाग न नीका —तुलसीदास)। किन्तु विशेष अर्थ के रूप में कवित्त एक छन्द है।

 इसमें प्रत्येक चरण में 7, 6, 6, 7. के साथ 31 अक्षर होते हैं। अंत में केवल गुरु होना चाहिए, शेष वर्णों के लिए लघु गुरु का कोई नियम नहीं है। जहां तक ​​संभव हो, एक ही अक्षर के शब्दों का उपयोग करते समय पाठ मधुर होता है। यदि विषम अक्षर शब्द होते हैं तो दो एक साथ होते हैं। इसे 'मनहरण' और 'घनाक्षरी' भी कहा जाता है।


उदाहरण

कूलन में, केलि में, कछारन में, कुंजन में, कयारिन में कलिन कलीन किलकंत है ।

कहै पझाकर परागन में, पौनहू में, पातन में, पिक में, पलासन पगंत है ।

द्वारे में, दिसान में दुनी में, देस देसन में, देखी दीप दीपन में, दीपत दिगंत है ।

बीथिन में, ब्रज में, नबेलिन में, बेलिन में, बनन में, बागन में, बगरयो बसंत है ।

— पद्माकर( ऋतु वर्णन )

Q 6. विशेषोक्ति अलंकार को उदाहरण सहित समझाइए।

विशेषोक्ति अलंकार वह अलंकार है जिसमे प्रबल कारण होने पर भी कार्य न हो ।

 जैसे :-

 दो - दो मेघ बरसते है , पर मैं प्यासी की प्यासी हूँ । अर्थात काव्य में जहाँ कारण के होते हुए भी कार्य का न होना पाया जाय , वहाँ विशेषोक्ति अलंकार होता है । 

विशेषोक्ति अलंकार के उदाहरण

(1) दो-दो मेघ बरसते मैं प्यासी की प्यासी।

    नीर भरे नित प्रति रहै, तऊ न प्यास बुझाई।।


स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में यह कहा गया है कि दो दो बादल बरस रहे हैं फिर भी मैं प्यासी हूं। अर्थात यहां पर कारण तो है कि वर्षा हो रही है फिर भी वह प्यासी है अर्थात कार्य नहीं हुआ इसलिए यहां पर विशेषोक्ति अलंकार है।



 

(2) फूलइ फलइ न बें, जदपि सुधा बरसहिं जलद ।

      मूरख हृदय न चतें, जौ मुरू मिलई विरंचि सम।।


स्पष्टीकरण – बादल की सुधदृष्टि के बाद भी बेंत का न फूलना न फलना और विदंचि (ब्रह्मा) जैसे गुरू होने के बाद भी मूर्ख के हृदय में चेतना उत्पन्न न होना ‘विशेषोक्ति अलंकार’ है।


(3) लागन उर उपदेश, जदपि कहयौ सिव बार बहु।


स्पष्टीकरण – शिव के बार-बार कहने पर भी, मूर्ख को उपदेश समझ में नहीं आ रहा है। अर्थात यहाँ कारण तो है की स्वयं भगवान समझा रहे पर फिर भी कार्य में सफलता नही मिली अतः यहाँ पर विशेषोक्ति अलंकार है।




स्थिर लागत | Fixed Cost Definition

 स्थिर लागत

स्थिर लागत परिभाषा- स्थिर लागतों से आशय उन लागतों से है जो उत्पादन स्तर के अनुसार घटती या बढती नहीं है और स्थिर रहती है।

Fixed Cost Definition - Fixed costs are those costs that do not decrease or increase according to the level of production and remain constant.

विश्लेषण - परिभाषा का विश्लेषण करने पर यह पता चलता है कि फैक्ट्री में उत्पादन चाहे जीरो यूनिट हो या हजार यूनिट ये लागतें फिक्स ही रहेंगी।

Analysis - By analyzing the definition, it is found that whether the production in the factory is zero units or thousands of units, these costs will remain fixed.

उदाहारण : फैक्ट्री का किराया , बिजली व पानी का बिल मान लेते है कि-

 एक फैक्ट्री में कार का उत्पादन होता है और फैक्ट्री को Rs . 25,00,000 प्रति माह किराये पर लिया गया है तो फिक्स लागतें इस प्रकार होगी।

For example: Let's consider the factory rent, electricity and water bills.


  The car is produced in a factory and the factory gets Rs. 25,00,000 per month is leased then the fix costs will be as follows.














आर्थिक और अनार्थिक क्रियाओं में अंतर | Arthik aur anarthik kiriya Mein antar

 






E

P

A

M

S

I

W

A

N

By- Prof. Rakesh Giri 



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Vyatirek Alankar-व्यतिरेक अलंकार || काव्यशास्त्र

 

Vyatirek Alankar-व्यतिरेक अलंकार || काव्यशास्त्र





मुहावरे और लोकोक्ति में क्या-क्या अन्तर होता हैं, परिभाषा और उदाहरण | Difference between Muhavare and Lokokti with examples in hindi

 मुहावरे और लोकोक्ति में क्या-क्या अन्तर होता हैं, परिभाषा और उदाहरण | Difference between Muhavare and Lokokti with examples in hindi







मानवीय विविधता की अवधारणा एवं प्रकृति [ NATURE AND CONCEPT OF HUMAN DIVERSITY ]


मानवीय विविधता की अवधारणा एवं प्रकृति [ NATURE AND CONCEPT OF HUMAN DIVERSITY ]

भूमिका ( INTRODUCTION ) समाज में कई प्रकार के लोग , कई संस्कृति के तथा आचार - विचार के लोग रहते हैं । यह एक - दूसरे से शारीरिक गुणों और मानसिक योग्यताओं , क्षमताओं में भिन्न होते हैं । इनमें जातीयता , रंग , लिंग , शारीरिक क्षमता , सामाजिक - आर्थिक स्थिति , उम्र , राजनीतिक मान्यताओं के आधार पर भी अन्तर पाया जाता है । इसके साथ - साथ प्राकृतिक वातावरण में अन्तर आने से संस्कृति में अन्तर आना भी स्वाभाविक माना जाता है । इस आधार पर भी समाज में विभिन्नता आ जाती है । विभिन्नता एक ऐसा शब्द है जो दो लोगों , दो संस्कृतियों , दो समाजों , दो समुदायों में अन्तर बताया है । कभी - कभी दो व्यक्तियों में अन्तर उनकी संस्कृतियों , समाजों तथा समुदायों के कारण भी आ जाता है जिससे उनके दृष्टिकोण , विचारधारा , जीवन जीने का ढंग भी बदल जाता है , इसी आधार पर समाज में मानवीय विविधता बढ़ जाती है ।

मानवीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक विविधता विविधता से आशय ( Meaning of Diversity ) विविधता की अवधारणा में स्वीकृति एवं सम्मान शामिल हैं । इसका अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय है और हमारे अलग - अलग मतभेदों को पहचानने में जाति , जातीयता , लिंग , यौन अभिविन्यास , सामाजिक आर्थिक स्थिति , उम्र , शारीरिक क्षमता , धार्मिक मान्यताओं , राजनीतिक मान्यताओं या अन्य विचारधारा के आयाम साथ हो सकते हैं । यह एक सुरक्षित , सकारात्मक और सन्तुलित पर्यावरण में इन मतभेदों का अन्वेषण हैं । एक दूसरे को समझने और प्रत्येक व्यक्ति के भीतर निहित विविधता के समृद्ध आयामों को गले लगाने और जश्न मनाने के लिए सरल सहिष्णुता से आगे बढ़ने के बारे में भी हैं । fafaetat Cat Fan ( Nature of Diversity ) ' ' विविधता ' का अर्थ केवल अन्तर को स्वीकारना या सहन करने से अधिक होता है ।

विविधता जागरूक व्यवहारों का एक समुच्चय है जिसमें निम्नलिखित बातें शामिल हैं - ( i ) मानवता , संस्कृतियों और प्राकृतिक पर्यावरण के अन्योन्याश्रितता को समझना और उनकी प्रशंसा करना । ( ii ) गुणों और अनुभवों के लिए पारस्परिक सम्मान का अभ्यास करना जो हमसे अलग है । ( iii ) यह समझना कि विविधता में न केवल होने के तरीके शामिल हैं बल्कि जानने के तरीके भी शामिल हैं । विविधता उस निजी सांस्कृतिक और संस्थागत भेदभाव को स्वीकार करते हुए मुँह के लिए विशेषाधिकार बनाये रखता है जबकि दूसरे के लिए नुकसान उठाना और उसे बनाये रखना है । ( iv ) मतभेदों के बीच गठबन्धनों का निर्माण करना ताकि हम सभी प्रकार के भेदभावों को समाप्त करने के लिए मिलकर काम कर सकें । ( v ) विविधता में वे सभी गुण और शर्तों से सम्बन्धित चीजें शामिल हैं जो हमारे स्वयं के और उन समूहों से अलग हैं फिर भी अन्य व्यक्तियों और समूहों में मौजूद हैं । ( vi ) उम्र , जातीयता , कक्षा , लिंग , शारीरिक क्षमता / गुण , जाति , यौन अभिविन्यास , साथ - ही - साथ धार्मिक स्थिति , लिंग अभिव्यक्ति , शैक्षिक पृष्ठभूमि , भौगोलिक स्थिति , आय , वैवाहिक स्थिति , अभिभावक की स्थिति और काम के लिए अनुभव सीमित नहीं है । हम यह भी मानते हैं कि अन्तर की श्रेणियाँ हमेशा तय नहीं होती हैं । हम आत्म - पहचान के व्यक्तिगत अधिकार का सम्मान करते हैं और हम यह भी मानते हैं कि कोई भी संस्कृति आन्तरिक रूप से दूसरे से बेहत्तर नहीं है । ( vii ) मानव प्रकृति , विशेषताओं , जिसमें विचार , भावना और अभिनय के तरीके शीमल हैं और जो मनुष्य में स्वाभाविक रूप से होते हैं , वे भी विविधता में शामिल होते हैं । ( viii ) प्रश्न यह है कि क्या वास्तव में निश्चित विशेषताएँ होती हैं , प्राकृतिक विशेषताएँ क्या है , और उन्हें दर्शन तथा विज्ञान में सबसे पुराना और महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है । मानव प्रकृति की अवधारणा परम्परागत रूप से न केवल असामान्य है बल्कि उन विशेषताओं के साथ भी होती है जो विशिष्ट संस्कृतियों से उत्पन्न होती है । प्रकृति बनाम पोषण बहस प्राकृतिक विज्ञानों में मानव स्वभाव के बारे में एक प्रसिद्ध आधुनिक चर्चा है । ( ix ) ये प्रश्न अर्थव्यवस्था , नैतिकता , राजनीति और धर्मशास्त्र में विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं । यह आंशिक रूप से भी उपयोगी हैं क्योंकि मानव स्वभाव को आचरण या जीवन के तरीकों को स्रोत के रूप में माना जाता है , साथ - ही - साथ एक अच्छा जीवन जीने पर बाधाओं या बाधाओं को पेश किया जा सकता है । ऐसे प्रश्नों के जटिल प्रभावों को कला और साहित्य में भी पेश किया जाता है । प्रश्न यह है कि वास्तव में इन्सान क्या है ? ( x ) अरस्तू का दूरसंचार दृष्टिकोण शास्त्रीय और मध्ययुगीन काल से प्रभावी रहा है , इसके अनुसार , मानव स्वभाव वास्तव में इन्सान बनने का कारण बनता है । मानव स्वभाव और दिव्यता के बीच एक विशेष सम्बन्ध दिखाया जाता है । यह दृष्टिकोण अन्तिम और औपचारिक कारणों के सन्दर्भ में मानव स्वभाव को समझता है । दूसरे शब्दों में , स्वभाव के उद्देश्य और लक्ष्य होते हैं । इन लक्ष्यों में से एक लक्ष्य मानवता है जो स्वाभाविक रूप से जीवित है । मानव प्रकृति की इस तरह की समझ प्रकृति को एक ' विचार ' या मानव के रूप में देखती है । ( xi ) हालांकि इस अस्थायी और आध्यात्मिक मानव स्वभाव का अस्तित्व बहुत ऐतिहासिक बहस का विषय है , जो आधुनिक समय में जारी है । एक निश्चित प्रकृति के इस विचार के खिलाफ मनुष्य की सापेक्ष कुरूपता , हाल की शताब्दियों में विशेष रूप से दृढ़ता से सामने आयी है —

