विकास की अवधारणा एवं इसका अधिगम से सम्बन्ध!
Concept of Development and its Relationship with Learning.
विकास की अवधारणा एवं इसका अधिगम से सम्बन्ध!
Concept of Development and its Relationship with Learning.
1.विकास के अभिलक्षण
विकास एक जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है, जो गर्भधारण से लेकर मृत्युपर्यन्त होती रहती है। मनोवैज्ञानिकों ने विकास के विभिन्न अभिलक्षणों (Characteristica) को बताया है, जो इस प्रकार है
• विकासात्मक परिवर्तन प्रायः व्यवस्थित प्रगतिशील और नियमित होते हैं। सामान्य से विशिष्ट और सरल से जटिल और एकीकृत से क्रियात्मक स्तरों की ओर असर होने के दौरान प्रायः यह एक क्रम का अनुसरण करते हैं।
विकास बहु-आयामी (Multi-dimensional) होता है अर्थात् कुछ क्षेत्रों में यह बहुत तीव्र वृद्धि को दर्शाता है, जबकि कुछ अन्य क्षेत्रों में धीमी गति से होता है।
• विकास बहुत ही लचीला होता है इसका तात्पर्य है कि एक हो व्यक्ति अपनी ती विकास दर की तुलना में किसी विशिष्ट क्षेत्र में अपेक्षाकृत आकस्मिक रूप से अच्छा सुधार प्रदर्शित कर सकता है। एक अच्छा परिवेश शारीरिक शक्ति अथवा स्मृति और बुद्धि के स्तर में अनापेक्षित सुधार ला सकता है!
विकासात्मक परिवर्तनों में प्रायः परिपक्वता में क्रियात्मकता (Functional) के स्तर पर उच्च स्तरीय वृद्धि देखने में आती है, उदाहरणस्वरूप शब्दावली के आकार और जटिलता में वृद्धि, परन्तु इस प्रक्रिया में कोई कमी अथवा क्षति भी निहित हो सकती है; जैसे हडियों के मन में कमी या वृद्धावस्था में दस्त (स्मृति) का कमजोर होना।
विकासात्मक परिवर्तन 'मात्रात्मक' (Quantitative) हो सकते हैं जैसे आयु बढ़ने के साथ कद बढ़ना अथवा 'गुणात्मक' जैसे नैतिक मूल्यों का निर्माण!
2. विकास की अवधारणा
विकास जीवनपर्यन्त चलने वाली एक निरन्तर प्रक्रिया है। विकास की प्रक्रिया में बालक का शारीरिक (Physical), क्रियात्मक (Motor), संज्ञान (Cognitive) भाषागत् (Language), संवेगात्मक (Emotional) एक सामाजिक (Social) विकास होता है। बालक में आयु के साथ होने वाले गुणात्मक एवं परिमाणात्मक परिवर्तन सामान्यतया देखे जाते हैं। बालक में क्रमबद्ध रूप से होने वाले सुसंगत परिवर्तन को क्रमिक श्रृंखला की (Sequence [Chain) 'विकास' कह सकते है।
क्रमबद्ध एवं 'सुसंगत' होना इस बात को संकेतित करता है कि बालक के अन्दर अब तक संघटित गुणात्मक परिवर्तन तथा उसमें आगे होने वाले परिवर्तनों में एक निश्चित सम्बन्ध है। आगे होने वाले परिवर्तन अब तक के परिवर्तनों की परिपक्वता पर निर्भर करते हैं।
अरस्तू के अनुसार, “विकास आन्तरिक एवं बाह्य कारणों से व्यक्ति में परिवर्तन है।"
किशोरावस्था के दौरान शरीर के साथ-साथ संवेगात्मक, सामाजिक और संज्ञानात्मक क्रियात्मकता में भी तेजी से परिवर्तन दिखाई देते हैं।
विकास प्रासंगिक हो सकता है। यह ऐतिहासिक परिवेशीय और सामाजिक-सांस्कृतिक घटकों से प्रभावित हो सकता है।
विकासात्मक परिवर्तनों की दर अथवा गति में उल्लेखनीय "व्यक्तिगत अन्तर' ही सकते हैं। यह अन्तर आनुवंशिक पटको अथवा परिवेशीय प्रभावों के कारण हो सकते हैं। कुछ बच्चे अपनी आयु की तुलना में अत्यधिक पूर्व जागरूक हो सकते हैं, जबकि कुछ बच्चों में विकास की गति बहुत धीमी होती है। उदाहरणस्वरूप, पद्यपि एक औसत बच्चा शब्दों के वाक्य 3 वर्ष की आयु में बोलना शुरू कर देता है, परन्तु कुछ ऐसे बच्चे भी हो सकते हैं, जो 2 वर्ष के होने से बहुत पहले ही ऐसी योग्यता प्राप्त कर लेते हैं।
3.विकास के आयाम
मनोवैज्ञानिकों ने की सुविधा के दृष्टिकोण से विकास को निम्नलिखित भागों में बाँटा है,
i.शारीरिक विकास
शरीर के बाह्य परिवर्तन जैसे-ऊँचाई, शारीरिक अनुपात में वृद्धि इत्यादि जिन्हें स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, किन्तु शरीर के आन्तरिक अवयवों के परिवर्तन बाह्य रूप से दिखाई तो नहीं पड़ते, किन्तु शरीर के भीतर इनका समुचित विकास होता रहता है।
प्रारम्भ में शिशु अपने हर प्रकार के कार्यों के लिए दूसरी पर निर्भर रहता है. धीरे-धीरे विकास की प्रक्रिया के फलस्वरूप वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम होता जाता है।
शारीरिक विकास पर बालक के आनुवंशिक गुणों का प्रभाव देखा जा सकता है। इसके अतिरिक्त बालक के परिवेश एवं उसकी देखभाल का भी उसके शारीरिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। यदि बच्चे को पर्याप्त मात्रा में पोषक आहार उपलब्ध नहीं हो रहा है, तो उसके विकास की सामान्य गति की आशा कैसे की जा सकती है?
