अध्याय 1 : भोजन यह कहाँ से आता है ?
संघटक :- भोजन बनाने के लिए हमें कई चीजों की आवश्यकता पड़ती है जिसे संघटक कहते है।
जैसे :- कच्ची सब्जियां , नमक , मसाला , तेल आदि।
खाद्य पदार्थों के स्रोत :- जिन-जिन चीजों से हम अपना भोजन प्राप्त करते हैं उन्हें ही खाद्य पदार्थों का स्रोत कहते है।
1. पौधे :- गेंहू , धान , दाल , सब्जी , तथा फल आदि।
2. जंतुओं :- दूध , अंडा , माँस , घी , दही तथा पनीर आदि।
भोजन के रूप :– पौधे हमारे भोजन का एक मुख्य स्रोत है।
खाने योग्य भाग :- कुछ पौधों के दो या दो से अधिक भाग खाने योग्य होते है।
तना , जड़ ,फल , पत्ता ,फूल आदि ।जैसे :-
1.आलु का तना खाया जाता है।
2. मूली का जड़ खाया जाता है।
3.लौकी का फल खाया जाता है।
4.पालक का पत्ता खाया जाता है।
5. सीताफल के फूल पकौड़े बनाए जाते है।
अंकुरण :- बीज से शिशु पौधें का उगाना अंकुरण कहलाता है।
अंकुरित :- अंकुर बीजों से एक सफेद रंग की धागे जैसी संरचना निकलती है जिसे अंकुरित कहते है।
मकरंद :- मधुमक्खियों द्वारा इकट्ठा की गई फूलों से मकरंद ( मीठे रस ) एकत्रित करके छत्ते में भंडारित करती है जो बाद में शहद बन जाती है।
मधुमक्खियों द्वारा भंडारित भोजन का शहद के रूप में उपयोग करते हैं।
खाद्य स्रोत के आधार जंतुओं को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है।
1. शाकाहारी :- जो जंतु केवल पादप खाते हैं। जैसे – हिरण , गाय , बकरी , खरगोश आदि।
2. मांसाहारी :- जो जंतु केवल जंतुओं को ही खाते हैं। जैसे – शेर , बाघ , लोमड़ी , आदि।
3. सर्वाहारी :- जो जंतु पादप और दूसरे प्राणी , दोनों को ही खाते हैं। मनुष्य , कौआ , कुत्ता आदि।
हमारे भोजन के मुख्य स्रोत पौधे तथा जंतु हैं।
भारत में विभिन्न प्रदेशों में पाए जाने वाले भोजन में बहुत अधिक विविधता है।
अध्याय 2 : भोजन के घटक
पोषक :- वे तत्व जो हमें वृद्धि और कार्य करने के लिए ऊर्जा देते है उन्हें पोषक कहते है।
पोषक तत्व :- कार्बोहाइड्रेट , प्रोटीन , वसा , विटामिन तथा खनिज लवणों को पोषक तत्व कहते है।
कार्बोहाइड्रेट :- हमारे भोजन में पाए जाने वाले मुख्य कार्बोहाइड्रेट , मंड तथा शर्करा के रूप में होते हैं।
कार्बोहाइड्रेट मुख्य रूप से हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
कार्बोहाइड्रेट के स्रोत :- चावल , गेहूँ , आलू , शकरकंदी , मक्का , पपीता आदि।
प्रोटीन :- बैंगनी रंग खाद्य पदार्थ में प्रोटीन की उपस्थिति दर्शाता है।
प्रोटीन की आवश्यकता शरीर की वृद्धि तथा स्वस्थ रहने के लिए होती है।
प्रोटीन के स्रोत :- पादप से चना , मटर , राजमा , मूँग ,सोयाबीन जंतु से मांस , अंडे , मछली , दूध , पनीर आदि।
वसा :- कागज पर तेल का धब्बा खाद्य पदार्थ में वसा की उपस्थिति दर्शाता है।
वसा से हमारे शरीर को ऊर्जा मिलती है।
वसा के स्रोत :- पादप से मूँगफली , तिल , गिरि , तेल जंतु से अंडे , मछली , मांस , दूध , घी , मक्खन आदि।
विटामिन :- विटामिन कई प्रकार के होते हैं, जिन्हें अलग नामों को जाना जाता है।
विटामिन A , विटामिन B , विटामिन C , विटामिन D , विटामिन E , विटामिन K के नाम से जाना जाता है।
विटामिनों के एक समूह को विटामिन B-कॉम्प्लैक्स कहते है।
हमारे शरीर मे अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है।
विटामिन A :- हमारी त्वचा तथा आँखों को स्वस्थ रखता है।
विटामिन C :– रोगों से लड़ने में हमारी मदद करता है।
विटामिन D :- हमारी अस्थियों और दाँतो के लिए कैल्सियम का उपयोग करने में हमारे शरीर की सहायता करता है।
हमारा शरीर भी सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति से विटामिन D बनाता है।
खनिज लवण :- हमारे शरीर के उचित विकास तथा अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रत्येक खनिज लवण की आवश्यकता है।
खनिज लवण के स्रोत :- आयोडीन , अदरक , केकड़ा ।
फास्फोरस के स्रोत :- दूध , केला , गेंहूँ ।
लोहे के स्रोत :- पालक , सेब , यकृत ।
कैल्सियम के स्रोत :- दूध , अंडा आदि ।
रुक्षांश :- हमारे शरीर को आहारी रेशों तथा जल की भी आवश्यकता होती है।
आहारी रेशे रुक्षांश के नाम से भी जाने जाते हैं।
रुक्षांश के मुख्य स्रोत :– साबुत खाद्यान्न , दाल , आलू , ताज़े फल , और सब्जियां है।
रुक्षांश बिना पचे भोजन को बाहर निकालने में हमारे शरीर की सहायता करता है।
जल भोजन में उपस्थित पोषकों को अवशोषित करने में हमारे शरीर की सहायता करता है।
यह कुछ अपशिष्ट– पदार्थों , जैसे कि मूत्र तथा पसीने को शरीर से बाहर निकालने में सहायता करता है।
आहार :- सामान्यतः पूरे दिन में जो कुछ भी हम खाते हैं , उसे आहार कहते हैं।
संतुलित आहार :- हमारे शरीर की वृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए हमारे आहार में वे सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में होने चाहिए जिनकी हमारे शरीर को आवश्यकता है।
1.दालें , मूँगफली , सोयाबीन , अंकुरित बीज ( मूँग व चना )
2. केला , पालक , सत्तू , गुड़ , फल व सब्जियाँ आदि ।
अध्याय 3 : तंतु से वस्त्र
प्राकृतिक तंतु :- जो तंतु पादपों या जंतुओं से प्राप्त होते है उन्हें प्राकृतिक तंतु कहते है।
पादपों से प्राप्त तंतु :- कपास , रुई , जुट , पटसन आदि ।
जंतुओं से प्राप्त तंतु :– ऊन तथा रेशम आदि।
ऊन भेड़ , बकरी , याक , खरगोश प्राप्त होता है।
रेशमी तन्तु रेशम-कीट कोकून से खींचा जाता है।
संश्लिष्ट तंतु :- रासायनिक पदार्थों द्वारा बनाये गए तंतु को संश्लिष्ट तंतु कहते है।
जैसे :- पुलिएस्टर , नायलॉन , और एक्रिलिक संश्लिष्ट तंतुओं के उदाहरण है।
पादप तंतु :- जो तंतु पादपों से प्राप्त होता है।
रुई :- रुई एक प्राकृतिक तंतु जो पौधों से प्राप्त होता है।
कपास की फसल :– काली मृदा तथा जलवायु उष्ण में होती है।
कपास पादप के फल ( कपास गोलक ) के पूर्ण परिपक्व होने के बाद कपास बॉलों से कपास हस्त चयन द्वारा प्राप्त किया जाता है।
कपास ओटना :- कपास से बीजों को कंकतन द्वारा पृथक किया जाता है इस प्रक्रिया को कपास ओटना कहते हैं।
आजकल कपास ओटने के लिए मशीनों का उपयोग भी किया जाता है।
पटसन तंतु को पटसन पादप के तने से प्राप्त किया जाता है।
भारत में इसकी खेती वर्षा-ऋतू में की जाती है।
भारत में पटसन को प्रमुख रूप से पश्चिम बंगाल , बिहार तथा असम में उगाया जाता है।
फसल कटाई के पश्चात पादपों के तने को कुछ दिनों तक जल में डुबाकर रखते हैं।
पृथक :- पटसन-तंतुओं से हाथों द्वारा पृथक कर दिया जाता है।
कताई :- रेशों से तागा बनाने की प्रक्रिया को कताई कहते है। इस प्रक्रिया में , रुई के एक पुंज से रेशों को खींचकर ऐंठते हैं जिससे रेशे पास-पास आ जाते है और तागा बन जाता है।
तकली :- कताई के लिए एक सरल युक्ति ‘ हस्त तकुआ ‘ का उपयोग किया जाता है तकली कहते है।
चरखा :- हाथ से प्रचलित कताई में उपयोग होने वाली एक अन्य युक्ति चरखा है।
तागो की कताई का कार्य कताई मशीनों की सहायता से किया जाता है।
तागो से वस्त्र बनाने की विधियाँ :– बुनाई तथा बंधाई
बुनाई :- तागो के दो सेंटो को आपस में व्यवस्थित करके वस्त्र बनाने की प्रक्रिया को बुनाई कहते है।
वस्त्रों की बुनाई करघों पर की जाती है। करघे या तो हस्तप्रचालित होते है अथवा विधुतप्रचालित।
बुनाई तथा बंधाई का उपयोग विभिन्न प्रकार के वस्त्रों के निर्माण में किया जाता है। ये वस्त्रों का उपयोग पहनने की विविध वस्तुओं को बनाने में होता है।
अध्याय 4 : वस्तुओं के समूह बनाना
❍ पदार्थ :- प्रत्येक वस्तु जिसका कोई निश्चित भार (द्रव्यमान) होता तथा वह स्थान घेरती है, पदार्थ कहलाता है पृथ्वी में पदार्थ तीन अवस्थाओं में मुख्यतः पाए जाते हैं ठोस, द्रव, एवं गैस ।