 सर्वप्रथम प्रारम्भिक आधुनिकतावादी , जैसे - थॉमस होब्स और जीन जैक्स रोज्यू थे । रूसो के ' एमिल ' या शिक्षा पर इसका प्रभाव पड़ा है । रूसो ने लिखा है- " हम नहीं जानते कि हमारा स्वभाव हमें क्या करने की अनुमति देता है । 19 वीं सदी की शुरुआत के बाद से हेगेल , मार्क्स , कीकैगार्ड , नीत्शे , सारते , स्ट्रक्चरिस्टिस्ट और पोस्ट मोडर्निस्ट जैसे विचारकों ने कभी - कभी एक निश्चित या सहज मानव स्वभाव के खिलाफ तर्क दिये हैं । ( xii ) चार्ल्स डार्विन के विकास के सिद्धान्त ने इस तथ्य की पुष्टि करते हुए चर्चा की कि मानव जाति के पूर्वज आज मानव जाति की तरह नहीं हैं । अभी भी हाल के वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य , जैसे — व्यवहारवाद , नियति वाद और आधुनिक मनोचिकित्सा और मनोविज्ञान के भीतर रासायनिक मॉडल दावा है कि मानव स्वभाव तटस्थ है । ( आधुनिक विज्ञान के रूप में इस तरह के विषयों को थोड़े या बिना किसी सहारे के साथ समझाया जाता है ) । वे मानव प्रकृति के मूल और अन्तर्निहित तन्त्र की व्याख्या करने या परिवर्तन और विविधता के लिए क्षमताओं का प्रदर्शन करने की पेशकश की जा सकती है । ( xiii ) प्लेटो एवं अरस्तू के अनुसार मानव आत्मा एक विभक्त प्रकृति है , जो विशेष रूप से मानव में विभाजित है । एक भाग विशेष रूप से मानव और तर्कसंगत है और उसे भागों में बाँट दिया गया है जो आप में तर्कसंगत है और एक उत्साही भाग का कारण बनती है । आत्मा के अन्य हिस्सों की इच्छा या जुनून जानवरों में पाये जाने वाले जुनून के समान होता है । अरस्तू और प्लेटो दोनों का उत्साह अन्य जुनून से अलग है । तर्कसंगत का उचित कार्य आत्मा के अन्य भागों पर शासन करना था जो उत्साह में मदद करता था । इस आधार पर किसी के कारण का उपयोग करना , जीने का सबसे अच्छा तरीका है और दार्शनिक सबसे प्रबल प्रकार के मनुष्य हैं । अरस्तू और प्लेटो के सबसे प्रसिद्ध छात्र ने मानव स्वभाव के बारे में कुछ सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली बयान दिये हैं । उन्होंने अपने कामों में , विभाजित मानव आत्मा की इसी तरह की योजना के योग के अलावा मानव स्वभाव के बारे में भी कुछ स्पष्ट बातें जानी हैं , जो निम्नलिखित हैं

( अ ) मनुष्य एक वैवाहिक प्राणी है जिसका आशय है एक जानवर जो वयस्क होने पर पैदा होता है । न प्रकार एक परिवार का निर्माण होता है और अधिक सफल मामलों में एक कबीले या छोटे गाँव अभी भी पितृसत्तात्मक रेखाओं पर चलते हैं । ( ब ) मनुष्य एक राजनीतिक प्राणी है , जिसका अर्थ है - एक प्राकृतिक प्रवृत्ति वाला एक पशु अधिक जटिल समुदायों को एक शहर या श्रम और कानून बनाने के विभाजन के साथ विकसित किया गया है । इस समुदाय बड़े परिवारों से भिन्न होते हैं और मानव को इनके विशेष उपयोग की आवश्यकता होती के प्रकार है । ( स ) मनुष्य एक म्यूमेरिक पशु है । इसका तात्पर्य है कि मनुष्य अपनी कल्पना का उपयोग करने के लिए स्नेह करता है । ( xiv ) अरस्तू के लिए कारण न केवल अन्य पशुओं की तुलना में मानवता के लिए सबसे अधिक विशिष्ट है , बल्कि यह भी है कि हम अपने सर्वश्रेष्ठ को प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहते थे । अरस्तू का मानवीय स्वभाव का वर्णन आज भी प्रभावशाली है । हालांकि विशिष्ट दूरसंचार सम्बन्धी विचार है कि मनुष्य ' मतलब ' या इरादा है । आधुनिक समय में कुछ कम लोकप्रिय हो गया है । ( xv ) अरस्तू ने चार तरीकों से अपने सिद्धान्त के साथ इस दृष्टिकोण की मानक प्रस्तुति की है कि प्रत्येक जीवित वस्तु चार पहलुओं या कारणों को दर्शाती है । पदार्थ , रूप , प्रभाव और अन्त । उदाहरणार्थ , एक ओंक का पेड़ कोशिकाओं ( पदार्थ ) से बना होता है जो एक प्रभाव से उगता है । ओंक के पेड़ ( प्रपत्र ) की प्रकृति को दर्शाता है और पूरी तरह परिपक्व ओक वृक्ष ( अन्त ) में बढ़ता है । अरस्तू के अनुसार , मानव प्रकृति औपचारिक कारण का एक उदाहरण है । इसी तरह एक पूरी तरह वास्तविक मानव बनने के लिए हमारा अन्त है । अरस्तू से पता चलता है कि मानव बुद्धि थोक में सबसे छोटी है , लेकिन मानव मानस का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है ।

सामाजिक विविधता ( Social Diversity )