बालक की वृद्धि एवं विकास के बारे में शिक्षकों को पर्याप्त जानकारी इसलिए भी रखना अनिवार्य है, क्योंकि को रुचियों, इच्छाएँ, दृष्टिकोण एवं एक तरह से उसका पूर्ण व्यवहार शारीरिक वृद्धि एवं विकास पर ही निर्भर करता है।
बच्चों की शारीरिक वृद्धि एवं विकास के सामान्य ढाँचे से परिचित होकर अध्यापक यह जान सकता है कि एक विशेष आयु स्तर पर बच्चों से क्या आशा की जा सकती है? massha
ii. मानसिक विकास
संज्ञानात्मक या मानसिक विकास (Cognitive or Mental Development) से तात्पर्य बालक को उन सभी मानसिक योग्यताओं एवं क्षमताओं में वृद्धि और विकास से है, जिनके परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार की समस्याओं को सुलझाने में अपनी मानसिक शक्तियों का पर्याप्त उपयोग कर पाता है।
• कल्पना करना, स्मरण करना, विचार करना, निरीक्षण करना, समस्या-समाधान करना, निर्णय लेना इत्यादि की योग्यता संज्ञानात्मक विकास के फलस्वरूप ही विकसित होते हैं।
जन्म के समय बालक में इस प्रकार की योग्यता का अभाव होता है. धीरे-धीरे आयु बढ़ने के साथ-साथ उससे मानसिक विकास की गति भी बढ़ती रहती है।
ज्ञानात्मक विकास के बारे में शिक्षकों को पर्याप्त जानकारी इसलिए होनी चाहिए क्योंकि इसके अभाव में यह बालकों की इससे सम्बन्धित समस्याओं का समाधान नहीं कर पाएगा।
यदि कोई बालक मानसिक रूप से कमजोर है, तो इसके क्या कारण है, यह जानना उसके उपचार के लिए आवश्यक है।
विभिन्न अवस्थाओं और आयु-स्तर पर बच्चों की मानसिक वृद्धि और विकास की ध्यान में रखते हुए उपयुक्त पाठ्य-पुस्तके तैयार करने में भी इससे सहायता मिल सकती है।
iii.सांवेगिक विकास
संवेग, जिसे भाव भी कहा जाता है का अर्थ होता है ऐसी अवस्था के व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करती है। भय, क्रोध, घृणा, आश्चर्य, स्नेह, खुशी इत्यादि संवेग के उदाहरण है। बालक में आयु बढ़ने के साथ ही इन संवेगों का विकास भी होता रहता है।
संवेगात्मक विकास (Emotional Development) मानव वृद्धि एवं विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू है। बालक का संवेगात्मक व्यवहार उसकी शारीरिक वृद्धि एवं विकास को ही नहीं, बल्कि बौद्धिक, सामाजिक एवं नैतिक विकास को भी प्रभावित करता है।
बालक के सन्तुलित विकास में उसके संवेगात्मक विकास की अहम भूमिका होती है।बालक के संवेगात्मक विकास पर पारिवारिक वातावरण भी बहुत प्रभाव डालता है।
विद्यालय के परिवेश और क्रिया-कलापों को उचित प्रकार से संगठित कर अध्यापक बच्चों के संवेगात्मक विकास में भरपूर योगदान दे सकते हैं।
iv.क्रियात्मक विकास
क्रियात्मक विकास (Motor Development) का अर्थ होता है-व्यक्ति की कार्य करने की क्षमताओं या योग्यताओं का विकास त्मिक शक्तियों, क्षमताओं या योग्यताओं का अर्थ होता है ऐसी शारीरिक गतिविधियों या क्रियाएँ जिनको सम्पन्न करने के लिए मांसपेशियों एवं पत्रिकाओं की गतिविधियों के संयोजन की आवश्यकता होती है। जैसे-चलना, बैठना इत्यादि।
एक नवजात शिशु ऐसे कार्य करने में अक्षम होता है। शारीरिक वृद्धि एवं विकास के साथ ही उम्र बढ़ने के साथ उसमें इस तरह की योग्यताओं का भी विकास होने लगता है।
इसके कारण बालक को आत्मविश्वास अर्जित करने में भी सहायता मिलती है। विकास के अभाव में बालक में विभिन्न प्रकार के कौशल के विकास में बाधा पहुंचती है।