❍ ठोस :- पदार्थ की वह अवस्था जिसमें आकार एवं आयतन दोनों निश्चित हो, ठोस कहलाता है।
❍ जैसे- लकड़ी, लोहा, बर्फ का टुकड़ा
❍ द्रव :- पदार्थ की वह अवस्था जिसका आकार अनिश्चित एवं आयतन निश्चित हो द्रव कहलाता है।
❍ जैसे – पानी, तेल, अल्कोहल
❍ गैस :- पदार्थ की वह अवस्था जिसमें आकार एवं आयतन दोनों अनिश्चित होता हो गैस कहलाता है।
❍ जैसे- हवा, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड।
हम अपने दैनिक जीवन में कई वस्तुओं का उपयोग करते हैं तथा कई वस्तुओं का उपभोग करते हैं, पर उनमें हर वस्तु अलग-अलग प्रकार की होती है।
❍ पदार्थों के गुण :- किसी पदार्थ को बनाने के लिए किसी पदार्थ का चयन उस पदार्थ के गुणों तथा उपयोग की जाने वाली वस्तु के प्रयोजन पर निर्भर है।
❍ दिखावट :- पदार्थ प्रायः एक-दूसरे से भिन्न दिखाई देते हैं।
❍ जैसे :- लकड़ी लोहे से बिल्कुल भिन्न दिखाई देती है।
कुछ पदार्थ चमकदार , खुरदरे , चिकने , कठोर तथा कोमल लगते हैं।
❍ कोमल पदार्थ :- वे पदार्थ जिन्हें आसानी से संपीड़ित किया अथवा खरोंचा जा सकता हैं।
❍ कठोर पदार्थ :- वे पदार्थ जिन्हें संपीड़ित करना कठिन होता है।
❍ धातु :- पदार्थ जिनमें इस प्रकार की द्युति होती है, वे प्रायः धातु होते है।
❍ उदाहरण :- लोहा , ताँबा , एलुमिनियम तथा सोना आदि।
❍ विलेय :- कुछ पदार्थ जल में घुल जाते है।
❍ जैसे :- पानी और नमक ।
❍ अविलेय :- कुछ पदार्थ जल के साथ मिश्रित नही होते है।
❍ जैसे :- पानी और धूल।
❍ पारदर्शिता :- पदार्थों का वह गुण है जिसमे वह प्रकाश को स्वंय से पार जाने की अनुमति देते हैं।
❍ पारदर्शी :- ऐसा पदार्थ जिसके आर पार देखा जा सकता है पारदर्शी पदार्थ कहते हैं। पारदर्शी पदार्थों में प्रकाश आर-पार जा सकता है।
❍ जैसे- कांच, जल, वायु
❍ अपारदर्शी :- वैसे पदार्थ जिनमें से होकर आप वस्तुओं के आर-पार नहीं देख सकते उन्हें अपारदर्शी पदार्थ कहते हैं
❍ जैसे- पेपर, धातुएं, लकड़ी
❍ पारभासी :-वैसे पदार्थ जिससे आप आपकी वस्तु को आर पार देख तो सकते हैं परंतु स्पष्ट रूप से नहीं इन पदार्थों को पारभासी पदार्थ कहते हैं।
❍जैसे- बटर पेपर, मोटी काँच
❍ आर्किमीडीज का सिद्धांत ( Principle of Archimedes ) :- जब कोई वस्तु किसी द्रव में पूरी अथवा आंशिक रूप से डुबोई जाती है तो उसके भार में कमी का आभास होता है । भार में यह आभासी कमी वस्तु द्वारा हटाए गए द्रव के भार के बराबर होती हैं इसे ‘ आर्किमीडीज का सिद्धान्त ’ कहते हैं । इसके अनुप्रयोग निम्न प्रकार हैं –
❍ लोहे की बनी छोटी – गेंद पानी में डूब जाती है तथा बड़ा जहाज तैरता रहता है क्योंकि जहाज द्वारा विस्थापित किए गए जल का भार उसके भार के बराबर होता है ।
अध्याय 6 – हमारे चारों ओर के परिवर्तन
❍ हमारे चारों ओर बहुत से परिवर्तन अपने आप होते रहते हैं।
❍खेतो में फसलें समयनुसार बदलती रहती हैं ।
❍पत्तियाँ रंग बदलती हैं और सूखकर पेड़ो से गिर जाती हैं।
❍फूल खिलते हैं और फिर मुरझा जाते हैं।
❍परिवर्तन :- पदार्थों को गर्म करके या किसी अन्य पदार्थ के साथ मिश्रित करके उनमें परिवर्तन लाए जा सकते है।
❍उत्क्रमित :- इसमें कुछ परिवर्तन किया जा सकता है। जबकि कुछ में परिवर्तन को उत्क्रमित नही किया जा सकता हैं।
❍उत्क्रमित परिवर्तन :- ऐसे परिवर्तन जिसको पुनः अवस्था में लाया जा सकता हैं।
❍जैसे :- आटे को लोई को बेलकर रोटी बनती है , इससे पुनः लोई में परिवर्तन किया जा सकता हैं।
❍उत्क्रमित अपरिवर्तन :- ऐसे परिवर्तन जिन्हें अपने पूर्व अवस्था में नही लाया जा सकता ।
❍जैसे :- जबकि पकी हुई रोटी से पुनः लोई नही प्राप्त किया जा सकता हैं।
❍ प्रसार :- जब कोई वस्तु गर्म होने से फैलता है या पिघलने लगता है तो उसे प्रसार कहते हैं।
❍ संकुचन :- जब किसी वस्तु को गर्म किया जाता है तो यह फैल जाता है और ठंडा होने पर सिकुड़ जाता है , इसे ही संकुचन कहते हैं।
❍आवर्ती परिवर्तन :- वह परिवर्तन जिनकी नियमित समय अंतरालों के बाद पुनरावृति होती है ।
जैसे :- सूरज का उगना
❍अनावर्ती परिवर्तन :- वह परिवर्तन जिनकी नियमित समय अंतरालों के बाद पुनरावृति नही होती है।
❍गलन :- किसी वस्तु का किसी निश्चित तापमान पर द्रव अवस्था मे परिवर्तित होना गलन कहलाता हैं
❍वाष्पन :- जल को उसके वाष्प में परिवर्तन करने की प्रक्रिया को वाष्पन कहते हैं।
❍जैसे :– सूर्य के प्रकाश से जल गर्म होकर वाष्पन द्वारा धीरे-धीरे वाष्प में बदलने लगता है।
अध्याय 7 – पौधों का जानिए
❍ शाक :- हरे एवं कोमल तने वाले पौधे शाक कहलाते हैं।
❍ झाड़ी :- कुछ पौधों में शाखाएँ तने के आधार के समीप से निकलती हैं। तना कठोर होता है परंतु अधिक मोटा नही होता इन्हें झाड़ी कहते हैं।
❍ वृक्ष :- कुछ पौधे बहुत ऊँचे होते है इनके तने सुदृढ़ एवं गहरे भूरे होते हैं। इनमें शाखाएँ भूमि से अधिक ऊँचाई पर तने के ऊपरी भाग से निकलती हैं इन्हें ही वृक्ष कहते हैं।
❍ लता :- कमजोर तने वाले पौधे सीधे खड़े नही हो सकते और ये भूमि पर फैल जाते हैं इन्हें ही लता कहते हैं।
❍ आरोही :- कुछ पौधे आस-पास के ढाँचे की सहायता से ऊपर चढ़ जाते हैं ऐसे पौधे आरोही कहलाते हैं।तने पौधे को सहारा देते है और जल तथा खनिज के परिवहन में सहायता करते। हैं
उदाहरण :- मनी प्लांट का पौधा
❍ फलक :- पत्ती के चपटे हरे भाग को फलक कहते हैं।
❍ शिरा :- पत्ती की इन रेखित संरचनाओं को शिरा कहते हैं।
❍ शिरा-विन्यास :- घास की पत्तियों में यह शिराएँ एक दूसरे के समांतर हैं। ऐसे शिरा-विन्यास को समांतर शिरा-विन्यास कहते है।
❍ रन्ध्र :- पत्तियों की सतह पर छोटे-छोटे छिद्र पाए जिन्हें रन्ध्र कहते है। रन्ध्र से गैसों का और वाष्पोत्सर्जन की क्रिया भी होती हैं।
❍ पर्णवृन्त :- पत्ती का वह भाग जिसके द्वारा वह तने से जुड़ीं होती है , पर्णवृन्त कहते है।
❍ रेशेदार जड़ :- जिन पौधों की जड़े एकसमान दिखाई देती हैं ।
❍ मूसलाजड़ :- जिन पौधों की मुख्य जड़ सीधे मिट्टी के अंदर जाती हैं ऐसे जड़ को मूसला जड़ कहते हैं।
अध्याय 8 – शरीर में गति
❍ हम शरीर के विभिन्न भागों को उसी स्थान से मोड़ अथवा घुमा पाते हैं , जहाँ पर दो हिस्से एक-दूसरे से जुड़े हो।
❍ उदाहरण के लिए :- कोहनी , कंधा , अथवा गर्दन
❍ संधि :- हम शरीर के विभिन्न भागों को उसी स्थान से मोड़ अथवा घुमा पाते हैं , जहां पर दो हिस्सेएक-दूसरे से जुड़े हो इन स्थानों को संधि कहते हैं।
❍ कंदुक-खल्लिका संधि :– सभी दिशाओं में गति करता है।
❍ घुटना हिंज संधि का एक उदाहरण हैं।
❍ अचल संधि :- हमारे सिर की कुछ संधियों में अस्थि हिल नही सकती ऐसे संधियों को अचल संधि कहते हैं।
❍ कंकाल :- हमारे शरीर की सभी अस्थियाँ ठीक इसी प्रकार शरीर को एक सुंदर आकृति प्रदान करने के लिए एक ढाँचे का निर्माण करती हैं इस ढाँचे को कंकाल कहते हैं।
❍ पसली-पिंजर :- पसलियाँ वक्ष की अस्थि एवं मेरुदंड से जुड़कर एक बक्से की रचना करती हैं इस शंकुरुपी बक्शे को पसली-पिंजर कहते हैं।
❍ अस्थियाँ एवं उपस्थियाँ संयुक्त रूप से शरीर का कंकाल का निर्माण करते हैं।
❍ गति करने समय पेशियों के संकुचन से अस्थियाँ खिंचती हैं।
❍ हिंज संधि :- ऐसी संधि जो केवल आगे और पीछे एक ही दिशा में गति करती है उसे हिंज संधि कहते है।
❍ केंचुए में गति शरीर की पेशियों के बारी-बारी से विस्तरण एवं संकुचन से होती हैं।
❍ पेशियों के जोड़े के एकांतर क्रम में सिकुड़ने एवं फैलने से अस्थियाँ गति करती हैं।
❍ मछली के शरीर पर पंख होते हैं जो तैरते समय जल में संतुलन बनाए रखने में एवं दिशा निर्धारण में सहायता करते हैं।
अध्याय 9 – सजीव एवं उनका परिवेश