 सामाजिक विविधता सभी तरीकों से एक ही संस्कृति के भीतर एक - दूसरे से अलग है । सामाजिक विविधता के तत्वों में जातीयता , जीवन - शैली , धर्म , भाषा , स्वाद और प्राथमिकताएँ शामिल हो सकती हैं । सामान्य तौर पर सामाजिक विविधता के विचारों का विस्तार हो रहा है , क्योंकि वैश्विक सम्पर्क और संचार आसान और अधिक सामान्य हो रहे हैं । दुनिया भर में , जीवन का स्तर आमतौर पर भी सुधर रहा है । विद्वानों का मानना है कि स्वस्थ जीवन - शैली के बीच एक सम्बन्ध है और लोगों की इच्छा संस्कृति के भीतर एक सकारात्मक तत्व के रूप में विविधता को स्वीकार करने के लिए है । अधिकांश लोगों को संस्कृति के कुछ तत्वों से अवगत कराया जाता है । अधिक सम्भावना यह है कि उन तत्वों को इसमें अवशोषित करना है । मानव स्वभाव के सन्दर्भवादी सिद्धान्त का मत है कि मनुष्य ऐसा नहीं है , विशेष रूप से विशिष्ट समाजों में विशेष पुरुष है । इस आधार से एक सम्बन्धित निष्कर्ष तैयार किया जा सकता है । चूंकि सन्दर्भित रूप से परिभाषित मानव प्रकृति को अपनी सामाजिक सेटिंग के द्वारा एकीकृत रूप से समझाया गया है और चूँकि कई अलग - अलग समाज हैं इसलिए मानव स्वभावतः स्थिर रूप में कार्य नहीं कर सकता है । व्यापक दृष्टिकोण की स्वीकृति को देखते हुए कि किसी व्यक्ति की किसी भी समाज की परिभाषा उस विशेष समाज के परिप्रेक्ष्य और मूल्यों को प्रतिबिम्बित करती है , फिर इन मूल्यों को दूसरे समाजों का इस्तेमाल करने के लिए केवल उन्मुखता ही अभिव्यक्ति है , प्रत्येक अपनी शर्तों में मान्य है , मूल्यांकन की कोई अति - आर्किंग स्कीमा नहीं है । इस प्रकार स्पष्ट है कि इन या इसी प्रकार की रेखाओं सन्दर्भवादी सिद्धान्त को आमन्त्रित सापेक्षवाद कहा जा सकता है । विविधता के बारे में सोचते हुए इसके निकट के सभी सह - विवादों में एक शब्द विविधता के समानार्थक पर भी ध्यान गया है और वह है विषमता । विविधता और विषमता दोनों समान अर्थी शब्द हैं । सामाजिक सन्दर्भ में विविधता क्या है , हम इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं कि एक सफल समुदाय जिसमें विभिन्न जातियों , धार्मिक मान्यताओं , सामाजिक , आर्थिक स्थिति , भाषा , भौगोलिक मुल , लिंग या यौन अभिविन्यास करते हैं । वे सभी समुदाय की सफलता में योगदान करते हैं । उनमें से कुछ भिन्न होते हैं , क्योंकि वे जानते हैं के व्यक्ति अपने अलग - अलग ज्ञान , पृष्ठभूमि , अनुभव और उनके विविध समुदाय के लाभ के लिए कार्य कि उन व्यक्तियों को सक्रिय रूप से साझा करना तथा एक पूरे रूप में समुदाय के लाभ के लिए कई सामान्य लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में काम करना । कई देशों में अधिक विविधता के साथ सामाजिक विविधता के विचार और समझ विकसित हो रहे है के माध्यम से संवाद करना होगा ।

आस्तिक व्यक्ति स्वस्थ और सामंजस्यपूर्ण विविध समाजों का पोषण करका भविष्य को पूरी तरह कामकाजी समाज बनाने में दुनिया की मदद करेंगे । राज्यों में जम्मू और कश्मीर एक और इस प्रकार इसकी पहुंच का विस्तार हो रहा है । अब हमें दुनिया भर के लोगों के साथ डिजिटल मीडिया कि एक जटिल सामाजिक एवं राजनीतिक वातावरण उत्पन्न हो जाता है । बहुमत और अल्पसंख्यक के मध्य कोई स्पष्ट सीमाएँ नहीं हैं । एक सन्दर्भ में बहुमत रखने वाले अधिकांश व्यक्ति दूसरे सन्दर्भ में अल्पसंख्यक हो जाते हैं । यहाँ तक कि जब दूसरे समूह अपनी सामूहिक शक्ति और आँकड़ों पर बल देते हैं तो वे हाश पर अपनी स्थिति का दावा करते हैं । इसलिए राज्य में अल्पसंख्यक धारणा का एक बहुसंख्यक सन्दर्भ भी देखा जा सकता है । अल्पसंख्यक धारणाओं में क्या महत्वपूर्ण है ? अल्पसंख्यक और वंचितों का दर्जा केवल धर्म के जन - सांख्यिकीय कारक बल्कि अन्य श्रेणियों से भी परिभाषित नहीं है । धर्म के अतिरिक्त अन्य क्षेत्र के कारकों , जैसे - आदिवासी या जाति की स्थिति के साथ ही आर्थिक पिछड़ापन अल्पसंख्यक की भावना को परिभाषित करता है । विविधता की जटिल प्रकृति राजनीति की प्रकृति को भी निर्धारित करती है । शुरुआत करने के लिए राजनीतिक आकांक्षाओं का एक विवेचन होता है , जिससे कई पहचानें राजनीतिज्ञ हो जाती हैं जो राज्य की आन्तरिक राजनीति को काफी जीवन्त बनाती हैं । हालांकि इसमें से कुछ राजनीतिक पहचान एक - दूसरे के समान्तर कार्य करती हैं क्योंकि कई अन्य एक - दूसरे के साथ परस्पर अनन्य और विरोधाभासी सम्बन्ध में स्थित हैं । जम्मू और कश्मीर में संघर्ष की विशिष्टता है जो ऐतिहासिक रूप से कश्मीर की पहचान राजनीति में स्थित हो सकती है । हालांकि इस विशिष्टता के बावजूद संघर्ष पूरे राज्य हेतु निहितार्थ था । न केवल इस संघर्ष के वर्तमान चरण के दौरान जब राज्य का एक बड़ा हिस्सा आतंकवादी हिंसा की घटनाओं से प्रभावित हुआ है , लेकिन इससे पहले पूरे राज्य में सभी लोग संघर्ष की स्थिति से प्रभावित हुए थे ।