क्रियात्मक विकास के स्वरूप एवं उसको प्रक्रिया का जान होना शिक्षकों के लिए आवश्यक है।
इसी जान के आधार पर ही वह बालक में विभिन्न कौशलों का विकास करवाने में सहायक हो सकता है।
जिन बालकों से क्रियात्मक विकास सामान्य से कम होता है, उनके समायोजन एवं विकास हेतु विशेष कार्य करने की आवश्यकता होती है।
V.भाषायी विकास
भाषा के विकास को एक प्रकार से संज्ञानात्मक भावनात्मक विकास माना जाता है।
भाषा के माध्यम से बालक अपने मन के भावों, विचारों को एक-दूसरे के सामने रखता है एवं दूसरे के भावों, विचारों एवं भावनाओं को समझता है।
भाषायी ज्ञान के अन्तर्गत बोलकर विचारों को प्रकट करना, संकेत के माध्यम से अपनी बात रखना तथा लिखकर अपनी बात को रखना इत्यादि को सम्मिलित किया जाता है।
बालक 6 माह से 1 वर्ष के बीच कुछ शब्दों को समझने एवं बोलने लगता है। 3 वर्ष की अवस्था में वह कुछ छोटे वाक्यों को बोलने लगता है। 15 से आधार वृद्धि परिपक्वता
16 वर्षों के बीच काफी शब्दों की समझ विकसित हो जाती है।
भाषायी विकास का क्रम एक क्रमिक विकास होता है। इसके माध्यम से कौशल में वृद्धि होती है।
Vi. सामाजिक विकास
सामाजिक विकास (Social Development) का शाब्दिक अर्थ होता है-समाज के अन्तर्गत रहकर विभिन्न पहलुओं को सीखना। समाज के अन्तर्गत ही चरित्र निर्माण, अच्छा व्यवहार (सद्गुण) तथा जीवन से सम्बन्धित व्यावहारिक शिक्षा इत्यादि का विकास होता है।
बालकों के विकास की प्रथम पाठशाला परिवार को माना गया है, तत्पश्चात् समाज को सामाजिक विकास के माध्यम से बालकों का जुड़ाव व्यापक हो जाता है।
सम्बन्धों के दायरे में वृद्धि अर्थात् माता-पिता एवं भाई-बहन के अतिरिक्त दोस्तों मित्रों से जुड़ना।
सामाजिक विकास के माध्यम से बालकों में सांस्कृतिक, धार्मिक तथा
सामुदायिक विकास इत्यादि की भावनाएं उत्पन्न होता है। • बालकों के मन में आत्म-सम्मान, स्वाभिमान तथा विचारधारा का जन्म होता है।
बालक समाज के माध्यम से हो अपने आदर्श व्यक्तियों का चयन करता है तथा कुछ बनने की प्रेरणा उनसे लेता है।
एक शिक्षित समाज में ही व्यक्ति का उत्तम विकास सम्भव हो सकता है।
4. वृद्धि
वृद्धि (Growth) का अर्थ होता है बालकों को शारीरिक संरचना का विकास जिसके अन्तर्गत लम्बाई, भार, मोटाई तथा अन्य अंगों का विकास आता है वृद्धि की प्रक्रिया आन्तरिक एवं बाह्य दोनों रूपों में होती है, यह एक निश्चित आयु तक होती है तथा भौतिक पहलू (Physical Aspect) में ही सम्भव है। वृद्धि पर आनुवंशिकता का सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़ते है।
वृद्धि एवं विकास में अन्तर
वृद्धि एवं विकास का प्रयोग लोग प्रायः पर्यावाची शब्दों के रूप में करते हैं। अवधारणात्मक रूप से देखा जाए, तो इन दोनों में अन्तर होता है। इस अन्तर को हम निम्न प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं
आधार
जैसे-बच्चे के बड़े होने के साथ उसके आकार, लम्बाई, ऊँचाई इत्यादि के लिए होता है।
वृद्धि विकास का एक होता है। इसका सीमित होता है।
विकास
वृद्धि शब्द प्रयोग विकास शब्द का प्रयोग परिमाणात्मक परमात्मपरिवर्तन परिवर्तन के साथ-साथ व्यावहारिक परिवर्तन जैसे कार्यकुशलता,कार्यक्षमता व्यवहार में सुधार इत्यादि के लिए भी होता है।
विकास अपने आप में एक विस्तृत अर्थ रखता है। वृद्धि इसका एक भाग होता है!