❍ उद्दीपन हम आस-पास होने वाले परिवर्तनों के प्रति अनुक्रिया करते हैं वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को उद्दीपन कहते हैं।
❍ उत्सर्जन :- शरीर का अपशिष्ट पदार्थ सजीवों द्वारा निष्कासन के प्रक्रम को उत्सर्जन कहते हैं।
❍ आवास :- किसी सजीव का वह परिवेश जिसमें वह रहता है , उसका आवास कहलाता है।
❍ अनुकूलन :- जिन विशिष्ट संरचनाओं अथवा स्वभाव की उपस्थिति किसी पौधे अथवा जंतु को उसके परिवेश में रहने के योग्य बनाती है , अनुकूलन कहलाता हैं।
❍ स्थलीय आवास :- स्थल ( जमीन ) पर पाए जाने वाले पौधों एवं जंतुओं के आवास को स्थलीय आवास कहते हैं।
उदाहरण :- वन , घास के मैदान , मरुस्थल , तटीय एवं पर्वतीय क्षेत्र आदि।
❍ जलीय आवास :- जलाशय , दलदल , झील , नदियाँ , एवं समुद्र , जहाँ पौधे एवं जंतु जल में रहते हैं , जलीय आवास कहलाता है।
❍ जैव घटक :- पारिस्थितिकी तंत्र के संजीव घटकों को जैव घटक कहते हैं। इसमें पेड़-पौधे तथा जन्तु होते हैं।
❍ अजैव घटक :- किसी पारिस्थितिक तन्त्र में पाए जाने वाले सभी निर्जीव पदार्थ उसके अजैवक घटक हैं।
जैसे :- चट्टान , मिट्टी , वायु एवं जल आदि।
❍सूर्य का प्रकाश एवं ऊष्मा भी परिवेश के अजैव घटक हैं।
❍ अंकुरण :- बीज से नए पौधे का प्रारंभ है , जब बीज से अंकुरण निकल आता है तो इस प्रक्रिया को अंकुरण कहते हैं।
❍ प्रजनन :- जीव-जंतु प्रजनन द्वारा अपने समान संतान उत्पन्न करते हैं।
❍ कुछ जंतु अंडे देते हैं।
❍ कुछ जंतु शिशु को जन्म देते हैं।
❍ गति :- सभी सजीव एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते हैं तथा उनके शरीर मे अन्य प्रकार की गति भी करते हैं।
❍ भोजन :- भोजन सजीवों को उनकी वृद्धि के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है।
❍ वृद्धि :- जंतुओं के बच्चे भी वृद्धि कर वयस्क हो जाते है।
❍ श्वसन क्रिया :- हम वायु से ऑक्सीजन लेते है और कार्बनडाइऑक्साइड को श्वास द्वारा बाहर निकल देते है।
❍श्वसन सभी सजीवों के लिए आवश्यक है।
❍ केंचुआ त्वचा द्वारा साँस लेता हैं।
❍ मछली गिल द्वारा साँस लेते है।
❍ पौधे पत्तियाँ सूक्ष्म रन्धों द्वारा वायु को अंदर लेती है।
सजीव में श्वसन , उत्सर्जन , उद्दिपन के प्रति अनुक्रिया ,प्रजनन , गति एवं वृद्धि , तथा मृत्यु होती हैं।
अल्प अवधि में किसी एक जीव के शरीर में होने वाले ये छोटे-छोटे परिवर्तन पर्यनुकूलन कहलाते हैं।
अध्याय 10 – गति एवं दूरियों का मापन
❍प्राचीन काल में लोग पैदल चलते थे , जल मार्गों में आने-जाने के लिए नावों का उपयोग करते थे ।
❍ यातयात साधन :- आने-जाने के साधन को यातायात कहते हैं।
❍ सड़क परिवहन :- साइकिल , मोटरसाइकिल , कार , बस एवं रेलगाड़ी आदि ।
❍ वायु परिवहन :- हेलीकॉप्टर , जेट विमान , हवाई जहाज आदि ।
❍ जल परिवहन :- नाव , स्टीमर , पानी जहाज आदि ।
❍ मात्रक :- मापन के एक निश्चित राशि को मात्रक कहते हैं।
❍ माप के परिणाम :- 1. संख्या भाग और 2. मात्रक भाग
❍ लम्बाई मापने के प्राचीन तरीके हैं :- पैर की लम्बाई , अंगुली की चौड़ाई , हाथ की लम्बाई , एक कदम की दूरी आदि ।
❍ लम्बाई मापने के आधुनिक तरीके हैं :- मिलीमीटर , सेंटीमीटर , मीटर , तथा किलोमीटर आदि ।
❍ संसार के विभिन्न भाग प्रयोग :- मात्रक के रूप
❍ 1 गज में कितना फुट होता है
एक गज में 3 फुट होता है।
❍ 1 गज में कितना इंच होता है
1 गज में 36 इंच होता है।
यहां से आगे तैयार किया जा रहा हैं..…....
अध्याय 11 – प्रकाश – छायाएँ एवं परावर्तन
❍ दीप्त वस्तुएं :- जो वस्तुएं स्वयं प्रकाश उत्सर्जित करती हैं, उन्हें दीप्त वस्तुएं कहते हैं।जैसे—सूर्य, तारे, जुगनू, विद्युत् का बल्ब आदि।
❍ पारदर्शी वस्तु :- जिस वस्तु के आर-पार देख सकते हैं, उस वस्तु को पारदर्शी वस्तु कहते हैं
जैसे :- शीश , काँच , पानी आदि।
❍ अपारदर्शी वस्तु :- जिस वस्तु को आर-पार नहीं देख सकते, उस वस्तु को अपारदर्शी वस्तु कहते हैं।
जैसे :- दीवार , लकड़ी , पुस्तक आदि।
❍ पारभासी वस्तु :- जिन वस्तुओं के आर-पार देख तो सकते हैं परंतु बहुत स्पष्ट नहीं, ऐसी वस्तुओं को पारभासी वस्तुएं कहते हैं।
जैसे :- धुआँ, कोहरा, और तेल लगा कागज़ आदि।
❍ छाया वस्तु:- हम जानते हैं कि प्रकाश सरल रेखा में गमन करता है। जब कोई अपारदर्शी वस्तु इसे रोकती है तो उस वस्तु की छाया बनती है।
जैसे :- कमरे की दीवार , इमारतें , सतह जो छाया की तरह कार्य करते हैं।
❍ हमें सूर्य को सीधे कदापि नही देखना चाहिए। ये हमारी आंखों के लिए अत्यंत हानिकारक हो सकता हैं।
❍ प्रकाश :- हम प्रकाश के बिना वस्तुएं नहीं देख सकते हैं। प्रकाश वस्तुओं को । देखने में सहायता करता है।
❍ दर्पण :- वह वस्तु जिसमें किसी वस्तु का प्रतिबिंब बनता है दर्पण कहलाता है।
दर्पण दो प्रकार के होते है।
1. समतल दर्पण :- जिस दर्पण की परावर्तन सतह समतल होती है, उसे समतल दर्पण कहते हैं।
जैसे :-इसका उपयोग घरों में चेहरा देखने के काम आता है।
2. गोलीय दर्पण :- गोलीय दर्पण कांच के खोखले गोले का भाग होता है , जिसकी एक सतह पर पॉलिश की जाती है । गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते है।
1.अवतल दर्पण
2. उतल दर्पण
❍ परावर्तन :- किसी समतल सतह से टकरा कर प्रकाश के वापिस उसी माध्यम में लौट जाने को परावर्तन कहते हैं।
जैसे :- झील अथवा तालाब के पानी में पेड़ो , इमारतों तथा अन्य वस्तुओं का प्रवर्तन देखते हैं।
❍ सूची छिद्र कैमरा :- सूची छिद्र प्रतिबिंब तब संभव है जब प्रकाश केवल सरल रेखा में गमन करे।
सूची छिद्र कैमरे से सूर्य के तीव्र प्रकाश में सड़क पर गतिमान वाहनों एवं व्यक्तियों को देखें ।
अध्याय 12 – विधुत तथा परिपथ
❍विद्युत :- किसी चालक में विद्युत आवेशों के बहाव से उत्पन्न ऊर्जा को विद्युत कहते है।
❍ विद्युत के प्रकार :- स्थिर विद्युत आवेश के रूप में होता हैं और इसे अधिक मात्रा में उतपन्न नही कर सकते है। गतिशील विद्युत का उत्पादन बहुत अधिक मात्रा में किया जा सकता हैं।
❍ विद्युत सेल:
❍ घनात्मक :- विद्युत सेल में धातु की टॉपी धनात्मक सिरा कहलाता है।
❍ ऋणात्मक :- धातु की डिस्क ऋणात्मक सिरा कहलाता है।
❍ विद्युत-सेल में संचित रासायनिक पदार्थों से सेल विद्युत उत्पन्न करता है।
❍ तंतु :- प्रकाश उत्सर्जित करने वाले पतले तार को बल्ब का तंतु कहते हैं।
❍ विद्युत् – परिपथ :- वह पथ जिसमे इलेक्ट्रॉन एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक प्रवाहित हो सके, विद्युत परिपथ कहलाता है।
विद्युत परिपथ चार प्रकार के होते है –
1.खुला परिपथ
2.बंद परिपथ
3.लघु परिपथ
4.लीकेज परिपथ
विद्युत् -परिपथ विद्युत् -धारा की विद्युत् – सेल के (+) टर्मिनल से ( -) टर्मिनल की ओर होती हैं।
जब बल्ब टर्मिनलों को तार के द्वारा विद्युत् – सेल के टर्मिनलों से जोड़ा जाता है तो बल्ब के तंतु से होकर विद्युत् -धारा प्रवाहित होती है। यह बल्ब को दीप्तिमान करती है।
❍ विद्युत् – स्विच :- विद्युत् -बल्ब को ‘ ऑन ‘ अथवा ‘ ऑफ ‘ करने में विद्युत् – सेल की नोक से स्पर्श कराते अथवा हटाते है।
❍ विद्युत् – चालक :- जिन पदार्थों से होकर -धारा प्रवाहित हो सकती है , विद्युत् – चालक कहलाते हैं।
उदाहरण – चांदी, तांबा, एल्युमीनियम आदि ।
❍ विद्युत् अचालक :- वे पदार्थ जिनमें विद्युत धारा प्रवाहित नहीं होती है, अचालक पदार्थ कहलाते हैं तथा इनमें मुक्त इलेक्ट्राॅन नहीं (न के बराबर) होते है ।
उदाहरण – रबर, प्लास्टिक, कांच आदि ।
❍ विद्युत् – रोधक :- जिन पदार्थों से होकर -धारा प्रवाहित नही हो सकती , वे विद्युत् – रोधक कहलाते हैं।
उदाहरण :- लकड़ी, रबर, कांच, कागज, वायु इत्यादि.
