1.विकास की अवधारणा तथा अधिगम के साथ उसका सम्बन्ध
[Concept of Development and Its Relation with Learning]
2.बालकों के विकास के सिद्धान्त
[Principles of Development of Children]
3.आनुवंशिकता और पर्यावरण का प्रभाव
[Effect of Heredity and Enviornment]
4.समाजीकरण की प्रक्रिया [Process of Socialization]
5.पियाजे, कोहुलबर्ग और वाइगोत्सकी : निर्माण और विवेचित संदर्श
[Piaget, Kohlberg and Vygotsky: Construction and Critical Perspectives]
6.बाल-केन्द्रित एवं प्रगतिशील शिक्षा की अवधारणा
[Concept of Child Centred and Progressive Education]
7.बौद्धिकता के निर्माण का विवेचित संदर्श, बहु-आयामी बौद्धिकता
[Construction of Critical Perspective of Intelligence, Multi Dimensional Intelligence]
8.भाषा और चिन्तन
[Language and Thought]
9.समाज निर्माण के रूप में लिंग लिंग भूमिकाएँ, लिंग पूर्वाग्रह
[Gender In Forms of Social Construction: Gender Roles, Gender Prejudice]
10.शिक्षार्थियों के मध्य व्यक्तिगत विभिन्नताएँ
[Individual Differences between Students]
11. अधिगम का मूल्यांकन व सतत व व्यापक मूल्यांकन
[Evaluation of Learning and Comprehensive Evaluation]
12.उपलब्धि परीक्षण का निर्माण
[Construction of Achievement Tests]
13. समावेशी शिक्षा की अवधारणा तथा विशेष आवश्यकता वाले बालकों की पहचान
[Identification of Children with Special Needs and Concept of Inclusive Education]
14. अधिगम सम्बन्धी कठिनाइयों वाले बालकों की आवश्यकताओं को पहचानना
[Identification of Needs of Related for Children with Learning Difficulties]
15. प्रतिभाशाली, सृजनात्मक तथा विशेष आवश्यकता वाले बालक
[Talented, Creative and Children with Special Needs]
16. बालकों का सोचना सीखना
[Thinking and Learning of Children]
17. बच्चा : एक समस्या समाधानकर्ता तथा एक वैज्ञानिक
अन्वेषक के रूप में [Child In the Form of a Problem and Scientific Investigator]
18. संज्ञान तथा संवेग
[Cognition and Emotion]
19. अभिप्रेरणा और अधिगम
[Motivation and Learning]
20. अधिगम में योगदान देने वाले कारक [Factors Contributing To Learning]
विकास की अवधारणा तथा अधिगम के साथ उसका संबंध
(Concept of development and its relation with learning)
गर्भधारण के बाद गर्भस्थ शिशु में वृद्धि (Growth) तथा विकास प्रारम्भ होता है।
प्राणी में वृद्धि और विकास के चलते रहने से प्राणी में सक्रियता और उसका जीवन चलता रहता है।
वृद्धि और विकास दो अलग-अलग प्रत्यय हैं।
इनके सम्बन्ध में कुछ अधिक कहने से पहले इनके अर्थ को अलग-अलग समझना आवश्यक है।
विकास का अर्थ
(MEANING OF DEVELOPMENT)
विकास के सम्बन्ध में कहा जा सकता है कि मानव में होने वाले क्रमिक परिवर्तनों के फलस्वरूप होने वाली प्रगति ही विकास है।
बालक या व्यक्ति परिपक्वता और अधिगम के आधार पर पूर्व में अधिगमित गुणों अथवा योग्यताओं को परिमार्जित करता है तथा अपने भीतर नये गुणों और योग्यताओं का विकास करता है।
हरलॉक (2004) ने विकास को परिभाषित करते हुए लिखा है कि "विकास का अर्थ गुणात्मक परिवर्तनों से है। विकास की परिभाषा क्रमिक सम्बद्धतापूर्ण परिवर्तनों की प्रगतिपूर्ण श्रृंखला के रूप में दी जा सकती है। प्रगतिपूर्ण का अर्थ है कि परिवर्तन दिशात्मक (Directional) होते हैं तथा यह पृष्ठोन्मुख की अपेक्षा अग्रोन्मुख होते हैं।"
"Development refers to qualitative changes. It may be defined as a progressive series of orderly, where it changes. 'Progressive' signifies that the changes are directional, that they lead forward rather than backward." -E. B. Hurlock, 2004
लाबार्बा (1981) के अनुसार, "विकास का अर्थ परिपक्वात्मक परिवर्तन या परिवर्तनों से है जो जीवधारी के जीवन में समय के साथ घटित होते हैं।"
"Development refers to maturational change or changes that occur in organism over the course of time.
-Labarba, 1981.
" एण्डरसन (1996) के अनुसार, "विकास का अर्थ मात्र किसी व्यक्ति की ऊँचाई या योग्यता में कुछ वृद्धि से नहीं है। इसके स्थान पर विकास अनेक संरचनाओं और प्रकार्यों के समन्वय की एक जटिल प्रक्रिया है।"
"Development is not merely adding inches to one's height or ability. Insted of development is a complex process of integrating many structures and functions."
- Anderson, 1996
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि "विकास का आशय किसी जीवधारी में प्रगतिपूर्ण परिपक्वात्मक क्रमिक परिवर्तनों की शृंखला से है जो अनेक संरचनाओं और प्रकार्यों के समन्वय के फलस्वरूप बनती है।"
- डी. एन. श्रीवास्तव, 2009
विकास की परिभाषाओं का सारांश प्रस्तुत करते हुए लिखा गया है कि एक ओर विकास को वृद्धि के रूप में समझा जाता है और इसका वर्णन मात्रात्मक वृद्धि के रूप में किया जाता है। दूसरी ओर विवृद्धि का वर्णन गुणात्मक परिवर्तनों के रूप में किया जाता है, वे गुणात्मक परिवर्तन जो उच्च मानसिक रूपों में विभिन्न अवस्थाओं में होते हैं।
"On the one hand, development is regarded as growth and described as a quantitative increase (Carmichael 1986; Undentach 1959), on the other, it is understood as a qualitative change taking place in phases or stages (Korh, 1944; Buhler, 1935) leading spirally to higher mental forms (Gesell, 1954) or comprising the super- imposition of higher on lower layers."
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विकास एक प्रगतिशील (Progressive) प्रक्रिया है। विकास के फलस्वरूप बालक में होने वाले क्रमिक परिवर्तन बालक को वातावरण के साथ समायोजन करना सिखा देते हैं। गोर्डन (1950) का मानना है कि विकास की प्रक्रिया में बालक को सुखद और दुःखद दोनों प्रकार की अनुभूतियों का अनुभव होता है। सुखद परिवर्तनों से अनुकूल तथा दुःखद परिवर्तनों से प्रतिकूल प्रकार की अभिवृत्तियों का बालक में निर्माण होता है।
एक नवजात शिशु बैठना-उठना और चलना आदि नहीं जानता है, परन्तु जैसे-जैसे उसका विकास होने लगता है, वह ये सभी क्रियाएँ करना सीख लेता है। अतः कहा जा सकता है. कि बालकों में इन क्रियाओं में प्रगतिपूर्ण परिवर्तन (Progressive Changes) हुए हैं। बालक में विकास सम्बन्धी सभी प्रगतिपूर्ण परिवर्तन एक-दूसरे से सम्बन्धित और क्रमबद्ध होते हैं। अनेक मनोवैज्ञानिकों (Salkind, 1987; Rayher, 1986) का विचार है कि विकास के दौरान बालक में हुए प्रगतिपूर्ण परिवर्तनों से उसके व्यवहार में सूक्ष्मता आती चली जाती है।
विकास के सिद्धान्त (Principles of Growth)
प्रत्येक शिक्षार्थी का विकास निश्चित नियमों के आधार पर होता है। इन नियमों के आधार पर ही उसकी शारीरिक एवं मानसिक क्रियाएँ विकसित होती हैं। विकास के प्रमुख नियम निम्नलिखित प्रकार से हैं-
1. निश्चित प्रारूप - किसी बालक का विकास 'मस्तकाधोमुखी दिशा' एवं 'निकट दूर दिशा' में होता है।
• मस्तकाधोमुखी विकास क्रम- इसमें बालक का विकास उसके सिर से लेकर पैर की ओर होता है।
• निकट दूर विकास क्रम- इसमें बालक का विकास, केन्द्रीय भागों से शुरू होकर दूर के भागों में होता है। जैसे कि पेट एवं धड़ में विकास की क्रियाशीलता पहले आती है।
2. सामान्य से विशेष की ओर विकास- बालक, विकास के क्रम में पहले सामान्य क्रियाएँ करता है तथा बाद में विशेष क्रियाएँ करता है। विकास का यह नियम शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक विकास पर लागू होता है।
3. स्थिर व्यक्तिगत विभेद- किसी बालक में शारीरिक क्रियाएँ जल्द होती हैं तो वह जल्द बोलने लगता है। वहीं किसी अन्य बालक में शारीरिक क्रियाएँ देर से शुरू होती हैं तो वह देर से बोलता है। इस प्रकार से किन्हीं दो बालकों के बीच विकास क्रम में विभेद हो सकता है जो सदैव स्थिर होता है।
4. अवस्था अनुसार विकास- बालक का विकास उसकी अवस्था अनुसार होता है; जैसे-एक वर्ष का बालक बोलने लगता है परन्तु यह बोलने की प्रक्रिया उसके जन्म से ही शुरू हो जाती है। माता-पिता अपने बालक के साथ जन्म से ही कुछ-कुछ बोलने लगते हैं और वह सुनकर शब्दों को सीखना शुरू कर देता है।
5. विकास परिपक्वता एवं शिक्षण का परिणाम-परिपक्वता का अर्थ बालक में आनुवंशिक रूप से शारीरिक गुणों का विकास है। बालक का अंग स्वतः शारीरिक क्रियाओं द्वारा परिपक्व हो जाता है। इसी प्रकार से शिक्षण द्वारा सीखने का परिपक्व आधार बनता है; जैसे वस्तुओं को हाथों से पकड़ना आदि।
वृद्धि का अर्थ (Meaning of Growth):-
कुछ मनोवैज्ञानिक विकास और विवृद्धि शब्दों का प्रयोग एक ही अर्थ में करते हैं, परन्तु वास्तव में ये भिन्न हैं। विकास के अर्थ को ऊपर समझाया जा चुका है। यहाँ वृद्धि के अर्थ को समझाया जायेगा। विकास की अपेक्षा विवृद्धि एक संकुचित प्रत्यय है।
हरलॉक (1990) ने इसे परिभाषित करते हुए लिखा है कि Growth refers to quantitative changes-increase in size and structure I गभर्भाधारण के बाद ही गर्भस्थ शिशु में वृद्धि होने लगती है।
यह वृद्धि गर्भस्थ शिशु के आकार और संरचना में होती है। यह विवृद्धि परिपक्वावस्था तक चलती रहती है।
विवृद्धि बालक के शरीर और संरचना में ही नहीं होती है बल्कि यह उसके आन्तरिक अंगों और मस्तिष्क में भी होती है।
मस्तिष्क में जैसे-जैसे वृद्धि होती जाती है, बालक में सीखने, स्मरण तथा तर्क आदि की अधिक क्षमता आती जाती है।
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि हरलॉक (1990) ने विवृद्धि को मात्रात्मक परिवर्तन तथा विकास को गुणात्मक परिवर्तन माना है परन्तु कारमाइकेल (1986) आदि मनोवैज्ञानिकों ने विकास को भी मात्रात्मक परिवर्तनों के रूप में स्वीकार किया है। अतः विकास और विवृद्धि दोनों को एक-दूसरे से पृथक् समझना कठिन है।
वृद्धि और विकास में अन्तर (Difference between Growth and Development) - पाठकों की सुविधा के लिए दोनों में कुछ मौलिक अन्तर यहाँ दिये हुए हैं-
(1) विकास का प्रारम्भ विवृद्धि से पहले होता है।
(2) विवृद्धि केवल परिपक्वावस्था तक होती है परन्तु विकास तो जीवन- पर्यन्त चलता रहता है।
(3) विवृद्धि से संरचना, (Structure) में परिवर्तनों का बोध होता है तथा विकास से प्रकार्यों (Functioning) में परिवर्तनों को बोध होता है।
(4) विवृद्धि में परिवर्तन केवल रचनात्मक होते हैं; दूसरी ओर विकास में परिवर्तन रचनात्मक भी हो सकते हैं तथा विनाशात्मक भी।
(5) जीवन की प्रत्येक अवस्था में विकास तभी सम्भव है जब हम चुनौतियों का सामना (encounter the challenges) करके उन्हें सफलतापूर्वक हल कर लेते हैं। इन परिवर्तनों में लाभ या हानि दोनों होते हैं लेकिन हानियों का ऋणात्मक प्रभाव ही हो यह आवश्यक नहीं है, बल्कि ये हानियाँ हमारे भविष्य के विकास के लिए उत्प्रेरक (catalysts) का कार्य करती हैं। हम इन हानियों से सीख कर भविष्य में गलती की सम्भावना को कम करते हैं और अपने विकास को प्रोत्साहित करते हैं। जबकि विवृद्धि में इस प्रकार की चुनौतियों का अभाव होता है।
विकास की विशेषताएँ (Characteristics of Development)
विकास की अनेक विशेषताएँ हैं। कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं-
(1) विकास प्रगतिपूर्ण श्रृंखला के रूप में घटित होता है।
(2) विकास में क्रमिक परिवर्तन पाये जाते हैं। परिवर्तनों में निरन्तरता पायी जाती है। यह परिवर्तन अविराम गति से चलते हैं। विकास किसी भी विकास-
अवस्था में सामान्य नहीं होता है।
(3) क्रमिक परिवर्तन एक-दूसरे के साथ किसी न किसी रूप से सम्बन्धित रहते हैं। यह परिवर्तन एक-दूसरे से अलग न होकर जुड़े हुए होते हैं।
