अनुवांशिकता एवं वातावरण का प्रभाव CTET paper 1 class 1 to 5 in Hindi

 

  शारीरिक लक्षणों पर प्रभाव


  • बालक के रंग-रूप, आकार, शारीरिक गठन, ऊँचाई इत्यादि के निर्धारण में उसके आनुवंशिक गुणों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।अधिकांश जुड़वाँ भाई द्वि-युग्मक होते हैं, जो दो पृथक् युग्मजों (Zygote) से विकसित होते हैं। यह भाइयों जैसे जुड़वाँ भाई और बहनों की तरह मिलते-जुलते होते हैं, परन्तु वे अनेक प्रकार से परस्पर एक-दूसरे से भिन्न भी होते हैं। बालक के आनुवंशिक गुण उसकी वृद्धि एवं विकास को भी प्रभावित करते हैं।
  • शारीरिक लक्षणों के वाहक जीन प्रखर अथवा प्रतिगामी दोनों प्रकार के हो सकते हैं। यह एक ज्ञात सत्य है कि किन्हीं विशेष रंगों के लिए पुरुष और महिला में रंगों को पहचानने की अन्धता (कलर ब्लाइण्डनेस) अथवा किन्हीं विशिष्ट रंगों की संवेदना नारी में नर से अधिक हो सकती है। एक दादी और माँ, स्वयं रंग-अन्धता से ग्रस्त हुए बिना किसी नर शिशु को यह स्थिति हस्तानान्तरित कर सकती है। ऐसी स्थिति इसलिए है, क्योंकि यह विकृति प्रखर होती है, परन्तु महिलाओं में यही प्रतिगामी (Recessive) होती है।
  • जिन्स जोड़ों (Pairs) में होते हैं। यदि किसी जोड़े में दोनों जीन प्रखर होंगे तो, उस व्यक्ति में वह विशिष्ट लक्षण दिखाई देगा (जैसे रंगों को पहचानने की अन्धता), यदि एक जीन प्रखर हो और दूसरा प्रतिगामी, तो जो प्रखर होगा वही अस्तित्व में रहेगा।
  • प्रतिगामी जीन आगे सम्प्रेषित हो जाएगा और यह अगली किसी पीढ़ी में अपने लक्षण प्रदर्शित कर सकता है। अतः किसी व्यक्ति में किसी विशिष्ट लक्षण के दिखाई देने के लिए प्रखर जीन ही जिम्मेदार होता है।
  • जो अभिलक्षण दिखाई देते हैं और प्रदर्शित होते हैं; जैसे आँखों का रंग, उन्हें समलक्षणी (Phenotypic) कहते हैं।
  • प्रतिगामी जीन अपने लक्षण प्रदर्शित नहीं करते, जब तक कि वे अपने समान अन्य जीन के साथ जोड़े नहीं बना लेते, जो अभिलक्षण आनुवंशिक रूप से प्रतिगामी जीनों के रूप में आगे संचारित (Transfer) हो जाते हैं, परन्तु वे प्रदर्शित नहीं होते, उन्हें समजीनोटाइप (Genotype) कहते हैं।






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