अध्याय 13 – चुंबकों द्वारा मनोरंजन
❍ प्राचीन यूनान गड़रिए मैग्नस ने चुम्बक की खोज की । गड़रिए के नाम पर उस पत्थर को मैग्नेटाइट नाम दिया। मैग्नेटाइट में लोहा होता है।
❍ प्राकृतिक चुंबक :- प्रकृति में पाए जाने वाले चुंबक को प्राकृतिक चुंबक कहते हैं।
उदाहरण :- प्राकृतिक चुंबक का नाम मैग्नेटाइट है।
❍ कृत्रिम चुंबक :- लोहे के टुकड़े से बनाए जाने चुंबक को कृत्रिम चुंबक कहते हैं।
उदाहरण :- छड़ चुंबक , गोलंत चुंबक , नाल चुंबक ।
❍ चुंबकीय पदार्थ :- जो पदार्थ चुंबक की ओर आकर्षित होते हैं , वे चुंबकीय पदार्थ कहलाते हैं।
जैसे :- लोहा , निकिल एवं कोबाल्ट ।
❍ अचुबंकीय पदार्थ :- जो पदार्थ चुंबक की ओर आकर्षित नही होते , वे अचुबंकीय पदार्थ कहलाते हैं।
जैसे :- कपड़ा , लकड़ी , चमड़ा ,प्लास्टिक ।
❍ चुंबक के दो ध्रुव
उत्तरी ध्रुव :- पहला सिरा उत्तरोंन्मुखी अथवा उत्तरी ध्रुव कहलाता है।
दक्षिणी ध्रुव :- दूसरा सिरा दक्षिणोन्मुखी अथवा दक्षिणी ध्रुव कहलाता है।
❍ प्राचीन काल मे यात्री एक प्राकृतिक चुंबक यात्रा पर अपने साथ ले जाते थे जिसे धागे से लटका कर दिशा-निर्धारण करते थे ।
❍ दिकसूचक :- दिशा का निर्धारण करने के लिए प्रयोग किया जाता हैं।
❍ आकर्षण :- दो चुंबकों के आसमान (अलग-अलग) ध्रुव एक-दूसरे को आकर्षित करती हैं।
चुंबक के दोनों सिरों पर अधिक आकर्षण शक्ति होती हैं।
❍ प्रतिकर्षण :- दो चुंबकों के समान ( एक जैसा ) ध्रुव में परस्पर प्रतिकर्षण होता हैं।
❍ चुंबक से लौह पदार्थों के घटक को मिश्रण से अलग किया जा सकता हैं।
संघटक :- भोजन बनाने के लिए हमें कई चीजों की आवश्यकता पड़ती है जिसे संघटक कहते है।
जैसे :- कच्ची सब्जियां , नमक , मसाला , तेल आदि।
खाद्य पदार्थों के स्रोत :- जिन-जिन चीजों से हम अपना भोजन प्राप्त करते हैं उन्हें ही खाद्य पदार्थों का स्रोत कहते है।
1. पौधे :- गेंहू , धान , दाल , सब्जी , तथा फल आदि।
2. जंतुओं :- दूध , अंडा , माँस , घी , दही तथा पनीर आदि।
भोजन के रूप :– पौधे हमारे भोजन का एक मुख्य स्रोत है।
खाने योग्य भाग :- कुछ पौधों के दो या दो से अधिक भाग खाने योग्य होते है।
तना , जड़ ,फल , पत्ता ,फूल आदि ।जैसे :-
1.आलु का तना खाया जाता है।
2. मूली का जड़ खाया जाता है।
3.लौकी का फल खाया जाता है।
4.पालक का पत्ता खाया जाता है।
5. सीताफल के फूल पकौड़े बनाए जाते है।
अंकुरण :- बीज से शिशु पौधें का उगाना अंकुरण कहलाता है।
अंकुरित :- अंकुर बीजों से एक सफेद रंग की धागे जैसी संरचना निकलती है जिसे अंकुरित कहते है।
मकरंद :- मधुमक्खियों द्वारा इकट्ठा की गई फूलों से मकरंद ( मीठे रस ) एकत्रित करके छत्ते में भंडारित करती है जो बाद में शहद बन जाती है।
मधुमक्खियों द्वारा भंडारित भोजन का शहद के रूप में उपयोग करते हैं।
खाद्य स्रोत के आधार जंतुओं को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है।
1. शाकाहारी :- जो जंतु केवल पादप खाते हैं। जैसे – हिरण , गाय , बकरी , खरगोश आदि।
2. मांसाहारी :- जो जंतु केवल जंतुओं को ही खाते हैं। जैसे – शेर , बाघ , लोमड़ी , आदि।
3. सर्वाहारी :- जो जंतु पादप और दूसरे प्राणी , दोनों को ही खाते हैं। मनुष्य , कौआ , कुत्ता आदि।
हमारे भोजन के मुख्य स्रोत पौधे तथा जंतु हैं।
भारत में विभिन्न प्रदेशों में पाए जाने वाले भोजन में बहुत अधिक विविधता है।
अध्याय 2 : भोजन के घटक
पोषक :- वे तत्व जो हमें वृद्धि और कार्य करने के लिए ऊर्जा देते है उन्हें पोषक कहते है।
पोषक तत्व :- कार्बोहाइड्रेट , प्रोटीन , वसा , विटामिन तथा खनिज लवणों को पोषक तत्व कहते है।
कार्बोहाइड्रेट :- हमारे भोजन में पाए जाने वाले मुख्य कार्बोहाइड्रेट , मंड तथा शर्करा के रूप में होते हैं।
कार्बोहाइड्रेट मुख्य रूप से हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
कार्बोहाइड्रेट के स्रोत :- चावल , गेहूँ , आलू , शकरकंदी , मक्का , पपीता आदि।
प्रोटीन :- बैंगनी रंग खाद्य पदार्थ में प्रोटीन की उपस्थिति दर्शाता है।
प्रोटीन की आवश्यकता शरीर की वृद्धि तथा स्वस्थ रहने के लिए होती है।
प्रोटीन के स्रोत :- पादप से चना , मटर , राजमा , मूँग ,सोयाबीन जंतु से मांस , अंडे , मछली , दूध , पनीर आदि।
वसा :- कागज पर तेल का धब्बा खाद्य पदार्थ में वसा की उपस्थिति दर्शाता है।
वसा से हमारे शरीर को ऊर्जा मिलती है।
वसा के स्रोत :- पादप से मूँगफली , तिल , गिरि , तेल जंतु से अंडे , मछली , मांस , दूध , घी , मक्खन आदि।
विटामिन :- विटामिन कई प्रकार के होते हैं, जिन्हें अलग नामों को जाना जाता है।
विटामिन A , विटामिन B , विटामिन C , विटामिन D , विटामिन E , विटामिन K के नाम से जाना जाता है।
विटामिनों के एक समूह को विटामिन B-कॉम्प्लैक्स कहते है।
हमारे शरीर मे अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है।
विटामिन A :- हमारी त्वचा तथा आँखों को स्वस्थ रखता है।
विटामिन C :– रोगों से लड़ने में हमारी मदद करता है।
विटामिन D :- हमारी अस्थियों और दाँतो के लिए कैल्सियम का उपयोग करने में हमारे शरीर की सहायता करता है।
हमारा शरीर भी सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति से विटामिन D बनाता है।
खनिज लवण :- हमारे शरीर के उचित विकास तथा अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रत्येक खनिज लवण की आवश्यकता है।
खनिज लवण के स्रोत :- आयोडीन , अदरक , केकड़ा ।
फास्फोरस के स्रोत :- दूध , केला , गेंहूँ ।
लोहे के स्रोत :- पालक , सेब , यकृत ।
कैल्सियम के स्रोत :- दूध , अंडा आदि ।
रुक्षांश :- हमारे शरीर को आहारी रेशों तथा जल की भी आवश्यकता होती है।
आहारी रेशे रुक्षांश के नाम से भी जाने जाते हैं।
रुक्षांश के मुख्य स्रोत :– साबुत खाद्यान्न , दाल , आलू , ताज़े फल , और सब्जियां है।
रुक्षांश बिना पचे भोजन को बाहर निकालने में हमारे शरीर की सहायता करता है।
जल भोजन में उपस्थित पोषकों को अवशोषित करने में हमारे शरीर की सहायता करता है।
यह कुछ अपशिष्ट– पदार्थों , जैसे कि मूत्र तथा पसीने को शरीर से बाहर निकालने में सहायता करता है।
आहार :- सामान्यतः पूरे दिन में जो कुछ भी हम खाते हैं , उसे आहार कहते हैं।
संतुलित आहार :- हमारे शरीर की वृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए हमारे आहार में वे सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में होने चाहिए जिनकी हमारे शरीर को आवश्यकता है।
1.दालें , मूँगफली , सोयाबीन , अंकुरित बीज ( मूँग व चना )
2. केला , पालक , सत्तू , गुड़ , फल व सब्जियाँ आदि ।
अध्याय 3 : तंतु से वस्त्र
प्राकृतिक तंतु :- जो तंतु पादपों या जंतुओं से प्राप्त होते है उन्हें प्राकृतिक तंतु कहते है।
पादपों से प्राप्त तंतु :- कपास , रुई , जुट , पटसन आदि ।
जंतुओं से प्राप्त तंतु :– ऊन तथा रेशम आदि।
ऊन भेड़ , बकरी , याक , खरगोश प्राप्त होता है।
रेशमी तन्तु रेशम-कीट कोकून से खींचा जाता है।
संश्लिष्ट तंतु :- रासायनिक पदार्थों द्वारा बनाये गए तंतु को संश्लिष्ट तंतु कहते है।
जैसे :- पुलिएस्टर , नायलॉन , और एक्रिलिक संश्लिष्ट तंतुओं के उदाहरण है।
पादप तंतु :- जो तंतु पादपों से प्राप्त होता है।
रुई :- रुई एक प्राकृतिक तंतु जो पौधों से प्राप्त होता है।
कपास की फसल :– काली मृदा तथा जलवायु उष्ण में होती है।
कपास पादप के फल ( कपास गोलक ) के पूर्ण परिपक्व होने के बाद कपास बॉलों से कपास हस्त चयन द्वारा प्राप्त किया जाता है।
कपास ओटना :- कपास से बीजों को कंकतन द्वारा पृथक किया जाता है इस प्रक्रिया को कपास ओटना कहते हैं।