इससे भी पहले 1947-48 की अवधि में एक ऐसी स्थिति पैदा हुई थी , जिसमें बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हो गये थे । मुजाफाबाद , मोरपुर , कोहली आदि में रहने वाले बहुत से लोग पाकिस्तान के नियन्त्रण में आने वाले राज्यों के हिस्सों , जैसे जम्मू क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में चले गये थे और शरणार्थियों का जीवन जीने के लिए मजबूर हुए थे । नियन्त्रण रेखा ने न केवल भारतीय प्रशासित और पाकिस्तान प्रशासित जम्मू और कश्मीर के बीच के क्षेत्र को विभाजित किया है बल्कि उनके परिवारों को भी विभाजित किया है । ये विभाजित परिवार अधिकतर जम्मू क्षेत्र में स्थित हैं । नियन्त्रण रेखा के आस - पास रहने वाले लोगों द्वारा संघर्ष का आघात भी अनुभव किया गया था । उन्हें गोलाबारी तथा खनन के दिन के खतरों का सामना करना पड़ा । संघर्ष के वर्तमान चरण के दौरान कट्टरपंथियों ने बहुत से शिष्टाचारों के बाहर लोगों को प्रभावित किया है । जम्मू क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में कभी - कभार आतंकवादी हमलों के अतिरिक्त , इस क्षेत्र के आतंकवाद के दीर्घकालिक निहितार्थ हैं । डोंडा , पुंछ और राजौरी के पहाड़ी इलाकों के ऊपरी इलाकों में उग्रवादियों की एकाग्रता के कारण इन क्षेत्रों के सामान्य जीवन को गम्भीरता से प्रभावित किया गया ।

डोडो बेल्ट के इन इलाकों में आतंकवादी अक्स साम्प्रदायिक प्रतिक्रिया को उकसाने के इरादे से चयनात्मक हत्याओं में शामिल होते हैं । सांस्कृतिक विविधता ( Cultural Diversity ) सांस्कृतिक विविधता विभिन्न संस्कृतियों की गुणवत्ता है । चूँकि सांस्कृतिक क्षय की भाँति ही वैश्वि बहुसंस्कृतियों का एक एकीकरण है , उसके विपरीत सांस्कृतिक विविधता है । सांस्कृतिक विविधता । । मुकाबला विभिन्न संस्कृतियों के एक - दूसरे के मतभेदों का सामना करने का उल्लेख कर सकता है । वाक्यांश सांस्कृतिक विविधता का प्रयोग कभी - कभी किसी विशिष्ट क्षेत्र में या सम्पूर्ण विश्व में मानव समाजों या संस्कृतियों की विविधता को करने के लिए किया जाता है । वैश्वीकरण के लिए अधिकतर यह कहा जाता है कि विश्व की सांस्कृतिक विविधता पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है विश्व में भिन्न - भिन्न समाज हैं जो दुनिया भर में उभरे हैं । यह स्पष्ट रूप से एक - दूसरे से भिन्न हैं । इस भिन्नता के कई कारण हैं , जैसे — भाषा , पोशाक और परम्पराओं में अधिक स्पष्ट सांस्कृतिक अन्तर है । समाज में स्वयं को संगठित करने , नैतिकता की साझा अवधारणा में और उनके परिवेश के साथ समायोजन तथा बातचीत करने के तरीकों में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन पाया जाता है । सांस्कृतिक विविधता को जैव विविधता के अनुरूप माना जा सकता है सांस्कृतिक विविधता का मूल्यांकन जैव विविधता जिसे पृथ्वी पर दीर्घकालिक जीवन तथा अस्तित्व के लिए आवश्यक माना जाता है । यह कहा जा सकता है कि सांस्कृतिक विविधता मानवता के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है और यह भी कि स्वदेशी संस्कृतियों का संरक्षण मानव जाति के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है क्योंकि प्रजातियों का संरक्षण और पारिस्थितिक तन्त्र सामान्य रूप से जीवन में है ।

सांस्कृतिक विविधता पर सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 2001 में यू . एन . एस . सी . सी . के जनरल सम्मेलन में इस स्थिति को उठाया गया है कि " जैव विविधता प्रकृति के लिए है इसलिए मानव जाति के लिए सांस्कृतिक विविधता आवश्यक है । " यह स्थिति कई आधारों पर कुछ लोगों द्वारा अस्वीकार कर दी जाती है । मानव स्वभाव के अधिकांश विकास की भाँति सबसे पहले सांस्कृतिक विविधता का महत्व एक अन - परीक्षण योग्य परिकल्पना हो सकता है जो न साबित हो सकता है और न ही अस्वीकृत ही हो सकता है । दूसरे यह तर्क भी दिया जा सकता है कि यह कम विकसित समाजों के संरक्षण हेतु जान - बूझकर अवैध है क्योंकि यह उन समाजों के अन्दर लोगों को विकसित दुनिया के उन लोगों द्वारा प्राप्त तकनीकी और चिकित्सा सहायता के लाभों से वंचित करेगा । उसी प्रकार से जैसे अविकसित देशों में गरीबों को सांस्कृतिक विविधता के रूप में बढ़ावा देना अनैतिक है । यह सभी धार्मिक प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए अनैतिक है । क्योंकि वे सांस्कृतिक विविधता में योगदान करने के लिए देख रहे हैं । धार्मिक प्रथाओं को विशेषकर डब्ल्यू . एच . ओ . और संयुक्त राष्ट्र में अनैतिक रूप से पहचाना है जिनमें महिला जननांग , विघटन , बहुपत्नी , बाल दुल्हनें तथा मानव बलिदान शामिल हैं । वैश्वीकरण के प्रारम्भ के साथ पारम्परिक राष्ट्र राज्यों को भारी दबावों के तहत रखा गया है । आज प्रौद्योगिकी के विकास के साथ सूचना और पूँजी भौगोलिक सीमाओं को पार कर रही है और बाजार , राज्यों और नागरिकों के बीच रिश्तों को फिर से स्थानान्तरित कर रही है । विशेषकर मीडिया उद्योग के विकास ने बड़े पैमाने पर दुनिया भर के व्यक्तियों और समाजों को काफी हद तक प्रभावित किया है । हालांकि कुछ मायनों में फायदेमन्द होने पर इस वृद्धि से समाज के व्यक्तियों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने की क्षमता होती है । पूरी दुनिया में इतनी सरलता से वितरित की जा रही जानकारी के साथ सांस्कृतिक अर्थ , मूल्य और स्वाद समरूप बनने के जोखिम उठाते हैं ।