(4) कुछ मनोवैज्ञानिकों (Carmichael, 1986; Hurlock 1990) के अनुसार, यह परिवर्तन मात्रात्मक (Quantitative) होते हैं तथा अन्य प्राचीन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार यह गुणात्मक (Qualitative) होते हैं।
(5) विकास-परिवर्तनों की गति भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में भिन्न-भिन्न होती है। विकास की गति गर्भकालीन अवस्था में सर्वाधिक और परिपक्वावस्था के बाद मन्द हो जाती है।
(6) विकास के फलस्वरूप व्यक्ति में अनेक नई विशेषताएँ और क्षमताएँ उत्पन्न होती हैं।
विकास के आयाम (Dimensions of Development)
• मानव विकास एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है। जहाँ शारीरिक विकास, बालक की आयु के साथ रुक जाता है वहीं मनोशारीरिक क्रियाओं में विकास की क्रिया चलती ही रहती है।
• बालक की मनोशारीरिक क्रियाओं में भाषायी, संवेगात्मक, सामाजिक तथा चारित्रिक विकास सन्निहित होते हैं। यह विभिन्न आयु स्तरों पर बदलता रहता है।
• बालक की आयु स्तरों को विकास के आयाम अथवा अवस्थाएँ कहते हैं।
• विकास के आयाम या अवस्था को लेकर अलग-अलग मनोवैज्ञानिकों की अवधारणा में अन्तर है। रॉस के अनुसार विकास की चार अवस्था क्रमशः शैशवावस्था, पूर्व-बाल्यावस्था, उत्तर-बाल्यावस्था तथा किशोरावस्था हैं।
• हरलॉक ने बाल विकास को 11 भागों में विभाजित किया है। ये क्रमशः गर्भावस्था, शैशवावस्था, बचपनावस्था, पूर्व-बाल्यावस्था, उत्तर-बाल्यावस्था, वयःसन्धि, पूर्व-किशोरावस्था, उत्तर-किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था, मध्यावस्था तथा वृद्धावस्था हैं।
सामान्य वर्गीकरण
1. गर्भावस्था (गर्भ धारण से-जन्म तक)
2. शैशवावस्था (0-6 वर्ष)
→ 3. बाल्यावस्था (7-12 वर्ष)
4. किशोरावस्था (13-18 वर्ष)
5. प्रौढ़ावस्था (18-19 वर्ष के बाद)
1. गर्भावस्था ('गर्भधारण से जन्म तक)
गर्भावस्था को तीन चरणों में बाँटा गया है-
I. बीजावस्था/भूणिक/डिम्बावस्था - यह अवस्था 0 से 2 सप्ताह तक रहती है। इस अवस्था में बालक की आकृति एक बीज के समान और अण्डानुमा आकृति की होती है। इसे युक्ता (Zygote) कहते हैं। योक नामक पदार्थ को बालक आहार के रूप में ग्रहण करता है, लगभग 15 दिन में योक एवं युक्ता समाप्त हो जाते हैं और वह गर्भाशय की दीवार से चिपक जाता है तथा माँ के शरीर से आहार ग्रहण करता है और बालक की भ्रूणावस्था प्रारम्भ हो जाती है।
II. भ्रूणावस्था/भ्रूणीय/पिण्डावस्था:- यह अवस्था 2 सप्ताह से लेकर दूसरे माह के अन्त तक रहती है अर्थात् 8 सप्ताह तक रहती है। ध्यान रहे यह अवस्था 8 सप्ताह तक रहती है, जिसमें शिशु का विकास सर्वाधिक तीव्र गति से होता है और इसी अवस्था में शिशु की श्वसन नली की शाखाएँ, फेफड़े, यकृत, अग्नाशय, थायराइड ग्रन्थि, लार ग्रन्थि आदि का निर्माण शुरू हो जाता है। इस अवस्था में तीन परतों के द्वारा बालक का शारीरिक निर्माण होता है-
एक्टोडर्म- इसे बाहरी परत भी कहते हैं एवं इसके द्वारा त्वचा, बाल इत्यादि अंगों का निर्माण होता है।
मीसोडर्म- इसके द्वारा बालक की मांसपेशियों का निर्माण होता है।
एण्डोडर्म-इसके द्वारा बालक का मस्तिष्क, हृदय इत्यादि अंगों का निर्माण होता है।
III. गर्भस्थ शिशु की अवस्था - यह अवस्था 8 सप्ताह से लेकर जन्म तक रहती है अर्थात् 2 माह से 9 माह तक रहती है। ध्यान रहे गर्भावस्था में शिशु को पीड़ा का अनुभव नहीं होता है और उसका विकास सिर से पैर की ओर होता है। जन्म से पूर्व शिशु को गन्ध का अनुभव नहीं होता है लेकिन गर्भावस्था के तीसरे माह में शिशु की स्वाद इन्द्रियों (मुख, नाक, कान, गला आदि) का विकास प्रारम्भ हो जाता है।
गर्भावस्था की अवधि सामान्यतया 270-280 दिन या 9 माह 10 दिन की होती है।
2. शैशवावस्था (INFANCY) (0-6 वर्ष तक)
जन्म से 6 वर्ष की अवस्था शिशु अवस्था कहलाती है। यह वालक का भावी जीवन की आधारशिला का काल होता है इस अवस्था में उचित निर्देशन व निरीक्षण से भावी जीवन का उचित व उत्तम विकास किया जा सकता है। 20वीं शताब्दी में शिशु पर सर्वाधिक अनुसंधान होने से क्रो एवं क्रो ने 20वीं शताब्दी को 'शिशु/बालक की शताब्दी' कहा है।
शैशवावस्था की विशेषताएं -
1. स्वार्थी व स्वकेन्द्रित
2. खिलौनों की अवस्था
3. आत्म-प्रेम की भावना
4. मूल प्रवृत्यात्मक व्यवहार
5. कल्पना जगत में विचरण
6. अतार्किक चिन्तन की अवस्था
7. संस्कारों के विकास की आयु
8. जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण काल
9. नैतिकता का अभाव
10. सीखने का आदर्शकाल
11. भावी जीवन की आधारशिला
12. अनुकरण द्वारा सीखने की अवस्था
13. क्षणिक संवेग की अवस्था
14. सीखने का स्वर्ण काल
15.. सामाजिक भावना का अभाव
16. उत्तम शिक्षण विधियाँ (किण्डरगार्टन, खेल व मॉण्टेसरी विधि)
17. शारीरिक (वालकों का सर्वाधिक शारीरिक विकास इसी अवस्था में) व
मानसिक विकास की गति सर्वाधिक
18. जन्म के समय शिशु में कोई संवेग नहीं होता है। वह केवल उत्तेजना
का अनुभव करता है।
19. सिगमण्ड फ्रायड के अनुसार शैशवावस्था में काम प्रवृत्ति होती है।
20. जन्म के 30 घण्टे तक शिशु की नेत्र इन्द्रियाँ कार्य नहीं करती हैं।
21. प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक वैलेंटाइन ने इस अवस्था को सीखने का आदर्श काल कहा है, तो प्रसिद्ध दार्शनिक रूसो का मानना है कि बालक के
हाथ-पैर व नेत्र उसके प्रारम्भिक शिक्षक होते हैं।
22. शैशवावस्था में बालक में सभी संवेग विकसित हो चुके होते हैं, लेकिन इस अवस्था के बालक में भय संवेग सर्वाधिक सक्रिय रहता है।
उदाहरण 1. वालक को जैसा सिखाएँगे वह वैसा ही सीखेगा। जैसे परिवार के सदस्य होंगे, वह वैसा ही करेगा, चहे वह सही हो या गलत अर्थात् अनुकरण की प्रवृत्ति पाई जाती है।
उदाहरण 2. घर पर किसी के आने पर भी अगर उसे रोना है, तो भी वह रोयेगा ही और अपनी माँ की गोद में किसी अन्य बच्चे को नहीं बैठने देगा अर्थात् नैतिकता का भाव नहीं होता है।
उदाहरण 3. वालक अपनी स्वयं की वस्तु को किसी को नहीं देता व उसे अपने पास ही रखता है अर्थात् उसमें स्वार्थी व स्वकेन्द्रीयता का भाव निहित होता है।
उदाहरण 4. बालक कल्पना में खोया रहता है परियों तथा जादूगरों की कल्पनाएँ करता रहता है कि काश मेरे पास भी एक परी होती जिससे मैं जादू करवाकर अपनी इच्छा पूर्ति कर लूँ अर्थात् कल्पना जगत का विचरण करता रहता है।
उदाहरण 5. बालक में जितने अच्छे संस्कार या ज्ञान हम उसे सिखाना चाहें उतना इस आयु में सिखा सकते हैं क्योंकि अभी वह सीखने में रुचि रखता है, इसलिए शीघ्रता से सीख जाता है। इसलिए इस आयु को सीखने का स्वर्ण काल कहा जाता है।
परिभाषाएँ
फ्रायड के अनुसार, "मनुष्य को जो कुछ बनना है वो 4-5 वर्षों में बन जाता है।"
वेलेण्टाइन के अनुसार, "शैशवावस्था सीखने का आदर्श काल है।"
गुडएनफ के अनुसार, "व्यक्ति का जितना भी मानसिक विकास होता है, उसका आधा तीन वर्ष की आयु तक हो जाता है।"
न्यूमैन के अनुसार, "5 वर्ष की अवस्था मस्तिष्क के लिए बहुत ग्रहणशील होती है।"
जॉन लॉक के अनुसार, "बालक का मस्तिष्क कोरी स्लेट है। यह उस पर अपने अनुभव लिखता है।"
ब्रिजेस के अनुसार, "2 वर्ष तक की उम्र तक बालक में लगभग सभी संवेगों का विकास हो जाता है।"
ध्यातव्य रहे- माता के गर्भ से बाहर आने पर शिशु बाहरी वातावरण के अनुकूल न होने से बीमार हो सकता है इसलिए इसे अधिगम कठिनाई काल कहा जाता है। इसे बाहरी वातावरण हवा, धूप, धूल-मिट्टी आदि की आदत नहीं होती। बालक का जन्म के समय का वजन लगभग 7 दिन तक घटता रहता है, जब वह वातावरण के अनुकूल हो जाता है, तत्पश्चात् उसका वजन पुनः बढ़ने लग जाता है।
3. बाल्यावस्था (CHILDHOOD) (6-12 वर्ष तक )
वाल्यावस्था जन्म के बाद मानव विकास की दूसरी अवस्था है जो शैशवावस्था की समाप्ति के उपरान्त प्रारम्भ होती है। यह अवस्था वालक की आदतों, व्यवहार, रुचि व इच्छाओं के आकार निर्धारण का काल होता है।
मनोवैज्ञानिक कॉल एवं ब्रश ने वाल्यावस्था को जीवन का अनोखा काल कहा है क्योंकि इस काल के 6वें वर्ष में बालक उग्र, सातवें वर्ष में उदासीन व अकेलेपन का गुण, नवें वर्ष में समूह भावना की प्रवलता एवं बाद के वर्षों में रोमांचक कार्यों की ओर झुकाव दर्शाता है। इस अवस्था में बालक व्यक्तिगत तथा सामाजिक व्यवहार करना सीखना प्रारम्भ करता है तथा उसकी औपचारिक शिक्षा का प्रारम्भ भी इसी अवस्था में होता है।
बाल्यावस्था की विशेषताएं
1. जीवन का अनोखा काल (कॉल एवं ब्रश ने कहा)
2. जीवन का निर्माणकारी काल (सिगमण्ड फ्रायड ने कहा)
3. प्रतिद्वन्द्वात्मक समाजीकरण का काल (किलपैट्रिक ने कहा)
(सर्वाधिक सामाजिक विकास)
4. छद्म/मिथ्या परिपक्वता का काल (रॉस ने कहा)
5. वैचारिक अवस्था का काल
6. शिक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण काल
7. यथार्थवादी दृष्टिकोण
8. नेता बनने की इच्छा
9. समलिंगीय समूह भावना
10. खेल की आयु (Game Age)
11. समूह/दल/टोली (Gang Age) की आयु
12. प्रारम्भिक विद्यालय की आयु
13. बिना काम के भ्रमण (घूमने) की प्रवृत्ति
14. बहिर्मुखी स्वभाव
15. संग्रह करने की प्रवृत्ति/संचय करने की प्रवृत्ति
16. नैतिक गुणों का विकास
17. कल्पनाशक्ति एवं अमूर्त चिन्तन के प्रारम्भ का काल
18. शारीरिक व मानसिक विकास में स्थिरता
19. रचनात्मक कार्यों में आनन्द अर्थात् बालक में सृजनशीलता के गुण पाये जाते हैं।
20. मूर्त (प्रत्यक्ष) चिन्तन की अवस्था
21. बाल्यावस्था में बालक में सबसे कम कामुकता पायी जाती है एवं बालक भयमुक्त रहता है।
परिभाषाएँ
क्रो एण्ड क्रो के अनुसार, "जब बालक 6 वर्ष का हो जाता है, तब उसकी
मानसिक योग्यताओं का लगभग पूर्ण विकास हो जाता है।"
रॉस के अनुसार, "बाल्यावस्था मिथ्या परिपक्वता का काल है।"
स्ट्रंग के अनुसार, "ऐसा शायद ही कोई खेल हो जिसे दस वर्ष के बालक न खेलते हों।"
उदाहरण 1. लड़का-लड़के के साथ और लड़की लड़की के साथ खेलना व रहना पसन्द करते हैं। इस अवस्था में समलैंगिक भावना अधिक रहती है।
उदाहरण 2. बालक इस अवस्था में स्वयं को परिपक्व या समझदार दिखाने की कोशिश करता है इसलिए इसे मिथ्या परिपक्वता काल कहा जाता है।
उदाहरण 3. लड़के पुराने सिक्के, काँच की गोलियाँ आदि एकत्रित करते हैं तथा लड़कियाँ गुड़िया, कलर, चूड़ियाँ आदि एकत्रित करती हैं अर्थात् इस आयु में
बालक में संग्रह की प्रवृत्ति पाई जाती है।
उदाहरण 4. सरकार ने भी विद्यालय की प्रारम्भिक आयु 6 वर्ष मानी है इसलिए सही मायनों में प्रारम्भिक विद्यालय की आंयु बाल्यावस्था कहलाती है।
नोट - पूर्व प्राथमिक विद्यालय की आयु 3-6 वर्ष अर्थात् शैशवावस्था होती है।
4. किशोरावस्था (ADOLESCENCE) (12-18 वर्ष तक)
'Adolescence' शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द Adolecere से हुई है जिसका अर्थ है परिपक्वता की ओर बढ़ना। स्टेनली हॉल ने Adolescence (एडोलेसेन्स) नामक पुस्तक 1904 में प्रकाशित की। इस पुस्तक में उन्होंने लिखा है कि किशोर में जो भी परिवर्तन दिखाई देते हैं वे. अचानक होते हैं और उनका पूर्व अवस्थाओं से कोई सम्बन्ध नहीं होता है। स्टेनली हॉल ने अपने आकस्मिक विकास के सिद्धान्त के पक्ष में एक और पुनरावृत्ति का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। अतः इनका सिद्धान्त सर्वश्रेष्ठ माना गया। इसी कारण स्टेनली हॉल को किशोरावस्था का जनक माना जाता है।
बाल्यावस्था व युवावस्था के मध्य का काल किशोरावस्था कहलाता है। इस काल में बालक परिपक्वता की ओर संक्रमण (प्रवेश) करते हैं अतः किशोरावस्था वह अवस्था है जिसमें बालक परिपक्वता की ओर अग्रसर होता है तथा जिसकी समाप्ति पर वह पूर्ण परिपक्व व्यक्ति बन जाता है।
(1) पूर्व किशोरावस्ता/वयः सन्धि- 11 से 15 वर्ष इसे द्रुत एवं तीव्र विकास का काल, अटपटे व समस्याओं की आयु, तूफान व उलझन की अवस्था कहते हैं।.