आजकल कपास ओटने के लिए मशीनों का उपयोग भी किया जाता है।
पटसन तंतु को पटसन पादप के तने से प्राप्त किया जाता है।
भारत में इसकी खेती वर्षा-ऋतू में की जाती है।
भारत में पटसन को प्रमुख रूप से पश्चिम बंगाल , बिहार तथा असम में उगाया जाता है।
फसल कटाई के पश्चात पादपों के तने को कुछ दिनों तक जल में डुबाकर रखते हैं।
पृथक :- पटसन-तंतुओं से हाथों द्वारा पृथक कर दिया जाता है।
कताई :- रेशों से तागा बनाने की प्रक्रिया को कताई कहते है। इस प्रक्रिया में , रुई के एक पुंज से रेशों को खींचकर ऐंठते हैं जिससे रेशे पास-पास आ जाते है और तागा बन जाता है।
तकली :- कताई के लिए एक सरल युक्ति ‘ हस्त तकुआ ‘ का उपयोग किया जाता है तकली कहते है।
चरखा :- हाथ से प्रचलित कताई में उपयोग होने वाली एक अन्य युक्ति चरखा है।
तागो की कताई का कार्य कताई मशीनों की सहायता से किया जाता है।
तागो से वस्त्र बनाने की विधियाँ :– बुनाई तथा बंधाई
बुनाई :- तागो के दो सेंटो को आपस में व्यवस्थित करके वस्त्र बनाने की प्रक्रिया को बुनाई कहते है।
वस्त्रों की बुनाई करघों पर की जाती है। करघे या तो हस्तप्रचालित होते है अथवा विधुतप्रचालित।
बुनाई तथा बंधाई का उपयोग विभिन्न प्रकार के वस्त्रों के निर्माण में किया जाता है। ये वस्त्रों का उपयोग पहनने की विविध वस्तुओं को बनाने में होता है।
अध्याय 4 : वस्तुओं के समूह बनाना
❍ पदार्थ :- प्रत्येक वस्तु जिसका कोई निश्चित भार (द्रव्यमान) होता तथा वह स्थान घेरती है, पदार्थ कहलाता है पृथ्वी में पदार्थ तीन अवस्थाओं में मुख्यतः पाए जाते हैं ठोस, द्रव, एवं गैस ।
❍ ठोस :- पदार्थ की वह अवस्था जिसमें आकार एवं आयतन दोनों निश्चित हो, ठोस कहलाता है।
❍ जैसे- लकड़ी, लोहा, बर्फ का टुकड़ा
❍ द्रव :- पदार्थ की वह अवस्था जिसका आकार अनिश्चित एवं आयतन निश्चित हो द्रव कहलाता है।
❍ जैसे – पानी, तेल, अल्कोहल
❍ गैस :- पदार्थ की वह अवस्था जिसमें आकार एवं आयतन दोनों अनिश्चित होता हो गैस कहलाता है।
❍ जैसे- हवा, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड।
हम अपने दैनिक जीवन में कई वस्तुओं का उपयोग करते हैं तथा कई वस्तुओं का उपभोग करते हैं, पर उनमें हर वस्तु अलग-अलग प्रकार की होती है।
❍ पदार्थों के गुण :- किसी पदार्थ को बनाने के लिए किसी पदार्थ का चयन उस पदार्थ के गुणों तथा उपयोग की जाने वाली वस्तु के प्रयोजन पर निर्भर है।
❍ दिखावट :- पदार्थ प्रायः एक-दूसरे से भिन्न दिखाई देते हैं।
❍ जैसे :- लकड़ी लोहे से बिल्कुल भिन्न दिखाई देती है।
कुछ पदार्थ चमकदार , खुरदरे , चिकने , कठोर तथा कोमल लगते हैं।
❍ कोमल पदार्थ :- वे पदार्थ जिन्हें आसानी से संपीड़ित किया अथवा खरोंचा जा सकता हैं।
❍ कठोर पदार्थ :- वे पदार्थ जिन्हें संपीड़ित करना कठिन होता है।
❍ धातु :- पदार्थ जिनमें इस प्रकार की द्युति होती है, वे प्रायः धातु होते है।
❍ उदाहरण :- लोहा , ताँबा , एलुमिनियम तथा सोना आदि।
❍ विलेय :- कुछ पदार्थ जल में घुल जाते है।
❍ जैसे :- पानी और नमक ।
❍ अविलेय :- कुछ पदार्थ जल के साथ मिश्रित नही होते है।
❍ जैसे :- पानी और धूल।
❍ पारदर्शिता :- पदार्थों का वह गुण है जिसमे वह प्रकाश को स्वंय से पार जाने की अनुमति देते हैं।
❍ पारदर्शी :- ऐसा पदार्थ जिसके आर पार देखा जा सकता है पारदर्शी पदार्थ कहते हैं। पारदर्शी पदार्थों में प्रकाश आर-पार जा सकता है।
❍ जैसे- कांच, जल, वायु
❍ अपारदर्शी :- वैसे पदार्थ जिनमें से होकर आप वस्तुओं के आर-पार नहीं देख सकते उन्हें अपारदर्शी पदार्थ कहते हैं
❍ जैसे- पेपर, धातुएं, लकड़ी
❍ पारभासी :-वैसे पदार्थ जिससे आप आपकी वस्तु को आर पार देख तो सकते हैं परंतु स्पष्ट रूप से नहीं इन पदार्थों को पारभासी पदार्थ कहते हैं।
❍जैसे- बटर पेपर, मोटी काँच
❍ आर्किमीडीज का सिद्धांत ( Principle of Archimedes ) :- जब कोई वस्तु किसी द्रव में पूरी अथवा आंशिक रूप से डुबोई जाती है तो उसके भार में कमी का आभास होता है । भार में यह आभासी कमी वस्तु द्वारा हटाए गए द्रव के भार के बराबर होती हैं इसे ‘ आर्किमीडीज का सिद्धान्त ’ कहते हैं । इसके अनुप्रयोग निम्न प्रकार हैं –
❍ लोहे की बनी छोटी – गेंद पानी में डूब जाती है तथा बड़ा जहाज तैरता रहता है क्योंकि जहाज द्वारा विस्थापित किए गए जल का भार उसके भार के बराबर होता है ।
अध्याय 5 – पदार्थों का पृथक्क़रण
❍ मिश्रण:- दो या दो से अधिक तत्व या यौगिक उनके मिलने से बनता है मिश्रण कहलाता है।
हवा एक मिश्रण है इसमें कई गैस मिले हुए है जैसे ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइट्रोजनआदि
पृथक्करण की विधियाँ :-
हस्त चयन :- किसी मिश्रण से हानिकारक तथा अन उपयोगी पदार्थों का हाथ से चुनकर अलग करना हस्त चयन पृथक्करण कहलाता है।
जैसे:- गेहूँ , चावल तथा दाल से पत्थर तथा भूसे को पृथक करना।
थ्रेशिंग :- सूखे पौधों की डंडियों अनाज को पृथक करने को थ्रेशिंग कहते हैं।
❍ जैसे :– बैलों की सहायता और मशीनों का उपयोग किया जाता हैं।
निष्पावन :- पवन अथवा वायु के झोंकों द्वारा किसी मिश्रण के अवयव को पृथक करने की विधि निष्पावन कहलाती है।
❍ जैसे :- किसान भूसे से अनाज इसी विधि से अलग करते हैं।
❍ चालन :– चालन द्वारा आटे से अशुद्धियों को पृथक करना चालन कहते हैं।
❍ जैसे :- रेत से कंकड़ तथा पत्थर से पृथक करना।
❍ अवसादन :- किसी तरल मिश्रण में भारी ठोस पदार्थों के नीचे बैठने की प्रक्रिया को अवसादन कहते हैं।
❍ जैसे :- जल की तली में भारी कण नीचे बैठ जाते हैं।
❍ निस्तारण :- रेत और जल के मिश्रण में , रेत के भारी कण तली में बैठ जाते हैं निस्तारण विधी द्वारा जल को पृथक किया जाता हैं।
❍ जैसे :- जल में महीन कण को अलग करना ।
❍ निस्यंदन :- मिश्रण पदार्थ में ठोस या द्रव्य को अलग करने की विधि को निस्यंदन कहते हैं।
❍ जैसे :- रेतीले जल से स्वचछ जल को प्राप्त करना।
❍ वाष्पन :- जल को उसके वाष्प में परिवर्तन करने की प्रक्रिया को वाष्पन कहते हैं।
❍ जैसे :-सूर्य के प्रकाश से जल गर्म होकर वाष्पन द्वारा धीरे-धीरे वाष्प में बदलने लगता है।
❍ नमक :- सूर्य के प्रकाश से जल गर्म होकर वाष्पन द्वारा धीरे-धीरे वाष्प में बदलने लगता है। कुछ समय बाद जल वाष्पित हो जाता है
तथा ठोस लवण नीचे बच जाते हैं जिसमें लवणों के मिश्रण का शोधन करके साधारण नमक प्राप्त किया जाता हैं।
❍ संतृप्त विलयन :- जिस विलयन में कोई पदार्थ और अधिक न घुल सके वह उस पदार्थ का संतृप्त विलयन होता है।
❍ विलेय :- कुछ पदार्थ जल में घुल जाते है।
❍ जैसे :- पानी और नमक ।
❍ किसी पदार्थ के विलयन को गर्म करने पर उसमें और अधिक पदार्थ घोल जा सकता है।
अध्याय 6 – हमारे चारों ओर के परिवर्तन
❍ हमारे चारों ओर बहुत से परिवर्तन अपने आप होते रहते हैं।
❍खेतो में फसलें समयनुसार बदलती रहती हैं ।
❍पत्तियाँ रंग बदलती हैं और सूखकर पेड़ो से गिर जाती हैं।
❍फूल खिलते हैं और फिर मुरझा जाते हैं।
❍परिवर्तन :- पदार्थों को गर्म करके या किसी अन्य पदार्थ के साथ मिश्रित करके उनमें परिवर्तन लाए जा सकते है।
❍उत्क्रमित :- इसमें कुछ परिवर्तन किया जा सकता है। जबकि कुछ में परिवर्तन को उत्क्रमित नही किया जा सकता हैं।
❍उत्क्रमित परिवर्तन :- ऐसे परिवर्तन जिसको पुनः अवस्था में लाया जा सकता हैं।
❍जैसे :- आटे को लोई को बेलकर रोटी बनती है , इससे पुनः लोई में परिवर्तन किया जा सकता हैं।
❍उत्क्रमित अपरिवर्तन :- ऐसे परिवर्तन जिन्हें अपने पूर्व अवस्था में नही लाया जा सकता ।