वृद्धि तथा विकास को प्रभावित करने वाले कारक
वृद्धि तथा विकास को प्रभावित करने वाले अनेक कारक उत्तरदायी होते. है, जो निम्नलिखित हैं
1. पोषण
यह वृद्धि तथा विकास का महत्त्वपूर्ण घटक होता है। बालक को विकास के लिए उचित मात्रा में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट ख लवण इत्यादि की आवश्यकता होती है।
हमारे खान-पान में उपयुक्त पोषक तत्त्वों की कमी होगी तो वृद्धि एवं विकास प्रभावित होगा।
यह विकास के अन्य कारकों में सबसे महत्त्वपूर्ण कारक होता है। बौद्धिक विकास जितना उच्चतर होगा, हमारे अन्दर समझदारी, नैतिकता, भावनात्मकता, तर्कशीलता इत्यादि का विकास उतना ही उत्तम होगा!
3.वंशानुगत
वंशानुगत (Heredity) स्थिति शारीरिक एवं मानसिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
माता-पिता के गुण एवं अवगुण का प्रभाव बच्चों पर स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है।
4.लिंग
सामान्यतया लड़के एवं लड़कियों में विकास के क्रम में विविधता देखी जाती है।
किसी अवस्था में विकास की गति लड़कियों में तीव्र होती हैं तो किसी अवस्था में लड़कों में।
5.वायु एवं प्रकाश
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए स्वच्छ वायु की आवश्यकता होती है, अगर वायु स्वच्छ न मिले तो बालक बीमार हो सकता है एवं इनके अभाव में कार्य करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
शारीरिक विकास के लिए सूर्य के प्रकाश की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. क्योंकि सूर्य के प्रकाश में विटामिन-डी की प्राप्ति होती है, जो विकास के लिए अपरिहार्य है।
6.अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ
अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ (Endocrine Glands) से निकलने वाला हार्मोन बालक एवं बालिकाओं के शारीरिक विकास को प्रभावित करता है।
7.शारीरिक क्रिया
जीवन को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम बहुत जरूरी है। यह मानव की आयु बढ़ता है। यह व्यक्तिको सक्रिय (Active) बनाए रखता है। यह व्यक्ति को रोग प्रतिरोध शक्ति बढ़ा है।
8.वृद्धि की अवस्थाएँ
वृद्ध को निम्नलिखित अवस्थाओं में विभाजित किया है. जो निम्न प्रकार है
1.शैशवकाल
इसमें जन्म से 2 वर्ष तक अच्छी का शारीरिक एवं मानसिक विकास तेजी से होता है।
बालक इस अवस्था में पूर्णरूप से माता-पिता पर आश्रित रहता है।
इस अवस्था में संवेगात्मक विकास भी होता है तथा इस अवस्था में सीखने की क्षमता की गति होती है।
काल (Infancy) की ओर अग्रसर होता है, उसके अन्दर प्यार व स्नेह की आवश्यकता बढ़ने लगती है।
2.वाल्यकाल
बाल्यकाल (Childhoodi को निम्न दो भागों में विभाजित किया गया है
(i) पूर्व बाल्यकाल
सामान्यतया 2 से 6 वर्ष की अवस्था बालकों का बाहरी होने लगता 5. परिपक्व प्रौढावस्था
है। बच्चों में नकल करने की प्रवृत्ति) अनुकरण एवं दोहराने की प्रवृत्ति पाई जाती है। • समाजीकरण एवं जिज्ञासा दोनों में वृद्धि होती है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह
काल भाषा सीखने की सर्वोत्तम अवस्था है।
(i) उत्तर बाल्यकाल
6 से 12 वर्ष तक की अवस्था। इस अवस्था में बच्चों में बौद्धिक, नैविक, सामाजिक, तर्कशीलता इत्यादि का व्यापक विकास होता है।
पढ़ने की में वृद्धि के साथ-साथ स्मरण क्षमता का भी विकास होता है। समूह भावना का विकास होता है अर्थात् समूह में खेलना, समूह में रहना, समलैंगिक व्यक्ति को ही मित्र बनाना इत्यादि।
• जीवन में अनुशासन तथा नियमों की महत्ता समझ में आने लगती है। खोजी दृष्टिकोण एवं घूमने की प्रवृत्ति का विकास
3. किशोरावस्था
12 से 15 वर्ष के बीच की अवस्था अत्यन्त जटिल अवस्था तथा साथ ही व्यक्ति के शारीरिक संरचना में परिवर्तन देखने को मिलता है।
• यह यह समय होता है, जिसमें बालक बाल्यावस्था से परि की ओर उन्मुख होता है।
• इस अवस्था में किशोरों की लम्बाई एवं भार दोनों में वृद्धि होती है, साथ ही मांसपेशियों में भी वृद्धि होती है।