पूर्व किशोरावस्था/टीन एज/एज ऑफ ब्यूटी
1. लड़कों की अपेक्षा लड़कियों का विकास तीव्र ।
2. लड़कियों की लम्बाई, आवाज कोमल सुरीली, बगल व गुप्तांगों पर बाल तथा 12-14 वर्ष में मासिक धर्म आना शुरू हो जाता है। शारीरिक एवं मानसिक विकास बाल्यावस्था की उपेक्षा अधिक तीव्र गति से होता है।
3. लड़कों में विकास 14 वर्ष के बाद तीव्र गति से होता है।
4. बालक का बिगड़ना व सुधरना इसी काल पर निर्भर होता है।
5. यह अवस्था बाल्यावस्था के अन्त होने से पहले व किशोरावस्था के शुरू होने के उपरान्त खत्म हो जाती है।
(2) उत्तर किशोरावस्था 17 से 19 वर्ष ।
स्मरणीय तथ्य
1. नये जन्म का काल (स्टेनले हॉल ने कहा)
2. परिवर्तन का काल (सर्वाधिक शारीरिक परिवर्तन)
3. दबाव, तूफान, संघर्ष एवं तनाव का काल (स्टेनले हॉल ने)
4. जीवन का सबसे कठिन काल
5. संक्रमण तथा परिवर्ती अवस्था
6. विशिष्टता की खोज का समय
7. आकस्मिक/त्वरित की आयु
8. स्वर्णकाल (Golden Age)
9. बसन्त ऋतु
10. समायोजन का अभाव
11. देशभक्ति की भावना
12. संवेग अस्थिर
13. वीर पूजा की प्रवृत्ति
14. चहुँमुखी विकास अर्थात् शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व संवेगात्मक विकास
15. व्यवसाय चुनाव की चिन्ता
16. कल्पना का बाहुल्य व दिवास्वप्न की प्रवृत्ति
17. सर्वाधिक काम प्रवृत्ति एवं सर्वाधिक विषम लैंगिक आकर्षण (बालक- बालिका विपरीत लिंगों में रुचि)
18. तार्किक चिन्तन/अमूर्त चिन्तन की अवस्था
19. पीढ़ियों में अन्तर के कारण विचारों में मतभेद
20. समस्याओं की आयु व उलझन की अवस्था
21. समाजसेवा की भावना (इस अवस्था में बालक अपने द्वारा किये गये सामाजिक कार्यों की सामाजिक स्वीकृति चाहता है)।
परिभाषाएँ
स्टेनली हॉल के अनुसार, "किशोरावस्था बड़े संघर्ष, तनाव, तूफान व विरोध की अवस्था है।"
रॉस के अनुसार, "किशोर समाज सेवा के आदर्शों का निर्माण व पोषण करते हैं।"
वेलेण्टाइन के अनुसार, "किशोरावस्था अपराध प्रवृत्ति के विकास का नाजुक समय है।"
किलपैट्रिक के अनुसार, "किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है।" क्रो एवं क्रो के अनुसार, "किशोर ही वर्तमान की शक्ति और भावी आशा को प्रस्तुत करता है।"
जरशील्ड के शब्दों में, "किशोरावस्था वह समय है जिसमें विचारशील व्यक्ति बाल्यावस्था से परिपक्वता की ओर संक्रमण करता है।"
कोल व ब्रश के अनुसार, "किशोरावस्था के आगमन का मुख्य बिह संवेगात्मक विकास में तीव्र परिवर्तन है।" किशोरावस्था, शैशवावस्था की पुनरावृत्ति का काल है।"
जॉन्स के अनुसार, " हैडो कमेटी के अनुसार, "ग्यारह या बारह वर्ष की आयु में बालक की नसों में ज्वार उठना प्रारम्भ हो जाता है, इसे किशोरावस्था के नाम से पुकारा जाता है। यदि इस ज्वार का समय पहले उपयोग कर लिया जाए और इसकी शक्ति तथा धारा के साथ-साथ नई यात्रा आरम्भ कर दी जाए तो सफलता प्राप्त की जा सकती है।”
उदाहरण 1. इस अवस्था में बालक में देशभक्ति की भावना जोर-शोर से रहती है क्योंकि संवेग जल्दी उत्पन्न होते हैं तथा जल्दी ही स्वतः खत्म हो जाते हैं। इस अवस्था में संवेग अस्थिर होते हैं।
उदाहरण 2. इस अवस्था में बालक किसी प्रसिद्ध व्यक्ति या विद्वान् को अपना आदर्श मानता है तथा उसकी जैसे ही अपने-आपको ढालने की कोशिश करता है अर्थात् वीर पूजा का भाव विद्यमान होता है।
उदाहरण 3. कुछ बालक विशिष्ट दिखने के लिए अलग-अलग हेयर स्टाइल व वेशभूषा का चयन करते हैं; जैसे बालों में फलों की आकृति (अनन्नास, ऐप्पल), अलग-अलग कलर करना, पशु-पक्षियों की आकृति में बाल कटवाना अर्थात् विशिष्ट दिखने का भाव विद्यमान रहता है।
उदाहरण 4. इस आयु में कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जो मन को बहुत अच्छी लगती हैं। जैसे- किसी लड़की को पसन्द करना तथा उसे जीवन-साथी के रूप में चुनने की सोचना। उसके साथ घूमना-फिरना अर्थात् उसके लिए यह बसन्त ऋतु के समान ही होता है।
उदाहरण 5. इस आयु में बालक को व्यवसाय की चिन्ता, शादी की चिन्ता, जीवन-साथी की चिन्ता आदि होती हैं इसलिए इस आयु को समस्याओं की आयु या उलझन की आयु कहते हैं।
ध्यातत्य रहे- शारीरिक विकास में सबसे पहले नाड़ी संस्थान (Nervous System) का विकास होता है। वयः संन्धि में शारीरिक वृद्धि की गति पुनः एक बार तीव्र हो जाती है इसलिए इसे 'Puberty Growth Spurt' भी कहते हैं।
किशोरावस्था के विकास के सिद्धान्त
(PRINCIPLES OF DEVELOPMENT OF
ADOLESCENCE):-
1. त्वरित विकास का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के समर्थक स्टेनरी हॉल हैं। इनके अनुसार शैशवावस्था व बाल्यावस्था में अचानक कोई परिवर्तन नहीं होते जबकि किशोरावस्था में जो भी परिवर्तन होते हैं, वो अकस्मात् होते हैं।
2. क्रमिक विकास का सिद्धान्त :- इस सिद्धान्त के समर्थक थॉर्नडाइक व हॉलिंगवर्थ हैं। इनके अनुसार किशोरावस्था में जो भी परिवर्तन होते हैं वो एकदम न होकर धीरे-धीरे क्रमानुसार होते हैं।
विकास को प्रभावित करने वाले कारक (FACTORS AFFECTING DEVELOPMENT)
विकास को अनेक कारक प्रभावित करते हैं। इनमें से कुछ कारक स्वतन्त्र रूप से शारीरिक विकास को प्रभावित करते हैं तथा कुछ कारकों की पारस्परिक अन्तः क्रियाएँ शारीरिक विकास को प्रभावित करती हैं। इसी प्रकार से कुछ कारक स्वतन्त्र रूप से बालक के मानसिक विकास को प्रभावित करते हैं तथा कुछ कारकों की पारस्परिक अन्तः क्रियाएँ बालकों के मानसिक विकास को प्रभावित करती हैं। कुछ प्रमुख कारक इस प्रकार से हैं-
1. वंशानुक्रम (Heredity) -
डिंकमेयर (D. C. Dinkmeyer, 1965) केअनुसार, “वंशानुगत कारक वे जन्मजात विशेषताएँ हैं, जो बालक में जन्म के समय ही पाई जाती हैं। प्राणी के विकास में वंशानुगत शक्तियाँ प्रधान तत्त्व होने के कारण प्राणी के मौलिक स्वभाव और उनके जीवन चक्र की गति को नियन्त्रित करती हैं। इन वंशानुक्रम तत्त्वों को प्राणी की संरचना और क्रियात्मकता से सम्बन्धित सम्पत्ति और ऋण समझना चाहिए, क्योंकि इन्हीं तत्त्वों की सहायता से प्राणी अपने विकास की जन्मजात तथा अर्जित क्षमताओं का उपयोग कर पाता है। प्राणी का रंग, रूप, लम्बाई, अन्य शारीरिक विशेषताएँ, बुद्धि, तर्क, स्मृति तथा अन्य मानसिक योग्यताओं का निर्धारण वंशानुक्रम द्वारा ही होता है। वंशानुक्रम का प्रभाव जीवन के प्रारम्भ के समय अर्थात् गर्भाधान के समय ही नहीं पड़ता है बल्कि इसका प्रभाव जीवन पर्यन्त रहता है। माता के रज और पिता के वीर्य कणों में बालक का वंशानुक्रम निहित होता है। गर्भाधान के समय Genes भिन्न-भिन्न प्रकार से संयुक्त होते हैं। ये जीन्स ही वंशानुक्रम के वाहक हैं। अतः एक ही माता-पिता का सन्त में भिन्नता दिखाई देती है, यह भिन्नता का नियम (Law of Variation) है। प्रतिगमन के नियम (Law of Regression) के अनुसार, प्रतिभाशाली माता-पिता की सन्तानें दुर्बल-बुद्धि हो सकती हैं।
2. वातावरण (Environment)
वातावरण में ये सभी बाह्य शक्तियाँ, प्रभाव, परिस्थितियाँ आदि सम्मिलित हैं, जो प्राणी के व्यवहार, शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित करती हैं। भौतिक तथा मनोवैज्ञानिक दोनों प्रकार का वातावरण बालक या व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित करता है। अन्य क्षेत्रों के वाचावरण की अपेक्षा बालक के घर का वातावरण उसके विकास को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करता है।
3. आहार (Nutrition) :-
माँ का आहार गर्भकालीन अवस्था के शिशु के विकास को प्रभावित करता है। माँ का आहार जितना ही अधिक पौष्टिक होता है, उतनी ही बालक के स्वस्थ उत्पन्न होने की सम्भावना होती है। माँ का आहार बालक के विकास को जन्म के उपरान्त उस समय तक भी प्रभावित करता है जब तक बालक स्तनपान करता है। इसके बाद बालक स्वयं जो आहार ग्रहण करता है, वह भी बालक के विकास को प्रभावित करता है। आहार की मात्रा की अपेक्षा आहार में विद्यमान तत्त्व बालक के विकास को अधिक महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हैं।
4. रोग (Diseases)-
शारीरिक बीमारियाँ भी बालक के शारीरिक और मानसिक विकास को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करती हैं। बाल्यावस्था में यदि कोई बालक अधिक दिनों तक बीमार रहता है तो उसका शारीरिक और मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। यदि इसका उपयुक्त ढंग से उपचार नहीं किया जाता है तो विकास की यह अवरुद्धता प्रौढ़ावस्था तक अपना प्रभाव छोड़ती है। जिन बालकों का सामान्य स्वास्थ्य बना रहता है और जिन्हें बीमारियाँ कम-से-कम होती हैं, उनका शारीरिक और मानसिक विकास प्रायः सामान्य गति से चलता है।
5. अन्तः स्त्रावी ग्रन्थियाँ (Endocrine Glands):- बालक के अन्दर पाई जाने वाली ग्रन्थियों से जो स्राव निकलते हैं, वे बालक के शारीरिक और मानसिक विकास तथा व्यवहार को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हैं। पैराथॉइराइड ग्रन्थि से जो स्राव निकलता है, उस पर हड्डियों का विकास निर्भर करता है। साथ-ही- साथ दाँतों का विकास भी इस ग्रन्थि से सम्बन्धित होता है। बालक के संवेगात्मक व्यवहार और शान्तचित्तता को भी इस ग्रन्थि का स्राव प्रभावित करता है। बालक की लम्बाई का सम्बन्ध थॉइराइड ग्रन्थि के स्त्राव से होता है। पुरुषत्व के लक्षणों: जैसे-दाढ़ी, मूँछ और पुरुषों जैसी आवाज तथा नारी के लक्षणों का विकास जनन ग्रन्थियों (Gonad Glands) पर निर्भर करता है।
6. बुन्द्रि (Intelligence)- बालक की बुद्धि भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है जो बालक के शारीरिक और मानसिक विकास को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि तीव्र बुद्धि वाले बालकों का विकास मन्द बुद्धि वाले बालकों की अपेक्षा तीव्र गति से होता है। दुर्बल बुद्धि बालकों में बैठना, चलना, बोलना, दौड़ना तथा अन्य कौशलों का विकास तीव्र बुद्धि बालकों की अपेक्षा मन्द गति से होता है तथा विभिन्न विकास प्रतिमान अपेक्षाकृत अधिक आयु स्तरों पर पूर्ण होते हैं।
7. यौन (Sex)- यौन-भेदों का भी शारीरिक और मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। जन्म के समय लड़कियाँ लड़कों की अपेक्षा कम लम्बी उत्पन्न होती हैं परन्तु वयः सन्धि अवस्था के प्रारम्भ होते ही लड़कियों में परिपक्वता के लक्षण लड़कों की अपेक्षा शीघ्र विकसित होने लगते हैं। लड़कों की अपेक्षा लड़कियों का मानसिक विकास भी कुछ पहले पूर्ण हो जाता है। इस प्रकार के अध्ययन परिणामों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यौन का भी शारीरिक और मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ता है।
अधिगम का अर्थ और परिभाषा (Meaning and Definition of Learning):-
अधिगम अर्थात् सीखना एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है।
मनोवैज्ञानिकों ने इसे एक मानसिक प्रक्रिया माना है जो जीवनभर चलती रहती है।
इसमें बालक परिपक्वता की ओर बढ़ता है। वह अपने अनुभवों एवं प्रशिक्षणों से लाभ उठाकर स्वाभाविक व्यवहार या अनुभूति में प्रगतिशील परिवर्तन तथा परिमार्जन करता है। इसे ही अधिगम कहते हैं।
उदाहरण - एक बालक का आग से जलकर, दोबारा उसके पास न जाना अधिगम की प्रक्रिया है।
वच्चे द्वारा केला या आम छीनना स्वाभाविक (Instinctive) क्रिया है। हाथ फैलाकर आम माँगना सीखी हुई क्रिया है।
अधिगम की विशेषताएँ (Characteristics of Learning)
• अधिगम का अर्थ सीखने की प्रक्रिया है जो हमेशा चलती रहती है।
• सामान्यतः व्यवहार में परिवर्तन को अधिगम कहते हैं। इसके द्वारा बालक अपने आस-पास घट रही घटनाओं को समझा पाता है।
• किसी विषय को रटकर याद कर लेने को अधिगम या सीखना नहीं कहा जा सकता है।
• बच्चे स्वभाव से ही सीखने के प्रति उत्सुक रहते हैं।
• यदि वालकं शुरू में सीखने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हो तो उसे नहीं पढ़ाना चाहिए। यह बाद में उसके सीखने की प्रवृत्ति को प्रभावित करता है। वे बहुत से तथ्य भले ही याद कर लें परन्तु इससे उन्हें तथ्यों को अपने आस-पास के परिवेश से जोड़ने में कठिनाई होती है।
•बालक विद्यालय एवं घर, दोनों ही स्थान पर सीखता है। यदि इन दोनों स्थानों पर सीखने के बीच सह-सम्बन्ध हो तो सीखने की प्रक्रिया मजबूत होती है।
• सीखने में सामाजिक सन्दर्भ तथा संवाद की विशेष भूमिका होती है। बालक अपने परिवेश में सुनकर तथा लोगों के व्यवहार को देखकर भी सीखता है। इसके द्वारा उसके संज्ञानात्मक विकास को बल मिलता है।
• बालक अवधारणाओं को परीक्षा के बाद भूल न जाएँ इसके लिए सीखने की उचित गति को अपनाना चाहिए।
• सीखने या अधिगम की प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण तथा विविधतापूर्ण होनी चाहिए। इससे बालक की सीखने के प्रति रुचि बनी रहती है।
परिभाषाएँ (Definitions):-
जे. पी. गिलफोर्ड के अनुसार, "व्यवहार के कारण व्यवहार में परिवर्तन ही अधिगम है।"
गेट्स के अनुसार, "अनुभवों तथा प्रशिक्षणों द्वारा अपने व्यवहार का संशोधन तथा परिमार्जन करना ही अधिगम है।"
स्किनर के अनुसार, "प्रगतिशील व्यवहार एवं व्यवस्थापन की प्रक्रिया को अधिगम कहते हैं।"
अधिगम के प्रकार (Types of Learning)
1. ज्ञानात्मक अधिगम- यह वौद्धिक विकास तथा ज्ञान अर्जित करने की समस्तं क्रियाओं में प्रयुक्त होता है। ज्ञांनात्मक अधिगम तीन प्रकार के होते हैं- प्रत्यक्षात्मक, प्रत्ययात्मक तथा साहचर्यात्मक ।
(i) प्रत्यक्षात्मक सीखना बालक जब किसी वस्तु को देखकर, सुनकर या स्पर्श करके ज्ञान प्राप्त करता है, तो उसे प्रत्यक्षात्मक सीखना कहते हैं। यह प्रक्रिया मुख्यतः शैशवावस्था एवं बाल्यावस्था में देखी जाती है।
(ii) प्रत्ययात्मक सीखना- बालक जव साधारण ज्ञान या अनुभव प्राप्त कर लेता है तो वह तर्क चिन्तन और, कल्पना के आधार पर सीखने लगता है। इस प्रकार वह अनेक अमूर्त बातें सीख जाता है। इस प्रकार से सीखने की प्रक्रिया को प्रत्ययात्मक सीखना कहते हैं।
(iii) साहचर्यात्मक सीखना- जब पुराने ज्ञान तथा अनुभव के द्वारा
किसी तथ्य को सीखा जाता है तो उसे साहचर्यात्मक सीखना कहते हैं।
2. भावात्मक अधिगम- इस प्रकार के अधिगम का सम्बन्ध ज्ञान व कौशल से नहीं होता है। इसका सम्बन्ध बालक के कोमल भावों या मनोभावनाओं से होता है। इस अधिगम द्वारा बालक किसी चालू के देखकर, किसी आवाज को सुनकर या किसी लुभावन रंगको विखेरकर आनन्द की अनुभूति करता है। इस अधिगम प्रक्रिया में यह आवश्यक है कि बच्चों की रुचि को ध्यान में रखा आए।
3. क्रियात्मक अधिगम:- इस अधिगम प्रक्रिया द्वारा कला पर्व हस्तशिल् निपुणता प्राप्त की जाती है। संगीत, नृत्य, मॉडल बनाना, डाईग कौशल क्रियात्मक अधिगम के अन्तर्गत आते हैं।
अधिगम के चरण क्रमशः इस प्रकार से हैं-तैयारी, उद्देश्य, प्रस्तुतीकरण, अभ्यास, शुद्धिकरण तथा पुनः अभ्यास ।
विकास और अधिगम का सम्बन्ध (Relation of Learning and Development)
अधिगम अर्थात् सीखने की प्रक्रिया, बच्चे या शिक्षार्थी के शारीरिक विकास के विभिन्न चरणों से प्रभावित होती है। शारीरिक विकास के अनुसार ही शिक्षार्थी का मानसिक तथा संज्ञानात्मक विकास होता है।
1. शैशवावस्था तथा अधिगम (Childhood and Learning)
• गर्भावस्था किसी बच्चे के विकास की पहली अवस्था और शैशवावस्था दूसरी अवस्था होती है। जन्म से 3 वर्ष तक बच्चे का शारीरिक एवं मानसिक विकास तेजी से होता है। जन्म से लेकर 6 वर्ष तक अर्थात् शैशवावस्था में बच्चा देख- सुनकर सीखता है। गेसल के अनुसार, "शैशवावस्था में बच्चा बाद के 12 वर्षी की तुलना में दोगुना सीख लेता है।
• बच्चे का विकास, अनुसरण एवं सीखी हुई बातों को दोहराने से होता है, इसलिए शिक्षक एवं माता-पिता दोहराने पर जोर देते हैं।
• इस काल में बच्चे का भार एवं लम्बाई बढ़ती है और उसके अनुसार ही वं चलना एवं सन्तुलन स्थापित करना सीखते हैं।
• बच्चों में ध्यान, कल्पनाशीलता एवं संवेदना जैसी मानसिक क्रियाओं का विकास शैशवावस्था में ही होता है। वे किसी बात पर बुरा मानना, गुस्सा करनां इसी समय सीखते हैं। इस समय उनमें हर बात को जानने की जिज्ञासा होती है और वे बहुत सवाल करते हैं।
• मनोवैज्ञानिक थॉर्नडाइक के अनुसार, इस समय बच्चा किसी भाषा को सहज ही सीख सकता है। इस अवस्था को शिक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
• 2 से 5 वर्ष में, शिशु में सामाजिक भावना का विकास होता है और वे अपने परिवार के प्रति लगाव रखने लगता है तथा छोटे भाई या बहन की सुरक्षा करने लगता है।
2. बाल्यावस्था तथा अधिगम (Infancy and Learning)
• बाल्यावस्था में बालक के व्यक्तित्व का निर्माण होता है। 6 से 12 वर्ष की अवस्था को बाल्यावस्था माना जाता है। इस अवस्था में बालक के भार एवं लम्बाई दोनों में गुणात्मक वृद्धि होती है।
• इस समय बालक शैशवावस्था की तुलना में वास्तविकता की ओर अधिक आकर्षित होता है और उस वस्तु या परिदृश्य के बारे में जानना चाहता है।
• इस अवस्था में बालक के चिन्तन एवं तर्क शक्तियों का विकास होता है और वह पढ़ने के प्रति रुचि दिखाने लगते हैं। शैशवावस्था की तुलना में उनके सीखने की गति कम हो जाती है परन्तु सीखने का क्षेत्र बड़ा होता जाता है।
• स्ट्रेंग के अनुसार, इस आयु में बच्चों को सिखाने के लिए अलग-अलग विधियों का प्रयोग करना चाहिए। इस अवस्था में वे भाषा सीखने के लिए रुबि दर्शाते हैं।
• बर्ट के अनुसार, इस आयु में बच्चों के बीच आवारागर्दी, बिना छुट्टी के स्कूल छोड़ने की प्रवृत्ति पायी जाती है।
• रॉस ने इस अवस्था को 'मिथ्या-परिपक्वता' का समय कहा है। उनके अनुसार इस समय बालकों में थोड़ी परिपक्वता आ जाती है परन्तु वे स्वयं को वयस्क समझने लगते हैं।
• कोल एवं ब्रूस के अनुसार, "बाल्यावस्था, संवेगात्मक विकास का अनोखा काल है।"
• इस अवस्था में बच्चों को अच्छे-बुरे का ज्ञान होने लगता है और वे सामाजिक मूल्यों जैसे ईमानदारी, सौम्यता सीखने लगते हैं।
• बालकों में सामूहिक प्रवृत्ति बढ़ने लगती है और वे अपना समय दूसरे बच्चों के साथ बिताना पसन्द करने लगते हैं।
• बालक अपने संवेग जैसे गुस्सा करने या रोनें पर नियन्त्रण रखना सीखने लगते हैं।
• 9 वर्ष के बाद उसके शारीरिक एवं मानसिक विकास में स्थिरता आ जाती है जिससे उसकी शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों में सुदृढ़ता आती है और वे पढ़ने के प्रति अधिक आकर्षित होते हैं।
3. किशोरावस्था तथा अधिगम (Adolescence and Learning)
• बाल्यावस्था के बाद की अवस्था अर्थात् 12 से 18 वर्ष तक की अवस्था को किशोरावस्था कहते हैं।
• इस अवस्था में बालकों में मानसिक, शारीरिक, सामाजिक एवं संवेगात्मक बदलाव होते हैं। इसे बालक के जीवन में परिवर्तन काल भी माना जाता है।
• इस अवस्था में लड़कों की तुलना में लड़कियों की लम्बाई तथा भार में अधिक वृद्धि देखी जाती है।
• इसी काल में प्रजनन अंग विकसित होते हैं और बुद्धि का पर्ण विकास हो जाता है।
• शारीरिक विकास का प्रभाव बालक के सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर पड़ता है। पूरी जानकारी के अभाव में किशोर कई यौन रोगों तथा यौन- दुर्व्यवहार के शिकार बन जाते हैं।
• इस अवस्था में बालक के मस्तिष्क का सभी दिशाों में विकास होता है। उनकी कल्पनाशीलता का विकास, सोचने-समझने तथा तर्क करने की शक्ति का विकास और विरोधी मानसिक दशाओं का विकास होता है। किशोर बालक कई प्रकार के संवेगों जैसे प्रेम, नफरत से संघर्ष करता है जिसकी वजह से उसकी सीखने की प्रक्रिया में बाधा खड़ी हो जाती है।
• रॉस के अनुसार, "किशोर समाज-सेवा के आदर्शों का निर्माण करने में भूमिका निभाता है।"
• ब्लेयर, जोन्स एवं सिम्पसन के अनुसार, "किशोर महत्त्वपूर्ण बनना, अपने समूह में स्थित रहना तथा श्रेष्ठ व्यक्ति के रूप में पहचान बनाना चाहता है।"
विकास के विभिन्न आयाम तथा उनका अधिगम से सम्बन्ध (Various Dimensions of Development and its Relation with Learning)
शारीरिक विकास - शारीरिक विकास की प्रक्रिया, वालक के व्यक्तित्व निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
मानसिक विकास - मानसिक विकास या संज्ञानात्मक विकास वालक को सीखने के क्रम में हो रहे परिवर्तनों के साथ समायोजन स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भाषायी विकास - भाषायी विकास किसी बालक को अपने सहपाठियों एवं शिक्षक के साथ सह-सम्वन्ध स्थापित करने में सहायता देता है। जैसे एक वालक अपने घर में मातृभाषा सीखता है परन्तु स्कूल में द्वितीय भाषा सीखता है। सामाजिक विकास - सामाजिक विकास किसी वालक को ईमानदारी, परम्परा जैसे सामाजिक मूल्यों को सीखने में सहायक सिद्ध होता है।
सांवेगिक विकास - संवेग या भाव जैसे क्रोध, आश्चर्य, घृणा किसी वालक में विभिन्न शारीरिक एवं मनोदशा सम्बन्धी परिवर्तनों को जन्म देते हैं। अपने संवेगों पर नियन्त्रण रखना सीखकर वालक अपना विकास करते हैं।
मनोगत्यात्मक विकास - मनोगत्यात्मक विकास अर्थात् क्रियात्मक विकास बालक के शारीरिक विकास, स्वस्थ रहने तथा मानसिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके परिणामस्वरूप बालक आत्मविश्वास हासिल क्रता है जो कौशलों के विकास में सहायक होता है।
अभ्यास प्रश्न
1.भिन्न रूप से सक्षम बच्चे के लिए निम्न- लिखित में से कौन-सा सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है ?