❍जैसे :- जबकि पकी हुई रोटी से पुनः लोई नही प्राप्त किया जा सकता हैं।
❍ प्रसार :- जब कोई वस्तु गर्म होने से फैलता है या पिघलने लगता है तो उसे प्रसार कहते हैं।
❍ संकुचन :- जब किसी वस्तु को गर्म किया जाता है तो यह फैल जाता है और ठंडा होने पर सिकुड़ जाता है , इसे ही संकुचन कहते हैं।
❍आवर्ती परिवर्तन :- वह परिवर्तन जिनकी नियमित समय अंतरालों के बाद पुनरावृति होती है ।
जैसे :- सूरज का उगना
❍अनावर्ती परिवर्तन :- वह परिवर्तन जिनकी नियमित समय अंतरालों के बाद पुनरावृति नही होती है।
❍गलन :- किसी वस्तु का किसी निश्चित तापमान पर द्रव अवस्था मे परिवर्तित होना गलन कहलाता हैं
❍वाष्पन :- जल को उसके वाष्प में परिवर्तन करने की प्रक्रिया को वाष्पन कहते हैं।
❍जैसे :– सूर्य के प्रकाश से जल गर्म होकर वाष्पन द्वारा धीरे-धीरे वाष्प में बदलने लगता है।
अध्याय 7 – पौधों का जानिए
❍ शाक :- हरे एवं कोमल तने वाले पौधे शाक कहलाते हैं।
❍ झाड़ी :- कुछ पौधों में शाखाएँ तने के आधार के समीप से निकलती हैं। तना कठोर होता है परंतु अधिक मोटा नही होता इन्हें झाड़ी कहते हैं।
❍ वृक्ष :- कुछ पौधे बहुत ऊँचे होते है इनके तने सुदृढ़ एवं गहरे भूरे होते हैं। इनमें शाखाएँ भूमि से अधिक ऊँचाई पर तने के ऊपरी भाग से निकलती हैं इन्हें ही वृक्ष कहते हैं।
❍ लता :- कमजोर तने वाले पौधे सीधे खड़े नही हो सकते और ये भूमि पर फैल जाते हैं इन्हें ही लता कहते हैं।
❍ आरोही :- कुछ पौधे आस-पास के ढाँचे की सहायता से ऊपर चढ़ जाते हैं ऐसे पौधे आरोही कहलाते हैं।तने पौधे को सहारा देते है और जल तथा खनिज के परिवहन में सहायता करते। हैं
उदाहरण :- मनी प्लांट का पौधा
❍ फलक :- पत्ती के चपटे हरे भाग को फलक कहते हैं।
❍ शिरा :- पत्ती की इन रेखित संरचनाओं को शिरा कहते हैं।
❍ शिरा-विन्यास :- घास की पत्तियों में यह शिराएँ एक दूसरे के समांतर हैं। ऐसे शिरा-विन्यास को समांतर शिरा-विन्यास कहते है।
❍ रन्ध्र :- पत्तियों की सतह पर छोटे-छोटे छिद्र पाए जिन्हें रन्ध्र कहते है। रन्ध्र से गैसों का और वाष्पोत्सर्जन की क्रिया भी होती हैं।
❍ पर्णवृन्त :- पत्ती का वह भाग जिसके द्वारा वह तने से जुड़ीं होती है , पर्णवृन्त कहते है।
❍ रेशेदार जड़ :- जिन पौधों की जड़े एकसमान दिखाई देती हैं ।
❍ मूसलाजड़ :- जिन पौधों की मुख्य जड़ सीधे मिट्टी के अंदर जाती हैं ऐसे जड़ को मूसला जड़ कहते हैं।
अध्याय 8 – शरीर में गति
❍ हम शरीर के विभिन्न भागों को उसी स्थान से मोड़ अथवा घुमा पाते हैं , जहाँ पर दो हिस्से एक-दूसरे से जुड़े हो।
❍ उदाहरण के लिए :- कोहनी , कंधा , अथवा गर्दन
❍ संधि :- हम शरीर के विभिन्न भागों को उसी स्थान से मोड़ अथवा घुमा पाते हैं , जहां पर दो हिस्सेएक-दूसरे से जुड़े हो इन स्थानों को संधि कहते हैं।
❍ कंदुक-खल्लिका संधि :– सभी दिशाओं में गति करता है।
❍ घुटना हिंज संधि का एक उदाहरण हैं।
❍ अचल संधि :- हमारे सिर की कुछ संधियों में अस्थि हिल नही सकती ऐसे संधियों को अचल संधि कहते हैं।
❍ कंकाल :- हमारे शरीर की सभी अस्थियाँ ठीक इसी प्रकार शरीर को एक सुंदर आकृति प्रदान करने के लिए एक ढाँचे का निर्माण करती हैं इस ढाँचे को कंकाल कहते हैं।
❍ पसली-पिंजर :- पसलियाँ वक्ष की अस्थि एवं मेरुदंड से जुड़कर एक बक्से की रचना करती हैं इस शंकुरुपी बक्शे को पसली-पिंजर कहते हैं।
❍ अस्थियाँ एवं उपस्थियाँ संयुक्त रूप से शरीर का कंकाल का निर्माण करते हैं।
❍ गति करने समय पेशियों के संकुचन से अस्थियाँ खिंचती हैं।
❍ हिंज संधि :- ऐसी संधि जो केवल आगे और पीछे एक ही दिशा में गति करती है उसे हिंज संधि कहते है।
❍ केंचुए में गति शरीर की पेशियों के बारी-बारी से विस्तरण एवं संकुचन से होती हैं।
❍ पेशियों के जोड़े के एकांतर क्रम में सिकुड़ने एवं फैलने से अस्थियाँ गति करती हैं।
❍ मछली के शरीर पर पंख होते हैं जो तैरते समय जल में संतुलन बनाए रखने में एवं दिशा निर्धारण में सहायता करते हैं।
अध्याय 9 – सजीव एवं उनका परिवेश
❍ उद्दीपन हम आस-पास होने वाले परिवर्तनों के प्रति अनुक्रिया करते हैं वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को उद्दीपन कहते हैं।
❍ उत्सर्जन :- शरीर का अपशिष्ट पदार्थ सजीवों द्वारा निष्कासन के प्रक्रम को उत्सर्जन कहते हैं।
❍ आवास :- किसी सजीव का वह परिवेश जिसमें वह रहता है , उसका आवास कहलाता है।
❍ अनुकूलन :- जिन विशिष्ट संरचनाओं अथवा स्वभाव की उपस्थिति किसी पौधे अथवा जंतु को उसके परिवेश में रहने के योग्य बनाती है , अनुकूलन कहलाता हैं।
❍ स्थलीय आवास :- स्थल ( जमीन ) पर पाए जाने वाले पौधों एवं जंतुओं के आवास को स्थलीय आवास कहते हैं।
उदाहरण :- वन , घास के मैदान , मरुस्थल , तटीय एवं पर्वतीय क्षेत्र आदि।
❍ जलीय आवास :- जलाशय , दलदल , झील , नदियाँ , एवं समुद्र , जहाँ पौधे एवं जंतु जल में रहते हैं , जलीय आवास कहलाता है।
❍ जैव घटक :- पारिस्थितिकी तंत्र के संजीव घटकों को जैव घटक कहते हैं। इसमें पेड़-पौधे तथा जन्तु होते हैं।
❍ अजैव घटक :- किसी पारिस्थितिक तन्त्र में पाए जाने वाले सभी निर्जीव पदार्थ उसके अजैवक घटक हैं।
जैसे :- चट्टान , मिट्टी , वायु एवं जल आदि।
❍सूर्य का प्रकाश एवं ऊष्मा भी परिवेश के अजैव घटक हैं।
❍ अंकुरण :- बीज से नए पौधे का प्रारंभ है , जब बीज से अंकुरण निकल आता है तो इस प्रक्रिया को अंकुरण कहते हैं।
❍ प्रजनन :- जीव-जंतु प्रजनन द्वारा अपने समान संतान उत्पन्न करते हैं।
❍ कुछ जंतु अंडे देते हैं।
❍ कुछ जंतु शिशु को जन्म देते हैं।
❍ गति :- सभी सजीव एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते हैं तथा उनके शरीर मे अन्य प्रकार की गति भी करते हैं।
❍ भोजन :- भोजन सजीवों को उनकी वृद्धि के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है।
❍ वृद्धि :- जंतुओं के बच्चे भी वृद्धि कर वयस्क हो जाते है।
❍ श्वसन क्रिया :- हम वायु से ऑक्सीजन लेते है और कार्बनडाइऑक्साइड को श्वास द्वारा बाहर निकल देते है।
❍श्वसन सभी सजीवों के लिए आवश्यक है।
❍ केंचुआ त्वचा द्वारा साँस लेता हैं।
❍ मछली गिल द्वारा साँस लेते है।
❍ पौधे पत्तियाँ सूक्ष्म रन्धों द्वारा वायु को अंदर लेती है।
सजीव में श्वसन , उत्सर्जन , उद्दिपन के प्रति अनुक्रिया ,प्रजनन , गति एवं वृद्धि , तथा मृत्यु होती हैं।
अल्प अवधि में किसी एक जीव के शरीर में होने वाले ये छोटे-छोटे परिवर्तन पर्यनुकूलन कहलाते हैं।
अध्याय 10 – गति एवं दूरियों का मापन
❍प्राचीन काल में लोग पैदल चलते थे , जल मार्गों में आने-जाने के लिए नावों का उपयोग करते थे ।
❍ यातयात साधन :- आने-जाने के साधन को यातायात कहते हैं।
❍ सड़क परिवहन :- साइकिल , मोटरसाइकिल , कार , बस एवं रेलगाड़ी आदि ।
❍ वायु परिवहन :- हेलीकॉप्टर , जेट विमान , हवाई जहाज आदि ।
❍ जल परिवहन :- नाव , स्टीमर , पानी जहाज आदि ।
❍ मात्रक :- मापन के एक निश्चित राशि को मात्रक कहते हैं।
❍ माप के परिणाम :- 1. संख्या भाग और 2. मात्रक भाग
❍ लम्बाई मापने के प्राचीन तरीके हैं :- पैर की लम्बाई , अंगुली की चौड़ाई , हाथ की लम्बाई , एक कदम की दूरी आदि ।
❍ लम्बाई मापने के आधुनिक तरीके हैं :- मिलीमीटर , सेंटीमीटर , मीटर , तथा किलोमीटर आदि ।
❍ संसार के विभिन्न भाग प्रयोग :- मात्रक के रूप
❍ 1 गज में कितना फुट होता है
एक गज में 3 फुट होता है।
❍ 1 गज में कितना इंच होता है
1 गज में 36 इंच होता है।
यहां से आगे तैयार किया जा रहा हैं..…....