 परिणामस्वरूप व्यक्तियों और समाजों की पहचान की ताकत निर्बल हो सकती है । कुछ मजबूत धार्मिक मान्यताओं वाले व्यक्ति यह मानते हैं कि यह व्यक्तियों तथा मानवता के सबसे अधिक हित में है जो कि सभी लोग समाज हेतु एक विशिष्ट मॉडल या ऐसे मॉडल के विशेष पहलुओं का पालन करते हैं । आजकल विभिन्न देशों के मध्य संचार अधिकाधिक बढ़ गया है और अधिक - से - अधिक संस्कृति की विविधता का अनुभव करने के लिए छात्र विदेशों में अध्ययन करना चुनते हैं । इसका लक्ष्य अपने क्षितिज को विकसित करता है और विदेशी संस्कृति सीखने के लिए खुद को विकसित करना है । उदाहरण के लिए पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना और संयुक्त राज्य अमेरिका के शैक्षणिक स्वतन्त्रता के अनुसार , " चीनी शिक्षा में परम्परागत रूप से अध्यापन में चम्मच और भोजन शामिल हैं । पारम्परिक शिक्षा प्रणाली ने छात्रों को तय तथा अस्थिर सामग्री को स्वीकार करने की माँग की है । चीन में छात्र सामान्य रूप से अपने शिक्षकों के प्रति बहुत सम्मान दिखाते हैं जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका की शिक्षण में अमेरिकी छात्र बराबर के रूप में कॉलेज के प्रोफेसरों का इलाज करते हैं । अमेरिकी छात्रों को विषय पर बहस करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है । विभिन्न विषयों पर निःशुल्क खुली चर्चा , अकादमिक स्वतन्त्रता की वजह से होती है । उपर्युक्त चर्चा हमें शिक्षा पर चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच के अन्तर के बारे में एक सम्पूर्ण विचार देती है , लेकिन हम यह नहीं समझ सकते हैं कि कौन बेहतर है और कौन नहीं , क्योंकि प्रत्येक संस्कृति की अपनी विशेषताएँ तथा लाभ हैं । इन अन्तरों से ही सांस्कृतिक विविधता का निर्माण होता है ।

शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले छात्रों के लिए यह लाभ है कि वे दो अलग - अलग संस्कृतियों से अपने आत्मविश्वास के लिए सकारात्मक सांस्कृतिक तत्वों को जोड़ सकते हैं । यह उनके पूरे करियर में एक प्रतिस्पर्धात्मक लाभ होगा । विशेषकर जो लोग वैश्विक संस्कृतियों पर अलग - अलग दृष्टिकोण रखते हैं । वे अर्थशास्त्र की वर्तमान प्रक्रिया के साथ वर्तमान विश्व में अधिक प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति पर खड़े होते हैं । सांस्कृतिक विविधता मापना कठिन है , लेकिन इस क्षेत्र में एक अच्छा संकेत यह है कि सम्पूर्ण दुनिया में बोली जाने वाली भाषाओं की संख्या को विविधता मापन के लिए उपयोग किया जाता है । इस उपाय के द्वारा दुनिया की सांस्कृतिक विविधता में प्रचलित गिरावट को भी जाना जा सकता है । अधिक जनसंख्या , आव्रजन और साम्राज्यवाद ऐसे कारण हैं जो इस तरह की गिरावट की व्याख्या करने के लिए उपयुक्त हैं । हालांकि यह भी तर्क दिया जा सकता है कि वैश्वीकरण के आगमन के साथ सांस्कृतिक विविधता में गिरावट आना अनिवार्य है क्योंकि सूचना अक्सर साझा एकरूपता को बढ़ावा देती है । अभ्यास प्रश्न दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ( Long Answer Type Questions ) 1. विविधता से क्या आशय है ? सामाजिक विविधता पर प्रकाश डालिए । 2. सांस्कृतिक विविधता पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए ।