(A) उसके व्यवहार को नियन्त्रित करना
(B) उसके ग्रेड में सुधार करना
(C) उसके कौशलों का संवर्द्धन करना
(D) उसकी पीड़ा को कम करना।
2. निम्नलिखित में से कौन-सा सूक्ष्म गतिक कौशल का उदाहरण है ?
(A) फुदकना
(B) दौड़ना
(C) लिखना
(D) चढ़ना।
3.किशोर... का अनुभव कर सकते हैं।
(A) जीवन के बारे में परितृप्ति के भाव
(B) दुश्चिन्ता और स्वयं से सरोकार
(C) बचपन में किये गये अपराधों के प्रति डर के भाव
(D) आत्मसिद्धि के भाव।
4.मानव-व्यक्तित्व परिणाम है -
(A) पालन-पोषण और शिक्षा का
(B) आनुवंशिकता और वातावरणं की अन्तः क्रिया का
(C) केवल वातावरण का
(D) केवल आनुवंशिकता का।
5. मानव विकास को क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है जो हैं -
(A) शारीरिक, संज्ञानात्मक, संवेगात्मक और सामाजिक
(B) संवेगात्मक, संज्ञानात्मक, आध्यात्मिक और सामाजिक-मनोवैज्ञानिक
(C) मनोवैज्ञानिक, संज्ञानात्मक, संवेगात्मक और शारीरिक
(D) शारीरिक, आध्यात्मिक, संज्ञानात्मक और सामाजिक ।
6. शिक्षार्थी वैयक्तिक भिन्नता करते हैं। अतः शिक्षक को -
(A) सीखने के विविध अनुभवों को उपलब्ध कराना चाहिए
(B) कठोर अनुशासन सुनिश्चित करना चाहिए
(C) परीक्षाओं की संख्या बढ़ा देनी चाहिए
(D) अधिगम की एकसमान गति पर बल देना चाहिए।
7. बच्चों के बौद्धिक विकास के चार भिन्न- भिन्न चरणों की पहचान किसके द्वारा की गयी ?
(A) स्किनर
(C) कोहलबर्ग
(B) पियाजे
(D) एरिक्सन ।
8. 'विकास एक कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया है।' यह विचार किससे सम्बन्धित हैं ?
(A) एकीकृत का सिद्धान्त
(B) अन्तःक्रिया का सिद्धान्त
(C) अन्तर-सम्बन्धों का सिद्धान्त
(D) निरन्तरता का सिद्धान्त।
9. शिशु प्रेम, भोजन, आराम और अधिगम की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ..... पर निर्भर होते हैं।
(A) स्कूल
(B) साथी समूह
(C) माता-पिता
(D) दादा-दादी ।
10. एक बालक की गतिविधियाँ उसकी वृद्धि के अनुसार हो जाती हैं।
(A) जटिल
(B) आरामदायक
(C) तनाव-रहित
(D) दवावयुक्त ।
11. स्तर पर बालक अपनी वास्तविक योग्यताओं को पहचानना शुरू कर देता है और उनकी तुलना दूसरों के कौशलों से भी करने लगता है।
(A) विद्यालय से पूर्व
(B) प्राथमिक विद्यालय
(C) माध्यमिक विद्यालय
(D) मध्यवयस्कावस्था ।
12. व्यक्तिगत रूप से शिक्षार्थी एक-दूसरे से भिन्न होते हैं -
(A) वृद्धि और विकास के सिद्धान्त
(B) विकास की दर
(C) विकास का क्रम
(D) विकास के लिए सामान्य क्षमता।
13. नाचना, लिखना, ड्राइविंग आदि कुछ उदाहरण हैं-
(A) शारीरिक विकास के
(B) गतिक विकास के
(C) सामाजिक विकास के
(D) भावनात्मक विकास के।
14. विकास की अवस्था में एक बालक आत्म-केन्द्रित होता है।
(A) शैशव
(B) प्रारम्भिक बाल्यकाल
(C) किशोरावस्था
(D) वयस्क ।
15. बुद्धि ज्ञान में पूर्व अधिगम और अनुभवों से प्राप्त होता है।
(A) क्रिस्टलीकृत
(B) तरल
(C) मानव
(D) सृजनात्मक ।
16. वृद्धि और विकास के बारे में गलत कथन की पहचान करें-
(A) वृद्धि मात्रात्मक बदलावों की ओर संकेत करती है जबकि विकास का सम्बन्ध गुणात्मक बदलावों से है
(B) वृद्धि वातावरण का कार्य है
(C) विकास के बिना वृद्धि सम्भव नहीं है और वृद्धि के बिना विकास सम्भव नहीं है
(D) वृद्धि आन्तरिक और अनुवांशिक कारकों द्वारा नियन्त्रित होती है।
17. बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास करने का सबसे अच्छा तरीका है-
(A) सुबह की सभा में नैतिक बातों पर भाषण देना
(B) विद्यार्थियों के लिए एक परिस्थिति सृजित करना और उन्हें निर्णय लेने के लिए कहंना
(C) शिक्षकों और वयस्कों द्वारा नैतिक मूल्यों का उदाहरण पेश करना
(D) विद्यार्थियों को नैतिक और अनैतिक के बारे में अन्तर बताना।
18. जब एक बावर्ची भोजन को चखकर देखता है, तो यह किसके समान है?
(A) अधिगम का मापन
(B) अधिगम के लिए मापन
(C) अधिगम के रूप में मापन
(D) मापन एवं अधिगम ।
19. निम्नलिखित में से कौन-सा बच्चों के संवेगात्मक विकास के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है ?
(A) अध्यापकों की कोई सहभागिता नहीं क्योंकि यह माता-पिता का कार्य है
(B) कक्षा-कक्ष का नियन्त्रित परिवेश
(C) कक्षा-कक्ष का अधिकारवादी परिवेश
(D) कक्षा-कक्ष का प्रजातान्त्रिक परिवेश।
20. एक वर्ष तक के शिशु जब आँख, कान व हाथों से 'सोचते' हैं, तो निम्नलिखित में से कौन-सा स्तर शामिल होता है ?
(A) मूर्त संक्रियात्मक स्तर
(B) पूर्व संक्रियात्मक स्तर
(C) इन्द्रियजनित गामक स्तर
(D) अमूर्त संक्रियात्मक स्तर।।
21. मानव विकास है।
(A) मात्रात्मक
(B) गुणात्मक
(C) कुछ सीमा तक अमानवीय
(D) मात्रात्मक और गुणात्मक दोमनों।
22. संज्ञानात्मक विकास निम्न में से किसके द्वारा, समर्थिक होता है ?
(A) जितना सम्भव हो उतनी आवृत्ति से संगत और सुनियोजित परीक्षाओं का आयोजन करना
(B) उन गतिविधियों को प्रस्तुत करना जो पारम्परिक पद्धतियों को सुदृढ़ बनाती हैं
(C) एक समृद्ध और विविधतापूर्ण वातावरण
उपलब्ध कराना
(D) सहयोगात्मक की अपेक्षा वैयक्तिक गतिविधियों पर अधिक ध्यान केन्द्रित करना।
23. परिपक्व विद्यार्थी -
(A) इस बात में विश्वास करते हैं कि उनके अध्ययन में भावनाओं का कोई स्थान नहीं है
(B) अपनी बौद्धिकता के साथ अपने सभी प्रकार के द्वन्द्वों का शीघ्र समाधान कर लेते हैं
(C) अपने अध्ययन में कभी-कभी भावनाओं की सहायता चाहते हैं
(D) कठिन परिस्थितियों में भी अध्ययन से विचलित नहीं होते हैं।
24. एक शिक्षिका पाठ को पूर्वपठित पाठ से जोड़ते हुए बच्चों को सारांश लिखना सिखा रही है। वह क्या कर रही है ?
(A) वह बच्चों की पाठ समझने की स्वशैली विकसित करने में सहायता कर रही है
(B) वह बच्चों को सम्पूर्ण पाठ्यवस्तु को पूर्ण रूप से न पढ़ने की आवश्यकता का संकेत दे रही है।
(C) वह आकलन के दृष्टिकोण से पाठ्यवस्त के महत्त्व को पुनर्वलित कर रही है
(D) वह विद्यार्थियों को सामथ्यानुकूल स्मरण करने को प्रेरित कर रही है।
25. कक्षा में विद्यार्थियों के वैयक्तिक विभेद
(A) लाभकारी नहीं हैं, क्योंकि अध्यापकों को वैविध्यपूर्ण कक्षा को नियन्त्रित करने की आवश्यकता है
(B) हानिकारक हैं, क्योंकि इनसे विद्यार्थियों में परस्पर द्वन्द्व उत्पन्न होते हैं
(C) अनुपयुक्त हैं, क्योंकि वे सर्वाधिक मन्द विद्यार्थी के स्तर तक पाठ्यचर्या के स्थानान्तरण की गति को कम करते हैं
(D) लाभकारी हैं, क्योंकि ये विद्यार्थियों की संज्ञानात्मक संरचनाओं को खोजने में अध्यापकों को प्रवृत्त करते हैं।
26. प्रगतिशील शिक्षा के सन्दर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन जॉन ड्यूई के अनुसार समुचित है ?
(A) कक्षा में प्रजातन्त्र का कोई स्थान नहीं होना चाहिए
(B) विद्यार्थियों को स्वयं ही सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में सक्षम होना चाहिए
(C) जिज्ञासा विद्यार्थियों के स्वभाव में अन्तर्निहित नहीं है, अपितु इसका कर्षण/संवर्धन करना चाहिए
(D) कक्षा में विद्यार्थियों का निरीक्षण करना चाहिए न कि सुनना चाहिए।
27. 14-वर्षीय देविका अपने-आप में पृथक् स्वनियन्त्रित व्यक्ति की भावना को विकसित करने का प्रयास कर रही है। वह विकसित कर रही है-
(A) नियमों के प्रति घृणा
(B) स्वायत्तता
(C) किशोरावस्थात्मक अक्खड़पन
(D) परिपक्वता ।
28. सीता ने हाथ से दाल और चावल खाना सीख लिया है। जब उसे दाल और चावल दिए जाते हैं तो वह दाल-चावल मिलाकर खाने लगती है। उसने चीजों को करने के लिए अपने स्कीमा में दाल और चावल खाने को कर लिया है।
(A) समायोजित
(C) अनुकूलित
(B) अंगीकार
(D) समुचितता ।
29. निम्नलिखित में से कौन-सी संज्ञानात्मक क्रिया दी गई सूचना के विश्लेषण के लिए प्रयोग में लाई जाती है ?
(A) पहचान करना
(B) अन्तर करना
(C) वर्गीकृत करना
(D) वर्णन करना।
30. शिक्षार्थियों में वैयक्तिक भिन्नताओं को सम्बोधित करने के लिए एक विद्यालय किस प्रकार का सहयोग उपलब्ध करवा सकता है ?
(A) बाल-केन्द्रित पाठ्यचर्या का पालन करना और शिक्षार्थियों को सीखने के अनेक अवसर उपलब्ध कराना
(B) शिक्षार्थियों में वैयक्तिक भिन्नताओं को समाप्त करने के लिए हर सम्भव उपाय करना
(C) धीमी गति से सीखने वाले शिक्षार्थियों को विशेष विद्यालयों में भेजना
(D) सभी शिक्षार्थियों के लिए समान स्तर की पाठ्यचर्या का अनुगमन करना।
31. विद्यालय को किसके लिए वैयक्तिक भिन्नताओं को पूरी करना चाहिए ?
(A) वैयक्तिक शिक्षार्थियों के मध्य खाई को कम करने के लिए
(B) शिक्षार्थियों के निष्पादन और योग्यताओं को समान करने के लिए
(C) यह समझने के लिए कि क्यों शिक्षार्थी सीखने के योग्य या अयोग्य हैं
(D) वैयक्तिक शिक्षार्थियों को विशिष्ट होने की अनुभूति कराने के लिए।
32. दाएँ हाथ से काम करने वाले अधिकतर व्यक्तियों के लिए मस्तिष्क का बायाँ गोलार्द्ध... को नियन्त्रित करता है।
(A) देशिक चाक्षुष सूचना
(B) भाषा-प्रक्रमण
(C) संवेग
(D) बाएँ बाजू की गति ।
33. विकास की गति एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न होती है, किन्तु यह एक का अनुमान करती है। नमूने
(A) एड़ी-से-चोटी
(B) अव्यवस्थित
(C) अप्रत्याशित
(D) क्रमबद्ध और व्यवस्थित ।
34. जब वयस्क सहयोग से सामंजस्य कर लेते हैं, तो वे बच्चे के वर्तमान स्तर के प्रदर्शन को सम्भावित क्षमता के स्तर के प्रदर्शन की तरफ प्रगति क्रम को सुगम बनाते हैं, इसे कहा जाता है -
(A) सहभागी अधिगम
(B) संयोगात्मक अधिगम
(C) समीपस्थ विकास
(D) सहयोग देना।
35. शैशवावस्था की अवधि है-
(A) जन्म से 3 वर्ष तक
(B) 2 से 3 वर्ष तक
(C) जन्म से 1 वर्ष तक
(D) जन्म से 2 वर्ष तक।
36. 'प्रकृति-पोषण' विवाद में प्रकृति से क्या अभिप्राय है ?