अध्याय 11 – प्रकाश – छायाएँ एवं परावर्तन
❍ दीप्त वस्तुएं :- जो वस्तुएं स्वयं प्रकाश उत्सर्जित करती हैं, उन्हें दीप्त वस्तुएं कहते हैं।जैसे—सूर्य, तारे, जुगनू, विद्युत् का बल्ब आदि।
❍ पारदर्शी वस्तु :- जिस वस्तु के आर-पार देख सकते हैं, उस वस्तु को पारदर्शी वस्तु कहते हैं
जैसे :- शीश , काँच , पानी आदि।
❍ अपारदर्शी वस्तु :- जिस वस्तु को आर-पार नहीं देख सकते, उस वस्तु को अपारदर्शी वस्तु कहते हैं।
जैसे :- दीवार , लकड़ी , पुस्तक आदि।
❍ पारभासी वस्तु :- जिन वस्तुओं के आर-पार देख तो सकते हैं परंतु बहुत स्पष्ट नहीं, ऐसी वस्तुओं को पारभासी वस्तुएं कहते हैं।
जैसे :- धुआँ, कोहरा, और तेल लगा कागज़ आदि।
❍ छाया वस्तु:- हम जानते हैं कि प्रकाश सरल रेखा में गमन करता है। जब कोई अपारदर्शी वस्तु इसे रोकती है तो उस वस्तु की छाया बनती है।
जैसे :- कमरे की दीवार , इमारतें , सतह जो छाया की तरह कार्य करते हैं।
❍ हमें सूर्य को सीधे कदापि नही देखना चाहिए। ये हमारी आंखों के लिए अत्यंत हानिकारक हो सकता हैं।
❍ प्रकाश :- हम प्रकाश के बिना वस्तुएं नहीं देख सकते हैं। प्रकाश वस्तुओं को । देखने में सहायता करता है।
❍ दर्पण :- वह वस्तु जिसमें किसी वस्तु का प्रतिबिंब बनता है दर्पण कहलाता है।
दर्पण दो प्रकार के होते है।
1. समतल दर्पण :- जिस दर्पण की परावर्तन सतह समतल होती है, उसे समतल दर्पण कहते हैं।
जैसे :-इसका उपयोग घरों में चेहरा देखने के काम आता है।
2. गोलीय दर्पण :- गोलीय दर्पण कांच के खोखले गोले का भाग होता है , जिसकी एक सतह पर पॉलिश की जाती है । गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते है।
1.अवतल दर्पण
2. उतल दर्पण
❍ परावर्तन :- किसी समतल सतह से टकरा कर प्रकाश के वापिस उसी माध्यम में लौट जाने को परावर्तन कहते हैं।
जैसे :- झील अथवा तालाब के पानी में पेड़ो , इमारतों तथा अन्य वस्तुओं का प्रवर्तन देखते हैं।
❍ सूची छिद्र कैमरा :- सूची छिद्र प्रतिबिंब तब संभव है जब प्रकाश केवल सरल रेखा में गमन करे।
सूची छिद्र कैमरे से सूर्य के तीव्र प्रकाश में सड़क पर गतिमान वाहनों एवं व्यक्तियों को देखें ।
अध्याय 12 – विधुत तथा परिपथ
❍विद्युत :- किसी चालक में विद्युत आवेशों के बहाव से उत्पन्न ऊर्जा को विद्युत कहते है।
❍ विद्युत के प्रकार :- स्थिर विद्युत आवेश के रूप में होता हैं और इसे अधिक मात्रा में उतपन्न नही कर सकते है। गतिशील विद्युत का उत्पादन बहुत अधिक मात्रा में किया जा सकता हैं।
❍ विद्युत सेल:
❍ घनात्मक :- विद्युत सेल में धातु की टॉपी धनात्मक सिरा कहलाता है।
❍ ऋणात्मक :- धातु की डिस्क ऋणात्मक सिरा कहलाता है।
❍ विद्युत-सेल में संचित रासायनिक पदार्थों से सेल विद्युत उत्पन्न करता है।
❍ तंतु :- प्रकाश उत्सर्जित करने वाले पतले तार को बल्ब का तंतु कहते हैं।
❍ विद्युत् – परिपथ :- वह पथ जिसमे इलेक्ट्रॉन एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक प्रवाहित हो सके, विद्युत परिपथ कहलाता है।
विद्युत परिपथ चार प्रकार के होते है –
1.खुला परिपथ
2.बंद परिपथ
3.लघु परिपथ
4.लीकेज परिपथ
विद्युत् -परिपथ विद्युत् -धारा की विद्युत् – सेल के (+) टर्मिनल से ( -) टर्मिनल की ओर होती हैं।
जब बल्ब टर्मिनलों को तार के द्वारा विद्युत् – सेल के टर्मिनलों से जोड़ा जाता है तो बल्ब के तंतु से होकर विद्युत् -धारा प्रवाहित होती है। यह बल्ब को दीप्तिमान करती है।
❍ विद्युत् – स्विच :- विद्युत् -बल्ब को ‘ ऑन ‘ अथवा ‘ ऑफ ‘ करने में विद्युत् – सेल की नोक से स्पर्श कराते अथवा हटाते है।
❍ विद्युत् – चालक :- जिन पदार्थों से होकर -धारा प्रवाहित हो सकती है , विद्युत् – चालक कहलाते हैं।
उदाहरण – चांदी, तांबा, एल्युमीनियम आदि ।
❍ विद्युत् अचालक :- वे पदार्थ जिनमें विद्युत धारा प्रवाहित नहीं होती है, अचालक पदार्थ कहलाते हैं तथा इनमें मुक्त इलेक्ट्राॅन नहीं (न के बराबर) होते है ।
उदाहरण – रबर, प्लास्टिक, कांच आदि ।
❍ विद्युत् – रोधक :- जिन पदार्थों से होकर -धारा प्रवाहित नही हो सकती , वे विद्युत् – रोधक कहलाते हैं।
उदाहरण :- लकड़ी, रबर, कांच, कागज, वायु इत्यादि.
अध्याय 13 – चुंबकों द्वारा मनोरंजन
❍ प्राचीन यूनान गड़रिए मैग्नस ने चुम्बक की खोज की । गड़रिए के नाम पर उस पत्थर को मैग्नेटाइट नाम दिया। मैग्नेटाइट में लोहा होता है।
❍ प्राकृतिक चुंबक :- प्रकृति में पाए जाने वाले चुंबक को प्राकृतिक चुंबक कहते हैं।
उदाहरण :- प्राकृतिक चुंबक का नाम मैग्नेटाइट है।
❍ कृत्रिम चुंबक :- लोहे के टुकड़े से बनाए जाने चुंबक को कृत्रिम चुंबक कहते हैं।
उदाहरण :- छड़ चुंबक , गोलंत चुंबक , नाल चुंबक ।
❍ चुंबकीय पदार्थ :- जो पदार्थ चुंबक की ओर आकर्षित होते हैं , वे चुंबकीय पदार्थ कहलाते हैं।
जैसे :- लोहा , निकिल एवं कोबाल्ट ।
❍ अचुबंकीय पदार्थ :- जो पदार्थ चुंबक की ओर आकर्षित नही होते , वे अचुबंकीय पदार्थ कहलाते हैं।
जैसे :- कपड़ा , लकड़ी , चमड़ा ,प्लास्टिक ।
❍ चुंबक के दो ध्रुव
उत्तरी ध्रुव :- पहला सिरा उत्तरोंन्मुखी अथवा उत्तरी ध्रुव कहलाता है।
दक्षिणी ध्रुव :- दूसरा सिरा दक्षिणोन्मुखी अथवा दक्षिणी ध्रुव कहलाता है।
❍ प्राचीन काल मे यात्री एक प्राकृतिक चुंबक यात्रा पर अपने साथ ले जाते थे जिसे धागे से लटका कर दिशा-निर्धारण करते थे ।
❍ दिकसूचक :- दिशा का निर्धारण करने के लिए प्रयोग किया जाता हैं।
❍ आकर्षण :- दो चुंबकों के आसमान (अलग-अलग) ध्रुव एक-दूसरे को आकर्षित करती हैं।
चुंबक के दोनों सिरों पर अधिक आकर्षण शक्ति होती हैं।
❍ प्रतिकर्षण :- दो चुंबकों के समान ( एक जैसा ) ध्रुव में परस्पर प्रतिकर्षण होता हैं।
❍ चुंबक से लौह पदार्थों के घटक को मिश्रण से अलग किया जा सकता हैं।
अध्याय 14 – जल
❍जल की आवश्यकताएँ :- पीने , नहाने , खाना पकाना , कपड़े धोना आदि।
❍ जल कहाँ से प्राप्त करते हैं :- नदियों , झरनों , तालाबों , कुओं अथवा हैडपंप से जल प्राप्त करते हैं।
❍ जल विलुप्त :- जल, जलवाष्प में परिवर्तित होता रहता हैं। नदी , तालाब , झील , महासागर के सभी जल , निरंतर वाष्प में परिवर्तित होता रहता है।
❍ सोडियम क्लोराइड :- (नमक) महासागरों का खारा जल जो गहरे गड्डो में छूट जाता है, वाष्पन के परिणामस्वरूप नमक के ढेर के रूप में एकत्र हो जाता है।
❍ वाष्पीकरण :- वायु में जल , वाष्पन ( गर्म ) तथा संघनन ( ठंडा ) परिवर्तित करने के प्रक्रम को वाष्पीकरण कहते हैं।
❍ गिलास की बाहरी साथ पर जल की बूँदे :- बर्फ़युक्त जल से भरे गिलास की बाहरी सतह , बाहर की हवा को ठंडा कर देती है और जलवाष्प गिलास की सतह पर संघनित हो जाती है।
❍ जैसे-जैसे हम पृथ्वी के पृष्ठ से ऊपर जाते हैं , ताप कम हो जाता है।
❍ जैसे-जैसे वायु ऊपर उठती जाती है , ठंडी होती जाती है।
❍ जलकणिका :- पर्याप्त ऊँचाई पर वायु इतनी ठंडी हो जाती कि इसमें उपस्थित जलवाष्प संघनित होकर छोटी-छोटी जल की बूँदों , जिन्हें जलकणिका कहते हैं ।
❍ बादल :- बादल ये छोटी जलकणिकाएँ , जो वायु में तैरती रहती हैं , जो हमें बादलों के रूप में दिखाई देती है।
❍ वर्षा :- बहुत -सी जलकणिकाएँ आपस एक बड़े आमाप की जल की बूँदे बनाती है। ये जल की बूँदे भारी होने पर वर्षा के रूप धरती पर गिरता है।
❍ संघनन :- जलवाष्प को जल में परिवर्तन करने के प्रक्रम को संघनन कहते हैं।
❍ भौम-जल :- पृथ्वी का शूद्ध जल भौम-जल के रूप में उपलब्ध है।
❍ जलचक्र :- महासागरों तथा जलीय भागों के बीच जल के चक्रण को जलचक्र कहते है।
❍ बाढ़ :- अत्यधिक वर्षा बाढ़ का कारण बन सकता हैं।
❍ सूखा :- वर्षा न होना अथवा भौम-जल की कमी से सूखा पड़ सकता है।
❍ जल संरक्षण :- जल का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए और सावधनी बरतें , जिससे जल व्यर्थ न हो ।
❍ वर्षा के जल का संग्रहण
❍ वर्षा के पानी का बाद में उत्पादक कामों में इस्तेमाल के लिए इकट्ठा करने को वर्षा जल संग्रहण कहा जाता है।
❍ आपकी छत पर गिर रहे बारिश के पानी को सामान्य तरीके से इकट्ठा कर उसे शुद्ध बनाने का काम वर्षा जल का संग्रहण कहलाता है।
❍जल की आवश्यकताएँ :- पीने , नहाने , खाना पकाना , कपड़े धोना आदि।
❍ जल कहाँ से प्राप्त करते हैं :- नदियों , झरनों , तालाबों , कुओं अथवा हैडपंप से जल प्राप्त करते हैं।
❍ जल विलुप्त :- जल, जलवाष्प में परिवर्तित होता रहता हैं। नदी , तालाब , झील , महासागर के सभी जल , निरंतर वाष्प में परिवर्तित होता रहता है।
❍ सोडियम क्लोराइड :- (नमक) महासागरों का खारा जल जो गहरे गड्डो में छूट जाता है, वाष्पन के परिणामस्वरूप नमक के ढेर के रूप में एकत्र हो जाता है।