In English 

The concept and nature of human diversity [NATURE AND CONCEPT OF HUMAN DIVERSITY] Role (INTRODUCTION) There are many types of people, many cultures and ethics in society. They differ from each other in physical qualities and mental abilities, abilities. There is also a difference based on ethnicity, color, gender, physical ability, socio-economic status, age, political beliefs. In addition to this, it is considered natural to have a difference in culture due to the difference in the natural environment. On this basis too, there is variation in the society. Variation is a term that describes the difference between two people, two cultures, two societies, two communities. Sometimes the difference between two people also comes due to their cultures, societies and communities, which also changes their outlook, ideology, way of life, on the basis of which human diversity increases in the society. Human Social and Cultural Diversity Diversity refers to the concept of Diversity. Acceptance and respect are included in the concept of diversity. This means that each person is unique and recognizing our individual differences may have dimensions of race, ethnicity, gender, sexual orientation, socioeconomic status, age, physical ability, religious beliefs, political beliefs, or other ideology. It is an exploration of these differences in a safe, positive and balanced environment. It is also about moving beyond simple tolerance to understanding each other and embracing and celebrating the rich dimensions of diversity inherent within each individual. fafaetat Cat Fan (Nature of Diversity) "Diversity" means more than simply accepting or tolerating difference. Diversity is a set of conscious behaviors that include the following - (i) Understanding and appreciating the interdependence of humanity, cultures and the natural environment. (ii) Practicing mutual respect for qualities and experiences that are different from ours. (iii) Understanding that diversity includes not only ways of being but also ways of knowing. Diversity is a privilege to the mouth acknowledging that personal cultural and institutional discrimination while harming and retaining it for the other. (iv) To build alliances between differences so that we can work together to end all forms of discrimination. (v) Diversity includes things related to all the qualities and conditions that are different from our own and those groups yet exist in other individuals and groups. (vi) Age, ethnicity, class, gender, physical ability / quality, race, sexual orientation, as well as religious status, gender expression, educational background, geographical location, income, marital status, parental snature And experience for work is not limited. We also believe that the difference ranges are not always fixed. We respect the individual right to self-identification and we also believe that no culture is intrinsically superior to another. (vii) Human nature, characteristics, including thoughts, feelings and modes of acting, which occur naturally in humans, are also included in diversity. (viii) The question is, are there really definite characteristics, what are natural features, and why are they considered to be the oldest and important in philosophy and science. The concept of human nature is traditionally not only unusual but also with characteristics that originate from specific cultures. The nature vs. nutrition debate is a well-known modern discussion about human nature in natural sciences. (ix) These questions are particularly important in economy, ethics, politics and theology. It is also useful partly because human nature is regarded as a source of conduct or ways of life, as well as obstacles or obstacles that can be introduced when living a good life. The complex implications of such questions are also introduced in art and literature. The question is, what exactly is a human being? (x) Aristotle's teleological approach has been effective since classical and medieval times, according to which human nature actually causes humans to become. A special relationship between human nature and divinity is shown. This approach understands human nature in the context of final and formal causes. In other words, nature has goals and goals. One of these goals is humanity that is naturally alive. Such an understanding of human nature sees nature as an 'idea' or human. (xi) Although the existence of this temporal and spiritual human nature is the subject of much historical debate, which continues in modern times. The relative ugliness of man, against this idea of ​​a certain nature, has been particularly strongly exposed in recent centuries - the earliest modernists, such as Thomas Hobbes and Jean Jacques Rozue. This has had an impact on Russo's 'Emile' or education. Russo wrote- "We do not know what our nature allows us to do. Since the beginning of the 19th century thinkers such as Hegel, Marx, Kieckgaard, Nietzsche, Sarathe, Structuralist and Post Modernist have sometimes a certain Or have argued against innate human nature. (Xii) Charles Darwin's theory of evolution discussed confirming the fact that the ancestors of mankind today are not like mankind. Still recent scientific perspectives, such as - Behaviorism, destiny ism and the chemical model within modern psychiatry and psychology claim that human nature is neutral. (Such topics as modern science are explained with little or no support). They are the core of human nature and One can be offered to interpret the underlying system or to demonstrate abilities for change and diversity. (Xiii) According to Plato and Aristotle the human soul is a dividing nature, which is exclusively divided into human beings. Part one particular form Is human and rational and divided it into parts Has been rational in you and causes an enthusiastic part. The desire or passion of other parts of the soul is similar to the passion found in animals. The enthusiasm of both Aristotle and Plato is different from other passions. The proper function of the rational was to rule over other parts of the soul which helped the zeal. Using one's reason on this basis is the best way to live, and philosophers are the most potent types of human beings. The most famous student of Aristotle and Plato made some of the most famous about human nature And has given impressive statements. In his works, apart from the sum of the similar scheme of the divided human soul, he has also come to know a few clear things about human nature, which are as follows: (a) Man is a matrimonial creature which means an animal which is born when it becomes an adult it happens . Nor is a family formed and in more successful cases a clan or small village still runs on patriarchal lines. (B) Man is a political animal, which means - an animal with a natural tendency to develop more complex communities with a city or division of labor and law making. These communities differ from large families and are the type of human that require special use. (C) Man is a mumeric animal. This implies that man has affection to use his imagination. (xiv) The reason for Aristotle is not only more specific to humanity than other animals, but also what we wanted to do to achieve our best. Aristotle's description of human nature is still influential today. However the specific teleological idea that man is 'mean' or intended. In modern times, something has become less popular. (xv) Aristotle in four ways standardized the view with his theory that each living thing represents four aspects or causes. Substance, form, effect and end. For example, an oak tree is made up of cells (matter) that grow with an effect. Refers to the nature of the onk tree (form) and grows into a fully mature oak tree (end). According to Aristotle, human nature is an example of formal reason. In the same way, our end is to become a completely real human being. Aristotle suggests that human intelligence is the smallest of the bulk, but the most important part of the human psyche. Social Diversity Social Diversity is different from each other within the same culture in all ways. Elements of social diversity may include ethnicity, lifestyle, religion, language, taste, and preferences. In general, ideas of social diversity are expanding, as global connectivity and communication are becoming easier and more common. Around the world, the standard of living is generally improving as well. Scholars believe that there is a connection between healthy lifestyles and the willingness of people to accept diversity as a positive element within the culture. Most people are exposed to certain elements of the culture. It is more likely that those elements have to be absorbed in it. The contextualist theory of human nature holds that human beings are not like that, especially in specific societies, there are special men. From this basis a related conclusion can be drawn. Since contextually defined human nature is explained integrally by its social setting and since there are many different societies, human nature cannot function in a stable way. Given the acceptance of the broader view that an individual's definition of any society reflects the perspective and values ​​of that particular society, then these values ​​are only an expression of the orientation of other societies to use, each valid in its own terms. There is no over-arching schema of evaluation. Thus it is clear that these or similar lines can be called referential theory called referentialism. Thinking