(A) एक व्यक्ति की मूल वृत्ति
(B) भौतिक और सामाजिक संसार की जटिल शक्तियाँ
(C) हमारे आस-पास का वातावरण
(D) जैवकीय विशिष्टताएँ या वंशानुक्रम सूचनाएँ।
37. बच्चों की त्रुटियों के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है ?
(A) बच्चे जब त्रुटियाँ करते हैं तब शिक्षक सौम्य हो और उन्हें त्रुटियाँ करने पर दण्ड नहीं देता हो
(B) बच्चों की त्रुटियाँ शिक्षक के लिए महत्त्वहीन हैं और उसे चाहिए कि उन्हें काट दें और उन पर अधिक ध्यान न दें
(C) असावधानी के कारण बच्चे त्रुटियाँ, करते हैं
(D) बच्चों की त्रुटियाँ उनके सीखने की प्रक्रिया का अंग हैं।
38. बच्चे -
(A) रीते बरतन के समान होते हैं जिसमें बड़ों के द्वारा दिया गया ज्ञान भरा जाता है
(B) निष्क्रिय जीव होते हैं जो प्रदत्त सूचना को त्यों-का-त्यों प्रतिलिपि के रूप में प्रस्तुत कर देते हैं
(C) जिज्ञासु प्राणी होते हैं वे अपने वातावरण में जो कुछ भी अनुभव करते हैं उनके बारे में पता करने के लिए उत्सुक रहते हैं
(D) चिन्तन में वयस्कों की भाँति ही होते हैं और ज्यों-ज्यों बड़े होते हैं उनके चिन्तन में गुणात्मक वृद्धि होती है।
39. निम्नलिखित में से कौन-सा आयु समूह परवर्ती बाल्यावस्था श्रेणी के अन्तर्गत आता है?
(A) 18 से 24 वर्ष
(C) 6 से 11 वर्ष
(B) जन्म से 6 वर्ष
(D) 1 से 18 वर्ष।
40. निम्नलिखित में से कौन प्रारम्भिक बाल्यावस्था अवधि के दौरान उन भूमिकाओं एवं व्यवहारों के बारे में जानकारी प्रदान करती है जो एक समूह में स्वीकार्य हैं ?
(A) अध्यापक एवं साथी
(B) साथी एवं माता-पिता
(C) माता-पिता एवं भाई-बहन
(D) भाई-बहन एवं अध्यापक ।
Answer -
1.. (C)
2. (C)
3. (B)
4. (B)
5. (C)
6. (A)
7. (B)
8. (D)
9. (C)
10. (A)
11. (B)
12. (B)
13. (B)
14. (A)
15. (A)
16. (C)
17. (C)
18. (B)
19. (D)
20. (C)
21. (D)
22. (C)
23. (B)
24. (A)
25. (D)
26. (B)
27. (B)
28. (B)
29. (B)
30. (A)
31. (C)
32. (B)
33. (D)
34. (D)
35. (D)
36. (D)
37. (D)
38. (C)
39. (C)
40. (B)
बाल बालकों के विकास के सिद्धांत (principle of development of children)
निरंतरता का सिद्धांत (Principle of Continuity): बच्चों का विकास निरंतर और क्रमिक होता है। यह रातोंरात नहीं होता बल्कि धीरे-धीरे और लगातार होता है।
सामान्य से विशिष्ट का सिद्धांत (Principle of General to Specific): बच्चों के विकास में पहले सामान्य कौशल विकसित होते हैं जैसे कि मोटर कौशल, और बाद में विशिष्ट कौशल जैसे कि लिखना, बोलना आदि।
एकीकरण का सिद्धांत (Principle of Integration): बच्चों का विकास सरल से जटिल की ओर होता है। वे पहले बुनियादी कौशल सीखते हैं, और फिर उन कौशलों का इस्तेमाल करके अधिक जटिल कार्यों को सीखते हैं।
अनुकूलन का सिद्धांत (Principle of Adaptation): बच्चे अपने वातावरण के अनुसार अनुकूलित होते हैं। वे सीखते हैं कि कैसे विभिन्न परिस्थितियों में सफल होने के लिए अपने व्यवहार को समायोजित करें।
विभेदन का सिद्धांत (Principle of Differentiation): हर बच्चा अनोखा होता है और उनका विकास भी व्यक्तिगत रूप से भिन्न होता है। यह सिद्धांत व्यक्तिगत अंतर को स्वीकार करता है।
सामाजिक संदर्भ का सिद्धांत (Principle of Social Context): बच्चों का विकास केवल शारीरिक या मानसिक नहीं होता, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सक्रिय भागीदारी का सिद्धांत (Principle of Active Participation): बच्चों को उनके विकास की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए। अनुभवात्मक सीखने से वे अधिक अच्छी तरह से सीखते हैं।
विकासात्मक अनुक्रम का सिद्धांत (Principle of Developmental Sequence): विकासात्मक अनुक्रम का सिद्धांत यह बताता है कि बच्चों का विकास एक निश्चित और विशिष्ट क्रम में होता है, जिसमें प्रत्येक नई क्षमता पहले विकसित हुई क्षमताओं पर निर्मित होती है। यह सिद्धांत शारीरिक, संज्ञानात्मक, और भाषाई विकास सहित विभिन्न क्षेत्रों में लागू होता है। उदाहरण के लिए, बच्चे पहले सिर को संभालना सीखते हैं, फिर बैठना, उसके बाद रेंगना, खड़े होना, और अंत में चलना। यह सिद्धांत मानता है कि ये विकासात्मक मील के पत्थर वैश्विक रूप से समान होते हैं और एक निर्धारित अनुक्रम का पालन करते हैं।
बाल विकास को प्रभावित करने वाले कारक। (Factors influencing child development):
आदर्श वातावरण (Nurturing Environment): स्थिरता, प्यार, और संवेदनशीलता वाले आदर्श वातावरण में बच्चे का विकास सुदृढ़ होता है।
पोषण (Nutrition): सही पोषण बच्चे के शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पारिवारिक समर्थन (Family Support): परिवार में साथीत्व, स्नेह, और समर्थन का होना बच्चे के विकास के लिए आवश्यक है।
शैक्षणिक माहौल (Educational Environment): उच्च गुणवत्ता वाले शैक्षणिक माहौल में बच्चे का बुद्धि विकास होता है।
सामाजिक प्रभाव (Social Influences): समाज की संरचना, मीडिया, और समाजिक परिवेश बच्चे के विकास को प्रभावित करते हैं।
खेलने का महत्व (Importance of Play): खेलने के माध्यम से बच्चे के सामाजिक, शारीरिक, और मानसिक विकास में मदद मिलती है।
बाहरी प्रभाव (External Influences): आधुनिक जीवनशैली, तकनीकी उन्नति, और सामाजिक बदलाव भी बच्चे के विकास पर प्रभाव डालते हैं।
उत्प्रेरणा और मार्गदर्शन (Inspiration and Guidance): सही प्रेरणा और मार्गदर्शन के बिना, बच्चे का स्वाभाविक विकास संभव नहीं होता।
इन सभी कारकों का संयोग बाल विकास को प्रभावित करता है और उसकी प्रकृति को निर्धारित करता है।
बालक का सामाजिक विकास(social development of child):-
सामाजिक योग्यता का विकास: बालक के सामाजिक योग्यता का विकास उसके सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण होता है। यह उसके सामाजिक संबंधों, सहयोग, और साझेदारी के लिए जरूरी है।
भाषाई विकास: एक बालक का सामाजिक विकास में भाषाई विकास का महत्वपूर्ण योगदान होता है। उचित भाषा कौशल की प्राप्ति उसे अपने विचारों और भावनाओं को सही ढंग से व्यक्त करने में मदद करती है।
उत्तरदायित्व: बालक को उत्तरदायित्व का भाव विकसित करना चाहिए। यह उसे समाज में सहयोग और सहयोग के लिए सक्षम बनाता है।
सहयोगी बनाना: बालक को दूसरों के साथ सहयोग करना सीखना चाहिए। यह उसके सामाजिक विकास को बढ़ावा देता है और उसे समाज में सही तरीके से संलग्न करता है।
समाज में सहभागिता: बालक को समाज में सहभागिता का महत्व समझाना चाहिए। यह उसे समाज के विकास में अपना योगदान देने के लिए प्रेरित करता है।
आत्मसम्मान: बालक को आत्मसम्मान का महत्व समझाना चाहिए। यह उसे स्वतंत्रता, स्वाधीनता, और सहानुभूति के साथ अपने आप को समझने में मदद करता है।
नैतिक मूल्यों का पालन: बालक को समाज में नैतिक मूल्यों का पालन करना सीखना चाहिए। यह उसे ईमानदारी, सहानुभूति, और समर्थन का आदान-प्रदान करता है।
शैशवावस्था मे सामाजिक विकास (जन्म से 2 वर्ष तक):
इस अवस्था में, बच्चे के सामाजिक विकास का मुख्य अंग है प्रारंभिक संबंध।
इस दौरान, बच्चे को परिवार के सदस्यों के साथ संवाद करने और सामाजिक तालमेल बनाने का अवसर मिलता है।
उनकी भाषा विकास, सांस्कृतिक समझ, और भावनात्मक संवेदनशीलता का विकास इस अवस्था में होता है।
बाल्यावस्था मे सामाजिक विकास (2 से 12 वर्ष तक):
इस अवस्था में, बच्चे का सामाजिक विकास और व्यक्तित्व का निर्माण मुख्य ध्यान रहता है।
विद्यालय, सामाजिक समूह, और परिवार के माध्यम से बच्चे को सामाजिक सांस्कृतिक अनुभव प्राप्त होते हैं।
उनकी सामाजिक योग्यता, सामाजिक सहभागिता, और व्यक्तिगत अनुभवों के माध्यम से सीखने की क्षमता विकसित होती है।
किशोरावस्था मे सामाजिक विकास (13 से 19 वर्ष तक):
इस अवस्था में, बच्चे अपने पहले बाल्यकाल के अनुभवों पर आधारित समाज में स्थिति को समझने लगते हैं।
वे अपने विचारों को व्यक्त करने, सामाजिक न्याय के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने, और समाज में अपनी भूमिका को समझने की क्षमता विकसित करते हैं।
इस अवस्था में, उनका स्वतंत्र विचार, आत्मसमर्थन, और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना विकसित होती है।
बालक में संवेगात्मक विकास (Emotional Development in Child)
भावनात्मक परिप्रेक्ष्य: बालक को अपने भावनात्मक परिप्रेक्ष्य को समझने और व्यक्त करने का मार्गदर्शन मिलना चाहिए। उन्हें स्वीकार करने, संवाद करने, और समय-समय पर व्यक्त करने की क्षमता विकसित की जानी चाहिए।
उत्साह और संवेदनशीलता: बालक में संवेगात्मक विकास के लिए, उन्हें उत्साह और संवेदनशीलता को समझने और प्रशिक्षित करने की आवश्यकता होती है। यह उन्हें अपनी भावनाओं को समझने में मदद करता है और उन्हें सही दिशा में ले जाता है।
संवेदनशीलता और संवाद: बालक को संवेगात्मक विकास के लिए, उन्हें अन्य लोगों के संग काम करने, संवाद करने, और सहयोग करने की क्षमता का विकास करना चाहिए।
सम्प्रेषण कौशल: संवेगात्मक विकास के संदर्भ में, सम्प्रेषण कौशल बालक के लिए महत्वपूर्ण है। यह उन्हें उनकी भावनाओं, विचारों, और आवश्यकताओं को सही ढंग से संवाद करने में मदद करता है।
साहित्यिक एवं कलात्मक प्रवृत्ति: संवेगात्मक विकास के लिए, बालक को साहित्यिक एवं कलात्मक प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे उनकी भावनाओं का व्यक्तित्व में निवास होता है और उन्हें संवेदनशील बनाता है।
संवेग के प्रकार (Types of Emotions)
सकारात्मक संवेग - यह सुखद होते हैं जैसे प्रेम ,हर्ष ,आनंद ,स्नेहा, उल्लास आदि।
नकारात्मक संवेग - यह काश्तकार या दुखदाई होते हैं जैसे भय, क्रोध ,चिंता , कष्ट, ईर्ष्या इत्यादि।
प्रेम और स्नेह (Love and Affection): यह विकास उस शृंगारिक और भावनात्मक आस्था को संदर्भित करता है जो बालक के अन्य लोगों के साथ संबंधों में महत्वपूर्ण है।
आत्म-संवाद (Self-Talk): बालक के अंतर्मन के संवेगों को समझने की क्षमता और आत्म-परिचय का विकास।
डर और चिंता (Fear and Anxiety): बालक के आसपास की परिस्थितियों और संघर्षों से संबंधित भावनाओं का विकास।
खुशी और उत्साह (Happiness and Excitement): सफलता, प्रोत्साहन और अनुप्रेरणा के साथ जुड़े संवेग।
उदासी और अप्रसन्नता (Sadness and Disappointment): असफलता या निराशा के संवेग।
क्रोध और आक्रोश (Anger and Frustration): असंतुष्टि या निराशा के कारण उत्पन्न होने वाले भावनात्मक अनुभव।
सहानुभूति और दया (Empathy and Compassion): अन्य लोगों के साथ अनुभव किए जाने वाले भावनात्मक अनुभव।
उत्साह और प्रेरणा (Enthusiasm and Inspiration): नई चुनौतियों या सफलताओं के लिए उत्साहित होने का अनुभव।
महत्वपूर्ण प्रश्न :-
1. "कोई भी नाराज हो सकता है, परन्तु एक सही व्यक्ति के ऊपर सही मात्रा में, सही समय पर, सही उद्देश्य के लिए तथा सही तरीके से नाराज होना आसान नहीं है।" यह कथन सम्बन्धित है-
(A) सामाजिक विकास से
(B) संज्ञानात्मक विकास से
(C) शारीरिक विकास से
(D) संवेगात्मक विकास से।
2. पूर्व विद्यालय में पहली बार आया बच्चा मुक्त रूप से चिल्लाता है। दो वर्ष बाद वही बच्चा जब प्रारम्भिक विद्यालय में पहली बार जाता है, तो अपना तनाव चिल्लाकर व्यक्त नहीं करता अपितु उसके कन्धे व गर्दन की पेशियाँ तन जाती हैं। उसके इस व्यावहारिक परिवर्तन का सैद्धान्तिक आधार क्या हो सकता है ?
(A) विकास क्रमिक प्रकार से होता है
(B) विकास निरन्तर होता रहता है
(C) अलग-अलग लोगों में विकास भी भिन्न रूप से होता है.
(D) विभेद व एकीकरण विकास के लक्षण हैं।
3. निम्नलिखित में से कौन-सा विकासात्मक विकार का उदाहरण नहीं है ?
(A) आत्मविमोह
(B) प्रमस्तिष्क घात
(C) अभिघातजन्य तनाव
(D) न्यून अवधान सक्रिय विकार।
4. निम्नलिखित में से कौन-सा आलोचनात्मक दृष्टिकोण 'बहु-बुद्धि सिद्धान्त' से सम्बद्ध नहीं है ?
(A) यह शोधधारित नहीं है
(B) विभिन्न बुद्धियाँ भिन्न-भिन्न विद्यार्थियों के लिए विभिन्न पद्धतियों की माँग करती है।
(C) प्रतिभाशाली विद्यार्थी प्रायः एक क्षेत्र में ही अपनी विशिष्टता प्रदर्शित करते हैं
(D) इसका कोई अनुभवात्मक आधार नहीं है।
5. निम्नलिखित में से कौन-सा विकास सम्बन्धित मुद्दा है ?
(A) सहजात - अर्जित
(B) स्वाभाविक - पोषण सम्बन्धी
(C) प्रकृति - पालन
(D) शैक्षणिक - सहशैक्षणिक ।
6. निम्नलिखित में से कौन-सा विकास का सिद्धान्त है ?
(A) सभी की विकास दर समान नहीं होती है
(B) विकास हमेशा रेखीय होता है
(C) यह निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया नहीं है
(D) विकास की सभी प्रक्रियाएँ अन्तः- सम्बन्धित नहीं हैं।
7. युवा बच्चों में सीखने की प्रक्रिया में अभिभावक एक भूमिका निभाते हैं -
(A) सद्भावपूर्ण
(B) उदासीन
(C) घृणात्मक
(D) अग्रसक्रिय।
8.शैशवकाल में बच्चा निर्देशित होता है-
(A) परिपक्वता से
(B) प्रवृत्ति से
(C) शिक्षा से
(D) अधिगम और सहज ज्ञान से।
9.निम्नलिखित में से कौन-सा कथन विकास के सम्बन्ध में सत्य है ?