❍ वाष्पीकरण :- वायु में जल , वाष्पन ( गर्म ) तथा संघनन ( ठंडा ) परिवर्तित करने के प्रक्रम को वाष्पीकरण कहते हैं।
❍ गिलास की बाहरी साथ पर जल की बूँदे :- बर्फ़युक्त जल से भरे गिलास की बाहरी सतह , बाहर की हवा को ठंडा कर देती है और जलवाष्प गिलास की सतह पर संघनित हो जाती है।
❍ जैसे-जैसे हम पृथ्वी के पृष्ठ से ऊपर जाते हैं , ताप कम हो जाता है।
❍ जैसे-जैसे वायु ऊपर उठती जाती है , ठंडी होती जाती है।
❍ जलकणिका :- पर्याप्त ऊँचाई पर वायु इतनी ठंडी हो जाती कि इसमें उपस्थित जलवाष्प संघनित होकर छोटी-छोटी जल की बूँदों , जिन्हें जलकणिका कहते हैं ।
❍ बादल :- बादल ये छोटी जलकणिकाएँ , जो वायु में तैरती रहती हैं , जो हमें बादलों के रूप में दिखाई देती है।
❍ वर्षा :- बहुत -सी जलकणिकाएँ आपस एक बड़े आमाप की जल की बूँदे बनाती है। ये जल की बूँदे भारी होने पर वर्षा के रूप धरती पर गिरता है।
❍ संघनन :- जलवाष्प को जल में परिवर्तन करने के प्रक्रम को संघनन कहते हैं।
❍ भौम-जल :- पृथ्वी का शूद्ध जल भौम-जल के रूप में उपलब्ध है।
❍ जलचक्र :- महासागरों तथा जलीय भागों के बीच जल के चक्रण को जलचक्र कहते है।
❍ बाढ़ :- अत्यधिक वर्षा बाढ़ का कारण बन सकता हैं।
❍ सूखा :- वर्षा न होना अथवा भौम-जल की कमी से सूखा पड़ सकता है।
❍ जल संरक्षण :- जल का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए और सावधनी बरतें , जिससे जल व्यर्थ न हो ।
❍ वर्षा के जल का संग्रहण
❍ वर्षा के पानी का बाद में उत्पादक कामों में इस्तेमाल के लिए इकट्ठा करने को वर्षा जल संग्रहण कहा जाता है।
❍ आपकी छत पर गिर रहे बारिश के पानी को सामान्य तरीके से इकट्ठा कर उसे शुद्ध बनाने का काम वर्षा जल का संग्रहण कहलाता है।
❍ पृथ्वी पर जीवन के लिए वायुमंडल आवश्यक है।
अध्याय 15 – हमारे चारों ओर वायु
❍ वायु :- नाइट्रोजन 78% , ऑक्सीजन 21% , शेष 1% में कार्बनडाइऑक्साइड , कुछ अन्य गैस , जलवाष्प तथा धूल के कण होते हैं।
❍ वायुमंडल :- वायु की वह परत , जो पृथ्वी को घेरे हुए हैं , उसे वायुमंडल कहते है।
❍ इस परत का विस्तार पृथ्वी की सतह से कई किलोमीटर ऊपर तक है।
1.क्षोभ मंडल (Troposphere)
2.समताप मंडल(Stratosphere)
3.मध्यमंडल (Mesosphere)
4.आयन मंड(Thermosphere)
5.बाह्य मंडल (Exosphere)
❍वायुमंडल का संघटन ( Atmosphere Composition )
1.नाइट्रोजन ( N2 ) – 78%
2.ऑक्सीजन ( O2 ) – 21%
3.आर्गन ( Ar ) – 0.93 %
4.कार्बन डाइऑक्साइड – 0.03%
5. अन्य सभी 0.04 (हीलियम और हाइट्रोजन )
❍ वातसूचक :- जब वातसूचक घूमती है तो वह उस दिशा में रुक जाता है जिस दिशा में वायु चल रही हो।
❍ पर्वतारोही :- पर्वतरोही ऊँचे पर्वतों पर चढ़ाई के समय सिलिंडर अपने साथ इसलिए ले जाते हैं क्योंकि अत्यधिक ऊंचाई पर वायु में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।
❍ जैसे-जैसे हम वायुमंडल में पृथ्वी के तल से ऊपर की ओर जाते हैं , वायु में ऑक्सीजन की कमी होती जाती है।
❍ वायु किससे बनी है :- वायु अनेक गैसों के मिश्रण से बनी होती है।
1.नाइट्रोजन ( N2 ) – 78%
2.ऑक्सीजन ( O2 ) – 21%
3.आर्गन ( Ar ) – 0.93 %
4.कार्बन डाइऑक्साइड – 0.03%
5. अन्य सभी गैस 0.04 जलवाष्प तथा धूल के कण
❍ ऑक्सीजन कैसे लेते है :- जल तथा मिट्टी में वायु उवस्थित होती है ।
❍ मिट्टी के जीव :- मिट्टी के जीव गहरी मिट्टी में बहुत-से माँड़ तथा छिद्र बना लेते हैं। इन छिद्रों के द्वारा वायु को अंदर व बाहर जाने के लिए जगह उपलब्ध हो जाती है।
❍ वायु में जलवाष्प विघमान होती है। जब वायु ठंडे पृष्ठ के संपर्क में आती है तो इसमें उस्थित जलवाष्प ठंडी होकर संघनित हो जाती है तथा जल की बूँदे ठंडे पृष्ठ पर दिखाई देती हैं।
❍ वायु प्रत्येक स्थान पर मिलती है। हम वायु को देख नही सकते इसे अनुभव कर सकते है।
❍ पवन :– गतिशील वायु को पवन कहते है।
❍ वायु का द्रव्यमान होता है और वायु जगह घेरती है।
❍ पादप एवं जंतु :- श्वसन प्रक्रिया में ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं और कार्बनडाइऑक्साइड बनाते हैं।
❍ जलीय-प्राणी :- श्वसन के लिए जल में घुली वायु का उपयोग करते हैं।
❍ पवन चक्की :- पवन से चलने वाली युक्ति है जो डायनेमों की सहायता से विधुत उतपन्न करता है।
❍ प्रकृति में जलचक्र के लिए वायु में जलवाष्प का उपस्थित होना अनिवार्य है।
❍ जलने की क्रिया में केवल ऑक्सीजन की उवस्थिति में ही संभव है।
❍ कार्बनडाइऑक्साइड गैस की उवस्थिति में घुटन महसूस होता है।
❍ धुँए में कुछ गैसें एवं सूक्ष्म धूल के कण होते हैं जो प्रायः हानिकारक होते हैं।
❍ हमारी नाक में छोटे-छोटे बाल तथा श्लेष्मा उवस्थित होते है जो धूल के कणों को श्वसन-तंत्र में जाने से रोकते हैं।
अध्याय 16 – कचरा – संग्रहण एवं निपटान
❍ एक कदम स्वच्छता की ओर भारत के प्रधानमंत्री ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान का शुभारंभ किया ।
❍ हमारे दैनिक क्रियाकलापों से कचरा उत्पन्न होता है।
❍ भराव :- वह स्थान है , जहाँ शहर अथवा नगर के कचरे को एकत्र करके पाटा जाता है।
❍ कम्पोस्टिंग :- रसोई घर के अपशिष्ट सहित पौधों एवं जंतु अपशिष्टों को खाद में परिवर्तित करना कम्पोस्टिंग कहलाता है।
❍ वर्मीकम्पोस्टिंग :- रसोइ घर के कचरे को कृमी अथवा लाल केंचुओं द्वारा कंपोस्ट में परिवर्तित करना वर्मीकम्पोस्टिंग कहलाता हैं।
❍ अपशिष्ट :- अपशिष्ट पदार्थ नियमित रूप से इकट्ठा होने वाले उस कचरे को कहा जाता है, जो रोज कारखानों, ऑफिस, घरों, एवं अन्य इमारतों की साफ-सफाई के बाद एकत्रित होता है, तथा जिसे हम कचरापात्र या सड़क और नदियों में ऐसे ही फेंक देते है|
❍ पुनर्चक्रण :- कचरे को कुछ नए रूप के सामग्री में बदलना। ग्लास, पेपर, प्लास्टिक, और धातु जैसे एल्यूमीनियम और स्टील सभी का आम तौर पर पुनर्नवीनीकरण या पुनर्चक्रण किये जा सकते हैं।
❍ पुनर्चक्रण ऊर्जा बचाता है – सामग्री से एक नया उत्पाद बनाने की अपेक्षा उसी उत्पाद को रीसाइक्लिंग करने से कम ऊर्जा खर्च होती है।
❍ पुनर्चक्रण कागज प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, ऊर्जा की बचत होती है, कम कर देता है ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन , और रहता है लैंडफिल अंतरिक्ष कचरा के अन्य प्रकार है कि पुनर्नवीनीकरण नहीं किया जा सकता के लिए मुफ्त
❍ लगभग अगले 20 वर्षों तक भराव क्षेत्र पर कोई भवन निर्माण नही किया जाता।
❍ कचरे के उपयोगी अवयव के निपटान के लिए भराव क्षेत्रों का पास कम्पोस्ट बनाने वाले क्षेत्र विकसित किए जाते हैं।
❍ कुछ शहरों तथा नगरों में नगरपालिकाएँ दो प्रकार के कचरे को एकत्र करने के लिए दो पृथक कुड़ेदान प्रदान करती है।
❍ नीलेकुड़ेदान :- पुनः उपयोग किए जा सकने वाले पदार्थ डाले जाते हैं जैसे प्लास्टिक धातुएँ तथा काँच ।
❍ हरेकुड़ेदान :- रसोई तथा अन्य पादप तथा जंतु अपशिष्टों को एकत्र करने के लिए होते हैं।
Class - 7 NCERT NICHOD NOTES IN HINDI
अध्याय 1 : पादपों में पोषण
अध्याय 2 : प्राणियों में पोषण
अध्याय 3: रेशों से वस्त्र तक
अध्याय 4 : ऊष्मा
अध्याय 5 : अम्ल, क्षारक और लवण
अध्याय 6 : भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन
अध्याय 7 : मौसम, जलवायु तथा जलवायु के अनुरूप जंतुओं द्वारा अनुकूलन
अध्याय 8 : पवन , तूफ़ान और चक्रवात
अध्याय 9 : मृदा
अध्याय 10 : जीवों में श्वसन
अध्याय 11 : जंतुओं और पादप में परिवहन
अध्याय 12 : पादप में जनन
अध्याय 13 : गति एवं समय
अध्याय 14 : विधुत धारा और इसके प्रभाव
अध्याय 15 : प्रकाश
अध्याय 16 : जल एक बहुमूल्य संसाधन
अध्याय 17 : वन हमारी जीवन रेखा
अध्याय 18 : अपशिष्ट जल की कहानी
Classs 8 SCIENCE NOTES
अध्याय 1 : फसल उत्पादन एवं प्रबंध
अध्याय 2 : सूक्ष्मजीव : मित्र और शत्रु
अध्याय 3 : संश्लेषित रेशे और प्लास्टिक
अध्याय 4 : पदार्थ : धातु और अधातु
अध्याय 5 : कोयला और पेट्रोलियम
अध्याय 6 : दहन और ज्वाला
अध्याय 7 : पौधें एवं जंतुओं का संरक्षण
अध्याय 8 : कोशिका संरचना एवं प्रकार्य
अध्याय 9 : जंतुओं में जनन
अध्याय 10 : किशोरावस्था की ओर
अध्याय 11 : बल तथा दाब
अध्याय 12 – घर्षण
अध्याय 13 – ध्वनि
अध्याय 14 – विधुत धारा के रासानिक प्रभाव
अध्याय 15 – कुछ प्राकृतिक परिघटनाएँ
अध्याय 16 – प्रकाश
अध्याय 17 – तारे एवं सौर परिवार
अध्याय 18 – वायु तथा जल का प्रदूषण
By-Prof. Rakesh Giri
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