• 12-14 वर्ष की आयु के बीच लड़को की अपेक्षा लड़कियों को लम्बाई एवं मांसपेशियों में तेजी से वृद्धि होती है एवं 14-15 वर्ष की आयु के बीच लड़कियों को अपेक्षा लड़को को लम्बाई एवं मांसपेशियों तेजी से बढ़ती है।
• इस काल में प्रजनन अंग विकसित होने लगते है एवं उनको काम की मूल प्रवृत्ति जायत होती है।
• इस अवस्था में किशोर दुश्चिन्ता (विष्ट) एवं स्वयं से सम्बन्धित सरोकार मतलब का भाव रखते है। मैं कौन हूँ मैं क्या हूँ मैं भी कुछ हूँ जैसी प्रबल भावनाओं का विकास इस अवस्था में होने लगता है।
• इस अवस्था में किशोर-किशोरियों को बुद्धि का पूर्ण विकास हो जाता है. उनकी ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता बढ़ जाती है, स्मरणशक्ति बढ़ जाती है एवं उनमें स्थायित्व आने लगता है।
• इस अवस्था में मित्र बनाने की प्रवृत्ति तीव्र होती है एवं सामाजिक सम्बन्ध में वृद्धि होती है। इस अवस्था में नशा या अपराध को और उन्मुख होने की अधिक रहती है।
• किशोरावस्था के शारीरिक बदलाव का प्रभाव किशोर जीवन के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर पड़ता है। अतः इस अवस्था में उन्हें शिक्षकों, मित्रों एवं अभिभावकों के सही मार्गदर्शन एवं सलाह को आवश्यकता पड़ती है।
4. युवा प्रौढावस्था
• 18 से 40 वर्ष तका
किशोरावस्था एवं प्रौढावस्था (Adulthood) की कोई निश्चित उम्र नहीं होती। यह अवस्था मानव विकास में एक निश्चित परिपक्वता ग्रहण करने से प्राप्त होती है
• सामान्यतया 40 से 65 वर्षको अवस्था शारीरिक विकास में गिरावट आने लगती है अर्थात् बालों का सफेद होना, माँसपेशियों में ढीलापन तथा चेहरे पर झुर्रियां आना इत्याद
6. वृद्ध प्रौढावस्था
• 65 से अधिक वर्ष की अवस्था
• शारीरिक क्षमता का कमजोर होना
सामाजिक, आध्यात्मिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक क्रियाकलापों के प्रति
1.5 अधिगम
अधिगम (Learning) का अर्थ होता है-सीखना। अधिगम एक प्रक्रिया है. जीवनपर्यन्त चलती रहती है एवं जिसके द्वारा हम कुछ ज्ञान अर्जित करते है या जिसके द्वारा हमारे व्यवहार में परिवर्तन होता है। जन्म के तुरन्त बाद से ही बालक सोखनारम्भ कर देता है।
अधिगम व्यक्तित्व के सर्वागीण विकास में सहायक होता है। इसके द्वारा जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलती है। अधिगम के बाद व्यक्ति स्वयं और दुनिया को समझने के योग्य हो पाता है।यदि छात्र किसी विषय-वस्तु के ज्ञान के आधार पर कुछ परिवर्तन करने एवं उत्पादन करने में सक्षम हो गया हो, तो उसके सीखने की प्रक्रिया को अधिगम कहा जाएगा। सार्थक अधिगम दो चीजों एक मानसिक द्योतकों को प्रस्तुत करने व उनमें बदलाव लाने की उत्पादक प्रक्रिया है न कि जानकारी इकट्ठा कर उसे रहने की प्रक्रियाः
1.6 विकास का अधिगम से सम्बन्ध
विकास के विभिन्न पहलुओं का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है एवं ये सभी अधिगम को प्रभावित करते हैं।
शारीरिक विकास, विशेषकर छोटे बच्चों में मानसिक व संज्ञानात्मक विकास में मददगार है। सभी बच्चों को खेल को गतिविधियों में सहभागिता उनके शारीरिक व मनो-सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है। मानसिक और भाषायी विकास, सामाजिक विकास एवं अधिगम को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।
अधिगम के सन्दर्भ में विद्वानों द्वारा कुछ परिभाषाएं निम्न प्रकार दी गई है
गेट्स के अनुसार, “अनुभव द्वारा व्यवहार में रूपान्तर लाना ही अधिगम है।" ई.ए. पील के अनुसार, "अधिगम व्यक्ति में एक परिवर्तन है,
बालकों का विकास एवं अधिगम एक निरन्तर प्रक्रिया है, जिसके साथ बालकों में उन सिद्धान्तों का भी विकास होता है, जो बच्चे प्राकृतिक व सामाजिक दुनिया के बारे में बनाते हैं। इसमें दूसरों के साथ अपने रिश्ते के सम्बन्ध के विभिन्न सिद्धान्त भी शामिल "भी उसके बतावरण के परिवर्तनों के अनुसरण में है, जिनके आधार पर उन्हें यह पता चलता है कि चीजें जैसी है वैसी क्यों है? कारण और कारक के बीच क्या सम्बन्ध है और कार्य व निर्णय लेने के क्या आधार है?