(A) इसकी प्रकृति गुणात्मक है
(B) इसकी प्रकृति मात्रात्मक है
(C) यह प्रकृति में मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों है
(D) यह पूर्ण रूप से असीमित है।
10. शैशवावस्था के दौरान निम्नलिखित में से किसकी अधिकतम वृद्धि होती है ?
(A) हाथ
(B) पैर
(C) सिर
(D) उँगलियाँ।
11. पूर्व बाल्यावस्था में बौद्धिक विकास से सम्बन्धित नहीं है -. पूर्व बाल्यावस्था में बौद्धिक विकास से सम्बन्धित नहीं है -
(A) एकाग्रता की अवधि में वृद्धि
(B) पर्यावरण का अन्वेषण
(C) तार्किक अवधारणाओं की व्याख्या
(D) अतीत, वर्तमान और भविष्य के बीच भेद।
12. निम्नलिखित में से कौन-सा कारक बालक के विकास को प्रभावित नहीं करता ?
(A) अधिगम
(B) वृद्धि
(C) उपलब्धियाँ
(D) संस्कृति ।
13. निम्नलिखित में से कौन-सा बाल विकास का सिद्धान्त नहीं है ?
(A) परिपक्वता और अनुभव के बीच अन्तः क्रिया के कारण विकास होता है
(B) अनुभव विकास का एकमात्र निर्धारक है
(C) विकास पुनर्बलन और दण्ड के द्वारा निर्धारित होता है
(D) विकास प्रत्येक बालक की गति की सटीक भविष्यवाणी कर सकता है।
14. बाल विकास किसकी आपसी जिम्मेदारी A है ?
(A) अभिभावकों और शिक्षक दोनों की
(B) सामाजिक और सांस्कृतिक कारकों की
(C) वंशानुक्रम और वातावरण दोनों की
(D) केवल शिक्षकों की।
15. 'मानसिक विकास की औपचारिक क्रियात्मक अवस्था' की विशेषता है -
(A) अमूर्त चिन्तन
(B) मूर्त चिन्तन
(C) सामाजिक चिन्तन
(D) आत्मकेन्द्रित व्यवहार।
16. "बालक का स्वास्थ्य एवं शारीरिक विकास उसके सर्वांगीण विकास के लिए एक महत्त्वपूर्ण प्रावधान है।" यह कथन -
(A) असत्य है क्योंकि शारीरिक विकास किसी भी तरह से दूसरे क्षेत्र के विकास को प्रभावित नहीं करता है
(B) गलत हो सकता है क्योंकि शारीरिक विकास में विभिन्नता होती है
(C) सत्य है क्योंकि शारीरिक विकास विकासक्रम में सबसे ऊपर होता है
(D) सत्य है क्योंकि शारीरिक विकास दूसरे क्षेत्र के विकासों से सम्बन्ध रखता है।
17. निम्नलिखित में से कौन-सा बाल विकास का एक सिद्धान्त नहीं है ?
(A) सभी विकास परिपक्व तथा अनुभव की अन्तः क्रिया का परिणाम होते हैं
(B) सभी विकास तथा अधिगम एक समान गति से आगे बढ़ते हैं
(C) सभी विकास एक क्रम का पालन करते हैं
(D) विकास के सभी क्षेत्र महत्त्वपूर्ण हैं।।
18. बच्चों को शाब्दिक या गैर-शाब्दिक दण्ड देने का परिणाम होता है-
(A) बच्चे की छवि की सुरक्षा
(B) उनके अंकों में सुधार करना
(C) उनकी स्वयं के प्रति अवधारणा को नष्ट करना
(D) उन्हें कार्य करने के लिए प्रेरित करना।
19. अधिगम अनुभवों को इस प्रकार से आयोजित किया जाना चाहिए कि इसमें अधिगम को सार्थक बनाया जा सके। नीचे दिये गये अधिगम अनुभवों में से कौन-सा बच्चों के लिए सार्थक अधिगम को सुगम नहीं बनाता है ?
(A) विषय-वस्तु पर प्रश्न बनाना
(B) प्रकरण पर परिर्चा और वाद-विवाद
(C) प्रकरण पर प्रस्तुतीकरण
(D) विषय-वस्तु की केवल याद करने के आधार पर पुनरावृत्ति ।
20. हम सभी अपनी बुद्धि, प्रेरणा, अभिरुचि, आदि के सन्दर्भ में भिन्न होते हैं। यह सिद्धान्त सम्बन्धित है -
(A) बुद्धि के सिद्धान्तों से
(B) वंशानुक्रम से
(C) पर्यावरण से
(D) वैयक्तिक भिन्नता से।
आनुवंशिकता और पर्यावरण का प्रभाव
बाल विकास के अवरोधक
- वंशानुगत कारक, शारीरिक कारक, बुध्दि, संवेगात्मक कारक, सामाजिक कारक इत्यादि बाल विकास को प्रभावित करने वाले आंतरिक कारक हैं ।
-सामाजिक आर्थिक एवं वातावरण जन्य अन्य कारक बालक के विकास को प्रभावित करने वाले बाह्य कारक हैं ।
- मानव व्यक्तित्व आनुवंशिकता और वातावरण की अंतः क्रिया का परिणाम होता है।
आनुवांशिकता का स्वरूप तथा अवधारणा
-आनुवांशिक गुणों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरण होने की प्रक्रिया को अनुवांशिकता या वंशानुक्रम कहा जाता है ।
- अनुवांशिकता को स्थिर सामाजिक संरचना माना जाता है ।
- एक व्यक्ति के वंशानुक्रम में वह सब शारीरिक बनावटे, शारीरिक विशेषताएं, क्रियाएं सम्मिलित रहती हैं, जिनको वह अपने माता पिता, अपने पूर्वजों या प्रजाति से प्राप्त करता है ।
- अनुवांशिकता का मूलाधार कोशिका है, जिस प्रकार एक-एक ईंट को चुन कर इमारत बनती है, ठीक उसी प्रकार कोशिकाओं के द्वारा मानव शरीर का निर्माण होता है ।
आनुवंशिकता का प्रभाव
1. शारीरिक लक्षणों पर प्रभाव बालक के रंग-
रूप, आकार, शारीरिक गठन, ऊंचाई इत्यादि के निर्धारण में उसके आनुवांशि क गुणों का महत्वपूर्ण हाथ होता
है।
• माता के गर्भ में निषेचित युग्मनज (जाइगोट) मिलकर क्रोमोसोम्स के विविध संयोजन (combinations) बनाते हैं। इस प्रकार एक ही माता- पिता के प्रत्येक बच्चे से विभिन्न जींस बच्चे में अपने अथवा रक्त संबंधियों के साथ अन्य से अधिक समानताएं होती है।
• अनुवांशिक संचारण (Transmission) एक अत्यंत जटिल प्रक्रिया है। मनुष्यों में हमें दृष्टिगोचर होने वाले अधिकांश अभिलक्षण असंख्य जीन्स का संयोजन होता हैं। जिन्स के असंख्य परिवर्तन (permutation) और संयोजन (combinations) शारीरिक और मनोवैज्ञानिक अभिलक्षणों में अत्यधिक विभेदों के लिए जिम्मेदार होते है।
• केवल समान या मोनोजाइगोटिक ट्विन्स में एकसमान सेट के गुणसूत्र और जीन्स होते है, क्योंकि वे एक ही युग्मनज के द्विगुणन से बनते है।
• अधिकांश जुड़वा भ्रातृवत्त अथवा द्वि युग्मक होते हैं जो दो प्रथम युग्मजों से विकसित होते है ।
यह भाइयों जैसे जुड़वाँ भाइयों और बहनों की तरह मिलते-जुलते होते हैं, परंतु वे अनेक प्रकार से परस्पर एक दूसरे से भिन्न में भी होते हैं।
• बालक के अनुवांशिक गुण उसकी वृद्धि एवं विकास को भी प्रभावित करते है।
आनुवंशिकता (वंशानुक्रम) की परिभाषा
जेम्स ड्रेवर- " शारीरिक तथा मानसिक विशेषताओं का माता पिता से संतानों में हस्तान्तरण होना अनुवांशिक है।"
बी एन झा- "वंशानुक्रम व्यक्ति की जन्मजात विशेषताओं का पूर्ण योग है।"
बुद्धि पर प्रभाव-
जिस बालक के सीखने की गति अधिक होती है, उसका मानसिक विकास भी तीव्र गति से होता है।
बालक अपने परिवार, समाज व विद्यालय में अपने आप को किस तरह समायोजित करता है, वह उसकी बुद्धि पर निर्भर करता है।
गोडार्ड का मत है कि मंदबुद्धि माता-पिता की संतान भी मंद-बुद्धि और तीव्र बुद्धि माता-पिता की संतान तीव्र बुद्धि वाली होती है।
मानसिक क्षमता के अनुकूल एक ही बालक में संवेगात्मक क्षमता का वि कास होता है।
चरित्र पर प्रभाव- डगडेल नामक मनोवैज्ञानिक ने अपनी रहन सहन के आधार पर यह बताया है कि माता-पिता के चरित्र का प्रभाव भी उसके बच्चे पर पड़ता है।
डगडेल ने 1877 ई. में ज्यूक नामक व्यक्ति के वंशजों का अध्ययन करके यह बात सिध्द की ।
वातावरण का अर्थ
वातावरण का अर्थ है- पर्यावरण। पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है परि एवं आवरण । परि का अर्थ होता है चारों ओर तथा आवरण का अर्थ होता है - ढकना । इस प्रकार वातावरण अथवा पर्यावरण का अर्थ होता है - चारों ओर घेरने वाला । मानव विकास में जितना योगदान अनुवांशिकता का है, उतना ही योगदान वातावरण का भी है। इसलिए कुछ मनोवैज्ञानिक वातावरण को सामाजिक वंशानुक्रम भी कहते है। वुडवर्थ के अनुसार, "वातावरण में वे समस्त बाह्य तत्व आ जाते हैं जिन्होंने जीवन प्रारंभ करने के समय से व्यक्ति को प्रभावित किया है" ।
बोरिंग लैगफील्ड एवं वेल्ड के अनुसार, "व्यक्ति का वातावरण उन सभी उत्तेजनाओं का योग है, जिनको वह जन्म से मृत्यु तक ग्रहण करता है।
महत्वपूर्ण प्रश्र -
1. वंशानुक्रम को एक "सामाजिक संरचना माना जाता है।
(A) प्राथमिक
(C) गत्यात्मक
(B) द्वितीय
(D) स्थिर।
2. बच्चों द्वारा की जाने वाली त्रुटियों के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन-सी सही स्थिति है ?
(A) किसी भाषा के मूल भाषी त्रुटियाँ करते हैं, जवकि अ-स्थानीय भाषी गलतियाँ या चूक करते हैं
(B) यदि सुधार की आवश्यकता है, तो इसे तुरन्त किया जाना चाहिए
(C) यदि सुधार की आवश्यकता है, तो इसे प्रायः तुरन्त नहीं किया जाना चाहिए
(D) त्रुटियों के तत्काल सुधार के परिणाम- स्वरूप सकारात्मक पुनर्बलन होता है।
3. ""व्यक्तित्व के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती/निभाता है।
(A) आनुवंशिकता
(B) पर्यावरण
(C) आनुवंशिकता और पर्यावरण का मिश्रण
(D) परीक्षाओं की संख्या।
4. एक व्यक्ति को उसी उम्र में बीमारी होती है जिस उम्र में उसके पिता को वह बीमारी हुई थी। यह उदाहरण है-
(A) जैविक आनुवंशिकता का
(B) सामाजिक आनुवंशिकता का
(C) प्रवृत्ति के हस्तान्तरण का
(D) क्षेत्रीय आनुवंशिकता का।
5. निम्नलिखित में से कौन-सा शैशवावस्था की अवधि से सम्बन्धित नहीं है ?
(A) गतिक अंगों में विकास द्विपक्षीय से एकपक्षीय प्रवृत्तियों की ओर होता है
(B) गतिक अंगों में विकास सामान्य से विशिष्ट प्रवृत्तियों की ओर होता है
(C) भावनात्मक और सामाजिक विकास, जो गतिक विकास का भाग नहीं हैं
(D) स्थिर मानसिक विकास ।
6. निम्न में से कौन-सा वंशानुक्रम सम्बन्धी कारक है ?
(A) साथी समूह के प्रति दृष्टिकोण
(B) चिन्तन करने का ढंग
(C) आँखों का रंग
(D) सामाजिक गतिविथियों में हिस्सेदारी।
7."मानव विकास का सिद्धान्त नहीं है।
(A) निरन्तरता
(B) क्रर्मवद्धता
(C) सामान्य से विशेष की ओर
(D) परिवर्तनीयता ।
8. कद, हड्डियों का ढाँचा, बाल, नाक और आँखों का रंग आदि शारीरिक विशेषताएँ
(A) प्राथमिक विशेषताएँ
(B) द्वितीय विशेषताएँ
(C) वंशानुगत विशेषताएँ
(D) अवंशानुगत विशेषताएँ।
9. विकास को प्रभावित करने वाला वातावरणीय कारक कौन-सा नहीं है ?
(A) शिक्षा की गुणवत्ता
(B) शारीरिक गठन
(C) पोषक आहार की गुणवत्ता
(D) संस्कृति ।
10. निम्न में से कौन-सा कथन सत्य है ?