about diversity, all synonyms around it have also noticed a word synonyms of diversity and that is inequality. Diversity and asymmetry are both similar words. Social What is diversity in context, we can define as a successful community in which different castes, religious beliefs, social, economic status, language, geographic gender, gender or sexual orientation. They all contribute to the success of the community. Some of them differ, because they know that individuals have their own different knowledge, backgrounds, experiences and work for the benefit of their diverse community that those individuals actively share and for the benefit of the community as a whole Work towards achieving many common goals. Many countries have to communicate with more diversity through developing ideas and understanding of social diversity. Believers will help the world in making the future a fully functioning society by nurturing healthy and harmonious diverse societies. Jammu and Kashmir is one of the states and thus expanding its reach. Now we get a complex social and political environment of digital media with people from all over the world. There are no clear boundaries between majority and minority. Most people with majority in one context become minority in other context. Even when other groups emphasize their collective power and statistics, they claim their position on the margin. Therefore, a majority context of minority perception can also be seen in the state. What is important in minority perceptions? The status of minorities and the underprivileged is not only defined by the mass-statistical factor of religion but also by other categories. Apart from religion, economic backwardness defines the feeling of minority along with other factors of the region, such as tribal or caste status. The complex nature of diversity also determines the nature of politics. To begin with, there is a deliberation of political aspirations, which leads many politicians to recognize which makes the internal politics of the state quite alive. However, some of these political identities operate parallel to each other because many others are situated in mutually exclusive and conflicting relationships with each other. Jammu and Kashmir has the distinction of conflict that can historically be located in the identity politics of Kashmir. Despite this uniqueness, however, the conflict had implications for the entire state. Not only during the current phase of this conflict when a large part of the state has been affected by incidents of terrorist violence, but earlier all over the state were affected by the conflict situation. Earlier, in the period 1947-48, a situation had arisen in which a large number of people were displaced. Many people living in Muzafabad, Morpur, Kohli etc. had migrated to different parts of the territories which came under the control of Pakistan, such as Jammu region and were forced to live a life of refugees. The control line has not only divided the area between Indian administered and Pakistan administered Jammu and Kashmir but also their families. These divided families are mostly located in Jammu region. The trauma of conflict was also experienced by people living around the control line. They had to face the dangers of the day of shelling and mining. During the current phase of the struggle, fundamentalists have influenced people outside many etiquettes. Apart from occasional terrorist attacks in various parts of the Jammu region, terrorism in the region has long-term implications. The normal life of these areas was seriously affected due to the concentration of militants in the upper reaches of the hilly areas of Donda, Poonch and Rajouri. Terrorists in these areas of the Dodo Belt are involved in selective killings with the intention of provoking a communal reaction. Cultural Diversity Cultural diversity is the quality of different cultures. As cultural decay is a unification of global multiculturalism, cultural diversity is the opposite. cultural diversity . . Combat may refer to different cultures encountering each other's differences. The phrase cultural diversity is sometimes used to refer to the diversity of human societies or cultures in a specific region or throughout the world. For globalization, it is mostly said that it has a negative impact on the cultural diversity of the world. There are different societies in the world which have emerged around the world. These are clearly different from each other. There are many reasons for this difference, such as - there is a clear cultural difference between language, dress, and traditions. Significant changes are found in society in organizing itself, in the shared concept of morality and in the way of adjusting and interacting with their environment. Cultural diversity can be considered in line with biodiversity. Assessment of cultural diversity is considered biodiversity, which is considered essential for long-term life and survival on Earth. It can be said that cultural diversity can be important for the long-term survival of humanity and also that the preservation of indigenous cultures can be important for mankind because the conservation and ecological system of the species is in life in general. U.P in 2001 of the Universal Declaration on Cultural Diversity. N. s . C . C . The General Conference of K raised the position that "biodiversity is for nature so cultural diversity is essential for mankind." This position is rejected by some on many grounds. Like most of the development of human nature, the importance of cultural diversity at first may be an un-testable hypothesis that can neither be proved nor disproved. Secondly, it can also be argued that it is deliberately illegal to protect under-developed societies because it will deprive people inside those societies of the benefits of technical and medical assistance received by those in the developed world. In the same way as in underdeveloped countries, promoting the poor as cultural diversity is unethical. It is immoral to promote all religious practices. Because they are looking to contribute to cultural diversity. Religious practices especially W.W. H. O. And has been identified as immoral in the United Nations including female genitalia, mutilation, polyandry, child brides and human sacrifice. With the onset of globalization, traditional nation states have been placed under tremendous pressure. Today with the development of technology, information and capital is crossing geographical boundaries and re-shifting the relationships between markets, states and citizens. The growth of the media industry in particular has largely affected individuals and societies around the world. Although beneficial in some ways, this increase has the potential to negatively affect the individuals of the society. Cultural meanings, values ​​and tastes risk becoming homogenous with information being distributed so easily throughout the world. As a result, the strength of identification of individuals and societies can be weakened. Individuals with some strong religious beliefs believe that it is in the best interest of individuals and humanity that all people follow a specific model for society or particular aspects of such a model. Nowadays communication between different countries has increased more and more and more students choose to study abroad to experience the diversity of culture. Its goal is to develop its horizons and to develop itself to learn foreign culture. For example, according to the Educational Freedom of the People's Republic of China and the United States, "Traditional teaching in Chinese education includes spoons and food. The traditional education system has demanded students to accept fixed and volatile materials. Students in China generally show great respect for their teachers, while American students are equal in teaching in the United States.College professors are treated. American students are encouraged to debate the subject. Free open discussion on various topics takes place due to academic freedom. The above discussion gives us a complete idea about the difference between China and the United States on education, but we cannot understand who is better and who is not, because each culture has its own characteristics and benefits. Cultural diversity is created by these differences. The advantage for students going abroad for education is that they can add positive cultural elements to their confidence from two different cultures. This would be a competitive advantage throughout his career. Especially those who have different perspectives on global cultures. They stand at a more competitive position in the present world with the current process of economics. Cultural diversity is difficult to measure, but a good indication in this area is that the number of languages ​​spoken throughout the world is used to measure diversity. Through this measure the prevailing decline in the cultural diversity of the world can also be known. Overpopulation, immigration and imperialism are reasons that are apt to explain such a decline. However it can also be argued that the decline of cultural diversity is inevitable with the advent of globalization as information often promotes shared homogeneity. Practice Questions Long Answer Type Questions 1. What does diversity mean? Highlight social diversity. 2. Write a short article on cultural diversity.

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