होता है।"
को एवं को के अनुसार, "सीखना आदतों, ज्ञान एवं
अभिवृत्तियों का अर्जन है। इसमें कार्यों को करने के नवीन तरीके सम्मिलित है और इसकी शुरुआत व्यक्ति द्वारा किसी भी बाधा को दूर करने अथवा नवीन परिस्थितियों में अपने समायोजन को लेकर होती है। इसके माध्यम से व्यवहार में उत्तरोत्तर परिवर्तन होता रहता है। यह व्यक्ति को अपने अभिप्राय अथवा लक्ष्य को पाने में समर्थ बनाती है।"
बच्चे व्यक्तिगत स्तर पर एवं दूसरों से भी विभिन्न तरीकों से सीखते है-अनुभव के माध्यम से, स्वयं चीजें करने व स्वयं बनाने से प्रयोग करने से पढ़ने से विमर्श करने, पूछने, सुनने, उस पर सोचने व मनन करने से तथा गतिविधि या लेखन के जरिए अभिव्यक्त करने से अपने विकास के मार्ग में उन्हें इस प्रकार के अवसर मिलने चाहिए।
अभ्यास प्रश्न
1. विकास की प्रक्रिया में जीवन मूल्यों, व्यक्तित्व व्यवहार इत्यादि के विकास भी शामिल हैं।
A. दृष्टिकोणों
C. रुचियो
((1) A और B
13)C और D
B. स्वभाव
D. आदतो
(2) A B C
(4) सभी
2. बाल विकास के अध्ययन में निम्नलिखित में से किन बातों को शामिल किया जाता है? A. आयु के साथ होने वाले परिवर्तनों का क्या
स्वरूप होता है? B. बालक में होने वाले परिवर्तनों का विशेष आयु के क्या सम्बन्ध होता है?
C. बालको मे जाने वाली व्यक्तिगत विभिन्नताओं के लिए किस प्रकार के आनुवंशिक एवं परिवेशजन्य प्रभाव उत्तरदायी होते हैं?
3. आप अपनी कक्षा में से कुछ छात्रों की सुनकर छः महीने में उनमें होने वाले विकास की एक रिपोर्ट तैयार करना चाहते है, तो इसके लिए आप निम्न में से क्या चुनेंगे?
(1)त्येक लम्बाईमा (2) उन (3) आ
दृष्टिकोणवाद व्यकव्यवहार आदि में होने वाले परिवर्तनों की जाँच करेंगे (4) प्रत्येक माह उनके शारीरिक आकार में होने काले परिवर्तन करेंगे
4. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
अर्थ निकालना, अमूर्त सोच (Abstract Thought को क्षमता विकसित करना, विवेचना व कार्य, अधिगम की प्रक्रिया के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू है। दृष्टिकोण, भावनाएँ और आदर्श, संज्ञानात्मक विकास के अभिन्न हिस्से है और भाषा विकास, मानसिक चित्रण, अवधारणाओं व तार्किकता से इनका गहरा सम्बन्ध है।
मानसिक और भाषायी विकास सामाजिक विकास एवं अधिगम को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते है।
(4) के संतुलित विकास में उसके होतीहै।
5. किसके परिणामस्वरूप बालक अपने निरन्तर बदलते हुए वातावरण में ठीक प्रकार समायोजन करने में सक्षम हो पाता है? सर्वाधिक उपयुक्त विका करें।
1)शारीरिक विकास 3) भाषा विस (4) विकास
6. मानव का विकास निम्न में से किस पर निर्भर होता है?
(1) वृद्धि पर
(2)सके पर
उसकी बुद्धि पर
(1) दृष्टिकोण भावनाएँ और आदर्श दिवस के हिस्से है और भाषा विकास, मानसिक चित्रण तार्किकता से इनका गहरा सम्बन्ध है। 2) बच्चों का स्रीवास केस की पहली नहीं
और Ac
(4) उसकी वृद्धि7. कौन-सी पाठ्यचर्या सर्वाधिक उपयुक्त होगी?