(A) एंडरोजेन्स हार्मोन महिलाओं में होता है
(B) एस्ट्रोजेन्स हार्मोन पुरुषों में होता है
( C) प्रोजेस्ट्रॉन लड़कियों की मोटी आवाज के
लिए जिम्मेदार नहीं है
(D) एस्ट्रोजेन्स और एंडरोजेन्स दोनों तरुणावस्था के दौरान लड़के और लड़कियों दनों में होता है।
उत्तरमाला
1. (D)
2. (D)
3. (C)
4. (A)
5. (C)
6. (C)
7.(D)
8. (C)
9. (B)
10.( C )
4.समाजीकरण की प्रक्रिया [Process of Socialization]
सामाजीकरण का अर्थ
( Meaning ofSocialization )
समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो नवजात शिशु को सामाजिक प्राणी बनाती है। इस प्रक्रिया के अभाव में व्यक्ति सामाजिक प्राणी नहीं बन सकता। इसी से सामाजिक व्यक्तित्व का विकास होता है। सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत के तत्वों का परिचय भी इसी से प्राप्त होता है।
जब बालक सामाजिक प्रत्याशाओं तथा सामाजिक मानकों के अनुरूप व्यवहार करना सीख लेता है तो इसे समाजीकरण की संज्ञा दी जाती है। सामाजीकरण एक प्रक्रिया है, जो बालकों में धीरे-धीरे विकसित होती है। सामाजीकरण समाजिक नियमों का अधिग्रहण है।
समाजीकरण का मूल उद्देश्य सामाजिक वातावरण में अनुकूलन तथा समायोजन करना है। सामाजीकरण अनुवांशिकता नहीं बल्कि वातावरण से प्रभावित होता है। यही कारण है कि इसके अंतर्गत मूल्य, विश्वास, मनोवृत्ति, संस्कृति, रीति-रिवाज, विभिन्न प्रकार के कौशल आदि का ज्ञानार्जन होता है, जो बालक के समाजीकरण में मदद पहुँचाते हैं।
बालको में सामाजिक व्यवहार :-
प्रारंभिक बाल्यावस्था ( 2 वर्ष से 6 वर्ष)
अनुकरण (Imitation)
सामाजिक अनुमोदन (Approval)
सहानुभूति (Sympathy)
परानुभूति (Empathy)
प्रतिद्वंद्विता (Rivalry)
आसक्ति (Attachment)
मित्रता (Friendship)
आक्रमकता (Aggressiveness)
अहंभाव (Ego Centrism)
पूर्वाग्रह (Prejudice)
उत्तर- बाल्यावस्था (6 वर्ष से 12 वर्ष)
सामाजिक अनुमोदन
प्रतिस्पर्द्धा
उत्तरदायित्व
सामाजिक कुशलता
खेल भावना
किशोरावस्था ( 14 वर्ष से 18 वर्ष)
दोस्तों का प्रभाव
नये सामाजिक समूह
विरोधात्मक प्रवृत्ति तीव्र
नयी सोच
समाजीकरण के कारक या तत्व Factors of Socialization
बालक जब इस संसार में आता है तब वह कोरे कागज की तरह होता है, फिर धीरे-धीरे जैसे वह बड़ा होने लगता है अपने आस-पास के साधन द्वारा प्रभावित होने लगता है तथा निरंतर वह आदर्शों व मूल्यों को सीखता है।
इन आदर्शों व मूल्यों को वह अपने समाज (परिवार, साथी, स्कूल, शिक्षक) से सीखता है। समाजीकरण के कुछ सक्रिय कारक हैं तो कुछ निष्क्रिय हैं। निष्क्रिय का उदाहरण है- पुस्तकालय; सक्रिय कारक निम्न हैं ।
परिवार (Family) :-
बालक के समाजीकरण के विभिन्न तत्वों में परिवार का प्रमुख स्थान है। इसका कारण यह है कि प्रत्येक बालक का जन्म किसी-न-किसी परिवार में ही होता है।
परिवार को बालक की प्रथम पाठशाला भी कहते हैं। परिवार एक प्राथमिक समूह जिसमें माता -पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची आदि आते हैं। बालक चूंकि सर्वाधिक समय इन्हीं लोगों के साथ व्यतीत करता है इसलिए परिवार का प्रभाव बालक के नैतिक मूल्यों के विकास में काफी पड़ता है।
बालक की सबसे पहले अंतःक्रिया माता-पिता से होता है। माता-पिता से अपने बच्चों को उचित दुलार, प्यार स्नेह आदि मिलने से बच्चों में सुरक्षा की भावना, आत्मविश्वास, आदि का गुण विकसित होता है। यही नहीं, वह अपने परिवार में रहते हुए प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से अपने परिवार के आदर्शों, मूल्यों, रीति-रिवाजों, परम्पराओं तथा मान्यताओं एवं विश्वासों को भी धीरे-धीरे सीख जाता है।
जिन परिवार में टेलीविजन, रेडियो, अखबार, मैगजीन, इंटरनेट आदि का उपयोग होता है उन घरों के बच्चों में समाजीकरण अधिक तीव्र होता है अपेक्षाकृत अभाव वाले घरों के माता-पिता के आपसी संबंधों का भी प्रभाव बालक पर पड़ता है।
प्रारंभिक बाल्यावस्था में परिवार का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि 'मेरा परिवार' विषय-वस्तु पढ़ाने के लिए सबसे उपयुक्त कक्षा नर्सरी से प्रथम है।
आस-पड़ोस ( Neighborhood ):
पड़ोस भी एक प्रकार का बड़ा परिवार होता है। जिस प्रकार, बालक परिवार के विभिन्न सदस्यों के साथ क्रिया द्वारा अपनी संस्कृति एवं सामाजिक गुणों का ज्ञान प्राप्त करता है|
आस-पड़ोस के व्यक्तियों के संपर्क में आने पर बालक नए-नए व्यवहार सीखता है। बालक अपने पड़ोसियों के साथ काफी समय गुजारता है।
अत: पड़ोसियों के साथ पारस्परिक प्रक्रिया का प्रभाव उनके सामाजिक विकास पर पड़ता है। इस प्रभाव के कारण समाजीकरण की प्रक्रिया के साथ-साथ विसमाजीकरण की प्रक्रिया भी घटित होती है।
बालक के व्यवहार में उसके समाज का एक महत्त्वपूर्ण योगदान होता है जो न सिर्फ उसे अच्छी शिक्षा प्रदान करता है बल्कि उसके व्यक्तित्व के विकास में भी सहायक होता है। यही कारण है कि अच्छे परिवारों के लोग अच्छे पड़ोस में ही रहना पसन्द करते हैं।
स्कूल ( School ):-
परिवार के बाद स्कूल एक ऐसी संस्था है जिससे बालक सर्वाधिक प्रभावित होता है, क्योंकि वहीं पर वह अपने नए मित्रों को तथा ज्ञानात्मक कौशल, सामाजिक कौशल, व्यवहार आदि के रूप में नयी-नयी चीजों को ग्रहण करता है।
बालक विद्यालय के वातावरण, शिक्षक के व्यवहार इत्यादि से भी प्रभावित होता है। यहाँ पर वह नए मानकों को प्राप्त करता है और व्यवहार को उसी के अनुरूप ढालने का प्रयास भी करता है। कक्षा में भी लोकतांत्रिक व्यवस्था को महत्त्व दिया जाना चाहिए।
शिक्षक को बालक की सामाजिक पृष्ठभूमि की न तो उपेक्षा करनी चाहिए और न ही निंदा, बल्कि सभी को समाज एवं संस्कृति का महत्त्व बताना चाहिए।
बालक के साथी ( Colleague / Friends )
सामान्य आयु के बच्चे एक अलग समूह का निर्माण करते हैं जो वे अपनी इच्छा के अनुकूल करते हैं। बच्चे अपनी इच्छा से किसी नये समूह में शामिल भी होते हैं और उसे छोड़ भी देते हैं।
प्रत्येक बालक अपने साथियों के साथ खेलता है। वह खेलते समय जाति-पाँति ऊँच-नीच तथा अन्य प्रकार के भेद भावों से ऊपर उठकर दूसरे बालकों के साथ अन्तःक्रिया द्वारा आनन्द लेना चाहता है। इस कार्य में उसके साथी महत्त्वपूर्ण भूमिक निभाते हैं।
अच्छे मित्रगण बनें तो अच्छी आदतें भी बालक सीखता है, अगर संगति अच्छी नहीं हुई तो बालक के व्यवहार पर बुरा प्रभाव भी पड़ता है। समूह में बालक सहभागिता तथा सामाजिक कौशल को सीखता है।
समुदाय (Community ):-
बालक के समाजीकरण में समुदाय अथवा समाज का गहरा प्रभाव होता है।
प्रत्येक समाज अथवा समुदाय अपने-अपने विभिन्न साधनों तथा विधियों के द्वारा बालक का समाजीकरण करना अपना परम कर्त्तव्य समझता है।
इन साधनों के अन्तर्गत जातीय तथा राष्ट्रीय प्रथाएँ एवं परम्पराएँ, मनोरंजन एवं राजनीतिक विचारधाराएँ, धार्मिक कट्टरता, संस्कृति, कला साहित्य, इतिहास, जातीय पूर्वधारणाएँ, इत्यादि आती हैं।
महत्वपूर्ण प्रश्र
1. के.मा.शि.बो. (CBSE) द्वारा अपनाए गए प्रगतिशील शिक्षा के प्रतिमान में बच्चों का समाजीकरण जिस प्रकार से किया जाता है, उससे अपेक्षा की जा सकती है कि -
[CTET Paper-I (Class I-V)
16 Feb., 2014; DSSSB PRT]
(A) वे समय नष्ट करने वाली सामाजिक आदतों/प्रकृति का त्याग करें तथा सीखें कि किस प्रकार अच्छी श्रेणियाँ पाई जा सकती हैं (Score good grades) ।
(B) वे सामूहिक कार्य में सक्रिय भागीदारी का निर्वाह करें तथा सामाजिक कौशल सीखें।
(C) वे बिना प्रश्न उठाये समाज के नियमों- विनियमों का अनुपालन करने के लिए तैयार हो सकें।
(D) किसी भी प्रकार की सामाजिक पृष्ठभूमि होते हुए भी वे यह सब स्वीकार करें जो उन्हें विद्यालय द्वारा प्रदान किया जाता है।
2. बच्चे का सामाजिक विकास वास्तव में प्रारम्भ होता है-
(A) विद्यालय पूर्व अवस्था में
(B) शैशवावस्था में
(C) पूर्व बाल्यावस्था में
(D) उत्तर बाल्यावस्था में।
3.सबसे अधिक गहन और जटिल समाजीकरण होता है - [CTET Paper-II
(Class VI-VIII) 26 June, 2011]
(A) पूर्व बाल्यावस्था के दौरान
(B) प्रौढ़ावस्था के दौरान
(C) व्यक्ति के पूरे जीवन में
(D) किशोरावस्था के दौरान।
4.छोटे शिक्षार्थियों को कक्षा-कक्ष में समवयस्कों के साथ अन्तः क्रिया करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे -
[CTET Paper-I (Class I-V)
29 Jan., 2012; DSSSB PRT]
(A) ने एक-दूसरे से प्रश्नों के उत्तर सीख सकें।
(B) पाठ्यक्रम को बहुत जल्दी पूरा किया जा सके।
(C) ने पढ़ने के दौरान सामाजिक कौशल सीख सकें।
(D) शिक्षक कशा-कक्ष को बेहतर तरीके से निमन्वित कर सके।
5.शिक्षा के सन्दर्भ में समाजीकरण से तात्पर्य है [CTET Paper-1 (Class 1-V)
29 Jan., 2012; DSSSB PRT]
(A) अपने सामाजिक मानदण्ड बनाना
(B) समाज में बड़ों का सम्मान करना
(C) सामाजिक वातावरण में अनुकूलन और समायोजन
(D) सामाजिक मानदण्डों को सदैव अनुपालन करना।
6. समाजीकरण है-
[CTET Paper-1 (Class 1-V) 28 July, 2013; DSSSB PRT]
(A) सामाजिक मानदण्डों में परिवर्तन
(B) शिक्षक एवं पढ़ाये गये के बीच सम्बन्ध
(C) समाज के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया
(D) समाज के मानदण्डों के साथ अनुकूलन।
7. निम्न में से कौन-सी समाजीकरण की निष्क्रिय एजेन्सी है ?
[CTET Paper-1 (Class I-V)
21 Sep., 2014; DSSSB PRT]
(A) परिवार
(B) ईको क्लब
(C) सार्वजनिक पुस्तकालय
(D) स्वास्थ्य क्लब ।
8. समाजीकरण एक प्रक्रिया है-
[CTET Paper-11 (Class VI-VIII) 22 Feb., 2015; DSSSB PRT]
(A) मूल्यों, विश्वासों तथा अपेक्षाओं को
अर्जित करने की
(B) घुलने-मिलने तथा समायोजन की
(C) एक समाज की संस्कृति की आलोचना
करना सीखने की
(D) मित्रों के साथ सामाजिक बनने की।
9. निम्नलिखित में कौन-सा बच्चों के समाजीकरण को प्रगतिशील मॉडल के सन्दर्भ में सही नहीं है ?
[CTET Paper-I (Class I-V) 22 Feb., 2015; DSSSB PRT]
(A) समूह सामाजिक कौशलों को सीखना।
कार्य में सक्रिय सहभागिता तथा
(B) बच्चे विद्यालय में बतायी गई बातों को स्वीकार करते हैं, चाहे उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
(C) कक्षा में प्रजातन्त्र के लिए स्थान होना चाहिए।
(D) समाजीकरण सामाजिक नियमों का अधिग्रहण है।
20. निम्नलिखित में से कौन प्रारम्भिक • बाल्यावस्था अवधि के दौरान उन भूमिकाओं एवं व्यवहारों के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं जो एक समूह में स्वीकार्य हैं?
[CTET Paper-1 (Class I-V)
(A) भाई-बहन एवं अध्यापक
22 Feb., 2015]
(B) अध्यापक एवं साधी
(C) साथी एवं माता-पिता
(D) माता-पिता एवं भाई-बहन।
11. निम्नलिखित में से कौन-सा समाजीकरण का एक प्रमुख कारक है ?
[CTET Paper-I (Class I-V)
20 Sep., 2015; DSSSB PRT]
(A) परिवार
(B) कम्प्यूटर
(C) आनुवंशिकता
(D) राजनीतिक दल ।
12. "जनसंचार माध्यम समाजीकरण का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम बनता जा रहा है।" नीचे दिए गए कथनों में से कौन-सा सबसे उपयुक्त कथन है ?
[CTET Paper-1 (Class I-V) 20 Sep., 2015]
(A) संचार माध्यम पदार्थों के विज्ञापन और विक्रय के लिए एक अच्छा माध्यम है।
(B) समाजीकरण केवल माता-पिता और परिवार के द्वारा किया जाता है।
(C) जनसंचार माध्यमों की पहुँच बढ़ रही है
और जनसंचार माध्यम अभिवृत्तियों, मूल्यों और विश्वासों को प्रभावित करता है।
(D) बच्चे संचार माध्यमों के साथ प्रत्यक्ष रूप से अन्तः क्रिया नहीं कर सकते हैं।
13. एक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से मानव शिशु समाज के सक्रिय सदस्य के रूप में निष्पादन करने के लिए आवश्यक कौशलों का अर्जन करना प्रारम्भ करता है-
[CTET Paper-II (Class VI-VIII) 21 Feb., 2016; DSSSB PRT]
(A) समाजीकरण
(B) विकास
(C) सीखना
(D) परिपक्वता।
14. विकास के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा एक उचित है ?
[CTET Paper-I (Class I-V)
21 Feb., 2016]
(A) विकास जन्म के साथ प्रारम्भ होता है और समाप्त होता है।
(B) 'सामाजिक-सांस्कृतिक सन्दर्भ' विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है।
(C) विकास एकल आयामी है।
• (D) विकास पृथक् होता है।
15. विद्यालय और समाजीकरण के बारे में निम्नलिखित में से क्या सत्य है ?
[CTET Paper-II (Class VI-VIII)
18 Sep., 2016]
(A) विद्यालय समाजीकरण का पहला मुख्य कारक है।
(B) विद्यालय समाजीकरण का एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
(C) समाजीकरण में विद्यालय की कोई भूमिका नहीं होती है।
(D) समाजीकरण में विद्यालय की बहुत थोड़ी भूमिका होती है।
16. मानवीय मूल्यों, जो प्रकृति में सार्वत्रिक हैं, के विकास का अर्थ है -
(A) मतारोपण
(B) अंगीकरण
(C) अनुकरण
(D) अभिव्यक्ति
17. विद्यार्थियों का विद्यालय में खेलना क्यों उचित है ?
(A) यह उन्हें शारीरिक रूप से सशक्त बनायेगा।
(B) यह शिक्षकों के लिए काम आसान करेगा।
(C) यह समय बिताने में सहायक होगा।
(D) यह सहयोग एवं सन्तुलन का विकास करेगा।
18. परिवार एक साधन है -
(A) अनौपचारिक शिक्षा का
(B) औपचारिक शिक्षा का
(C) गैर-औपचारिक शिक्षा का
(D) दूरस्थ शिक्षा का।
19. बच्चों के मानसिक विकास में का विशेष महत्त्व है।
(A) खेल
(C) दिनचर्या
(B) बाल साहित्य
(D) संचार माध्यम।
20. "जब कभी दो या अधिक व्यक्ति एक साथ मिलते हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं, तो वे एक सामाजिक समूह का निर्माण करते हैं।" यह कथन -
(A) आंशिक रूप से सत्य है
(B) सत्य है
(C) कदाचित् सत्य है
(D) असत्य है।
21 . मूल्यों के वर्गीकरण में सम्मिलित नहीं है- (A) आध्यात्मिक मूल्य
(B) येन-केन-प्रकारेण धनार्जन का मूल्य
(C) नैतिक मूल्य
(D) सांस्कृतिक मूल्य।
(A) आर्थिक तत्त्व
22. बच्चों के सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक हैं-
(B) सामाजिक परिवेशजन्य तत्त्व
(C) शारीरिक तत्त्व
(D) वंशानुगत तत्त्व ।
23. निम्न में से किसका मिलान सही है ?
[DSSSB PRT; CТЕТ 2013 (VI-VIII)]
(A) शारीरिक विकास - वातावरण
(B) संज्ञानात्मक विकास - परिपक्वता
(C) सामाजिक विकास - वातावरण
(D) संवेगात्मक विकास - परिपक्वता।
24. बालक-बालिकाओं के सामाजिक विकास का आधारभूत अभिकरण कहा जाता है -
(A) विद्यालय
(B) माता-पिता एवं परिवार
(C) समुदाय
(D) जनसंचार माध्यम ।
25. एक अच्छा अध्यापक विद्यार्थियों के मध्य बढ़ावा देता है-
(A) प्रतियोगिता की भावना को
(B) सहयोग की भावना को
(C) प्रतिद्वन्द्विता की भावना को
(D) तटस्थता की भावना को।
26. शिक्षक एवं विद्यार्थी के मध्य सम्बन्ध होना चाहिए -
(A) स्नेह का
(B) विश्वास का
(C) सम्मान का
(D) उपर्युक्त सभी का।
27. विद्यालय का कार्य होता है-
[DSSSB PRT]
(A) संस्कृति का संरक्षण
(B) संस्कृति का परिष्करण
(C) संस्कृति के नये प्रतिरूपों का निर्माण
(D) उपर्युक्त सभी।
28. सामाजिक परिवर्तन का सर्वाधिक कार्यकारी कारक है- [DSSSB PRT]
(A) धर्म
(C) सरकार
(B) शिक्षा
(D) जाति।
29. निम्नलिखित में से कौन-सा सत्य है ?