(1) बालक के शारीरिक के अनुकूल
(2) देश की संस्कृति के अनुकू 3ालक के शारीरिक एवं सामाजिक विकास के अत के अनु (4) उपरोक्त में से कोई नहीं
8. निम्नलिखित में से कौन-सा विकास छोटे बच्चों में मानसिक व संज्ञानात्मक विकास में सर्वाधिक मददगार होता है? (1) शारीरिक (3)गिक विकास (4) भाषा विकास
9. जब किशोर में किसी वस्तु, समस्या या परिस्थिति के लिए निजी स्तर पर निर्णय लेने की क्षमता का विकास परिपक्व होने लगता है, तो इस विकास को कहते हैं (3) सामाजिक विकास
(1)
A. संवेगात्मक विकास
21. 12-14 वर्ष की आयु के बीच अपेक्षा लम्बाई एवं मांसपेशियों में तेजी से वृद्धि होती है एवं 14-18 वर्ष की आयु के बीच की अपेक्षा की लम्बाई एवं मांसपेशियों तेजी से बढ़ती है। (1) लड़कियों को लड़कियों 2)
B. बौद्धिक विकास C. सामाजिक विकास
(1) A
3) A और C
(4) सभी
14. वृद्धि और विकास के सन्दर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य हैहै?
(4)
में से किसी में नहीं
[A] वृद्धि विकास की प्रक्रिया का एक चरण होता है, जिसका क्षेत्र असीमित होता है।
22. सार्थक अधिगम की प्रक्रिया विकास की किस अवस्था से आरम्भ होती है? (1) शिवसे 2) (4)
B. विकास स्वयं में एक विस्तृत अर्थ रखता है। एवं वृद्धि इसका एक भाग होता है। C. विकास एक सतत प्रक्रिया है, जो बालक
के परिपक्व होने के बाद भी चलती रहती है। D) WA
A और B (4) मे
23. किस अवस्था में पनिष्ट मित्रता की प्रवृत्ति पाई जाती है?
15. वृद्धि शब्द का प्रयोग परिवर्तनों लिए तथा विकास का प्रयोग परिवर्तनों के साथ-साथ परिवर्तनों लिए भी होता है।
(4) में से किसी में नहीं
(1) व्यावहारिक व्यावहारिक परि (2) व्यावहारिक परिणामकार (3) परिणाम परिहारक (4) परिपरिमाणात्मक
24. मानव विकास की किस अवस्था में बच्चों
के सोखने की गति सर्वाधिक होती है?
16. सभी बच्चों का शारीरिक विकास सभी प्रकार के विकास की पहली शर्त है। इसके लिए दिन मूल आवश्यकताओं पर ध्यान देना आवश्यक है?
(4)
25. शिक्षा मनोविज्ञान में 'अवस्थाओं में होने वाले मानव विकास का अध्ययन किया जाता है।
पौष्टिक आहार शारीरिक व्यायाम
A. शैशवावस्था
B. बाल्यावस्था C. किशोरावस्था
C.ज्ञानिक सामाजिक जरूरतों (1) WE A (2)और C
(3) ArB
(4) सभी
D. वयस्कावस्था (1) A और B (3) AC
2)और (4) सभी
17. शिक्षण की विभिन्न विधियों के प्रयोग के लिए कौन-सी अवस्था सर्वाधिक (1) उपयुक्त है?
26. 'मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ, मैं भी कुछ हूँ' आदि जैसी प्रबल भावनाएं, बालक के विकास की किस अवस्था की सूचक होती है?
(2) 3)स्था (4) को
18. इस अवस्था में बालकों में नई खोज करने की और घूमने की प्रवृत्ति बहुत अधिक जाती है (1)
(1)
उत्तर (4)
27. बाल विकास के विभिन्न आयाम एवं इनके अधिगम के सम्बन्ध के सन्दर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
(3) किशोरावस्था
19. किशोरों को सबसे नाजुक एवं संवेदनशील
समस्या क्या होती है? (1) व्यवसाय सम्बन्धी समस्या
(1) विकास के विभिन्न आयामी का आपस में धनिष्टा है एवं अधिगम को प्रभावित
(2) ौन सम्बन्धी समस्या (3) योजनसम्बन्धी समस्या
करते हैं। 2)का एक निस्तर
20. मानव विकास को किस अवस्था के बाद व्यक्ति परिपक्व हो जाता है? (3)
(3) शारीरिक विकास विशेोटे
2) (4) किशोरावस्था
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
(4)
10. बालक का संवेगात्मक विकास निम्नलिखित में से किसे प्रभावित करता है? A. उसके शारीरिक विकास
B. उसके सामाजिक विकास C. उसके नैतिक विकास
(1) Baa B (3) और C
A C (4) सभी
11. निम्नलिखित में से कौन-सा बालक के सामाजिक विकास को प्रभावित नहीं करता है?