(A) शिक्षक द्वारा प्रश्न पूछना संज्ञानात्मक
विकास में बाधक है
(B) विकास और सीखना समाज-सांस्कृतिक
सन्दर्भों से अप्रभावित रहते हैं
(C) शिक्षार्थी एक निश्चित तरीके से सीखते हैं
(D) खेलना संज्ञान और सामाजिक दक्षता के
लिए सार्थक है।
30. शिक्षार्थियों को सबसे कम प्रतिबन्धित विद्यालय वातावरण में रखने के माध्यम से, विद्यालय-
(A) लड़कियों और अलाभान्वित वर्गों के लिए शैक्षिक अवसरों को समान करता है
(B) वंचित वर्ग के बच्चों के जीवन को सामान्य करता है जो इन बच्चों के समुदायों और अभिभावकों के साथ विद्यालय के सम्बन्ध को बढ़ा रहा है
(C) विज्ञान मेला और प्रश्नोत्तरी जैसी गतिविधियों में अलाभान्वित वर्ग के बच्चों को भागीदार बनाता है
(D) दूसरे बच्चों को संवेदनशील बनाता है ताकि अलाभान्वित बच्चों को दबाएँ नहीं और उन्हें नीचा न दिखाएँ।
31."कक्षा में वास्तविक सांसारिक समस्याओं से जटिल परियोजनाओं पर कार्य करते हुए अध्यापक व छात्र एक-दूसरे के अनुभवों से परस्पर ग्रहण करते रहते हैं।
(A) अध्यापक केन्द्रित
(B) सामाजिक-रचनात्मक
(C) पारम्परिक
(D) रचनात्मक ।
32. समाजीकरण के सन्दर्भ में विद्यालयों के पास प्रायः एक प्रच्छन्न पाठ्यचर्या विद्यमान रहती है, जिसमें निहित हैं -
[DSSSB PRT; CTET 2014 (VI-VIII)]
(A) परिवारों के माध्यम से विद्यार्थियों का समझौतापूर्ण (negotiating) व प्रतिरोधक समाजीकरण
(B) मूल्यों व अभिवृत्तियों का शिक्षण एवं आकलन
(C) बलात्मक अधिगम, चिन्तन व समक्षीय साथी एवं अध्यापक की अनुकृति द्वारा विशेष रूप से अपनाया जाने वाला व्यवहार
(D) अन्तः क्रिया व सामग्री द्वारा विद्यालयों में प्रस्तुत किए जाने वाले सामाजिक भूमिकाओं से सम्बद्ध अनौपचारिक संकेत ।
33. समाजीकरण की प्रक्रिया में शामिल नहीं है-
[DSSSB PRT; СТЕТ 2015 (VI-VIII)] (A) मूल्यों और विश्वासों का अर्जन
(B) आनुवंशिक संचरण
(C) एक संस्कृति की रीतियों और मानदण्डों को सीखना।
(D) कौशलों का अर्जन।
34. शिक्षकों को यह सलाह दी जाती है कि वे अपने शिक्षार्थियों को सामूहिक गतिविधियों में शामिल करें क्योंकि सीखने को सुगम बनाने के अतिरिक्त ये में भी सहायता करती हैं।
[DSSSB PRT; CСТЕТ 2012 (VI-VIII)]
A) दुश्चिन्ता (
(B) समाजीकरण
(C) मूल्य द्वन्द्व
(D) आक्रामकता।
35. एक शिक्षिका अपने शिक्षार्थियों को अनेक तरह की सामूहिक गतिविधियों, में व्यस्त रखती है, जैसे- समूह चर्चा, समूह- परियोजनाएँ, भूमिका निर्वाह आदि। यह सीखने के किस आयाम को उजगर करता है?
[DSSSB PRT]
(A) सामाजिक गतिविधि के रूप में अधिगम
(B) मनोरंजन द्वारा अधिगम
(C) भाषा-निर्देशित अधिगम
(D) प्रतियोगिता-आधारित अधिगमः।
36. सहयोगी अधिगम में अधिक उम्र के प्रवीण विद्यार्थी, छोटे और कम निपुण विद्यार्थियों की मदद करते हैं। इससेㅡ [DSSSB PRT]
(A) गहन प्रतियोगिता होती है
(B) उच्च नैतिक विकास होता है
(C) समूहों में द्वन्द्व होता है
(D) उच्च उपलब्धि और आत्म-सम्मान होता है।
37. समाजीकरण में सम्मिलित हैं- सांस्कृतिक
संचरण और ………।
[DSSSB PRT; СТЕТ 2013 (VI-VIII)]
(A) विद्रोहियों को निरुत्साहित करना
(B) वैयक्तिक व्यक्तित्व विकास
(C) बच्चों को लेबलों में समायोजित करना
(D) संवेगात्मक समर्थन उपलब्ध करना।
38. संस्कृति पर शिक्षा का क्या प्रभाव पड़ता है? [DSSSB PRT]
(A) संस्कृति का परिष्करण
(B) संस्कृति के हस्तान्तरण में सहायता करना
(C) संस्कृति की निरन्तरता को बनाए रखना
(D) उपर्युक्त सभी।
39. मध्याह्न भोजन के दौरान उच्च जाति के विद्यार्थी निम्न जाति के विद्यार्थियों के साथ एक पंक्ति में भोजन करने से इंकार करते हैं। आप क्या करेंगे ?
[DSSSB PRT]
(A) आप पृथक् बैठक व्यवस्था करने हेतु
सहमत हो जायेंगे
(B) आप उच्चाधिकारियों से निर्देश प्राप्त करेंगे
(C) आप विद्यार्थियों को एकसाथ बैठकर
भोजन करने के लिए सहमत कर लेंगे
(D) आप विद्यालय में मध्याह्न भोजन पकाना बन्द कर देंगे।
40. एक शिक्षक, विद्यार्थियों में सामाजिक मूल्यों को विकसित कर सकता है-
[DSSSB PRT]
(A) अनुशासन की अनुभूति को विकसित कर
(B) आदर्श रूप से बर्ताव कर
(C) महान व्यक्तियों के बारे में बोलकर
(D) उन्हें अच्छी कहानियाँ सुनाकर ।
41. 'समाजमिति तकनीक का प्रयोग किया जाता है- [DSSSB PRT]
(A) आर्थिक स्तर की जाँच में
(B) समाज के सर्वेक्षण में
(C) समाजीकरण की जाँच में
(D) उपर्युक्त सभी।
42. निम्नलिखित में से कौन-सी संस्था सामाजिक परम्पराओं के हस्तान्तरण में सबसे अधिक योगदान करती है ?
[DSSSB PRT]
(A) परिवार
(B) विद्यालय
(C) पड़ोस
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
43. निम्न में से कौन-सा बच्चे की सामाजिक- मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं के साथ सम्बद्ध नहीं है ?
(A) सामाजिक अनुमोदन अथवा सहायता की आवश्यकता
(B) संवेगात्मक सुरक्षा की आवश्यकता
(C) शरीर से अवशिष्ट पदार्थों का नियमित रूप से बाहर निकलना
(D) सान्निध्य संगति की आवश्यकता।
44. बच्चों के समाजीकरण में परिवार भूमिका निभाता है।
[DSSSB PRT; СТЕТ 2016 (I-V)]
(A) कम महत्त्वपूर्ण
(B) रोमांचकारी
(C) मुख्य
(D) गौण।
45. विद्यालय और समाजीकरण के बारे में निम्नलिखित से क्या सत्य है ?
[DSSSB PRT]
(A) समाजीकरण में विद्यालय की कोई भूमिका नहीं होती है।
(B) विद्यालय समाजीकरण का एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
(C) समाजीकरण में विद्यालय की बहुत थोड़ी भूमिका होती है।
(D) विद्यालय समाजीकरण का पहला मुख्य कारक है।
उत्तर -
5.पियाजे, कोहुलबर्ग और वाइगोत्सकी : निर्माण और विवेचित संदर्श
पियाजे के संज्ञात्मक विकास के सिद्धांत के अनुसार:
संज्ञात्मक विकास, विकास के अलग-अलग चरणों पर अलग-अलग दर पर होता है।
संज्ञान बच्चे और वातावरण के बीच परस्पर क्रिया के माध्यम से विकसित होता है।
पियाजे का सिद्धांत ना केवल यह समझने पर केंद्रित है कि बच्चे कैसे ज्ञान प्राप्त करते हैं बल्कि बच्चे की बुद्धि की प्रकृति को भी समझते हैं।
संज्ञात्मक विकास एक निरंतर प्रक्रिया नहीं है, यह निम्नलिखित 4 अवस्थाओं में होता है:-
अवस्था 1: संवेदी-गामक अवस्था (जन्म - 2 वर्ष)
इस अवस्था के दौरान, 2 वर्ष तक के बच्चे अपनी इन्द्रियों के माध्यम से सीखते हैं। इस अवस्था के दौरान वे चालन क्रिया विकसित करते हैं।
वे अपने वातवरण और चीजें इनसे कैसे संबंधित है, के बारे में सीखते हैं। वे यह भी सीखते हैं कि प्रयास और त्रुटि के माध्यम से समस्याओं को कैसे हल किया जाए।
संवेदी-गामक अवस्था में सीखे गए प्राथमिक ज्ञानों में से एक वस्तु स्थिरता है। वस्तु स्थिरता वह संकल्पना है कि यदि वस्तु समतल दृष्टि में मौजूद नहीं हैं, तो भी वे उस स्थिति में लुप्त नहीं होती हैं।
अवस्था 2: पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (2 - 7 वर्ष)
इस अवस्था में बच्चे प्रतीकात्मक अधिगम के माध्यम से सीखते हैं।
प्रतीकात्मक अधिगम भाषा विकास और अनुकरणशील या कल्पनाशील खेल के माध्यम से प्रेरित होता है। एक बच्चा निर्जीव वस्तुओं को मानवीय विशेषताएं दे सकता है।
पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था के दौरान बच्चे में आत्मकेंद्रित सोच होती है। इसका अर्थ है कि उनमें किसी इनाम द्वारा प्रेरित किये बिना उनके स्वयं के दृष्टिकोण के बाहर देखने की क्षमता की कमी होती है।
बच्चा यह भी समझने में सक्षम नहीं होता है कि स्थितियों, कार्यों, या मुद्दों को बदला जा सकता है या प्रतिवर्त किया जा सकता है।
अवस्था 3: मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (7 - 11 वर्ष)
इस अवस्था में, बच्चा तर्क और मूर्त तर्क कौशल विकसित करना शुरू कर देता है। मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में बच्चे मात्रा निर्धारित करने और व्यवस्थित करने में सक्षम होते हैं।
उनकी आत्मकेंद्रित सोच कम हो जाती है। वे दूसरे व्यक्ति के दृष्टिकोण को समझने में सक्षम होते हैं।
मूर्त संक्रियात्मक अवस्था में बच्चे संबंधपरक शब्दों को समझने और उनसे संबंधित होने में सक्षम होते हैं। समय, आकार, स्थान और दूरी जैसे संबंधपरक शब्द इस अवस्था में अधिक आसानी से समझे जाते हैं और अवधारणा बनाते हैं।
अवस्था 4: अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (11 - 15 वर्ष) अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था, पियाजे के विकास के सिद्धांत की अंतिम अवस्था है। इस अवस्था में बच्चे अमूर्त सोच का प्रयोग करने की क्षमता को विकसित करते हैं।
वे निष्कर्ष निकालने के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों, विचारों और अवधारणाओं पर विचार करने में सक्षम होते हैं।
अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था में बच्चे अमूर्त सोच का प्रयोग करने में सक्षम होते हैं। वे समस्याओं को हल करने के लिए अमूर्त सोच का प्रयोग करते हैं। अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था में बच्चे का कौशल पूर्ण वर्णित होता है।
यह निष्कर्ष निकालने और समस्याओं को हल करने के लिए विचार के निम्नलिखित रूपों को आसान बनाता है:
निगमनात्मक तर्क
परिकल्पित स्थिति
जानकारी के संगठन के माध्यम से समस्या-समाधान
सूचना, विचार और राय से निष्कर्ष निकालना
सूचित राय बनाने की क्षमता
कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत (kohalberg theory of moral development):-
कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत एक सिद्धांत है जो इस बात पर केंद्रित है कि बच्चे "नैतिकता" और "नैतिक तर्क" कैसे विकसित करते हैं। कोहलबर्ग का सिद्धांत बताता है कि नैतिक विकास तीन स्तरों में होता है और प्रत्येक स्तर के दो चरण होते हैं।
सिद्धांत यह भी बताता है कि नैतिक तर्क मुख्य रूप से निर्णय की खोज और उसे बनाए रखने पर केंद्रित है। यह बच्चों के न्यायिक निर्णय के बारे में जीन पियाजे के विचार पर आधारित है।
नैतिक विकास के चरण: कोहलबर्ग के सिद्धांत को तीन प्राथमिक स्तरों में विभाजित किया गया है। नैतिक विकास के प्रत्येक स्तर पर दो चरण होते हैं।
स्तर 1- पूर्व-परंपरागत नैतिकता (4 से 10 वर्ष): पूर्व-परंपरागत नैतिकता नैतिक विकास की प्रारंभिक अवधि है। इस आयु में, बच्चों के फैसले मुख्य रूप से वयस्कों की अपेक्षाओं और नियमों को तोड़ने के परिणामों से आकार लेते हैं। इस स्तर पर दो चरण हैं:
चरण 1 (आज्ञाकारिता और सजा): इस स्तर पर बच्चे "नियमों को निश्चित और निरपेक्ष" के रूप में देखते हैं। नियमों का पालन करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सजा से बचने का एक तरीका है। इसमें बच्चे दूसरों के विचारों की उपेक्षा करने के बजाय अधिकार और नकारात्मक परिणामों के डर पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
चरण 2 (वाद्य उद्देश्य अभिविन्यास): नैतिक विकास के व्यक्तिवाद और विनिमय चरण में, बच्चे व्यक्तिगत दृष्टिकोणों को दिखाते हैं और व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा करने के आधार पर कार्यों का निर्णय करते हैं।
स्तर 2- पारंपरिक नैतिकता (10 से 13 वर्ष): नैतिक विकास की अगली अवधि सामाजिक नियमों की स्वीकृति से चिह्नित होती है कि क्या अच्छा है और क्या नैतिक है। इस समय के दौरान, किशोर और वयस्क अपने आदर्शों और समाज से सीखे गए नैतिक मानकों को आत्मसात करते हैं।
चरण 3 (अच्छा लड़का - अच्छी लड़की अभिविन्यास): नैतिक विकास के पारस्परिक संबंधों का यह चरण सामाजिक अपेक्षाओं और भूमिकाओं पर खरा उतरने पर केंद्रित है। "अच्छा" होने की अनुरूपता पर जोर दिया जाता है, और इस बात पर विचार किया जाता है कि विकल्प संबंधों को कैसे प्रभावित करते हैं।
चरण 4 (सामाजिक व्यवस्था बनाए रखना): यह चरण यह सुनिश्चित करने पर केंद्रित है कि सामाजिक व्यवस्था बनी रहे। नियमों का पालन करके, अपने कर्तव्य का पालन करते हुए और अधिकार का सम्मान करके कानून और व्यवस्था बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
स्तर 3. उत्तर-परंपरागत नैतिकता (13 से 16 वर्ष): नैतिक विकास के इस स्तर पर, लोग नैतिकता के अमूर्त सिद्धांतों की समझ विकसित करते हैं। इस स्तर पर दो चरण हैं:
चरण 5 (सामाजिक अनुबंध और व्यक्तिगत अधिकार): इस स्तर पर, लोगों का मानना है कि समाज को बनाए रखने के लिए कानून के नियम महत्वपूर्ण हैं, लेकिन समाज के सदस्यों को इन मानकों पर सहमत होना चाहिए।
चरण 6 (सार्वभौमिक सिद्धांत): कोहलबर्ग का नैतिक तर्क का अंतिम स्तर सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों और अमूर्त तर्क पर आधारित है। इस स्तर पर, लोग निर्णय के आंतरिक सिद्धांतों का पालन करते हैं, भले ही वे कानूनों और नियमों का विरोध करते हों।
वाइगोत्सकी की का संज्ञानात्मक विकास
(Cognitive Development of Vygoteky)
वाइगोत्सकी ने संज्ञानात्मक विकास के लिए एक सामाजिक दृष्टिकोण प्रदान किया। उन्होंने बच्चे के विकास और उस सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ के बीच संबंध स्थापित करने का प्रयास किया जिसमें बच्चा स्थित था।
वाइगोत्सकी ने भाषा को अधिगम और विकास के बीच एक महत्वपूर्ण मध्यस्थ के रूप में देखा।
वाइगोत्सकी के समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य के अनुसार, बच्चों के विकास और अधिगम में वयस्कों और साथियों के साथ अंतःक्रिया का अधिक महत्व है।
वाइगोत्सकी ने संज्ञानात्मक विकास के लिए एक सामाजिक दृष्टिकोण प्रदान किया। उन्होंने बच्चे के विकास और उस सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ के बीच संबंध स्थापित करने का प्रयास किया जिसमें बच्चा स्थित था।
वाइगोत्सकी ने भाषा को अधिगम और विकास के बीच एक महत्वपूर्ण मध्यस्थ के रूप में देखा।
इस प्रकार, भाषा विकास में एक केंद्रीय भूमिका निभाती है। वाइगोत्सकी (1978) लिखते हैं कि भाषा बच्चों को सक्षम बनाती है:
कठिन कार्यों को हल करने में (जब बच्चे किसी समस्या का भाषा में उच्चारण करते हैं)
आवेगी कृत्य पर काबू पाने के लिए (बच्चे भाषा के माध्यम से खुद को नियंत्रित करते हैं; यदि उनका मन इलेक्ट्रिक स्विच को छूने के लिए कहता है, तो वे खुद को "नहीं" कह कर रोक लेते हैं)
किसी समस्या को क्रियान्वित करने से पहले उसके समाधान की योजना बनाना
अपने स्वयं के व्यवहार में महारत हासिल करने के लिए
वाइगोत्सकी का मानना था कि चूंकि भाषा संस्कृतियों और समुदायों में भिन्न होती है, इसलिए सोच/संज्ञानात्मक विकास अनुभूति भी भिन्न होती है।
इसलिए, भाषा न केवल दूसरों के साथ अंतःक्रिया करने के लिए आवश्यक है, यह सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में मानसिक प्रक्रियाओं के विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
एक कक्षा में विविध भाषाई पृष्ठभूमि वाले बच्चों के साथ, शिक्षक के लिए उन तरीकों को समझना महत्वपूर्ण हो जाता है जिनसे बच्चे धीरे-धीरे दूसरी भाषा में पहुँचते हैं।
प्रश्नोत्तरी:-