(1) बुद्धि (2)
(3) प्रयोग की (4) उपरोक्त में से कोई नहीं
12. विकास के विभिन्न आयामों के सन्दर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा करन असत्य है?
((1) कल्पना करना, स्मरण करना, विचार करना, निरीक्षण करना समस्या के
विकसित होती है। (2) विकास एक प्रकारका है।
भाषायी मानसिक एवं चारित्रिक विकास विभिन्न आयु स्तरों में समान
होता है। (4) क्रियात्मक विकास होता है
13. आपकी कक्षा का एक छात्र राजू शारीरिक विकास की दृष्टि से काफी पिछड़ा हुआ है। आपको विकास के निम्नलिखित में से किस आयाम में राजू के पिछड़ने को चिन्ता हो सकती है?
विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
39. विकास की गति एक व्यक्ति से दूसरे में भिन्न होती है, किन्तु यह एक नमूने का अनुगमन करती है। [CTET Feb 2014)
28. निम्नलिखित में से किस अवस्था में बच्चे अपने समवयस्क समूह के सक्रिय सदस्य
हो जाते है?
[CTET June 2011
(1)
(3) fte (4) और स्थित
29. मानव विकास को निम्न क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है, जो है (CTET Jan 2012] (1) शारीरिक, आध्यात्मिक और सामाजिक
(2) शारीरिक, संज्ञानात्मक संवेगात्मक और सामाजिक
गात्मज्ञानात्मक और
33. निम्नलिखित में से कौन प्रारम्भिक बाल्यावस्था अवधि के दौरान उन भूमिकाओं एवं व्यवहारों के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं, जो एक समूह में स्वीकार्य है? [CTET Feb 2015]
(1) भाई-बहन एवं
(2) अध्यापक एवं साथी (4)-पिता एवं ई
34. निम्नलिखित में से कौन-सा आयु समूह परवर्ती बाल्यावस्था श्रेणी के अन्तर्गत आता है?
[ CTET Feb 2013)
(1) 11 से 18 वर्ष ch to 24 1416 से 11 वर्ष
35. "कोई भी नाराज हो सकता है-यह आसान है, परन्तु एक सही व्यक्ति के ऊपर, सही मात्रा में, सही समय पर, सही उद्देश्य के लिए तथा सही तरीके से नाराज होना आसान नहीं है।" यह सम्बन्धित है [CTET Feb 2015]
(1) संग्राम विer से
समाजसे (4) शारीरिक विकास से
36. शैशवकाल की अवधि है
40. विकास के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा एक उचित है? ICTET Feb 2016] (1) विकासम प्रारम्भ होता है और होता है।
(2) सामाजिक सांस्कृतिक सन्दर्भ विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। (3) विकास है।
(4)ोता
41. विकास के लिए प्रारम्भिक बचपन (CTET Feb 2016] महत्वपूर्ण महत्वपूर्ण (4) अ
(4) मनोवैज्ञानिक ज्ञान और शारीरिक
30. किशोर
का अनुभव कर सकते है।
(CTET Nov 2013 (1) में किए गए अपराधों के कर आत्मसिद्धि के भाव (4) और से
(2) जीवन के बारे में परि
42. भाषा के विकास के लिए सबसे संवेदनशील समय निम्नलिखित में से कौन-सा है? [CTET Sept 2016]
(1) (2)
31. भाषा विकास में सहयोग करने का कौन-सा तरीका गलत है? (CTET July 2013) (1) दिना टोके प्रकरण पर बात करना उसकी अपनी भाषा के प्रयोगको मान्य
(1) जन्म से 2 वर्ष तकतक
32 से 3 वर्ष क 14
37. मध्य या भाषा [CTET Sept 2015]
अधिक है।
उत्तरमाला
3) उसके प्रयोग का समर्थन (4) भाषा के प्रयोग के अवसर उपलब्ध कराना
32. मानव विकास
[CTET Sept 2014]
(1)
(4) समाज
39. विकास
की और बढ़ता है।
[[CTET Sept 2015] 14) सामान्य विशिष्ट
(1) कठिन
(3) आसान
1. (4)
2 (4)
3. (3)
4. (1)
5 (1)
6
(4)
7. (1)
8
(2) (2)
10. (4)
11. (4) 12 (3) 13. (4) 14. (3) 15. (3)
16.
(4) 17. (1)
18.
(2) 19 (2)
20 (4)
21. 26.
(2) 22. (3) 23. (1) 24. (2) 25 (2) (1)
27. (4)
28.
(1) 29. (4)
30. (4)
31.
(2) 32. (4)
33.(4) 34, (4)
35. (1)
36 (1) 37. (1) 38. (4) 39. 14) 40 (2)
41, (3) 42. (3)
(3) कुछ सीमा तक अमापनीय (4) 1 और
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